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परमेश्‍वर की महिमा करनेवाले धन्य हैं

परमेश्‍वर की महिमा करनेवाले धन्य हैं

परमेश्‍वर की महिमा करनेवाले धन्य हैं

‘हे प्रभु, [वे] आकर तेरे साम्हने दण्डवत्‌ करेंगे, और तेरे नाम की महिमा करेंगे।’—भजन 86:9.

1. क्यों हम, बेजान सृष्टि से कहीं ज़्यादा बढ़िया तरीके से परमेश्‍वर की महिमा कर सकते हैं?

 यहोवा अपनी सारी सृष्टि से स्तुति और महिमा पाने का हकदार है। उसकी सृष्टि में जो चीज़ें बेजान हैं वे खामोश रहकर भी उसकी महिमा करती हैं, मगर हम इंसानों को तर्क करने, समझने, एहसानमंदी दिखाने और उपासना करने के काबिल बनाया गया है। इसलिए, भजनहार हमीं से कहता है: “हे सारी पृथ्वी के लोगो परमेश्‍वर के लिये जयजयकार करो; उसके नाम की महिमा का भजन गाओ; उसकी स्तुति करते हुए, उसकी महिमा करो।”—भजन 66:1, 2.

2. परमेश्‍वर के नाम को महिमा देने का हुक्म किसने माना है और क्यों?

2 ज़्यादातर इंसान, परमेश्‍वर को कबूल करना या उसकी महिमा नहीं करना चाहते। लेकिन, दुनिया के 235 देशों में 60 लाख से ज़्यादा यहोवा के साक्षियों ने दिखाया है कि वे परमेश्‍वर की बनायी चीज़ों के ज़रिए उसके “अनदेखे गुण” देखते हैं और उन्हें सृष्टि की खामोश गवाही भी “सुनाई” दी है। (रोमियों 1:20; भजन 19:2, 3) इसके अलावा, बाइबल का अध्ययन करने से वे यहोवा के बारे में सीख पाए हैं और उससे प्रेम करने लगे हैं। भजन 86:9, 10 में पहले से बताया गया था: “हे प्रभु जितनी जातियों को तू ने बनाया है, सब आकर तेरे साम्हने दण्डवत्‌ करेंगी, और तेरे नाम की महिमा करेंगी। क्योंकि तू महान्‌ और आश्‍चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्‍वर है।”

3. “बड़ी भीड़” “दिन रात” परमेश्‍वर की सेवा कैसे करती है?

3 प्रकाशितवाक्य 7:9, 15 में भी उपासना करनेवालों की एक “बड़ी भीड़” के बारे में बताया गया है जो ‘मन्दिर में दिन रात [परमेश्‍वर] की सेवा करती है।’ परमेश्‍वर यह माँग नहीं करता कि उसके सेवक बिना रुके चौबीसों घंटे उसकी महिमा करते रहें। मगर उसके उपासक सारी दुनिया में फैले हुए हैं इसलिए, कुछ देशों में जब रात होती है, तो उसी वक्‍त पृथ्वी के दूसरी तरफ के देशों में दिन होता है और वहाँ के साक्षी, प्रचार में पूरी तरह लगे होते हैं। इस मायने में, हम कह सकते हैं कि यहोवा की महिमा करनेवालों के लिए सूरज कभी नहीं ढलता। बहुत जल्द “जितने प्राणी हैं” वे सब मिलकर ऊँची आवाज़ में यहोवा की स्तुति करेंगे। (भजन 150:6) उस घड़ी के आने तक, हम में से हरेक जन परमेश्‍वर की महिमा करने के लिए क्या कर सकता है? ऐसा करते वक्‍त शायद हमें किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़े? और परमेश्‍वर की महिमा करनेवालों को कौन-सी आशीषें मिलेंगी? जवाब के लिए आइए हम बाइबल के एक किस्से पर गौर करें जो इस्राएल के गोत्र गाद के बारे में है।

प्राचीन वक्‍त में एक चुनौती

4. गाद के गोत्र के सामने कौन-सी चुनौती थी?

