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यिर्मयाह की तरह साहसी बनिए

यिर्मयाह की तरह साहसी बनिए

यिर्मयाह की तरह साहसी बनिए

“यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह!”—भजन 27:14.

1. यहोवा के साक्षी किन बढ़िया आशीषों का आनंद उठा रहे हैं?

 यहोवा के साक्षी एक आध्यात्मिक फिरदौस में जी रहे हैं। (यशायाह 11:6-9) वे मुसीबतों से घिरे इस संसार में भी, अपने मसीही भाई-बहनों के साथ एक अनोखे आध्यात्मिक माहौल का आनंद उठा रहे हैं, जिनका अपने परमेश्‍वर यहोवा के साथ और एक-दूसरे के साथ शांति का रिश्‍ता है। (भजन 29:11; यशायाह 54:13) और उनके इस आध्यात्मिक फिरदौस की सरहदें बढ़ती जा रही हैं। वे सभी जो ‘परमेश्‍वर की इच्छा पर मन से चलते’ हैं, इस फिरदौस को बढ़ाने में हिस्सा लेते हैं। (इफिसियों 6:6) कैसे? वे खुद बाइबल के उसूलों के मुताबिक जीते हैं और दूसरों को भी ऐसी ज़िंदगी जीना सिखाते हैं। इस तरह वे दूसरों को इस फिरदौस की अनगिनत आशीषें पाने का बुलावा दे रहे हैं।—मत्ती 28:19, 20; यूहन्‍ना 15:8.

2, 3. सच्चे मसीहियों को क्या-क्या सहना पड़ता है?

2 लेकिन आध्यात्मिक फिरदौस में जीने का यह मतलब नहीं कि हम पर कभी परीक्षाएँ नहीं आएँगी। हम अभी तक सिद्ध नहीं बने हैं, इसलिए हमें बीमारी, बुढ़ापे और आखिरकार मौत का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं, आज “अन्तिम दिनों” के बारे में बतायी गयी भविष्यवाणियाँ भी पूरी हो रही हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) युद्ध, अपराध, बीमारियाँ, अकाल और दूसरे बड़े-बड़े संकट दुनिया के हर इंसान पर कहर ढा रहे हैं और यहोवा के साक्षी इनसे बच नहीं सकते।—मरकुस 13:3-10; लूका 21:10, 11.

3 इन सबके अलावा, हम अच्छी तरह जानते हैं कि हालाँकि आध्यात्मिक फिरदौस में प्यार भरा माहौल है, मगर इसके बाहर नफरत की आँधी चल रही है, इसलिए हमें दुनिया के लोगों से कड़ा विरोध सहना पड़ता है। यीशु ने अपने चेलों को आगाह किया था: “इस कारण कि तुम संसार के नहीं, बरन मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है इसी लिये संसार तुम से बैर रखता है। जो बात मैं ने तुम से कही थी, कि दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता, उसको याद रखो: यदि उन्हों ने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे।” (यूहन्‍ना 15:18-21) आज हमारे साथ भी ऐसा ही सलूक किया जा रहा है। बहुत-से लोग या तो हमारे उपासना करने के तरीके को समझ नहीं पाते या उसकी बिलकुल कदर नहीं करते। कुछ लोग हमारी नुक्‍ताचीनी करते हैं, हमारा मज़ाक उड़ाते हैं या जैसे यीशु ने आगाह किया था, हमसे नफरत भी करते हैं। (मत्ती 10:22) अकसर अखबारों और दूसरे संचार माध्यमों के ज़रिए हमारे बारे में गलत जानकारी फैलायी जाती है और हमें बदनाम करने के इरादे से हमारे खिलाफ प्रचार किया जाता है। (भजन 109:1-3) जी हाँ, हम सभी को मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ता है और इस वजह से हो सकता है हममें से कुछ लोग हार मानने लगें। लेकिन हम इन मुश्‍किलों को कैसे सह सकते हैं?

4. मुश्‍किलों को सहने के लिए हम किसकी मदद पर भरोसा रख सकते हैं?

4 मुश्‍किलों को सहने के लिए यहोवा हमारी मदद करेगा। भजनहार ने ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखा: “धर्मी पर बहुत सी विपत्तियाँ पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्‍त करता है।” (भजन 34:19; 1 कुरिन्थियों 10:13) हममें से कई लोग अपने तजुर्बे से बता सकते हैं कि जब हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हैं तो वह हमें हर तरह की तकलीफ सहने की ताकत देता है। यहोवा के लिए हमारा प्यार और भविष्य में मिलनेवाली खुशी, हमें निराशा और डर पर काबू पाने में मदद देती है। (इब्रानियों 12:2) तभी तो हम मुश्‍किलों के दौर में भी निडर खड़े रहते हैं।

परमेश्‍वर के वचन ने यिर्मयाह को मज़बूत किया

5, 6. (क) हमारे पास किन सच्चे उपासकों की मिसालें हैं जो मुश्‍किलों को सह पाए थे? (ख) जब यिर्मयाह को नबी होने के लिए बुलाया गया तो उसने क्या जवाब दिया?

5 शुरू से लेकर आज तक, यहोवा के वफादार सेवकों ने मुश्‍किल हालात में भी खुशी पायी है। उनमें से कुछ लोग ऐसे दौर में जीए थे जब यहोवा का क्रोध अपने ही विश्‍वासघाती लोगों पर भड़का था और उसने उनको सज़ा दी। ऐसे ही कुछ वफादार उपासकों की मिसालें हैं, यिर्मयाह और उसके समय के कुछ लोग, साथ ही पहली सदी के मसीही। बाइबल में इनकी मिसालें इसलिए दर्ज़ की गयी हैं ताकि हम उनसे हौसला पाएँ। हम उनके बारे में अध्ययन करने से काफी कुछ सीख सकते हैं। (रोमियों 15:4) मसलन, यिर्मयाह पर गौर कीजिए।

6 जब यिर्मयाह को यहूदा में एक नबी होने के लिए बुलाया गया तब उसकी उम्र बहुत कम थी। भविष्यवाणी करने का काम इतना आसान नहीं था। उस समय कई लोग झूठे देवी-देवताओं की पूजा करते थे। जब यिर्मयाह ने सेवा शुरू की, तो उस समय वफादार राजा योशिय्याह का राज था, मगर उसके बाद आए सभी राजा बगावती थे। इसके अलावा, नबी और याजक भी, जिन पर प्रजा को सिखाने की ज़िम्मेदारी थी, सच्चाई की राह से भटक चुके थे। (यिर्मयाह 1:1, 2; 6:13; 23:11) ऐसे में जब यहोवा ने यिर्मयाह को नबी होने के लिए बुलाया तो उसे कैसा लगा? वह बहुत डर गया! (यिर्मयाह 1:8, 17) यिर्मयाह ने बाद में बताया कि उस वक्‍त उसने यहोवा से क्या कहा था: “मैं ने कहा, हाय, प्रभु यहोवा! देख, मैं तो बोलना ही नहीं जानता, क्योंकि मैं लड़का ही हूं।”—यिर्मयाह 1:6.

7. यिर्मयाह को अपने इलाके में कैसे लोग मिले और उनका रवैया देखकर उसे कैसा लगा?

7 यिर्मयाह ने जिस इलाके में काम किया, वहाँ के ज़्यादातर लोगों ने उसकी बात नहीं मानी और उसे कई बार कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। एक बार पशहूर नाम के याजक ने उसे मारा और काठ में डाल दिया। यिर्मयाह बताता है कि उस वक्‍त उसने कैसा महसूस किया: ‘मैंने कहा, मैं यहोवा की चर्चा न करूंगा न उसके नाम से बोलूंगा।’ शायद आपने भी कभी ऐसा ही महसूस किया हो और परमेश्‍वर की सेवा छोड़ देने की सोची हो। मगर देखिए कि यिर्मयाह को अपने काम में लगे रहने के लिए किस बात से हौसला मिला। उसने कहा: ‘मेरे हृदय में [परमेश्‍वर के वचन या संदेश] की दशा ऐसी हो गयी मानो मेरी हड्डियों में धधकती हुई आग हो, और मैं अपने को रोकते रोकते थक गया पर मुझ से रहा नहीं गया।’ (यिर्मयाह 20:9) क्या परमेश्‍वर के वचनों का आप पर भी ऐसा ही असर होता है?

यिर्मयाह के साथी

8, 9. (क) नबी ऊरिय्याह में क्या कमज़ोरी नज़र आयी और नतीजा क्या हुआ? (ख) बारूक क्यों निराश हो गया और उसे कैसे मदद दी गयी?

8 यिर्मयाह अपनी भविष्यवाणी के काम में अकेला नहीं था। उसके कुछ साथी भी थे, जिनसे उसे हिम्मत मिली होगी। लेकिन कभी-कभी उसके साथियों ने अक्लमंदी से काम नहीं लिया। ऐसा ही एक साथी था, ऊरिय्याह नबी। शुरू में तो वह ‘यिर्मयाह के जैसे ही’ यरूशलेम और यहूदा के खिलाफ चेतावनियाँ सुनाने में लगा रहा, मगर जब उसने सुना कि राजा यहोयाकीम ने उसे मार डालने का हुक्म दिया है, तो वह डर के मारे मिस्र भाग गया। मगर इससे उसकी जान नहीं बची। राजा के आदमियों ने उसका पीछा किया और वे उसे पकड़कर यरूशलेम वापस ले आए जहाँ उसे मार डाला गया। उसकी मौत से यिर्मयाह को कितना गहरा सदमा पहुँचा होगा!—यिर्मयाह 26:20-23.

9 यिर्मयाह का एक और साथी था, उसका सेक्रेटरी बारूक। बारूक, यिर्मयाह का अच्छा सहायक था मगर एक वक्‍त ऐसा आया कि वह भी आध्यात्मिक नज़रिया रखने से चूक गया। वह शिकायत करने लगा: “हाय मुझ पर! क्योंकि यहोवा ने मुझे दु:ख पर दु:ख दिया है; मैं कराहते कराहते थक गया और मुझे कुछ चैन नहीं मिलता।” बारूक निराश हो गया और आध्यात्मिक बातों के लिए उसकी कदरदानी मिटने लगी। फिर भी, यहोवा ने बारूक का भला चाहते हुए उसे अच्छी सलाह दी और वह सही राह पर वापस आ गया। फिर यहोवा ने उससे वादा किया कि वह यरूशलेम के विनाश से उसे सही सलामत बचाएगा। (यिर्मयाह 45:1-5) बारूक को आध्यात्मिक बातों में दोबारा मज़बूत होते देखकर यिर्मयाह को कितना हौसला मिला होगा!

यहोवा ने अपने नबी की मदद की

10. यहोवा ने यिर्मयाह की मदद करने के क्या वादे किए?

10 सबसे बड़ी बात यह है कि यहोवा ने यिर्मयाह को कभी नहीं त्यागा। उसने अपने नबी की भावनाओं को समझा और उसे ज़रूरी हिम्मत और सहारा दिया। मसलन, यिर्मयाह ने अपनी सेवा की शुरूआत में जब अपनी काबिलीयतों पर शक ज़ाहिर किया, तो यहोवा ने उससे कहा: “तू उनके मुख को देखकर मत डर, क्योंकि तुझे छुड़ाने के लिये मैं तेरे साथ हूं, यहोवा की यही वाणी है।” फिर यहोवा ने यिर्मयाह को उसके काम के बारे में जानकारी दी और कहा: “वे तुझ से लड़ेंगे तो सही, परन्तु तुझ पर प्रबल न होंगे, क्योंकि बचाने के लिये मैं तेरे साथ हूं, यहोवा की यही वाणी है।” (यिर्मयाह 1:8, 19) इससे यिर्मयाह को कितनी तसल्ली मिली होगी! और यहोवा ने अपने वादे को पूरा भी किया।

11. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा ने यिर्मयाह की मदद करने का अपना वादा पूरा किया?

11 यही वजह है कि जब यिर्मयाह को काठ में डालकर सरेआम उसकी खिल्ली उड़ायी गयी तब उसने पूरे यकीन के साथ कहा: “यहोवा मेरे साथ है, वह भयंकर वीर के समान है; इस कारण मेरे सतानेवाले प्रबल न होंगे; वे ठोकर खाकर गिरेंगे। . . . उन्हें बहुत लज्जित होना पड़ेगा।” (यिर्मयाह 20:11) बाद के सालों में जब यिर्मयाह को मार डालने की कोशिशें की गयीं तब भी यहोवा ने उसका साथ निभाया। बारूक की तरह यिर्मयाह भी यरूशलेम के विनाश से ज़िंदा बचा और उसे बंदी नहीं बनाया गया। मगर जिन्होंने उसे सताया और उसकी चेतावनियों को अनसुना कर दिया था, उनमें से कुछ को कत्ल कर दिया गया तो कुछ को बंदी बनाकर ज़बरदस्ती बाबुल ले जाया गया।

12. निराश होने के कई कारण होते हुए भी हमें क्या याद रखना चाहिए?

12 यिर्मयाह की तरह, आज यहोवा के कई साक्षियों को दुःख-तकलीफें सहनी पड़ती हैं। जैसे इस लेख के शुरू में कहा गया है, इनमें से कुछ तकलीफें हमारी अपनी असिद्धता की वजह से आती हैं, तो कुछ तकलीफों के लिए संसार में फैली गड़बड़ी ज़िम्मेदार है। इसके अलावा, हमारे काम का विरोध करनेवालों की वजह से भी हम पर मुश्‍किलें आती हैं। इन सारी तकलीफों को सहते-सहते हम शायद हिम्मत हार बैठें। यिर्मयाह की तरह हमें भी शायद संदेह होने लगे कि क्या हम अपनी सेवा जारी रख पाएँगे। इसमें शक नहीं कि हम कभी-कभी निराश हो सकते हैं। लेकिन ऐसी निराशा से हमारी परीक्षा होती है कि यहोवा के लिए हमारा प्यार कितना गहरा है। इसलिए आइए ठान लें कि हम ऊरिय्याह की तरह निराश होकर कभी यहोवा की सेवा नहीं छोड़ेंगे। इसके बजाय, हम यिर्मयाह जैसे बनेंगे और पूरा यकीन रखेंगे कि यहोवा ज़रूर हमारी मदद करेगा।

निराशा पर कैसे काबू पाएँ

13. हम यिर्मयाह और दाऊद की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

13 यिर्मयाह, नियमित तौर पर यहोवा परमेश्‍वर से बात करता रहा। उसने यहोवा को दिल खोलकर अपनी चिंताएँ बतायीं और हिम्मत के लिए गिड़गिड़ाकर बिनती की। यह हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है। प्राचीन समय का दाऊद भी हिम्मत के लिए यहोवा पर आस लगाए रहा। उसने लिखा: “हे यहोवा, मेरे वचनों पर कान लगा; मेरे ध्यान करने की ओर मन लगा। हे मेरे राजा, हे मेरे परमेश्‍वर, मेरी दोहाई पर ध्यान दे, क्योंकि मैं तुझी से प्रार्थना करता हूं।” (भजन 5:1, 2) बाइबल में ईश्‍वर-प्रेरणा से दर्ज़ दाऊद की जीवन-कहानी दिखाती है कि यहोवा ने बार-बार दाऊद की प्रार्थनाएँ सुनीं और उसकी मदद की। (भजन 18:1, 2; 21:1-5) उसी तरह, जब हमें दबावों का सामना करना बहुत मुश्‍किल लगता है या हमारी समस्याएँ पहाड़ जैसी लगती हैं तब यहोवा से प्रार्थना करने और अपने दिल की बात उसे बताने से हमें काफी सांत्वना मिलेगी। (फिलिप्पियों 4:6, 7; 1 थिस्सलुनीकियों 5:16-18) यहोवा हमारी दुआएँ सुनने से कभी इनकार नहीं करता। इसके बजाय वह हमें आश्‍वासन देता है कि उसको ‘हमारा ध्यान है।’ (1 पतरस 5:6, 7) लेकिन अगर हम यहोवा से प्रार्थना करें और उसकी बात न मानें, तो क्या यह ठीक रहेगा?

14. यहोवा के कहे वचनों का यिर्मयाह पर कैसा असर हुआ?

