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जागते रहना, आज पहले से ज़्यादा ज़रूरी

जागते रहना, आज पहले से ज़्यादा ज़रूरी

जागते रहना, आज पहले से ज़्यादा ज़रूरी

“इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।”—मत्ती 24:42.

1, 2. क्या दिखाता है कि हम जगत के अंत के समय में जी रहे हैं?

“सब बातों से बढ़कर जिस बात ने बीसवीं सदी पर सबसे ज़्यादा असर किया था, वह थी युद्ध।” यह बात लेखक बिल एमट ने कही। हालाँकि वे मानते हैं कि इतिहास में शुरू से लेकर अब तक, हर युग ने युद्ध और हिंसा की क्रूरता सही है, फिर भी वे आगे कहते हैं: “बीसवीं सदी से पहले की सदियों में भी युद्ध हुए हैं। लेकिन फर्क यह है कि इस सदी में युद्ध बहुत ही बड़े पैमाने पर लड़े गए और बहुत ही भयानक किस्म के रहे। यह पहली सदी थी जिसमें दुनिया के तमाम देश, जंग के मैदान में उतर आए . . . और मानो युद्ध पर ज़ोर देने के लिए, एक नहीं दो-दो विश्‍व-युद्ध लड़े गए।”

2 यीशु मसीह ने पहले से बता दिया था कि इस तरह के युद्ध होंगे जिनमें ‘जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेंगे।’ लेकिन युद्ध, ‘मसीह के आने का, और जगत के अन्त के चिन्ह’ का सिर्फ एक पहलू हैं। इस महान भविष्यवाणी में यीशु ने अकाल, महामारियों और भूकंपों का भी ज़िक्र किया था। (मत्ती 24:3, 7, 8; लूका 21:6, 7, 10, 11) ये सारी विपत्तियाँ आज ज़्यादा-से-ज़्यादा जगहों में आ रही हैं और पहले से कहीं ज़्यादा कहर ढा रही हैं। बुराई करने में इंसान हद पार चुका है, और यह परमेश्‍वर और दूसरे इंसानों के साथ उसके रवैए में साफ दिखायी देता है। आज लोगों में नैतिकता नाम की चीज़ नहीं है, साथ ही हिंसा और अपराध का बढ़ना भी साफ नज़र आ रहा है। लोग परमेश्‍वर से प्यार करने के बजाय पैसे के दीवाने हो गए हैं, और वे सुख-विलास के पीछे पागल हैं। यह सब इस बात का सबूत है कि हम “कठिन समय” में जी रहे हैं।—2 तीमुथियुस 3:1-5.

3. “समयों के चिन्हों” का हम पर कैसा असर होना चाहिए?

3 दुनिया के बिगड़ते हालात के बारे में आपका क्या नज़रिया है? बहुत-से लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, यहाँ तक कि वे इतने संगदिल हो गए हैं कि आए दिन हो रही बुरी घटनाएँ उन्हें मामूली बात लगती है। ना तो दुनिया की बड़ी-बड़ी हस्तियाँ और विद्वान “समयों के चिन्हों” का मतलब समझ पाए हैं, ना ही संसार के धर्म-गुरू, लोगों को इस मामले में सही दिशा दिखा पाए हैं। (मत्ती 16:1-3) लेकिन यीशु ने अपने चेलों को यह हिदायत दी थी: “इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।” (मत्ती 24:42) इस आयत में यीशु हमें सिर्फ थोड़े समय के लिए नहीं बल्कि लगातार ‘जागते रहने’ का बढ़ावा दे रहा है। इसके लिए हमें चौकस और होशियार रहने की ज़रूरत है। जागते रहने के लिए सिर्फ यह मानना काफी नहीं कि हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं, और न ही यह समझना कि आज का समय कठिन है। हमें इस बात का पूरा यकीन भी रखने की ज़रूरत है कि “सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है।” (1 पतरस 4:7) तभी हम वक्‍त की नज़ाकत को पहचानते हुए इस एहसास के साथ जागते रहेंगे कि वक्‍त बहुत कम रह गया है। इसलिए हमें इस सवाल पर गहराई से सोचने की ज़रूरत है: ‘अंत आ पहुँचा है, इसका पक्का यकीन करने के लिए क्या बात हमारी मदद करेगी?’

