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बुज़ुर्ग जन—हमारी मसीही बिरादरी के अनमोल सदस्य

बुज़ुर्ग जन—हमारी मसीही बिरादरी के अनमोल सदस्य

बुज़ुर्ग जन—हमारी मसीही बिरादरी के अनमोल सदस्य

“वे प्रभु के गृह में रोपे गए हैं; वे . . . फलते-फूलते हैं। वे वृद्धावस्था में भी फलते हैं।”—भजन 92:13, 14, नयी हिन्दी बाइबिल।

1. कई लोग बुज़ुर्गों को किस नज़र से देखते हैं?

 यहोवा अपने सभी वफादार सेवकों से प्यार करता है, उनसे भी जिनकी उम्र ढल चुकी है। लेकिन यह अनुमान लगाया गया है कि पूरे अमरीका में हर साल तकरीबन 5 लाख बूढ़े लोगों के साथ या तो बुरा सुलूक किया जाता है या उन्हें बेसहारा छोड़ दिया जाता है। दूसरे देशों से भी कुछ ऐसी ही रिपोर्टें मिली हैं, जो दिखाती हैं कि सारी दुनिया में बुज़ुर्गों के साथ बुरा व्यवहार आम हो गया है। एक संगठन इस समस्या की सबसे खास वजह बताता है: “ज़्यादातर लोगों का यह खयाल है कि . . . बूढ़े लोग किसी काम लायक नहीं होते, उनसे कोई फायदा नहीं होता और वे दूसरों पर कुछ ज़्यादा ही बोझ बन जाते हैं।”

2. (क) यहोवा अपने वफादार बुज़ुर्ग सेवकों को किस नज़र से देखता है? (ख) भजन 92:12-15 में क्या वर्णन किया गया है जो हमारे दिल को खुश कर देता है?

2 यहोवा परमेश्‍वर अपने वफादार बुज़ुर्ग सेवकों को बहुत अनमोल समझता है। वह ‘हमारे भीतरी मनुष्यत्व’ यानी हमारी आध्यात्मिक हालत पर ध्यान देता है, न कि शरीर की कमज़ोरियों पर। (2 कुरिन्थियों 4:16) उसके वचन, बाइबल में यह आश्‍वासन पढ़कर हमारा दिल खुश हो जाता है: “धार्मिक व्यक्‍ति खजूर के वृक्ष के समान फलते-फूलते हैं; वे लबानोन प्रदेश के देवदार-जैसे बढ़ते हैं। वे प्रभु के गृह में रोपे गए हैं; वे हमारे परमेश्‍वर के आंगनों में फलते-फूलते हैं। वे वृद्धावस्था में भी फलते हैं; वे सदा रसमय और हरे-भरे रहते हैं; जिससे वे यह घोषित कर सकें कि प्रभु सच्चा है।” (भजन 92:12-15, नयी हिन्दी बाइबिल।) इन आयतों की जाँच करने से आप बुज़ुर्ग जन यह समझ सकेंगे कि आप किन-किन तरीकों से मसीही बिरादरी को बढ़िया योगदान दे सकते हैं।

“वृद्धावस्था में भी फलते हैं”

3. (क) धर्मी लोगों की तुलना खजूर के पेड़ों से क्यों की गयी है? (ख) बुज़ुर्ग जन अपनी ‘वृद्धावस्था में फल’ कैसे ला सकते हैं?

3 भजनहार, धर्मी इंसानों की तुलना खजूर के ऐसे पेड़ों से करता है जो ‘हमारे परमेश्‍वर के आंगनों में रोपे गए हैं।’ वे अपनी “वृद्धावस्था में भी फलते हैं।” क्या यह एक हौसला बढ़ानेवाली बात नहीं है? बाइबल के ज़माने में, ज़्यादातर घरों के आँगनों में खूबसूरत खजूर के लंबे-लंबे सीधे पेड़ हुआ करते थे। वे न सिर्फ दिखने में सुंदर होते थे, बल्कि उनमें ढेर सारे फल भी लगते थे। कुछ पेड़ों पर तो सौ से भी ज़्यादा साल तक फल लगते थे। * अगर आप सच्ची उपासना में मज़बूत बने रहें तो आप भी ‘हर प्रकार के भले कामों का फल लाने में बढ़ते’ जाएँगे।—कुलुस्सियों 1:10.

