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परमेश्‍वर की महिमा करो इंसान की नहीं

परमेश्‍वर की महिमा करो इंसान की नहीं

परमेश्‍वर की महिमा करो इंसान की नहीं

हाल के महीनों में, दुनिया भर में यहोवा के साक्षियों के ज़िला अधिवेशन हुए जिनका विषय था, “परमेश्‍वर की महिमा करो।” इनमें धार्मिकता से प्यार करनेवालों ने यह सीखा कि परमेश्‍वर की महिमा कैसे की जानी चाहिए। आइए

हम याद करें कि उस कार्यक्रम में क्या-क्या सिखाया गया था।

बाइबल पर आधारित ये अधिवेशन, ज़्यादातर जगहों पर तीन दिन के थे, मगर खास अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन चार दिन के थे। हाज़िर लोगों ने कुल मिलाकर 30 से भी ज़्यादा बाइबल के भाषण सुने। इन भाषणों के ज़रिए सुननेवालों की आध्यात्मिक बातों के लिए समझ और कदरदानी बढ़ायी गयी, ऐसे अनुभव सुनाए गए जिनसे उनका विश्‍वास मज़बूत हुआ, कुछ प्रदर्शनों में दिखाया गया कि बाइबल के सिद्धांतों को कैसे लागू किया जा सकता है, और पुराने ज़माने की वेश-भूषा में एक ड्रामा भी पेश किया गया जिसमें दिखाया गया कि पहली सदी के मसीहियों को किन-किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा। अगर आप इनमें से किसी अधिवेशन में हाज़िर हुए थे, तो क्यों न इस लेख को पढ़ते वक्‍त अपने उन नोट्‌स पर नज़र डालें जो आपने अधिवेशन में लिए थे? हमें यकीन है कि ऐसा करने से आपको उस आध्यात्मिक दावत के मीठे पल याद आएँगे, साथ ही आप बहुत कुछ सीख सकेंगे।

पहले दिन का विषय: ‘हे यहोवा, तू ही महिमा पाने के योग्य है’

कार्यक्रम की शुरूआत गीत और प्रार्थना से होने के बाद, पहले वक्‍ता ने हाज़िर सभी लोगों का प्यार से स्वागत किया और अधिवेशन में आने की खास वजह पर चर्चा करते हुए अपना यह भाषण दिया: “परमेश्‍वर की महिमा करने के लिए इकट्ठे होना।” उसने प्रकाशितवाक्य 4:11 का हवाला देते हुए पूरे अधिवेशन के अहम शीर्षक पर ज़ोर दिया। फिर उसने सीधे समझाया कि परमेश्‍वर की महिमा करने का क्या मतलब है। भजन संहिता की किताब से कुछ आयतों का हवाला देकर उसने इस बात पर ज़ोर दिया कि परमेश्‍वर की महिमा करने में उसके सामने ‘झुकना’ यानी उसकी उपासना करना, उसका “धन्यवाद” करना और उसकी “स्तुति” करना शामिल है।—भजन 95:6; 100:4, 5; 111:1, 2.

अगले भाग का विषय था, “परमेश्‍वर की महिमा करनेवालों को प्रतिफल मिलते हैं।” इसे पेश करनेवाले भाई ने एक दिलचस्प बात बतायी। वह यह थी कि आज दुनिया के 234 देशों में, यहोवा के 60 लाख से भी ज़्यादा साक्षी हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि दिन हो या रात, यहोवा के लोग लगातार उसकी महिमा कर रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 7:15) इस भाग में ऐसे कई मसीही भाई-बहनों का इंटरव्यू लिया गया जो किसी-न-किसी तरह की पूरे समय की सेवा कर रहे हैं। उनके अनुभव श्रोताओं के दिल को छू गए।

अगला भाषण था, “सृष्टि, परमेश्‍वर की महिमा का ऐलान करती है।” हालाँकि आकाश बोल नहीं सकता, फिर भी वह परमेश्‍वर की महानता की बड़ाई करता है और इस बात के लिए हमारी कदरदानी बढ़ाता है कि परमेश्‍वर को हमारी परवाह है। यह बात खुलकर और साफ-साफ समझायी गयी थी।—यशायाह 40:26.

ज़ुल्म, विरोध, दुनियावी प्रभाव और पाप करने की कमज़ोरी की वजह से, सच्चे मसीहियों के लिए खराई बनाए रखना एक चुनौती बन जाता है। इसलिए “खराई के मार्ग पर चलें” एक ऐसा भाषण था जिसने सुननेवालों का ध्यान बाँधे रखा। इसमें भजन 26 पर आयत-दर-आयत चर्चा की गयी, साथ ही दो लोगों का इंटरव्यू लिया गया था। उनमें से एक था, स्कूल में पढ़नेवाला साक्षी जिसने दबाव के बावजूद शुद्ध चरित्र बनाए रखा, और दूसरा था, एक साक्षी जो पहले गलत किस्म के मनोरंजन में हद-से-ज़्यादा वक्‍त बरबाद करता था, मगर बाद में अपनी इस कमज़ोरी पर काबू पाने के लिए उसने ज़रूरी कदम उठाए।

सुबह के कार्यक्रम के आखिर में, मूल-विचार भाषण दिया गया जिसका शीर्षक था, “दर्शन में की गयी महिमा की भविष्यवाणियाँ हममें जोश भर देती हैं!” भाई ने भविष्यवक्‍ता दानिय्येल, प्रेरित यूहन्‍ना और प्रेरित पतरस की मिसाल देकर समझाया कि जब उन तीनों ने भविष्य में परमेश्‍वर के मसीहाई राज्य के स्थापित होने और हुकूमत करने के बारे में शानदार दर्शन देखे, तो उनका विश्‍वास मज़बूत हुआ। फिर भाई ने उन लोगों के बारे में बताया जो अंत के समय के पक्के सबूतों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं और आगे कहा: ‘हमें पूरी उम्मीद है कि ऐसे लोग इस हकीकत पर दोबारा ध्यान देंगे कि मसीह, आज राज्याधिकार पाकर महिमा के साथ उपस्थित है। साथ ही, उम्मीद करते हैं कि वे आध्यात्मिक रूप से दोबारा मज़बूत हो जाएँगे।’

दोपहर का कार्यक्रम “यहोवा की महिमा नम्र लोगों पर प्रकट होती है,” भाषण से शुरू हुआ। भाषण देनेवाले भाई ने बताया कि पूरे विश्‍व की सबसे महान हस्ती होने पर भी यहोवा ने नम्रता की मिसाल कायम की है। (भजन 18:35) यहोवा उन लोगों पर अनुग्रह करता है जो सच्ची नम्रता दिखाते हैं। दूसरी तरफ, वह ऐसे लोगों का विरोध करता है जो सिर्फ अपने बराबर के लोगों या खुद से बड़े लोगों के सामने नम्र होने का ढोंग करते हैं, मगर अपने अधीन काम करनेवालों के साथ कठोरता से पेश आते हैं।—भजन 138:6.

इसके बाद, बाइबल की भविष्यवाणी पर एक परिचर्चा पेश की गयी जिसका मूल-विषय था: “आमोस की भविष्यवाणी—हमारे दिनों के लिए संदेश।” इस विषय के अलग-अलग पहलुओं पर रोशनी डाली गयी। पहले वक्‍ता ने आमोस की मिसाल देते हुए, इस बात पर हमारा ध्यान खींचा कि लोगों को यहोवा के आनेवाले न्यायदंड के बारे में खबरदार करना हमारी ज़िम्मेदारी है। उसके भाषण का शीर्षक था, “हिम्मत के साथ परमेश्‍वर का वचन सुनाना।” दूसरे वक्‍ता ने अपने भाषण की शुरूआत में यह सवाल पूछा: “क्या यहोवा इस धरती पर हो रही बुराई और दुःख-तकलीफों का कभी अंत करेगा?” “दुष्टों के खिलाफ परमेश्‍वर का न्यायदंड,” अपने इस भाषण में भाई ने बताया कि परमेश्‍वर जो सज़ा देता है, सज़ा पानेवाला उसके लायक होता है, उसकी सज़ा से कोई नहीं बच सकता, और यहोवा हरेक को नहीं बल्कि सिर्फ गुनहगारों को सज़ा देता है। परिचर्चा के आखिरी भाग में वक्‍ता ने इस विषय पर ज़ोर दिया, “यहोवा दिलों को जाँचता है।” जो लोग, सच्चे मन से यहोवा को खुश करना चाहते हैं, वे आमोस 5:15 में लिखे शब्दों को मानेंगे: “बुराई से बैर और भलाई से प्रीति रखो।”

वाइन जैसी शराब इंसान के मन को आनंदित करती है। मगर इसका गलत इस्तेमाल भी किया जा सकता है। अपने भाषण “शराब का गलत इस्तेमाल करने के फँदे से बचें” में वक्‍ता ने बताया कि चाहे एक इंसान पियक्कड़ न हो, फिर भी हद-से-ज़्यादा शराब पीने से उसे कौन-कौन-से शारीरिक और आध्यात्मिक खतरे हो सकते हैं। उसने एक उसूल बताया: शराब की जितनी मात्रा एक इंसान को नुकसान पहुँचा सकती है, उतनी शायद दूसरे के लिए नुकसानदेह न हो, इसलिए जितनी शराब पीने से आपकी “खरी बुद्धि और विवेक” को नुकसान होता है, वह आपके लिए हद-से-ज़्यादा है।—नीतिवचन 3:21, 22.

हम कठिन समय में जी रहे हैं, इसलिए अगले भाग से सुननेवालों को काफी हिम्मत मिली जिसका शीर्षक था, “यहोवा, ‘संकट के समय हमारा दृढ़ गढ़।’” प्रार्थना, पवित्र आत्मा और मसीही भाई-बहनों की मदद से हम संकट का सामना कर सकते हैं।

दिन का आखिरी भाषण था, “‘उत्तम देश’—फिरदौस की एक झलक”। इस भाषण के अंत में बाइबल के ढेरों नक्शों से भरा एक नया साहित्य रिलीज़ किया गया जिसने सबको हैरान कर दिया। उसका नाम है, ‘उत्तम देश को देख’।

दूसरे दिन का विषय: ‘अन्य जातियों में उसकी महिमा का वर्णन करो’

दैनिक पाठ की चर्चा के बाद, अधिवेशन की दूसरी परिचर्चा पेश की गयी जिसका शीर्षक था, “दर्पण की तरह यहोवा की महिमा प्रकट करें।” पहले भाग में, “हर जगह सुसमाचार सुनाने के ज़रिए” विषय पर काफी जानकारी पेश की गयी थी। इसमें, भाई-बहनों को प्रचार में मिले असल अनुभवों के प्रदर्शन दिखाए गए। दूसरे वक्‍ता ने “लोगों की आँखों पर से परदा हटाने के ज़रिए” विषय पर चर्चा की और इस भाषण में वापसी भेंट का एक प्रदर्शन भी शामिल किया। परिचर्चा का आखिरी भाग था, “अपनी सेवा में और ज़्यादा मेहनत करने के ज़रिए।” इसमें ऐसे भाई-बहनों के इंटरव्यू लिए गए जिन्हें प्रचार में बढ़िया अनुभव मिले थे और इस वजह से भाषण काफी दिलचस्प रहा।

कार्यक्रम का अगला भाषण था, “बिना कारण, नफरत के शिकार।” इसमें ऐसे वफादार जनों के इंटरव्यू लिए गए जिन्होंने विरोध के समय, परमेश्‍वर से मिली ताकत से अपनी खराई बनाए रखी। उनका अनुभव, वाकई विश्‍वास मज़बूत करनेवाला था।

बपतिस्मे का भाषण हर अधिवेशन की एक खासियत होती है, जिसका सभी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। इस भाषण के बाद, बपतिस्मे के काबिल सभी लोगों को पानी में डुबकी दी जाती है। पानी में बपतिस्मा लेना, इस बात की निशानी है कि एक इंसान ने अपने आपको पूरी तरह यहोवा को समर्पित कर दिया है। इसलिए भाषण का विषय बिलकुल सही था: “अपने समर्पण के मुताबिक जीने से परमेश्‍वर की महिमा होती है।”

दोपहर के कार्यक्रम का पहला भाषण था, “महानता के बारे में मसीह का नज़रिया पैदा करना।” इस भाषण में सुननेवालों को खुद की जाँच करने का बढ़ावा दिया गया। वक्‍ता ने यह दिलचस्प मुद्दा बताया: मसीह ने नम्रता की जो मिसाल कायम की, उस पर चलने से महानता हासिल होती है। इसलिए एक मसीही को अपना नाम ऊँचा करने के इरादे से ज़िम्मेदारी पाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उसे खुद से पूछने की ज़रूरत है: ‘क्या मैं दूसरों को फायदा पहुँचाने के लिए ऐसे काम करने को तैयार रहता हूँ जिन पर लोगों का ध्यान इतनी आसानी से नहीं जाता?’

क्या आप कभी थकावट महसूस करते हैं? जवाब साफ है। इसलिए सभी को यह भाषण अच्छा लगा, “शारीरिक रूप से थके हुए, मगर आध्यात्मिक रूप से नहीं।” लंबे समय से सच्चाई में रहनेवाले साक्षियों के इंटरव्यू लिए गए जिनसे ज़ाहिर हुआ कि यहोवा ज़रूर हमें ‘अपनी आत्मा से बलवन्त’ बना सकता है।—इफिसियों 3:16.

उदारता का गुण हमारे अंदर पैदाइशी नहीं होता, इसलिए हमें सीखने की ज़रूरत है कि यह गुण कैसे दिखाएँ। “उदार और सहायता देने में तत्पर हों,” भाषण में इसी अहम मुद्दे पर ज़ोर दिया गया। इसमें यह सवाल पूछा गया जो हमें सोचने पर मजबूर करता है: “क्या हम उन भाई-बहनों के साथ कुछ मिनट बिताने के लिए तैयार रहते हैं जो बूढ़े, बीमार, हताश या अकेले हैं?”

“‘परायों के शब्द’ से खबरदार,” इस भाषण ने हाज़िर सभी लोगों का ध्यान बाँधे रखा। इस भाषण में, यीशु के चेलों की तुलना भेड़ों से की गयी जो सिर्फ ‘अच्छे चरवाहे’ की आवाज़ पहचानती हैं। वे “परायों का शब्द नहीं पहचानतीं,” जो कई तरीकों से सुनायी देते हैं, क्योंकि इसके पीछे इब्‌लीस का हाथ होता है।—यूहन्‍ना 10:5,14,27.

जब गायक-दल के सभी लोग सुर-में-सुर मिलाकर गीत गाएँगे, तभी सुननेवालों को गीत के बोल समझ आएँगे। उसी तरह परमेश्‍वर की महिमा करने के लिए, संसार भर के सच्चे उपासकों का एकता में रहना ज़रूरी है। इसलिए “‘एक मुंह होकर’ परमेश्‍वर की महिमा करो,” भाषण में काफी फायदेमंद बातें सिखायी गयी थीं कि हम सब कैसे एक ही “शुद्ध भाषा” बोल सकते हैं और “कन्धे से कन्धा मिलाए हुए” यहोवा की सेवा कर सकते हैं।—सपन्याह 3:9.

जिन माता-पिताओं के खासकर छोटे-छोटे बच्चे हैं, वे दिन का आखिरी भाषण सुनकर फूले न समाए। उसका विषय था, “हमारे बच्चे—एक अनमोल विरासत।” इसमें 256-पेजवाली एक नयी किताब रिलीज़ की गयी जिसे पाकर लोगों में सनसनी और खुशी की लहर दौड़ उठी। महान शिक्षक से सीखिए (अँग्रेज़ी) एक ऐसी किताब है जिसकी मदद से माता-पिता, परमेश्‍वर से मिले तोहफे यानी अपने बच्चों के साथ अच्छा वक्‍त बिताकर उन्हें आध्यात्मिक तरीके से मज़बूत कर पाएँगे।

तीसरे दिन का विषय: “सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये करो”

अधिवेशन के आखिरी दिन में, आध्यात्मिक विचारों की शुरूआत दैनिक पाठ पर चर्चा से हुई। इस दिन के पहले भाग में परिवार के इंतज़ाम पर खास ध्यान दिया गया। इसके लिए पहले भाषण, “माता-पिताओ, पारिवारिक बंधन को मज़बूत कीजिए” ने सुननेवालों के मन को तैयार किया। वक्‍ता ने सबसे पहले माता-पिता की इस ज़िम्मदोरी पर विचार किया कि वे अपने बच्चों की शारीरिक ज़रूरतें पूरी करें। इसके बाद, उसने साबित किया कि माता-पिता की पहली ज़िम्मेदारी है बच्चों की आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करना।

अगले भाषण में, वक्‍ता ने बच्चों से मुखातिब होकर इस विषय पर चर्चा की: “जवान, यहोवा की महिमा कैसे कर रहे हैं।” उसने कहा कि जवान लोग “ओस” की बूँदों के समान हैं, क्योंकि वे भारी तादाद में हैं और उनकी जवानी का जोश दूसरों के मन को तरो-ताज़ा करता है। और बड़े लोगों को उनके साथ मिलकर यहोवा की सेवा करने में खुशी होती है। (भजन 110:3) इस भाग में, अच्छी मिसाल रखनेवाले जवान भाई-बहनों के इंटरव्यू लिए गए जिन्हें सुनकर सभी खुश हुए।

हर ज़िला अधिवेशन का एक दिलचस्प भाग होता है, पुराने ज़माने की वेश-भूषा में पेश किया जानेवाला ड्रामा। और यही बात इस बार भी देखी गयी। ड्रामे का शीर्षक था, “लाख विरोध के बावजूद हिम्मत से गवाही देते रहना।” इसमें पहली सदी के यीशु के चेलों को दिखाया गया। यह सिर्फ मज़ेदार ही नहीं था बल्कि इससे काफी कुछ सीखने को भी मिला। इसके बादवाले भाषण, “‘बिना रुके’ सुसमाचार सुनाते रहें” में, ड्रामे के खास मुद्दों को अच्छी तरह समझाया गया।

अधिवेशन में मौजूद सभी लोग रविवार के कार्यक्रम के एक खास भाग की आस लगाए हुए थे। वह था, जन भाषण जिसका शीर्षक था, “आज कौन परमेश्‍वर की महिमा कर रहे हैं?” वक्‍ता ने यह दिखाने के लिए कई ठोस सबूत दिए कि वैज्ञानिकों और बड़े-बड़े धर्मों ने परमेश्‍वर की महिमा नहीं की है। सिर्फ वे लोग आज सही मायनो में यहोवा के नाम की महिमा कर रहे हैं जो उसके नाम से जाने जाते हैं, उसके बारे में सच्चाई सिखाते हैं।

जन भाषण के बाद, हफ्ते के प्रहरीदुर्ग अध्ययन लेख का सारांश पेश किया गया। और फिर आखिरी भाषण दिया गया, जिसका विषय था “‘बहुत सा फल लाओ’ जिससे यहोवा की महिमा हो।” इस भाषण में भाई ने सबके सामने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें दस मुद्दे दिए गए थे। इन मुद्दों में सिरजनहार, यहोवा की महिमा करने के अलग-अलग तरीके बताए गए थे। इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए लोगों ने एक आवाज़ में जवाब दिया, “जी हाँ।” इसी तरह की ज़ोरदार आवाज़, दुनिया भर में आयोजित हर अधिवेशन में सुनायी पड़ी।

इस तरह अधिवेशन के खत्म होने पर, इसमें हाज़िर हरेक शख्स के कान में इस अधिवेशन का शीर्षक, “परमेश्‍वर की महिमा करो” गूँजता रहा। आइए हम सभी परमेश्‍वर की आत्मा और धरती पर मौजूद उसके संगठन की मदद से, हमेशा परमेश्‍वर की महिमा करने की कोशिश करें, न कि इंसान की।

[पेज 23 पर बक्स/तसवीरें]

अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन

अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, उत्तर और दक्षिण अमरीका, एशिया और यूरोप में अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किए गए। इन अधिवेशनों का कार्यक्रम चार दिन का था। इनमें हाज़िर होने के लिए दुनिया के कई देशों से साक्षियों को न्यौता दिया गया था। इस तरह अधिवेशन की जगहों में रहनेवालों और बाहर से आए मेहमानों को ‘एक दूसरे से प्रोत्साहन’ मिला। (रोमियों 1:12, NHT) बरसों-पुराने दोस्त फिर से मिले और कुछ लोगों ने नए दोस्त बनाए। इन अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में यह खास भाग पेश किया गया, “दूसरे देशों से मिली रिपोर्टें।”

[पेज 25 पर बक्स/तसवीरें]

नए साहित्य जिनसे परमेश्‍वर की महिमा होती है

“परमेश्‍वर की महिमा करो” ज़िला अधिवेशनों में दो नए साहित्य रिलीज़ किए गए। एक था, बाइबल एटलस ‘उत्तम देश को देख।’ टिकाऊ जिल्द से बने इस साहित्य में 36 पेज हैं जो नक्शों से भरे हैं। साथ ही इसमें बाइबल में बतायी जगहों के चित्र भी हैं। हर पन्‍ने पर रंग बिखरे हैं और इसमें अश्‍शूर, बाबुल, मादी-फारस, यूनान और रोम के साम्राज्य के नक्शे भी दिए गए हैं। इसके अलावा, उन जगहों के नक्शे भी हैं जहाँ यीशु ने सेवा की थी और जहाँ तक मसीहियत फैली थी।

महान शिक्षक से सीखिए (अँग्रेज़ी) किताब में 256 पेज और करीब 230 तसवीरें हैं। बच्चों के साथ बैठकर इस किताब की तसवीरों को देखने और सोचने पर मजबूर कर देनेवाले सवालों पर चर्चा करने में ढेर सारा वक्‍त बिताया जा सकता है और इसमें बच्चों के साथ-साथ आपको भी मज़ा आएगा। यह नयी किताब इसलिए तैयार की गयी है ताकि हम इसकी मदद से शैतान के उन हमलों को नाकाम कर सकें जिनसे वह हमारे नन्हे-मुन्‍ने को गलत चालचलन में फँसाने की कोशिश करता है।

[पेज 23 पर तसवीर]

मिशनरियों ने ऐसे अनुभव बताए जिनसे सुननेवालों का विश्‍वास मज़बूत हुआ

[पेज 24 पर तसवीर]

“परमेश्‍वर की महिमा करो” अधिवेशनों की खासियत थी, नए लोगों का बपतिस्मा

[पेज 24 पर तसवीर]

छोटे-बड़े, सभी ने बाइबल ड्रामे का आनंद लिया