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“अपनी सेवा को पूरा कर”

“अपनी सेवा को पूरा कर”

“अपनी सेवा को पूरा कर”

“अपना सेवाकार्य भली-भांति पूरा करना।”—2 तीमुथियुस 4:5, नयी हिन्दी बाइबिल।

1, 2. हालाँकि सभी मसीही, प्रचारक हैं मगर बाइबल में प्राचीनों से क्या माँग की गयी है?

 क्या आप राज्य के एक प्रचारक हैं? अगर हाँ, तो यहोवा परमेश्‍वर का धन्यवाद कीजिए कि उसने आपको इतना बड़ा सम्मान दिया है। क्या आप कलीसिया के प्राचीन हैं? अगर हाँ, तो यह ज़िम्मेदारी यहोवा की तरफ से मिला एक और खास सम्मान है। लेकिन हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमें प्रचार करने या कलीसिया में निगरानी करने का यह मौका, न तो अपनी स्कूली शिक्षा, और ना ही बात करने की अपनी कुशलता की वजह से मिला है। दरअसल यहोवा हमें अपनी सेवा के लिए अच्छी तरह काबिल बनाता है। और कुछ लोगों को ओवरसियरों की हैसियत से सेवा करने का मौका इसलिए मिला है क्योंकि वे इस ज़िम्मेदारी के लिए बाइबल में बतायी ज़रूरी माँगों को पूरा करते हैं।—2 कुरिन्थियों 3:5, 6; 1 तीमुथियुस 3:1-7.

2 वैसे तो प्रचार का काम सभी समर्पित मसीही करते हैं, मगर खास तौर से ओवरसियरों या प्राचीनों को इसमें एक अच्छी मिसाल रखनी चाहिए। परमेश्‍वर और मसीह, साथ ही भाई-बहन ऐसे प्राचीनों की कदर करते हैं जो “सुनाने और सिखाने में परिश्रम करते हैं।” (1 तीमुथियुस 5:17; इफिसियों 5:23; इब्रानियों 6:10-12) चाहे कैसे भी हालात हों, एक प्राचीन का उपदेश ऐसा होना चाहिए कि उसके सुननेवाले आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत हों। यह इसलिए ज़रूरी है क्योंकि प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस नाम के ओवरसियर से कहा था: “ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे। और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे। पर तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर।”—2 तीमुथियुस 4:3-5.

3. कलीसिया की आध्यात्मिकता को झूठी शिक्षाओं से बचाने के लिए क्या करना ज़रूरी है?

3 झूठी शिक्षाओं से कलीसिया की आध्यात्मिकता के लिए खतरा पैदा न हो, इस बात का ध्यान रखने के लिए एक ओवरसियर को पौलुस की यह सलाह माननी चाहिए: “तुम प्रत्येक दशा में सन्तुलित रहना, . . . अपना सेवाकार्य भली-भांति पूरा करना।” (2 तीमुथियुस 4:5, नयी हिन्दी बाइबिल) जी हाँ, एक प्राचीन को चाहिए कि वह ‘अपनी सेवा को पूरा करे।’ उसे अपनी सेवा को भली-भांति या बेहतरीन तरीके से पूरा करना चाहिए। जो प्राचीन अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करता है, वह अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को ठीक तरीके से निभाएगा, किसी भी काम को नज़रअंदाज़ नहीं करेगा या आधा-अधूरा नहीं छोड़ेगा। वह छोटी-से-छोटी बात में भी वफादार रहेगा।—लूका 12:48; 16:10.

4. अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

4 ऐसा नहीं है कि अपनी सेवा पूरी करने के लिए हमेशा हमें ज़्यादा वक्‍त देने की ज़रूरत है, बल्कि हम जो भी समय बिताते हैं, उसका अच्छा इस्तेमाल करना चाहिए। अगर लगातार एक अच्छे शेड्‌यूल का पालन किया जाए, तो सभी मसीही अपनी सेवा में बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। एक प्राचीन को सेवा में ज़्यादा वक्‍त बिताने के लिए अपने काम-काज को सही तरह से संगठित करने की ज़रूरत है और उसे यह भी मालूम होना चाहिए कि दूसरे भाइयों को कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ, कैसे सौंपी जा सकती हैं। (इब्रानियों 13:17) एक प्राचीन, जिसका सभी आदर करते हैं, वह अपने हिस्से का काम ज़रूर करेगा, ठीक जैसे नहेमायाह ने किया था। उसने यरूशलेम की शहरपनाह को दोबारा बनाने में हिस्सा लिया था। (नहेमायाह 5:16) यहोवा के सभी सेवकों को राज्य का प्रचार करने में नियमित तौर पर हिस्सा लेना चाहिए।—1 कुरिन्थियों 9:16-18.