4, 5. (क) क्या बात हमारे इस विश्‍वास को मज़बूत करेगी कि इस दुष्ट संसार का अंत करीब है, और क्यों? (ख) नूह के दिनों और मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति के बीच एक समानता क्या है?

4 अब ज़रा उस घटना से पहले के हालात पर ध्यान दीजिए जो इंसान के इतिहास में सिर्फ एक ही बार घटी है। वह घटना है, नूह के दिनों में आया जलप्रलय। इस विपत्ति के आने से पहले लोग इतने बुरे हो गए थे कि यहोवा “मन में अति खेदित हुआ।” उसने यह फैसला सुनाया: “मैं मनुष्य को जिसकी मैं ने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूंगा।” (उत्पत्ति 6:6, 7) और उसने ठीक ऐसा ही किया। यह बताने के लिए कि हमारे समय के हालात और नूह के दिनों के हालात किस तरह मिलते-जुलते होंगे, यीशु ने कहा: “जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।”—मत्ती 24:37.

5 यह मानना सही होगा कि यहोवा ने जलप्रलय से पहले की दुनिया के बारे में जैसा महसूस किया था, वैसा ही वह आज की दुनिया के बारे में भी महसूस करता है। और जिस तरह उसने नूह के दिनों की अधर्मी दुनिया का अंत किया था, उसी तरह वह आज के दुष्ट संसार को भी ज़रूर नाश करेगा। इसलिए अगर हम उन दिनों और हमारे दिनों की मिलती-जुलती बातों को अच्छी तरह समझेंगे, तो हमारा यह विश्‍वास और भी मज़बूत होगा कि इस संसार का अंत वाकई करीब है। तो फिर वे मिलती-जुलती बातें क्या हैं? ऐसी लगभग पाँच मिलती-जुलती बातें हैं। इनमें सबसे पहली यह है कि नाश के बारे में चेतावनी साफ-साफ शब्दों में दी गयी है।

‘उन बातों के विषय में’ चेतावनी ‘जो दिखाई नहीं पड़तीं’

6. यहोवा ने नूह के दिनों में बहुत पहले से क्या चेतावनी दी होगी?

6 नूह के दिनों में यहोवा ने ऐलान किया था: “मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लों विवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है: उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी।” (उत्पत्ति 6:3) परमेश्‍वर ने जब सा.यु.पू. 2490 में यह फैसला सुनाया, तब से उस अधर्मी संसार के आखिरी दिन शुरू हो गए। ज़रा सोचिए कि उस ज़माने में जीनेवालों के लिए इसका क्या मतलब था! सिर्फ 120 साल रह गए थे, जिनके बीतने पर यहोवा “पृथ्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियों को, जिन में जीवन की आत्मा है, आकाश के नीचे से नाश” कर देता।—उत्पत्ति 6:17.

7. (क) नूह ने जलप्रलय की चेतावनी मिलने पर क्या किया? (ख) संसार के अंत के बारे में हमें जो चेतावनियाँ दी गयी हैं, उनके मुताबिक हमें क्या करने की ज़रूरत है?

