उत्पत्ति किताब की झलकियाँ—II
यहोवा का वचन जीवित है
उत्पत्ति किताब की झलकियाँ—II
उत्पत्ति की किताब में, पहले इंसान आदम की सृष्टि से लेकर याकूब के बेटे यूसुफ की मौत तक यानी 2,369 सालों का इतिहास दर्ज़ है। इस पत्रिका के पिछले अंक में, उत्पत्ति किताब के पहले 10 अध्यायों और 11वें अध्याय की पहली 9 आयतों पर चर्चा की गयी थी। उन अध्यायों में सृष्टि से लेकर बाबुल के गुम्मट बनाने तक का वृत्तांत दिया गया है। * इस लेख में उत्पत्ति के बाकी अध्यायों की झलकियाँ पेश की गयी हैं, जिनमें यह बताया गया है कि परमेश्वर इब्राहीम, इसहाक, याकूब और यूसुफ के साथ कैसे पेश आया था।
इब्राहीम परमेश्वर का दोस्त बना
जलप्रलय के लगभग 350 साल बाद, नूह के बेटे शेम के वंश से एक ऐसे पुरुष का जन्म हुआ जो आगे चलकर परमेश्वर की नज़र में बहुत खास इंसान बना। उसका नाम था, अब्राम। बाद में उसका नाम बदलकर इब्राहीम रखा गया। परमेश्वर से आज्ञा मिलने पर अब्राम ने कसदियों के ऊर नगर को छोड़ दिया और एक ऐसे देश में जाकर तंबुओं में रहने लगा जिसे यहोवा ने उसे और उसकी संतान को देने का वादा किया था। अपने विश्वास और आज्ञा मानने की वजह से इब्राहीम “परमेश्वर का मित्र” कहलाया।—याकूब 2:23.
यहोवा ने सदोम और उसके आस-पास के शहरों में रहनेवाले दुष्टों के खिलाफ कार्यवाही की, जबकि उसने लूत और उसकी बेटियों की जान बख्श दी। परमेश्वर ने इब्राहीम को एक बेटा देने का जो वादा किया था वह पूरा हुआ। कई साल बाद, जब यहोवा ने इब्राहीम को अपने बेटे की बलि चढ़ाने को कहा, तो उसके विश्वास की परीक्षा हुई। इब्राहीम, परमेश्वर की इस आज्ञा को मानने के लिए तैयार हो गया, मगर तभी एक स्वर्गदूत ने आकर उसे रोक दिया। इब्राहीम वाकई विश्वास की बढ़िया मिसाल है। उसे यकीन दिलाया गया कि आगे चलकर उसके वंश से धरती की सारी जातियाँ आशीष पाएँगी। अपनी प्यारी पत्नी, सारा की मौत पर इब्राहीम को बहुत दुःख हुआ।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
12:1-3—इब्राहीम की वाचा कब से लागू होने लगी और यह कब तक लागू रहेगी? यहोवा ने अब्राम के साथ वाचा बाँधी कि “भूमण्डल के सारे कुल [अब्राम के] द्वारा आशीष पाएंगे।” यह वाचा शायद तब से लागू होने लगी जब अब्राम ने कनान जाते वक्त फरात नदी पार की थी। यह सा.यु.पू. 1943 में निसान 14 को हुआ होगा जिसके ठीक 430 साल बाद इस्राएल को मिस्र की गुलामी से छुड़ाया गया। (निर्गमन 12:2, 6, 7, 40, 41) इब्राहीमी वाचा, “युग युग की वाचा” है। यह तब तक लागू रहेगी जब तक कि धरती के सारे परिवारों को आशीष नहीं मिलती और परमेश्वर के सभी दुश्मनों का नाश नहीं हो जाता।—उत्पत्ति 17:7; 1 कुरिन्थियों 15:23-26.
