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दुःख-दर्द के बावजूद मैंने ज़िंदगी से संतोष पाया

दुःख-दर्द के बावजूद मैंने ज़िंदगी से संतोष पाया

जीवन कहानी

दुःख-दर्द के बावजूद मैंने ज़िंदगी से संतोष पाया

ऑड्री हाइड की ज़ुबानी

जब मैं पूरे समय की सेवा में बिताए 63 सालों को याद करती हूँ, जिनमें से 59 साल मैंने यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय में बिताए हैं, तो मैं कह सकती हूँ कि मैंने संतोष भरी ज़िंदगी जी है। हाँ, यह सच है कि मैं उस वक्‍त बहुत बुरी तरह टूट गयी जब मेरे पहले पति कैंसर की चपेट में आ गए और धीरे-धीरे यह बीमारी उन्हें निगल गयी, और जब मेरे दूसरे पति, एल्ज़ाइमर्स रोग के शिकार हुए और इस बीमारी का उन पर बहुत खौफनाक असर हुआ। लेकिन मैं आपको बताना चाहूँगी कि इन दुःखों के बावजूद मैंने अपनी खुशी कैसे बरकरार रखी है।

मेरा बचपन, अमरीका के नेब्रास्का राज्य की सरहद के पास, उत्तरपूर्वी कॉलराडो के मैदानों में एक छोटे-से नगर हैक्सटन के एक फार्म पर बीता। मेरे माता-पिता का नाम ओरिल और नीना मॉक था। उनके कुल छः बच्चे थे, और मैं पाँचवें नंबर पर थी। मेरे भाई-बहनों के नाम थे, रसल, वेन, क्लैरा, और आरडिस। इनका जन्म सन्‌ 1913 से 1920 के बीच हुआ। मैं सन्‌ 1921 में पैदा हुई और मेरा छोटा भाई करटिस 1925 में पैदा हुआ।

सन्‌ 1913 में, माँ एक बाइबल विद्यार्थी बनीं। उन दिनों यहोवा के साक्षी इसी नाम से जाने जाते थे। कुछ वक्‍त के बाद, हम सब भी सच्चाई में आए।

मैदानों की ज़िंदगी से मैंने बहुत कुछ सीखा

पिताजी नए-नए विचारों और तौर-तरीकों को अपनाने में हमेशा आगे रहते थे। फार्म पर हमारी सभी इमारतों में बिजली से चलनेवाली बत्तियाँ हुआ करती थीं, उन दिनों ऐसा बड़ी मुश्‍किल से देखने को मिलता था। और फार्म की ज़िंदगी में आम तौर पर जो चीज़ें मिलती हैं, उनका हमने भी मज़ा उठाया—अपनी मुर्गियों के अंडे, और गायों का दूध, साथ ही मलाई और मक्खन का भी। खेतों में काम करने के लिए हम घोड़ों को हल में जोतते थे और स्ट्राबेरी, आलू, गेहूँ और मक्का की फसल उगाते थे।

पिताजी का मानना था कि हम सब बच्चों को काम सीखना चाहिए। स्कूल जाने से पहले ही मुझे खेतों में काम करने की ट्रेनिंग दी गयी थी। मुझे गर्मियों के वे दिन याद हैं जब चिलचिलाती धूप में हम अपने बागीचे की लंबी-लंबी क्यारियों में गोड़ाई करते थे। मैं सोचती थी, ‘क्या मैं कभी इस क्यारी के आखिर तक पहुँच पाऊँगी?’ पसीने की धाराएँ मेरे शरीर से बहती जाती थीं और मुझे कई बार मधुमक्खियों ने डंक भी मारा। कभी-कभी, मुझे खुद पर तरस आता था क्योंकि दूसरे बच्चों को हमारी तरह कड़ी मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। लेकिन, सच तो यह है कि जब मैं अपना बचपन याद करती हूँ तो एहसान मानती हूँ कि हमें काम करना सिखाया गया।

सभी बच्चों को अलग-अलग काम दिए गए थे। आरडिस मुझसे ज़्यादा अच्छी तरह गाय का दूध दुहती थी, इसलिए मुझे अस्तबल की साफ-सफाई करने और बेलचे से लीद हटाने का काम मिला था। मगर काम के अलावा, हम खेलते-कूदते और मौज-मस्ती भी करते थे। आरडिस और मैं बेसबॉल खेलते थे और खेल के मैदान में हमारी अलग-अलग जगहें होती थीं।

मैदानों में रात को खुले आसमान का नज़ारा देखने लायक होता है। हज़ारों तारे मुझे अपने सिरजनहार, यहोवा परमेश्‍वर की याद दिलाते थे। जब मैं बच्ची ही थी, तब भी इन तारों को देखकर भजन 147:4 के बारे में सोचती थी जहाँ लिखा है: “वह [यहोवा] तारों को गिनता, और उन में से एक एक का नाम रखता है।” ऐसी कई रातें बीतीं जब मैं खुले आसमान को निहारती रहती और हमारा कुत्ता, जज मेरी गोद में अपना सिर रख लेता और मेरा साथ देता। मैं अकसर दोपहर को घर के बरामदे में बैठी खेतों में कच्चे गेहूँ की हरी-हरी बालियों को हवा में झूमते देखती। धूप में ये बालियाँ चाँदी जैसी दिखायी देती थीं।

माँ की बेहतरीन मिसाल

माँ जी-जान से अपनी घर-गृहस्थी की देखभाल करती थी। पिताजी हमेशा घर के मुखिया रहे, और माँ ने हमें उनका आदर करना सिखाया। सन्‌ 1939 में पिताजी भी यहोवा के साक्षी बने। पिताजी हमसे कड़ी मेहनत करवाते थे और उन्होंने हमें कभी-भी हद-से ज़्यादा लाड़ करके सिर नहीं चढ़ाया, फिर भी हम जानते थे कि वे हमसे बेहद प्यार करते हैं। कभी-कभी सर्दियों में वे दो घोड़ों को बर्फ पर चलनेवाली स्लेज गाड़ी के साथ बाँध लेते और हमें सैर करवाते। झिलमिलाती बर्फ को देखकर हम खुशी से पागल हो जाते!

लेकिन, परमेश्‍वर से प्रेम करने और बाइबल का आदर करने की तालीम हमें माँ से मिली। हमने सीखा कि परमेश्‍वर का नाम यहोवा है और वही हमारा जीवनदाता है। (भजन 36:9; 83:18) हमने यह भी सीखा कि परमेश्‍वर ने हमें नियम दिए हैं जो हमारी खुशी छीनने के लिए नहीं बल्कि हमारे लाभ के लिए हैं। (यशायाह 48:17) माँ हमेशा याद दिलाती कि हमें एक खास काम करना है। हमने सीखा कि उस काम के बारे में यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती 24:14.

जब मैं बच्ची ही थी, तब स्कूल से लौटकर अगर मैं माँ को घर पर नहीं पाती तो उसे ढूँढ़ने निकल पड़ती। एक बार जब मैं लगभग छः या सात साल की थी तब मैंने माँ को अनाज के खत्ते में पाया। तभी मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी। हम खत्ते के ऊपरी हिस्से में थे जहाँ सूखी घास रखी जाती थी, और मैंने माँ से पूछा कि क्या परमेश्‍वर एक और जलप्रलय ला रहा है। माँ ने मुझे यकीन दिलाया कि परमेश्‍वर का वादा है कि वह फिर कभी इस धरती पर जलप्रलय लाकर इसका अंत नहीं करेगा। मुझे यह भी याद है कि मैं कई बार घर के पास एक तहखाने में जाकर छिपने की कोशिश करती थी, क्योंकि हमारे यहाँ बवंडर और आँधी चलना आम बात थी।

मेरे पैदा होने से पहले ही, माँ ने प्रचार काम शुरू कर दिया था। हमारे घर में भाई-बहनों का एक समूह सभाओं के लिए आता था और इन सभी को मसीह के साथ स्वर्ग में जीने की आशा थी। हालाँकि माँ के लिए घर-घर जाकर प्रचार करना बहुत बड़ी चुनौती थी, फिर भी परमेश्‍वर के लिए माँ का प्यार इतना गहरा था कि उसने इस डर पर भी काबू पाया। नवंबर 24,1969 को, माँ 84 साल की उम्र में चल बसी। वह आखिरी साँस तक परमेश्‍वर की वफादार रही। उसके आखिरी वक्‍त में, मैंने उसके कान में फुसफुसाकर कहा: “माँ, तुम स्वर्ग जा रही हो और वहाँ ऐसे कई और भी होंगे जिन्हें तुम जानती-पहचानती हो।” मुझे इस बात की खुशी है कि माँ की अंतिम घड़ियों में मैं उसके साथ थी और उसके स्वर्ग जाने की जिस आशा का मुझे यकीन था वह मैं उससे कह सकी! माँ ने धीमे से कहा था: “तूने मेरे साथ बहुत अच्छाई की है, बेटे।”

हमने प्रचार शुरू किया

यहोवा के साक्षियों में पूरे समय के प्रचारक पायनियर कहलाते हैं। सन्‌ 1939 में मेरा भाई रसल पायनियर बना। उसने सन्‌ 1944 तक ओक्लहोमा और नेब्रास्का राज्यों में पायनियर सेवा की और फिर उसे यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय में (जिसे बेथेल कहा जाता है) सेवा करने के लिए बुलाया गया। यह मुख्यालय, न्यू यॉर्क शहर के ब्रुकलिन इलाके में है। मैंने सितंबर 20,1941 को पायनियर सेवा शुरू की और कॉलराडो, कानज़स और नेब्रास्का के अलग-अलग इलाकों में प्रचार किया। पायनियर सेवा में बिताए वे साल खुशियों-भरे थे, क्योंकि इन सालों के दौरान मैंने दूसरों को यहोवा के बारे में सीखने में तो मदद दी ही, साथ ही मैंने खुद भी यहोवा पर निर्भर रहना सीखा।

जिस वक्‍त रसल ने पायनियर सेवा शुरू की, उस वक्‍त तक वेन थोड़े समय नौकरी करने के बाद अमरीका के उत्तरपूर्वी तट के पास कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था। बाद में उसे बेथेल बुलाया गया। उसने न्यू यॉर्क के इथिका शहर के पास किंगडम फार्म में कुछ साल काम किया। उस फार्म पर सब्ज़ियाँ, फल वगैरह उगाए जाते थे, जो वहाँ के छोटे-से बेथेल परिवार और ब्रुकलिन बेथेल परिवार के लगभग 200 सदस्यों के खाने के काम आते थे। वेन ने यहोवा की सेवा में अपना हुनर और तजुरबा लगाया और सन्‌ 1988 में अपनी मौत तक वह ऐसा ही करता रहा।

मेरी बहन आरडिस ने जेम्स कर्न से शादी की और उनके पाँच बच्चे हुए। सन्‌ 1997 में वह चल बसी। मेरी बड़ी बहन, क्लैरा आज तक वफादारी से यहोवा की सेवा कर रही है और मैं अब भी छुट्टियों के दौरान कॉलराडो में उसके घर उससे मिलने जाती हूँ। हमारा सबसे छोटा भाई करटिस 1940 के दशक के बीच के सालों में ब्रुकलिन बेथेल आया। वह ट्रक में तरह-तरह की चीज़ें और खेत की पैदावार लेकर किंगडम फार्म से ब्रुकलिन के बीच आता-जाता था। उसने शादी नहीं की और सन्‌ 1971 में वह चल बसा।

बेथेल सेवा—मेरी तमन्‍ना

जब मेरे बड़े भाई बेथेल जा चुके थे तब मेरी भी दिली तमन्‍ना थी कि वहाँ सेवा करूँ। मैं जानती हूँ कि उनकी अच्छी मिसाल देखकर मुझे बेथेल बुलाया गया। माँ जब परमेश्‍वर के संगठन के इतिहास के बारे में बताती और मैं अंतिम दिनों के बारे में बाइबल की भविष्यवाणियों को खुद पूरा होते देखती, तो बेथेल में सेवा करने की मेरी इच्छा और ज़ोर पकड़ती। मैंने प्रार्थना में यहोवा के आगे शपथ ली कि अगर वह मुझे बेथेल में सेवा करने का मौका देगा, तो मैं तब तक उसकी सेवा करती रहूँगी जब तक किसी और मसीही ज़िम्मेदारी की वजह से मुझे यह सेवा न छोड़नी पड़े।

मैं जून 20, 1945 को बेथेल आयी और मुझे हाऊसकीपर का काम सौंपा गया। मुझे हर दिन 13 कमरों की सफाई करनी थी, 26 बिस्तर लगाने थे और इनके अलावा गलियारों, सीढ़ियों और खिड़कियों को साफ करना था। यह काम बहुत मेहनत-मशक्कत का था। हर दिन काम करते वक्‍त मैं खुद से कहती, ‘बेशक तुम थक गयी हो, मगर याद रखो तुम यहाँ बेथेल में, परमेश्‍वर के घर में हो!’

जब मैं बेथेल में नयी-नयी थी, तो मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ जिससे मैं बहुत शर्मिंदा हुई। मैं गाँव में पली-बढ़ी थी, इसलिए मुझे शहर की भाषा और तौर-तरीकों की इतनी समझ नहीं थी। मुझे पता नहीं था कि इमारत की अलग-अलग मंज़िलों पर सामान ले जानेवाली छोटी-सी लिफ्ट को यहाँ ‘डमवेटर’ कहा जाता है। एक दिन, काम करते वक्‍त मुझे फोन आया और कहा गया, “क्या आप डमवेटर को नीचे भेज देंगी?” फोन करनेवाले ने जल्दी से फोन काट दिया, इसलिए मुझे पता नहीं चला कि क्या करना है। तब मुझे याद आया कि जिस मंज़िल पर मैं काम करती हूँ उस पर रहनेवाला एक भाई वेटर (या, बैरा) है। तो मैंने उसका दरवाज़ा खटखटाया और उससे कहा, “आपको किचन में बुलाया गया है।”

नेथन नॉर से शादी

सन्‌ 1920 के बाद से, बेथेल के जो सदस्य शादी करना चाहते थे, शादी के बाद उन्हें बेथेल छोड़कर कहीं और राज्य का काम करने के लिए कहा जाता था। मगर सन्‌ 1950 के बाद के सालों में, बेथेल में काफी समय से काम कर रहे कुछ लोगों ने जब शादी की, तो उन्हें बेथेल में ही रहने की इजाज़त दी गयी। सो जब नेथन एच. नॉर ने मुझमें दिलचस्पी लेनी शुरू की तो मैंने सोचा, ‘हाँ, ये तो बेथेल में ही रहेंगे!’ उस वक्‍त नेथन दुनिया भर में फैले राज्य के काम की अगुवाई कर रहे थे।

यहोवा के साक्षियों के दुनिया भर में फैले काम की निगरानी करने में, नेथन पर काफी ज़िम्मेदारियाँ थीं। इसलिए उन्होंने मुझे साफ-साफ समझाया कि क्यों उनसे शादी के लिए हाँ कहने से पहले मुझे अच्छी तरह सोच लेना चाहिए। उन दिनों, वे पूरी दुनिया में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तरों का दौरा करने की वजह से अकसर कई-कई हफ्ते बाहर रहते थे। उन्होंने मुझे समझाया कि इन दौरों की वजह से हमें काफी वक्‍त तक एक-दूसरे से दूर रहना पड़ सकता है।

जब मैं छोटी थी, तो मैंने सपना देखा था कि मैं बहार के मौसम में शादी करूँगी और प्रशांत सागर के हवाई द्वीपों पर हनीमून मनाऊँगी। हुआ यूँ कि हमारी शादी सर्दियों में जनवरी 31,1953 को हुई और हमने उस शनिवार की दोपहर और रविवार को हनीमून न्यू जर्ज़ी राज्य में मनाया। सोमवार को फिर से हम बेथेल में अपने काम में लग गए। लेकिन, सात दिन के बाद हमें पूरे एक हफ्ते के लिए अपना हनीमून मनाने का वक्‍त ज़रूर मिला।

मेहनत से न घबरानेवाला साथी

जब नेथन सन्‌ 1923 में बेथेल आए, तो उनकी उम्र 18 साल थी। उस वक्‍त साक्षियों के काम की अगुवाई भाई जोसॆफ एफ. रदरफर्ड कर रहे थे। उनसे और प्रिंटरी मैनेजर, रॉबर्ट जे. मार्टिन जैसे तजुरबेकार भाइयों से नेथन ने बढ़िया ट्रेनिंग पायी। जब सितंबर 1932 में भाई मार्टिन चल बसे, तब नेथन उनकी जगह प्रिंटरी मैनेजर बने। उसके अगले साल, भाई रदरफर्ड ने यूरोप में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तरों का दौरा किया और अपने साथ नेथन को भी ले गए। जब जनवरी 1942 में भाई रदरफर्ड चल बसे, तब नेथन को सारी दुनिया में यहोवा के साक्षियों के काम की निगरानी करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी।

नेथन हमेशा आगे की सोचते थे, और भविष्य में होनेवाली बढ़ोतरी की तैयारी करने में लगे रहते थे। कुछ लोगों को उनका यह तरीका ठीक नहीं लगता था, क्योंकि ज़्यादातर भाई यही मानते थे कि इस व्यवस्था का अंत बहुत करीब है। दरअसल, नेथन की योजनाएँ देखनेवाले एक भाई ने उनसे पूछा: “भाई नॉर, यह सब क्या है? क्या आपको अंत के आने पर विश्‍वास नहीं?” उनका जवाब था: “मुझे विश्‍वास है, मगर जितनी जल्दी अंत आने की हम सोच रहे हैं, अगर तब अंत नहीं आया तो हम आगे के लिए तैयार रहेंगे।”

नेथन को खासकर एक बात का एहसास था कि मिशनरियों के लिए एक स्कूल बनाना बेहद ज़रूरी है। इसलिए, फरवरी 1, 1943 को किंगडम फार्म में, जहाँ उस वक्‍त मेरा भाई वेन सेवा कर रहा था, मिशनरी स्कूल शुरू किया गया। हालाँकि स्कूल में विद्यार्थियों को पाँच महीने पूरे जी-जान से बाइबल का अध्ययन करना होता था, नेथन ने इस बात का ध्यान रखा कि विद्यार्थियों को मनोरंजन के लिए भी थोड़ा वक्‍त मिले। शुरू की कुछ क्लासों के साथ, वे भी खेलों में हिस्सा लेते थे, मगर बाद में उन्होंने इस डर से खेलना बंद कर दिया कि अगर उन्हें चोट लग गयी तो वे गर्मियों के मौसम में ज़िला अधिवेशनों में हाज़िर नहीं हो सकेंगे। खेलने के बजाय उन्होंने अम्पायर होने का चुनाव किया। विद्यार्थी बड़े खुश होते थे, जब नेथन विदेश से आए विद्यार्थियों के लिए खेल के नियमों को तोड़कर उनके पक्ष में फैसला सुनाते थे।

नेथन के साथ दौरों पर

एक वक्‍त ऐसा आया जब मैं नेथन के साथ दूसरे देशों के दौरों पर जाने लगी। संस्था के शाखा दफ्तरों में काम करनेवाले भाई-बहनों और मिशनरियों के अनुभव सुनना और उन्हें अपने अनुभव बताना मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैंने खुद देखा कि उनमें यहोवा के लिए कितना प्यार, कितनी भक्‍ति है, और मैंने उनके रोज़ के कार्यक्रम और जिन देशों में उन्हें भेजा गया था, वहाँ के हालात के बारे में जाना। बरसों बीत गए मगर आज भी मुझे ऐसे खत मिलते हैं जिनमें इन दौरों के लिए एहसानमंदी जतायी जाती है।

हमने जो दौरे किए उनकी कुछ यादें आज भी ताज़ा हैं। मसलन, मुझे याद है जब हम पोलैंड गए थे, तो दो बहनें मेरी मौजूदगी में एक-दूसरे से खुसुर-फुसुर कर रही थीं। मैंने उनसे पूछा, “आप इस तरह धीमी आवाज़ में क्यों बोल रही हैं?” बहनों ने मुझसे माफी माँगी और कहा कि जब पोलैंड में यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी थी तब उनके घरों में अधिकारियों ने माइक्रोफोन छिपा रखे थे, ताकि वे साक्षियों की बातें सुन सकें। इसलिए ये भाई-बहन तब से हर वक्‍त धीमी आवाज़ में बात करने के आदी हो गए थे।

बहन आदाह उन कई भाई-बहनों में से हैं, जिन्होंने पोलैंड में पाबंदी के दौरान सेवा की थी। उनके घुँघराले बाल थे और कुछ लटें माथे पर थीं। एक बार उन्होंने अपनी लटें हटाकर एक गहरी चोट का निशान दिखाया। साक्षियों को सतानेवाले एक आदमी ने उन पर वार किया था। उनके घावों के निशान देखकर मेरे पाँवों तले ज़मीन खिसक गयी। उन लोगों ने हमारे भाई-बहनों के साथ कितनी बेरहमी की थी।

बेथेल के बाद, मेरी सबसे मनपसंद जगह हवाई द्वीप हैं। सन्‌ 1957 में, वहाँ के हीलो शहर का अधिवेशन मुझे याद है। यह बड़ा ही यादगार अधिवेशन था और कुल हाज़िरी वहाँ के साक्षियों की कुल गिनती से बढ़कर थी। वहाँ के मेयर ने नेथन का शहर में बाकायदा स्वागत किया। बहुत लोगों ने हमारा स्वागत फूलों के हार से किया।

एक और रोमांचकारी अधिवेशन सन्‌ 1955 में जर्मनी के न्युरमबर्ग शहर में हुआ। यह अधिवेशन उस मैदान में रखा गया था जहाँ कभी हिटलर की फौजें परेड किया करती थीं। यह बात जानी-मानी है कि हिटलर ने जर्मनी से यहोवा के लोगों का नामो-निशान मिटा देने की कसम खायी थी, मगर अब वह स्टेडियम यहोवा के साक्षियों से खचाखच भरा था! मैं अपने आँसू रोक न सकी। स्टेडियम का प्लेटफॉर्म बहुत ही बड़ा था और इसके पीछे की तरफ 144 विशाल स्तंभ बने हुए थे और इनका नज़ारा देखने लायक था। मैं स्टेज पर थी और सामने 1,07,000 से भी ज़्यादा श्रोताओं के विशाल सागर को देख सकती थी। स्टेडियम की आखिरी पंक्‍ति इतनी दूर थी कि बड़ी मुश्‍किल से मैं वहाँ तक देख पायी।

जर्मनी में हमारे इन भाइयों को नात्ज़ी हुकूमत के अधीन बहुत सताया गया था। इस दौरान भाइयों ने जिस तरह अपनी खराई बनाए रखी और जिस तरह यहोवा ने उन्हें सबकुछ सहने की ताकत बख्शी उसे हम महसूस कर सकते थे। इससे हमारा भी इरादा मज़बूत हुआ कि हम हर हाल में यहोवा के वफादार रहेंगे और अपनी खराई बनाए रखेंगे। नेथन ने उस अधिवेशन का आखिरी भाषण दिया और भाषण खत्म होने पर उन्होंने हाथ हिलाकर श्रोताओं को अलविदा कहा। श्रोताओं ने फौरन इसका जवाब दिया और अलविदा कहने के लिए वे अपने-अपने रूमाल हवा में लहराने लगे। वह क्या ही खूबसूरत नज़ारा था, ऐसा लग रहा था मानो बागीचे में फूल हवा में झूम रहे हों।

दिसंबर 1974 का पुर्तगाल का दौरा भी मेरी यादों में बसा हुआ है। वहाँ हमारे काम पर 50 साल से पाबंदी लगी हुई थी! मगर तभी साक्षियों के काम को कानूनी मान्यता मिली थी और इसके बाद साक्षियों की पहली सभा लिस्बन में हुई जिसमें हम मौजूद थे। उस वक्‍त देश में राज्य के प्रचारक सिर्फ 14,000 थे, फिर भी 46,000 से ज़्यादा लोग दो सभाओं में हाज़िर हुए। मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े जब भाइयों ने कहा: “अब हमें छिपने की ज़रूरत नहीं है। हम आज़ाद हैं।”

नेथन के साथ दौरों पर जाते वक्‍त और आज भी, मैं हवाई-जहाज़ों, रेस्तराँ में और सड़कों पर मौका देखकर गवाही देना पसंद करती हूँ। मैं हर वक्‍त अपने साथ साहित्य रखती हूँ ताकि गवाही देने के लिए तैयार रहूँ। एक बार हमारे हवाई-जहाज़ के उड़ान के समय में देरी हो रही थी, तो एक स्त्री ने मुझसे पूछा कि मैं क्या काम करती हूँ। इस तरह उससे और हमारे आस-पास बैठे लोगों से बातचीत शुरू हुई और उन सबने हमारी बात सुनी। बेथेल सेवा और प्रचार के काम में मैं हमेशा व्यस्त रही हूँ और इससे मुझे बहुत खुशी मिली है।

बीमारी और बिछड़ने से पहले की सलाह

सन्‌ 1976 में नेथन कैंसर की वजह से बीमार पड़ गए और मेरे साथ-साथ बेथेल के और भाई-बहनों ने उन्हें इस तकलीफ को बरदाश्‍त करने में मदद दी। उनकी बिगड़ती सेहत के बावजूद, हम ऐसे भाइयों को अपने कमरे में बुलाकर मेहमाननवाज़ी दिखाते थे जो दुनिया भर के शाखा दफ्तरों के सदस्य थे और ब्रुकलिन में ट्रेनिंग पाने के लिए आए हुए थे। मुझे याद है ये भाई-बहन हमसे मिलने हमारे कमरे में आए थे: डॉन और अरलीन स्टील, लॉइड और मॆलबा बैरी, डगलस और मॆरी गेस्ट, मार्टिन और गर्टरुड पोएट्‌ज़िंगर, प्राइस ह्‍यूज़ और ऐसे ही कई लोग। और जब वे आते तो अकसर अपने-अपने देश के अनुभव हमें बताते थे। मुझ पर खासकर ऐसे अनुभव गहरी छाप छोड़ जाते थे जो पाबंदी के बावजूद हमारे भाइयों के विश्‍वास में मज़बूत रहने के बारे में होते थे।

जब नेथन को एहसास हुआ कि वे चंद दिनों के मेहमान हैं, तो उन्होंने मुझे एक विधवा का दुःख बरदाश्‍त करने के लिए अच्छी सलाह दी। उन्होंने कहा: “हमारी शादी-शुदा ज़िंदगी बहुत सुखी रही है। बहुत-से लोगों को यह सुख नहीं मिलता।” नेथन की खूबी थी कि वे बहुत परवाह करनेवाले इंसान थे यहाँ तक कि छोटी-से-छोटी बात में भी उन्हें मेरा ध्यान रहता था और इस एक वजह से हमारी शादी-शुदा ज़िंदगी बहुत खुशहाल रही। मिसाल के लिए, जब हम अपने दौरों में अलग-अलग लोगों से मिलते थे, तो वे मुझसे कहते: “ऑड्री, अगर मैं कभी-कभी किसी से आपको नहीं मिलवाता, तो वह इसलिए कि मुझे उनका नाम याद नहीं रहता।” मुझे अच्छा लगा कि उन्होंने पहले ही यह बात कहकर मुझे तैयार कर दिया।

नेथन ने मुझे याद दिलाया: “मौत के बाद, एक इंसान की आशा पक्की हो जाती है, और उसे फिर कभी तकलीफ से गुज़रना नहीं पड़ेगा।” फिर उन्होंने मुझसे गुज़ारिश की: “हमेशा आगे की तरफ देखती रहना, क्योंकि आपका इनाम वहीं हैं। अतीत का बोझ लेकर मत जीना—हाँ, बेशक यादें तो तुम्हारे साथ रहेंगी ही। वक्‍त आपके घावों पर मरहम का काम करेगा। खुद को लाचार और बेबस मानकर कुढ़ना मत। इस बात के लिए खुश रहना कि आपको ये तमाम खुशियाँ और आशीषें मिलीं। कुछ वक्‍त के बाद, आप देखोगी कि यादें आपको खुशियों के पल दे जाएँगी। परमेश्‍वर ने हमें यादों के रूप में एक बढ़िया तोहफा दिया है।” उन्होंने आगे कहा: “परमेश्‍वर के काम में लगी रहना—अपनी ज़िंदगी को दूसरों का भला करने में लगाना। इससे आपको जीने में खुशी मिलेगी।” आखिरकार, जून 8, 1977 को नेथन ने धरती पर अपनी ज़िंदगी खत्म की।

ग्लॆन हाइड से शादी

नेथन ने मुझसे कहा था कि मैं चाहूँ तो यादों के सहारे अपने अतीत को ज़िंदा रख सकती हूँ या नए सिरे से ज़िंदगी शुरू कर सकती हूँ। इसलिए, मैं न्यू यॉर्क के वॉलकिल इलाके में वॉचटावर फार्म में रहने चली गयी। वहाँ सन्‌ 1978 में मेरी शादी ग्लॆन हाइड से हुई जो बड़े ही सजीले, शांत और सज्जन इंसान थे। साक्षी बनने से पहले वह नौसेना में उस वक्‍त काम कर चुके थे जब अमरीका और जापान के बीच युद्ध छिड़ा हुआ था।

नौसेना में ग्लॆन, गश्‍त लगानेवाली टॉरपीडो नौका पर काम करते थे और उन्हें इंजन रूम में काम दिया गया था। इंजन की तेज़ आवाज़ की वजह से वे कुछ हद तक अपनी सुनने की शक्‍ति खो चुके थे। युद्ध के बाद वे अग्नि-शमन दल में आग बुझानेवाले का काम करने लगे। युद्ध के कड़वे अनुभवों की वजह से उन्हें कई सालों तक रात को बुरे-बुरे सपने आते थे। उनकी सेक्रेटरी ने उन्हें गवाही दी थी और इस तरह उन्होंने बाइबल की सच्चाई सीखी।

बाद में, सन्‌ 1968 में ग्लॆन को बेथेल बुला लिया गया और उन्हें ब्रुकलिन में आग बुझानेवाले का काम दिया गया। फिर जब सन्‌ 1975 में वॉचटावर फार्म में आग बुझाने का सामान लाया गया, तो उन्हें वहाँ भेज दिया गया। कुछ वक्‍त के बाद, उन्हें एल्ज़ाइमर्स रोग ने आ घेरा। हमारी शादी के दस साल बाद ग्लॆन की मौत हो गयी।

अब मैं इस दुःख को कैसे बरदाश्‍त करती? नेथन ने अपने आखिरी वक्‍त में मुझे जो बुद्धि भरी सलाह दी थी, उससे मुझे फिर से दिलासा मिला। विधवा होने के दुःख को बरदाश्‍त करने के बारे में उनकी लिखी बातें मैं पढ़ती रहती जो उन्होंने मेरे लिए लिखी थीं। आज भी जब किसी के जीवन-साथी की मौत होती है, तो मैं उन्हें ये बातें बताती हूँ, और उन्हें भी नेथन की सलाह से दिलासा मिलता है। जी हाँ, जैसे उन्होंने सलाह दी थी, आगे की तरफ देखते रहना अच्छा है।

अनमोल भाईचारा

बेथेल परिवार में मेरे कई अज़ीज़ दोस्त हैं, जिनकी वजह से मुझे अपनी ज़िंदगी में खुशी और संतोष मिला है। मेरी एक खास सहेली है एस्तर लोपेज़, जो सन्‌ 1944 में वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की तीसरी क्लास से ग्रैजुएट हुई। वह फरवरी 1950 में वापस ब्रुकलिन आयी, क्योंकि उसे संस्था के साहित्य को स्पैनिश भाषा में अनुवाद करने का काम मिला था। अकसर जब नेथन बाहर रहते थे, तब एस्तर ज़्यादातर मेरे साथ रहती थी। वह भी अब वॉचटावर फार्म में ही है। अब उसकी उम्र 95 के आस-पास है, उसकी सेहत भी बिगड़ती जा रही है, इसलिए बेथेल के दवाखाने में उसकी देखभाल की जा रही है।

मेरे परिवार में से अब सिर्फ रसल और क्लैरा ज़िंदा हैं। रसल 90 पार कर चुका है और ब्रुकलिन बेथेल में वफादारी से सेवा कर रहा है। वह उन लोगों में से पहला शख्स था, जिन्हें शादी के बाद भी बेथेल में रहने की इजाज़त दी गयी। उसने सन्‌ 1952 में, बेथेल की एक बहन जीन लारसॉन से शादी की। जीन का भाई, मैक्स सन्‌ 1939 में बेथेल आया था और नेथन के बाद उसने 1942 में प्रिंटरी मैनेजर की जगह ली। मैक्स आज भी बेथेल में काफी ज़िम्मेदारियाँ सँभाल रहा है, साथ ही वह अपनी प्यारी पत्नी हेलन की देखभाल में भी मदद देता है जो मल्टिपल स्क्लेरोसिस की बीमारी से जूझ रही है।

यहोवा की सेवा में जो पूरे समय की सेवा करते हुए मैंने 63 साल बिताए हैं, उन्हें याद करके मैं कह सकती हूँ कि ज़िंदगी से मैंने सच्चा संतोष पाया है। बेथेल मेरा घर बन गया और अब भी मैं यहाँ खुशी-खुशी सेवा कर रही हूँ। इसका सारा श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है जिन्होंने हम बच्चों को काम करने की अहमियत सिखायी और हमारे अंदर यहोवा की सेवा करने की इच्छा जगायी। मगर जो चीज़ ज़िंदगी में सच्चा संतोष दिलाती है, वह है हमारा बेजोड़ भाईचारा और अपने भाई-बहनों के साथ फिरदौस में जीने की आशा। जी हाँ, वह ऐसा वक्‍त होगा जब हम अपने महान सिरजनहार, एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की हमेशा-हमेशा तक सेवा करते रहेंगे।

[पेज 24 पर तसवीरें]

जून 1912, मेरे माता-पिता की शादी का दिन

बाएँ से दाएँ: सन्‌ 1927 में रसल, वेन, क्लैरा, आरडिस, मैं और करटिस

[पेज 25 पर तसवीरें]

सन्‌ 1944 में पायनियर सेवा करते हुए, फ्रांसेस और बार्बरा मैकनॉट के बीच खड़ी मैं

सन्‌ 1951 में बेथेल में। बाएँ से दाएँ: मैं, एस्तर लोपेज़ और मेरी भाभी जीन

[पेज 26 पर तसवीरें]

नेथन और उनके माता-पिता के साथ

सन्‌ 1955 में नेथन के साथ

[पेज 27 पर तसवीर]

नेथन के साथ हवाई द्वीपों में

[पेज 29 पर तसवीर]

अपने दूसरे पति ग्लॆन के साथ