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बदलते संसार की आत्मा का विरोध कीजिए

बदलते संसार की आत्मा का विरोध कीजिए

बदलते संसार की आत्मा का विरोध कीजिए

“हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्‍वर की ओर से है।”—1 कुरिन्थियों 2:12.

1. हव्वा ने किन तरीकों से धोखा खाया?

 “सर्प ने मुझे बहका दिया।” (उत्पत्ति 3:13) इन चंद शब्दों से पहली स्त्री हव्वा ने यह सफाई देने की कोशिश की कि उसने क्यों यहोवा परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की। हालाँकि उसने जो कहा वह सच था, मगर फिर भी उसकी गलती को माफ नहीं किया जा सकता था। प्रेरित पौलुस ने बाद में ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखा: ‘[हव्वा] बहकाने में आ गयी।’ (1 तीमुथियुस 2:14) उसे बहकाकर यकीन दिलाया गया कि अगर वह परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ेगी, यानी मना किया हुआ फल खाएगी तो उसे फायदा होगा, वह परमेश्‍वर के समान हो जाएगी। इतना ही नहीं, बहकानेवाले ने अपनी सच्ची पहचान भी उससे छिपायी। हव्वा इस बात से बेखबर थी कि सर्प तो बस एक ज़रिया था, उससे बात करनेवाला असल में शैतान यानी इब्‌लीस था।—उत्पत्ति 3:1-6.

2. (क) आज शैतान लोगों को कैसे गुमराह कर रहा है? (ख) “संसार की आत्मा” क्या है, और अब हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

2 आदम और हव्वा के समय से लेकर आज तक शैतान लोगों को धोखा देता आया है। दरअसल वह ‘सारे संसार को भरमा’ रहा है। (प्रकाशितवाक्य 12:9) आज भी उसकी चालें बदली नहीं। हालाँकि अब वह लोगों को बहकाने के लिए किसी साँप का इस्तेमाल नहीं करता, मगर वह अपनी पहचान ज़रूर छिपाता है। शैतान लोगों को मनोरंजन, मीडिया और दूसरे तरीकों से यकीन दिला रहा है कि उन्हें परमेश्‍वर के मार्गदर्शन की न तो ज़रूरत है और ना ही उससे कोई फायदा होगा। शैतान, उन्हें बहकाने में इतना कामयाब रहा है कि आज हर कहीं विद्रोह की आत्मा दिखायी देती है, लोग बाइबल के नियमों और उसूलों के खिलाफ काम कर रहे हैं। लोगों के इस रवैए को बाइबल “संसार की आत्मा” कहती है। (1 कुरिन्थियों 2:12) जो परमेश्‍वर को नहीं जानते, उनके विश्‍वास, नज़रिए और व्यवहार पर, संसार की आत्मा ज़बरदस्त असर करती है। यह आत्मा कैसे ज़ाहिर की जाती है और हम इसके बुरे असर का विरोध कैसे कर सकते हैं? आइए जानें।

नैतिक उसूलों का गिरना

3. आज के ज़माने में “संसार की आत्मा” पहले से ज़्यादा क्यों दिखायी दे रही है?

3 आज के ज़माने में “संसार की आत्मा” पहले से कहीं ज़्यादा दिखायी दे रही है। (2 तीमुथियुस 3:1-5) आपने देखा होगा कि दुनिया में नैतिक उसूल कैसे गिरते जा रहे हैं। बाइबल हमें इसकी वजह बताती है। सन्‌ 1914 में परमेश्‍वर के राज्य के स्थापित होने के बाद, स्वर्ग में युद्ध छिड़ा। शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूत उस युद्ध में हार गए और उन्हें पृथ्वी पर फेंक दिया गया। इससे शैतान इतना भड़क उठा कि उसने दुनिया को गुमराह करने की अपनी कोशिशें और भी तेज़ कर दीं। (प्रकाशितवाक्य 12:1-9, 12, 17) वह सभी को, और ‘हो सके तो चुने हुओं को भी भरमाने’ के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है। (मत्ती 24:24) हम परमेश्‍वर के लोग उसका खास निशाना हैं। वह हमारी आध्यात्मिकता को तबाह करने पर तुला है ताकि हम यहोवा का अनुग्रह और हमेशा की ज़िंदगी की आशा खो बैठें।

4. बाइबल के बारे में यहोवा के सेवकों का क्या नज़रिया है, और संसार इसे किस नज़र से देखता है?

4 शैतान, बाइबल पर से लोगों का विश्‍वास तोड़ने की कोशिश कर रहा है, जो हमारे प्यारे सिरजनहार के बारे में सिखानेवाली अनमोल किताब है। हम यहोवा के सेवक बाइबल से बेहद प्यार करते हैं, यह हमारे लिए किसी खज़ाने से कम नहीं। हम जानते हैं कि यह इंसानों का नहीं बल्कि परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया वचन है। (1 थिस्सलुनीकियों 2:13; 2 तीमुथियुस 3:16) मगर शैतान की दुनिया चाहती है कि हम बाइबल के बारे में बिलकुल अलग नज़रिया रखें। मसलन, बाइबल की नुक्‍ताचीनी करनेवाली एक किताब की प्रस्तावना कहती है: “बाइबल किसी भी तरह से ‘पवित्र’ नहीं है, ना ही यह ‘परमेश्‍वर का वचन है।’ इसे ईश्‍वर-प्रेरित संतों ने नहीं, बल्कि ओहदे और ताकत के भूखे पादरियों ने लिखा था।” जो लोग ऐसी बातों में आ जाते हैं, वे बड़ी आसानी से इस झूठी धारणा पर भी यकीन कर लेते हैं कि वे परमेश्‍वर की उपासना जैसे चाहे वैसे कर सकते हैं, या फिर उपासना करने की ज़रूरत ही नहीं है।—नीतिवचन 14:12.

5. (क) बाइबल से जुड़े धर्मों के बारे में एक लेखक ने क्या दावा किया? (ख) दुनिया की कुछ आम धारणाओं और बाइबल में लिखी बातों में क्या फर्क है? (अगले पेज पर दिए बक्स को भी शामिल कीजिए।)

5 बाइबल पर सीधे-सीधे और दूसरे तरीकों से किए हमले की वजह से और इसे मानने का दावा करनेवालों का कपट देखकर कई लोग धर्म को ठुकराने लगे हैं, यहाँ तक कि बाइबल से जुड़े धर्मों को भी। समाचार मीडिया और बड़े-बड़े ज्ञानी और विद्वान, धर्म का खंडन करते हैं। एक लेखक कहता है: “यहूदी और ईसाई धर्म के बारे में आम तौर पर लोग अच्छी राय नहीं रखते। इनमें अच्छाइयाँ ढूँढ़ने की चाहे जितनी भी कोशिश की जाए, ज़्यादा-से-ज़्यादा इनमें पुराने ज़माने के ठाठ-बाट नज़र आते हैं। इनके खयालात तो इतने दकियानूसी हैं कि आज के ज़माने के लिए बिलकुल बेकार हैं। ये ज़्यादा ज्ञान हासिल करने और वैज्ञानिक तरक्की में रुकावट पैदा करते हैं। इन धर्मों को तुच्छ जानने की वजह से हाल के सालों में, इनकी खिल्ली उड़ाई गयी है और इनका खुलकर विरोध किया गया है।” मगर विरोध करनेवाले अकसर वे होते हैं, जो परमेश्‍वर के अस्तित्त्व पर विश्‍वास नहीं करते और ‘व्यर्थ विचारों’ में डूबे रहते हैं।—रोमियों 1:20-22.

6. जिन लैंगिक संबंधों से परमेश्‍वर घृणा करता है, उन्हें संसार किस नज़र से देखता है?