7 नूह को बरसों पहले ही, आनेवाली विपत्ति की चेतावनी मिल गयी थी, इसलिए वह उन सालों का बुद्धिमानी से इस्तेमाल करते हुए बचाव की तैयारी करने लगा। प्रेरित पौलुस ने कहा: “उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चितौनी पाकर भक्‍ति के साथ [नूह ने] अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया।” (इब्रानियों 11:7) आज हमारे बारे में क्या? सन्‌ 1914 से इस संसार के अंतिम दिन शुरू हुए हैं और तब से करीब 90 साल बीत चुके हैं। इस हिसाब से तो हम बेशक ‘अन्त के समय’ में जी रहे हैं। (दानिय्येल 12:4) हमें जो चेतावनियाँ दी गयी हैं, उनके मुताबिक हमें क्या करने की ज़रूरत है? बाइबल कहती है: “जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (1 यूहन्‍ना 2:17) इसलिए यही समय है कि हम वक्‍त की नज़ाकत को समझते हुए यहोवा की इच्छा पूरी करने में लग जाएँ।

8, 9. हमारे समय में कौन-सी चेतावनियाँ दी गयी हैं, और इन चेतावनियों का ऐलान कैसे किया जा रहा है?

8 हमारे ज़माने में, बाइबल के सच्चे विद्यार्थियों ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखे शास्त्र का अध्ययन करके पता लगाया है कि यह संसार विनाश के कगार पर खड़ा है। क्या हम इस बात पर सचमुच यकीन करते हैं? ध्यान दीजिए कि यीशु मसीह ने साफ-साफ कहा था: “उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।” (मत्ती 24:21) यीशु ने यह भी कहा कि वह परमेश्‍वर का ठहराया हुआ न्यायी बनकर आएगा और लोगों को अलग करेगा, जैसे एक चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है। जो योग्य नहीं ठहरेंगे, वे “अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।”—मत्ती 25:31-33, 46.

9 यहोवा, लगातार अपने लोगों को ये चेतावनियाँ देता आया है। उसने ऐसा “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए किया है जो हमें आध्यात्मिक भोजन देकर, सही वक्‍त पर अहम बातों की याद दिलाता है। (मत्ती 24:45-47) इसके अलावा, हरेक जाति, कुल, भाषा और लोगों से यह गुज़ारिश की जा रही है कि वे ‘परमेश्‍वर से डरें; और उस की महिमा करें; क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुंचा है।’ (प्रकाशितवाक्य 14:6, 7) यहोवा के साक्षी दुनिया-भर में राज्य का जो संदेश सुना रहे हैं, उसमें यह ज़रूरी चेतावनी भी शामिल है कि बहुत जल्द परमेश्‍वर का राज्य, सभी इंसानी सरकारों को हटा देगा। (दानिय्येल 2:44) इस चेतावनी को हलकी बात नहीं समझना चाहिए। सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर अपने वादे का पक्का है, वह जो भी कहता है उसे ज़रूर पूरा करता है। (यशायाह 55:10, 11) नूह के दिनों में उसने अपना वचन पूरा किया और आज हमारे दिनों में भी वह ऐसा ही करेगा।—2 पतरस 3:3-7.

नीच लैंगिक कामों का हद-से-ज़्यादा बढ़ना

10. नूह के दिनों में किस हद तक बदचलनी फैल गयी थी?

10 नूह के दिनों और हमारे दिनों में एक और मिलती-जुलती बात है। यहोवा ने पहले स्त्री और पुरुष को यह आदेश दिया था कि वे शादी के दायरे में रहकर, उसकी दी हुई लैंगिक शक्‍ति का आदर के साथ इस्तेमाल करें और ‘पृथ्वी को’ अपने जैसे इंसानों से ‘भर दें।’ (उत्पत्ति 1:28) नूह के दिनों में, बागी स्वर्गदूतों ने विकृत लैंगिक कामों से पूरी मानवजाति को भ्रष्ट कर दिया। उन्होंने इंसान के रूप में धरती पर आकर सुंदर-सुंदर स्त्रियों के साथ लैंगिक संबंध रखे। उन्होंने ऐसी संतान पैदा की जो आधी इंसान और आधी दानव थी और नफिलीम कहलायी। (उत्पत्ति 6:2, 4; NHT, फुटनोट) इन कामुक स्वर्गदूतों के पाप की तुलना सदोम और अमोरा के निवासियों की नीच हरकतों से की गयी है। (यहूदा 6, 7) नतीजा यह हुआ कि उन दिनों बदचलनी हर तरफ फैल गयी थी।

11. हमारे समय के नैतिक हालात में ऐसी क्या बात है जो नूह के दिनों से मेल खाती है?