4, 5. (क) मसीहियों को कौन-से ज़रूरी फल पैदा करने चाहिए? (ख) बाइबल से ऐसे बुज़ुर्गों की मिसालें दीजिए जिन्होंने “होठों का फल” पैदा किया था।

4 यहोवा, मसीहियों से उम्मीद करता है कि वे “होठों का फल” पैदा करें, यानी उसकी और उसके उद्देश्‍यों की स्तुति करें। (इब्रानियों 13:15) क्या यह बात आप बुज़ुर्गों पर भी लागू होती है? बेशक होती है।

5 बाइबल में ऐसे बुज़ुर्गों की मिसालें दर्ज़ हैं जिन्होंने यहोवा के नाम और उद्देश्‍यों की निडरता से गवाही दी। जिस वक्‍त यहोवा ने मूसा को अपना भविष्यवक्‍ता और प्रतिनिधि ठहराया, उस समय उसकी उम्र “सत्तर” से भी ज़्यादा थी। (भजन 90:10; निर्गमन 4:10-17) दानिय्येल ने बूढ़ा होने के बावजूद, यहोवा के हुकूमत करने के अधिकार की निडरता से गवाही दी। जब बेलशेस्सर ने दानिय्येल को दीवार पर लिखे रहस्यमयी शब्दों का मतलब बताने के लिए बुलावा भेजा, तब वह 90 पार कर चुका था। (दानिय्येल, अध्याय 5) और उम्रदराज़ प्रेरित यूहन्‍ना के बारे में क्या? यहोवा की सेवा में लंबी उम्र बिताने के बाद, आखिर में उसे पतमुस नाम के टापू में कैदी बनाया गया क्योंकि वह “परमेश्‍वर के वचन, और यीशु की गवाही” देता था। (प्रकाशितवाक्य 1:9) इन सबके अलावा, आपको बाइबल में बताए कई और लोगों के बारे में याद होगा जिन्होंने ज़िंदगी के आखिरी सालों में भी “होठों का फल” पैदा किया था।—1 शमूएल 8:1, 10; 12:2; 1 राजा 14:4, 5; लूका 1:7, 67-79; 2:22-32.

6. यहोवा ने इन अंतिम दिनों में भविष्यवाणी करने के लिए ‘वृद्ध जनों’ का कैसे इस्तेमाल किया है?

6 प्रेरित पतरस ने इब्रानी नबी योएल के शब्दों का हवाला देकर यह ऐलान किया: “परमेश्‍वर कहता है, कि अन्त के दिनों में ऐसा होगा, कि मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर [“वृद्ध जन” पर भी] उंडेलूंगा . . . और वे भविष्यद्वाणी करेंगे।” (प्रेरितों 2:17, 18; योएल 2:28, NHT) ठीक जैसे यहोवा ने कहा, वह इन अंतिम दिनों में अपने उद्देश्‍यों का ऐलान करवाने के लिए अभिषिक्‍त वर्ग और “अन्य भेड़” के बुज़ुर्ग सदस्यों का इस्तेमाल कर रहा है। (यूहन्‍ना 10:16, NW) इनमें से कुछ लोग कई दशकों से राज्य के फल पैदा कर रहे हैं।

7. उदाहरण देकर समझाइए कि बुज़ुर्ग जन, शरीर की कमज़ोरियों के बावजूद राज्य के फल कैसे पैदा करते हैं।

7 सोन्या की मिसाल लीजिए जो सन्‌ 1941 में पूरे समय की राज्य प्रचारक बनी। अपनी एक गंभीर बीमारी की वजह से उसने कई सालों तक तकलीफें सहीं, फिर भी वह नियमित तौर पर अपने घर में लोगों के साथ बाइबल अध्ययन करती रही। सोन्या का कहना था: “खुशखबरी का प्रचार करना मेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा है। सच पूछो तो यह मेरी ज़िंदगी है। मैं प्रचार काम कभी बंद नहीं कर सकती।” हाल ही में, सोन्या और उसकी बहन ऑलिव ने जेनट को बाइबल से आशा का संदेश सुनाया। जेनट, जो हमेशा बीमार रहती है, उससे उनकी मुलाकात एक अस्पताल में हुई थी जब वह अपने नंबर का इंतज़ार कर रही थी। जेनट की माँ कैथोलिक धर्म पर गहरी आस्था रखती थी। जब सोन्या और ऑलिव ने उसकी बेटी जेनट में गहरी दिलचस्पी ली तो यह देखकर उसे इतना अच्छा लगा कि उसने एक बाइबल अध्ययन स्वीकार किया और अब वह बढ़िया तरक्की कर रही है। सोन्या की तरह क्या आप भी ऐसे मौकों का इस्तेमाल करके राज्य के फल पैदा कर सकते हैं?

8. कालेब ने बुढ़ापे में यहोवा पर भरोसा कैसे दिखाया और आज के बुज़ुर्ग मसीही उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

8 बुज़ुर्ग मसीही, अपनी कमज़ोरियों के बावजूद निडरता से प्रचार करके वफादार इस्राएली कालेब की मिसाल पर चल रहे हैं, जिसने 40 साल तक वीराने में मूसा का साथ दिया था। जब उसने यरदन नदी पार करके वादा किए देश में कदम रखा तब उसकी उम्र 79 थी। इस्राएल की विजयी सेना में छः साल तक लड़ाइयाँ लड़ने के बाद, चाहे तो वह आराम कर सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, बल्कि उसने हिम्मत के साथ यह गुज़ारिश की कि उसे यहूदा के पहाड़ी इलाके में बसे ‘बड़े बड़े गढ़वाले नगरों’ पर कब्ज़ा करने का मुश्‍किल काम सौंपा जाए। उस इलाके में अनाकी जाति के लोग रहते थे जो डील-डौल में लंबे-चौड़े और ताकतवर थे। यहोवा के “कहने के अनुसार” कालेब ने उसकी मदद से ‘उन्हें निकाल दिया।’ (यहोशू 14:9-14; 15:13, 14) जब आप बुढ़ापे में भी राज्य के फल पैदा करते हैं, तो यकीन मानिए कि यहोवा आपके साथ रहता है, ठीक जैसे वह कालेब के साथ रहा था। और अगर आप अंत तक वफादार रहेंगे, तो यहोवा आपको वादा की गयी नयी दुनिया में जीने का मौका भी देगा।—यशायाह 40:29-31; 2 पतरस 3:13.

“वे सदा रसमय और हरे-भरे रहते हैं”

9, 10. बुज़ुर्ग मसीही कैसे अपने विश्‍वास को मज़बूत कर सकते और अपनी आध्यात्मिक ताकत बनाए रख सकते हैं? (पेज 13 पर दिया बक्स देखिए।)

9 यहोवा के बुज़ुर्ग सेवक कितने फलदायी हैं, इस बात की तरफ ध्यान खींचते हुए भजनहार ने गाया: “धार्मिक व्यक्‍ति खजूर वृक्ष के समान फलते-फूलते हैं; वे लबानोन प्रदेश के देवदार-जैसे बढ़ते हैं। . . . वे वृद्धावस्था में भी फलते हैं; वे सदा रसमय और हरे-भरे रहते हैं।”—भजन 92:12-14, नयी हिन्दी बाइबिल।

10 उम्र के इस मोड़ पर भी आप अपनी आध्यात्मिक ताकत कैसे बनाए रख सकते हैं? खजूर के पेड़ के सदाबहार रहने का राज़ है, उसे लगातार मिलनेवाला ताज़ा पानी। उसी तरह, आप भी परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन और उसके संगठन के साथ संगति करने के ज़रिए बाइबल की सच्चाई के जल से ताकत पा सकते हैं। (भजन 1:1-3; यिर्मयाह 17:7, 8) आध्यात्मिक बातों में मज़बूत होने की वजह से आप अपने मसीही भाई-बहनों के लिए एक अनमोल खज़ाना साबित होंगे। इस बात के सबूत के लिए बुज़ुर्ग महायाजक यहोयादा के किस्से पर गौर कीजिए।

11, 12. (क) यहोयादा ने यहूदा राज्य के इतिहास में कौन-सी खास भूमिका अदा की? (ख) यहोयादा ने सच्ची उपासना को बढ़ावा देने के लिए अपने अधिकार का कैसे इस्तेमाल किया?

