ज़िंदगी के बदलावों का सामना करने के लिए परमेश्वर की आत्मा पर निर्भर रहिए
ज़िंदगी के बदलावों का सामना करने के लिए परमेश्वर की आत्मा पर निर्भर रहिए
“अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य ठहराने का प्रयत्न कर।”—2 तीमुथियुस 2:15.
1. कौन-से बदलाव, हमारी आध्यात्मिक खुशहाली में चुनौती खड़ी कर सकते हैं?
हम जिस दुनिया में जीते हैं, उसमें आए दिन बदलाव होते रहते हैं। एक तरफ विज्ञान और टेकनॉलजी तरक्की का आसमान छू रही है, तो दूसरी तरफ नैतिक उसूल तेज़ी से गिरते जा रहे हैं। हमने पिछले लेख में देखा था कि मसीहियों को हर हाल में संसार की आत्मा का विरोध करना चाहिए जो परमेश्वर के खिलाफ है। लेकिन दुनिया के बदलने के साथ-साथ हमारी ज़िंदगी में भी कई बदलाव आते हैं। जैसे हमारे बचपन के दिन बीत जाते हैं और हम बड़े हो जाते हैं। हो सकता है हम दौलत और अच्छी सेहत हासिल करें या फिर उन्हें खो दें, शायद हमारे अज़ीज़ों के दायरे में कुछ नए लोग जुड़ जाएँ या फिर हम कुछ अज़ीज़ों को खो बैठें। इस तरह के कई बदलाव हमारे हाथ में नहीं होते। और ये हमारी आध्यात्मिक खुशहाली के लिए ऐसी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ खड़ी कर सकते हैं जिनका हमने कभी सामना न किया हो।
2. दाऊद की ज़िंदगी में कैसे-कैसे बदलाव आए?
2 यिशै के बेटे, दाऊद की ज़िंदगी में जैसी बड़ी-बड़ी तबदीलियाँ हुईं, वैसा बहुत कम लोगों के साथ होता है। कहाँ वह एक मामूली चरवाहा था और देखते-ही-देखते एक महान योद्धा बनकर पूरे देश पर छा गया। फिर उसे एक भगोड़ा बनकर यहाँ-वहाँ भटकना पड़ा क्योंकि एक राजा ने अपनी ईर्ष्या की वजह से शिकारी की तरह उसका पीछा किया। इसके बाद, दाऊद एक राजा और विजेता बना। गंभीर पाप करने की वजह से उसे दर्दनाक अंजाम भुगतने पड़े। उसके परिवार में ऐसी मुसीबतें आयीं जिससे परिवार टूटकर बिखर गया। उसने खूब दौलत पायी, वह बूढ़ा हुआ और बुढ़ापे की तकलीफें भी सहीं। लेकिन इतने सारे बदलावों के बावजूद दाऊद ने मरते दम तक यहोवा और उसकी आत्मा पर भरोसा दिखाया। उसने खुद को “परमेश्वर का ग्रहणयोग्य” ठहराने के लिए अपना भरसक किया और परमेश्वर ने उसे आशीष दी। (2 तीमुथियुस 2:15) हमारे हालात चाहे दाऊद से अलग हों, फिर भी उसने जिस तरह ज़िंदगी के हालात का सामना किया उससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं। उसकी मिसाल हमें यह समझने में मदद दे सकती है कि ज़िंदगी के बदलावों का सामना करते वक्त हम हमेशा परमेश्वर की आत्मा से कैसे मदद पा सकते हैं।
दाऊद की नम्रता—एक बढ़िया उदाहरण
3, 4. भेड़ों को चरानेवाला एक मामूली लड़का, दाऊद कैसे पूरे देश में मशहूर हो गया?