11 आज की दुनिया के नैतिक हालात कैसे हैं? इन आखिरी दिनों में, बहुत-से लोगों के लिए सेक्स ही उनकी ज़िंदगी बन गयी है। पौलुस ने ऐसे लोगों के बारे में खुलकर बताया है कि वे नैतिकता के मामले में “सुन्‍न” हो गए हैं; बहुत-से लोग तो “लुचपन” में इस कदर डूब गए हैं कि वे “सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से” कर रहे हैं। (इफिसियों 4:19) पोर्नोग्राफी, शादी से पहले लैंगिक संबंध रखना, बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनाना और समान लिंग के इंसान के साथ संबंध रखना, यह सब आजकल बहुत आम हो गया है। ऐसे घिनौने काम करनेवालों में से कुछ को तो अभी से “अपने भ्रम का ठीक फल” मिल रहा है। वे लैंगिक संबंधों से फैलनेवाली बीमारियों, परिवार में फूट और दूसरी समस्याओं का शिकार हो गए हैं।—रोमियों 1:26, 27.

12. हमें बुराई के खिलाफ घृणा क्यों पैदा करनी चाहिए?

12 नूह के दिनों में, यहोवा ने जलप्रलय लाकर उस दुनिया का नाश किया जो सेक्स के पीछे पागल थी। हमें कभी-भी इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए कि ये दिन वाकई नूह के दिनों जैसे हैं। आनेवाले “भारी क्लेश” में धरती पर से ‘वेश्‍यागामियों, मूर्त्तिपूजकों, परस्त्रीगामियों, लुच्चों और पुरुषगामियों’ का सफाया कर दिया जाएगा। (मत्ती 24:21; 1 कुरिन्थियों 6:9, 10; प्रकाशितवाक्य 21:8) ऐसे में यह कितना ज़रूरी है कि हम बुराई के खिलाफ घृणा पैदा करें और ऐसे हालात से बचे रहें जो हमें अनैतिक कामों में फँसा सकते हैं!—भजन 97:10; 1 कुरिन्थियों 6:18.

धरती “हिंसा से भर” जाती है

13. नूह के दिनों में, धरती क्यों “हिंसा से भर गई” थी?

13 नूह के दिनों के एक और पहलू के बारे बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर की दृष्टि में पृथ्वी भ्रष्ट हो गई थी और हिंसा से भर गई थी।” (उत्पत्ति 6:11, NHT) दरअसल, उस वक्‍त हिंसा कोई नयी बात नहीं थी। इससे बरसों पहले आदम के बेटे, कैन ने अपने धर्मी भाई का कत्ल किया था। (उत्पत्ति 4:8) लेमेक के दिनों में भी लोगों पर हिंसा का जुनून सवार था, और यही जुनून हम उसमें भी देखते हैं। अपनी कविता में लेमेक ने डींग मारी कि उसने कैसे एक नौजवान का खून किया और उसका कहना था कि उसने अपने बचाव के लिए ऐसा किया। (उत्पत्ति 4:23, 24) लेकिन हाँ, नूह के दिनों में फर्क यह था कि हिंसा पहले से ज़्यादा बढ़ गयी थी। जब परमेश्‍वर के बागी आत्मिक पुत्रों ने धरती पर आकर स्त्रियों से शादी की और उनके ज़रिए संतान यानी नफिलीम पैदा हुए, तो हिंसा इस हद तक बढ़ गयी जैसी पहले कभी नहीं थी। न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन बाइबल दिखाती है कि मूल इब्रानी भाषा में इन हिंसक “नफिलीम” के लिए इस्तेमाल किए गए शब्द का मतलब है, ‘गिरानेवाले’ यानी ‘वे जो दूसरों को गिराते हैं।’ (उत्पत्ति 6:4, NHT) उनकी वजह से पृथ्वी “हिंसा से भर गई।” (उत्पत्ति 6:13, NHT) ज़रा कल्पना कीजिए, ऐसे माहौल में रहते हुए नूह को अपने परिवार को सही राह पर ले चलने में किन-किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा होगा! लेकिन फिर भी, ‘उस समय के लोगों में से नूह यहोवा की दृष्टि में धर्मी’ ठहरा।—उत्पत्ति 7:1.

