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वह “दास” जो विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान है

वह “दास” जो विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान है

वह “दास” जो विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान है

“वह विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर चाकरों पर सरदार ठहराया?”—मत्ती 24:45.

1, 2. यह क्यों ज़रूरी है कि आज हमें लगातार आध्यात्मिक भोजन मिलता रहे?

 निसान 11, सा.यु. 33 मंगलवार की दोपहर को यीशु के चेलों ने एक ऐसा सवाल किया जो आज हमारे लिए बहुत मायने रखता है। उन्होंने यीशु से पूछा: “तेरी उपस्थिति का और इस रीति-व्यवस्था के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” (NW) जवाब में यीशु ने एक ऐसी भविष्यवाणी की जो ध्यान देने लायक है। उसने बताया कि युद्ध, अकाल, भूकंप और बीमारियों का खतरनाक दौर चलेगा। और ये सारी बातें सिर्फ “पीड़ाओं का आरम्भ होंगी,” यानी उसके कहने का मतलब था कि इससे भी भयानक दिन आएँगे। सचमुच, भविष्य क्या ही खौफनाक लगता है!—मत्ती 24:3, 7, 8, 15-22; लूका 21:10, 11.

2 सन्‌ 1914 से, यीशु की इस भविष्यवाणी की ज़्यादातर बातें पूरी हो चुकी हैं। आज दुनिया की ‘पीड़ाएँ’ ज़ोरों पर हैं। फिर भी सच्चे मसीहियों को डरने की ज़रूरत नहीं। यीशु ने वादा किया था कि वह आध्यात्मिक भोजन देकर उन्हें सँभालता रहेगा। लेकिन आज यीशु तो स्वर्ग में है, फिर उसने हम धरती पर जीनेवालों के लिए आध्यात्मिक भोजन का कैसे इंतज़ाम किया है?

3. यीशु ने हमें ‘समय पर भोजन’ देने के लिए क्या इंतज़ाम किया है?

3 यीशु ने अपनी खास भविष्यवाणी में खुद इस सवाल का जवाब देते हुए कहा: “वह विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे?” इसके बाद उसने कहा: “धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं; वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर सरदार ठहराएगा।” (मत्ती 24:45-47) जी हाँ, यीशु ने कहा कि आध्यात्मिक भोजन देने के लिए एक “दास” ठहराया जाएगा, और वह “दास” विश्‍वासयोग्य होने के साथ-साथ बुद्धिमान भी होगा। क्या वह दास कोई एक इंसान होता या पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीनेवाले अलग-अलग इंसान या कुछ और? इस सवाल का जवाब पाने में हम सभी को गहरी दिलचस्पी है क्योंकि यह विश्‍वासयोग्य दास ऐसा आध्यात्मिक भोजन देता है जिसकी हमें सख्त ज़रूरत है।

एक इंसान या एक वर्ग?

4. हम यह कैसे जानते हैं कि “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” एक इंसान नहीं हो सकता?

4 “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” कोई एक इंसान नहीं हो सकता। क्यों नहीं? क्योंकि इस दास ने पहली सदी में आध्यात्मिक भोजन देना शुरू किया था और यीशु के कहे मुताबिक, सन्‌ 1914 में स्वामी के आने तक वह अपनी सेवा जारी रखता। अगर यह कोई एक इंसान होता तो उसे करीब 1,900 साल तक वफादारी से सेवा करनी थी। लेकिन इतनी लंबी उम्र तो, सबसे ज़्यादा साल जीनेवाले मतूशेलह की भी नहीं थी!—उत्पत्ति 5:27.