3 लड़कपन में, दाऊद की अपने परिवार में भी कोई खास जगह नहीं थी। जब भविष्यवक्ता शमूएल, बेतलेहेम आया तो दाऊद के पिता ने अपने आठ बेटों में से सात को उसके सामने पेश किया। दाऊद जो सबसे छोटा था, उसे भेड़ों की रखवाली करने के लिए भेजा गया था। मगर यहोवा ने दाऊद को ही इस्राएल का राजा चुना। इसलिए दाऊद को चारागाह से बुलाया गया। बाइबल कहती है कि तब “शमूएल ने अपना तेल का सींग लेकर उसके भाइयों के मध्य में उसका अभिषेक किया; और उस दिन से लेकर भविष्य को यहोवा का आत्मा दाऊद पर बल से उतरता रहा।” (1 शमूएल 16:12, 13) दाऊद ने इसी आत्मा के सहारे अपनी सारी ज़िंदगी बितायी।
4 भेड़ों का चरानेवाला यह लड़का, अब कुछ ही समय के अंदर पूरे देश में मशहूर होनेवाला था। उसे राजा की सेवा करने और उसके लिए संगीत बजाने के लिए बुलाया गया। उसने दानव जैसे खूँखार योद्धा, गोलियत को मार गिराया, जिसका सामना करने से इस्राएल के अनुभवी सैनिक भी थर-थर काँपते थे। दाऊद को सैनिकों का सरदार ठहराया गया और उसने पलिश्तियों को धूल चटा दी। इस्राएल के लोग दाऊद को बहुत पसंद करने लगे। उन्होंने उसकी तारीफ में गाने भी लिखे। इससे पहले, राजा शाऊल के एक सलाहकार ने जवान दाऊद के बारे में कहा कि वह न सिर्फ वीणा “बजाना जानता है” बल्कि “वीर योद्धा भी है, और बात करने में बुद्धिमान और रूपवान भी है।”—1 शमूएल 16:18; 17:23, 24, 45-51; 18:5-7.
5. किस वजह से दाऊद घमंडी बन सकता था, और हम कैसे जानते हैं कि वह ऐसा नहीं बना?
5 दाऊद के पास क्या नहीं था—शोहरत, खूबसूरती, जवानी, बात करने की निपुणता, संगीत का हुनर, युद्ध लड़ने की कुशलता और परमेश्वर का अनुग्रह। इनमें से कोई भी बात आसानी से उसे घमंडी बना सकती थी, मगर ऐसा नहीं हुआ। गौर कीजिए कि जब राजा शाऊल ने अपनी बेटी का रिश्ता दाऊद से तय कराना चाहा, तो उसने जवाब में क्या कहा। उसने सच्ची नम्रता दिखाते हुए शाऊल से कहा: “मैं क्या हूं, और मेरा जीवन क्या है, और इस्राएल में मेरे पिता का कुल क्या है, कि मैं राजा का दामाद हो जाऊं?” (1 शमूएल 18:18) इस आयत के बारे में एक विद्वान ने यह लिखा: “दाऊद के कहने का मतलब था कि न तो उसमें ऐसी खूबियाँ हैं, न समाज में ऐसा ओहदा है और ना ही वह ऐसे खानदान का है कि वह खुद को राजा का दामाद होने के लायक समझे।”
6. हमें नम्रता क्यों पैदा करनी चाहिए?
6 दाऊद इसलिए नम्र था क्योंकि वह जानता था कि यहोवा, असिद्ध इंसानों से हर मायने में कई गुना महान है। दाऊद ने ताज्जुब किया कि परमेश्वर ऐसा महान होते हुए भी अदने-से इंसान की तरफ ध्यान देता है। (भजन 144:3) दाऊद यह भी जानता था कि उसे जो शोहरत मिली, वह सिर्फ यहोवा की बदौलत ही थी, क्योंकि उसने नम्र और दीन होकर दाऊद को सँभाला, उसकी हिफाज़त और देखभाल की। (भजन 18:35) यह हमारे लिए क्या ही बढ़िया सबक है! हमें अपने हुनर, अपनी कामयाबियों और परमेश्वर की सेवा में मिली खास ज़िम्मेदारियों के कारण कभी घमंडी नहीं होना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “तेरे पास क्या है जो तू ने (दूसरे से) नहीं पाया: और जब कि तू ने (दूसरे से) पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्यों करता है, कि मानो नहीं पाया?” (1 कुरिन्थियों 4:7) परमेश्वर की आत्मा और उसकी मंज़ूरी पाने के लिए, हमें नम्रता पैदा करनी चाहिए और यह गुण हमेशा कायम रखना चाहिए।—याकूब 4:6.
“अपना पलटा न लेना”
7. दाऊद को कैसे राजा शाऊल को मार डालने का मौका मिला?
7 हालाँकि दाऊद की शोहरत ने उसमें घमंड नहीं पैदा किया, मगर उसे देखकर राजा शाऊल को इतनी जलन होने लगी कि उसने उसे जान से मार डालना चाहा। राजा शाऊल पर से परमेश्वर की आत्मा हट चुकी थी। दाऊद बिलकुल बेकसूर था, फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए विराने में जाकर रहना पड़ा। एक बार, राजा शाऊल बेतहाशा दाऊद का पीछा करते हुए, उसी गुफा में आ गया जिसमें दाऊद और उसके साथी छिपे हुए थे। तब दाऊद के आदमियों ने उसे उकसाते हुए कहा कि परमेश्वर ने ही उसे शाऊल को मार डालने का यह मौका दिया है। हम कल्पना कर सकते हैं कि उस अँधेरी गुफा में, उन्होंने किस तरह दाऊद से फुसफुसाकर यह कहा होगा: “सुन, आज वही दिन है जिसके विषय यहोवा ने तुझ से कहा था, कि मैं तेरे शत्रु को तेरे हाथ में सौंप दूंगा, कि तू उस से मनमाना बर्ताव कर ले।”—1 शमूएल 24:2-6.
8. दाऊद ने बदला लेने से खुद को क्यों रोका?
8 दाऊद ने शाऊल पर हमला करने से इनकार कर दिया। उसने विश्वास और धीरज दिखाते हुए मामला यहोवा के हाथ में छोड़ दिया। जब राजा गुफा से बाहर गया, तो दाऊद ने उसे पुकारकर कहा: “यहोवा मेरा और तेरा न्याय करे, और यहोवा तुझ से मेरा पलटा ले; परन्तु मेरा हाथ तुझ पर न उठेगा।” (1 शमूएल 24:12) दाऊद जानता था कि गलती शाऊल की थी, फिर भी उसने बदला नहीं लिया; ना ही उसने शाऊल से गाली-गलौज की या दूसरों से उसकी बुराई की। दूसरे कई मौकों पर भी, दाऊद ने मामला हाथ में लेने से खुद को रोका। उसने हमेशा यहोवा पर भरोसा रखा कि वही मामलों को सही तरह से निपटाएगा।—1 शमूएल 25:32-34; 26:10, 11.
9. अगर हमारा विरोध किया जाता या हमें सताया जाता है, तो हमें क्यों बदला नहीं लेना चाहिए?
9 दाऊद की तरह, शायद आपके सामने भी मुश्किल हालात पैदा हों। हो सकता है, परिवार के सदस्य, सहकर्मी, साथ पढ़नेवाले या दूसरे लोग जो आपके जैसा विश्वास नहीं रखते, आपका विरोध करते हों या आपको सताते हों। ऐसे में उनसे बदला मत लीजिए। यहोवा के समय का इंतज़ार कीजिए और सहने के लिए उससे पवित्र आत्मा देने की बिनती कीजिए। शायद आपका अच्छा चालचलन उन अविश्वासियों को भा जाए और वे भी सच्चाई को अपना लें। (1 पतरस 3:1, 2) नतीजा चाहे जो भी हो, मगर इस बात का पूरा यकीन रखिए कि यहोवा आपके हालात को देख रहा है और वह अपने ठहराए वक्त पर ज़रूर कुछ कार्यवाही करेगा। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा।”—रोमियों 12:19.
‘अनुशासन को सुनें’
10. दाऊद ने किस तरह पाप किया और कैसे उसे छिपाने की कोशिश की?
10 साल गुज़रते गए। दाऊद, शोहरत की बुलंदियाँ छूता हुआ लोगों का चहेता राजा बन गया। वफादारी में उसकी बेहतरीन मिसाल, साथ ही यहोवा की स्तुति में उसके लिखे खूबसूरत भजनों को देखकर, शायद ही कोई सोचे कि वह कभी गंभीर पाप कर सकता है। लेकिन उसने वही किया। एक दिन, राजा दाऊद ने अपने महल की छत से एक सुंदर स्त्री को नहाते हुए देखा। फिर वह उसके बारे में पूछताछ करने लगा। जब उसे पता चला कि उसका नाम बतशेबा है और उसका पति, ऊरिय्याह युद्ध के लिए गया हुआ है, तो उसने बतशेबा को अपने महल में बुलवा भेजा और उसके साथ लैंगिक संबंध रखे। बाद में दाऊद को मालूम पड़ा कि वह गर्भवती हो गयी है। अगर राजा की पोल खुल जाती, तो उसकी कितनी बदनामी होती! मूसा की व्यवस्था के तहत, व्यभिचार करनेवाले को मौत की सज़ा दी जाती थी। राजा ने शायद सोचा कि वह अपने पाप पर परदा डाल सकता है। इसलिए उसने सेना को हुक्म दिया कि ऊरिय्याह को यरूशलेम वापस भेज दिया जाए। उसने सोचा कि ऊरिय्याह, बतशेबा के साथ रात बिताएगा मगर उसने ऐसा नहीं किया। दाऊद, हर हाल में अपने पाप को ढाँपना चाहता था, इसलिए उसने ऊरिय्याह के हाथ, सेनापति योआब के नाम एक खत देकर उसे वापस युद्ध में भेज दिया। खत में उसने हुक्म दिया कि ऊरिय्याह को युद्ध के मैदान में ऐसी जगह तैनात किया जाए कि दुश्मन उसे घात कर दें। योआब ने इस हुक्म को माना और इसलिए ऊरिय्याह मार डाला गया। फिर दस्तूर के मुताबिक जब बतशेबा के मातम मनाने के दिन खत्म हुए, तो दाऊद ने उसे अपनी पत्नी बना लिया।—2 शमूएल 11:1-27.
11. नातान ने दाऊद को कौन-सा किस्सा बताया और यह सुनकर दाऊद को कैसा लगा?
11 दाऊद ने सोचा कि उसकी तरकीब कामयाब हो गयी, जबकि उसे मालूम होना चाहिए था कि यहोवा सब कुछ देख रहा था। (इब्रानियों 4:13) कई महीने बीत गए और बतशेबा ने एक बच्चे को जन्म दिया। फिर यहोवा के भेजने पर भविष्यवक्ता नातान, दाऊद के पास गया और उसने राजा को एक किस्सा सुनाया। उसने कहा कि एक रईस आदमी ने, जिसके पास बहुत-सी भेड़ें थी, भोजन के लिए एक गरीब आदमी की भेड़ का वध कर दिया जबकि उस गरीब के पास वह अकेली भेड़ थी और वह उसे बहुत प्यारी थी। यह किस्सा सुनते ही दाऊद के अंदर न्याय का जज़्बा जाग उठा, मगर उसे ज़रा भी शक नहीं हुआ कि उस वाकये के पीछे गहरा मतलब छिपा था। उसने आग-बबूला होकर अपना फैसला सुनाते हुए नातान से कहा: “जिस मनुष्य ने ऐसा काम किया वह प्राण दण्ड के योग्य है।”—2 शमूएल 12:1-6.
12. यहोवा ने दाऊद पर क्या न्यायदंड सुनाया?
12 इस पर भविष्यवक्ता ने कहा: “तू ही वह मनुष्य है।” दाऊद ने दरअसल खुद पर ही न्यायदंड सुना दिया था। इसमें शक नहीं कि एक ही पल में दाऊद का क्रोध, शर्म और गहरे दुःख में बदल गया। मानो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। जब नातान ने यहोवा की तरफ से उसे न्यायदंड सुनाया, जिससे बचना नामुमकिन था, तो वह बेबस होकर सुनता रहा। उसे दिलासा देनेवाले कोई शब्द नहीं कहे गए। दाऊद ने बुरा काम करके यहोवा के वचन को तुच्छ जाना था। क्या उसने दुश्मन की तलवार से ऊरिय्याह का कत्ल नहीं कर दिया था? इसलिए उसे बताया गया कि अब उसके घर से तलवार नहीं हटेगी। क्या उसने चोरी-छिपे ऊरिय्याह की पत्नी को नहीं ले लिया था? अब उस पर भी कुछ ऐसा ही कहर टूटनेवाला था, वह भी चोरी-छिपे नहीं बल्कि सरेआम।—2 शमूएल 12:7-12.
13. यहोवा से अनुशासन पाने पर दाऊद ने कैसा रवैया दिखाया?
13 दाऊद के बारे में एक अच्छी बात यह थी कि उसने अपनी गलती कबूल कर ली। वह भविष्यवक्ता नातान पर झल्लाया नहीं, ना ही उसने अपना दोष किसी और के मत्थे मढ़ा या खुद को बेगुनाह साबित करने की कोशिश की। जब दाऊद के मुँह पर उसके पापों का खुलासा किया गया, तो उसने खुद को जवाबदेह ठहराते हुए कहा: “मैं ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।” (2 शमूएल 12:13) भजन 51 दिखाता है कि दोष की भावना से उसे कितना गहरा दुःख हुआ था और उसका पश्चाताप कितना सच्चा था। उसने गिड़गिड़ाकर यहोवा से यह बिनती की: “मुझे अपने साम्हने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से अलग न कर।” उसे भरोसा था कि यहोवा दयालु है, वह ऐसे “मन” को तुच्छ नहीं जानेगा जो पाप की वजह से ‘टूटा और पिसा हुआ’ है। (भजन 51:11, 17) दाऊद ने लगातार परमेश्वर की आत्मा पर भरोसा ज़ाहिर किया। यहोवा ने उसे पाप के कड़वे अंजामों से बचाया तो नहीं, मगर उसे माफ कर दिया।
14. जब यहोवा अनुशासन देता है, तो हमें कैसा रवैया दिखाना चाहिए?