14. आज धरती किस हद तक “हिंसा से भर गई” है?

14 यूँ तो हिंसा का सिलसिला हमेशा से चलता आ रहा है। लेकिन नूह के दिनों की तरह आज हमारे समय में हिंसा बड़े पैमाने पर देखी जा रही है। आए दिन हमें परिवार में हो रही मार-पीट, आतंकवादी हमलों, पूरी-की-पूरी जाति का कत्ल, और बिना मकसद के लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाने की खबरें सुनने को मिलती हैं। इनके अलावा, युद्धों में होनेवाला खून-खराबा खबरों की सूची को और भी लंबा कर देता है। एक बार फिर पूरी धरती हिंसा से भर गयी है। इसकी वजह क्या है? यह इतनी तेज़ी से क्यों बढ़ रही है? इसके जवाब में नूह और हमारे समय के हालात की एक और मिलती-जुलती बात सामने आती है।

15. (क) इन अंतिम दिनों में किस वजह से हिंसा इतनी तेज़ी से बढ़ी है? (ख) हम पूरे विश्‍वास के साथ कैसे भविष्य की आस लगा सकते हैं?

15 सन्‌ 1914 में, जब स्वर्ग में परमेश्‍वर के मसीहाई राज्य की स्थापना हुई, तो राजा यीशु मसीह ने एक ऐसा कदम उठाया जिससे पूरा इतिहास ही बदल गया। उसने शैतान यानी इब्‌लीस और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों को स्वर्ग से खदेड़कर धरती पर गिरा दिया। (प्रकाशितवाक्य 12:9-12) जलप्रलय से पहले बागी स्वर्गदूतों ने अपनी मरज़ी से स्वर्ग छोड़ा था; लेकिन हमारे समय में उन्हें ज़बरदस्ती स्वर्ग से निकाल दिया गया है। यही नहीं, अब उनमें इंसान का रूप लेने की शक्‍ति नहीं रही जिससे वे नाजायज़ लैंगिक संबंधों का मज़ा लूट सकें। ऐसे में वे बहुत ही चिढ़े हुए और गुस्से में हैं, साथ ही उनमें बहुत जल्द आनेवाले न्यायदंड का खौफ समाया हुआ है। इसलिए उन्होंने इंसानों और संगठनों को अपनी कठपुतली बना लिया है और उनके ज़रिए ऐसे वहशियाना अपराध और क्रूर काम करवा रहे हैं, जो नूह के दिनों से भी कहीं बढ़कर हैं। जलप्रलय से पहले के ज़माने में जब बागी स्वर्गदूतों और उनकी संतानों ने धरती को बुराई से भर दिया तो यहोवा ने उस संसार को मिटा दिया था। इसमें कोई शक नहीं कि आज हमारे दिन में भी वह ऐसा ही करेगा! (भजन 37:10) लेकिन, जो आज जागते रहते हैं, वे जानते हैं कि उनका छुटकारा करीब है।

संदेश का प्रचार

16, 17. नूह और हमारे दिनों में चौथी मिलती-जुलती बात क्या है?

16 हमारे दिन और जलप्रलय से पहले के संसार के बीच की चौथी मिलती-जुलती बात है, वह काम जिसे करने की नूह को ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी। नूह ने एक बड़ा-सा जहाज़ बनाया था। वह एक “प्रचारक” भी था। (2 पतरस 2:5) उसने कौन-सा संदेश प्रचार किया? ज़ाहिर है कि नूह ने अपने प्रचार के ज़रिए लोगों को मन फिराने के लिए कहा और आनेवाले विनाश की चेतावनी दी। यीशु ने बताया कि नूह के दिनों में, ‘जब तक जल-प्रलय आकर उन सब लोगों को बहा न ले गया, उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया।’—मत्ती 24:38, 39, NW.

17 उसी तरह आज यहोवा के साक्षी पूरी लगन के साथ अपने प्रचार करने की ज़िम्मेदारी पूरी कर रहे हैं जिससे दुनिया के कोने-कोने तक परमेश्‍वर के राज्य का संदेश सुनाया जा रहा है। धरती के लगभग सभी भागों में, लोगों के लिए अपनी-अपनी भाषाओं में राज्य का संदेश सुनना और पढ़ना मुमकिन हुआ है। प्रहरीदुर्ग जो परमेश्‍वर के राज्य की घोषणा करता है, इसकी 2,50,00,000 से भी ज़्यादा कॉपियाँ बाँटी जाती हैं और यह 140 से भी ज़्यादा भाषाओं में छापी जाती है। जी हाँ, परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार ‘सारे जगत में प्रचार किया जा रहा है कि सब जातियों पर गवाही हो।’ जब परमेश्‍वर को लगेगा कि काफी प्रचार हो चुका है, तब अंत ज़रूर आ जाएगा।—मत्ती 24:14.

18. आज हमारे प्रचार करने पर ज़्यादातर लोग जिस तरह से पेश आते हैं, वह नूह के दिनों के ज़्यादातर लोगों के रवैए से कैसे मिलता-जुलता है?

18 उन दिनों जब लोग आध्यात्मिक और नैतिक मायने में इतने गिरे हुए थे, तो हम समझ सकते हैं कि नूह के परिवार को अपने अविश्‍वासी पड़ोसियों के हाथों कैसी-कैसी ज़िल्लत सहनी पड़ी होगी। लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया होगा, उनको गालियाँ दी होंगी और उन पर ताने कसे होंगे। मगर फिर भी, अंत ज़रूर आया। उसी तरह, इन अंतिम दिनों में ‘हंसी ठट्ठा करनेवालों’ की कोई कमी नहीं है। फिर भी बाइबल कहती है: “प्रभु का दिन चोर की नाईं आ जाएगा।” (2 पतरस 3:3, 4, 10) वह दिन आएगा ज़रूर और वह भी अपने ठहराए हुए समय पर। उसमें देर नहीं होगी। (हबक्कूक 2:3) इसलिए हमारे लिए जागते रहना कितनी बुद्धिमानी की बात है!

बचनेवाले सिर्फ चंद जन

19, 20. जलप्रलय और इस संसार के आनेवाले नाश के बीच हम क्या समानता बता सकते हैं?

19 नूह और हमारे दिनों के बीच की मिलती-जुलती बातें सिर्फ दुष्ट लोगों और उनके विनाश तक ही सीमित नहीं हैं। जिस तरह जलप्रलय से कुछ लोग बच गए थे, उसी तरह इस संसार के विनाश से भी लोग बचेंगे। जलप्रलय से बचनेवाले लोग, नम्र थे जिन्होंने दुनिया के बाकी लोगों के जैसी ज़िंदगी नहीं बितायी। उन्होंने परमेश्‍वर की चेतावनी पर ध्यान दिया और वे उस समय के दुष्ट संसार से अलग रहे। बाइबल कहती है: “यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही।” वह “अपने समय के लोगों में खरा था।” (उत्पत्ति 6:8, 9) पूरी मानवजाति में से सिर्फ एक ही परिवार, यानी “थोड़े लोग अर्थात्‌ आठ प्राणी पानी के द्वारा बच गए” थे। (1 पतरस 3:20) उन बचनेवालों को यहोवा परमेश्‍वर ने यह आज्ञा दी: “फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृथ्वी में भर जाओ।”—उत्पत्ति 9:1.

20 परमेश्‍वर का वचन हमें भरोसा दिलाता है कि ‘एक बड़ी भीड़,’ “बड़े क्लेश में से निकलकर” आएगी। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 14) उस बड़ी भीड़ में कितने लोग होंगे? यीशु ने खुद कहा: “सकेत है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।” (मत्ती 7:13, 14) आज दुनिया में जो अरबों की आबादी है, उसकी तुलना में आनेवाले बड़े क्लेश से बचनेवालों की गिनती बहुत ही कम होगी। मगर उन्हें भी शायद वही बढ़िया मौका दिया जाएगा जो जलप्रलय से बचनेवालों को दिया गया था। हो सकता है कि बचनेवाले कुछ वक्‍त के लिए बच्चे पैदा करें जो धरती के नए समाज के सदस्य बनेंगे।—यशायाह 65:23.

“जागते रहो”

21, 22. (क) जलप्रलय के वृत्तांत पर की गयी इस चर्चा से आपको क्या फायदा हुआ है? (ख) सन्‌ 2004 का सालाना वचन क्या है, और हमें उसमें दी गयी सलाह को क्यों मानना चाहिए?

21 हमें ऐसा लग सकता है कि जलप्रलय तो बीती बात है और इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं, मगर इसमें ऐसी चेतावनी है जिसे हमें किसी भी हाल में अनसुना नहीं करना चाहिए। (रोमियों 15:4) नूह और हमारे दिनों के बीच की मिलती-जुलती बातों से हमें और भी चौकन्‍ना होना चाहिए ताकि आज दुनिया में जो हो रहा है, उसकी अहमियत समझ सकें और उस दिन तक सतर्क रहें जब यीशु, दुष्टों को सज़ा देने के लिए चोर की तरह अचानक आ जाएगा।

22 आज यीशु मसीह बहुत ही बड़े आध्यात्मिक निर्माण काम का निर्देशन कर रहा है। सच्चे उपासकों की हिफाज़त और बचाव के लिए आज नूह के जहाज़ की तरह आध्यात्मिक फिरदौस मौजूद है। (2 कुरिन्थियों 12:3, 4) अगर हम बड़े क्लेश से बचना चाहते हैं, तो हमें इसी फिरदौस में रहना होगा। आध्यात्मिक फिरदौस के चारों तरफ शैतान का संसार है और वह इस ताक में है कि कब कोई आध्यात्मिक रूप से ऊँघने लगे और वह उसे बाहर खींच ले। इतनी नाज़ुक घड़ी में हमारे लिए ‘जागते रहना’ और खुद को यहोवा के दिन के लिए तैयार रखना बेहद ज़रूरी है।—मत्ती 24:42, 44.

क्या आपको याद है?

• यीशु ने अपने आने के बारे में क्या हिदायत दी?

• यीशु ने अपनी उपस्थिति के समय की तुलना किससे की?

• नूह और हमारे समय के हालात के बीच कौन-सी मिलती-जुलती बातें हैं?

• नूह और हमारे दिनों के बीच की मिलती-जुलती बातों पर ध्यान देने से कैसे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि अब वक्‍त बहुत कम रह गया?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

सन्‌ 2004 का सालाना वचन होगा: “जागते रहो, . . . तैयार रहो।”—मत्ती 24:42, 44.

[पेज 15 पर तसवीर]

नूह ने परमेश्‍वर की चेतावनी पर ध्यान दिया था। क्या हम भी ध्यान देते हैं?

[पेज 16, 17 पर तसवीर]

“जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा”