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सृष्टि, परमेश्‍वर की महिमा का ऐलान करती है!

सृष्टि, परमेश्‍वर की महिमा का ऐलान करती है!

सृष्टि, परमेश्‍वर की महिमा का ऐलान करती है!

“आकाश ईश्‍वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकाशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है।”—भजन 19:1.

1, 2. (क) इंसान सीधे-सीधे परमेश्‍वर की महिमा क्यों नहीं देख सकते? (ख) चौबीस प्राचीन परमेश्‍वर की महिमा कैसे करते हैं?

 “तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता।” (निर्गमन 33:20) यहोवा ने इन शब्दों से मूसा को आगाह किया था। इंसान हाड़-माँस का बना कमज़ोर प्राणी है, इसलिए वह सीधे-सीधे परमेश्‍वर की महिमा देखकर ज़िंदा नहीं बच सकता। मगर, प्रेरित यूहन्‍ना को एक दर्शन में महिमा के सिंहासन पर विराजमान यहोवा का शानदार नज़ारा दिखाया गया।—प्रकाशितवाक्य 4:1-3.

2 स्वर्ग में यहोवा की सेवा करनेवाले वफादार आत्मिक प्राणी, इंसानों जैसे नहीं हैं। वे यहोवा के मुख को देख सकते हैं। इन प्राणियों में वे “चौबीस प्राचीन” भी हैं जो यूहन्‍ना को स्वर्ग के दर्शन में दिखायी दिए और जो 1,44,000 जनों को दर्शाते हैं। (प्रकाशितवाक्य 4:4; 14:1-3) परमेश्‍वर की महिमा देखकर वे क्या करते हैं? प्रकाशितवाक्य 4:11 के मुताबिक, वे ऐलान करते हैं: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।”

क्यों “कोई बहाना नहीं”

3, 4. (क) परमेश्‍वर पर विश्‍वास करना विज्ञान के मुताबिक गलत क्यों नहीं है? (ख) कुछ मामलों में, परमेश्‍वर पर विश्‍वास न करने की क्या वजह होती है?

3 क्या आप में भी परमेश्‍वर की महिमा करने की उमंग है? दुनिया के ज़्यादातर इंसानों में यह उमंग नहीं है, कुछ तो परमेश्‍वर के वजूद से ही इनकार करते हैं। एक खगोल-वैज्ञानिक की मिसाल लीजिए, जिसने लिखा: “क्या परमेश्‍वर ने आकर इस विश्‍व की ऐसी बढ़िया रचना की जिससे हमारा फायदा हो? . . . यह बड़ा ही सनसनीखेज़ विचार है। मगर अफसोस, मैं इसे सच नहीं मानता। . . . परमेश्‍वर हमारे सवालों का जवाब नहीं है।”

4 वैज्ञानिक खोजबीन की एक सीमा है। यह सिर्फ उन्हीं चीज़ों पर की जा सकती है जिन्हें इंसान अपनी आँखों से देख-परख सकते हैं। इसके अलावा, जो कुछ है वह सिर्फ किताबी है या फिर अटकलें हैं। “परमेश्‍वर आत्मा है,” इसलिए विज्ञान के तरीकों का इस्तेमाल करके उसे सीधे-सीधे जाँचना-परखना नामुमकिन है। (यूहन्‍ना 4:24) तो फिर, परमेश्‍वर पर विश्‍वास को विज्ञान के मुताबिक गलत बताना बहुत बड़ी गुस्ताखी है। केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक विन्सेंट विगल्ज़वर्थ का कहना है कि विज्ञान के खोजबीन करने का तरीका भी “एक धार्मिक तरीका” है। वह कैसे? “यह तरीका इस पक्के विश्‍वास के आधार पर काम करता है कि कुदरत में जो कुछ होता है, वह ‘कुदरत के नियमों’ के मुताबिक होता है।” तो फिर, जब कोई परमेश्‍वर को मानने से इनकार करता है, तो क्या वह एक विश्‍वास को ठुकराकर दूसरे को नहीं अपनाता? कुछ मामलों में, लोग परमेश्‍वर पर इसलिए विश्‍वास नहीं करते क्योंकि वे जानबूझकर सच्चाई का सामना नहीं करना चाहते। भजनहार ने लिखा: “दुष्ट अपने अभिमान के कारण परमेश्‍वर की खोज नहीं करता; उसका तो पूरा विचार है कि कोई परमेश्‍वर है ही नहीं।”—तिरछे टाइप हमारे; भजन 10:4, NHT.

5. परमेश्‍वर पर विश्‍वास न करने के लिए क्यों कोई बहाना नहीं है?

5 लेकिन परमेश्‍वर पर विश्‍वास, अंधविश्‍वास नहीं है क्योंकि परमेश्‍वर के वजूद की सच्चाई दिखाने के लिए ढेरों सबूत मौजूद हैं। (इब्रानियों 11:1) खगोल-वैज्ञानिक ऐलन सैनदेज ने कहा: “मुझे यह काफी हद तक नामुमकिन लगता है कि [विश्‍वमंडल में] ऐसा बढ़िया तालमेल किसी गड़बड़ी से शुरू हुआ था। ऐसा कुछ तो ज़रूर होगा, जिससे इस व्यवस्था और तालमेल की शुरूआत हुई होगी। परमेश्‍वर मेरे लिए एक पहेली है, मगर सृष्टि को अस्तित्त्व में लाने का चमत्कार करनेवाला परमेश्‍वर ही है, सृष्टि वजूद में क्यों है, इसका जवाब वही है।” प्रेरित पौलुस ने रोम के मसीहियों से कहा कि “जगत की सृष्टि से ही परमेश्‍वर के अदृश्‍य गुण, अनन्त सामर्थ्य और परमेश्‍वरत्व उसकी रचना के द्वारा समझे जाकर स्पष्ट दिखाई देते हैं, इसलिए उनके [विश्‍वास न करनेवालों के] पास कोई बहाना नहीं।” (रोमियों 1:20, NHT) “जगत की सृष्टि” से—खासकर परमेश्‍वर के वजूद को समझ सकनेवाले बुद्धिमान इंसानों की सृष्टि के समय से—यह ज़ाहिर हो चुका है कि एक सिरजनहार है जिसके पास असीम शक्‍ति है और वही हमारी भक्‍ति का हकदार है। इसलिए उन लोगों के पास कोई बहाना नहीं रहता जो महिमावान परमेश्‍वर के वजूद से इनकार करते हैं। मगर सृष्टि में परमेश्‍वर के वजूद के क्या सबूत मिलते हैं?

विश्‍वमंडल परमेश्‍वर की महिमा का ऐलान करता है

6, 7. (क) आकाश परमेश्‍वर की महिमा का ऐलान कैसे करता है? (ख) आकाश ने किस लिए “गूंज” सुनायी है?

6 भजन 19:1 में इसका जवाब दिया गया है: “आकाश ईश्‍वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकाशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है।” दाऊद ने यह समझा कि “आकाशमण्डल” या वायुमंडल में चमकनेवाले ये तारे और ग्रह, महिमावान परमेश्‍वर के होने का ऐसा पक्का सबूत देते हैं जिसे नकारा नहीं जा सकता। वह आगे कहता है: “दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है।” (भजन 19:2) हर दिन और हर रात आकाश में ऐसे नज़ारे देखने को मिलते हैं जो परमेश्‍वर की बुद्धि और सृजने की शक्‍ति का बयान करते हैं। मानो आकाश सचमुच गला खोलकर परमेश्‍वर की महिमा की “बातें” सुना रहा हो।

7 मगर, आकाश की इस गवाही को सुनने के लिए समझ का होना ज़रूरी है। “न तो कोई बोली है और न कोई भाषा जहां उनका शब्द सुनाई नहीं देता है।” फिर भी, आकाश मौन रहकर बड़ी ज़बरदस्त गवाही देता है। “उनका स्वर सारी पृथ्वी पर गूंज गया है, और उनके वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं।” (भजन 19:3, 4) आकाश ने मानो ऐसी “गूंज” सुनायी कि उसकी खामोश गवाही धरती के कोने-कोने तक पहुँच गयी।

8, 9. सूरज के बारे में कुछ सच्चाइयाँ क्या हैं जो बड़ी अनोखी और हैरत में डाल देती हैं?

8 दाऊद आगे यहोवा की सृष्टि के एक और करिश्‍मे के बारे में बताता है: “उन [आकाश] में उस ने सूर्य के लिए एक तम्बू खड़ा किया है, जो एक दूल्हे के समान अपने कक्ष से निकलता है; वह एक शूरवीर के समान अपनी दौड़ दौड़ने के लिए हर्षित होता है। उसका निकलना आकाशमण्डल के एक सिरे से होता है, और वह उसके दूसरे सिरे तक चक्कर काटता है; और ऐसा कुछ भी नहीं जिस तक उसकी गर्मी न पहुंचे।”—भजन 19:4-6, NHT.

9 दूसरे तारों की तुलना में सूरज एक मध्यम आकार का तारा है। फिर भी इस वैभवशाली तारे की परिक्रमा करनेवाले ग्रह उसके सामने छोटे दिखायी देते हैं। एक किताब का कहना है कि सूरज का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान से करीब 3,30,000 गुना ज़्यादा है। और हमारे सौर मंडल के सारे द्रव्यमान का 99.9 प्रतिशत द्रव्यमान सूरज में है! सूरज के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से, पृथ्वी 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर इसकी परिक्रमा करती है और यह न तो सूरज से दूर जाती है ना ही इसके पास खिंची आती है। सूरज की ऊर्जा के 2 अरब हिस्सों में से सिर्फ एक हिस्सा हमारी धरती तक पहुँचता है, मगर यह धरती पर जीवन कायम रखने के लिए काफी है।

10. (क) सूरज कैसे अपने “तम्बू” में आता-जाता है? (ख) यह एक “शूरवीर” की तरह कैसे दौड़ लगाता है?

10 भजनहार, सूरज के लिए लाक्षणिक भाषा इस्तेमाल करते हुए उसे “शूरवीर” कहता है, जो आकाश के एक सिरे से उदय होकर दिन भर दौड़ लगाता है और दूसरे छोर तक पहुँचकर रात को “तम्बू” में सो जाता है। जब यह तेजोमय तारा डूबता है, तो धरती से देखनेवाले को लगता है, मानो वह अपने “तम्बू” में आराम करने चला गया। फिर, सवेरा होते ही वह अपनी चमक-दमक के साथ “एक दूल्हे के समान अपने कक्ष से निकलता है।” दाऊद एक चरवाहा था, इसलिए वह जानता था कि रात की कड़कती ठंड कैसी होती है। (उत्पत्ति 31:40) उसे याद था कि सूरज की किरणों से कितनी जल्दी उसे साथ ही आसपास की ज़मीन, पेड़-पौधों को गर्मी मिलती थी। इसलिए यह कहना सही था कि सूरज, पूरब से पश्‍चिम की “यात्रा” करते-करते थकता नहीं बल्कि एक “शूरवीर” की तरह एक बार फिर यात्रा करने के लिए तैयार रहता है।

हैरतअँगेज़ तारे और मंदाकिनियाँ

11, 12. (क) बाइबल में तारों की तुलना रेत के कणों से करने के बारे में अनोखी बात क्या है? (ख) यह विश्‍व शायद कितना विशाल होगा?

11 दाऊद अपनी आँखों से सिर्फ कुछ हज़ार तारे ही देख सकता था। लेकिन, हाल के एक अध्ययन के मुताबिक कहा गया है कि आज की दूरबीनों की मदद से जितने तारे देखे जा सकते हैं उनकी गिनती है, 70,00,00,00,00,00,00,00,00,00,000—यानी सात की संख्या के बाद 22 शून्य! यहोवा भी यही कह रहा था कि तारे “समुद्रतट के रेत-कणों” के समान अनगिनत हैं।—उत्पत्ति 22:17, NHT.

12 बरसों से खगोल-वैज्ञानिकों को आकाश में “छोटे-छोटे चमकनेवाले इलाके” नज़र आते थे, जो “साफ-साफ दिखायी नहीं देते थे।” वैज्ञानिकों का अंदाज़ा था कि ये “चक्करदार नीहारिकाएँ” हमारी आकाशगंगा का ही एक हिस्सा हैं। सन्‌ 1924 में पता लगाया गया कि सबसे पास की ऐसी ही एक नीहारिका थी, एन्ड्रोमीडा जो दरअसल एक मंदाकिनी थी—हमारी आकाशगंगा से लगभग 20 लाख प्रकाश-वर्ष दूर! वैज्ञानिकों का अंदाज़ा है कि विश्‍व में एक खरब से ज़्यादा मंदाकिनियाँ हैं और हर मंदाकिनी में हज़ारों, और कुछ में तो अरबों तारे हो सकते हैं। फिर भी, यहोवा इन “तारों को गिनता, और उन में से एक एक का नाम रखता है।”—भजन 147:4.

13. (क) नक्षत्रों के बारे में क्या बात गौर करने लायक है? (ख) यह कैसे साफ ज़ाहिर हो जाता है कि वैज्ञानिक “आकाशमण्डल की विधियां” नहीं जानते?

13 यहोवा ने अय्यूब से पूछा: “क्या तू कचपचिया का गुच्छा गूंथ सकता वा मृगशिरा के बन्धन खोल सकता है?” (अय्यूब 38:31) बाइबल में कचपचिया और मृगशिरा नक्षत्रों के नाम हैं और एक नक्षत्र में तारों के झुरमुट से एक अनोखा आकार बनता है। हालाँकि, एक तारे से दूसरे तारे के बीच की दूरी बहुत ज़्यादा हो सकती है फिर भी धरती से देखनेवाले को वे बहुत पास-पास करीब दिखायी देते हैं। उनके लिए ये सारे तारे मानो अपनी-अपनी जगह पर जड़े हुए हैं। हर तारा बिना किसी फेर-बदल के बिलकुल अपनी सही जगह पर होता है, जिससे ये तारे “समुद्री जहाज़ों और अंतरिक्ष-यानों के लिए दिशा दिखाने का काम करते हैं, और तारों की पहचान भी कराते हैं।” (दी इनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना) मगर, नक्षत्रों का “गुच्छा” कैसे उन्हें एक-साथ बाँधे रहता है, यह कोई इंसान पूरी तरह नहीं समझ पाया है। जी हाँ, वैज्ञानिक आज भी अय्यूब 38:33 में पूछे गए इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए हैं: “क्या तू आकाशमण्डल की विधियां जानता . . . है?”

14. प्रकाश किस तरह फैलता है यह कैसे आज भी एक रहस्य है?

14 अय्यूब से एक और सवाल पूछा गया था जिसका वैज्ञानिकों के पास जवाब नहीं है: “किस मार्ग से उजियाला फैलाया जाता है?” (अय्यूब 38:24) एक लेखक ने उजियाले के बारे में इस सवाल को “आज के विज्ञानिकों के लिए बहुत ही जटिल सवाल” कहा। जबकि, कुछ यूनानी तत्त्वज्ञानियों का मानना था कि प्रकाश इंसान की आँख से निकलता है। और भी आधुनिक समय तक वैज्ञानिक यह मानते थे कि प्रकाश कई छोटे-छोटे कणों से बना है। कुछ कहते थे कि प्रकाश का फैलना लहरों की तरह होता है। अब, वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रकाश एक लहर की तरह भी है और एक छोटे कण की तरह भी। मगर, प्रकाश क्या है और यह कैसे ‘फैलता’ है, इसकी पूरी समझ अब तक नहीं मिल पायी है।

15. आकाश के बारे में सोचने के बाद, दाऊद की तरह हमें कैसा महसूस करना चाहिए?

15 इन सब बातों पर विचार करने के बाद, एक इंसान भजनहार दाऊद की तरह महसूस किए बिना नहीं रह सकता, जिसने कहा: “जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्‍त किए हैं, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?”—भजन 8:3, 4.

ये धरती और इसके प्राणी यहोवा की महिमा करते हैं

16, 17. ‘गहरे सागर’ के प्राणी यहोवा की स्तुति कैसे करते हैं?

16 भजन 148 में दूसरे ऐसे तरीके बताए हैं, जिनसे सृष्टि परमेश्‍वर की महिमा का ऐलान करती है। आयत 7 (NHT) कहती है: “पृथ्वी पर से यहोवा की स्तुति करो, हे जल-जन्तुओ और सब गहरे सागरो।” जी हाँ, ‘गहरा सागर’ ऐसी हैरतअँगेज़ चीज़ों से भरा है जिनसे परमेश्‍वर की बुद्धि और शक्‍ति का सबूत मिलता है। ब्लू व्हेल का औसत वज़न 120 टन होता है, जो 30 हाथियों के वज़न के बराबर है! इसके हृदय का वज़न ही 450 किलो से ज़्यादा होता है और यह इसके शरीर में 6,400 किलो खून पहुँचाने का काम करता है! इतने विशालकाय जल-जंतु क्या पानी में धीमे-धीमे और बेडौल ढंग से तैरते हैं? बिलकुल नहीं। ‘यूरोपियन सिटेशन बाइकैच कैम्पेन’ की रिपोर्ट कहती है, ब्लू व्हेल तेज़ रफ्तार के साथ “महासागरों में उछलती-कूदती निकलती” है। ब्लू व्हेल की निगरानी करनेवाले उपग्रह की मदद से पता चला कि “एक व्हेल ने 10  महीने में एक जगह से दूसरी जगह 16,000 किलोमीटर का सफर तय किया था।”

17 बॉटल-नोज़ डॉल्फिन आम तौर पर 45 मीटर गहराई तक पानी में डुबकी लगाती है, मगर एक डॉल्फिन ने सबसे ज़्यादा गहराई यानी 547 मीटर की गहराई तक डुबकी लगायी जो एक रिकॉर्ड था! स्तनधारी डॉल्फिन इतनी गहराई तक डुबकी लगाने के बाद बच कैसे पाती है? डुबकी लगाते वक्‍त उसके दिल की धड़कन धीमी पड़ जाती है और उसका लहू उसके हृदय, फेफड़ों और मस्तिष्क में आ जाता है। इसके अलावा, इसकी मांसपेशियों में एक रसायन होता है जिसमें ऑक्सीजन जमा होती है। एलिफंट महासील और स्पर्म व्हेल नाम की मछलियाँ, और भी ज़्यादा गहराई तक डुबकी लगा सकती हैं। डिस्कवर पत्रिका कहती है: “पानी के दबाव से लड़ने के बजाय, ये मछलियाँ इस दबाव से अपने फेफड़ों को पूरी तरह खाली कर लेती हैं।” उन्हें जितनी ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है, उसे वे अपनी मांसपेशियों में ही जमा कर लेती हैं। ज़ाहिर है, ये प्राणी सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की बुद्धि का जीता-जागता सबूत हैं!

18. सागर के पानी से यहोवा की बुद्धि कैसे दिखायी देती है?

18 सागर के पानी से भी यहोवा की बुद्धि ज़ाहिर होती है। साइंटिफिक अमेरिकन पत्रिका कहती है: “सागर में 100 मीटर की गहराई तक पानी की हर बूंद में, हज़ारों सूक्ष्म पौधे तैरते रहते हैं जिन्हें फाइटोप्लैंकटन कहा जाता है।” आम तौर पर ‘नज़र न आनेवाला यह जंगल’ हमारी हवा से अरबों टन कार्बन डाइऑक्साइड निकालकर इसे साफ करता है। फाइटोप्लैंकटन धरती की आधी से ज़्यादा ऑक्सीजन पैदा करता है।

19. आग और हिम कैसे यहोवा की मरज़ी पूरी करते हैं?

19 भजन 148:8 कहता है: “हे अग्नि और ओलो, हे हिम और कुहरे, हे उसका वचन माननेवाली प्रचण्ड बयार!” जी हाँ, यहोवा कुदरत की बेजान शक्‍तियों को भी अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए इस्तेमाल करता है। आग को ही लीजिए। बीते दशकों में, जंगल में लगनेवाली आग के बारे में यही समझा जाता था कि यह सबकुछ जलाकर राख कर देती है। मगर अब खोजकर्ताओं का कहना है कि आग पर्यावरण की देखभाल करने में एक बहुत अहम काम करती है। यह पुराने या खराब हो चुके पेड़ों को नष्ट कर देती है, बहुत-से बीजों को अंकुरित करने में मदद देती है, पोषक तत्वों को नए सिरे से इस्तेमाल के लायक बनाती है और जंगल में बड़े पैमाने पर आग लगने के खतरे को दरअसल कम करती है। हिम भी बेहद ज़रूरी है। इससे ज़मीन को पानी और खाद मिलता है, नदियों में फिर से पानी भर जाता है, और यह पौधों और जानवरों को बर्फीले तापमान से बचाता है।

20. पहाड़ों और पेड़ों से इंसानों को कैसे फायदा होता है?

20 भजन 148:9 आगे कहता है: “हे पहाड़ो और सब टीलो, हे फलदाई वृक्षो और सब देवदारो!” आकाश से बातें करते शानदार पहाड़ भी यहोवा की महा-शक्‍ति की गवाही देते हैं! (भजन 65:6) मगर वे इंसानों को भी एक तरीके से फायदा पहुँचाते हैं। स्विट्‌ज़रलैंड के बर्न शहर के इंस्टिट्यूट ऑफ जियोग्राफी की एक रिपोर्ट कहती है: “दुनिया की सभी बड़ी-बड़ी नदियाँ पहाड़ों से निकलती हैं। आधे से ज़्यादा इंसान पहाड़ों से निकलनेवाले ताज़े पानी पर निर्भर हैं . . . ये पानी की टंकियाँ, इंसानों की खुशहाली के लिए निहायत ज़रूरी हैं।” एक मामूली पेड़ भी अपने रचनाकार की महिमा करता है। संयुक्‍त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट कहती है कि पेड़ “सब देशों में लोगों की खुशहाली के लिए ज़रूरी हैं . . . पेड़ों की बहुत-सी जातियों से लकड़ी, फल, काष्ठ-फल, राल और गोंद मिलती है, जिसकी वजह से ये इंसान की कमाई का अहम ज़रिया हैं। सारी दुनिया में, 2 अरब लोगों को चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी और ईंधन पेड़ों से मिलता है।”

21. एक साधारण पत्ती से कैसे साबित होता है कि इसकी बढ़िया तरीके से रचना की गयी है, समझाइए।

21 पेड़ की रचना देखने से यह साबित होता है कि इसका एक बुद्धिमान सिरजनहार है। मसलन, एक छोटी-सी पत्ती को ही लीजिए। इसकी ऊपरी सतह मोम जैसी चिकनी होती है जो पत्ती को मुरझाने नहीं देती। इस सतह के ठीक नीचे ढेरों कोशिकाएँ होती हैं जिनमें क्लोरोप्लास्ट होता है। इनमें क्लोरोफिल होता है, जो प्रकाश की ऊर्जा को सोख लेता है। फोटोसिन्थेसिस या प्रकाश-संश्‍लेषण नाम की एक प्रक्रिया से पत्तियाँ मानो “भोजन बनाने का कारखाना” बन जाती हैं। बड़ी ही जटिल “नलकारी व्यवस्था” से पानी, पेड़ की जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाया जाता है। पत्ती के निचले हिस्से में, छोटे-छोटे आकार के (स्टोमाटा कहलानेवाले) हज़ारों “वाल्व” खुलते और बंद होते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेते हैं। प्रकाश से मिली ऊर्जा की मदद से पानी और कार्बन डाइऑक्साइड मिलकर कार्बोहाइड्रेट्‌स तैयार करते हैं। अब पेड़ यह खाना खा सकता है जो इसने खुद बनाया है। मगर, यह “कारखाना” बिना किसी शोर के काम करता है और बहुत सुंदर भी है। इस बीच वह ऑक्सीजन छोड़ता है जिससे किसी तरह का प्रदूषण नहीं फैलता!

22, 23. (क) कुछ पक्षियों और जानवरों में कौन-सी अनोखी काबिलीयत है? (ख) हमें और किन सवालों पर ध्यान देने की ज़रूरत है?

22 भजन 148:10 कहता है: “हे वन-पशुओ और सब घरैलू पशुओ, हे रेंगनेवाले जन्तुओ और हे पक्षियो!” पक्षियों और ज़मीन पर रहनेवाले बहुत-से पशुओं की काबिलीयत देखकर हम दाँतों तले उंगली दबा लेते हैं। लेसान एल्बाट्रॉस नाम का पक्षी बहुत दूर तक उड़ सकता है (एक बार सिर्फ 90 दिनों में इस पक्षी ने 40,000 किलोमीटर तक उड़ान भरी)। ब्लैकपोल वार्बलर पक्षी, उत्तर अमरीका से दक्षिण अमरीका तक उड़ता है और 80 घंटे लगातार उड़ता रहता है। ऊँट अपने शरीर में जो पानी भरता है वह, जैसे माना जाता था, उसकी पीठ के कूबड़ में नहीं होता बल्कि उसके पाचन-तंत्र में होता है। इस वजह से ऊँट बहुत दिनों तक बिना पानी पीए रह सकता है। इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं कि जब इंजीनियर नयी मशीनें और नए पदार्थ बनाना चाहते हैं तो वे पशु-जगत में ऐसी ही कारीगरी का बड़े ध्यान से अध्ययन करते हैं। लेखिका गेल क्लीर कहती हैं: “अगर आप कुछ ऐसा बनाना चाहते हैं जो अच्छी तरह काम करे . . . और अपने आस-पास के माहौल को नुकसान पहुँचाए बिना इसमें ठीक-ठीक समा जाए, तो मुमकिन है कि आपको इसकी अच्छी मिसाल कहीं-न-कहीं कुदरत में ज़रूर मिल जाएगी।”

23 जी हाँ, सृष्टि वाकई परमेश्‍वर की महिमा का ऐलान करती है! तारों से भरा आकाश, पेड़-पौधे, जानवर, हर कोई अपने तरीके से अपने सिरजनहार का गुणगान करता है। मगर हम इंसानों के बारे में क्या? हम सृष्टि के साथ-साथ परमेश्‍वर की महिमा का बखान कैसे कर सकते हैं?

क्या आपको याद है?

• परमेश्‍वर के वजूद से जो लोग इनकार करते हैं, उनके पास कोई बहाना क्यों नहीं रहता?

• तारे और ग्रह परमेश्‍वर की महिमा कैसे करते हैं?

• सागर में और ज़मीन पर रहनेवाले जानवर किस तरह एक स्नेही सिरजनहार का सबूत देते हैं?

• कुदरत की बेजान शक्‍तियाँ कैसे यहोवा की मरज़ी पूरी करती हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीर]

वैज्ञानिकों का अंदाज़ा है कि हम जिन तारों को देख सकते हैं, उनकी गिनती 70,00,00,00,00,00,00,00,00,00,000 है!

[चित्र का श्रेय]

Frank Zullo

[पेज 12 पर तसवीर]

बॉटल-नोज़ डॉल्फिन

[पेज 13 पर तसवीर]

हिम का एक कण

[चित्र का श्रेय]

snowcrystals.net

[पेज 13 पर तसवीर]

जवान लेसान एल्बाट्रॉस