4 वादा किए गए देश में दाखिल होने से पहले, इस्राएलियों के गाद गोत्र के लोगों ने बिनती की कि उन्हें यरदन के पूर्व के चरागाहों में बस जाने की इजाज़त दी जाए। (गिनती 32:1-5) वहाँ रहने से गादियों को बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता। यरदन के पश्‍चिम तरफ के गोत्र यरदन घाटी की वजह से सुरक्षित थे। इस घाटी की वजह से दुश्‍मनों की फौज आसानी से उन पर चढ़ाई नहीं कर सकती थी। (यहोशू 3:13-17) मगर यरदन के पूर्व में बसे देशों के बारे में जॉर्ज एडम स्मिथ अपनी किताब, पवित्र देश का प्राचीन भूगोल (अँग्रेज़ी) में कहते हैं: “[वे] सभी देश सपाट और खुली ज़मीन पर थे, उन तक पहुँचने में लगभग कोई रुकावट नहीं थी, और वे सब विशाल अरेबियाई पठार पर बसे हुए थे। इसी वजह से, इन देशों पर हमेशा से लालची खानाबदोशों के हमले का खतरा मँडराता रहा है। और इनमें से कुछ झुंड हर साल यहाँ चरागाहों पर आकर धावा बोलते थे।”

5. याकूब ने गाद के वंशजों को दुश्‍मनों के हमला होने पर क्या करने के लिए उकसाया?

5 गाद का गोत्र सिर पर मँडराते इस खतरे का सामना कैसे करता? सदियों पहले, उनके पुरखा याकूब ने मरने से पहले भविष्यवाणी की थी: “गाद पर एक दल चढ़ाई तो करेगा; पर वह उसी दल के पिछले भाग पर छापा मारेगा।” (उत्पत्ति 49:19) ऊपरी तौर पर ये शब्द शायद निराश करनेवाले लगें। मगर असल में, इन शब्दों से मानो गाद के गोत्र को यह हुक्म मिला था कि वे भी जवाबी हमला करें। याकूब ने उन्हें भरोसा दिलाया कि अगर वे हमला करेंगे, तो लुटेरों को हार मानकर भागना पड़ेगा और गाद के लोग उनका पीछा करेंगे।

आज हमारी उपासना में आनेवाली मुश्‍किलें

6, 7. आज मसीहियों की हालत कैसे गाद के गोत्र जैसी है?

6 गाद के गोत्र की तरह, आज मसीहियों को भी शैतान की दुनिया से आनेवाले कई दबावों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है; किसी करिश्‍मे से हमें सुरक्षा नहीं मिलती ताकि हमें इन परेशानियों से जूझना न पड़े। (अय्यूब 1:10-12) हम में से कई हैं जो स्कूल जाने, रोज़ी-रोटी कमाने और बच्चों की परवरिश करने के दबावों से गुज़रते हैं। और कई बार हमारी अपनी कमज़ोरी ही हम पर दबाव लाती है, इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता। कुछ लोग गंभीर शारीरिक अपंगता या बीमारी का शिकार होते हैं और यह तकलीफ “शरीर में एक कांटा” बनकर चुभती रहती है। (2 कुरिन्थियों 12:7-10) कुछ लोगों को हर पल यह एहसास सताता रहता है कि कोई उनसे प्यार नहीं करता और वे किसी के प्यार के लायक नहीं हैं। और बुज़ुर्ग मसीहियों के लिए बुढ़ापे के “विपत्ति के दिन” मुश्‍किल खड़ी करते हैं और वे पहले जैसे जोश के साथ यहोवा की सेवा नहीं कर पाते।—सभोपदेशक 12:1.