11 उस समय यहोयादा की उम्र शायद 100 से ऊपर होगी जब ताकत की भूखी रानी, अतल्याह अपने पोतों का कत्ल करके खुद यहूदा की राजगद्दी पर बैठ गयी। अब बुज़ुर्ग यहोयादा क्या करता? उसने और उसकी पत्नी ने शाही घराने के बचे अकेले वारिस, योआश को छः साल तक मंदिर में छिपा रखा। फिर अचानक एक दिन, यहोयादा ने सात साल के योआश के राजा होने का ऐलान करवा दिया और अतल्याह को मौत के घाट उतार दिया।—2 इतिहास 22:10-12; 23:1-3, 15, 21.

12 यहोयादा ने राजा योआश के संरक्षक की हैसियत से, अपने अधिकार का इस्तेमाल करके सच्ची उपासना को बढ़ावा दिया। यहोयादा ने “अपने और सारी प्रजा के और राजा के बीच यहोवा की प्रजा होने की वाचा बन्धाई।” उसके हुक्म पर, प्रजा ने झूठे देवता बाल के मंदिर को ढा दिया, उसकी वेदियों और मूरतों को निकाल दिया और उसके याजक को घात कर दिया। और यहोयादा के ही निर्देशन में, योआश ने मंदिर की सेवाएँ दोबारा शुरू करवायीं और उसकी मरम्मत का ज़रूरी काम पूरा करवाया। “जब तक यहोयादा याजक योआश को शिक्षा देता रहा, तब तक वह वही काम करता रहा जो यहोवा की दृष्ट में ठीक है।” (2 इतिहास 23:11, 16-19; 24:11-14; 2 राजा 12:2) जब यहोयादा 130 की उम्र में मर गया तो उसे राजाओं के बीच दफनाकर खास सम्मान दिया गया क्योंकि “उस ने इस्राएल में और परमेश्‍वर के और उसके भवन के विषय में भला किया था।”—2 इतिहास 24:15, 16.

13. उम्रदराज़ मसीही, ‘परमेश्‍वर और उसके भवन के विषय में भला’ कैसे कर सकते हैं?

13 बिगड़ती सेहत या दूसरी कुछ मजबूरियों की वजह से शायद आप सच्ची उपासना को बढ़ावा देने में ज़्यादा मेहनत न कर पाएँ। लेकिन ऐसे हालात में भी आप ‘परमेश्‍वर और उसके भवन के विषय में भला’ कर सकते हैं। जब भी मुमकिन हो, कलीसिया की सभाओं में हाज़िर होने, उनमें हिस्सा लेने और प्रचार करने के ज़रिए आप यहोवा के आध्यात्मिक भवन के लिए जोश दिखा सकते हैं। जब आप बाइबल की सलाह को खुशी-खुशी मानेंगे और पूरी वफादारी से “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” और कलीसिया के इंतज़ामों के मुताबिक चलेंगे, तो यह देखकर दूसरे भाई-बहन काफी मज़बूत होंगे। (मत्ती 24:45-47) इसके अलावा, आप अपने साथी उपासकों को “प्रेम, और भले कामों में” भी उस्का सकते हैं। (इब्रानियों 10:24, 25; फिलेमोन 8, 9) और अगर आप प्रेरित पौलुस की इस सलाह को मानेंगे तो आप दूसरों के लिए एक आशीष ठहरेंगे: “बूढ़े पुरुष, सचेत और गम्भीर और संयमी हों, और उन का विश्‍वास और प्रेम और धीरज पक्का हो। इसी प्रकार बूढ़ी स्त्रियों का चाल चलन पवित्र लोगों सा हो, दोष लगानेवाली और पियक्कड़ नहीं; पर अच्छी बातें सिखानेवाली हों।”—तीतुस 2:2-4.