5. सेवा के बारे में हमें कैसा महसूस करना चाहिए?

5 हमें स्वर्ग में स्थापित राज्य के बारे में ऐलान करने का क्या ही खुशियों भरा काम मिला है! बेशक हम इस बात की कदर करते हैं कि हमें यह मौका मिला है कि अंत आने से पहले सारी धरती पर खुशखबरी सुनाने में हिस्सा लें। (मत्ती 24:14) असिद्ध होने के बावजूद हम पौलुस के इन शब्दों से हौसला पा सकते हैं: “हमारे पास यह [सेवा का] धन मिट्टी के बरतनों में रखा है, कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्‍वर ही की ओर से ठहरे।” (2 कुरिन्थियों 4:7) जी हाँ, हम परमेश्‍वर को स्वीकार होनेवाली सेवा ज़रूर कर सकते हैं, मगर सिर्फ परमेश्‍वर की ओर से मिलनेवाली शक्‍ति और बुद्धि की मदद से।—1 कुरिन्थियों 1:26-31.

परमेश्‍वर की महिमा ज़ाहिर करना

6. पैदाइशी इस्राएल और आत्मिक इस्राएल के बीच क्या फर्क है?

6 अभिषिक्‍त मसीहियों की तरफ से बात करते हुए प्रेरित पौलुस ने कहा कि परमेश्‍वर ने “हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य” ठहराया है। पौलुस ने यीशु मसीह के ज़रिए आत्मिक इस्राएल के साथ बाँधी गयी नयी वाचा और मूसा के ज़रिए पैदाइशी इस्राएलियों के साथ बाँधी गयी पुरानी व्यवस्था वाचा के बीच फर्क बताया। पौलुस ने यह भी कहा कि जब मूसा दस आज्ञाओं की तख्तियाँ लेकर सीनै पर्वत से नीचे उतरा तो उसके चेहरे से इतना तेज निकल रहा था कि इस्राएली नज़र उठाकर उसे देख नहीं पाए। मगर उनके ‘मतिमन्द होने’ और हृदयों पर परदा पड़ने की वजह से समय के गुज़रते और भी गंभीर बात हुई। लेकिन जब एक इंसान यहोवा के पास लौटकर तन-मन से उसकी भक्‍ति करता है, तो वह परदा हटा दिया जाता है। इसके बाद, पौलुस नई वाचा के लोगों को सौंपी गयी सेवा के बारे में कहता है: “हम सब के . . . चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में।” (2 कुरिन्थियों 3:6-8, 14-18; निर्गमन 34:29-35) आज यीशु की ‘अन्य भेड़ों’ को भी यहोवा की महिमा ज़ाहिर करने का सुअवसर मिला है।—यूहन्‍ना 10:16, NW.

7. इंसान, परमेश्‍वर की महिमा कैसे ज़ाहिर कर पाते हैं?

7 जब पापी इंसान यहोवा के मुख का दर्शन करके ज़िंदा नहीं रह सकते, तो वे उसकी महिमा कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं? (निर्गमन 33:20) यहोवा न सिर्फ महिमा से भरपूर एक हस्ती है, बल्कि उसका यह उद्देश्‍य भी उसकी महिमा ज़ाहिर करता है कि वह अपने राज्य के ज़रिए अपनी हुकूमत को बुलंद करेगा। उस राज्य से जुड़ी सच्चाइयाँ “परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” में शामिल हैं। सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त में जिन लोगों पर पवित्र आत्मा उँडेली गयी, उन्होंने परमेश्‍वर के उन कामों के बारे में ऐलान करना शुरू किया। (प्रेरितों 2:11) इसी आत्मा के निर्देशन पर चलकर, वे उस सेवा को अच्छी तरह पूरा कर पाए जो उन्हें सौंपी गयी थी।—प्रेरितों 1:8.

8. सेवा के मामले में पौलुस ने क्या ठान लिया था?