14 हम सभी असिद्ध हैं और पाप करते हैं। (रोमियों 3:23) हो सकता है कभी-कभी हम दाऊद की तरह गंभीर पाप भी कर बैठें। जैसे एक पिता अपने बच्चों से प्यार करने की वजह से उन्हें अनुशासन देता है, उसी तरह यहोवा ऐसे लोगों को ताड़ना देता है जो उसकी सेवा करना चाहते हैं। अनुशासन से फायदा ज़रूर होता है, मगर उसे कबूल करना इतना आसान नहीं। कभी-कभी तो अनुशासन दिए जाने पर हमें “शोक” महसूस होता है। (इब्रानियों 12:6, 11) फिर भी अगर हम ‘अनुशासन को सुनें,’ तो यहोवा के साथ हमारा टूटा रिश्ता दोबारा जुड़ सकता है। (नीतिवचन 8:33, NW) अगर हम चाहते हैं कि यहोवा की आत्मा हम पर हमेशा बनी रहे, तो हमें उसका अनुशासन कबूल करना होगा और उसकी मंज़ूरी पाने के लिए मेहनत करनी होगी।
चंचल धन पर आशा न रखें
15. (क) कुछ लोग अपनी दौलत का इस्तेमाल कैसे करते हैं? (ख) दाऊद ने अपनी दौलत का कैसे इस्तेमाल करना चाहा?
15 बाइबल में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि दाऊद, किसी नामी-गिरामी खानदान से था या उसका परिवार काफी दौलतमंद था। लेकिन अपने शासन के दौरान, उसने काफी धन-दौलत इकट्ठी की। आप जानते होंगे कि बहुत-से रईस लोग अपना धन छिपाकर रखते हैं, लालच में आकर और भी ज़्यादा बटोरते हैं या सिर्फ अपने पर खर्च करते हैं। और कुछ लोग तो अपनी बड़ाई के लिए पैसे खर्च करते हैं। (मत्ती 6:2) मगर दाऊद ने अपनी दौलत का इस्तेमाल बिलकुल अलग तरीके से किया। उसका मन यहोवा की महिमा करने को तरसता था। उसने नातान को अपनी यह इच्छा बतायी कि वह यहोवा के लिए एक मंदिर बनाना चाहता है जिसमें वाचा का संदूक रखा जा सके, जो उन दिनों यरूशलेम में “तम्बू में रहता” था। दाऊद का यह इरादा जानकर यहोवा बहुत खुश हुआ मगर उसने नातान के ज़रिए उसे बताया कि मंदिर बनाने का सुअवसर, उसके बेटे सुलैमान को दिया जाएगा।—2 शमूएल 7:1, 2, 12, 13.
16. दाऊद ने मंदिर के निर्माण के लिए क्या तैयारियाँ कीं?
16 दाऊद ने इस महान निर्माण काम के लिए सामान इकट्ठा किया। उसने सुलैमान से कहा: “मैं ने . . . यहोवा के भवन के लिये एक लाख किक्कार सोना, और दस लाख किक्कार चान्दी, और पीतल और लोहा इतना इकट्ठा किया है, कि बहुतायत के कारण तौल से बाहर है; और लकड़ी और पत्थर मैं ने इकट्ठे किए हैं, और तू उनको बढ़ा सकेगा।” दाऊद ने अपनी तिजोरी से 3,000 सोने के तोड़े और 7,000 चाँदी के तोड़े दान किए। * (1 इतिहास 22:14; 29:3,4) दाऊद की यह दरियादिली दिखावा नहीं थी बल्कि यहोवा पर उसके विश्वास और उसकी सच्ची भक्ति का सबूत थी। दाऊद जानता था कि किसने उसे सारी दौलत दी थी, इसलिए उसने यहोवा से कहा: “तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है।” (1 इतिहास 29:14) दाऊद के उदार मन ने उसे इस कदर उभारा कि उसने शुद्ध उपासना को बढ़ावा देने के लिए अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी।
17. पहले तीमुथियुस 6:17-19 की सलाह अमीरों और गरीबों, दोनों पर कैसे लागू होती है?
17 दाऊद की तरह आइए हम भी अपनी दौलत का इस्तेमाल भले कामों के लिए करें। ऐशो-आराम की ज़िंदगी बिताने के बजाय, अच्छा होगा कि हम परमेश्वर की मंज़ूरी पाने की कोशिश करें। यही सच्ची बुद्धि और खुशी पाने का रास्ता है। पौलुस ने लिखा: “इस संसार के धनवानों को आज्ञा दे, कि वे अभिमानी न हों और चंचल धन पर आशा न रखें, परन्तु परमेश्वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है। और भलाई करें, और भले कामों में धनी बनें; और उदार और सहायता देने में तत्पर हों। और आगे के लिये एक अच्छी नेव डाल रखें, कि सत्य जीवन को वश में कर लें।” (1 तीमुथियुस 6:17-19) हमारी आर्थिक हालत चाहे जो भी हो, आइए हम परमेश्वर की आत्मा पर भरोसा रखें और ऐसी ज़िंदगी जीएँ जिससे हम “परमेश्वर की दृष्टि में धनी” बन सकें। (लूका 12:21) स्वर्ग में रहनेवाले हमारे प्यारे पिता के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाए रखने से बड़ा धन कुछ नहीं हो सकता।
खुद को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य ठहराएँ
18. दाऊद ने मसीहियों के लिए कैसे एक उम्दा मिसाल कायम की?
18 दाऊद ने मरते दम तक, यहोवा की मंज़ूरी पाने की कोशिश की। अपने एक भजन में उसने यहोवा से पुकारकर कहा: “हे परमेश्वर, मुझ पर अनुग्रह कर, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूं।” (भजन 57:1) यहोवा पर उसका भरोसा बेकार नहीं गया। बुढ़ापे तक वह अपनी ‘ज़िंदगी से संतुष्ट रहा।’ (1 इतिहास 23:1, NW) हालाँकि दाऊद ने गंभीर पाप किए, मगर आज भी उसे परमेश्वर के उन गवाहों में से एक माना जाता है जिन्होंने लाजवाब तरीके से विश्वास दिखाया था।—इब्रानियों 11:32.
19. हम खुद को परमेश्वर के ग्रहणयोग्य कैसे ठहरा सकते हैं?
19 जब आप ज़िंदगी के बदलते हालात का सामना करते हैं, तो कभी मत भूलिए कि यहोवा ने जैसे दाऊद को सँभाला, उसे मज़बूत किया और सुधारा, वैसे ही वह आपकी भी मदद करेगा। दाऊद की तरह, प्रेरित पौलुस ने भी ज़िंदगी में कई बदलावों का सामना किया था। मगर वह भी परमेश्वर की आत्मा की मदद से वफादार बना रहा। उसने लिखा: “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।” (फिलिप्पियों 4:12, 13) अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह कामयाब होने में हमारी मदद करेगा। वह चाहता है कि हम ज़िंदगी में कामयाब हों। अगर हम उसका कहना मानें और उसके करीब आते जाएँ, तो वह हमें उसकी मरज़ी पूरी करने की ताकत देगा। और अगर हम हमेशा परमेश्वर की आत्मा पर निर्भर रहें, तो हम अभी और अनंतकाल तक ‘अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य ठहरा’ सकेंगे।—2 तीमुथियुस 2:15.
[फुटनोट]
^ आज की कसौटी के हिसाब से दाऊद का दान, 56 अरब रुपए से ज़्यादा था।
आप क्या जवाब देंगे?
• हम घमंडी होने से कैसे दूर रह सकते हैं?
• हमें क्यों दूसरों से बदला नहीं लेना चाहिए?
• अनुशासन के बारे में हमारा नज़रिया कैसा होना चाहिए?
• हमें धन के बजाय, परमेश्वर पर भरोसा क्यों रखना चाहिए?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 16, 17 पर तसवीर]
दाऊद परमेश्वर की आत्मा पर निर्भर रहा और उसने परमेश्वर की मंज़ूरी पाने की कोशिश की। क्या आप भी ऐसा करते हैं?
[पेज 18 पर तसवीर]
“तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है”