6 इसलिए यह देखकर ताज्जुब नहीं होता कि लोग चालचलन के बारे में परमेश्‍वर के स्तरों से और भी दूर होते जा रहे हैं। मसलन, बाइबल कहती है कि समलैंगिक संबंध रखना “निर्लज्ज” काम है। (रोमियों 1:26, 27) वह यह भी बताती है कि लगातार परगमन और व्यभिचार करनेवाले परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। (1 कुरिन्थियों 6:9) इसके बावजूद, कई देशों में ऐसे लैंगिक संबंधों को सही माना जाता है, और-तो-और किताबों, पत्रिकाओं, गानों, फिल्मों और टी.वी. कार्यक्रमों में इन कामों को बहुत आकर्षक दिखाया जाता है। और जो लोग ऐसे कामों के खिलाफ बात करते हैं, उनके बारे में कहा जाता है कि वे बंददिमागी और नुक्‍ताचीनी करनेवाले हैं और ज़माने के साथ-साथ नहीं चलते। दुनिया यह नहीं समझती कि परमेश्‍वर के स्तर हमारी भलाई के लिए हैं। इसके बजाय, वह उन्हें इंसान की आज़ादी और खुशी में रुकावट समझती है।—नीतिवचन 17:15; यहूदा 4.

7. हमें खुद से क्या सवाल पूछने चाहिए?

7 आज जब हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जो दिनों-दिन परमेश्‍वर के खिलाफ होती जा रही है, तो यह जाँचना अक्लमंदी होगी कि हमारा नज़रिया और हमारे उसूल कैसे हैं। हमें समय-समय पर, प्रार्थना करके पूरी ईमानदारी से अपनी जाँच करनी चाहिए कि कहीं हम यहोवा के सोच-विचारों और स्तरों से धीरे-धीरे बहक तो नहीं रहे। मसलन, हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं ऐसी बातों से मन बहलाने लगा हूँ जिनसे मैं कुछ साल पहले नफरत करता था? परमेश्‍वर जिन कामों की मनाही करता है, क्या मैं उनको हलकी बात समझने लगा हूँ? क्या अब मैं आध्यात्मिक बातों को इतनी गंभीरता से नहीं लेता, जितना पहले लिया करता था? क्या मेरे जीने का तरीका ज़ाहिर करता है कि मैं राज्य के कामों को ज़िंदगी में पहली जगह देता हूँ?’ (मत्ती 6:33) इन सवालों पर गहराई से सोचने से हम संसार की आत्मा का विरोध कर पाएँगे।

‘बहक मत जाओ’

8. एक इंसान यहोवा से बहककर दूर कैसे जा सकता है?

8 प्रेरित पौलुस ने अपने मसीही भाई-बहनों को लिखा: ‘हमें चाहिए कि हम उन बातों पर जो हम ने सुनी हैं, और भी मन लगाएं, ऐसा न हो कि बहकर उन से दूर चले जाएं।’ (इब्रानियों 2:1) जो जहाज़ अपने रास्ते से बहक जाता है, वह अपनी मंज़िल तक नहीं पहुँच पाता। अगर एक कप्तान, हवा और समुद्र के प्रवाह पर ध्यान न दे, तो उसका जहाज़ सही-सलामत बंदरगाह पर पहुँचने के बजाय, किसी समुद्री चट्टान से जा टकराएगा। उसी तरह, अगर हम परमेश्‍वर के वचन की अनमोल सच्चाइयों पर ध्यान न दें, तो हम बड़ी आसानी से यहोवा से दूर चले जाएँगे और हमारा आध्यात्मिक जहाज़ टूटकर डूब जाएगा। ऐसा नुकसान सिर्फ उन लोगों को नहीं होता जो सच्चाई को जानबूझकर ठुकरा देते हैं। आम तौर पर लोग अचानक और जानबूझकर यहोवा को नहीं ठुकराते। दरअसल वे धीरे-धीरे कुछ ऐसी बातों में दिलचस्पी लेने लगते हैं, जो परमेश्‍वर के वचन से उनका ध्यान भटका देती हैं। और इससे पहले कि वे होश में आएँ, वे पाप कर चुके होते हैं। एक ऐसे कप्तान की तरह जो ऊँघ रहा है, वे नींद में पड़ जाते हैं और उनके उठते-उठते देर हो जाती है।

9. यहोवा ने सुलैमान को क्या-क्या आशीषें दीं?