8 पौलुस ने ठान लिया था कि वह अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करने में किसी भी बात को बाधा नहीं बनने देगा। उसने लिखा: “इसलिये जब हम पर ऐसी दया हुई, कि हमें यह सेवा मिली, तो हम हियाव नहीं छोड़ते। परन्तु हम ने लज्जा के गुप्त कामों को त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्‍वर के वचन में मिलावट करते हैं, परन्तु सत्य को प्रगट करके, परमेश्‍वर के साम्हने हर एक मनुष्य के विवेक में अपनी भलाई बैठाते हैं।” (2 कुरिन्थियों 4:1, 2) पौलुस ने जिस “सेवा” का ज़िक्र किया, उसके ज़रिए सच्चाई ज़ाहिर की जाती है और आध्यात्मिक रोशनी दूर-दूर तक फैलाई जाती है।

9, 10. यहोवा की महिमा ज़ाहिर करना कैसे मुमकिन होता है?

9 सचमुच की रोशनी और आध्यात्मिक रोशनी देनेवाले के बारे में पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर ही है, जिस ने कहा, कि अन्धकार में से ज्योति चमके; और वही हमारे हृदयों में चमका, कि परमेश्‍वर की महिमा की पहिचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो।” (2 कुरिन्थियों 4:6; उत्पत्ति 1:2-5) आज जब हमें परमेश्‍वर के सेवक होने का बहुत बड़ा सम्मान मिला है, तो आइए हम हमेशा खुद को शुद्ध बनाए रखें ताकि दर्पण की तरह यहोवा की महिमा ज़ाहिर कर सकें।

10 आध्यात्मिक अंधकार में पड़े हुए लोग न तो यहोवा की महिमा देख सकते हैं, ना ही महान मूसा, यीशु मसीह को उसकी महिमा ज़ाहिर करते देख सकते हैं। लेकिन हम यहोवा के सेवक होने के नाते, बाइबल से महिमायुक्‍त ज्योति पाते और उसे दूसरों पर ज़ाहिर करते हैं। आज आध्यात्मिक अंधकार में पड़े हुओं को अगर विनाश से बचना है तो उन्हें परमेश्‍वर से मिलनेवाली ज्योति पाने की ज़रूरत है। इसलिए हम पूरे जोश के साथ और खुशी-खुशी, परमेश्‍वर की यह आज्ञा मानते हैं कि अंधकार में से अपनी ज्योति चमकाकर यहोवा की महिमा करें।

बाइबल अध्ययन कराते वक्‍त अपनी ज्योति चमकाइए

11. यीशु ने अपनी ज्योति चमकाने के बारे में क्या कहा, और सेवा में ऐसा करने का एक तरीका क्या है?

11 यीशु ने अपने चेलों से कहा: “तुम जगत की ज्योति हो; जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता। और लोग दिया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उस से घर के सब लोगों को प्रकाश पहुंचता है। उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।” (मत्ती 5:14-16) हमारा बढ़िया चालचलन देखकर, दूसरे परमेश्‍वर की महिमा कर सकते हैं। (1 पतरस 2:12) इसके अलावा, प्रचार के अलग-अलग पहलुओं में हिस्सा लेने से हमें अपनी ज्योति चमकाने के कई मौके मिलते हैं। हमारा एक खास लक्ष्य यह है कि हम लोगों के साथ असरदार तरीके से बाइबल अध्ययन करके परमेश्‍वर के वचन की ज्योति उन पर चमकाएँ। यह एक अहम तरीका है जिससे हम अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा कर सकते हैं। बाइबल अध्ययन को बेहतरीन तरीके से करने के लिए कौन-से सुझाव मददगार हो सकते हैं, ताकि हम सच्चाई की तलाश करनेवालों के दिल पर गहरा असर कर सकें?

12. बाइबल अध्ययन चलाने के काम से प्रार्थना का क्या ताल्लुक है?

12 बाइबल अध्ययन के बारे में यहोवा से प्रार्थना करना दिखाएगा कि दूसरों को बाइबल सिखाने की हमारे अंदर गहरी इच्छा है। इससे यह भी ज़ाहिर होगा कि दूसरों को परमेश्‍वर का ज्ञान पाने में मदद देना हमारे लिए खास अहमियत रखता है। (यहेजकेल 33:7-9) यहोवा बेशक हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देगा और सेवा में हमारी लगन और मेहनत पर आशीष देगा। (1 यूहन्‍ना 5:14, 15) लेकिन हम सिर्फ यह प्रार्थना नहीं करेंगे कि हमें कोई ऐसा व्यक्‍ति मिल जाए जिसे हम बाइबल सिखा सकें। अध्ययन शुरू करने के बाद, विद्यार्थी की एक-एक ज़रूरत के बारे में प्रार्थना करने और उसके बारे में गहराई से सोचने से हम हर अध्ययन में कुशलता से सिखा पाएँगे।—रोमियों 12:12.

