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एक-दूसरे को मज़बूत कीजिए

एक-दूसरे को मज़बूत कीजिए

एक-दूसरे को मज़बूत कीजिए

“ये ही मुझे मज़बूत करनेवाले सहायक बने।”—कुलुस्सियों 4:11, NW.

1, 2. पौलुस के साथी, खतरे के बावजूद उससे जेल में मिलने क्यों गए?

 एक ऐसे इंसान के साथ दोस्ती निभाना जोखिम भरा है, जो जेल की सज़ा काट रहा है, फिर चाहे उसे झूठे इलज़ामों पर ही जेल में क्यों न डाला गया हो। जब आप उससे मिलने जाएँगे तो जेल के अधिकारी आपको शक की निगाह से देखेंगे और आप पर भी कड़ी नज़र रखेंगे कि कहीं आप कोई जुर्म न करें। इसलिए जेल में रहनेवाले दोस्त से लगातार मिलने और बातचीत करने के लिए आपको हिम्मत की ज़रूरत होगी।

2 हालाँकि ऐसा करना जोखिम भरा है, फिर भी करीब 1,900 साल पहले, प्रेरित पौलुस के कुछ साथियों ने बिलकुल यही किया। जब पौलुस कैद में था तो वे उससे मुलाकात करने से नहीं हिचकिचाए। वे उसके पास इसलिए जाते थे ताकि उसे सांत्वना दें, उसका हौसला बढ़ाएँ और आध्यात्मिक तरीके से उसे मज़बूत करें। उसके ये वफादार साथी कौन थे? और हम उनकी हिम्मत, वफादारी और दोस्ती से क्या सीख सकते हैं?—नीतिवचन 17:17.

“मज़बूत करनेवाले सहायक”

3, 4. (क) पौलुस के पाँच साथी कौन थे और वे उसके लिए क्या बने? (ख) “मज़बूत करनेवाले सहायक” का मतलब क्या है?

3 आइए हम इतिहास के पन्‍ने पलटकर लगभग सा.यु. 60 में जाएँ। प्रेरित पौलुस पर देशद्रोही होने का झूठा इलज़ाम लगाकर उसे रोम की जेल में डाल दिया गया। (प्रेरितों 24:5; 25:11, 12) पौलुस ऐसे पाँच मसीहियों के नाम बताता है जिन्होंने मुसीबत की इस घड़ी में उसकी मदद की। वे हैं: तुखिकुस, जो आसिया के ज़िले से आया उसका निजी दूत और “प्रभु में संगी दास” था; उनेसिमुस जो कुलुस्से का रहनेवाला “विश्‍वासयोग्य और प्रिय भाई” था; अरिस्तर्खुस जो थिस्सलुनीके का रहनेवाला मकिदुनियाई था और एक वक्‍त पौलुस के “साथ बन्दी” था; मरकुस, जो पौलुस के मिशनरी साथी, बरनबास का भाई लगता था और जिसने अपने नाम की सुसमाचार की किताब लिखी; और यूस्तुस जो “परमेश्‍वर के राज्य के लिए” पौलुस का एक सहकर्मी था। इन पाँचों के बारे में पौलुस कहता है: “ये ही मुझे मज़बूत करनेवाले सहायक बने।” (NW)—कुलुस्सियों 4:7-11, NHT.

4 पौलुस ने अपने वफादार दोस्तों से मिली मदद के बारे में एक ज़बरदस्त बात कही। उसने एक यूनानी शब्द (पारेगॉरीया) का इस्तेमाल किया जिसका अनुवाद “मज़बूत करनेवाले सहायक” किया गया है। यह शब्द बाइबल में सिर्फ इसी आयत में आता है। इसके कई मतलब हैं और इसका इस्तेमाल खासकर चिकित्सा के मामले में किया जाता था। * पारेगॉरीया का अनुवाद ‘सांत्वना देना, दर्द कम करना, दिलासा या राहत देना’ किया जा सकता है। पौलुस को इसी तरह की मदद की ज़रूरत थी और उन पाँचों ने उसे यही मदद दी।

पौलुस को “मज़बूत करनेवाले सहायक” की ज़रूरत क्यों थी

5. इसके बावजूद कि पौलुस एक प्रेरित था, उसे किस चीज़ की ज़रूरत पड़ी और हम सभी को समय-समय पर क्या ज़रूरत पड़ती है?

5 कुछ लोग शायद इस बात पर ताज्जुब करें कि पौलुस को भला क्यों मज़बूत किए जाने की ज़रूरत पड़ी, वह तो एक प्रेरित था। मगर यह सच है कि उसे ज़रूरत पड़ी। हालाँकि उसका विश्‍वास बहुत मज़बूत था और उसने बहुत-सी यातनाएँ सहीं, जैसे उसे ‘अनगिनित बार पीटा गया’, (NHT) वह “बार बार मृत्यु के जोखिमों” से बचा और उसने दूसरी कई तकलीफें सहीं। (2 कुरिन्थियों 11:23-27) मगर था तो वह हमारी ही तरह एक इंसान। और सभी इंसानों को कभी-न-कभी सांत्वना की और अपना विश्‍वास मज़बूत करने के लिए दूसरों से मदद की ज़रूरत होती है। यह बात यीशु के बारे में भी सच थी। अपनी आखिरी रात में जब वह गतसमनी बाग में था, तो एक स्वर्गदूत ने आकर “उसे सामर्थ” दी।—लूका 22:43.

6, 7. (क) रोम में किसने पौलुस को निराश किया और किसने उसका हौसला बढ़ाया? (ख) रोम में पौलुस के मसीही भाई किन तरीकों से उसकी मदद करके “मज़बूत करनेवाले सहायक” साबित हुए?

6 यीशु की तरह पौलुस को भी मज़बूत किए जाने की ज़रूरत थी। जब वह कैदी बनकर रोम आया तो उसके अपने जाति-भाइयों यानी यहूदियों ने उसके साथ रूखा व्यवहार किया। उनमें से ज़्यादातर ने राज्य का संदेश ठुकरा दिया। प्रेरितों के काम में दिया वृत्तांत बताता है कि जब यहूदियों के बड़े आदमी उस जगह गए जहाँ पौलुस को बंदी बनाकर रखा गया था, “तब कितनों ने उन बातों को मान लिया, और कितनों ने प्रतीति न की। जब आपस में एक मत न हुए, तो [वे] . . . चले गए।” (प्रेरितों 28:17, 24, 25) पौलुस को यह देखकर कितना दुःख हुआ होगा कि उन यहूदियों ने यहोवा की अपार दया की ज़रा भी कदर नहीं की! उसे जो दर्द महसूस हुआ, उसके बारे में उसने कुछ साल पहले रोम की कलीसिया को एक खत में लिखा: “मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुखता रहता है। क्योंकि मैं यहां तक चाहता था, कि अपने भाइयों [यहूदियों] के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से शापित हो जाता।” (रोमियों 9:2, 3) फिर भी उसे रोम में सच्चे और वफादार साथी मिले जिनका साहस और प्यार देखकर उसके मन को चैन मिला। ये ही उसके सच्चे आध्यात्मिक भाई थे।

7 वे पाँचों भाई मज़बूत करनेवाले सहायक कैसे साबित हुए? पौलुस को कैद में पड़ा देखकर वे उससे कतराकर दूर नहीं भागे। इसके बजाय, उन्होंने खुशी-खुशी पौलुस की सेवा की, उसकी खातिर वे सारे काम किए जिन्हें वह उस हाल में नहीं कर सकता था। मसलन, वे पौलुस के दूत बने और उन्होंने कभी ज़बानी तौर पर उसकी हिदायतें कलीसियाओं को दीं, तो कभी उसकी पत्रियाँ उन तक पहुँचायीं, साथ ही उन्होंने रोम और दूसरे इलाकों के भाइयों के बारे में अच्छी खबरें भी पौलुस को दीं। शायद उन्होंने पौलुस के लिए ज़रूरी चीज़ें भी मुहैया करायीं, जैसे चर्मपत्र, सर्दियों के लिए गरम कपड़े और लिखने के लिए ज़रूरी सामान। (इफिसियों 6:21, 22; 2 तीमुथियुस 4:11-13) जब इन सभी तरीकों से पौलुस की मदद की गयी तो उसका हौसला बुलंद हुआ और वह भी दूसरों के लिए ‘मज़बूत करनेवाला सहायक’ साबित हुआ, यहाँ तक कि कलीसियाओं के लिए भी।—रोमियों 1:11, 12.

“मज़बूत करनेवाले सहायक” कैसे बनें

8. हम पौलुस से क्या सबक सीखते हैं जिसने नम्रता से कबूल किया कि उसे “मज़बूत करनेवाले सहायक” की ज़रूरत है?

8 पौलुस और उसके पाँच साथियों के इस वृत्तांत से हम क्या सीखते हैं? आइए हम खासकर एक सबक पर गौर करें: मुसीबत की घड़ी में दूसरों की मदद करने के लिए साहस और त्याग की भावना ज़रूरी है। और जब हम मुसीबत में होते हैं तो यह कबूल करने के लिए हममें नम्रता होनी चाहिए कि हमें मदद की ज़रूरत है। पौलुस ने न सिर्फ माना कि उसे मदद की ज़रूरत है बल्कि उसने एहसान भरे दिल से मदद कबूल की और मदद करनेवालों की सराहना की। उसने ऐसा नहीं सोचा कि दूसरों की मदद लेना, कमज़ोरी की निशानी या अपमान की बात है। हमें भी ऐसा नहीं सोचना चाहिए। अगर हम सोचते हैं कि हमें कभी-भी दूसरों से हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत नहीं होगी, तो हम यह ज़ाहिर कर रहे होंगे कि हम इंसान नहीं फरिश्‍ता हैं। यीशु की मिसाल याद कीजिए जो दिखाती है कि एक सिद्ध इंसान को भी कभी-कभार मदद की ज़रूरत पड़ सकती है।—इब्रानियों 5:7.

9, 10. जब एक इंसान कबूल करता है कि उसे मदद की ज़रूरत है, तो कौन-से अच्छे नतीजे निकल सकते हैं और इससे परिवार में और कलीसिया में दूसरों पर क्या असर पड़ेगा?

9 कलीसिया के ज़िम्मेदार भाई जब कबूल करते हैं कि उनमें भी कमज़ोरियाँ हैं और वे दूसरों की मदद पर निर्भर हैं, तो अच्छे नतीजे निकल सकते हैं। (याकूब 3:2) इससे ज़िम्मेदार भाइयों और उनके अधीन रहनेवालों के बीच रिश्‍ता मज़बूत होता है और वे एक-दूसरे से दिल खोलकर और प्यार से बात कर पाते हैं। जब प्राचीन नम्रता से दूसरों की मदद लेने को तैयार रहते हैं, तो उनके जैसे हालात से जूझनेवाले बाकी भाई-बहन भी दूसरों से मदद माँगना सीखते हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि कलीसिया में अगुवाई करनेवाले भाई भी दूसरों की तरह आम इंसान हैं और उनसे कोई भी बेझिझक मदद माँग सकता है।—सभोपदेशक 7:20.

10 मसलन, जब बच्चों को मालूम रहेगा कि उनके माता-पिता ने भी बचपन में उनकी तरह आज़माइशों और समस्याओं का सामना किया था, तो उनके लिए माता-पिता से मदद लेना आसान हो जाएगा। (कुलुस्सियों 3:21) इससे माता-पिता और बच्चों के बीच, अच्छी बातचीत का रास्ता खुलेगा। माता-पिता उन्हें कुशलता से बाइबल पर आधारित सलाह दे सकेंगे और बच्चे खुशी-खुशी उसे कबूल कर पाएँगे। (इफिसियों 6:4) उसी तरह, जब कलीसिया के सदस्यों को पता रहेगा कि प्राचीन भी उनकी तरह समस्याओं, चिंताओं और बड़ी-बड़ी मुश्‍किलों का सामना करते हैं, तो उनके लिए प्राचीनों से मदद लेना आसान हो जाएगा। (रोमियों 12:3; 1 पतरस 5:3) इससे प्राचीनों और कलीसिया के बाकी सदस्यों के बीच अच्छी बातचीत हो सकेगी। प्राचीन, बाइबल पर आधारित सलाह दे सकेंगे और भाइयों का विश्‍वास मज़बूत होगा। हमें याद रखना है कि आज हमारे भाई-बहनों को पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत किए जाने की ज़रूरत है।—2 तीमुथियुस 3:1.

11. आज बहुत-से लोगों को “मज़बूत करनेवाले सहायक” की ज़रूरत क्यों है?

11 हम चाहे जो हों, जहाँ भी रहते हों और किसी भी उम्र के हों, हम सभी को कभी-न-कभी तनाव से गुज़रना ही पड़ता है। तनाव, आज की दुनिया का एक हिस्सा है। (प्रकाशितवाक्य 12:12) जब हमारे सामने शरीर या मन को दुःख पहुँचानेवाले हालात पैदा होते हैं, तो हमारे विश्‍वास की परीक्षा होती है। काम की जगह पर, स्कूल में, परिवार में या फिर कलीसिया में हमें परीक्षाओं का सामना करना पड़ सकता है। कभी-कभी गंभीर बीमारी या गुज़रे वक्‍त में हुए किसी हादसे की वजह से भी हम तनाव में पड़ सकते हैं। ऐसे में अगर जीवन-साथी, कोई प्राचीन या दोस्त प्यार के दो शब्द कहकर हमारा हौसला बढ़ाए और हमारी मदद करे, तो मन को कितना चैन मिलेगा! यह ज़ख्म पर मरहम लगाने जैसा होगा! इसलिए अगर आप किसी भाई या बहन को तनाव में देखते हैं, तो उसे मज़बूत करनेवाला सहायक बनिए। और जब खुद आप किसी बड़ी समस्या की वजह से हताश महसूस करते हैं, तो आध्यात्मिक रूप से काबिल भाइयों से मदद माँगिए।—याकूब 5:14,15.

कलीसिया कैसे मदद कर सकती है

12. कलीसिया का हरेक सदस्य, अपने भाइयों को मज़बूत करने के लिए क्या कर सकता है?

12 कलीसिया के सभी लोग, यहाँ तक कि छोटे बच्चे भी, दूसरों को मज़बूत करने के लिए कुछ-न-कुछ कर सकते हैं। मसलन, जब आप बिना नागा सभाओं में और प्रचार में हिस्सा लेते हैं तो यह देखकर दूसरों का विश्‍वास काफी मज़बूत होता है। (इब्रानियों 10:24, 25) इस तरह परमेश्‍वर की पवित्र सेवा में आपका लगातार हिस्सा लेना दिखाता है कि आप यहोवा के वफादार हैं और मुश्‍किलों से जूझते हुए भी आध्यात्मिक तरीके से जागते रहते हैं। (इफिसियों 6:18) सच्चाई के मार्ग पर आपका अटल रहना देखकर दूसरे मज़बूत हो सकते हैं।—याकूब 2:18.

13. कुछ लोग क्यों ठंडे पड़ जाते हैं और उनकी मदद के लिए क्या किया जा सकता है?

13 कभी-कभी ज़िंदगी के दबावों या दूसरी समस्याओं की वजह से कुछ लोग प्रचार में धीमे हो जाते हैं या बिलकुल ठंडे पड़ जाते हैं। (मरकुस 4:18, 19) जो ठंडे पड़ जाते हैं, वे शायद कलीसिया की सभाओं में कभी नज़र न आएँ। मगर उनके दिल में अब भी परमेश्‍वर के लिए प्यार हो सकता है। ऐसे लोगों का विश्‍वास मज़बूत करने के लिए क्या किया जा सकता है? प्राचीन उनसे मुलाकात करके प्यार से उनकी मदद कर सकते हैं। (प्रेरितों 20:35) और कलीसिया के दूसरे सदस्यों से भी उनकी मदद करने की गुज़ारिश की जा सकती है। ऐसे लोगों से मुलाकात करके उनका प्यार से हौसला बढ़ाया जाए, तो यह उनके लिए दवा की तरह काम करेगा और उनका विश्‍वास दोबारा मज़बूत हो सकता है।

14, 15. दूसरों को मज़बूत करने के बारे में पौलुस क्या सलाह देता है? एक ऐसी कलीसिया की मिसाल दीजिए जिसने उसकी सलाह मानी।

14 बाइबल हमें उकसाती है कि हम ‘हताश प्राणियों को सांत्वना दें और कमज़ोरों को सँभालें।’ (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, NW) ये ‘हताश प्राणी’ शायद हिम्मत हार चुके हों और अब अकेले बाधाओं को पार करना उनके बस में न हो। क्या आप उनकी मदद कर सकते हैं? ‘कमज़ोरों को सँभालो,’ इन शब्दों का मतलब है, कमज़ोर इंसान को “थाम लेना” या “उसके संग-संग रहना।” यहोवा अपनी सभी भेड़ों को अनमोल समझता और उनसे प्यार करता है। वह उन्हें तुच्छ नहीं समझता और ना ही चाहता है कि उनमें से कोई उससे दूर चला जाए। क्या आप कलीसिया में आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर भाई को तब तक ‘थामे रह’ सकते हैं जब तक कि वह मज़बूत नहीं हो जाता?—इब्रानियों 2:1.

15 एक प्राचीन ने एक शादी-शुदा जोड़े से मुलाकात की जो छः सालों से सच्चाई में ठंड़े पड़ गए थे। वह प्राचीन लिखता है: “पूरी कलीसिया ने उनके लिए जो प्यार और परवाह दिखायी, उसका उन पर इतना गहरा असर हुआ कि वे झुंड में वापस आ गए।” कलीसिया के सदस्यों की मुलाकातों के बारे में पत्नी ने कैसा महसूस किया? वह कहती है: “जो भाई हमसे मिलने आते थे, न तो उन्होंने और ना ही उनके साथ आनेवाली बहनों ने कभी-भी हममें नुक्स निकालने की कोशिश की या हमें अपनी गलतियों का एहसास दिलाया। इसी वजह से हमारे अंदर सच्चाई के लिए दोबारा जोश पैदा हुआ। वे भाई-बहन हमारे साथ समझदारी से पेश आए और उन्होंने बाइबल से हमारा हौसला बढ़ाया।”

16. मुसीबत की घड़ी में मज़बूत करने के लिए कौन हमेशा तैयार रहता है?

16 इसमें शक नहीं कि एक सच्चा मसीही दूसरों को मज़बूत करनेवाला सहायक बनने में खुशी पाता है। और जब हमारी ज़िंदगी के हालात बदलते हैं, तो हमें भी अपने भाइयों से हौसला-अफज़ाई और मदद की ज़रूरत पड़ सकती है। लेकिन यह भी एक हकीकत है कि हमारे भाई-बहन हमारी मदद करने के लिए शायद हमेशा हमारे साथ न हों। फिर भी, एक शख्स ऐसा है जो हमें मज़बूत करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। वह है, यहोवा परमेश्‍वर।—भजन 27:10.

यहोवा—मज़बूत करनेवाला सबसे भरोसेमंद सोता

17, 18. यहोवा ने अपने बेटे, यीशु मसीह को किन तरीकों से मज़बूत किया?

17 जब यीशु को काठ पर ठोंक दिया गया तो उसने यहोवा को पुकारकर कहा: “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं।” (लूका 23:46) फिर उसने दम तोड़ दिया। उसकी मौत से कुछ ही घंटे पहले जब उसे गिरफ्तार किया गया था, तब उसके जिगरी दोस्त डर के मारे उसे अकेला छोड़कर भाग गए। (मत्ती 26:56) उस घड़ी यीशु की हिम्मत बँधाने के लिए सिर्फ एक ही सहारा रह गया था—स्वर्ग में रहनेवाला उसका पिता। यहोवा पर उसका भरोसा बेमाने साबित नहीं हुआ। उसे अपने पिता के वफादार रहने का प्रतिफल मिला क्योंकि यहोवा ने भी उसके साथ वफादारी निभायी और उसे मज़बूत किया।—भजन 18:25; इब्रानियों 7:26.

18 धरती पर यीशु की सेवा की शुरूआत से लेकर आखिर तक यहोवा ने अपने बेटे को ज़रूरी सहारा दिया और उसकी मदद की, ताकि वह मरते दम तक अपनी खराई बनाए रख सके। मसलन, यीशु ने अपनी सेवा की शुरूआत में यानी बपतिस्मे के तुरंत बाद, अपने पिता की आवाज़ सुनी। पिता ने यीशु पर अपनी मंज़ूरी ज़ाहिर की और उसे अपने प्यार का यकीन दिलाया। जब यीशु को मदद की ज़रूरत पड़ी, तब यहोवा ने उसे मज़बूत करने के लिए स्वर्गदूत भेजे। धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी घड़ी में, जब यीशु पर सबसे बड़ी परीक्षा आयी, तब यहोवा ने उसका गिड़गिड़ाना और उसकी बिनती सुनी। बेशक इन सभी तरीकों से यीशु काफी मज़बूत हुआ।—मरकुस 1:11, 13; लूका 22:43.

19, 20. हम क्यों पक्का यकीन रख सकते हैं कि ज़रूरत की घड़ी में यहोवा हमें मज़बूत करेगा?

19 यहोवा चाहता है कि हम भी शक्‍ति के लिए सबसे ज़्यादा उसी पर भरोसा रखें। (2 इतिहास 16:9) यहोवा विशाल सामर्थ और महाशक्‍ति का सच्चा सोता है और ज़रूरत की घड़ी में हमें मज़बूत करनेवाला सबसे बड़ा सहायक बन सकता है। (यशायाह 40:26) युद्ध, गरीबी, बीमारी, मौत या फिर हमारी असिद्धता की वजह से हम काफी तनाव में पड़ सकते हैं। जब ज़िंदगी की परीक्षाएँ एक “बलवन्त शत्रु” की तरह हम पर हावी होने लगती हैं, तब यहोवा हमारा बल और हमारी सामर्थ बन सकता है। (भजन 18:17; निर्गमन 15:2) उसके पास हमारी मदद करने के लिए एक शक्‍तिशाली सहायक है—उसकी पवित्र आत्मा। अपनी आत्मा के ज़रिए, यहोवा ‘थके हुओं को बल देता है’ ताकि वे ‘उकाबों की नाईं उड़’ सकें।—यशायाह 40:29, 31.

20 परमेश्‍वर की आत्मा, विश्‍व की सबसे शक्‍तिशाली ताकत है। पौलुस ने पूरे यकीन के साथ कहा: “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।” जी हाँ, हमारा स्वर्गीय पिता हमें “असीम सामर्थ” दे सकता है। इसलिए हम तब तक ज़िंदगी के सारे गम सह सकेंगे जब तक कि यहोवा अपने वादे के मुताबिक जल्द ही फिरदौस में, “सब कुछ नया” नहीं कर देता।—फिलिप्पियों 4:13; 2 कुरिन्थियों 4:7; प्रकाशितवाक्य 21:4, 5.

[फुटनोट]

^ डबल्यू. ई. वाइन की वाइन्स्‌ कमप्लीट एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ ओल्ड एण्ड न्यू टेस्टामेंट वर्ड्‌स्‌ कहती है: “शब्द [पारेगॉरीया] को जब क्रिया के रूप में इस्तेमाल किया जाता है तो उसका एक मतलब होता है, दर्द से राहत पहुँचानेवाली दवाइयाँ।”

क्या आपको याद है?

• रोम के भाई, पौलुस के लिए “मज़बूत करनेवाले सहायक” कैसे बने?

• किन तरीकों से हम कलीसिया में “मज़बूत करनेवाले सहायक” बन सकते हैं?

• किस तरह यहोवा हमें मज़बूत करनेवाला सबसे भरोसेमंद सोता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीर]

भाइयों ने पौलुस के साथ दोस्ती निभायी, उसे हौसला दिया और उसके लिए ज़रूरी काम किए, इस तरह वे उसे “मज़बूत करनेवाले सहायक” बने

[पेज 21 पर तसवीर]

झुंड को मज़बूत करने में प्राचीन अगुवाई करते हैं