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क्या आपकी नज़र इनाम पर है?

क्या आपकी नज़र इनाम पर है?

क्या आपकी नज़र इनाम पर है?

आँखों की यह बीमारी धीरे-धीरे शुरू होती है। पहले-पहल आँखों के किनारों पर यह असर करती है। अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो यह किनारों से फैलकर बीच तक पहुँच जाती है। और ऐसा वक्‍त आता है कि पूरी तरह आँखों की रोशनी चली जाती है। यह कौन-सी बीमारी है? यह है ग्लाउकोमा, जो आज अंधेपन की सबसे बड़ी वजह है।

जैसे एक इंसान धीरे-धीरे अपनी आँखों की रोशनी खो सकता है और इससे उसकी ज़िंदगी उजड़ सकती है, उसी तरह आध्यात्मिक नज़र खोने का खतरा भी धीरे-धीरे शुरू होता है और इसका अंजाम और भी बुरा होता है, क्योंकि आध्यात्मिक नज़र कहीं ज़्यादा अनमोल है। तो यह बेहद ज़रूरी है कि हम आध्यात्मिक बातों को सबसे ज़्यादा अहमियत दें, उन पर पैनी नज़र रखें।

इनाम पर नज़र रखना

हम जिन “अनदेखी वस्तुओं” को अपनी आँखों से नहीं देख सकते, उनमें से एक है अनंत जीवन का बढ़िया इनाम, जिसे यहोवा ने अपने वफादार लोगों को देने का वादा किया है। (2 कुरिन्थियों 4:18) बेशक, परमेश्‍वर की सेवा करने की सबसे बड़ी वजह यह है कि हम उससे प्यार करते हैं। (मत्ती 22:37) फिर भी, यहोवा चाहता है कि हम अपना इनाम पाने के लिए बेताब रहें। वह चाहता है कि हम उसे ऐसा पिता मानें जो दिल खोलकर “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता” है। (इब्रानियों 11:6) इसलिए जो लोग सही मायनों में परमेश्‍वर को जानते और उससे प्यार करते हैं, वे उन आशीषों को अनमोल समझते हैं जिनका उसने वादा किया है और उन वादों को पूरा होता देखने के लिए तरसते हैं।—रोमियों 8:19, 24, 25.

इस पत्रिका और इसकी साथवाली पत्रिका सजग होइए! में अकसर आनेवाले फिरदौस की तसवीरें दी जाती हैं। इन्हें पढ़नेवाले कई लोगों को ये तसवीरें भा जाती हैं। बेशक हम ठीक-ठीक नहीं जानते कि धरती पर फिरदौस दिखने में कैसा होगा इसलिए इन पत्रिकाओं में फिरदौस की जो तसवीरें दी जाती हैं, उन्हें कलाकार यशायाह 11:6-9 जैसी आयतों पर कल्पना करके बनाते हैं। मगर फिर भी इनके बारे में एक मसीही स्त्री ने कहा: “जब मैं प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में, फिरदौस की तसवीरें देखती हूँ तो मैं करीबी से उनकी जाँच करती हूँ, जैसे कोई पर्यटन के ब्रोशर को जाँचता है। मैं यह कल्पना करने की कोशिश करती हूँ कि मैं उस माहौल में हूँ, क्योंकि यही वह जगह है जहाँ मैं परमेश्‍वर के ठहराए वक्‍त पर जीने की आशा रखती हूँ।”

प्रेरित पौलुस को “ऊपर” जाने का जो ‘बुलावा’ मिला था, उसके बारे में उसने भी वैसा ही महसूस किया। उसने ऐसा नहीं सोचा कि उसकी आशा पूरी हो गयी है, क्योंकि उसे वह इनाम तभी मिलता जब वह आखिर तक अपनी वफादारी साबित कर दिखाता। वह लगातार उन “आगे की बातों की ओर बढ़ता” गया। (फिलिप्पियों 3:13, 14) उसी तरह, यीशु ने भी “उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था” यातना स्तंभ पर मौत सह ली।—इब्रानियों 12:2.

