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क्या धर्म ही इंसान की सारी समस्याओं की जड़ है?

क्या धर्म ही इंसान की सारी समस्याओं की जड़ है?

क्या धर्म ही इंसान की सारी समस्याओं की जड़ है?

“जब धर्म दंगे-फसाद नहीं करवाता, तब वह ऐसी नशीली दवा की तरह काम करता है जो इंसान के ज़मीर को सुन्‍न कर देती है और उनके दिमाग को कोरी-कल्पनाओं से भर देती है जिससे वे ज़िंदगी की कड़वी सच्चाइयाँ भूल जाते हैं। . . . [यह] इंसान को बंददिमागी और अंधविश्‍वासी बना देता है, उसमें नफरत और डर पैदा करता है।” यह बात एक ऐसे आदमी ने लिखी जो पहले मेथोडिस्ट मिशनरी था। उसने यह भी कहा: “ये इलज़ाम बिलकुल सही हैं। दुनिया में अच्छे-बुरे दोनों किस्म के धर्म हैं।”—खुद अपना धर्म शुरू करो, अँग्रेज़ी।

कुछ लोग शायद कहें कि ‘ये सारे इलज़ाम सरासर झूठे हैं।’ लेकिन क्या कोई इतिहास के सबूतों को नकार सकता है? आम तौर पर कहा जाता है कि धर्म “परमेश्‍वर या अलौकिक शक्‍ति की सेवा या उपासना है।” लेकिन धर्म ने अकसर जो रिकॉर्ड कायम किया है, उसे देखकर तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। धर्म का फर्ज़ बनता है कि वह हमें ज्ञान की रोशनी और आध्यात्मिक प्रेरणा दे। लेकिन सच्चाई यह है कि वह ज़्यादातर फूट, असहनशीलता और नफरत को हवा देता है। ऐसा क्यों?

भरमानेवाला “ज्योतिर्मय स्वर्गदूत”

बाइबल इसका बिलकुल साफ और आसान-सा जवाब देती है। शैतान यानी इब्‌लीस ने एक “ज्योतिर्मय स्वर्गदूत” का रूप धारण करके करोड़ों लोगों को गुमराह किया है, इसलिए वे परमेश्‍वर के बजाय उसी की शिक्षाओं को मानते हैं। शैतान का असर इस कदर फैला हुआ है कि प्रेरित यूहन्‍ना ने कहा: “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (तिरछे टाइप हमारे; 1 यूहन्‍ना 5:19) यूहन्‍ना जानता था कि शैतान ‘सारे संसार को भरमा’ रहा है।—प्रकाशितवाक्य 12:9.

शैतान के इस छल का क्या अंजाम हुआ है? उसने ऐसे धार्मिक संगठनों की शुरूआत की है जो ऊपर से बहुत पवित्र दिखायी देते हैं। वे ‘धर्म का दिखावटी रूप’ लिए हुए हैं मगर उनके बुरे फलों या नीच कामों से उनकी असली सूरत सामने आती है। (2 तीमुथियुस 3:5, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; मत्ती 7:15-20) इंसान को अपनी समस्याएँ हल करने में मदद देने के बजाय, धर्म उसके लिए एक मुसीबत बन गया है।

आप इसे एक बेतुकी बात समझकर फौरन नकारिए मत। याद रखिए कि धोखे का मतलब ही यह है कि धोखा खानेवाला असलियत से बेखबर होता है। प्रेरित पौलुस ने ऐसी अज्ञानता की एक मिसाल दी: “अन्यजाति जो बलिदान करते हैं, वे परमेश्‍वर के लिये नहीं, परन्तु दुष्टात्माओं के लिये बलिदान करते हैं।” (1 कुरिन्थियों 10:20) उन लोगों को यह जानकर कितना धक्का लगा होगा कि वे दुष्टात्माओं को पूज रहे थे। उन्होंने सोचा कि वे किसी अच्छे ईश्‍वर या देवी-देवताओं को पूज रहे हैं लेकिन असल में वे ‘आकाश में रहनेवाली दुष्टता की आत्मिक सेनाओं’ के झाँसे में आ गए थे। (इफिसियों 6:12) ये दुष्टात्माएँ शैतान के साथ मिलकर सारी दुनिया को गुमराह कर रही हैं।

मसलन, आइए गौर करें कि मसीही होने का दावा करनेवाले बहुतों को धोखा देने में शैतान कैसे कामयाब हो गया। इन लोगों ने दुष्टात्माओं के बुरे असर के बारे में प्रेरित यूहन्‍ना की चेतावनी को जानबूझकर अनसुना कर दिया था।—1 कुरिन्थियों 10:12.

यीशु की शिक्षाएँ परमेश्‍वर की ओर से थीं

यीशु मसीह ने कहा: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” (यूहन्‍ना 7:16) जी हाँ, यीशु ने जो भी सिखाया वह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की ओर से था। इसलिए उसकी शिक्षाओं ने उसके सुननेवालों को ज्ञान की रोशनी दी और उनमें अच्छे विचार पैदा किए। उसकी शिक्षाओं ने ‘इंसान के ज़मीर को सुन्‍न नहीं किया, ना ही दिमाग को कोरी-कल्पनाओं से भरा ताकि वे ज़िंदगी की कड़वी सच्चाइयाँ भूल जाएँ।’ इसके बजाय, यीशु की शिक्षाओं ने लोगों को गलत धार्मिक विचारों और इंसानी तत्त्वज्ञानों से आज़ाद किया। ये गलत विचार और तत्त्वज्ञान इस दुनिया की उपज हैं जिसकी “बुद्धि” इब्‌लीस के धोखे की वजह से ‘अन्धेरे में है।’—इफिसियों 4:18; मत्ती 15:14; यूहन्‍ना 8:31, 32.

सच्चे मसीहियों की पहचान, पवित्रता का ढोंग करने से नहीं बल्कि उनके विश्‍वास से हुई। विश्‍वास उन मनभावने गुणों में से एक है जिन्हें परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा एक इंसान में पैदा करती है। (गलतियों 5:22, 23; याकूब 1:22; 2:26) इनमें सबसे उम्दा गुण है प्रेम जो सच्चे मसीहियों की पहचान करानेवाली निशानी है।—यूहन्‍ना 13:34, 35.

लेकिन इस अहम मुद्दे पर भी ध्यान दीजिए: ना तो यीशु ने और ना ही उसके प्रेरितों ने उम्मीद की थी कि मसीही कलीसिया, हमेशा वैसी रहेगी जैसी शुरूआत में थी। वे जानते थे कि धर्मत्याग शुरू होगा और कुछ समय के लिए सच्चा धर्म दिखायी नहीं देगा।

सच्चा धर्म कुछ समय तक दिखायी नहीं दिया

यीशु ने गेहूँ और जंगली बीज के दृष्टांत में यह भविष्यवाणी की कि कुछ समय के लिए सच्चा धर्म करीब-करीब दिखायी नहीं देगा। इस बारे में मत्ती 13:24-30, 36-43 में दिया वृत्तांत आप खुद पढ़कर देख सकते हैं। यीशु ने एक खेत में गेहूँ या “अच्छा बीज” बोया था। गेहूँ का मतलब था, यीशु के वे वफादार चेले जिनसे शुरू की मसीही कलीसिया बनती। यीशु ने आगाह किया कि बाद में “बैरी,” शैतान आकर गेहूँ के बीच “जंगली बीज” बो देगा। इसका मतलब था कि ऐसे लोग निकल आएँगे जो यीशु मसीह के नक्शेकदम पर चलने का दावा तो करेंगे, मगर असल में उसकी शिक्षाओं को ठुकरा रहे होंगे।

यीशु के प्रेरितों की मौत के फौरन बाद, ऐसे लोग नज़र आने लगे जो “जंगली बीज” साबित हुए। उन्होंने “यहोवा के वचन” के बजाय इंसान की टेढ़ी-मेढ़ी शिक्षाओं को अपना लिया। (यिर्मयाह 8:8, 9; प्रेरितों 20:29, 30) और नतीजा यह था कि सही राह से भटका हुआ एक नकली मसीही धर्म उभरकर आया। और इस धर्म पर एक भ्रष्ट पादरी वर्ग ने अपना रौब जमाया। इस पादरी वर्ग को बाइबल में “अधर्मी” कहा गया है और यह खुद “सब प्रकार के धोखे” में डूबा हुआ था। (2 थिस्सलुनीकियों 2:6-10) यीशु ने भविष्यवाणी में बताया कि “जगत के अन्त में” ये हालात बदल जाएँगे। गेहूँ समान मसीहियों को एक-साथ इकट्ठा किया जाएगा जबकि ‘जंगली दानों’ को आखिर में भस्म कर दिया जाएगा।

यही वह नकली मसीही धर्म है जिसने “कई सदियों तक बड़ी बेरहमी से लोगों का खून बहाया है” और यही उस आध्यात्मिक अंधकार के लिए कसूरवार है जो बाद की सदियों में ईसाईजगत पर छा गया। इसके अलावा धर्म के नाम पर दूसरे कई नीच काम भी किए गए और ज़ुल्म ढाए गए। प्रेरित पतरस जानता था कि सच्चे मसीही धर्म से दूर जाने के ऐसे ही अंजाम होंगे, इसीलिए उसने भविष्यवाणी में बिलकुल सही कहा कि “[मसीही होने का दावा करनेवालों] के कारण सत्य के मार्ग की निन्दा की जाएगी।”—2 पतरस 2:1, 2.

“क्रोध और नफरत की आग”

बेशक, सिर्फ ईसाईजगत ने ही धर्म को बदनाम नहीं किया है। ज़रा उन “कट्टरपंथी गुटों” के बारे में भी सोचिए जो अपने विश्‍वास की खातिर दूसरों की जान लेने या खुद मर-मिटने को तैयार हो जाते हैं। केरन, जो पहले नन थी, कहती है कि इन गुटों को “सभी बड़े-बड़े धर्मों” ने ही जन्म दिया है। उसने कहा कि अच्छे धर्म की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह अपने सदस्यों को “असल ज़िंदगी में भी दया से पेश आना सिखाता है।” कट्टरपंथी गुटों को अगर इस कसौटी पर परखा जाए तो क्या नतीजा निकलता है? केरन ने लिखा: “जो कट्टरपंथी गुट, क्रोध और नफरत की आग भड़काते हैं, वे इस अहम कसौटी पर खरे नहीं उतरते, फिर चाहे वे यहूदी, मसीही या इस्लाम धर्म के ही क्यों न हों।” (परमेश्‍वर के लिए संघर्ष—यहूदी, मसीही और इस्लाम धर्म का कट्टरपंथी रवैया, अँग्रेज़ी।) मगर क्या सिर्फ “कट्टरपंथी गुट” ही अच्छे धर्म की कसौटी पर खरे नहीं उतरे और क्या सिर्फ उन्होंने ही ‘क्रोध और नफरत की आग भड़कायी’ है? इतिहास दिखाता है कि दूसरे किस्म के धर्मों का भी ऐसा ही रिकॉर्ड रहा है।

दरअसल, शैतान ने पूरे संसार में झूठे धर्म का एक विशाल साम्राज्य खड़ा किया है। इसकी पहचान है क्रोध, नफरत और ऐसा खून-खराबा जिसका कोई अंत नज़र नहीं आता। बाइबल इस साम्राज्य को “बड़ा बाबुल पृथ्वी की . . . घृणित वस्तुओं की माता” कहती है। इसकी तुलना एक वेश्‍या से की गयी है जो एक जंगली पशु पर बैठी है। यह जंगली पशु राजनीतिक संगठनों को दर्शाता है। यह बात ध्यान देने लायक है कि वेश्‍या को ‘पृथ्वी पर घात किए हुए सभी लोगों के लोहू’ के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है।—प्रकाशितवाक्य 17:4-6; 18:24.

सबने धोखा नहीं खाया

लेकिन इतिहास गवाह है कि हर कोई शैतान के धोखे में नहीं आया है। मेल्वन ब्रैग कहता है कि सबसे खतरनाक दौर में भी जब “चारों तरफ बुरे लोग थे, कई नेक लोगों ने अच्छे काम किए।” सच्चे मसीही, परमेश्‍वर की “आराधना आत्मा और सच्चाई” से करते रहे। (यूहन्‍ना 4:21-24, NHT) वे दुनिया भर में फैले उस धर्म-संगठन से अलग रहे जिसने “फौजी ताकत का हिमायती बनकर” आध्यात्मिक मायने में व्यभिचार किया था। उन्होंने चर्च और सरकार के साथ कोई नाता नहीं रखा। इतिहास के मुताबिक “यह मानना ज़्यादा सही लगता है कि चर्च और सरकार के बीच गठबंधन यीशु नासरी ने नहीं बल्कि शैतान ने कराया था।”—दो हज़ार साल—दूसरा मिलेनियम: मध्य युगों के ईसाईजगत से दुनिया-भर में मसीहियत के फैलने तक, अँग्रेज़ी।

हाल के समय में, यहोवा के साक्षी अपने भले कामों के लिए काफी जाने गए हैं। झूठे धर्म से खुद को पूरी तरह बेदाग रखने के लिए वे सिर्फ उन्हीं शिक्षाओं को मानते और वही काम करते हैं जो परमेश्‍वर के प्रेरित वचन बाइबल के मुताबिक सही हैं। (2 तीमुथियुस 3:16, 17) और पहली सदी के मसीहियों की तरह, वे यीशु की इस आज्ञा को मानते हैं कि उन्हें ‘संसार के नहीं’ होना है। (यूहन्‍ना 15:17-19; 17:14-16) उदाहरण के लिए, जर्मनी में नात्ज़ी हुकूमत के दौरान उन्होंने मसीही उसूलों के खिलाफ जाने से इनकार कर दिया और इसलिए नात्ज़ियों ने उन्हें मंज़ूर नहीं किया। उनके इसी फैसले की वजह से हिटलर उनसे नफरत करने लगा। स्कूल की एक किताब कहती है: “यहोवा के साक्षियों ने . . . बाइबल की इस शिक्षा को माना कि उन्हें किसी भी कारण से हथियार नहीं उठाने हैं। इसलिए उन्होंने फौज में भर्ती होने या नात्ज़ियों के साथ कोई भी नाता रखने से साफ इनकार कर दिया। इस वजह से SS (हिटलर के खास सैनिक-दलों) ने यहोवा के साक्षियों के कई परिवारों को जेल में डाल दिया।” (जर्मनी—सन्‌ 1918-45, अँग्रेज़ी) इतना ही नहीं, जर्मनी में नात्ज़ियों के अत्याचार की वजह से सैकड़ों यहोवा के साक्षी मर गए।

यह सच है कि दूसरे धर्मों में भी कुछ बहादुर लोगों ने अपने विश्‍वास की खातिर अत्याचार सहे हैं। लेकिन यहोवा के साक्षियों की खासियत यह है कि उनके पूरे संगठन ने एकता में रहकर ऐसे अत्याचारों को सहा है। इसमें शक नहीं कि यहोवा के ज़्यादातर साक्षियों ने बाइबल के इस बुनियादी उसूल को सख्ती से माना है: ‘मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करो।’—प्रेरितों 5:29; मरकुस 12:17.

समस्या की जड़

इसलिए यह बात सिर्फ आधी सच है कि इंसान की सभी समस्याओं की जड़ धर्म है। सारी समस्याओं का ज़िम्मेदार असल में झूठा धर्म है। लेकिन परमेश्‍वर ने ठान लिया है कि वह बहुत जल्द सभी झूठे धर्मों को मिटा देगा। (प्रकाशितवाक्य 17:16, 17; 18:21) न्याय और धार्मिकता से प्यार करनेवाले हर इंसान को परमेश्‍वर यह हुक्म देता है: “हे मेरे लोगो, उस में [यानी बड़े बाबुल में से, जो सारी दुनिया में साम्राज्य की तरह फैला झूठा धर्म है] से निकल आओ; कि तुम उसके पापों में भागी न हो, और उस की विपत्तियों में से कोई तुम पर आ न पड़े। क्योंकि उसके पाप स्वर्ग तक पहुंच गए हैं, और उसके अधर्म परमेश्‍वर को स्मरण आए हैं।” (प्रकाशितवाक्य 18:4, 5) जी हाँ, परमेश्‍वर भी उन धर्मों से बहुत क्रोधित है जो ‘फूट पैदा करते हैं, नशीली दवा की तरह इंसान के ज़मीर को सुन्‍न कर देते हैं, दिमाग को कोरी-कल्पनाओं से भर देते हैं कि वह ज़िंदगी की कड़वी सच्चाइयाँ भूल जाए, इंसान को बंददिमागी और अंधविश्‍वासी बना देते हैं, और उसमें नफरत और डर पैदा करते हैं।’

फिलहाल, परमेश्‍वर ऐसे लोगों को सच्चे धर्म में इकट्ठा कर रहा है जो सच्चाई से प्यार करते हैं। यह धर्म एक प्रेमी, न्यायी और करुणामय सिरजनहार के सिद्धांतों और शिक्षाओं को सख्ती से मानता है। (मीका 4:1, 2; सपन्याह 3:8, 9; मत्ती 13:30) आप भी उस धर्म का एक सदस्य बन सकते हैं। अगर आप सच्चे धर्म की पहचान के बारे ज़्यादा जानकारी चाहते हैं, तो बेझिझक इस पत्रिका के प्रकाशकों को खत लिखिए या किसी यहोवा के साक्षी से मदद माँगिए।

[पेज 7 पर तसवीर]

हर जाति-भाषा के लोगों ने सच्चे धर्म को अपनाकर खुशी पायी है