5. समझाइए कि क्यों शब्द “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” हर अभिषिक्‍त मसीही पर लागू नहीं होते।

5 “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास,” क्या ये शब्द सामान्य अर्थ में हर मसीही पर व्यक्‍तिगत तौर पर लागू हो सकते हैं? यह सच है कि हर मसीही को विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान होना चाहिए, लेकिन यीशु ने जब “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” की बात की तो बेशक उसके मन में कुछ और था। हम यह कैसे कह सकते हैं? क्योंकि उसने कहा था कि जब ‘स्वामी आएगा’ तब वह दास को “अपनी सारी संपत्ति पर सरदार” ठहराएगा। (तिरछे टाइप हमारे।) क्या हरेक अभिषिक्‍त मसीही को सभी चीज़ों पर, प्रभु की “सारी” संपत्ति पर सरदार ठहराना मुमकिन होता? नहीं, ऐसा नामुमकिन है!

6. इस्राएल जाति को किस तरह परमेश्‍वर के “सेवक” या “दास” की हैसियत से काम करने के लिए ठहराया गया था?

6 तो फिर तर्क के मुताबिक इस नतीजे पर पहुँचना सही है कि यीशु, मसीहियों के एक समूह को “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” कह रहा था। क्या कई लोगों से मिलकर बने समूह को एक दास कहा जा सकता है? जी हाँ। मसीह के आने से सात सौ साल पहले, यहोवा ने पूरी इस्राएल जाति के बारे में कहा: “तुम ही लोग तो मेरे साक्षी हो। तू मेरा वह सेवक है जिसे मैंने चुना है।” (तिरछे टाइप हमारे; यशायाह 43:10, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) सा.यु.पू. 1513 में जब मूसा की कानून-व्यवस्था दी गयी तब से लेकर सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त तक इस्राएल जाति का हर सदस्य इस सेवक वर्ग का हिस्सा था। ज़्यादातर इस्राएली, देश का प्रशासन चलाने या आध्यात्मिक भोजन देने के इंतज़ाम से सीधे-सीधे नहीं जुड़े थे। इन ज़िम्मेदारियों के लिए यहोवा ने राजाओं, न्यायियों, नबियों, याजकों और लेवियों को ठहराया था। फिर भी पूरी-की-पूरी इस्राएल जाति को यहोवा की हुकूमत का प्रतिनिधि होना था और दूसरी जातियों में उसकी स्तुति करनी थी। हर इस्राएली को यहोवा का एक साक्षी होना था।—व्यवस्थाविवरण 26:19; यशायाह 43:21; मलाकी 2:7; रोमियों 3:1, 2.

एक “सेवक” को बरखास्त किया जाता है

7. प्राचीन इस्राएल जाति से यहोवा का “सेवक” होने की ज़िम्मेदारी क्यों छीन ली गयी?

7 यह ध्यान में रखते हुए कि इस्राएल जाति सदियों पहले परमेश्‍वर की “सेवक” थी, क्या ऐसा कहना सही होगा कि यीशु का बताया दास भी वही है? जी नहीं, क्योंकि प्राचीन इस्राएल न तो विश्‍वासयोग्य साबित हुआ, ना ही बुद्धिमान। यहोवा ने इस जाति से जो कहा था, उसका हवाला देते हुए पौलुस एक ही वाक्य में कहता है: “तुम्हारे कारण अन्यजातियों में परमेश्‍वर के नाम की निन्दा की जाती है।” (रोमियों 2:24) जी हाँ, इस्राएल जाति एक लंबे अरसे से बगावत करती रही और आखिरकार जब उसने यीशु को ठुकराकर बगावत की हद पार कर दी, तो यहोवा ने भी उसे ठुकरा दिया।—मत्ती 21:42, 43.

8. इस्राएल की जगह लेनेवाले “सेवक” को कब ठहराया गया और किन हालात में?