14. लंबे समय से ओवरसियर रह चुके भाई, सच्ची उपासना को बढ़ावा देने के लिए क्या कर सकते हैं?

14 क्या आपने कई सालों से कलीसिया के प्राचीन की हैसियत से सेवा की है? लंबे समय से कलीसिया के प्राचीन रह चुके एक भाई ने यह सलाह दी: “आपने बीते कई सालों के दौरान जो बुद्धि हासिल की है, उसका निःस्वार्थ भाव से इस्तेमाल कीजिए। दूसरों को ज़िम्मेदारी सौंपिए और जो सीखने के लिए उत्सुक हैं उन्हें अपना तजुर्बा बताइए। . . . देखिए कि दूसरों में क्या-क्या करने की काबिलीयतें हैं। फिर उन काबिलीयतों को निखारने में उनकी मदद कीजिए। भविष्य के लिए नींव डालिए।” (व्यवस्थाविवरण 3:27, 28) दिनों-दिन बढ़ते प्रचार के काम में जब आप सच्ची दिलचस्पी दिखाएँगे तो इससे हमारी मसीही बिरादरी में दूसरे भाई-बहनों को ढेरों आशीषें मिलेंगी।

‘प्रगट करें कि यहोवा सीधा है’

15. बुज़ुर्ग मसीही कैसे ‘प्रगट करते’ हैं कि “यहोवा सीधा है”?

15 “यहोवा सीधा है” यह बात ‘प्रगट करने’ की ज़िम्मेदारी, परमेश्‍वर के बुज़ुर्ग सेवक खुशी-खुशी निभाते हैं। अगर आप उम्रदराज़ मसीही हैं, तो आपकी बातों और आपके कामों से दूसरे देख सकेंगे कि ‘यहोवा आपकी चट्टान है, और उस में कुटिलता कुछ भी नहीं।’ (भजन 92:15) खजूर का पेड़ खामोश खड़ा रहकर अपने सिरजनहार के उम्दा गुणों का बयान करता है। लेकिन यहोवा ने आपको ऐसी अनोखी काबिलीयत दी है कि आप अपनी ज़बान से यहोवा की खराई के बारे में उन नए लोगों को सबूत दे सकते हैं जो आज सच्ची उपासना करने में शामिल हो रहे हैं। (व्यवस्थाविवरण 32:7; भजन 71:17, 18; योएल 1:2, 3) यहोवा के बारे में ऐसा सबूत देना क्यों ज़रूरी है?

16. बाइबल की कौन-सी मिसाल दिखाती है कि यह ‘प्रगट करना’ ज़रूरी है कि “यहोवा सीधा है”?

16 इस्राएलियों का अगुवा यहोशू जब “बूढ़ा और बहुत आयु का हो गया” तो उसने ‘सब इस्राएलियों को अर्थात्‌ पुरनियों, मुख्य पुरुषों, न्यायियों और सरदारों को बुलवाया’ और उन्हें यहोवा के सच्चे कामों के बारे में याद दिलाया। उसने कहा: “जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं।” (यहोशू 23:1, 2, 14) यहोशू की इन बातों ने कुछ समय के लिए लोगों का यह इरादा मज़बूत किया कि वे यहोवा के वफादार रहेंगे। लेकिन यहोशू की मौत के बाद, “जो दूसरी पीढ़ी हुई उसके लोग न तो यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उस ने इस्राएल के लिये किया था। इसलिये इस्राएली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और बाल नाम देवताओं की उपासना करने लगे।”—न्यायियों 2:8-11.

17. हमारे समय में यहोवा ने अपने लोगों की खातिर क्या-क्या किया है?

