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परमेश्‍वर के सेवक पेड़ों की तरह हैं—किन मायनों में?

परमेश्‍वर के सेवक पेड़ों की तरह हैं—किन मायनों में?

परमेश्‍वर के सेवक पेड़ों की तरह हैं—किन मायनों में?

जो इंसान बाइबल के सिद्धांतों से मगन होता और उनके मुताबिक जीता है, उसके बारे में भजनहार ने कहा: “वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” (भजन 1:1-3) ऐसे इंसान की तुलना एक पेड़ से करना क्यों सही है?

पेड़ों की उम्र काफी लंबी होती है। मसलन, कहा जाता है कि भूमध्य सागर के इलाकों में कुछ जैतून के पेड़ एक या दो हज़ार साल पुराने हैं। उसी तरह, मध्य अफ्रीका के गोरक्षी पेड़ भी बरसों से खड़े हैं और कैलिफोर्निया के एक ब्रिसलकोन चीड़ के बारे में माना जाता है कि वह करीब 4,600 साल पुराना दरख्त है। जंगल में जहाँ बड़े-बड़े पेड़ों का झुरमुट होता है, वहाँ की आस-पास की जगह को उनसे काफी फायदा होता है। मसलन, ये लंबे-लंबे वृक्ष अपने चारों तरफ के छोटे-छोटे पौधों को छाँव देते हैं। साथ ही उन पेड़ों से झड़नेवाले पत्ते मिट्टी को और उपजाऊ बनाते हैं।

जंगलों में पाए जानेवाले ज़्यादातर ऊँचे पेड़ साथ-साथ उगते हैं और एक-दूसरे को सहारा देते हैं। उनकी जड़ें आपस में गुंथ जाती हैं इसलिए बहुत सारे पेड़ साथ मिलकर तूफान के थपेड़ों को जितनी अच्छी तरह झेल सकते हैं, उतना मैदान में खड़ा एक अकेला पेड़ नहीं झेल पाता। इसके अलावा, जड़ें दूर-दूर तक फैलने की वजह से पेड़ों को ज़मीन से भरपूर पानी और पोषक तत्त्व मिलते हैं। कुछ वृक्षों की ऊँचाई जितनी होती है, उससे कहीं ज़्यादा ज़मीन की गहराई में उनकी जड़ें होती हैं। या फिर उनके पत्ते, डालियाँ, टहनियाँ वगैरह जितनी दूर-दूर तक फैली होती हैं, उससे कहीं दूर तक उनकी जड़ें फैली होती हैं।

प्रेरित पौलुस ने कहा कि मसीहियों को ‘यीशु मसीह में चलते जाना और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाना है और विश्‍वास में दृढ़ होते जाना है।’ (कुलुस्सियों 2:6, 7) इस आयत में पौलुस शायद पेड़ की मिसाल दे रहा था। इसमें शक नहीं कि मसीही अपने विश्‍वास में तभी मज़बूत रह सकेंगे जब उनकी आध्यात्मिक जड़ें यीशु मसीह में मज़बूत रहेंगी।—1 पतरस 2:21.

परमेश्‍वर के सेवक और किन-किन मायनों में पेड़ों की तरह हैं? जैसे जंगल में पेड़ों को अपने आस-पास के पेड़ों से सहारा मिलता है, उसी तरह जो लोग मसीही कलीसिया के करीब रहते हैं उन्हें भी अपने मसीही भाई-बहनों से मदद मिलती है। (गलतियों 6:2) वफादार और अनुभवी मसीहियों की आध्यात्मिक जड़ें काफी गहरी और दूर-दूर तक फैली होती हैं, इसलिए वे नए मसीहियों की मदद कर सकते हैं ताकि वे तूफान जैसे विरोध का सामना करते वक्‍त भी विश्‍वास में दृढ़ बने रहें। (रोमियों 1:11, 12) परमेश्‍वर के जिन सेवकों को ज़्यादा तजुर्बा है, उनके “साए” में नए मसीही महफूज़ रहकर फल-फूल सकते हैं। (रोमियों 15:1) और दुनिया भर में फैली मसीही कलीसिया के सभी सदस्य, “धर्म के बांजवृक्ष” यानी अभिषिक्‍त शेष जनों से मिलनेवाला पौष्टिक आध्यात्मिक आहार लेकर मज़बूत होते हैं।—यशायाह 61:3.

परमेश्‍वर के सभी सेवक अपनी इस आशा से कितने रोमांचित होते हैं कि यशायाह 65:22 में लिखा यह वादा उन पर पूरा होगा: “मेरी प्रजा की आयु वृक्षों की सी होगी।”

[पेज 28 पर चित्र का श्रेय]

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