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क्या आप “यहोवा की व्यवस्था” से दिली खुशी पाते हैं?

क्या आप “यहोवा की व्यवस्था” से दिली खुशी पाते हैं?

क्या आप “यहोवा की व्यवस्था” से दिली खुशी पाते हैं?

“क्या ही खुश है वह पुरुष जो . . . यहोवा की व्यवस्था से दिली खुशी पाता है।”भजन 1:1, 2, NW.

1. यहोवा के सेवक होने के नाते हम क्यों खुश हैं?

 यहोवा अपने वफादार सेवकों की यानी हमारी मदद करता और हमें आशीष देता है। यह सच है कि हम कई परीक्षाओं से गुज़रते हैं। लेकिन, हम सच्ची खुशी का भी आनंद लेते हैं। यह ताज्जुब की बात नहीं, क्योंकि हम “आनन्दित परमेश्‍वर” की सेवा करते हैं और उसकी पवित्र आत्मा हमारे अंदर आनंद का गुण पैदा करती है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW; गलतियों 5:22) आनंद, सच्ची खुशी का वह एहसास है जो किसी अच्छी चीज़ की आशा से या उसे पाने से मिलता है। और स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता बेशक हमें अच्छे-से-अच्छा वरदान देता है। (याकूब 1:17) तो इसमें कोई शक नहीं कि हम खुश हैं!

2. हम किन भजनों पर चर्चा करनेवाले हैं?

2 खुशी के बारे में भजन की किताब में बहुत कुछ बताया गया है। मिसाल के तौर पर भजन 1 और 2 को लीजिए। यीशु मसीह के शुरूआती चेलों ने बताया कि दूसरा भजन दाऊद ने लिखा था। (प्रेरितों 4:25, 26) पहले भजन का अनाम लेखक ईश्‍वर-प्रेरित गीत की शुरूआत यूँ करता है: “क्या ही खुश है वह पुरुष जो दुष्टों की सलाह पर नहीं चलता।” (भजन 1:1, NW) आइए इस और अगले लेख में हम देखें की भजन 1 और 2 में खुश होने की क्या वजह दी गयी हैं।

खुशी का राज़

3. भजन 1:1 के मुताबिक परमेश्‍वर के नियमों पर चलनेवाले इंसान के खुश रहने की कुछेक वजह क्या हैं?

3 भजन 1 दिखाता है कि परमेश्‍वर के नियमों पर चलनेवाला इंसान क्यों खुश है। ऐसी खुशी की कुछेक वजह बताते हुए भजनहार गाता है: “क्या ही खुश है वह पुरुष जो दुष्टों की सलाह पर नहीं चलता, और पापियों के मार्ग में खड़ा नहीं होता और ठट्ठा करनेवालों के आसन पर नहीं बैठता।”—भजन 1:1, NW.

4. जकरयाह और इलीशिबा ने कैसी बेहतरीन ज़िंदगी जीने की मिसाल कायम की?

4 सच्ची खुशी पाने के लिए हमें पूरी तरह यहोवा की धर्मी माँगों के मुताबिक जीना होगा। जकरयाह और इलीशिबा जिन्हें यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले के माता-पिता बनने का सम्मान और खुशी मिली थी, “वे दोनों परमेश्‍वर के साम्हने धर्मी थे: और प्रभु की सारी आज्ञाओं और विधियों पर निर्दोष चलनेवाले थे।” (लूका 1:5, 6) उनकी तरह अगर हम भी सही राह अपनाएँ और ‘दुष्टों की सलाह पर चलने’ से या पाप से भरे उनके मशविरे मानने से साफ इनकार करें, तो हम भी खुश रह सकते हैं।

5. “पापियों के मार्ग” से दूर रहने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

5 अगर हम दुष्टों के सोच-विचार ठुकराते हैं, तो हम ‘पापियों के मार्ग में नहीं खड़े’ होंगे। दरअसल हम ऐसी सचमुच की जगहों पर नहीं जाएँगे जहाँ वे अकसर मौजूद होते हैं, यानी अनैतिक मनोरंजन की जगह या बदनाम इलाकों में। लेकिन तब क्या जब पापियों के साथ गलत काम करने के लिए हम ललचाए जाएँ? ऐसे में आइए हम प्रार्थना करें कि परमेश्‍वर हमें पौलुस के कहे मुताबिक काम करने की ताकत दे: “अविश्‍वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल जोल? या ज्योति और अन्धकार की क्या संगति?” (2 कुरिन्थियों 6:14) अगर हम परमेश्‍वर पर भरोसा रखें और ‘मन से शुद्ध हों,’ तो हम पापियों के रवैए और तौर-तरीकों को ठुकरा सकेंगे, साथ ही हमारे इरादे और इच्छाएँ “कपटरहित विश्‍वास” के साथ शुद्ध होंगी।—मत्ती 5:8; 1 तीमुथियुस 1:5.

6. हमें ठट्ठा करनेवालों से क्यों खबरदार रहना चाहिए?

6 यहोवा को प्रसन्‍न करने के लिए हमें किसी भी हाल में ‘ठट्ठा करनेवालों के आसन पर नहीं बैठना’ चाहिए। कुछ लोग परमेश्‍वर के नियमों पर चलने की बात का ठट्ठा उड़ाते हैं, लेकिन इन “अंतिम दिनों” में खासतौर पर ज़्यादा चुभनेवाली बातें वे करते हैं जो कभी मसीही थे, मगर अब धर्मत्यागी बन चुके हैं। प्रेरित पतरस ने संगी विश्‍वासियों को खबरदार करते हुए कहा: “हे प्रियो, . . . यह पहिले जान लो, कि अन्तिम दिनों में हंसी ठट्ठा करनेवाले आएंगे, जो अपनी ही अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे। और कहेंगे, उसके आने की प्रतिज्ञा कहां गई? क्योंकि जब से बाप-दादे सो गए हैं, सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्भ से था?” (2 पतरस 3:1-4) अगर हम कभी-भी ‘ठट्ठा करनेवालों के आसन पर नहीं बैठते,’ तो हम उस नाश से बच पाएँगे जिसके आने को कोई नहीं रोक सकेगा।—नीतिवचन 1:22-27.

7. हमें भजन 1:1 के शब्दों को अपने दिलो-दिमाग में क्यों उतार लेना चाहिए?

7 जब तक हम भजन 1 में कही बात को दिल से नहीं मानेंगे, हम अपनी वह आध्यात्मिकता खो सकते हैं जो हमने बाइबल का गहरा अध्ययन करके हासिल की थी। दरअसल ऐसे में हमारी हालत बद-से-बदतर हो जाएगी। अगर हम दुष्ट की सलाह पर चलना शुरू कर देंगे, तो हम अपने ही विनाश की तरफ कदम उठा रहे होंगे। हो सकता है धीरे-धीरे हम उनसे नियमित तौर पर मिलने लगें, और अंत में खुद एक अविश्‍वासी ठट्टा करनेवाले धर्मत्यागी बन जाएँ। ज़ाहिर है कि दुष्ट लोगों के साथ दोस्ती हमारे अंदर अभक्‍ति की भावना पैदा कर सकती है, जिससे यहोवा परमेश्‍वर के साथ हमारा रिश्‍ता टूट सकता है। (1 कुरिन्थियों 15:33; याकूब 4:4) आइए हम अपने साथ ऐसा कभी न होने दें!

8. आध्यात्मिक बातों पर ध्यान लगाए रखने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

8 प्रार्थना से हमें आध्यात्मिक बातों पर ध्यान लगाए रखने और दुष्टों की संगति से दूर रहने में मदद मिलेगी। पौलुस ने लिखा: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” उस प्रेरित ने ऐसी बातों पर मन लगाने के लिए उकसाया जो सत्य हैं, आदरनीय हैं, उचित हैं, पवित्र, सुहावनी, मनभावनी, सद्‌गुण और प्रशंसा की हैं। (फिलिप्पियों 4:6-8) आइए हम पौलुस की सलाह पर चलें और कभी-भी दुष्टों की तरह नीचता के गर्त में न गिर जाएँ।

9. हालाँकि हम दुष्ट कामों से दूर रहते हैं, फिर भी हम हर तरह के लोगों की मदद करने के लिए कैसे कोशिश करते हैं?