7 प्रेरित पौलुस हमें यह भी याद दिलाता है कि “हमारा यह मल्लयुद्ध, . . . उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं।” (इफिसियों 6:12) “संसार की आत्मा,” यानी शैतान और उसके पिशाचों की बगावत की आत्मा और नैतिक भ्रष्टता की आत्मा जिसे वे बढ़ावा देते हैं, लगातार हम पर धावा बोलती रहती है। (1 कुरिन्थियों 2:12; इफिसियों 2:2, 3) परमेश्‍वर का भय माननेवाले लूत की तरह, हम शायद उन अनैतिक बातों और कामों से दुःखी हों जो हमारे आस-पास के लोग कहते या करते हैं। (2 पतरस 2:7) शैतान हम पर सीधे-सीधे हमला भी कर सकता है। वह अभिषिक्‍त जनों के शेष वर्ग के खिलाफ लड़ रहा है, “जो परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही” देते हैं। (प्रकाशितवाक्य 12:17) वह यीशु की ‘अन्य भेड़ों’ को भी नहीं बख्शता बल्कि उन पर पाबंदियाँ लगाता या ज़ुल्म ढाता है।—यूहन्‍ना 10:16, NW.

हार मान लें या डटकर मुकाबला करें?

8. शैतान के हमलों का हमें कैसे जवाब देना चाहिए और क्यों?

8 हमें शैतान के हमलों का कैसे जवाब देना चाहिए? प्राचीनकाल के गाद गोत्र की तरह, हमें भी परमेश्‍वर के निर्देशन पर चलकर आध्यात्मिक रूप से मज़बूत होना चाहिए और उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए। अफसोस कि कुछ मसीही, ज़िंदगी की परेशानियों से दबकर हार मानने लगे हैं और अपनी आध्यात्मिक ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़ने लगे हैं। (मत्ती 13:20-22) एक साक्षी ने बताया कि क्यों उसकी कलीसिया की सभाओं में हाज़िरी कम हो रही थी: “भाई पस्त हो रहे हैं। उन पर बहुत ज़्यादा दबाव हैं।” सच है कि आज लोगों के थकने की बहुत-सी वजह हैं। इसलिए, वे बड़ी आसानी से परमेश्‍वर की उपासना को भी एक और दबाव या एक ऐसा फर्ज़ समझने लगते हैं, जिसे किसी तरह निपटाना है। मगर क्या ऐसी सोच, अच्छी या सही है?

9. मसीह का जूआ उठाने से हमें विश्राम कैसे मिलता है?

9 यीशु के दिनों में भी ज़्यादातर लोग ज़िंदगी की परेशानियों से दबकर पस्त हो चुके थे। गौर कीजिए कि यीशु ने ऐसों से क्या कहा: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।” क्या यीशु के कहने का यह मतलब था कि परमेश्‍वर की सेवा को कम करने से उन्हें विश्राम मिलेगा? नहीं, बल्कि यीशु कह रहा था: “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।” जूआ लकड़ी या धातु से बना होता था, और इसकी मदद से एक इंसान या जानवर किसी भारी बोझ को उठा सकता था। मगर कोई ऐसे जूए को क्यों उठाना चाहेगा जिस पर भारी बोझ लदा हो? क्या हम पहले ही “बोझ से दबे” हुए नहीं हैं? जी हाँ, मगर यूनानी पाठ में इस आयत को यूँ भी पढ़ा जा सकता है: “मेरे साथ मेरे जूए के नीचे आओ।” ज़रा गौर कीजिए: बोझ ढोने में यीशु हमारी मदद करने की पेशकश कर रहा है! हमें अकेले ही बोझ ढोने की ज़रूरत नहीं है।—मत्ती 9:36; 11:28, 29, फुटनोट, NW; 2 कुरिन्थियों 4:7.

10. परमेश्‍वर की महिमा करने की हमारी कोशिशों का क्या नतीजा निकलता है?

10 जब हम यीशु के चेले बनने का जूआ उठा लेते हैं, तो हम शैतान के खिलाफ लड़ रहे होते हैं। याकूब 4:7 वादा करता है: “शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा।” इसका मतलब यह नहीं कि शैतान का विरोध करना आसान है। परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए हमें बहुत जद्दोजेहद करनी पड़ेगी। (लूका 13:24) मगर बाइबल, भजन 126:5 में यह वादा करती है: “जो आंसू बहाते हुए बोते हैं, वे जयजयकार करते हुए लवने पाएंगे।” जी हाँ, हमारा परमेश्‍वर ऐसा नहीं जो हमारी सेवा को भूल जाए। वह “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है,” और जो उसे महिमा देते हैं उन्हें वह आशीष देता है।—इब्रानियों 11:6.