8 लेकिन इस “सेवक” यानी इस्राएल के विश्‍वासघाती निकलने का यह मतलब नहीं था कि वफादार उपासकों को फिर कभी आध्यात्मिक भोजन नहीं मिलेगा। यीशु के जी उठने के 50 दिन बाद, सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त को जब 120 चेले यरूशलेम में एक उपरौठी कोठरी में जमा हुए तो उनके ऊपर पवित्र आत्मा उँडेली गयी। उस घड़ी एक नयी जाति का जन्म हुआ। लोगों को इसके जन्म की खबर तब मिली जब इसके सदस्य निडरता के साथ यरूशलेम के निवासियों को “परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” के बारे में बताने लगे। (प्रेरितों 2:11) इस तरह, वह नयी जाति यानी एक आत्मिक जाति परमेश्‍वर का “सेवक” बनी जो सभी जातियों में यहोवा की महिमा का ऐलान करती और समय पर आध्यात्मिक भोजन देती। (1 पतरस 2:9) इसलिए यह कितना सही है कि वह ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ कहलायी।—गलतियों 6:16.

9. (क) “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” किन से मिलकर बना है? (ख) ‘नौकर चाकर’ कौन हैं?

9 “परमेश्‍वर के इस्राएल” का हर सदस्य समर्पित और बपतिस्मा पाया मसीही है, जिसका पवित्र आत्मा से अभिषेक हुआ है और जिसे स्वर्ग में जीने की आशा है। इसलिए सा.यु. 33 से लेकर अब तक, किसी भी वक्‍त धरती पर जीनेवाले अभिषिक्‍त मसीहियों के पूरे समूह को “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” कहा जाता है। बिलकुल वैसे ही जैसे सा.यु.पू. 1513 से लेकर सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के बीच किसी भी समय में जीनेवाला हर इस्राएली, उस ज़माने के सेवक वर्ग का हिस्सा था। लेकिन वे ‘नौकर चाकर’ कौन हैं जिन्हें यह दास आध्यात्मिक आहार देता है? पहली सदी में हर मसीही, स्वर्ग में जीवन पाने की आशा रखता था। इसका मतलब है कि नौकर चाकर भी अभिषिक्‍त मसीही थे, एक वर्ग के रूप में नहीं बल्कि व्यक्‍तिगत रूप में। सभी मसीहियों को दास की ओर से आध्यात्मिक भोजन लेने की ज़रूरत थी, उन्हें भी जो कलीसिया में ज़िम्मेदारी के पद पर थे।—1 कुरिन्थियों 12:12, 19-27; इब्रानियों 5:11-13; 2 पतरस 3:15, 16.

“हर एक को उसका काम”

10, 11. हम यह कैसे जानते हैं कि दास वर्ग के हर सदस्य को एक जैसा काम नहीं मिला है?

10 ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग है और उस पूरे समूह को एक काम सौंपा गया है, लेकिन इसके हर सदस्य की भी अपनी ज़िम्मेदारियाँ हैं। मरकुस 13:34 में लिखे यीशु के शब्दों से यह साफ पता चलता है। उसने कहा था: “यह उस मनुष्य की सी दशा है, जो परदेश जाते समय अपना घर छोड़ जाए, और अपने दासों को अधिकार दे: और हर एक को उसका काम जता दे, और द्वारपाल को जागते रहने की आज्ञा दे।” (तिरछे टाइप हमारे।) तो दास वर्ग के हर सदस्य को एक काम सौंपा गया है। वह काम है, धरती पर मसीह की संपत्ति को बढ़ाना। हर सदस्य अपनी काबिलीयत और उसे मिलनेवाले मौकों के हिसाब से अपना काम पूरा करता है।—मत्ती 25:14, 15.

11 इसके अलावा, प्रेरित पतरस ने अपने समय के अभिषिक्‍त मसीहियों को बताया था: “जिस को जो बरदान मिला है, वह उसे परमेश्‍वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए।” (तिरछे टाइप हमारे; 1 पतरस 4:10) इसलिए अभिषिक्‍त जनों को यह ज़िम्मेदारी मिली है कि वे परमेश्‍वर की तरफ से मिले वरदानों को एक दूसरे की सेवा में लगाएँ। पतरस के शब्दों से यह भी पता चलता है कि सभी मसीहियों के पास एक जैसी काबिलीयतें, ज़िम्मेदारियाँ और सेवा के खास मौके नहीं होंगे। फिर भी, दास वर्ग का हर सदस्य इस आत्मिक जाति की बढ़ोतरी के लिए कुछ-न-कुछ ज़रूर कर सकता है। कैसे?

