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बुज़ुर्ग जनों की देखभाल करना—एक मसीही ज़िम्मेदारी

बुज़ुर्ग जनों की देखभाल करना—एक मसीही ज़िम्मेदारी

बुज़ुर्ग जनों की देखभाल करना—एक मसीही ज़िम्मेदारी

“तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूंगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूंगा।”—यशायाह 46:4.

1, 2. स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता, कैसे इंसानी माता-पिताओं से बढ़कर अपने बच्चों की देखभाल करता है?

 प्यार करनेवाले माता-पिता अपने बच्चों को बड़े नाज़ों से पालते हैं। उनके पैदा होने से लेकर लड़कपन और जवानी तक वे उनकी ज़रूरतें पूरी करते हैं। और जब बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं और अपना घर बसा लेते हैं, तब भी वे उनका ख्याल रखते और उनकी मदद करते हैं।

2 लेकिन माता-पिता अपने बच्चों के लिए उतना सब नहीं कर पाते जितना वे चाहते हैं क्योंकि इंसानों की कुछ सीमाएँ होती हैं। लेकिन स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता, हमेशा अपने वफादार सेवकों की देखभाल और मदद करने के काबिल है। उसने प्राचीन समय में अपनी चुनी हुई प्रजा से कहा था: “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूंगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूंगा।” (यशायाह 46:4) इन शब्दों से बुज़ुर्ग मसीहियों को कितनी हिम्मत मिलती है! जो यहोवा के वफादार रहते हैं, उन्हें वह कभी नहीं छोड़ता। इसके बजाय, उसका वादा है कि वह उन्हें ज़िंदगी भर, जी हाँ बुढ़ापे में भी सँभाले रहेगा, उनकी मदद करेगा और सही राह दिखाएगा।—भजन 48:14.

3. इस लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?

3 यहोवा की तरह हम भी बुज़ुर्गों के लिए प्यार और परवाह कैसे दिखा सकते हैं? (इफिसियों 5:1, 2) आइए देखें कि बड़े बच्चे, कलीसिया के ओवरसियर और हर मसीही, दुनिया भर में फैली हमारी बिरादरी के बुज़ुर्ग सदस्यों की किन तरीकों से देखभाल कर सकते हैं।

बच्चों के नाते हमारी ज़िम्मेदारी

4. अपने माता-पिता की तरफ, मसीही बच्चों की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?

4 “अपनी माता और पिता का आदर कर।” (इफिसियों 6:2; निर्गमन 20:12) प्रेरित पौलुस ने इब्रानी शास्त्र से इन सरल और गहरा अर्थ रखनेवाले शब्दों का हवाला देकर बच्चों को याद दिलाया कि माता-पिता की तरफ उनकी क्या ज़िम्मेदारी बनती है। लेकिन ये शब्द बूढ़े माता-पिता की देखभाल करने के मामले में कैसे लागू होते हैं? इस सवाल का जवाब पाने में, मसीह से पहले के ज़माने का एक उदाहरण हमारी मदद करेगा।

5. (क) क्या दिखाता है कि यूसुफ बेटे होने का अपना फर्ज़ नहीं भूला? (ख) अपने माता-पिता का आदर करने में क्या शामिल है और इस मामले में यूसुफ ने कैसी बढ़िया मिसाल रखी?

5 यूसुफ को 20 से ज़्यादा सालों तक अपने बूढ़े पिता याकूब की कोई खबर नहीं थी। लेकिन सबूत दिखाते हैं कि अपने पिता याकूब के लिए उसका प्यार कभी कम नहीं हुआ। दरअसल जब यूसुफ ने अपने भाइयों पर खुद को ज़ाहिर किया, तब उसने पूछा: “क्या मेरा पिता अब तक जीवित है?” (उत्पत्ति 43:7, 27; 45:3) उस वक्‍त कनान देश में अकाल पड़ा था। इसलिए यूसुफ ने अपने पिता को यह कहला भेजा: “तू मेरे पास बिना बिलम्ब किए चला आ। और तेरा निवास गोशेन देश में होगा; और तू . . . मेरे निकट रहेगा। . . . मैं वहीं तेरा पालन पोषण करूंगा।” (उत्पत्ति 45:9-11; 47:12) जी हाँ, बूढ़े माता-पिता का आदर करने में यह भी शामिल है कि हम उनकी सुरक्षा का ध्यान रखें और जब वे अपने लिए रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम करने की हालत में नहीं होते, तब हम उनकी मदद करें। (1 शमूएल 22:1-4; यूहन्‍ना 19:25-27) यूसुफ ने यह ज़िम्मेदारी खुशी-खुशी कबूल की।