15:13—यह भविष्यवाणी कब पूरी हुई कि अब्राम की संतान 400 साल तक दुःख झेलेगी? दुःख झेलने का दौर सा.यु.पू. 1913 से शुरू हुआ। इसी साल इब्राहीम का बेटा इसहाक करीब 5 साल का हुआ और उसके दूध छुड़ाने के दिन उसके 19 बरस के सौतेले भाई, इश्माएल ने उसकी ‘हंसी की।’ इस तरह अब्राम की संतान पर दुःखों का दौर शुरू हुआ। (उत्पत्ति 21:8-14; गलतियों 4:29) यह दौर सा.यु.पू. 1513 में खत्म हुआ जब इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद कराया गया।
16:2—सारै ने अपनी लौंडी हाजिरा को इब्राहीम की पत्नी होने के लिए दिया। क्या उसका ऐसा करना सही था? सारै ने जो किया, वह उस ज़माने के दस्तूर के मुताबिक था। उन दिनों अगर एक पत्नी बाँझ होती तो अपनी लौंडी देना, उसका फर्ज़ बनता था ताकि पति उसके ज़रिए अपने कुल का वारिस पैदा कर सके। एक-से-ज़्यादा पत्नियाँ रखने की शुरूआत कैन के वंश से हुई। कुछ समय बाद यह एक दस्तूर बन गया और यहोवा के कुछ उपासकों ने भी इसे अपनाया। (उत्पत्ति 4:17-19; 16:1-3; 29:21-28) लेकिन यहोवा ने शुरू में दिया अपना यह स्तर कभी रद्द नहीं किया कि एक पुरुष की एक ही पत्नी हो। (उत्पत्ति 2:21, 22) और सबूत दिखाते हैं कि नूह और उसके बेटे जिन्हें ‘फूलने-फलने और पृथ्वी में भर जाने’ की आज्ञा दी गयी थी, उनकी भी एक-एक पत्नी थी। (उत्पत्ति 7:7; 9:1; 2 पतरस 2:5) बाद में, यीशु मसीह ने भी, एक ही जीवन-साथी होने के स्तर को पुख्ता किया।—मत्ती 19:4-8; 1 तीमुथियुस 3:2,12.
19:8—सदोमियों के आगे अपनी बेटियों को पेश करना क्या लूत की गलती नहीं थी? अरब देशों के अदब-कायदों के मुताबिक, मेज़बान की यह ज़िम्मेदारी थी कि वह घर आए मेहमानों की हिफाज़त करे और ज़रूरत पड़ने पर उनकी खातिर जान की बाज़ी लगाने तक को तैयार रहे। और लूत इसके लिए तैयार था। उसने बड़ी हिम्मत के साथ घर के बाहर जाकर, दरवाज़ा बंद किया और अकेले ही भीड़ का सामना किया। जब लूत ने अपनी बेटियों की पेशकश की, तब तक शायद वह समझ गया था कि उसके मेहमान, परमेश्वर के दूत हैं और उसने सोचा होगा कि परमेश्वर उसकी बेटियों को बचाएगा, जैसे उसने मिस्र में उसकी चाची की हिफाज़त की थी। (उत्पत्ति 12:17-20) और उसने जो सोचा था, वही हुआ। लूत और उसकी बेटियाँ सही-सलामत बच गयीं।
19:30-38—लूत का नशे में धुत्त होना और अपनी दोनों बेटियों के साथ लैंगिक संबंध रखकर संतान पैदा करना, क्या यहोवा को मंज़ूर था? यहोवा ना तो परिवार के सदस्यों के बीच नाजायज़ लैंगिक संबंधों को, ना ही पियक्कड़पन को सही ठहराता है। (लैव्यव्यवस्था 18:6, 7, 29; 1 कुरिन्थियों 6:9, 10) लूत खुद सदोमियों के “अधर्म के कामों” से नफरत करता था। (2 पतरस 2:6-8) लूत की बेटियों ने पहले अपने पिता को खूब शराब पिलायी। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि उन्हें मालूम था कि अगर उनका पिता होश में होगा तो वह उनके साथ संबंध रखने के लिए कभी राज़ी न होगा। लूत की बेटियों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उस देश में परदेशी होने की वजह से उनके पास सिर्फ यही एक उपाय था जिससे वे लूत के खानदान को मिटने से बचा सकें। इस वृत्तांत को बाइबल में यह दिखाने के लिए लिखा गया है कि मोआबी (मोआब की संतान) और अम्मोनी लोग (बेनम्मी की संतान), इब्राहीम के वंशज इस्राएलियों के रिश्तेदार थे।
हमारे लिए सबक:
13:8, 9. आपसी झगड़े निपटाने में, इब्राहीम ने क्या ही बढ़िया मिसाल रखी! हमें कभी-भी मुनाफा कमाने, खुद की पसंद, या घमंड की खातिर आपस के मधुर रिश्तों की बलि नहीं चढ़ानी चाहिए।
15:5, 6. जब इब्राहीम की उम्र ढल रही थी और वह बेऔलाद था, तो उसने इस बारे में परमेश्वर से बात की। बदले में, यहोवा ने उसे अपने वादे का यकीन दिलाया। नतीजा क्या हुआ? इब्राहीम ने “यहोवा पर विश्वास किया।” उसी तरह अगर हम प्रार्थना में यहोवा से दिल खोलकर बात करेंगे, बाइबल के ज़रिए वह हमें जो यकीन दिलाता है, उसे कबूल करेंगे और उसका कहना मानेंगे, तो हमारा विश्वास मज़बूत होगा।
15:16. यहोवा ने एमोरियों (यानी कनानियों) पर न्यायदंड लाने से पहले चार पीढ़ियों तक इंतज़ार किया। क्यों? क्योंकि वह धीरज धरनेवाला परमेश्वर है। उसने तब तक इंतज़ार किया जब तक कि उनके बदलने की कोई गुंजाइश नहीं रही। यहोवा के जैसे हमें भी धीरज से काम लेने की ज़रूरत है।
18:23-33. यहोवा अँधाधुंध लोगों का नाश नहीं करता। वह धर्मी लोगों को बचाता है।
19:16. लूत “विलम्ब करता रहा,” इसलिए स्वर्गदूतों को उसे और उसके परिवार को मानो खींचकर सदोम नगर के बाहर ले जाना पड़ा। हमारे लिए अक्लमंदी इसी में है कि इस दुष्ट संसार के अंत का इंतज़ार करते हुए हम वक्त की नज़ाकत को न भूलें।
19:26. जिन चीज़ों को हमने पीछे, दुनिया में छोड़ दिया है, उन्हें मुड़कर देखना या उनकी लालसा करना, कितनी बड़ी बेवकूफी होगी!
याकूब के 12 बेटे हुए
इब्राहीम ने इसहाक की शादी रिबका से तय की जो यहोवा पर विश्वास करनेवाली स्त्री थी। रिबका के जुड़वा बेटे हुए, एसाव और याकूब। एसाव ने अपने पहिलौठे के हक को तुच्छ समझकर उसे याकूब को बेच दिया। बाद में याकूब को अपने पिता से आशीष मिली। याकूब, पद्दनराम भाग गया, जहाँ उसने लिआ और राहेल से शादी की और करीब 20 साल तक उनके पिता की भेड़ों की देखभाल करने में लगा रहा। उसके बाद वह अपने परिवार के साथ वहाँ से निकल पड़ा। लिआ, राहेल और उनकी दो लौंडियों से याकूब को 12 बेटे और कुछ बेटियाँ हुईं। याकूब ने एक स्वर्गदूत के साथ कुश्ती लड़ी और आशीष पायी, और उसका नाम बदलकर इस्राएल रखा गया।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
28:12, 13—याकूब ने “एक सीढ़ी” के बारे में जो सपना देखा, उसका क्या मतलब है? यह “सीढ़ी” शायद आसमान की तरफ बढ़ती हुई पत्थरों की सीढ़ी जैसी लगी होगी। यह इस बात की निशानी थी कि स्वर्ग और धरती के बीच बातचीत संभव है। परमेश्वर के स्वर्गदूतों का सीढ़ी पर चढ़ना-उतरना दिखाता है कि वे यहोवा और उन इंसानों के बीच किसी खास तरीके से सेवा कर रहे हैं जिन पर उसका अनुग्रह है।—यूहन्ना 1:51.
30:14, 15—राहेल ने कुछ दूदाफलों के बदले, अपने पति के साथ संबंध रखने का मौका क्यों हाथ से जाने दिया? प्राचीन समय में, दूदाफल से दर्द भगाने और दौरे रोकने या राहत पाने की दवाइयाँ बनायी जाती थीं। इसके अलावा, माना जाता था कि यह फल, लैंगिक इच्छा जगाता और गर्भधारण में मदद देता है। (श्रेष्ठगीत 7:13) बाइबल नहीं बताती कि राहेल ने यह सौदा क्यों किया था। उसने शायद सोचा होगा कि दूदाफल खाने से वह गर्भवती हो जाएगी और इस तरह उसके माथे से बाँझ होने का कलंक मिट जाएगा। लेकिन हुआ यह कि कुछ सालों बाद जब यहोवा ने “उसकी कोख खोली,” तभी वह गर्भवती हुई।—उत्पत्ति 30:22-24.
हमारे लिए सबक:
25:23. यहोवा के पास यह जानने की काबिलीयत है कि एक अजन्मे बच्चे के जीन्स की रचना कैसी होगी, वह दूर भविष्य को देख सकता है और अपना मकसद पूरा करने के लिए पहले से किसी भी इंसान को चुन सकता है। मगर वह हरेक इंसान का आखिरी अंजाम पहले से तय नहीं करता।—होशे 12:3; रोमियों 9:10-12.
25:32, 33; 32:24-29. पहिलौठे का हक पाने में याकूब की दिलचस्पी और आशीष पाने के लिए उसका सारी रात स्वर्गदूत से कुश्ती लड़ना दिखाता है कि वह पवित्र चीज़ों की दिल से कदर करता था। परमेश्वर ने आज हमें बहुत-सी पवित्र चीज़ें दी हैं, जैसे उसके और उसके संगठन के साथ हमारा रिश्ता, छुड़ौती बलिदान, बाइबल और हमारी राज्य आशा। आइए हम भी याकूब की तरह बनें और इन पवित्र चीज़ों के लिए गहरी कदर दिखाएँ।
34:1, 30. याकूब पर “संकट” आ पड़ने की वजह यह थी कि उसकी बेटी दीना ने ऐसे लोगों से दोस्ती की जो यहोवा से प्यार नहीं करते थे। इससे हम सीखते हैं कि हमें सोच-समझकर अपने दोस्त चुनने चाहिए।
यहोवा ने मिस्र में यूसुफ को आशीष दी
जलन के मारे, याकूब के बेटों ने अपने भाई यूसुफ को गुलामी में बेच दिया। मिस्र में पूरी वफादारी और हिम्मत के साथ परमेश्वर के नैतिक आदर्शों पर चलने की वजह से यूसुफ को कैद में डाला गया। कुछ समय बाद, उसे रिहा किया गया ताकि वह फिरौन के सपनों का मतलब समझा सके। निर्गमन 13:19.
उन सपनों के ज़रिए यह भविष्यवाणी की गयी थी कि पहले सात सालों में अनाज का भंडार होगा और उसके अगले सात सालों में अकाल पड़ेगा। यूसुफ को मिस्र में अनाज के भंडारों का अधिकारी ठहराया गया। जब अकाल पड़ा, तो उसके भाई खाने-पीने की चीज़ों के लिए मिस्र आए। पूरा परिवार फिर से एक हो गया और गोशेन नाम की उपजाऊ ज़मीन पर बस गया। ज़िंदगी की आखिरी घड़ी में याकूब ने अपने बेटों को आशीष दी और एक भविष्यवाणी की जिससे सदियों बाद शानदार आशीषें मिलने की पक्की आशा मिली। याकूब की लाश को कनान में दफनाने के लिए ले जाया गया। यूसुफ की मौत 110 साल की उम्र में हुई, उसका शवलेपन किया गया और बाद में वादा किए गए देश में ले जाकर उसे दफनाया गया।—बाइबल सवालों के जवाब पाना:
43:32—इब्रियों के साथ भोजन करना, मिस्री लोगों के लिए क्यों घृणा की बात थी? सबसे बड़ी वजह यह हो सकती है कि उन्हें दूसरे धर्मों से नफरत थी या फिर उन्हें अपनी जाति पर घमंड था। मिस्री लोग चरवाहों से भी घृणा करते थे। (उत्पत्ति 46:34) क्यों? क्योंकि मिस्री समाज में भेड़ चरानेवाले शायद सबसे नीच जात के थे। या यह भी हो सकता है कि मिस्र में खेती की ज़मीन कम होने की वजह से उन्हें ऐसे लोगों से चिढ़ थी जो अपने झुंड को चराने के लिए उनके खेत में घुस आते थे।