9 सुलैमान की ज़िंदगी पर ध्यान दीजिए। यहोवा ने उसे इस्राएल पर राज करने का अधिकार दिया। उसे मंदिर बनाने की इजाज़त दी और बाइबल के कुछ हिस्सों को लिखने का मार्गदर्शन दिया। यहोवा ने दो मौकों पर उससे बात की, उसे दौलत और शोहरत दी और उसके राज में अमन-चैन की आशीष दी। और सबसे बढ़कर यहोवा ने उसे बेहिसाब बुद्धि दी। बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर ने सुलैमान को बुद्धि दी, और उसकी समझ बहुत ही बढ़ाई, और उसके हृदय में समुद्र तट की बालू के किनकों के तुल्य अनगिनित गुण दिए। और सुलैमान की बुद्धि पूर्व देश के सब निवासियों और मिस्रियों की भी बुद्धि से बढ़कर बुद्धि थी।” (1 राजा 4:21, 29, 30; 11:9) सुलैमान की वफादारी पर शायद ही किसी को शक होता। लेकिन आगे चलकर सुलैमान सच्ची उपासना से बहक गया। इसकी वजह क्या थी?

10. सुलैमान किस हिदायत को मानने से चूक गया, और इसका अंजाम क्या हुआ?

10 सुलैमान को परमेश्‍वर की व्यवस्था की अच्छी जानकारी और समझ थी। इसमें शक नहीं कि उसने उन हिदायतों पर खास ध्यान दिया होगा जो इस्राएल के राजाओं के लिए दर्ज़ की गयी थीं। उनमें से एक हिदायत थी: “[राजा] बहुत स्त्रियां भी न रखे, ऐसा न हो कि उसका मन यहोवा की ओर से पलट जाए।” (व्यवस्थाविवरण 17:14, 17) इतने साफ शब्दों में दिया नियम जानने के बाद भी, सुलैमान ने सात हज़ार पत्नियाँ और तीन सौ रखेलियाँ रखीं। इनमें से कई स्त्रियाँ पराए देवी-देवताओं को पूजती थीं। हम नहीं जानते कि सुलैमान ने क्यों ढेर सारी पत्नियाँ रखीं, ना ही हमें पता है कि उसने इस बात को कैसे जायज़ ठहराया। मगर इतना ज़रूर जानते हैं कि उसने साफ-साफ बताए गए परमेश्‍वर के नियम को तोड़ दिया। और इसका वही अंजाम हुआ जो यहोवा ने पहले से बताया था। हम पढ़ते हैं: “[सुलैमान की] स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया।” (1 राजा 11:3, 4) तो सुलैमान ने परमेश्‍वर से जो बुद्धि पायी वह धीरे-धीरे ही सही मगर मिटती गयी। वह यहोवा से दूर चला गया। कुछ समय बाद, उसमें परमेश्‍वर की आज्ञा मानने और उसे खुश करने के बजाय, झूठी उपासना करनेवाली पत्नियों को खुश करने की इच्छा पैदा हो गयी। यह कितने दुःख की बात है क्योंकि एक वक्‍त सुलैमान ने ही ये शब्द लिखे थे: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा”!—नीतिवचन 27:11.

संसार की आत्मा ताकतवर है

11. हम अपने दिमाग में जो भरते हैं, उससे हमारे सोच-विचार पर कैसा असर पड़ता है?