6. यूसुफ ने अपने पिता के लिए सच्चा प्यार कैसे दिखाया और हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

6 यहोवा की आशीष से, यूसुफ मिस्र का एक दौलतमंद और शक्‍तिशाली अधिकारी बन गया था। (उत्पत्ति 41:40) लेकिन उसने ऐसा नहीं सोचा कि मैं इतना बड़ा आदमी हूँ और मेरा पिता तो 130 साल का बूढ़ा है, उसका आदर करना मेरी शान के खिलाफ होगा, या मुझ पर इतनी ज़िम्मेदारियाँ हैं कि इन सब के लिए मेरे पास वक्‍त नहीं है। इसके बजाय, जब यूसुफ को पता चला कि याकूब (या इस्राएल) आ रहा है, तो वह “अपना रथ जुतवाकर अपने पिता इस्राएल से भेंट करने के लिये गोशेन देश को गया, और उस से भेंट करके उसके गले से लिपटा, और कुछ देर तक उसके गले से लिपटा हुआ रोता रहा।” (उत्पत्ति 46:28, 29) यूसुफ ने ऐसा सिर्फ एक दस्तूर के नाते नहीं किया। वह सचमुच अपने बूढ़े पिता से बहुत प्यार करता था और अपना यह प्यार ज़ाहिर करने में उसने शर्मिंदगी महसूस नहीं की। अगर हमारे माता-पिता बूढ़े हो गए हैं, तो क्या हम भी दिल खोलकर उनके लिए प्यार ज़ाहिर करते हैं?

7. याकूब ने क्यों चाहा कि उसे कनान में दफनाया जाए?

7 याकूब ने अपनी आखिरी साँस तक यहोवा के लिए सच्ची भक्‍ति दिखायी थी। (इब्रानियों 11:21) परमेश्‍वर के वादों पर पक्का भरोसा होने की वजह से उसने यह बिनती की कि उसे कनान देश में दफनाया जाए। काफी खर्च और मेहनत के बावजूद यूसुफ ने अपने पिता की यह ख्वाहिश पूरी की और इस तरह उसका आदर किया।—उत्पत्ति 47:29-31; 50:7-14.

8. (क) बूढ़े माता-पिता की देखभाल करने के लिए खासकर कौन-सी बात हमें उकसाएगी? (ख) एक पूरे समय के सेवक ने अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल करने के लिए क्या किया? (पेज 17 पर दिया बक्स देखिए।)

8 अपने पिता की देखभाल करने के लिए किस बात ने यूसुफ को उकसाया? यह सच है कि वह अपने पिता से प्यार करता और उसका आभार मानता था क्योंकि उसी की बदौलत उसे ज़िंदगी मिली थी। लेकिन इसके अलावा, यूसुफ के दिल में ज़रूर यहोवा को खुश करने की गहरी इच्छा भी रही होगी। हमारे अंदर भी ऐसी इच्छा होनी चाहिए। पौलुस ने लिखा: “यदि किसी विधवा के लड़केबाले या नातीपोते हों, तो वे पहिले अपने ही घराने के साथ भक्‍ति का बर्ताव करना, और अपने माता-पिता आदि को उन का हक्क देना सीखें, क्योंकि यह परमेश्‍वर को भाता है।” (1 तीमुथियुस 5:4) जी हाँ, दिल में यहोवा के लिए प्यार, श्रद्धा और भय होने से हम ज़रूर अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल करेंगे, फिर चाहे इसके लिए हमें कितनी ही तकलीफें क्यों न झेलनी पड़ें। *

प्राचीन अपनी परवाह कैसे ज़ाहिर करते हैं

9. यहोवा ने झुंड की रखवाली करने के लिए, जिसमें बुज़ुर्ग मसीही भी हैं, किसे ठहराया है?

9 लंबी ज़िंदगी जीने के बाद याकूब जब अपनी मौत के करीब था तो उसने यहोवा के बारे में कहा कि “परमेश्‍वर मेरे जन्म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है।” (उत्पत्ति 48:15) आज यहोवा, मसीही ओवरसियरों यानी प्राचीनों के ज़रिए धरती पर मौजूद अपने सेवकों की चरवाही करता है। ये प्राचीन, यहोवा के बेटे और ‘प्रधान रखवाले’ यीशु मसीह के निर्देशन में काम करते हैं। (1 पतरस 5:2-4) ओवरसियर, झुंड के बुज़ुर्ग सदस्यों की देखभाल करते वक्‍त यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

10. बुज़ुर्ग मसीहियों को आर्थिक मदद देने के लिए क्या किया गया? (पेज 19 पर दिया बक्स देखिए।)

10 मसीही कलीसिया की शुरूआत के कुछ ही समय बाद, प्रेरितों ने ‘पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण रहनेवाले सात सुनाम पुरुषों को’ यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि वे “प्रति दिन” ज़रूरतमंद मसीही विधवाओं को भोजन बाँटने के काम की देखरेख करें। (प्रेरितों 6:1-6) बाद में पौलुस ने ओवरसियर, तीमुथियुस को हिदायत दी कि वह अच्छी मिसाल रखनेवाली बुज़ुर्ग विधवाओं के नाम उन लोगों के नामों की सूची में शामिल करें जो आर्थिक मदद पाने के हकदार हैं। (1 तीमुथियुस 5:3, 9, 10) उसी तरह, आज कलीसिया के ओवरसियर ज़रूरत पड़ने पर बुज़ुर्ग मसीहियों की मदद करने के लिए खुशी-खुशी इंतज़ाम करते हैं। लेकिन वफादार बुज़ुर्ग जनों की मदद करने में और भी कई बातें शामिल हैं।

11. यीशु ने उस ज़रूरतमंद विधवा के बारे में क्या कहा जिसने एक छोटा-सा दान दिया?

11 यीशु, धरती पर अपनी सेवा के आखिर में मंदिर में बैठा “देख रहा था, कि लोग मन्दिर के भण्डार में किस प्रकार पैसे डालते हैं।” तभी उसका ध्यान किसी पर गया। वृत्तांत कहता है: “एक कंगाल विधवा ने आकर दो दमड़ियां, जो एक अधेले के बराबर होती हैं, डालीं।” तब यीशु ने अपने चेलों को बुलाकर उनसे कहा: “मैं तुम से सच कहता हूं, कि मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है। क्योंकि सब ने अपने धन की बढ़ती में से डाला है, परन्तु इस ने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात्‌ अपनी सारी जीविका डाल दी है।” (मरकुस 12:41-44) विधवा ने जो दान दिया, उसकी कीमत तो ना के बराबर थी, मगर यीशु जानता था कि स्वर्ग में रहनेवाले उसके पिता की नज़र में सच्ची भक्‍ति से किया गया ऐसा काम बहुत मायने रखता है। उस विधवा की उम्र जो भी रही हो मगर यीशु ने उसके भले काम को अनदेखा नहीं किया।

12. बुज़ुर्ग मसीही जो भी सेवा करते हैं, उसके लिए प्राचीन अपनी कदरदानी कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

12 यीशु की तरह, मसीही ओवरसियर भी बुज़ुर्ग जनों के उन कामों को नज़रअंदाज़ नहीं करते जो वे सच्ची उपासना को बढ़ाने के लिए करते हैं। बुज़ुर्ग जन, जिस तरह प्रचार और सभाओं में हिस्सा लेते हैं, कलीसिया के लोगों पर अच्छा असर डालते और धीरज धरते हैं, उसके लिए प्राचीनों को उनकी सराहना करनी चाहिए। अगर प्राचीन सच्चे दिल से उनकी तारीफ करें, तो वे अपनी पवित्र सेवा के बारे में “गर्व” महसूस करेंगे, और यह सोचकर निराश नहीं होंगे कि दूसरे उनसे ज़्यादा कर रहे हैं या वे खुद पहले के जितनी सेवा नहीं कर पा रहे हैं।—गलतियों 6:4.

13. किन तरीकों से प्राचीन, बुज़ुर्ग जनों की काबिलीयतों और तजुर्बे से फायदा पा सकते हैं?

13 प्राचीन, बुज़ुर्ग मसीहियों के तजुर्बे और उनकी काबिलीयतों से सीखकर उनकी अनमोल सेवा की कदर कर सकते हैं। जो बुज़ुर्ग अच्छी मिसाल रखते हैं, उन्हें कभी-कभी प्रदर्शन या इंटरव्यू के लिए चुना जा सकता है। एक प्राचीन कहता है: “जब भी मैं ऐसे बुज़ुर्ग भाई या बहन का इंटरव्यू लेता हूँ जिसने सच्चाई में अपने बच्चों की परवरिश की है, तो हाज़िर लोग अपनी कुर्सियों पर सीधे होकर बैठ जाते हैं और बड़े ध्यान से सुनते हैं।” एक और कलीसिया के प्राचीनों ने रिपोर्ट दी कि 71 साल की एक बुज़ुर्ग पायनियर बहन, ऐसे प्रचारकों को नियमित तौर पर सेवा करने में मदद दे पायी है जो धीमे पड़ गए थे। वह उन्हें “बुनियादी” मसीही काम करने का भी बढ़ावा देती है, जैसे बाइबल और दैनिक पाठ पढ़ना और पढ़ी हुई बातों पर मनन करना।

14. प्राचीनों के एक निकाय ने अपने एक बुज़ुर्ग साथी ओवरसियर के लिए कैसे कदरदानी ज़ाहिर की?

14 प्राचीन, अपने उन साथी प्राचीनों की मेहनत की भी कदर करते हैं जिनकी उम्र ढल चुकी है। ज़्होज़े जिसकी उम्र 70 से ज़्यादा है, उसने दशकों से प्राचीन की हैसियत से सेवा की है। हाल ही में उसका एक बड़ा ऑपरेशन हुआ। यह देखते हुए कि उसे ठीक होने में काफी समय लगेगा, उसने सोचा कि वह प्रिसाइडिंग ओवरसियर होने की अपनी ज़िम्मेदारी छोड़ देगा। ज़्होज़े कहता है: “मेरे इस विचार का दूसरे प्राचीनों पर जो असर हुआ, उसे देखकर मैं दंग रह गया। मेरा सुझाव मानने की बजाए उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या वे किसी तरह से मेरी मदद कर सकते हैं, ताकि मैं अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाना जारी रखूँ।” अपने से कम उम्र के एक प्राचीन की मदद से, ज़्होज़े एक प्रिसाइडिंग ओवरसियर के नाते खुशी-खुशी सेवा कर सका और इससे पूरी कलीसिया को फायदा हुआ। ज़्होज़े का एक साथी प्राचीन कहता है: “एक प्राचीन के नाते, ज़्होज़े जो सेवा करता है, कलीसिया के भाई उसकी बहुत कदर करते हैं। उसके तजुर्बे और विश्‍वास में उसकी अच्छी मिसाल की वजह से भाई उससे बेहद प्यार करते और उसका आदर करते हैं। वह हमारी कलीसिया के लिए एक आशीष है।”

एक-दूसरे की परवाह करना

15. सभी मसीहियों को अपनी कलीसिया के बुज़ुर्गों की खैरियत के बारे में क्यों फिक्रमंद होना चाहिए?

15 बुज़ुर्गों की खैरियत के बारे में सिर्फ उनके बच्चों और ठहराए गए सेवकों को ही फिक्रमंद नहीं होना चाहिए। पौलुस ने मसीही कलीसिया की तुलना इंसान के शरीर के साथ करते हुए कहा: “परमेश्‍वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी बहुत आदर हो। ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें।” (1 कुरिन्थियों 12:24, 25) मसीही कलीसिया तभी एकता से काम कर सकेगी जब उसका हर सदस्य दूसरे सदस्यों के बारे में, जिनमें बुज़ुर्ग जन भी हैं, चिंता करेगा।—गलतियों 6:2.

16. मसीही सभाओं में हम बुज़ुर्गों में दिलचस्पी कैसे दिखा सकते हैं?

16 मसीही सभाओं में हमें बुज़ुर्ग जनों में दिलचस्पी दिखाने का बढ़िया मौका मिलता है। (फिलिप्पियों 2:4; इब्रानियों 10:24, 25) क्या हम इन मौकों पर बुज़ुर्गों से बात करने के लिए समय निकालते हैं? उनकी तबीयत के बारे में पूछना तो ठीक है, लेकिन क्या इसके अलावा हम उन्हें “कोई आत्मिक बरदान” भी दे सकते हैं, जैसे कोई अच्छा अनुभव उन्हें बता सकते हैं या कोई आध्यात्मिक विचार उनके साथ बाँट सकते हैं? कुछ बुज़ुर्ग ज़्यादा चल-फिर नहीं सकते, इसलिए यह उम्मीद करने की बजाए कि वे हमारे पास आएँ, अच्छा होगा कि हम खुद उनके पास जाकर बात करें। जिस बुज़ुर्ग भाई या बहन को सुनने में दिक्कत होती है, उससे बात करते वक्‍त हमें धीरे-धीरे और साफ बोलना चाहिए। और अगर हम चाहते हैं कि हम सचमुच ‘आपस में प्रोत्साहित किए जाएं’ तो हमें उनकी बातें भी ध्यान से सुननी चाहिए।—रोमियों 1:11, 12, NHT.

17. जो बुज़ुर्ग मसीही घर से कहीं आ-जा नहीं सकते, उनके लिए हम परवाह कैसे दिखा सकते हैं?

17 जो बुज़ुर्ग जन मसीही सभाओं में नहीं आ सकते उनके लिए क्या किया जा सकता है? याकूब 1:27 दिखाता है कि “अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि” लेना हम सबका फर्ज़ है। जिस यूनानी क्रियापद का अनुवाद ‘सुधि लेना’ किया गया है इसका एक और मतलब है, “मिलने जाना।” (प्रेरितों 15:36) जब हम बुज़ुर्ग भाई-बहनों से मिलने जाते हैं, तो उन्हें क्या ही खुशी होती है! सामान्य युग 65 के आस-पास जब “बूढ़े” पौलुस को रोम में कैद किया गया, तो वह बिलकुल अकेला हो गया था। वह अपने सहकर्मी तीमुथियुस को देखने के लिए बेताब था, इसलिए उसने तीमुथियुस को लिखा: “मेरे पास शीघ्र आने का प्रयत्न कर।” (फिलेमोन 9; 2 तीमुथियुस 1:3, 4; 4:9) आज कुछ बुज़ुर्ग सचमुच कैद में तो नहीं हैं, लेकिन खराब सेहत की वजह से कहीं आ-जा नहीं सकते। वे भी हमसे मानो कह रहे हैं: ‘मुझसे जल्द-से-जल्द मिलने की कोशिश कीजिए।’ क्या हम उनकी इस गुज़ारिश को पूरा करते हैं?

18. जब हम अपने बुज़ुर्ग भाई-बहनों से मिलने जाते हैं, तो उन्हें क्या फायदे होते हैं?