14 यहोवा हमसे कैसे बात करता है? याद कीजिए कि उसने यिर्मयाह से कैसे बात की थी। यिर्मयाह एक नबी था, इसलिए यहोवा ने सीधे ही उससे बात की। यिर्मयाह बताता है कि यहोवा के शब्दों का उसके दिल पर कैसा असर हुआ: “जब तेरे वचन मेरे पास पहुंचे, तब मैं ने उन्हें मानो खा लिया, और तेरे वचन मेरे मन के हर्ष और आनन्द का कारण हुए; क्योंकि, हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, मैं तेरा कहलाता हूं।” (यिर्मयाह 15:16) जी हाँ, यिर्मयाह इस बात से मगन हुआ कि वह परमेश्‍वर के नाम से जाना जाता है और उसने उसके वचनों को अनमोल समझा। इसलिए, यिर्मयाह को संदेश सुनाने का जो काम सौंपा गया था, उसे उसने बड़ी उत्सुकता से पूरा किया, जैसे बाद में प्रेरित पौलुस ने भी किया था।—रोमियों 1:15, 16.

15. हम यहोवा के वचनों को अपने दिल में कैसे बसा सकते हैं और किन बातों पर गौर करने से हम चुप न रहने का अटल फैसला कर सकेंगे?

15 आज यहोवा सीधे-सीधे किसी से बात नहीं करता। लेकिन उसके कहे वचन बाइबल में मौजूद हैं। इसलिए अगर हम बाइबल का गंभीरता से अध्ययन करेंगे और सीखी बातों पर गहराई से मनन करेंगे, तो परमेश्‍वर के वचन हमारे मन के लिए भी “हर्ष और आनन्द का कारण” बन जाएँगे। और हम इस बात से खुश हो सकते हैं कि जब हम दूसरों को यहोवा के वचन सुनाते हैं तो हम यहोवा के नाम से जाने जाते हैं। हम एक पल के लिए भी इस सच्चाई को न भूलें कि आज हमारे सिवा, कोई और यहोवा के नाम का ऐलान नहीं कर रहा है। सिर्फ यहोवा के साक्षी, उसके ठहराए गए राज्य की खुशखबरी सुनाते और नम्र लोगों को यीशु मसीह के चेले बनना सिखाते हैं। (मत्ती 28:19, 20) वाकई हमें कितना बड़ा सम्मान मिला है! जब यहोवा ने हमारे लिए प्यार दिखाकर, हमें इतना महान काम सौंपा है, तो भला हम चुप कैसे रह सकते हैं?

अपनी संगति के बारे में हम सावधान रहें

16, 17. संगति के बारे में यिर्मयाह का क्या नज़रिया था और हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

16 यिर्मयाह एक और बात बताता है जिसने उसे साहसी बनने में मदद दी। उसने कहा: “मैं मन बहलानेवालों के बीच बैठकर प्रसन्‍न नहीं हुआ; तेरे हाथ के दबाव से मैं अकेला बैठा, क्योंकि तू ने मुझे क्रोध से भर दिया था।” (यिर्मयाह 15:17) यिर्मयाह ने बुरे लोगों की संगति करके बिगड़ जाने के बजाय अकेले रहना बेहतर समझा। आज हम भी यिर्मयाह जैसा नज़रिया रखते हैं। हम प्रेरित पौलुस की यह चेतावनी कभी नहीं भूलते कि “बुरी सँगति अच्छी आदतों को बिगाड़ देती है,” उन अच्छी आदतों को भी जो हमने सालों से कायम की हैं।—1 कुरिन्थियों 15:33, हिन्दुस्तानी बाइबल।

17 बुरी संगति के ज़रिए, संसार की आत्मा हम पर असर कर सकती है और हमारी सोच बिगाड़ सकती है। (1 कुरिन्थियों 2:12; इफिसियों 2:2; याकूब 4:4) इसलिए आइए हम अपनी ज्ञानेंद्रियों को ऐसी तालीम दें कि हम नुकसान पहुँचानेवाली संगति को पहचान सकें और उससे पूरी तरह दूर रहें। (इब्रानियों 5:14) आपको क्या लगता है, अगर आज पौलुस हमारे बीच होता, तो वह ऐसे मसीही से क्या कहता जो अनैतिकता या हिंसा को बढ़ावा देनेवाली फिल्में या खेल देखता है? वह एक ऐसे भाई को क्या सलाह देता जो इंटरनॆट पर अजनबियों के साथ दोस्ती करता है? या एक ऐसे मसीही के बारे में क्या सोचता जो वीडियो गेम खेलने या टी.वी. देखने में तो घंटों बिताता है, मगर उसने निजी अध्ययन करने की अच्छी आदत नहीं डाली है?—2 कुरिन्थियों 6:14ख; इफिसियों 5:3-5, 15, 16.

आध्यात्मिक फिरदौस में ही रहिए

18. आध्यात्मिक मायने में मज़बूत बने रहने में, क्या बात हमारी मदद करेगी?

18 हमें अपना आध्यात्मिक फिरदौस बेहद प्यारा है। आज दुनिया में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं है जिसकी तुलना इस फिरदौस से की जा सके। हम मसीहियों के बीच जो प्यार-मुहब्बत है, और हम एक-दूसरे की जिस तरह परवाह और मदद करते हैं, उसके बारे में अविश्‍वासियों ने भी तारीफ की है। (इफिसियों 4:31, 32) लेकिन इस आध्यात्मिक फिरदौस में रहते हुए भी, हमें निराशा की भावना पर काबू पाने के लिए पहले से ज़्यादा संघर्ष करना होगा। अच्छी संगति, प्रार्थना और अध्ययन की अच्छी आदतें, आध्यात्मिक मायने में हमेशा मज़बूत रहने में हमारी मदद कर सकती हैं। ये हमें इतना मज़बूत बना सकती हैं कि हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखकर किसी भी परीक्षा का डटकर सामना कर सकेंगे।—2 कुरिन्थियों 4:7, 8.

19, 20. (क) धीरज धरने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? (ख) अगला लेख खासकर किसे ध्यान में रखकर लिखा गया है, साथ ही इसे पढ़ने में और किन्हें दिलचस्पी होगी?

19 जो लोग बाइबल के संदेश से नफरत करते हैं, उनसे हमें कभी नहीं डरना चाहिए और ना ही उनकी वजह से अपने विश्‍वास में कमज़ोर पड़ना चाहिए। यिर्मयाह को सतानेवाले दुश्‍मनों की तरह, आज जो हमसे लड़ते हैं, वे असल में परमेश्‍वर के खिलाफ लड़ते हैं। वे कभी जीत नहीं पाएँगे। यहोवा हमारे दुश्‍मनों से कहीं ज़्यादा शक्‍तिशाली है। वह हमसे कहता है: “यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह!” (भजन 27:14) आइए हम दिल की गहराइयों से यहोवा की बाट जोहते रहें और ठान लें कि हम भलाई करना कभी नहीं छोड़ेंगे। यिर्मयाह और बारूक की तरह हम भी पूरा भरोसा रखें कि अगर हम हिम्मत न हारें तो अपनी मेहनत का फल ज़रूर पाएँगे।—गलतियों 6:9.

20 आज कई मसीहियों को निराशा की भावना पर काबू पाने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ता है। खासकर जवानों के सामने ऐसी परीक्षाएँ और मुश्‍किलें आती हैं जिनका शायद दूसरों को सामना न करना पड़ता हो। लेकिन उनके सामने कई बढ़िया मौके भी खुले हैं। अगला लेख खास तौर से हमारे जवानों को ध्यान में रखकर लिखा गया है। इसे पढ़ने में माता-पिताओं और कलीसिया के बाकी समर्पित लोगों को भी दिलचस्पी होगी, जो अपनी बातचीत और मिसाल के ज़रिए और सीधे-सीधे जवानों की मदद कर सकते हैं।

आपका जवाब क्या होगा?

• हम निराश करनेवाले हालात की उम्मीद क्यों कर सकते हैं और मदद के लिए हमें किस पर भरोसा रखना चाहिए?

• यिर्मयाह ने एक मुश्‍किल ज़िम्मेदारी को निभाते हुए भी निराशा पर जीत कैसे पायी?

• मुश्‍किलों के दौर में भी क्या बात हमारे मन को “हर्ष और आनन्द” से भर सकती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

यिर्मयाह ने सोचा कि वह नबी बनने के लिए अभी बहुत छोटा है और उसे तजुर्बा नहीं है

[पेज 10 पर तसवीर]

ज़ुल्म सहते वक्‍त भी यिर्मयाह जानता था कि यहोवा उसके साथ एक “भयंकर वीर के समान” था