राज्य के प्रचारक बनकर परमेश्‍वर की महिमा करना

11. प्रचार काम, शैतान के हमलों के खिलाफ हमारी हिफाज़त कैसे करता है?

11 यीशु ने आज्ञा दी थी: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।” प्रचार का काम, परमेश्‍वर को “स्तुतिरूपी बलिदान” चढ़ाने का सबसे अहम तरीका है। (मत्ती 28:19; इब्रानियों 13:15) शैतान के हमलों का सामना करने के लिए हमें जो “सारे हथियार” मिले हैं उनमें से अपने “पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते” पहनना बेहद ज़रूरी है क्योंकि इनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता। (इफिसियों 6:11-15) प्रचार में परमेश्‍वर की स्तुति करना अपने विश्‍वास को मज़बूत करने का बेहतरीन तरीका है। (2 कुरिन्थियों 4:13) यह बुरे ख्यालों को अपने मन से दूर रखने में हमारी मदद करता है। (फिलिप्पियों 4:8) साथ ही, प्रचार में हिस्सा लेने से हम संगी उपासकों के साथ हौसला बढ़ानेवाली संगति का आनंद ले पाते हैं।

12, 13. बिना नागा प्रचार में हिस्सा लेना परिवारों की कैसे मदद कर सकता है? उदाहरण देकर समझाइए।

12 पूरा परिवार प्रचार काम में हिस्सा लेकर खुशी और ताज़गी पा सकता है। यह सच है कि बच्चों को खेल-कूद और मनोरंजन की भी ज़रूरत होती है। लेकिन पूरा परिवार, प्रचार में जो वक्‍त बिताता है उसे नीरस होने की ज़रूरत नहीं। माता-पिता अपने बच्चों को प्रचार में असरदार ढंग से बात करने की शिक्षा देकर इसे मज़ेदार बना सकते हैं। क्या यह सच नहीं कि बच्चों को उसी काम में मज़ा आता है जिसे वे अच्छी तरह कर पाते हैं? संतुलन रखने और बच्चों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद किए बिना माता-पिता प्रचार काम से खुशी पाने में उनकी मदद कर सकते हैं।—उत्पत्ति 33:13, 14.

13 इसके अलावा, जिस परिवार के सभी लोग मिलकर परमेश्‍वर की स्तुति करते हैं उनका आपसी रिश्‍ता मज़बूत होता है। एक बहन पर गौर कीजिए जिसका अविश्‍वासी पति, पाँच बच्चों को और उसे बेसहारा छोड़कर चला गया था। अब बहन पर नौकरी करके बच्चों की ज़रूरतें पूरी करने का भार आ गया था। क्या वह इस ज़िम्मेदारी को निभाने में इतनी पस्त हो गयी कि उसने अपने बच्चों की आध्यात्मिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ कर दिया? वह बताती है: “मैं बाइबल और बाइबल की समझ देनेवाली किताबों का गंभीरता से अध्ययन करती थी और जो कुछ उनमें बताया जाता था उसे लागू करने की पूरी कोशिश करती थी। मैं बिना नागा अपने बच्चों को सभाओं और घर-घर के प्रचार में ले जाती थी। मुझे अपनी मेहनत का क्या फल मिला? आज, मेरे पाँचों बच्चों का बपतिस्मा हो चुका है।” इस बहन की तरह अगर आप भी प्रचार काम में पूरा-पूरा हिस्सा लें तो, “प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए” अपने बच्चों का पालन-पोषण करने में आपको मदद मिल सकती है।—इफिसियों 6:4.

14. (क) नौजवान स्कूल में परमेश्‍वर की महिमा कैसे कर सकते हैं? (ख) जवान ऐसा क्या कर सकते हैं ताकि वे ‘सुसमाचार से न लजाएँ?’

14 जवानो, क्या आप ऐसे देश में रहते हैं जहाँ स्कूल में धार्मिक विषयों पर बातचीत करने की मनाही नहीं है? अगर हाँ, तो क्या आप स्कूल में गवाही देकर परमेश्‍वर की महिमा करते हैं या इंसानों के डर से चुप रहते हैं? (नीतिवचन 29:25) पोर्टो रिको में 13 साल की एक साक्षी लिखती है: “मैं जानती हूँ कि यही सच्चाई है इसलिए स्कूल में प्रचार करते हुए मैं कतई शर्म महसूस नहीं करती। मैं अपनी क्लास में हमेशा हाथ ऊपर उठाती हूँ और बाइबल से जो कुछ मैंने सीखा है, बताती हूँ। जब हमारी क्लास नहीं होती, तब मैं लाइब्रेरी जाकर युवाओं के प्रश्‍न * किताब पढ़ती हूँ।” क्या यहोवा ने इस बहन की कोशिशों पर आशीष दी? वह बताती है: “कभी-कभी मेरी क्लास के बच्चे मुझसे सवाल पूछते हैं और इस किताब की एक कॉपी भी माँगते हैं।” अगर आप इस मामले में चुप रहते हैं तो आपके लिए ज़रूरी है कि आप निजी अध्ययन के ज़रिए “परमेश्‍वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा” मालूम करें। (रोमियों 12:2) जब एक बार आपको यह यकीन हो जाएगा कि जो आपने सीखा है वही सच्चाई है, तो आप कभी-भी ‘सुसमाचार से नहीं लजाएँगे।’—रोमियों 1:16.

सेवा का एक ‘खुला द्वार’

15, 16. कुछ मसीहियों ने सेवा के कौन-से ‘बड़े और उपयोगी द्वार’ में प्रवेश किया है और इससे उन्हें कैसी आशीषें मिली हैं?

15 प्रेरित पौलुस ने लिखा था कि उसके सामने सेवा का “एक बड़ा और उपयोगी द्वार” खुला है। (1 कुरिन्थियों 16:9) क्या आपके हालात आपको सेवा में नयी ज़िम्मेदारियाँ लेने की इजाज़त देते हैं? मिसाल के लिए, रेग्युलर या ऑक्ज़लरी पायनियर सेवा में हर महीने 70 या 50 घंटे देने होते हैं। बेशक, संगी मसीही पायनियरों की वफादार सेवा के लिए उनकी कदर करते हैं। लेकिन प्रचार में ज़्यादा घंटे बिताना उन्हें किसी भी तरह अपने मसीही भाई-बहनों से ऊँचा नहीं बना देता। इसके बजाय वे वैसा ही नज़रिया रखते हैं जैसा यीशु ने रखने का बढ़ावा दिया था: “हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है।”—लूका 17:10.

16 पायनियर सेवा में अनुशासन, बढ़िया निजी व्यवस्था, साथ ही त्याग करने के लिए हरदम तैयार रहना ज़रूरी होता है। लेकिन इससे मिलनेवाली आशीषें हमारी उम्मीदों से कहीं बढ़कर होती हैं। एक जवान पायनियर टामीका कहती है: “परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में ला पाना सचमुच एक आशीष है। पायनियर सेवा के दौरान हम बाइबल का बार-बार इस्तेमाल करते हैं। इसलिए अब जब मैं घर-घर जाती हूँ तो मुझे ठीक पता होता है कि कौन-सा वचन किस घर-मालिक के लिए बिलकुल सही रहेगा।” (2 तीमुथियुस 2:15) मीका नाम की पायनियर कहती है: “सच्चाई का लोगों की ज़िंदगी पर ज़बरदस्त असर होते देखना भी एक आशीष है।” उसी तरह एक और जवान पायनियर मैथ्यू कहता है कि “किसी को सच्चाई में आते देखना” बड़ी खुशी की बात है। “दूसरी कोई खुशी इसकी जगह नहीं ले सकती।”

17. एक मसीही बहन ने पायनियर सेवा के बारे में अपने डर पर कैसे जीत हासिल की?