18 एक बुज़ुर्ग भाई या बहन से मिलने पर उन्हें जो फायदा होता है, उसे कभी कम मत समझिए। जब उनेसिफुरुस नाम का मसीही रोम में था, तो उसने पौलुस को ढूँढ़ने के लिए बहुत कोशिश की और उसे पाने के बाद ‘बहुत बार उसके जी को ठंडा किया।’ (2 तीमुथियुस 1:16, 17) एक बुज़ुर्ग बहन कहती है, “मुझे नौजवान भाई-बहनों के साथ वक्‍त बिताना बहुत पसंद है। सबसे ज़्यादा मुझे यह बात अच्छी लगती है कि वे मेरे साथ ऐसे पेश आते हैं मानो मैं उनकी घर की सदस्य हूँ। इससे मुझे बहुत हिम्मत मिलती है।” एक और बुज़ुर्ग मसीही कहती है: “जब कोई मुझे कार्ड भेजता है, मेरे साथ फोन पर चंद मिनट बातें करता या थोड़ी देर के लिए मुझसे मिलने आता है, तो मुझे बहुत खुशी होती है। यह सब मेरे मन को ताज़ी हवा की तरह ठंडक पहुँचाता है।”

देखभाल करनेवालों को यहोवा प्रतिफल देता है

19. बुज़ुर्ग जनों की सेवा करने से कौन-सी आशीषें मिलती हैं?

19 बुज़ुर्ग भाई-बहनों की सेवा करने से कई आशीषें मिलती हैं। उनके साथ संगति करना और उनके ज्ञान और तजुर्बे से फायदा पाना अपने आप में एक अनोखी आशीष है। जो उनकी सेवा करते हैं, वे ऐसी गहरी खुशी पाते हैं जो दूसरों को देने से मिलती है, साथ ही उन्हें इस बात से अंदरूनी शांति महसूस होती है कि वे बाइबल में बताया अपना फर्ज़ पूरा कर रहे हैं। (प्रेरितों 20:35) इतना ही नहीं, बुज़ुर्ग जनों की सेवा करनेवालों को यह सोचकर डरने की ज़रूरत नहीं कि जब वे बूढ़े होंगे तो उनकी देखभाल करनेवाला कोई होगा या नहीं। परमेश्‍वर का वचन यकीन दिलाता है: “उदार प्राणी हृष्ट पुष्ट हो जाता है, और जो औरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी।”—नीतिवचन 11:25.

20, 21. जो बुज़ुर्गों की देखभाल करते हैं, उन्हें यहोवा किस नज़र से देखता है और हमें क्या ठान लेना चाहिए?

20 परमेश्‍वर का भय माननेवाले बच्चे, ओवरसियर और दूसरे मसीही, जब बुज़ुर्ग भाई-बहनों की मदद करते हैं, तो यहोवा उन्हें प्रतिफल देता है। उनकी देखभाल करनेवाले दरअसल इस नीतिवचन के मुताबिक काम कर रहे हैं: “जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है, और वह अपने इस काम का प्रतिफल पाएगा।” (नीतिवचन 19:17) अगर प्यार हमें कंगालों और गरीबों की भलाई करने के लिए उकसाता है तो परमेश्‍वर हमारे भले काम को अपने पर उधार समझता है, जिसे वह ढेरों आशीषें देकर चुकाता है। उसी तरह जब हम बुज़ुर्ग भाई-बहनों की देखभाल करते हैं, तब भी वह बदले में हमें आशीष देता है। इन बुज़ुर्ग जनों में से कई लोग ‘इस जगत के मामले में कंगाल हैं मगर विश्‍वास में धनी हैं।’—याकूब 2:5.

21 जब परमेश्‍वर बदले में प्रतिफल देता है तो बड़ी उदारता से देता है! उसकी आशीषों में से एक है, हमेशा की ज़िंदगी। यहोवा के ज़्यादातर सेवकों को धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी जहाँ विरासत में मिले पाप के अंजामों को मिटा दिया जाएगा और वफादार बुज़ुर्ग दोबारा जवान और चुस्त-दुरुस्त हो जाएँगे। (प्रकाशितवाक्य 21:3-5) खुशियों भरे उस समय का इंतज़ार करते हुए, आइए हम बुज़ुर्ग जनों की देखभाल करने की अपनी मसीही ज़िम्मेदारी को निभाते रहें।

[फुटनोट]

^ बूढ़े माता-पिता की देखभाल करने के बारे में कारगर सुझावों के लिए, फरवरी 8, 1994 की सजग होइए! के पेज 3-10 देखिए।

आपके जवाब क्या हैं?