क्या आपको कभी शक हुआ है कि आप नयी दुनिया में कदम रख पाएँगे या नहीं? बेशक, अपने बारे में हद-से-ज़्यादा भरोसा रखना ठीक नहीं है, क्योंकि हमें ज़िंदगी का इनाम मिलेगा या नहीं, यह हमारे अंत तक वफादार रहने पर निर्भर है। (मत्ती 24:13) लेकिन अगर हम परमेश्‍वर की माँगों को पूरा करने के लिए अपना भरसक कर रहे हैं, तो हम उस इनाम को पाने का पूरा यकीन रख सकते हैं। याद रखिए कि यहोवा “नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (2 पतरस 3:9) अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह अपने लक्ष्य को पाने में हमारी मदद करेगा। जो लोग सच्चे दिल से उसे खुश करने की कोशिश करते हैं, वह उन्हें इनाम के अयोग्य ठहराने के लिए कोई वजह नहीं ढूँढ़ता क्योंकि ऐसा करना उसके स्वभाव के खिलाफ है।—भजन 103:8-11; 130:3, 4; यहेजकेल 18:32.

यहोवा के दिल में अपने लोगों के लिए जो भावनाएँ हैं, उन्हें जानने से हमें आशा मिलती है। और यह आशा हमारे लिए उतनी ही ज़रूरी है जितना कि विश्‍वास। (1 कुरिन्थियों 13:13) बाइबल में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “आशा” किया गया है, उसका मतलब है बेसब्री से “भलाई की उम्मीद” करना। प्रेरित पौलुस ने ऐसी आशा को ही ध्यान में रखकर लिखा: “हम चाहते हैं कि तुममें से हर कोई जीवन भर ऐसा ही कठिन परिश्रम करता रहे। यदि तुम ऐसा करते हो तो तुम निश्‍चय ही उसे पा जाओगे जिसकी तुम आशा करते रहे हो। हम यह नहीं चाहते कि तुम आलसी हो जाओ। बल्कि तुम उनका अनुकरण करो जो विश्‍वास और धैर्य के साथ उन वस्तुओं को पा रहे हैं जिनका परमेश्‍वर ने वचन दिया था।” (इब्रानियों 6:11, 12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) ध्यान दीजिए कि अगर हम यहोवा की सेवा वफादारी से करते रहें, तो हम निश्‍चित हो सकते हैं कि हमारी आशा ज़रूर पूरी होगी। हमारी यह आशा दुनियावी लक्ष्यों की तरह “हमें निराश नहीं होने” देगी। (रोमियों 5:5, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) तो हम अपनी आशा को मन में उज्ज्वल कैसे बनाए रख सकते हैं और उस पर पैनी नज़र कैसे रख सकते हैं?

अपनी आध्यात्मिक नज़र को कैसे पैना करें?

हम अपनी आँखों से एक साथ दो चीज़ों पर पैनी नज़र नहीं रख सकते। यही बात हमारी आध्यात्मिक नज़र के बारे में भी सच है। अगर हमारी नज़र दुनियावी चीज़ों पर गड़ी है, तो यह तय है कि हम परमेश्‍वर की वादा की गयी नयी दुनिया पर ठीक से नज़र नहीं रख पाएँगे। कुछ समय बाद हमें नयी दुनिया की सिर्फ धुँधली-सी तसवीर नज़र आएगी जिसमें हमें कोई दिलचस्पी नहीं होगी और हम उसे देखना बंद कर देंगे। इसका अंजाम हमारे लिए क्या ही भयानक होगा! (लूका 21:34) इसलिए यह कितना ज़रूरी है कि हम अपनी “आंख निर्मल” रखें यानी उसे सिर्फ परमेश्‍वर के राज्य और अनंत जीवन के इनाम पर लगाए रखें।—मत्ती 6:22.

अपनी आँख को निर्मल रखना हमेशा आसान नहीं होता। आए दिन हम जिन समस्याओं का सामना करते हैं, उन्हीं पर हमारा सारा ध्यान चला जाता है। इसके अलावा, दूसरी कई चीज़ों की तरफ हमारा ध्यान भटक सकता है, यहाँ तक कि हम बुरे कामों की तरफ लुभाए जा सकते हैं। ऐसे हालात में, हम ज़रूरी कामों को नज़रअंदाज़ किए बगैर परमेश्‍वर के राज्य और उसकी वादा की गयी नयी दुनिया पर कैसे अपनी नज़र गड़ाए रख सकते हैं? आइए ऐसा करने के तीन तरीकों पर गौर करें।

रोज़ाना परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन कीजिए। नियमित तौर पर बाइबल पढ़ने और उस पर आधारित किताबों-पत्रिकाओं का अध्ययन करने से हम अपना ध्यान आध्यात्मिक बातों पर लगाए रख सकेंगे। हो सकता है हम कई सालों से परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन कर रहे हों, मगर फिर भी हमें लगातार उसका अध्ययन करना होगा, ठीक जैसे हमें ज़िंदा रहने के लिए लगातार भोजन करने की ज़रूरत होती है। हम यह सोचकर भोजन करना नहीं छोड़ते कि हमने गुज़रे वक्‍त में हज़ारों बार खाना खाया है। उसी तरह, हम बाइबल से चाहे कितने ही वाकिफ क्यों न हों, हमें नियमित तौर पर उससे आध्यात्मिक खुराक लेनी चाहिए ताकि हर वक्‍त हमारी आशा उज्ज्वल रहे, हमारा विश्‍वास और प्यार मज़बूत बना रहे।—भजन 1:1-3.

एहसानमंदी की भावना से परमेश्‍वर के वचन पर मनन कीजिए। मनन करना क्यों ज़रूरी है? इसके दो कारण हैं। पहला, मनन करने से हमें पढ़ी हुई बातों को दिमाग में बिठाने और अच्छी तरह समझने में मदद मिलती है और हम उनके लिए गहरी कदरदानी बढ़ा पाते हैं। दूसरा, मनन करने से हम यहोवा और उसके आश्‍चर्यकर्मों को, साथ ही उसने हमें जो आशा दी है, उसे नहीं भूलेंगे। उदाहरण के लिए: जिन इस्राएलियों ने मूसा के साथ मिस्र छोड़ा था, उन्होंने खुद अपनी आँखों से देखा कि यहोवा ने अपनी अद्‌भुत शक्‍ति से कैसे-कैसे काम किए। उन्होंने यह भी देखा कि उन्हें विरासत में मिलनेवाले देश तक ले जाते वक्‍त यहोवा ने कैसे प्यार से उनकी हिफाज़त की थी। फिर भी, वादा किए गए देश में पहुँचने से पहले जैसे ही उन्होंने वीराने में कदम रखा, वे शिकायत करने लगे। इससे ज़ाहिर हुआ कि उनमें विश्‍वास की भारी कमी थी। (भजन 78:11-17) इसकी असल वजह क्या थी?

उन लोगों ने यहोवा पर से अपना ध्यान हटा दिया और उसकी दी गयी शानदार आशा के बजाय खुद के चैनो-आराम के बारे में सोचने लगे और अपनी ख्वाहिशें पूरी करने में लग गए। ज़्यादातर इस्राएलियों ने खुद अपनी आँखों से यहोवा के चमत्कार देखे थे, फिर भी उनमें विश्‍वास नहीं रहा और वे शिकायत करने लगे। भजन 106:13 कहता है: “वे झट [यहोवा के] कामों को भूल गए।” (तिरछे टाइप हमारे।) इस तरह जानबूझकर परमेश्‍वर के कामों को नज़रअंदाज़ करने की वजह से उस पीढ़ी ने वादा किए गए देश में कदम रखने का मौका गँवा दिया।

इसलिए जब आप बाइबल पढ़ते या उसकी समझ देनेवाले साहित्य का अध्ययन करते हैं, तो समय निकालकर पढ़ी हुई बातों पर मनन कीजिए। इस तरह का मनन, आपकी आध्यात्मिक सेहत और तरक्की के लिए बेहद ज़रूरी है। मसलन, भजन 106 पढ़ते वक्‍त, जिसकी एक आयत का हवाला ऊपर दिया गया है, यहोवा के गुणों पर मनन कीजिए। गौर कीजिए कि वह इस्राएलियों के साथ कितने धीरज से पेश आया और उसने उन पर कितनी दया की। ध्यान दीजिए कि उसने किस तरह अपनी तरफ से उनकी पूरी-पूरी मदद की ताकि वे वादा किए गए देश में पहुँच सकें। देखिए कि उन्होंने कैसे बार-बार उसके खिलाफ बगावत की। ज़रा सोचिए कि यहोवा के दिल को कितनी ठेस पहुँची होगी जब उनकी एहसान-फरामोशी ने उसकी दया और सहनशीलता को इस हद तक परखा कि वह और बर्दाश्‍त न कर सका। इसके अलावा, आगे आयत 30 और 31 में बताया गया है कि पीनहास ने कैसे निडर होकर धार्मिकता के पक्ष में होने का अटल फैसला किया। उन दोनों आयतों पर मनन करने से हमें पक्का यकीन होता है कि यहोवा अपने वफादार लोगों को नहीं भूलता और उन्हें बहुतायत में आशीषें देता है।

अपनी ज़िंदगी में बाइबल सिद्धांतों को लागू कीजिए। जब हम बाइबल सिद्धांतों पर चलते हैं, तो हम खुद अनुभव करते हैं कि यहोवा की सलाह फायदेमंद है। नीतिवचन 3:5, 6 कहता है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” ऐसे कई लोगों के बारे में सोचिए जिन्होंने बदचलन ज़िंदगी जीने की वजह से मन की शांति खो दी, निराशा, मायूसी और बीमारियों के शिकार हुए। ऐसे लोग जो पल भर का मज़ा लूटने में डूब जाते हैं, वे सालों तक या फिर ज़िंदगी भर के लिए मुसीबत की कटनी काटते हैं। मगर जो ‘सकरे मार्ग’ पर चलते हैं, उनकी बात कितनी अलग है। वे आज भी एक बेहतरीन ज़िंदगी जीते हैं और इससे उन्हें एक झलक मिलती है कि नयी दुनिया में ज़िंदगी कैसी होगी। और इससे उन्हें बढ़ावा मिलता है कि वे जीवन के मार्ग पर चलते रहें।—मत्ती 7:13, 14; भजन 34:8.

बाइबल के सिद्धांतों पर चलना एक चुनौती हो सकती है। कभी-कभी मुश्‍किल हालात में ऐसा लग सकता है कि बाइबल के खिलाफ जाकर उसका हल करने से तुरंत हमारी समस्या दूर होगी। मसलन, पैसे की तंगी से गुज़रते वक्‍त शायद हमारा मन करे कि राज्य के कामों को दूसरी जगह देना ठीक रहेगा। लेकिन जो लोग पूरे विश्‍वास के साथ काम करते और अपनी आध्यात्मिक नज़र पैनी रखते हैं, उन्हें यकीन दिलाया गया है कि ‘परमेश्‍वर से डरनेवालों का भला ही होगा।’ (सभोपदेशक 8:12) हो सकता है, एक मसीही को कभी-कभी ज़्यादा घंटे काम करना पड़े, लेकिन वह कभी एसाव के जैसा रवैया नहीं दिखाएगा जिसने आध्यात्मिक बातों को तुच्छ जाना और ऐसे ठुकरा दिया मानो उनकी कोई कीमत नहीं है।—उत्पत्ति 25:34; इब्रानियों 12:16.

यीशु ने साफ-साफ समझाया कि हम मसीहियों पर क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं। हमें “पहले परमेश्‍वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज” करनी चाहिए। (मत्ती 6:33, NHT) अगर हम ऐसा करेंगे तो यहोवा एक पिता की तरह हमें प्यार करेगा। वह इस बात का ध्यान रखेगा कि हमारी खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी हों। वह हरगिज़ नहीं चाहता कि हम उन बातों की चिंता करके खुद पर बोझ लादें, जिनकी देख-रेख करना वह अपनी ज़िम्मेदारी समझता है। ऐसी बातों की हद-से-ज़्यादा चिंता करना, आध्यात्मिक मायने में ग्लाउकोमा बीमारी जैसा है। अगर इलाज न किया जाए तो धीरे-धीरे हमारी आध्यात्मिक नज़र इतनी कमज़ोर पड़ जाएगी कि हमें सिर्फ रोटी-कपड़े की चिंता होने लगेगी और हम आखिरकार आध्यात्मिक मायने में अंधे हो जाएँगे। और अगर हम उसी हाल में रहे तो यहोवा का दिन हम पर “फन्दे की नाईं” आ पड़ेगा। यह हमारे लिए कितने दुःख की बात होगी!—लूका 21:34-36.

यहोशू की तरह हमेशा अपनी नज़र पैनी रखें

आइए हम हमेशा अपनी नज़र राज्य की आशा पर लगाए रखें और दूसरी ज़िम्मेदारियों को सिर्फ उतनी अहमियत दें जितनी कि सही है। अगर हम बाइबल के सिद्धांतों का अध्ययन और मनन करने की आदत बनाएँगे और उन पर अमल करेंगे, तो हमें यहोशू की तरह अपनी आशा के पूरा होने का हमेशा यकीन रहेगा। इस्राएल जाति को वादा किए गए देश में ले जाने के बाद, यहोशू ने कहा: “तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं, उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।”—यहोशू 23:14.

ऐसा हो कि राज्य की आशा आपमें नया जोश भरती रहे और आपमें उम्मीद जगाती रहे और यह आशा आपके विचारों, भावनाओं, फैसलों और कामों से ज़ाहिर हो।—नीतिवचन 15:15; रोमियों 12:12.

[पेज 21 पर तसवीर]

क्या आपको कभी शक हुआ है कि आप नयी दुनिया में कदम रख पाएँगे या नहीं?

[पेज 22 पर तसवीर]

मनन करना, बाइबल अध्ययन का एक ज़रूरी हिस्सा है

[पेज 23 पर तसवीर]

अपनी नज़र हमेशा राज्य के कामों पर लगाए रखिए