13. कुशलता से बाइबल अध्ययन चलाने के लिए क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

13 बाइबल अध्ययन कुशलता से चलाने के लिए हमें हर अध्ययन की अच्छी तैयारी करनी चाहिए। अगर हमें लगता है कि हमें ठीक से अध्ययन कराना नहीं आता, तो हम पुस्तक अध्ययन ओवरसियर पर गौर कर सकते हैं कि वह हर हफ्ते के पाठ पर कैसे चर्चा करता है। कभी-कभी हम अपने साथ ऐसे प्रचारकों को ले जा सकते हैं जिन्हें बाइबल अध्ययन कराने में अच्छी कामयाबी मिली है। और हमें यह भी नहीं भूलना है कि यीशु मसीह का नज़रिया और सिखाने का तरीका खास तौर से ध्यान देनेलायक है।

14. हम बाइबल विद्यार्थी के दिल तक कैसे पहुँच सकते हैं?

14 यीशु को स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता की मरज़ी पूरी करने और उसके बारे में दूसरों को बताने में बेहद खुशी मिलती थी। (भजन 40:8) वह नर्मदिल था और अपने सुननेवाले के दिल तक पहुँचने में कामयाब रहा। (मत्ती 11:28-30) आइए हम भी अपने विद्यार्थियों के दिल तक पहुँचने की कोशिश करें। इसके लिए हमें विद्यार्थी के हालात को ध्यान में रखकर हर अध्ययन की अच्छी तैयारी करनी होगी। मसलन, अगर वह अपनी संस्कृति की वजह से बाइबल से वाकिफ नहीं है तो हमें उसे यकीन दिलाना होगा कि बाइबल में लिखी हर बात सच है। और हमें बहुत-सी आयतें पढ़कर सुनानी होगी और उनके बारे में समझाना होगा।

दृष्टांत समझने में विद्यार्थियों की मदद करना

15, 16. (क) अगर विद्यार्थी, बाइबल में दिया एक उदाहरण समझ नहीं पाता, तो हम उसकी मदद कैसे कर सकते हैं? (ख) अगर हमारे किसी प्रकाशन में दिया उदाहरण, बाइबल विद्यार्थी को समझ नहीं आता तो हम क्या कर सकते हैं?

15 हो सकता है, हमारे विद्यार्थी के लिए बाइबल में बताया कोई दृष्टांत समझना मुश्‍किल लगे। मसलन, यीशु के इस दृष्टांत का मतलब उसे शायद न समझ आए कि दीया जलाकर उसे दीवट पर रखा जाता है। (मरकुस 4:21, 22) यीशु पुराने ज़माने के एक दीपक की बात कर रहा था, जिसकी लौ जलती रहती थी। इसे एक खास दीवट पर रखा जाता था, ताकि घर के किसी एक हिस्से को रोशनी मिले। यीशु का दृष्टांत अच्छी तरह समझाने के लिए शायद हमें इनसाइट ऑन द स्क्रिपचर्स या किसी और किताब में “दीया” “दीवट” इन विषयों पर खोजबीन करनी पड़े। * इसमें मेहनत ज़रूर लगेगी मगर तैयारी से बहुत फायदा होगा, क्योंकि विद्यार्थी उस उदाहरण को और उसकी अहमियत को अच्छी तरह समझ पाएगा!

16 हो सकता है, विद्यार्थी को बाइबल अध्ययन के साहित्य में दिया कोई उदाहरण समझना मुश्‍किल लगे। ऐसे में उस उदाहरण को समझाने के लिए समय लीजिए या उस मुद्दे को समझाने के लिए कोई और उदाहरण बताइए। शायद किसी प्रकाशन में इस बात पर ज़ोर दिया गया हो कि कामयाब शादी-शुदा ज़िंदगी में पति-पत्नी को एक-दूसरे का अच्छा साथ देने और मिल-जुलकर काम करने की ज़रूरत है। और इसे समझाने के लिए सर्कस के कलाबाज़ का उदाहरण दिया गया हो कि एक कलाबाज़ कैसे रस्सियों से बँधे डंडे से छलाँग मारता हुआ नीचे आता है और अपना हाथ आगे बढ़ाता है ताकि दूसरी तरफ से आनेवाला कलाबाज़ उसे पकड़ सके। अगर विद्यार्थी इस उदाहरण को समझ नहीं सकता, तो अच्छे साथी और मिल-जुलकर काम करने की ज़रूरत के बारे में कोई और उदाहरण दिया जा सकता है। जैसे, यह उदाहरण कि एक बोट से माल उतारने के लिए कर्मचारी, एक-दूसरे के हाथ में बक्स देते जाते हैं और इस तरह मिल-बाँटकर काम पूरा करते हैं।

17. दृष्टांतों के बारे में हम यीशु से क्या सीख सकते हैं?