• बच्चे अपने बूढ़े माता-पिता का आदर कैसे कर सकते हैं?

• प्राचीन, झुंड के बुज़ुर्ग सदस्यों के लिए अपनी कदरदानी कैसे दिखाते हैं?

• हर मसीही, बुज़ुर्गों में सच्ची दिलचस्पी कैसे दिखा सकता है?

• बुज़ुर्ग मसीहियों की देखभाल करने से क्या आशीषें मिलती हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर बक्स]

जब उसके माता-पिता को मदद की ज़रूरत पड़ी

सन्‌ 1999 में फिलिप लाइबीरिया में, स्वयंसेवक के तौर पर निर्माण-काम में लगा हुआ था। उसी दौरान उसे खबर मिली कि उसके पिता बहुत बीमार हैं। उसे यकीन था कि उसकी माँ अकेले पिता की देखभाल नहीं कर पाएगी, इसलिए उसने पिता के इलाज का इंतज़ाम करने के लिए घर लौटने का फैसला किया।

फिलिप याद करके कहता है: “यह फैसला करना मेरे लिए इतना आसान नहीं था, लेकिन मुझे लगा कि मेरा पहला फर्ज़ अपने माता-पिता की तरफ बनता है।” इसके बाद, तीन सालों के अंदर वह अपने माता-पिता को एक नए घर में ले आया, जहाँ पुराने घर के मुकाबले ज़्यादा सहूलियतें थीं। अपने यहाँ के मसीही भाइयों की मदद से फिलिप ने उस घर में कुछ ऐसे इंतज़ाम किए जिससे पिता की खास ज़रूरतें पूरी की जा सकती थीं।

फिलिप के पिता की गंभीर बीमारी की वजह से जो परेशानियाँ खड़ी होती हैं, अब उसकी माँ बेहतर तरीके से उनका सामना कर पाती है। हाल में फिलिप को मैसडोनिया के यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में स्वयंसेवक के तौर पर काम करने का बुलावा मिला और वह उसे स्वीकार कर सका।

[पेज 19 पर बक्स]

उन्होंने उसकी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ नहीं किया

एडा, ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली 85 साल की एक बुज़ुर्ग मसीही बहन है। खराब सेहत की वजह से जब उसके लिए घर से बाहर निकलना नामुमकिन हो गया तो कलीसिया के प्राचीनों ने उसकी मदद करने का इंतज़ाम किया। उन्होंने मसीही भाई-बहनों का एक समूह बनाया जो खुशी-खुशी बहन की खातिर साफ-सफाई करने, कपड़े धोने, खाना पकाने और खरीदारी करने के लिए तैयार थे।

इस इंतज़ाम को शुरू हुए करीब 10 साल बीत चुके हैं। अब तक 30 से ज़्यादा साक्षियों ने एडा की सेवा की है। वे आज भी उससे मिलने जाते हैं, उसे बाइबल के साहित्य पढ़कर सुनाते हैं, कलीसिया की आध्यात्मिक तरक्की के बारे में उसे ताज़ा जानकारी देते हैं और नियमित तौर पर उसके साथ प्रार्थना करते हैं।

वहाँ के एक प्राचीन ने कहा: “एडा की सेवा करने में भाई-बहनों को बड़ी खुशी होती है। एडा ने बीते कई दशकों के दौरान वफादारी से जो सेवा की है, उससे कइयों को प्रेरणा मिली है। इसलिए वे उसकी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करने की सोच भी नहीं सकते।”

[पेज 16 पर तसवीर]

क्या हम दिल खोलकर अपने बुज़ुर्ग माता-पिता के लिए प्यार ज़ाहिर करते हैं?

[पेज 18 पर तसवीर]

कलीसिया के सभी लोग, बुज़ुर्ग भाई-बहनों के लिए प्यार दिखा सकते हैं