12. दास वर्ग के हर सदस्य ने, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, कैसे दास की बढ़ोतरी में हिस्सा लिया?

12 सबसे पहले, हरेक की ज़िम्मेदारी थी कि वह यहोवा का एक साक्षी हो और राज्य का सुसमाचार प्रचार करे। (यशायाह 43:10-12; मत्ती 24:14) यीशु ने स्वर्ग जाने से कुछ ही समय पहले, अपने सभी वफादार चेलों को जिनमें स्त्री-पुरुष दोनों शामिल थे, शिक्षक बनने की आज्ञा दी। उसने उनसे कहा: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।”—तिरछे टाइप हमारे; मत्ती 28:19, 20.

13. सभी अभिषिक्‍त जनों को कौन-सा सुअवसर मिला था?

13 नए चेले मिलने पर, उन्हें उन सारी बातों पर चलने के लिए अच्छी तरह सिखाना था जिनकी आज्ञा मसीह ने दी थी। आखिरकार, उनमें से जिन चेलों ने सिखायी गयी बातों को दिल से कबूल किया, वे भी दूसरों को सिखाने के काबिल बन गए। कई देशों में दास वर्ग का हिस्सा बननेवाले नए लोगों के लिए पौष्टिक आध्यात्मिक आहार का इंतज़ाम किया गया। सभी मसीहियों ने, चाहे वे पुरुष थे या स्त्रियाँ चेले बनाने के काम में हिस्सा लिया। (प्रेरितों 2:17, 18) दास वर्ग ने जब आध्यात्मिक भोजन देने का काम शुरू किया था, उस समय से लेकर जगत के अंत तक चेला बनाने का यह काम जारी रहना था।

14. कलीसिया में सिखाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ किसे सौंपी गयी थी और वफादार अभिषिक्‍त स्त्रियों ने इस बारे में कैसा महसूस किया?

14 नए बपतिस्मा पाए अभिषिक्‍त जन इस दास वर्ग का हिस्सा बन गए। शुरू में उन्हें चाहे किसी ने भी सिखाया हो मगर वे कलीसिया के प्राचीनों से लगातार सीखते रहे। ये प्राचीन, कलीसिया के ऐसे सदस्य थे जिन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी के बारे में शास्त्र में दी गयी माँगें पूरी की थीं। (2 तीमुथियुस 3:1-7; तीतुस 1:6-9) इस तरह प्राचीनों को इस जाति की बढ़ोतरी के लिए काम करने का खास मौका मिला था। उस वक्‍त की वफादार अभिषिक्‍त मसीही स्त्रियों ने इस बात पर नाराज़गी ज़ाहिर नहीं की कि कलीसिया में सिखाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ पुरुषों को सौंपी गयी है। (1 कुरिन्थियों 14:34, 35) इसके बजाय वे खुश थीं कि उन्हें कलीसिया के पुरुषों की मेहनत से फायदा होगा। साथ ही स्त्रियों को सेवा के जो खास मौके मिले थे उनके लिए वे एहसानमंद थीं, जिनमें से एक था दूसरों को खुशखबरी सुनाना। आज की अभिषिक्‍त बहनें भी ऐसी ही नम्रता दिखाती हैं फिर चाहे कलीसिया में ठहराए गए प्राचीन अभिषिक्‍तों में से हों या न हों।

15. पहली सदी में आध्यात्मिक भोजन का एक खास ज़रिया क्या था और इसे मुहैया कराने में किसने अगुवाई की?