17 ऐसे दूसरे उदाहरण इस्तेमाल करने के लिए, पहले से तैयारी करने की ज़रूरत हो सकती है। ऐसा करके हम दिखाते हैं कि हम वाकई बाइबल विद्यार्थी की भलाई चाहते हैं। यीशु ने सरल दृष्टांत बताकर मुश्‍किल विषयों को समझाया। पहाड़ी उपदेश में उसने ऐसे कई दृष्टांत दिए। और बाइबल दिखाती है कि उसके सिखाने का लोगों पर बढ़िया असर होता था। (मत्ती 5:1–7:29) यीशु लोगों में गहरी दिलचस्पी रखता था, इसलिए वह उन्हें धीरज से सिखाता था।—मत्ती 16:5-12.

18. हमारे प्रकाशनों में जिन वचनों का ज़िक्र है, उनके बारे में क्या सुझाव दिया गया है?

18 अगर हमें दूसरों में दिलचस्पी होगी तो हम ‘शास्त्रों से उन के साथ विवाद’ या तर्क करेंगे। (प्रेरितों 17:2, 3) इसके लिए ज़रूरी है कि हम प्रार्थना के साथ मन लगाकर निजी अध्ययन करें और ‘विश्‍वास-योग्य भण्डारी’ के ज़रिए मिलनेवाले प्रकाशनों का अच्छा इस्तेमाल करें। (लूका 12:42-44) मिसाल के लिए, ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब में ढेर सारे बाइबल के वचन दिए गए हैं। * जगह की कमी की वजह से कुछ वचनों का सिर्फ ज़िक्र किया गया है। विद्यार्थी के साथ अध्ययन करते वक्‍त हमें इनमें से कुछ वचनों को ज़रूर पढ़ना और उन्हें समझाना चाहिए। आखिर हम जो भी सिखाते हैं, वह परमेश्‍वर के वचन से ही तो है और इसमें लोगों की ज़िंदगी बदलने की ताकत है। (इब्रानियों 4:12) जब भी आप बाइबल अध्ययन कराते हैं तो पूरे अध्ययन के दौरान बाइबल की तरफ ध्यान खींचिए और पैराग्राफों में दिए गए ज़्यादा-से-ज़्यादा वचनों का इस्तेमाल कीजिए। किसी विषय या फैसले के बारे में चर्चा करते वक्‍त विद्यार्थी को बाइबल का नज़रिया समझाइए। उसे यह एहसास दिलाने की कोशिश कीजिए कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानने से उसे फायदा होगा।—यशायाह 48:17, 18.

सोचने पर मजबूर करनेवाले सवाल पूछिए

19, 20. (क) बाइबल अध्ययन कराते वक्‍त, हमें विद्यार्थी के विचार जानने के लिए सवाल क्यों पूछने चाहिए? (ख) अगर किसी विषय पर और भी समझाने की ज़रूरत पड़े, तो हम क्या कर सकते हैं?

19 यीशु ने सवालों का बड़ी कुशलता से इस्तेमाल किया इसलिए लोग मन-ही-मन तर्क कर सके। (मत्ती 17:24-27) अगर हम विद्यार्थी को शर्मिंदा किए बगैर, उसका नज़रिया जानने के लिए सवाल पूछेंगे, तो हम उसके जवाबों से जान सकेंगे कि किसी विषय के बारे में वह क्या सोचता है। शायद हम पाएँ कि वह अब भी ऐसी धारणाओं को मानता है जो बाइबल के खिलाफ हैं। मसलन, वह शायद त्रियेक की शिक्षा को मानता होगा। ज्ञान किताब का अध्याय 3 बताता है कि शब्द “त्रियेक” बाइबल में कहीं नहीं है। वह किताब ऐसे वचनों का हवाला देती और ज़िक्र करती है जिनमें बताया गया है कि यहोवा, यीशु से अलग है और पवित्र आत्मा कोई व्यक्‍ति नहीं बल्कि परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति है। उन वचनों को पढ़ना और उन पर चर्चा करना शायद काफी हो। लेकिन अगर इससे भी ज़्यादा जानकारी की ज़रूरत पड़े तब क्या? हम अगली बार, अध्ययन खत्म करने के बाद, यहोवा के साक्षियों की किसी और किताब से इस विषय पर थोड़े समय के लिए चर्चा कर सकते हैं। मसलन, क्या आपको त्रियेक में विश्‍वास करना चाहिए? इस ब्रोशर से उसके साथ चर्चा करके हम उसकी मदद कर सकते हैं। इसके बाद, हम ज्ञान किताब से अध्ययन जारी रख सकते हैं।