9 हालाँकि हम दुष्ट कामों से दूर रहते हैं, फिर भी मौकादेखकर हम दूसरों को व्यवहार-कुशलता से गवाही देते हैं। यहाँ तक कि प्रेरित पौलुस ने भी गवर्नर फेलिक्स से“धर्म और संयम और आनेवाले न्याय की चर्चा” की। (प्रेरितों 24:24, 25; कुलुस्सियों 4:6) हम हर तरह के लोगों को राज्य की खुशखबरी सुनाते हैं और उनके साथ अदब से पेश आते हैं। हमें पूरा यकीन है जो ‘अनंत जीवन के लिए सही मन रखते हैं,’ वे विश्‍वासी बनेंगे और परमेश्‍वर की व्यवस्था से खुश होंगे।—प्रेरितों 13:48, NW.

वह यहोवा की व्यवस्था से दिली खुशी पाता है

10. निजी अध्ययन के दौरान क्या बात हमारे दिल-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ने में मदद करेगी?

10 खुश रहनेवाले इंसान के बारे में भजनहार आगे कहता है: “लेकिन यहोवा की व्यवस्था से दिली खुशी पाता है और उसकी व्यवस्था दिन-रात मंद स्वर में पढ़ता रहता है।” (भजन 1:2, NW) परमेश्‍वर के सेवक होने के नाते हम ‘उसकी व्यवस्था से दिली खुशी पाते रहते हैं।’ जब भी मुमकिन होता है, निजी अध्ययन या मनन करते वक्‍त हम “मंद स्वर” यानी शब्दों को बोल-बोलकर दोहराते हैं। चाहे हम बाइबल का कोई भी हिस्सा क्यों न पढ़ रहे हों, ऐसा करने से यह हमारे दिल-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ जाएगा।

11. हमें “दिन-रात” बाइबल क्यों पढ़नी चाहिए?

11 “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” हमें रोज़ाना बाइबल पढ़ने के लिए उकसाता है। (मत्ती 24:45) इंसानों के लिए यहोवा का संदेश क्या है, इसकी बेहतर समझ पाने की गहरी इच्छा की वजह से अच्छा होगा अगर हम “दिन-रात” बाइबल पढ़ें, जी हाँ जब हमें नींद नहीं आती है, तब भी हम उठकर ऐसा कर सकते हैं। पतरस ने हमसे गुज़ारिश की: “नये जन्मे हुए बच्चों की नाईं निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ।” (1 पतरस 2:1, 2) क्या आप हर दिन बाइबल पढ़ने और रात में उसके वचन और मकसद पर मनन करने से दिली खुशी पाते हैं? भजनहार को बड़ी खुशी होती थी।—भजन 63:6.

12. अगर हम यहोवा की व्यवस्था से दिली खुशी पाते हैं, तो हम क्या करेंगे?

12 परमेश्‍वर की व्यवस्था से दिली खुशी पाने से ही हमें हमेशा की खुशियाँ मिलेंगी। यह व्यवस्था खरी और धर्मी है और इस पर चलनेवालों को बड़ा प्रतिफल मिलता है। (भजन 19:7-11) चेले याकूब ने लिखा था: “जो व्यक्‍ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं, पर वैसा ही काम करता है।” (याकूब 1:25) अगर हम सचमुच यहोवा की व्यवस्था से दिली खुशी पाएँगे, तो हम एक भी दिन आध्यात्मिक बातों पर ध्यान देना नहीं भूलेंगे। जी हाँ, हम ‘परमेश्‍वर की गूढ़ बातों को जाँचने’ और राज्य के कामों को पहली जगह देने के लिए प्रेरित होंगे।—1 कुरिन्थियों 2:10-13; मत्ती 6:33.

वह एक वृक्ष के समान है

13-15. हम किस मायने में उस पेड़ की तरह बन सकते हैं, जो उमड़ते पानी के सोते के किनारे लगा है?

13 धर्मी इंसान के बारे में बताते हुए भजनहार आगे कहता है: “वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” (भजन 1:3) बाकी असिद्ध इंसानों की तरह, यहोवा की सेवा करनेवाले हम लोग भी ज़िंदगी के मुश्‍किल हालात से गुज़रते हैं। (अय्यूब 14:1) हम पर अपने विश्‍वास की वजह से ज़ुल्म और दूसरी परीक्षाएँ आ सकती हैं। (मत्ती 5:10-12) लेकिन परमेश्‍वर की मदद से हम इन परीक्षाओं का सामना करने में कामयाब होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक मज़बूत पेड़ काफी तेज़ आँधी में भी अपनी जगह पर डटा रहता है।

14 जो पेड़ पानी के कभी न खत्म होनेवाले सोते के पास लगा हो वह गरमी या सूखा पड़ने पर भी नहीं मुरझाता। उसी तरह अगर हम परमेश्‍वर का भय माननेवाले इंसान हैं, तो हमें भी कभी न खत्म होनेवाले अमिट स्रोत यानी यहोवा परमेश्‍वर से शक्‍ति मिलती रहेगी। पौलुस ने ताकत पाने के लिए हमेशा परमेश्‍वर पर भरोसा रखा और वह यह कह सका: “[यहोवा] जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।” (फिलिप्पियों 4:13) जब यहोवा की पवित्र आत्मा हमें राह दिखाती है और हमें आध्यात्मिक तौर पर शक्‍ति देती है, तो हम मुरझाते नहीं, यानी हम निष्फल नहीं होते या आध्यात्मिक रूप से ठंडे नहीं पड़ते। इसके बजाय, हम परमेश्‍वर की सेवा में बहुत-सा फल लाते हैं और उसकी आत्मा के फल भी ज़ाहिर करते हैं।—यिर्मयाह 17:7,8; गलतियों 5:22,23.

15 यहाँ जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “समान” किया गया है, उसका इस्तेमाल करके भजनहार एक उपमा दे रहा है। वह दो चीज़ों की तुलना करता है जो अलग-अलग हैं, लेकिन उनमें एक खास गुण समान है। इंसान और पेड़ में फर्क है, लेकिन उमड़ते पानी के सोते के किनारे लगा पेड़ भजनहार को ऐसे लोगों की आध्यात्मिक खुशहाली की याद दिलाता है जो ‘यहोवा की व्यवस्था से दिली खुशी पाते हैं।’ अगर हम परमेश्‍वर की व्यवस्था से दिली खुशी पाएँगे, तो हम भी पेड़ की तरह लंबी उम्र पाएँगे। दरअसल हम अनंतकाल तक जी सकेंगे।—यूहन्‍ना 17:3.

16. क्यों और कैसे हम ‘जो कुछ करते हैं वह सफल होता है’?

16 जब हम सीधाई के मार्ग पर चलते हैं, तो परीक्षाओं और मुसीबतों का बोझ सहने में यहोवा हमारी मदद करता है। हम उसकी सेवा में आनंदित होते और बहुत-सा फल लाते हैं। (मत्ती 13:23; लूका 8:15) हम ‘जो कुछ करते हैं वह सफल होता है,’ क्योंकि हमारा खास मकसद यहोवा की इच्छा पूरी करना होता है। और क्योंकि उसका मकसद हर हाल में पूरा होता है और हम उसकी आज्ञाओं से दिली खुशी पाते हैं, इसलिए हम आध्यात्मिक रूप से खुशहाल बनते हैं। (उत्पत्ति 39:23; यहोशू 1:7,8; यशायाह 55:11) यह बात तब भी सच होती है जब हमें बुरे वक्‍त का सामना करना पड़ता है।—भजन 112:1-3; 3 यूहन्‍ना 2.

दुष्ट फलते-फूलते नज़र आते हैं

17, 18. (क) भजनहार ने दुष्टों की तुलना किससे की? (ख) भले ही दुष्ट अपने लिए धन-दौलत के अंबार लगा लें, फिर भी इससे हमेशा तक उनकी हिफाज़त क्यों नहीं हो सकती?

17 एक दुष्ट की हालत, एक धर्मी से कितनी अलग है! दुष्ट लोग शायद कुछ वक्‍त के लिए धन-दौलत में बढ़ते नज़र आएँ, लेकिन आध्यात्मिक तौर पर वे कंगाल हैं। यह भजनहार के अगले वचनों से ज़ाहिर होता है: “दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है। इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे।” (भजन 1:4, 5) ध्यान दीजिए भजनहार कहता है: “दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते।” उसके कहने का मतलब है कि दुष्ट लोग परमेश्‍वर के नियमों पर चलनेवाले उन धर्मी लोगों जैसे नहीं होते जिनकी तुलना लंबे समय तक जीनेवाले, फलदायी पेड़ों से की गयी है।

18 दुष्ट चाहे अपने लिए धन-दौलत के अंबार क्यों न लगा लें, फिर भी इससे हमेशा तक उनकी हिफाज़त नहीं हो सकती। (भजन 37:16; 73:3, 12) वे उस निर्बुद्धि धनवान की तरह हैं जिसके बारे में यीशु ने अपने दृष्टांत में कहा। यीशु ने यह दृष्टांत तब दिया जब एक इंसान ने उसको जायदाद के बँटवारे के मामले में फैसला करने को कहा था। वहाँ जमा लोगों को यीशु ने बताया: “चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो: क्योंकि किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायात से नहीं होता।” यीशु ने यह बात समझाने के लिए एक धनवान का दृष्टांत दिया, जिसकी भूमि पर इतनी उपज हुई कि उसने अपनी बखारियों को तोड़कर उन से बड़ी बनाने का विचार किया ताकि उनमें अपना सब अन्‍न और संपत्ति रख सके। फिर उस धनवान ने तय किया कि अब मैं खाऊँगा, पीऊँगा और चैन से रहूँगा। लेकिन परमेश्‍वर ने उससे कहा: “हे मूर्ख, इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा: तब जो कुछ तू ने इकट्ठा किया है, वह किस का होगा?” यीशु ने ज़बरदस्त मुद्दे पर ज़ोर देते हुए आगे कहा: “ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्‍वर की दृष्टि में धनी नहीं।”—लूका 12:13-21.

19, 20. (क) पुराने ज़माने में दाँवने और फटकने के तरीके के बारे में बताइए। (ख) दुष्टों की तुलना भूसे से क्यों की गयी है?

19 दुष्ट लोग “परमेश्‍वर की दृष्टि में धनी नहीं” होते। इसलिए उनकी सुरक्षा और टिकाऊपन उतना ही महीन होता है जितना कि गेहूँ को ढँकनेवाली बालों का भूसा। पुराने ज़माने में कटाई के बाद गेहूँ को खलिहान में ले जाया जाता था, जो आम तौर पर ऊँचाई पर एक सपाट जगह में बनाया जाता था। वहाँ गेहूँ को जानवरों की मदद से पत्थर-जड़े या लोहे के दाँतोंवाले तख्ते या पटरे से दाँवने का काम किया जाता था ताकि गेहूँ के दाने बालों से निकल आएँ। इसके बाद पूरे ढेर को बेलचे से तेज़ हवा में उछाल-उछालकर फटका जाता था। (यशायाह 30:24) ऐसा करने से गेहूँ खलिहान की ज़मीन पर गिर जाते थे, जबकि तेज़ हवा, तिनकों को एक तरफ कर देती थी और भूसे को दूर उड़ा ले जाती थी। (रूत 3:2) उसके बाद, कंकड़-पत्थर निकालने के लिए गेहूँ को छनने से छाना जाता था और फिर वह गोदाम में रखने या पीसने के लिए तैयार हो जाता था। (लूका 22:31, NW) लेकिन भूसे का कहीं नामो-निशान नहीं रहता था।

20 ठीक जैसे गेहूँ के दाने ज़मीन पर गिरने के बाद, गोदाम में रखने के लिए इकट्ठे किए जाते थे जबकि भूसा हवा में उड़ जाता था, उसी तरह धर्मी बचे रहेंगे लेकिन दुष्टों का नाश किया जाएगा। बेशक हम खुश हो सकते हैं कि बहुत जल्द ऐसे सभी दुष्ट हमेशा के लिए मिट जाएँगे। उनके मिटने के बाद यहोवा की व्यवस्था से दिली खुशी पानेवालों को ढेरों आशीषें मिलेंगी। बेशक, आखिर में आज्ञा माननेवाले इंसानों को परमेश्‍वर की तरफ से अनंत जीवन का वरदान मिलेगा।—मत्ती 25:34-46; रोमियों 6:23.

“धर्मियों का मार्ग” धन्य है

21. यहोवा ‘धर्मियों के मार्ग को कैसे जानता है’?

21 पहला भजन इन शब्दों से खत्म होता है: “यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टों का मार्ग नाश हो जाएगा।” (भजन 1:6) परमेश्‍वर कैसे “धर्मियों का मार्ग जानता है”? अगर हम सीधाई के मार्ग पर चल रहे हैं, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता हमारे भक्‍ति के चालचलन को स्वीकार करता और हमें अपने सेवक के तौर पर मंज़ूरी देता है। बदले में हम अपनी सारी चिंताएँ इस यकीन के साथ उस पर डाल सकते हैं और हमें डालनी भी चाहिए कि उसे सचमुच हमारी परवाह है।—यहेजकेल 34:11; 1 पतरस 5:6, 7.

22, 23. दुष्टों और धर्मियों का क्या होगा?

22 “धर्मियों का मार्ग” हमेशा बना रहेगा लेकिन पछतावा न दिखानेवाले दुष्टों पर जब यहोवा अपना न्यायदंड लाएगा तब वे नाश हो जाएँगे। और उनका “मार्ग” यानी उनके जीने का तौर-तरीका उन्हीं के साथ खत्म हो जाएगा। हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि दाऊद के ये वचन ज़रूर पूरे होंगे: “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भली भांति देखने पर भी उसको न पाएगा। परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे। धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।”—भजन 37:10, 11, 29.

23 जब कोई भी दुष्ट इस धरती पर नहीं रहेगा, उस वक्‍त फिरदौस में रहने का मौका पाने से हमें क्या ही खुशी मिलेगी! तब नम्र और धर्मी लोग सच्ची शांति का लुत्फ उठाएँगे क्योंकि वे हमेशा “यहोवा की व्यवस्था” से दिली खुशी पाएँगे। लेकिन इससे पहले ‘यहोवा के वचन’ का पूरा किया जाना ज़रूरी है। (भजन 2:7क) अगला लेख यह जानने में हमारी मदद करेगा कि यह वचन क्या है, और यह हमारे और पूरी मानवजाति के लिए क्या मायने रखता है।

आप कैसे जवाब देंगे?

• परमेश्‍वर के नियमों पर चलनेवाला इंसान खुश क्यों रहता है?

• क्या बात दिखाती है कि हम यहोवा की व्यवस्था से दिली खुशी पाते हैं?

• एक इंसान, पानी के सोते के पास लगाए पेड़ के समान कैसे बन सकता है?

• धर्मी का मार्ग, दुष्ट के मार्ग से कैसे अलग है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 11 पर तसवीर]

प्रार्थना, दुष्टों की संगति से दूर रहने में हमारी मदद करेगी

[पेज 12 पर तसवीर]

एक धर्मी इंसान, पेड़ के समान क्यों है?