11 सुलैमान के उदाहरण से हम एक सबक सीखते हैं। अगर हम यह तर्क करें कि हम सच्चाई जानते हैं, इसलिए दुनियावी बातों का हमारे सोच-विचार पर असर नहीं होगा, तो हम खतरे में पड़ सकते हैं। जिस तरह शारीरिक भोजन हमारे शरीर पर असर करता है, उसी तरह मानसिक भोजन हमारे दिमाग पर असर करता है। हम अपने दिमाग को जिस तरह की बातों से भरते हैं, उन्हीं के मुताबिक हमारा सोच-विचार और नज़रिया होगा। इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए, बहुत-सी कंपनियाँ अपनी चीज़ों का विज्ञापन करने के लिए हर साल अरबों रुपए खर्च करती हैं। वे विज्ञापन बहुत सफल होते हैं जिनमें बड़ी चालाकी से ऐसे शब्द इस्तेमाल किए जाते और ऐसी तसवीरें दिखायी जाती हैं जिससे ग्राहक चीज़ों की तरफ लुभाए जाएँ और उनका मन उन्हें पाने के लिए बेताब हो जाए। विज्ञापन बनानेवाले यह भी जानते हैं कि लोग विज्ञापन को एकाध बार देखने से चीज़ें खरीदने के लिए कायल नहीं होंगे। लेकिन जब एक ग्राहक बार-बार किसी चीज़ का विज्ञापन देखता है तो धीरे-धीरे वह उसे पसंद करने लगता है। इसमें शक नहीं कि विज्ञापन सफल होते हैं, वरना कोई उन पर पैसा खर्च नहीं करता। ये लोगों के सोच-विचार और नज़रिए पर गहरा असर करते हैं।

12. (क) शैतान लोगों के सोच-विचार पर कैसे असर करता है? (ख) किस बात से पता चलता है कि सच्चे मसीही भी धोखा खा सकते हैं?

12 शैतान भी विज्ञापन बनानेवाले की तरह, अपने विचारों को बहुत ही लुभावने तरीके से पेश करता है। वह जानता है कि ऐसा करके वह धीरे-धीरे लोगों को अपने जैसा सोचने के लिए कायल कर सकता है। मनोरंजन और दूसरे तरीकों का इस्तेमाल करके शैतान लोगों को बहका रहा है कि वे बुरे को अच्छा मानें और अच्छे को बुरा। (यशायाह 5:20) यहाँ तक कि सच्चे मसीही भी शैतान की झूठी जानकारी से धोखा खा गए हैं। बाइबल चेतावनी देती है: “आत्मा स्पष्टता से कहता है, कि आनेवाले समयों में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्‍वास से बहक जाएंगे। यह उन झूठे मनुष्यों के कपट के कारण होगा, जिन का विवेक मानो जलते हुए लोहे से दागा गया है।”—1 तीमुथियुस 4:1, 2; यिर्मयाह 6:15.

13. बुरी संगति क्या है, और संगति का हम पर कैसा असर पड़ता है?

13 संसार की आत्मा का असर हम सभी पर पड़ सकता है। शैतान के संसार में बहनेवाली हवाएँ और प्रवाह बहुत ताकतवर हैं। इसलिए बाइबल हमें यह बुद्धि भरी सलाह देती है: “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (1 कुरिन्थियों 15:33) संसार की आत्मा ज़ाहिर करनेवाली बुरी संगति में कई बातें और कई लोग शामिल हैं, यहाँ तक कि कलीसिया के कुछ लोगों की संगति भी बुरी हो सकती है। अगर हम यह तर्क करें कि बुरी संगति से हमें नुकसान नहीं होगा, तो हमें यह भी मानना पड़ेगा कि अच्छी संगति से कोई फायदा नहीं होता। ऐसा सोचना कितना गलत है! बाइबल बिलकुल साफ शब्दों में कहती है: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।”—नीतिवचन 13:20.

14. किन तरीकों से हम संसार की आत्मा का विरोध कर सकते हैं?

14 संसार की आत्मा का विरोध करने के लिए ज़रूरी है कि हम बुद्धिमान लोगों के साथ संगति करें, ऐसे लोगों के साथ जो यहोवा की सेवा करते हैं। हमें अपने दिमाग में ऐसी बातें भरनी चाहिए जिनसे हमारा विश्‍वास मज़बूत हो। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरनीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सद्‌गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन्हीं पर ध्यान लगाया करो।” (फिलिप्पियों 4:8) हमें सही-गलत का चुनाव करने की काबिलीयत दी गयी है, इसलिए हम चुन सकते हैं कि हम कैसी बातों पर ध्यान लगाना चाहेंगे। आइए हम हमेशा ऐसी बातों पर ध्यान लगाने का चुनाव करें जो हमें यहोवा के और करीब लाए।

परमेश्‍वर की आत्मा ज़्यादा ताकतवर है

15. प्राचीन कुरिन्थुस के मसीही, वहाँ के बाकी लोगों से कैसे अलग थे?

15 सच्चे मसीही उन लोगों से अलग हैं जो संसार की आत्मा के बहकावे में आ जाते हैं। वे परमेश्‍वर की आत्मा के निर्देशन में चलते हैं। पौलुस ने यह बात कुरिन्थुस की कलीसिया को लिखी थी: “हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्‍वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्‍वर ने हमें दी हैं।” (1 कुरिन्थियों 2:12) प्राचीन कुरिन्थुस में संसार की आत्मा कोने-कोने तक फैली हुई थी। वहाँ कामुकता इतनी ज़्यादा फैली थी कि आगे चलकर “अनैतिक काम करनेवाले” को “कुरिन्थी” कहा जाने लगा। शैतान ने वहाँ के लोगों की आँखों पर परदा डाल रखा था। इसलिए वे सच्चे परमेश्‍वर के बारे में बिलकुल समझ नहीं सके। (2 कुरिन्थियों 4:4) मगर यहोवा ने अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए वहाँ के कुछ लोगों की आँखों पर से परदा हटा दिया और उन्हें सच्चाई का ज्ञान पाने में मदद दी। उसकी आत्मा ने उन्हें ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव करने के लिए प्रेरित किया और मार्गदर्शन दिया। इसलिए वे परमेश्‍वर की मंज़ूरी और आशीषें पा सके। (1 कुरिन्थियों 6:9-11) यह सच है कि संसार की आत्मा ज़बरदस्त थी, मगर यहोवा की आत्मा उससे ज़्यादा प्रबल थी।

16. हम क्या कर सकते हैं ताकि परमेश्‍वर की आत्मा पाएँ और वह हम पर बनी रहे?

16 आज भी ऐसा ही है। यहोवा की पवित्र आत्मा, विश्‍व की सबसे ज़बरदस्त शक्‍ति है और वह ऐसे लोगों को बेझिझक और दिल खोलकर अपनी आत्मा देता है जो विश्‍वास के साथ उससे माँगते हैं। (लूका 11:13) लेकिन परमेश्‍वर की आत्मा पाने के लिए संसार की आत्मा का विरोध करना काफी नहीं है। यह भी ज़रूरी है कि हम नियमित तौर पर परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करें और उसके मुताबिक काम करें ताकि हमारी आत्मा यानी हमारा स्वभाव परमेश्‍वर के सोच-विचार के मुताबिक ढलता जाए। अगर हम ऐसा करें तो यहोवा हमें मज़बूत करेगा। फिर शैतान हमारी आध्यात्मिकता को तबाह करने के लिए चाहे जो भी चाल चले हम उसका सामना कर पाएँगे।

17. लूत के अनुभव से हमें किन बातों का दिलासा मिलता है?