20 मान लीजिए कि हम विद्यार्थी का नज़रिया जानने के लिए उससे सवाल पूछते हैं, मगर उसका जवाब हमें हैरान या निराश कर देता है, तो हमें क्या करना चाहिए? अगर हमारा सवाल, धूम्रपान या किसी और नाज़ुक विषय पर था, तो हम कह सकते हैं कि इस बारे में किसी और दिन बात करेंगे, और अध्ययन जारी रख सकते हैं। यह जानते हुए कि विद्यार्थी अब भी धूम्रपान करता है, हम अपने प्रकाशनों से ऐसी जानकारी ढूँढ़ेंगे, जिससे विद्यार्थी को आध्यात्मिक तरक्की करने में मदद मिले। विद्यार्थी के दिल तक पहुँचने की कोशिश करने के साथ-साथ, हम यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं कि वह आध्यात्मिक रूप से बढ़ने में उसकी मदद करे।

21. अगर हम अपने बाइबल विद्यार्थी की खास ज़रूरतों के मुताबिक अपने सिखाने के तरीके में फेर-बदल करें, तो क्या नतीजे मिल सकते हैं?

21 इसमें शक नहीं कि अच्छी तैयारी और यहोवा की मदद से, हम बाइबल विद्यार्थी की खास ज़रूरतों के मुताबिक अपने सिखाने के तरीके में फेर-बदल कर सकेंगे। समय के गुज़रते हम यहोवा के लिए गहरा प्यार बढ़ाने में उसकी मदद कर सकेंगे। शायद हम उसके अंदर यहोवा के संगठन के लिए आदर की भावना और कदरदानी बढ़ाने में भी कामयाब हो जाएँ। और जब बाइबल विद्यार्थी यह कबूल करेगा कि ‘सचमुच परमेश्‍वर हमारे बीच है’ तो सोचिए हमें कितनी खुशी होगी! (1 कुरिन्थियों 14:24, 25) इसलिए आइए हम बाइबल अध्ययन असरदार तरीके से चलाएँ और दूसरों को यीशु के चेले बनने में हर मुमकिन तरीके से मदद दें।

एक अनमोल खज़ाना

22, 23. अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा करने के लिए क्या ज़रूरी है?

22 अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा करने के लिए परमेश्‍वर से सामर्थ पाना बेहद ज़रूरी है। मसीही सेवा के बारे में पौलुस ने अपने साथी अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखा: “हमारे पास यह धन मिट्टी के बरतनों में रखा है, कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्‍वर ही की ओर से ठहरे।”—2 कुरिन्थियों 4:7.

23 चाहे हम अभिषिक्‍त जनों में से हों या ‘अन्य भेड़ों’ में से, हम सभी मिट्टी के नाज़ुक बर्तनों की तरह हैं। (यूहन्‍ना 10:16, NW) फिर भी, यहोवा हमें ऐसी सामर्थ दे सकता है जिससे हम ज़िंदगी की मुश्‍किलों को झेलते हुए भी अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभा सकेंगे। (यूहन्‍ना 16:13; फिलिप्पियों 4:13) इसलिए आइए हम यहोवा पर पूरा-पूरा भरोसा रखें, प्रचार करने की ज़िम्मेदारी को अनमोल धन समझें और अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा करें।

[फुटनोट]

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

आपका जवाब क्या होगा?

• प्राचीन अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा करने के लिए क्या कर सकते हैं?

• हम बाइबल अध्ययन चलाने की काबिलीयत को कैसे निखार सकते हैं?

• अगर बाइबल विद्यार्थी, किसी उदाहरण को ठीक से नहीं समझ पाता या किसी विषय पर उसे ज़्यादा जानकारी की ज़रूरत है, तो आप क्या करेंगे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर तसवीर]

मसीही प्राचीन, कलीसिया में सिखाते और नए भाई-बहनों को सेवा करने की तालीम देते हैं

[पेज 18 पर तसवीर]

अपनी ज्योति चमकाने का एक तरीका है, असरदार तरीके से बाइबल अध्ययन चलाना