15 पहली सदी में मसीहियों को बुनियादी आध्यात्मिक भोजन, सीधे प्रेरितों और कलीसिया में अगुवाई करनेवाले दूसरे चेलों की पत्रियों से मिलता था। जो पत्रियाँ उन्होंने लिखीं खासकर जो मसीही यूनानी शास्त्र की 27 ईश्‍वर-प्रेरित किताबों में पायी जाती हैं उन्हें, सभी कलीसियाओं में भेजा जाता था और बेशक इन्हीं के आधार पर वहाँ के प्राचीन सिखाते थे। इस तरह दास के प्रतिनिधि यानी प्राचीन, वफादारी से सच्चे मसीहियों को भरपूर मात्रा में पौष्टिक आध्यात्मिक भोजन दिया करते थे। जो ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी, उसे पहली सदी के इस दास वर्ग ने बखूबी निभाया।

उन्‍नीस सदियों के बाद यह “दास”

16, 17. दास वर्ग ने कैसे साबित किया कि वह गुज़रे सालों से लेकर सन्‌ 1914 तक अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने में विश्‍वासयोग्य रहा?

16 आज के बारे में क्या कहा जा सकता है? सन्‌ 1914 में जब यीशु की उपस्थिति शुरू हुई तब क्या उसने अभिषिक्‍त मसीहियों के किसी समूह को पाया जो वफादारी से वक्‍त पर भोजन दे रहा था? जी हाँ, बिलकुल। यह समूह बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता था क्योंकि यह बढ़िया फल पैदा कर रहा था। (मत्ती 7:20) तब से इतिहास इस बात का गवाह है कि यही वह दास है।

17 यीशु के आने के वक्‍त, करीब 5,000 नौकर-चाकर यानी दास वर्ग का हरेक जन बाइबल की सच्चाइयाँ फैलाने में व्यस्त था। मज़दूर थोड़े ही थे मगर फिर भी उन्होंने नए-नए तरीके अपनाकर सुसमाचार को दूर-दूर तक फैलाया। (मत्ती 9:38) उदाहरण के लिए, करीब 2,000 अखबारों में बाइबल के विषयों पर आधारित उपदेश छापने का इंतज़ाम किया गया। इस तरह, एक ही बार में परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई हज़ारों लोगों तक पहुँची। इसके अलावा, रंगीन तसवीरों और चलचित्रों का इस्तेमाल करके आठ घंटे का एक कार्यक्रम तैयार किया गया। इस नयी ईजाद की बदौलत, सृष्टि की शुरूआत से लेकर मसीह के हज़ार साल की हुकूमत के बारे में बाइबल में दिया संदेश, तीन महाद्वीपों में रहनेवाले 90 लाख से भी ज़्यादा लोगों तक पहुँचाया गया। बाइबल साहित्य एक और साधन था जिसका इस्तेमाल किया गया। मिसाल के लिए, सन्‌ 1914 में प्रहरीदुर्ग की करीब 50,000 कॉपियाँ छापी गयीं।

18. यीशु ने दास को कब अपनी सारी संपत्ति पर सरदार ठहराया और क्यों?

18 जी हाँ, जब स्वामी आया तो उसने अपने विश्‍वासयोग्य दास को पूरे सेवा भाव के साथ नौकर-चाकरों को भोजन देते और सुसमाचार सुनाते पाया। अब उस दास को और भी बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सौंपने का वक्‍त आ गया था। यीशु ने कहा था: “मैं तुम से सच कहता हूं; वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर सरदार ठहराएगा।” (मत्ती 24:47) जब यह दास परीक्षा की घड़ी से गुज़र चुका, तो सन्‌ 1919 में यीशु ने उसे अपनी सारी संपत्ति पर सरदार ठहराया। लेकिन “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ क्यों सौंपी गयीं? क्योंकि उसके स्वामी की संपत्ति बढ़ गयी थी। यीशु को सन्‌ 1914 में शासन करने के लिए राजा बनाया गया था।

19. समझाइए कि “बड़ी भीड़” की आध्यात्मिक ज़रूरतें कैसे पूरी की गयी हैं?