17 यह सच है कि आज मसीही कलीसिया की खराई, परमेश्‍वर के बुज़ुर्ग सेवकों के सबूतों पर निर्भर नहीं है। फिर भी इन अंतिम दिनों में यहोवा ने अपने लोगों की खातिर जितने “बड़े काम” किए हैं, उनके बारे में जब हम चश्‍मदीद गवाहों यानी बुज़ुर्ग मसीहियों से सुनते हैं, तो यहोवा और उसके वादों पर हमारा विश्‍वास मज़बूत होता है। (न्यायियों 2:7; 2 पतरस 1:16-19) अगर आप कई सालों से यहोवा के संगठन के साथ संगति कर रहे हैं, तो आपको वह समय याद होगा जब आपके इलाके या देश में राज्य के बहुत कम प्रचारक थे या जब प्रचार काम का कड़ा विरोध किया जाता था। लेकिन समय के गुज़रते आपने देखा कि कैसे यहोवा ने कुछेक रुकावटें दूर कीं और राज्य के काम को “शीघ्रता से” आगे बढ़ाया। (यशायाह 54:17; 60:22) आपने देखा कि कैसे बाइबल की सच्चाइयों के बारे में पहले से अच्छी समझ हासिल की गयी और धरती पर यहोवा के संगठन में एक-के-बाद एक सुधार किए गए। (नीतिवचन 4:18; यशायाह 60:17) यहोवा के सच्चे कामों के बारे में आपको जो तजुर्बा हासिल हुआ है, क्या आप उसे दूसरों को सुनाकर उनका हौसला बढ़ाते हैं? ऐसा करने से मसीही बिरादरी में क्या ही जोश पैदा होगा और वह कितनी मज़बूत होगी!

18. (क) मिसाल देकर समझाइए कि “यहोवा सीधा है” यह ‘प्रगट करने’ पर किस तरह लंबे समय तक फायदे होते हैं। (ख) आपने अपनी ज़िंदगी में कैसे देखा कि यहोवा सीधा है?

18 आपकी निजी ज़िंदगी की उन घटनाओं के बारे में क्या जब आपने यहोवा का प्यार महसूस किया और उसने आपको सही राह दिखायी? (भजन 37:25; मत्ती 6:33; 1 पतरस 5:7) मार्था नाम की एक बुज़ुर्ग बहन यह कहकर दूसरों की हिम्मत बढ़ाती थी: “चाहे कुछ भी हो जाए, यहोवा को कभी मत छोड़ना। वह आपको ज़रूर सँभालेगा।” मार्था की इस सलाह ने उसकी एक बाइबल विद्यार्थी, टोल्मीना पर गहरा असर किया। टोल्मीना का बपतिस्मा, सन्‌ 1960 के दशक की शुरूआत में हुआ था। वह कहती है, “जब मेरे पति गुज़र गए तो मैं बहुत निराश हो गयी थी, मगर मार्था के वे शब्द मेरे दिल में बस गए थे इसलिए मैंने अटल फैसला किया कि मैं एक भी सभा में जाने से नहीं चूकूँगी। और यहोवा ने वाकई मुझे सच्चाई की राह पर बने रहने के लिए मज़बूत किया।” बीते कई सालों के दौरान टोल्मीना ने यही सलाह अपने कई बाइबल विद्यार्थियों को भी दी। जी हाँ, अपने मसीही भाई-बहनों का हौसला बढ़ाने और यहोवा के सच्चे कामों के बारे में उन्हें याद दिलाने के ज़रिए आप उनका विश्‍वास काफी मज़बूत कर सकते हैं।

यहोवा वफादार बुज़ुर्ग जनों को अनमोल समझता है

19, 20. (क) यहोवा अपने बुज़ुर्ग सेवकों के कामों को किस नज़र से देखता है? (ख) अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?

19 आज की यह एहसानफरामोश दुनिया, बड़े-बुज़ुर्गों की कोई कदर नहीं करती। (2 तीमुथियुस 3:1, 2) अगर उन्हें कभी याद भी किया जाता है तो सिर्फ इसलिए कि वे एक ज़माने में क्या थे न कि वे अब क्या हैं। मगर जहाँ तक परमेश्‍वर की बात है, बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की, और कर भी रहे हो।” (इब्रानियों 6:10) बीते दिनों में आपने वफादारी से जो-जो काम किए, उन्हें तो वह याद रखता ही है, मगर आज तक आप लगातार जो काम कर रहे हैं, उन्हें भी वह अनमोल समझता है। जी हाँ, यहोवा की नज़र में उसके वफादार बुज़ुर्ग सेवक फलदायी, आध्यात्मिक बातों में सेहतमंद और जोशीले मसीही हैं, और उसकी शक्‍ति की ज़िंदा मिसाल हैं।—फिलिप्पियों 4:13.