17 क्या आप पायनियर सेवा करने के लिए खुले द्वार में प्रवेश करने की सोच सकते हैं? शायद आप चाहते हैं लेकिन इसके काबिल महसूस नहीं करते। एक जवान बहन कैनयाटे ने कहा: “मुझे लगता था कि पायनियर सेवा मेरे बस की बात नहीं, मुझ में वह काबिलीयत कहाँ? कैसे पेशकश तैयार करनी और शास्त्र से तर्क करना है, ये मुझे मालूम नहीं था।” लेकिन प्राचीनों ने एक अनुभवी पायनियर बहन को कैनयाटे के साथ काम करने के लिए कहा। वह याद करती है: “उस बहन के साथ काम करने में बहुत मज़ा आया। और तभी से मेरे मन में पायनियर सेवा करने की इच्छा जागी।” थोड़ा हौसला बढ़ाए जाने और ट्रेनिंग पाने से आपके मन में भी पायनियर सेवा करने की इच्छा जागेगी।

18. मिशनरी सेवा चुननेवालों को क्या आशीषें मिलती हैं?

18 पायनियर सेवा करने से आपके सामने सेवा करने के और भी मौके आ सकते हैं। मिसाल के लिए, कुछ शादी-शुदा जोड़ों को मिशनरी ट्रेनिंग पाने का मौका मिल सकता है ताकि वे दूसरे देशों में जाकर प्रचार कर सकें। मिशनरी सेवा करनेवालों को शायद नए देश की भाषा, संस्कृति और खान-पान के मुताबिक खुद को ढालना पड़े। लेकिन ये बदलाव और परेशानियाँ इस सेवा से मिलनेवाली आशीषों के सामने फीकी पड़ जाती हैं। मिलड्रेड नाम की मैक्सिको की एक अनुभवी मिशनरी कहती है: “मैं अपने मिशनरी बनने के फैसले से कभी नहीं पछतायी। जब मैं बहुत छोटी थी तभी से मेरा यह सपना था।” उसे क्या-क्या आशीषें मिली हैं? “मेरे देश में बाइबल अध्ययन पाना बहुत मुश्‍किल था। लेकिन मैक्सिको में ऐसा वक्‍त भी आया जब मेरे चार बाइबल विद्यार्थियों ने एक-साथ प्रचार में हिस्सा लेना शुरू किया!”

19, 20. बेथेल सेवा, अंतर्राष्ट्रीय सेवा और मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल से बहुतों को क्या आशीषें मिली हैं?

19 यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में बेथेल सेवा करने से भी ढेरों आशीषें मिलती हैं। जर्मनी में स्वेन नाम का एक जवान भाई अपनी बेथेल सेवा के बारे में कहता है: “मैं जानता हूँ कि जो काम मैं कर रहा हूँ उसके फायदे हमेशा-हमेशा तक मिलेंगे। मैं चाहता तो अपना हुनर दुनिया में इस्तेमाल कर सकता था। लेकिन वह एक ऐसे बैंक में पैसे जमा करने जैसा होता जिसका दिवालिया पिटनेवाला हो।” सच है कि बिना कोई तनख्वाह लिए अपनी इच्छा से सेवा करने में कई त्याग करने पड़ते हैं। लेकिन स्वेन कहता है: “जब हम शाम को अपने कमरे में लौटते हैं तो हमें यह एहसास रहता है कि दिन भर हमने जो कुछ किया, सब यहोवा के लिए था। और यह एहसास ‘बहुत बढ़िया’ होता है।”

20 कुछ भाइयों को दूसरे देशों के शाखा दफ्तर बनाने की अंतर्राष्ट्रीय सेवा करने की आशीष मिली है। आठ देशों में काम करनेवाले एक जोड़े ने लिखा: “यहाँ के भाई बहुत अच्छे हैं। बड़े दुःख के साथ हम यहाँ से विदा हो रहे हैं। पिछली सात दफा विदा होते समय ऐसे ही हमारे दिल को ‘बहुत दुःख’ हुआ था। यहाँ काम करना हमारे लिए क्या ही शानदार अनुभव रहा है!” फिर मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल भी है। इसमें अविवाहित भाइयों को आध्यात्मिक काबिलीयत बढ़ाने की ट्रेनिंग दी जाती है। एक ग्रेजुएट ने लिखा: “इतने बढ़िया स्कूल के लिए आपका शुक्रिया करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं। दुनिया में ऐसा कौन-सा संगठन होगा जो ट्रेनिंग देने के लिए इतना कष्ट उठाएगा?”

21. परमेश्‍वर की सेवा में सभी मसीहियों के सामने क्या चुनौती ?

21 जी हाँ, सेवा के लिए बहुत-से द्वार खुले हैं। यह सच है कि हममें से ज़्यादातर बेथेल सेवा या दूसरे देशों में सेवा नहीं कर सकते। खुद यीशु ने भी माना था कि अलग-अलग हालात होने की वजह से मसीही अलग-अलग मात्रा में “फल” लाएँगे। (मत्ती 13:23) इसलिए एक मसीही होने के नाते हमारे सामने चुनौती यह है कि हम अपने हालात का भरपूर इस्तेमाल करते हुए यहोवा की सेवा में ज़्यादा-से-ज़्यादा करें। जब हम ऐसा करते हैं, तो यहोवा की महिमा करते हैं और हम यह यकीन रख सकते हैं कि वह हमसे खुश है। नर्सिंग होम में रहनेवाली एक बुज़ुर्ग बहन एथेल की बात लीजिए। वह अपने यहाँ रहनेवाले लोगों को नियमित तौर पर प्रचार करती है और टेलिफोन पर भी गवाही देती है। अपनी सीमाओं के बावजूद वह पूरे तन-मन से सेवा कर रही है।—मत्ती 22:37.

22. (क) परमेश्‍वर की महिमा करने के और क्या तरीके हैं? (ख) हम किस शानदार वक्‍त को देखने की आस लगा सकते हैं?

22 लेकिन याद रखिए कि प्रचार, यहोवा की महिमा करने का सिर्फ एक और तरीका है। जब हम नौकरी पर हों, स्कूल में या घर पर हों तब अपने चालचलन, पहनावे और बनाव-श्रंगार में बेहतरीन मिसाल कायम करके भी यहोवा का दिल खुश कर सकते हैं। (नीतिवचन 27:11) नीतिवचन 28:20 वादा करता है: “सच्चे मनुष्य पर बहुत आशीर्वाद होते रहते हैं।” इसलिए हमें परमेश्‍वर की सेवा में ‘बहुत बोना’ चाहिए, क्योंकि हम जानते हैं कि ऐसा करने से हम बहुत काटेंगे भी। (2 कुरिन्थियों 9:6) ऐसा करने पर हम उस शानदार वक्‍त को देखने के लिए जिंदा होंगे, जब “जितने प्राणी हैं सब के सब” यहोवा को वह महिमा देंगे जिसका वह पूरा-पूरा हकदार है!—भजन 150:6.

[फुटनोट]

^ किताब युवाओं के प्रश्‍न—व्यावहारिक उत्तर को यहोवा के साक्षियों ने छापा है।

क्या आपको याद है?

• यहोवा के लोग कैसे “दिन रात” उसकी सेवा करते हैं?

• गाद के गोत्र को किस चुनौती का सामना करना पड़ा, और यह मसीहियों को आज क्या सिखाता है?

• प्रचार काम में शामिल होना, शैतान के हमलों से कैसे हमारी हिफाज़त करता है?

• कुछ लोगों ने किस ‘खुले द्वार’ में प्रवेश किया है और उन्हें कौन-सी आशीषें मिली हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

जिस तरह गाद के लोग हमलावरों से लड़े थे उसी तरह मसीहियों को शैतान के हमलों का सामना करना है

[पेज 17 पर तसवीर]

प्रचार में हम हौसला बढ़ानेवाली संगति का आनंद लेते हैं

[पेज 18 पर तसवीरें]

पायनियर सेवा दूसरी सेवाओं के लिए ये द्वार खोल सकती है:

1. अन्तर्राष्ट्रीय सेवा

2. बेथेल सेवा

3. मिशनरी सेवा