17 हालाँकि मसीही, संसार के भाग नहीं हैं, मगर वे इसी संसार में रहते हैं। (यूहन्‍ना 17:11, 16) हममें से कोई भी संसार की आत्मा से पूरी तरह बच नहीं सकता क्योंकि हमें ऐसे लोगों के साथ काम करना पड़ता है, यहाँ तक कि उनके साथ रहना भी पड़ता है जिन्हें परमेश्‍वर और उसके मार्ग बिलकुल रास नहीं आते। ऐसे में क्या हम लूत की तरह महसूस करते हैं? सदोम में अपने आस-पास के लोगों के दुष्ट कामों को देखकर वह “बहुत दुखी था,” यहाँ तक कि उसके मन को पीड़ा होती थी। (2 पतरस 2:7, 8) अगर हम लूत की तरह बेहद दुःखी हैं, तो हम हौसला रख सकते हैं। यहोवा ने जिस तरह लूत की हिफाज़त की और उसे छुड़ाया, उसी तरह वह हमारी भी मदद कर सकता है। हमारा प्यारा पिता देखता और जानता है कि हम किन हालात में हैं, और हमें आध्यात्मिक रूप से मज़बूत बने रहने के लिए मदद और ताकत दे सकता है। (भजन 33:18, 19) अगर हम उस पर निर्भर रहें, उस पर भरोसा रखें और उससे प्रार्थना करें, तो वह संसार की आत्मा का विरोध करने में ज़रूर हमारी मदद करेगा, फिर चाहे हमारे हालात कितने ही मुश्‍किल क्यों न हों।—यशायाह 41:10.

18. हमें क्यों यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते की कदर करनी चाहिए?

18 एक ऐसे संसार में रहते हुए भी जो परमेश्‍वर से दूर है और शैतान के झाँसे में आ गया है, हम परमेश्‍वर के लोगों के पास सच्चाई का ज्ञान है। इसलिए हम ऐसी खुशी और शांति का अनुभव करते हैं जो इस संसार के पास नहीं है। (यशायाह 57:20, 21; गलतियों 5:22) हम अपनी इस आशा को संजोए रखते हैं कि हमें फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी, जहाँ इस संसार की आत्मा नहीं होगी। इसलिए आइए हम परमेश्‍वर के साथ अपने अनमोल रिश्‍ते की कदर करें और हमेशा चौकन्‍ना रहें ताकि अगर हममें आध्यात्मिक मायने में बहकने की कोई निशानी नज़र आए तो हम तुरंत सुधार कर सकें। हम यहोवा के और भी करीब आते जाएँ, और वह संसार की आत्मा का विरोध करने में हमारी मदद करेगा।—याकूब 4:7, 8.

क्या आप समझा सकते हैं?

• किन तरीकों से शैतान ने लोगों को धोखा देकर उन्हें गुमराह किया है?

• यहोवा से बहकर दूर जाने से हम कैसे बच सकते हैं?

• क्या दिखाता है कि संसार की आत्मा ताकतवर है?

• हम क्या कर सकते हैं ताकि हम परमेश्‍वर की आत्मा पाएँ और वह हम पर बनी रहे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 11 पर चार्ट]

दुनियावी बुद्धि और ईश्‍वरीय बुद्धि में फर्क

कोई भी बात पूरी तरह सच नहीं होती—लोग खुद अपने लिए सच्चाई ईजाद करते हैं।

“[परमेश्‍वर का] वचन सत्य है।”—यूहन्‍ना 17:17.

सही-गलत का फैसला करते वक्‍त अपने मन की बात सुनो।

“मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है।”—यिर्मयाह 17:9.

जो मन में आए वही करो।

“मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।”—यिर्मयाह 10:23.

पैसा है, तो खुशी है।

“रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है।”—1 तीमुथियुस 6:10.

[पेज 10 पर तसवीर]

सुलैमान सच्ची उपासना से बहक गया और झूठे देवताओं को पूजने लगा

[पेज 12 पर तसवीर]

विज्ञापन बनानेवालों की तरह, शैतान संसार की आत्मा फैलाता है। क्या आप उसका विरोध करते हैं?