20 हमारी मसीही बिरादरी के बुज़ुर्ग सदस्यों को क्या आप उसी नज़र से देखते हैं जैसे यहोवा देखता है? अगर हाँ, तो आपका मन उकसाएगा कि आप उन पर अपना प्यार ज़ाहिर करें। (1 यूहन्‍ना 3:18) अगले लेख में ऐसे कुछ तरीकों पर चर्चा की जाएगी, जिनसे हम उनकी ज़रूरतें पूरी करके उनके लिए अपना प्यार दिखा सकते हैं।

[फुटनोट]

^ खजूरों के हर गुच्छे में कम-से-कम एक हज़ार खजूर होते हैं और हर गुच्छे का वज़न आठ किलो या उससे ज़्यादा हो सकता है। एक लेखक का अंदाज़ा है कि “हरेक फलदायी [खजूर] पेड़, अपने जीवन-काल में दो या तीन टन फल अपने मालिक को नज़राने में देता है।”

आपके जवाब क्या हैं?

• बुज़ुर्ग लोग किन तरीकों से ‘फल’ पैदा करते हैं?

• बुज़ुर्ग मसीहियों की आध्यात्मिक ताकत क्यों एक अनमोल खज़ाना है?

• बुज़ुर्ग जन कैसे ‘प्रगट कर’ सकते हैं कि “यहोवा सीधा है”?

• यहोवा उन लोगों को क्यों अनमोल समझता है जो लंबे समय से उसकी सेवा कर रहे हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर बक्स]

उन्होंने अपना विश्‍वास कैसे मज़बूत बनाए रखा

लंबे समय से सेवा करते आ रहे मसीहियों को किस बात ने अपना आध्यात्मिक जोश और मज़बूत विश्‍वास बरकरार रखने में मदद दी? उनमें से कुछ लोगों ने यह बताया:

“ऐसी आयतें पढ़ना बेहद ज़रूरी है जो यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते पर ध्यान खींचती हैं। मैं अकसर रात को भजन 23 और 91 याद करती हूँ।”—ऑलिव, सन्‌ 1930 में बपतिस्मा लिया।

“मैंने ठान ली है कि मैं हर बपतिस्मे के भाषण पर मौजूद रहूँगा और उसे ध्यान से सुनूँगा, मानो मेरा ही बपतिस्मा होनेवाला हो। अपने समर्पण को दिमाग में तरो-ताज़ा रखने से मुझे वफादार बने रहने में काफी मदद मिली है।”—हैरी, सन्‌ 1946 में बपतिस्मा लिया

“हर रोज़ यहोवा प्रार्थना करना, उससे मदद, सुरक्षा और आशीष के लिए बिनती करना और ‘उसी को स्मरण करके सब काम करना’ बेहद ज़रूरी है।” (नीतिवचन 3:5, 6)—अन्टोन्यू, सन्‌ 1951 में बपतिस्मा लिया।

“जो लोग बरसों से यहोवा की सेवा वफादारी से कर रहे हैं, उनके अनुभव सुनने से मेरा यह इरादा मज़बूत होता है कि मैं हमेशा यहोवा की वफादार बनी रहूँ।”—जोन, सन्‌ 1954 में बपतिस्मा लिया।

“यह बहुत ज़रूरी है कि हम खुद को दूसरों से बड़ा न समझें। हमारे पास जो भी है, वह हमें परमेश्‍वर की अपार दया की बदौलत मिला है। अगर हम ऐसा नज़रिया रखेंगे तो हम उसी पर आस लगाएँगे जो अंत तक धीरज धरने के लिए हमें ज़रूरी आध्यात्मिक भोजन दे सकता है।”—आर्लीन, सन्‌ 1954 में बपतिस्मा लिया।

[पेज 11 पर तसवीर]

बुज़ुर्ग जन राज्य के अनमोल फल पैदा करते हैं

[पेज 14 पर तसवीर]

बुज़ुर्ग जनों की आध्यात्मिक ताकत एक बेशकीमती खज़ाना है