44:5—क्या यूसुफ वाकई एक कटोरे से शकुन विचारता था? चांदी के कटोरे और उसके बारे में जो कुछ कहा गया था, वह सब दरअसल एक चाल थी। यूसुफ, यहोवा का एक वफादार उपासक था। जिस तरह बिन्यामीन ने सचमुच कटोरा नहीं चुराया था, उसी तरह यूसुफ ने कटोरे से शकुन नहीं विचारा था।
49:10—“राजदण्ड” का क्या मतलब है? राजदंड, एक छोटा डंडा होता है जो राजा अपने हाथ में लिए रहता था और यह राजकीय अधिकार और हुक्म देने के अधिकार को दर्शाता है। इसका ज़िक्र करके याकूब ने इस बात का इशारा किया कि शीलो के आने तक, यहूदा के गोत्र के पास बड़ा अधिकार और ताकत होगी। यहूदा के वंश से आनेवाला शीलो, यीशु मसीह था जिसे यहोवा ने स्वर्ग से हुकूमत करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। मसीह के पास राजा के तौर पर शासन करने और हुक्म देने का अधिकार है।—भजन 2:8, 9; यशायाह 55:4; दानिय्येल 7:13, 14.
हमारे लिए सबक:
38:26. यहूदा ने अपनी विधवा बहू, तामार के साथ जो किया वह ठीक नहीं था। लेकिन बाद में जब यह हकीकत सामने आयी कि तामार उसी से गर्भवती हुई है, तो उसने नम्रता से अपनी गलती कबूल की। हमें भी अपनी गलतियाँ फौरन मान लेनी चाहिए।
39:9. यूसुफ ने पोतीपर की पत्नी को जो जवाब दिया, उससे पता चलता है कि नैतिकता के मामले में उसके सोच-विचार, यहोवा के सोच-विचार से मेल खाते थे और उसका विवेक, परमेश्वर के सिद्धांतों के मुताबिक काम करता था। जब हम सच्चाई के सही ज्ञान में बढ़ते जाते हैं तो क्या हमें भी यूसुफ के जैसा बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए?
41:14-16, 39, 40. यहोवा, अपना भय माननेवालों के हालात पूरी तरह बदल सकता है। जब हम पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है, तो बुद्धिमानी इसी में होगी कि हम यहोवा पर भरोसा रखें और उसके वफादार बने रहें।
उनका विश्वास फौलाद की तरह था
इब्राहीम, इसहाक, याकूब और यूसुफ सचमुच परमेश्वर का भय माननेवाले इंसान थे और उन्होंने अपने विश्वास का लोहा साबित कर दिखाया। उत्पत्ति किताब में दर्ज़ उनकी ज़िंदगी की दास्तानें वाकई हमारे विश्वास को मज़बूत करती हैं और हम उनसे कितने अनमोल सबक सीख सकते हैं।
जब आप परमेश्वर की सेवा स्कूल में हफ्ते की बाइबल पढ़ाई करते हैं, तो इस वृत्तांत से आपको फायदा हो सकता है। अब तक दी गयी जानकारी को पढ़ने और उस पर सोचने से आप मन में इस वृत्तांत की जीती-जागती तसवीर बना पाएँगे।
[फुटनोट]
^ प्रहरीदुर्ग के जनवरी 1, 2004 अंक में दिया लेख “यहोवा का वचन जीवित है—उत्पत्ति किताब की झलकियाँ—I” देखिए।
[पेज 26 पर तसवीर]
इब्राहीम, विश्वास की एक मिसाल है
[पेज 26 पर तसवीर]
यहोवा ने यूसुफ को आशीष दी
[पेज 26 पर तसवीर]
धर्मी लूत और उसकी बेटियों की जान बख्श दी गयी
[पेज 29 पर तसवीर]
याकूब पवित्र चीज़ों की कदर करता था। क्या आप करते हैं?