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‘उनके स्वर सारी पृथ्वी पर पहुंच गए’

‘उनके स्वर सारी पृथ्वी पर पहुंच गए’

‘उनके स्वर सारी पृथ्वी पर पहुंच गए’

“सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो।”मत्ती 28:19.

1, 2. (क) यीशु ने अपने चेलों को क्या काम सौंपा? (ख) पहली सदी के मसीही, इतने बड़े पैमाने पर प्रचार कैसे कर सके?

 यीशु ने स्वर्ग लौटने से कुछ ही समय पहले, अपने चेलों को एक काम सौंपा। उसने कहा: “सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो।” (मत्ती 28:19) यह क्या ही भारी काम था!

2 सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के वक्‍त, करीब 120 चेलों ने पवित्र आत्मा पायी और उन्होंने यीशु का दिया हुआ काम शुरू किया। वे लोगों को बताने लगे कि जिस मसीहा के आने की आशा लंबे अरसे से की जा रही थी, वह यीशु ही था और उसी के ज़रिए इंसानों को उद्धार मिल सकता है। (प्रेरितों 2:1-36) ज़रा सोचिए, 120 चेलों का यह छोटा-सा झुंड, “सब जातियों के लोगों” तक संदेश कैसे पहुँचाता? यह काम इंसानों के लिए ज़रूर नामुमकिन था, मगर “परमेश्‍वर से सब कुछ हो सकता है।” (मत्ती 19:26) शुरू के उन मसीहियों को यहोवा की पवित्र आत्मा की मदद मिली थी और उन्होंने इस बात की गंभीरता समझी थी कि समय बहुत कम है। (जकर्याह 4:6; 2 तीमुथियुस 4:2) इसलिए कुछ ही दशकों के अंदर सुसमाचार का प्रचार इस हद तक हो गया कि प्रेरित पौलुस ने कहा कि यह “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में” फैल चुकी है।—कुलुस्सियों 1:23.

3. किस वजह से ‘गेहूं’ या सच्चे मसीही दिखायी नहीं पड़े?

3 पहली सदी के ज़्यादातर सालों के दौरान, सच्ची उपासना करनेवालों की गिनती तेज़ी से बढ़ती गयी। लेकिन, यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि ऐसा समय आएगा जब शैतान “जंगली बीज” बोएगा और इसके बाद कई सदियों के दौरान यानी कटनी के समय तक “गेहूं” या सच्चे मसीही दिखायी नहीं देंगे। यह भविष्यवाणी, प्रेरितों की मौत के बाद पूरी हुई।—मत्ती 13:24-39.

आज तेज़ी से होती बढ़ोतरी

4, 5.सन्‌ 1919 से अभिषिक्‍त मसीहियों ने कौन-सा काम हाथ में लिया, और इसे पूरा करना क्यों एक बड़ी चुनौती थी?

4 सन्‌ 1919 में “गेंहू” या सच्चे मसीहियों को जंगली बीज से अलग करने का समय आया। अभिषिक्‍त मसीही जानते थे कि यीशु के दिए महान काम को पूरा करना अब भी बाकी है। उन्हें पक्का यकीन था कि वे “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं, और वे यीशु की इस भविष्यवाणी से वाकिफ थे: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (2 तीमुथियुस 3:1; मत्ती 24:14) जी हाँ, वे जानते थे कि उन्हें बहुत सारा काम करना है।

5 मगर, सा.यु. 33 में रहनेवाले चेलों की तरह, इन अभिषिक्‍त मसीहियों के सामने भी एक बड़ी चुनौती थी। ये सिर्फ कुछ ही हज़ार थे और कुछ ही देशों में थे। तो इतने कम लोग “सारे जगत में” सुसमाचार का प्रचार कैसे कर सकते थे? यह भी गौर कीजिए कि दुनिया की आबादी, जहाँ कैसरों के राज के समय लगभग 30 करोड़ थी, वह पहले विश्‍वयुद्ध के बाद के समय में करीब 2 अरब हो गयी थी। फिर 20वीं सदी के दौरान, आबादी और भी बढ़ जाती।

6. सन्‌ 1935 के आते-आते, सुसमाचार का प्रचार किस हद तक हो गया?

6 फिर भी, यहोवा के अभिषिक्‍त सेवकों ने पहली सदी के अपने भाइयों की तरह, यहोवा पर पूरा विश्‍वास रखते हुए प्रचार का काम शुरू किया और उसकी आत्मा उन पर रही। इसलिए सन्‌ 1935 के आते-आते, 115 देशों में करीब 56,000 प्रचारक बाइबल की सच्चाई सिखा रहे थे। इसमें शक नहीं कि बहुत सारा काम पूरा हो चुका था मगर अब भी बहुत काम बाकी था।

7. (क) अभिषिक्‍त मसीहियों के सामने कौन-सी नयी चुनौती आयी? (ख) ‘अन्य भेड़ों’ की मदद से, लोगों को इकट्ठा करने के काम में अब तक कैसी तरक्की हुई है?

7 इसके बाद, प्रकाशितवाक्य 7:9 में बतायी “बड़ी भीड़” की पहचान के बारे में गहरी समझ मिली। इससे उन मेहनती अभिषिक्‍त मसीहियों के सामने एक और चुनौती खड़ी हुई, मगर साथ ही उन्हें प्रचार काम में मदद की आशा भी मिली। चुनौती यह थी कि “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से” अनगिनत विश्‍वासियों की भीड़ को इकट्ठा करना था। वे ‘अन्य भेड़’ वर्ग के लोग होते जो पृथ्वी पर जीने की आशा रखते। (यूहन्‍ना 10:16, NW) वे “दिन रात [यहोवा] की सेवा करते।” (प्रकाशितवाक्य 7:15) इसका मतलब था कि वे प्रचार करने और सिखाने के काम में अभिषिक्‍त जनों का हाथ बँटाते। (यशायाह 61:5) जब बड़ी भीड़ इस काम में मदद देने लगी तो प्रचारकों की संख्या बढ़ने लगी, पहले हज़ारों की तादाद में और फिर लाखों में। यह नतीजा देखकर अभिषिक्‍त मसीही फूले न समाए। सन्‌ 2003 में, कुल मिलाकर 64,29,351 साक्षियों ने प्रचार का काम किया जो एक नया शिखर था। * इनमें से ज़्यादातर जन, बड़ी भीड़ के हैं। अभिषिक्‍त मसीही, इस मदद के लिए बहुत एहसानमंद हैं और दूसरी तरफ अन्य भेड़ वर्ग के लोग भी खुश हैं कि उन्हें अपने अभिषिक्‍त भाइयों की मदद करने का सुअवसर मिला है।—मत्ती 25:34-40.

8. दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, यहोवा के साक्षियों ने कठिन परीक्षाओं के बावजूद क्या किया?

8 जब गेहूं समान लोग दोबारा दिखायी देने लगे, तो शैतान ने उनके खिलाफ ज़बरदस्त जंग छेड़ दी। (प्रकाशितवाक्य 12:17) और जब बड़ी भीड़ नज़र आने लगी, तब शैतान ने क्या किया? वह गुस्से से आग-बबूला हो गया! वाकई, क्या इसमें कोई शक है कि दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, संसार भर में सच्ची उपासना पर जो हमला किया गया था उसके पीछे शैतान का ही हाथ था? युद्ध के दौरान, दोनों पक्षों के देशों में सच्चे मसीहियों पर बहुत-सी मुसीबतें आयीं। हमारे कई अज़ीज़ भाई-बहनों को कठिन परीक्षाएँ सहनी पड़ीं और कुछ ने तो अपने विश्‍वास की खातिर जान भी दे दी। इस तरह उन्होंने अपने कामों से दिखाया कि उनमें भी बिलकुल इस भजनहार के जैसी भावनाएँ थीं: “परमेश्‍वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा, परमेश्‍वर पर मैं ने भरोसा रखा है, मैं नहीं डरूंगा। कोई प्राणी मेरा क्या कर सकता है?” (भजन 56:4; मत्ती 10:28) यहोवा की आत्मा ने अभिषिक्‍त मसीहियों और अन्य भेड़ों को मज़बूत किया, इसलिए वे साथ मिलकर दृढ़ खड़े रहे। (2 कुरिन्थियों 4:7) नतीजा यह हुआ कि “परमेश्‍वर का वचन फैलता गया।” (प्रेरितों 6:7) सन्‌ 1939 में जब युद्ध छिड़ गया, तब प्रचार करनेवाले वफादार मसीहियों की गिनती 72,475 थी। लेकिन जिस साल युद्ध खत्म हुआ, तब यानी सन्‌ 1945 की अधूरी रिपोर्ट के मुताबिक 1,56,299 साक्षी पूरे ज़ोर-शोर से खुशखबरी सुना रहे थे। यह शैतान के लिए कितनी बड़ी हार थी!

9. दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, किन नए स्कूलों के बारे में घोषणा की गयी?

9 यह साफ ज़ाहिर है कि दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान हो रही खलबली ने यहोवा के सेवकों के दिल में यह शक पैदा नहीं किया कि प्रचार काम पूरा होगा या नहीं। दरअसल सन्‌ 1943 में, जब युद्ध ज़ोरों पर चल रहा था, तब दो नए स्कूलों के शुरू होने की घोषणा की गयी। एक स्कूल सभी कलीसियाओं में चलाने के लिए तैयार किया गया ताकि हरेक साक्षी को प्रचार करने और चेले बनाने की तालीम दी जा सके। आज यह ‘परमेश्‍वर की सेवा स्कूल’ के नाम से जाना जाता है। दूसरा स्कूल था, ‘वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड।’ यह मिशनरियों को तालीम देने के लिए शुरू किया गया ताकि वे विदेश जाकर वहाँ प्रचार काम को आगे बढ़ा सकें। इस तरह युद्ध के खत्म होने तक, सच्चे मसीही पहले से ज़्यादा काम करने के लिए पूरी तरह तैयार थे।

10. सन्‌ 2003 के दौरान, यहोवा के लोगों में कैसा जोश देखा गया?

10 सच्चे मसीहियों ने जो काम किया है, वह सचमुच काबिले-तारीफ है। परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से छोटे-बड़े, माता-पिता और बच्चे, यहाँ तक कि विकलांग भाई-बहनों ने भी तालीम पाकर यीशु का दिया महान काम करने में हिस्सा लिया है और आज भी वे यह काम कर रहे हैं। (भजन 148:12, 13; योएल 2:28, 29) सन्‌ 2003 में, हर महीने औसतन 8,25,185 प्रचारकों ने पायनियर सेवा करके दिखाया कि वे वक्‍त की नज़ाकत को समझ रहे हैं। इनमें से कुछ ने थोड़े समय तक और दूसरों ने लगातार यह सेवा की। यहोवा के साक्षियों ने 1,23,47,96,477 घंटे, राज्य की खुशखबरी सुनाने में बिताए। बेशक, यहोवा अपने लोगों का यह जोश देखकर खुश होता है!

विदेशों में

11, 12. किन मिसालों से ज़ाहिर होता है कि मिशनरियों ने बढ़िया रिकॉर्ड कायम किया है?

11 बीते कई सालों से, गिलियड के ग्रेजुएट भाई-बहनों ने और हाल के कुछ सालों से मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल के ग्रेजुएट भाइयों ने परमेश्‍वर की सेवा में एक बढ़िया रिकॉर्ड कायम किया है। मसलन, सन्‌ 1945 में ब्राज़ील में जब पहली बार मिशनरी आए, तब वहाँ 400 से भी कम प्रचारक थे। उन मिशनरियों और उनके बाद आए दूसरे मिशनरियों ने, ब्राज़ील के जोशीले भाइयों के साथ मिलकर कड़ी मेहनत की और यहोवा ने उनके काम पर भरपूर आशीष दी। जिन लोगों ने वे दिन देखे हैं, वे यह जानकर कितने रोमांचित होंगे कि सन्‌ 2003 में ब्राज़ील ने 6,07,362 प्रचारकों का एक नया शिखर हासिल किया!

12 अब जापान की बात लीजिए। यहाँ दूसरे विश्‍वयुद्ध से पहले, करीब सौ राज्य प्रचारक थे। युद्ध के दौरान, साक्षियों को बेरहमी से सताए जाने की वजह से उनकी गिनती कम हो गयी और युद्ध के खत्म होते-होते सिर्फ चंद साक्षी, आध्यात्मिक और शारीरिक मायने में ज़िंदा बचे। (नीतिवचन 10:9) सन्‌ 1949 में जब गिलियड से तालीम पाए 13 मिशनरी जापान गए, तो वहाँ के चंद वफादार साक्षियों की खुशी का ठिकाना न रहा। और मिशनरियों को भी बहुत जल्द अपने इन जापानी भाइयों से लगाव हो गया जो बड़े ही जोशीले और मेहमाननवाज़ थे। और अब 50 से भी ज़्यादा साल बाद, सन्‌ 2003 में जापान में कुल मिलाकर 2,17,508 प्रचारकों ने रिपोर्ट दी! यहोवा ने उस देश में रहनेवाले अपने लोगों को वाकई बेशुमार आशीषें दीं। दूसरे कई देशों से भी ऐसी रिपोर्टें मिली हैं। जो लोग विदेश जाकर प्रचार कर पाए हैं, उन्होंने सुसमाचार को फैलाने में एक खास भूमिका अदा की है। इसीलिए सन्‌ 2003 में सुसमाचार, दुनिया भर के 235 देशों, द्वीपों और दूसरे इलाकों तक पहुँच सका है। जी हाँ, बड़ी भीड़ सचमुच “हर एक जाति” से निकलकर आ रही है।

“हर एक . . . कुल, और लोग और भाषा में से”

13, 14. किस तरह यहोवा ने दिखाया कि सुसमाचार का प्रचार “हर एक . . . भाषा” में करना असरदारहोता है?

13 सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, जब चेलों को पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त किया गया, तो वे वहाँ हाज़िर भीड़ से अलग-अलग भाषा में बात करने लगे। बाइबल के मुताबिक, पवित्र आत्मा के उँडेले जाने के बाद, यह पहला चमत्कार था। उस वक्‍त जिन्होंने चेलों का संदेश सुना, वे सभी शायद यूनानी भाषा जैसी कोई अंतर्राष्ट्रीय भाषा बोलनेवाले थे। और परमेश्‍वर के “भक्‍त” होने की वजह से वे शायद मंदिर में इब्रानी भाषा में दिए जानेवाले उपदेश को भी समझ सकते थे। लेकिन जब उन्होंने अपनी-अपनी मातृ-भाषा में खुशखबरी सुनी, तो उनकी दिलचस्पी और बढ़ गयी।—प्रेरितों 2:5, 7-12.

14 आज भी, प्रचार काम बहुत-सी भाषाओं में किया जा रहा है। बड़ी भीड़ के बारे में यह भविष्यवाणी की गयी थी कि वह न सिर्फ सभी जातियों से बल्कि अलग-अलग “कुल, और लोग और भाषा में से” भी आएगी। इसी से मिलती-जुलती एक और भविष्यवाणी यहोवा ने जकर्याह के ज़रिए की: “भांति भांति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से दस मनुष्य, एक यहूदी पुरुष के वस्त्र की छोर को यह कहकर पकड़ लेंगे, कि, हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्‍वर तुम्हारे साथ है।” (तिरछे टाइप हमारे; जकर्याह 8:23) हालाँकि आज यहोवा के साक्षियों के पास अलग-अलग भाषाएँ बोलने का वरदान नहीं है, फिर भी वे जानते हैं कि लोगों को उनकी अपनी भाषा में सिखाने से उन पर ज़्यादा असर होता है।

15, 16. मिशनरियों और दूसरे भाइयों ने, लोगों की अपनी भाषाओं में प्रचार करने की चुनौती कैसे स्वीकार की?

15 यह सच है कि आज अँग्रेज़ी, फ्रांसीसी और स्पैनिश जैसी कुछ ही भाषाएँ हैं जो ज़्यादा-से-ज़्यादा देशों में बोली जाती हैं। लेकिन जो लोग दूसरे देशों में सेवा करने गए हैं, उन्होंने वहाँ की भाषा सीखने की कोशिश की है ताकि जो “अनंत जीवन के लिए सही मन रखते” हैं, उन्हें वे सुसमाचार के बारे में अच्छी तरह समझा सकें। (प्रेरितों 13:48, NW) यह काम इतना आसान नहीं है। जब दक्षिण प्रशांत महासागर के टूवालू देश के भाइयों को अपनी भाषा में साहित्य की ज़रूरत थी, तो वहाँ के एक मिशनरी ने उस भाषा में अनुवाद करने का मुश्‍किल काम हाथ में लिया। टूवालू भाषा में कोई डिक्शनरी उपलब्ध नहीं थी, इसलिए वह उस भाषा के शब्दों की सूची बनाने लगा। कुछ समय बाद, टूवालू भाषा में आप पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रह सकते हैं * किताब प्रकाशित की गयी। जब शुरू-शुरू में मिशनरी क्युरसो द्वीप आए, तो वहाँ की भाषा पपियामेन्टो में न तो कोई बाइबल साहित्य था और ना ही कोई डिक्शनरी। और इस बारे में काफी मतभेद भी था कि उस भाषा को कैसे लिखा जाना चाहिए। इन समस्याओं के होते हुए भी, शुरू के मिशनरियों के आने के दो साल के अंदर उस भाषा में पहला बाइबल ट्रैक्ट प्रकाशित किया गया। आज पपियामेन्टो, उन 133 भाषाओं में से एक है, जिनमें प्रहरीदुर्ग पत्रिका अँग्रेज़ी के साथ-साथ प्रकाशित की जाती है।

16 नामीबिया में जब शुरू-शुरू में मिशनरी आए, तो उन्हें वहाँ ऐसा कोई साक्षी नहीं मिला जो अनुवाद का काम कर सके। इसके अलावा, वहाँ की एक भाषा, नामा में कुछ आम विषयों के लिए शब्द नहीं थे। मसलन, “सिद्ध” के लिए कोई शब्द नहीं था। एक मिशनरी कहता है: “अनुवाद का काम मैंने खासकर, उन स्कूल के टीचरों से करवाया जो बाइबल का अध्ययन करते थे। उन्हें सच्चाई का बहुत कम ज्ञान था, इसलिए मुझे उनके साथ बैठकर ध्यान से देखना पड़ता था कि हर वाक्य का अनुवाद सही-सही हो रहा है या नहीं।” ऐसी मुश्‍किलों के बावजूद, आखिरकार नामीबिया की चार भाषाओं में नए संसार में जीवन ट्रैक्ट का अनुवाद किया गया। आज वहाँ की बोली जानेवाली क्वान्यामा और अंडोंगा भाषा में प्रहरीदुर्ग पत्रिका लगातार प्रकाशित की जाती है।

17, 18. मेक्सिको और दूसरे देशों में कौन-सा मुश्‍किल काम किया जा रहा है?

17 मेक्सिको में सबसे ज़्यादा स्पैनिश बोली जाती है। लेकिन वहाँ स्पेनी लोगों के आ बसने से पहले, दूसरी कई भाषाएँ बोली जाती थीं, जिनमें से कई भाषाएँ आज भी वहाँ आम हैं। इसलिए यहोवा के साक्षियों के साहित्य, अब मेक्सिको की सात भाषाओं में और वहाँ की साइन लैंग्वेज में भी प्रकाशित किए जाते हैं। इनमें से, माया भाषा में हमारी राज्य सेवकाई ऐसा पहला मासिक साहित्य है जो वहाँ की आदिवासी भाषा में छापा जाता है। दरअसल, मेक्सिको के 5,72,530 राज्य प्रचारकों में से कई हज़ार लोग माया, एज़्टॆक और दूसरी जाति के हैं।

18 हाल के सालों में करोड़ों लोग दूसरे देशों में जा बसे हैं, जिनमें से कई शरणार्थी हैं, तो दूसरे आर्थिक कारणों से वहाँ रहने लगे हैं। नतीजा यह हुआ है कि अब कई देशों में पहली बार विदेशी भाषा बोलनेवालों की गिनती बढ़ गयी है। यहोवा के साक्षियों ने ऐसे लोगों को प्रचार करने की चुनौती स्वीकार की है। मसलन, इटली में इतालवी के अलावा 22 भाषाएँ बोलनेवाली कलीसियाएँ और समूह हैं। दूसरी भाषा के लोगों को प्रचार करने में भाइयों की मदद करने के लिए, हाल ही में कुछ क्लास चलायी गयीं। इनके तहत भाइयों को 16 भाषाएँ सिखायी गयीं, जिनमें से एक इतालवी साइन लैंग्वेज थी। और भी बहुत-से देशों में यहोवा के साक्षी, भारी तादाद में आ बसे विदेशी लोगों को खुशखबरी सुनाने के लिए इसी तरह कोशिश कर रहे हैं। जी हाँ, यहोवा की मदद से, बड़ी भीड़ सचमुच अलग-अलग भाषाएँ बोलनेवाले समूहों से निकल रही है।

“सारी पृथ्वी पर”

19, 20. पौलुस के कौन-से शब्द आज शानदार तरीके से पूरे हो रहे हैं? समझाइए।

19 पहली सदी में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “क्या उन्हों ने नहीं सुना? सुना तो सही क्योंकि लिखा है कि उन के स्वर सारी पृथ्वी पर, और उन के वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं।” (रोमियों 10:18) अगर पहली सदी के बारे में यह सच है, तो आज यह और भी कितना सच साबित हुआ है! पहले के मुकाबले आज लाखों की तादाद में लोग यह कह रहे हैं: “मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूंगा; उसकी स्तुति निरन्तर मेरे मुख से होती रहेगी।”—भजन 34:1.

20 इसके अलावा, काम धीमा नहीं पड़ा है। राज्य के प्रचारकों की गिनती लगातार बढ़ती जा रही है। प्रचार काम में ज़्यादा-से-ज़्यादा समय बिताया जा रहा है। करोड़ों वापसी भेंट और लाखों बाइबल अध्ययन किए जा रहे हैं। और दिलचस्पी दिखानेवाले नए लोगों की गिनती भी बढ़ रही है। पिछले साल, 1,60,97,622 लोग यीशु की मौत के स्मारक में हाज़िर हुए जो कि एक नया शिखर था। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि अब भी बहुत सारा काम बाकी है। आइए हम उन भाइयों की मिसाल पर चलते रहें जिन्होंने भयानक यातनाओं को सहते हुए भी अपनी खराई बनाए रखी। आइए हम उन सभी भाइयों की तरह जोश दिखाएँ जिन्होंने सन्‌ 1919 से खुद को यहोवा की सेवा में लगा दिया है। हम सभी लगातार वही करें जो भजनहार के इस समूहगान में कहा गया है: “जितने प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें! याह की स्तुति करो!”—भजन 150:6.

[फुटनोट]

^ इस पत्रिका के पेज 18-21 पर दी गयी सालाना रिपोर्ट देखिए।

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

क्या आप समझा सकते हैं?

• सन्‌ 1919 में भाइयों ने कौन-सा काम करना शुरू किया, और यह क्यों एक चुनौती था?

• प्रचार काम में मदद देने के लिए किन्हें इकट्ठा किया गया?

• विदेश जाकर सेवा करनेवाले मिशनरियों और दूसरों ने कौन-सा रिकॉर्ड कायम किया?

• कौन-से सबूत देकर आप बता सकते हैं कि आज यहोवा अपने लोगों के काम पर आशीष दे रहा है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18-21 पर चार्ट]

संसार-भर में यहोवा के साक्षियों की 2003 सेवा वर्ष रिपोर्ट

(बाउंड वॉल्यूम देखिए)

[पेज 14, 15 पर तसवीरें]

दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान हो रही खलबली ने यहोवा के सेवकों के दिल में यह शक पैदा नहीं किया कि प्रचार काम पूरा होगा या नहीं

[चित्र का श्रेय]

विस्फोट: U.S. Navy photo; दूसरे: U.S. Coast Guard photo

[पेज 16, 17 पर तसवीरें]

बड़ी भीड़ सभी कुलों और भाषाओं में से निकलेगी