19 यह संपत्ति क्या थी जिस पर नए-नए राजा बने स्वामी ने उन्हें सरदार ठहराया? इस धरती पर उसकी सारी आध्यात्मिक वस्तुएँ। उदाहरण के लिए, सन्‌ 1914 में मसीह के सिंहासन पर बैठने के बीस साल बाद, ‘अन्य भेड़ों’ की एक “बड़ी भीड़” की पहचान की गयी। (यूहन्‍ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 7:9) ये लोग “परमेश्‍वर के इस्राएल” के अभिषिक्‍त सदस्य नहीं थे, लेकिन ये धरती पर जीने की आशा रखनेवाले ऐसे नेकदिल स्त्री-पुरुष थे जो अभिषिक्‍तों की तरह ही यहोवा से प्रेम करते थे और उसकी सेवा करना चाहते थे। एक तरह से उन्होंने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से यह कहा: “हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्‍वर तुम्हारे साथ है।” (जकर्याह 8:23) बपतिस्मा पाए इन नए मसीहियों ने वही पौष्टिक आध्यात्मिक भोजन लिया जो अभिषिक्‍त नौकर-चाकर ले रहे थे और तब से ये दोनों वर्ग एक ही मेज़ से भोजन कर रहे हैं। “बड़ी भीड़” के सदस्यों के लिए यह क्या ही आशीष साबित हुई!

20. स्वामी की संपत्ति को बढ़ाने में “बड़ी भीड़” ने क्या भूमिका निभायी है?

20 “बड़ी भीड़” के सदस्य खुशी-खुशी राज्य का सुसमाचार सुनाने में अभिषिक्‍त दास वर्ग के साथ हो लिए हैं। उनके प्रचार करने से धरती पर स्वामी की संपत्ति में और इज़ाफा हुआ है और इससे “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” पर ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ आ गयी हैं। सच्चाई की खोज करनेवालों की गिनती लगातार बढ़ने की वजह से बाइबल साहित्य की माँग बढ़ गयी। और इस माँग को पूरा करने के लिए छपाई की ज़्यादा सहूलियतों की ज़रूरत पैदा हुई। इसलिए एक-के-बाद-एक कई देशों में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर खोले गए। “पृथ्वी की छोर तक” मिशनरियों को भेजा गया। (प्रेरितों 1:8) सन्‌ 1914 में करीब 5,000 अभिषिक्‍त जन परमेश्‍वर की स्तुति कर रहे थे, मगर आज उसकी महिमा करनेवालों की गिनती बढ़कर 60 लाख से ज़्यादा हो गयी है। इनमें से ज़्यादातर “बड़ी भीड़” के सदस्य हैं। जी हाँ, सन्‌ 1914 में राज-मुकुट हासिल करने के बाद से राजा की संपत्ति कई गुना बढ़ गयी है!

21. अगले लेख में हम किन दो दृष्टांतों पर चर्चा करेंगे?

21 इन सभी बातों ने दिखाया है कि यह दास “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान” साबित हुआ है। यीशु ने इस दास के बारे में बताने के फौरन बाद, ऐसे दो दृष्टांत दिए जो विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान होने के गुण पर रोशनी डालते हैं: ये दृष्टांत, बुद्धिमान और मूर्ख कुंवारियों के बारे में और तोड़ों के बारे में हैं। (मत्ती 25:1-30) हम वाकई इनका मतलब जानना चाहेंगे। आज हमारे लिए इन दृष्टांतों का क्या मतलब है? इस सवाल पर हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।

आप क्या सोचते हैं?

• “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” किन लोगों से मिलकर बना है?

• ‘नौकर चाकर’ कौन हैं?

• विश्‍वासयोग्य दास को कब स्वामी की सारी संपत्ति पर सरदार ठहराया गया और उसी वक्‍त क्यों?

• हाल के दशकों में किन्होंने प्रभु की संपत्ति बढ़ाने में मदद की है और कैसे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीरें]

पहली सदी के दास वर्ग ने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभायी