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महानता के बारे में मसीह जैसा नज़रिया पैदा करना

महानता के बारे में मसीह जैसा नज़रिया पैदा करना

महानता के बारे में मसीह जैसा नज़रिया पैदा करना

“जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने।”मत्ती 20:26.

1. महानता के बारे में संसार का क्या नज़रिया है?

 मिस्र के कायरो शहर से करीब 500 किलोमीटर दक्षिण की ओर, प्राचीन शहर थीब्ज़ (आज के कारनक) के पास फिरौन आमेनहोटेप III की एक मूरत है, जिसकी ऊँचाई 60 फुट [18 m] है। इस विशाल मूरत के सामने हर इंसान खुद को बहुत छोटा महसूस करता है। बेशक यह मूरत इसलिए बनायी गयी थी कि देखनेवाले हरेक के दिल में उस राजा के लिए श्रद्धा पैदा हो। इससे पता चलता है कि महानता के बारे में संसार का क्या नज़रिया है—जितना हो सके खुद को महान और ऊँचा बनाना और दूसरों को अपने से छोटा महसूस कराना।

2. यीशु ने अपने चेलों के लिए क्या मिसाल रखी, और हमें खुद से क्या पूछने की ज़रूरत है?

2 अब गौर कीजिए कि महानता के बारे में यीशु मसीह ने कितनी अलग बात सिखायी। हालाँकि यीशु अपने चेलों का “प्रभु और गुरु” था, फिर भी उसने उनको सिखाया कि दूसरों की सेवा करने में ही महानता है। इसकी मिसाल पेश करते हुए उसने अपनी इंसानी ज़िंदगी के आखिरी दिन, चेलों के पाँव धोए। वाकई उसने कैसी नम्रता दिखायी! (यूहन्‍ना 13:4, 5, 14) आपको किसमें ज़्यादा खुशी मिलती है—दूसरों की सेवा करने में या उनसे अपनी सेवा करवाने में? क्या मसीह का उदाहरण आप में यह इच्छा पैदा करता है कि आप बिलकुल उसी की तरह नम्र बनें? आइए देखें कि महानता के बारे में मसीह का क्या नज़रिया था और संसार का नज़रिया उससे कितना अलग है।

महानता के बारे में संसार के नज़रिए को ठुकराइए

3. बाइबल की कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि जिन पर इंसानों से महिमा पाने का जुनून सवार होता है, उन्हें इसका बुरा सिला मिलता है?

3 बाइबल में ऐसी ढेरों मिसालें हैं जो दिखाती हैं कि महानता के बारे में संसार का नज़रिया रखना बरबादी की ओर ले जाता है। हामान पर गौर कीजिए जो एस्तेर और मोर्दकै के दिनों में फारस के शाही दरबार में एक बड़ा अधिकारी था। हामान पर दूसरों से सम्मान पाने का जुनून सवार था। और यही जुनून आखिरकार उसकी बेइज़्ज़ती और मौत का सबब बना। (एस्तेर 3:5; 6:10-12; 7:9, 10) बाबुल के मगरूर राजा नबूकदनेस्सर के बारे में क्या? जब वह दुनिया का सबसे शक्‍तिशाली राजा बना तो उसने शेखी बघारते हुए कहा: “क्या यह बड़ा बाबुल नहीं है, जिसे मैं ही ने अपने बल और सामर्थ से राजनिवास होने को और अपने प्रताप की बड़ाई के लिये बसाया है?” (दानिय्येल 4:30) उसकी ये बातें दिखाती हैं कि महानता के बारे में उसकी सोच बिलकुल गलत थी। इसलिए उसे सज़ा के तौर पर पागल बना दिया गया। एक और मिसाल, घमंडी राजा हेरोदेस अग्रिप्पा I की है। उसे चाहिए था कि वह परमेश्‍वर की महिमा करे, मगर इसके बजाय उसने लोगों से मिलनेवाली महिमा कबूल की जिसका वह हकदार नहीं था। इसलिए उसमें ‘कीड़े पड़ गए और वह मर गया।’ (प्रेरितों 12:21-23) इन सभी पुरुषों ने महानता के बारे में यहोवा का नज़रिया नहीं रखा जिस वजह से उनकी बेइज़्ज़ती हुई और वे बरबाद हो गए।

4. दुनिया में जो घमंड की भावना फैली हुई है, उसके पीछे किसका हाथ है?

4 हम सभी अपनी ज़िंदगी इस तरह गुज़ारना चाहते हैं जिससे हम दूसरों से आदर और सम्मान पाएँ और ऐसी चाहत रखना गलत नहीं। लेकिन शैतान हमारी इस चाहत का फायदा उठाकर हमारे अंदर घमंड की भावना पैदा करने की कोशिश करता है। घमंड की झलक हमें शैतान में मिलती है जो हमेशा ऊँचा उठने की कोशिश करता है। (मत्ती 4:8, 9) कभी मत भूलिए कि वह ‘इस संसार का ईश्‍वर’ है और उसने इंसानों में अपने सोच-विचार फैलाने की ठान ली है। (2 कुरिन्थियों 4:4; इफिसियों 2:2; प्रकाशितवाक्य 12:9) मसीही जानते हैं कि घमंड का रवैया फैलाने में किसका हाथ है, इसलिए वे महानता के बारे में संसार के नज़रिए को ठुकराते हैं।

5. क्या बड़ी-बड़ी कामयाबियों से, नाम और दौलत कमाने से सच्चा संतोष मिल सकता है? समझाइए।

5 एक विचार जो शैतान फैलाता है, वह यह है कि इंसान तभी खुश रह सकेगा जब दुनिया में उसका बड़ा नाम होगा, लोगों में उसकी वाहवाही होगी और उसके पास बेशुमार दौलत होगी। लेकिन क्या यह सच है? क्या बड़ी-बड़ी कामयाबियों से, शोहरत और दौलत कमाने से सच्चा संतोष मिलता है? बाइबल खबरदार करती है कि हम ऐसी सोच के धोखे में न आएँ। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा: “मैं ने सब परिश्रम के काम और सब सफल कामों को देखा जो लोग अपने पड़ोसी से जलन के कारण करते हैं। यह भी व्यर्थ और मन का कुढ़ना [“वायु पकड़ने का प्रयास,” NHT] है।” (सभोपदेशक 4:4) ऐसे कई लोग, जिन्होंने शोहरत और दौलत कमाने में सारी ज़िंदगी लगा दी, वे मानते हैं कि ईश्‍वर-प्रेरणा से दी गयी बाइबल की यह सलाह पूरी तरह सच है। मसलन, जिस अंतरिक्ष यान से इंसान ने पहली बार चाँद पर कदम रखा था, उसकी डिज़ाइन तैयार करने, उसे बनाने और उसकी जाँच करने में मदद देनेवाले एक आदमी ने कहा: “मैंने बहुत मेहनत की थी और मैं अपने काम में माहिर हो गया था। लेकिन इससे मुझे सच्ची खुशी और मन की शांति बिलकुल नहीं मिली।” * चाहे बिज़नेस हो या खेल-मनोरंजन, किसी भी क्षेत्र में महानता के बारे में संसार का नज़रिया सच्चा संतोष नहीं दे सकता।

महानता, प्यार से सेवा करने पर हासिल होती है

6. क्या दिखाता है कि महानता के बारे में याकूब और यूहन्‍ना की सोच गलत थी?

6 यीशु की ज़िंदगी में हुई एक घटना साफ दिखाती है कि सच्ची महानता में क्या शामिल है। यीशु और उसके चेले सा.यु. 33 में, फसह के लिए यरूशलेम जा रहे थे। रास्ते में याकूब और यूहन्‍ना ने, जो शायद यीशु के मौसेरे भाई थे, महानता के बारे में गलत नज़रिया दिखाया। उन्होंने अपनी माँ के ज़रिए यीशु से यह गुज़ारिश की: ‘यह वचन दे कि हम तेरे राज्य में तेरे दहिने और बाएं बैठें।’ (मत्ती 20:21) यहूदियों में, किसी बड़ी हस्ती के दाएँ या बाएँ बैठना बड़े सम्मान की बात मानी जाती थी। (1 राजा 2:19) याकूब और यूहन्‍ना ने, बड़ा बनने की चाहत में उन खास पदों को हड़पना चाहा। वे एक तरह से दावा कर रहे थे कि उन पदों पर उनका हक है। यीशु जान गया कि वे क्या सोच रहे हैं, इसलिए उसने मौके का इस्तेमाल करके महानता के बारे में उनकी गलत सोच को सुधारा।

7. यीशु ने मसीहियों को सच्ची महानता हासिल करने का क्या तरीका बताया?

7 यीशु जानता था कि इस घमंडी दुनिया में उस इंसान को महान समझा जाता है जो दूसरों पर रौब जमाता और चुटकी बजाकर अपना हर काम करवाता है। लेकिन यीशु के चेलों में वही महान कहलाता जो नम्रता से दूसरों की सेवा करता। यीशु ने कहा: “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने।”—मत्ती 20:26,27.

8. सेवक होने का मतलब क्या है, और हम खुद से क्या सवाल पूछ सकते हैं?

8 बाइबल में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “सेवक” किया गया है, उसका मतलब है ऐसा इंसान जो पूरी मेहनत और लगन से दूसरों की सेवा करता है। यीशु अपने चेलों को यह अहम सबक सिखा रहा था: दूसरों पर हुक्म चलाकर अपना काम करवाने में नहीं, बल्कि प्यार से उनकी सेवा करने में ही बड़प्पन है। अब आप खुद से पूछिए: ‘अगर मैं याकूब और यूहन्‍ना की जगह होता तो यीशु की सलाह सुनकर क्या करता? क्या मैं वाकई इस बात को समझ लेता कि सच्ची महानता, प्यार से दूसरों की सेवा करने में है?’—1 कुरिन्थियों 13:3.

9. यीशु ने दूसरों के साथ पेश आते वक्‍त क्या मिसाल रखी?

9 यीशु ने अपनी मिसाल से चेलों को दिखाया कि महानता के बारे में उसका स्तर, संसार के स्तर से बिलकुल अलग है। जिन लोगों की उसने सेवा की, उन्हें उसने कभी यह एहसास नहीं दिलाया कि वह उन पर कोई बड़ा एहसान कर रहा है, ना ही उनको नीचा दिखाया। उसका साथ हर किसी को अच्छा लगता था—स्त्री-पुरुष, बच्चों, अमीर-गरीब, बड़े-बड़े अधिकारियों, यहाँ तक कि समाज के बदनाम लोगों को भी। (मरकुस 10:13-16; लूका 7:37-50) जिनमें कुछ कमज़ोरियाँ होती हैं, उनके साथ पेश आते वक्‍त आम तौर पर लोग अपना आपा खो बैठते हैं। मगर यीशु ऐसा नहीं था। कभी-कभी उसके चेले बिना सोचे-समझे कुछ कह देते या आपस में लड़ बैठते थे, मगर फिर भी वह उन्हें प्यार से समझाता था। इस तरह उसने साबित किया कि वह सचमुच नम्र और मन में दीन था।—जकर्याह 9:9; मत्ती 11:29; लूका 22:24-27.

10. यीशु की पूरी ज़िंदगी से यह कैसे ज़ाहिर हुआ कि उसने निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा की थी?

10 परमेश्‍वर के इस खास बेटे ने जिस तरह से निःस्वार्थ भावना दिखायी, उससे ज़ाहिर होता है कि महानता असल में क्या है। यीशु धरती पर दूसरों से सेवा करवाने के लिए नहीं बल्कि उनकी सेवा करने आया था। उसने “नाना प्रकार की बीमारियों” को चंगा किया और जो दुष्टात्माओं की गिरफ्त में थे, उन्हें छुड़ाया। कभी-कभी वह थक जाता था और उसे आराम की ज़रूरत महसूस होती थी। मगर ऐसे में भी उसने अपने सुख-चैन की परवाह न करते हुए दूसरों की ज़रूरतों को पहली जगह दी और उन्हें सांत्वना दी। (मरकुस 1:32-34; 6:30-34; यूहन्‍ना 11:11, 17, 33) लोगों के लिए प्यार होने की वजह से उसने आध्यात्मिक तरीके से उनकी मदद की, धूल भरे रास्तों पर सैकड़ों किलोमीटर चलकर उसने राज्य की खुशखबरी सुनायी। (मरकुस 1:38, 39) इसमें कोई शक नहीं कि यीशु की नज़र में दूसरों की सेवा करना बहुत अहम काम था।

मसीह के जैसी नम्रता पैदा कीजिए

11. कलीसिया में जिन भाइयों को ओवरसियर चुना जाता है, उनसे कैसे गुण दिखाने की माँग की जाती है?

11 सन्‌ 1800 के दशक के आखिरी सालों में जब परमेश्‍वर के लोगों की मदद करने के लिए सफरी ओवरसियरों को चुना जा रहा था, तो यह ज़ोर देकर बताया गया कि उनका नज़रिया कैसा होना चाहिए। सन्‌ 1894 के सितंबर 1 के ज़ायन्स वॉच टावर के मुताबिक ओवरसियर की ज़िम्मेदारी के लिए भाइयों से माँग की गयी थी कि वे “नम्र हों, ताकि घमंड से फूल न जाएँ . . . , मन के दीन हों ताकि अपनी बड़ाई करने के बजाय मसीह का प्रचार करें, अपने ज्ञान का दिखावा न करें, मगर मसीह के वचन को सरलता से और ज़बरदस्त तरीके से समझाएँ।” यह साफ दिखाता है कि ज़िम्मेदारी का पद चाहनेवालों का यह इरादा नहीं होना चाहिए कि वे खुद को दूसरों से बड़ा दिखाएँ, उन पर अधिकार जताएँ या उन्हें अपनी मुट्ठी में रखें। एक नम्र ओवरसियर हमेशा याद रखता है कि उसे दूसरों की खातिर “भले काम” करने के लिए ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गयी हैं, न कि दूसरों से बड़ा बनने और अपनी महिमा करने के लिए। (1 तीमुथियुस 3:1, 2) सभी प्राचीनों और सहायक सेवकों को चाहिए कि वे नम्रता से दूसरों की सेवा करने में अपना भरसक करें, पवित्र सेवा में अगुवाई करें और इस तरह दूसरों के लिए अच्छी मिसाल बनें।—1 कुरिन्थियों 9:19; गलतियों 5:13; 2 तीमुथियुस 4:5.

12. जो भाई कलीसिया में ज़िम्मेदारियाँ पाने के लिए मेहनत कर रहे हैं, उन्हें खुद से क्या सवाल पूछने चाहिए?

12 ऐसे हर भाई को जो कलीसिया में ज़िम्मेदारियाँ पाने के लिए मेहनत करता है, खुद से यह पूछना चाहिए: ‘क्या मैं हमेशा दूसरों की सेवा करने के मौके ढूँढ़ता हूँ, या उनसे सेवा करवाने की ताक में रहता हूँ? क्या मैं ऐसे भले काम करने के लिए तैयार रहता हूँ जो शायद दूसरों की नज़र में न आएँ?’ मसलन, हो सकता है एक जवान भाई कलीसिया में भाषण देने के लिए हमेशा आगे रहे, मगर बुज़ुर्गों की मदद करने से पीछे हटे। उसे शायद कलीसिया के ज़िम्मेदार भाइयों की संगति करना अच्छा लगे मगर वह प्रचार काम में दिलचस्पी न दिखाए। ऐसे जवान को खुद से यह पूछना चाहिए: ‘क्या मुझे सिर्फ ऐसे मसीही काम अच्छे लगते हैं जिनसे मेरा नाम और तारीफ हो? क्या मैं हमेशा दूसरों की नज़रों में छाने की कोशिश करता हूँ?’ अगर हम अपनी बड़ाई करवाने की कोशिश कर रहे हैं, तो बेशक हम मसीह के उदाहरण पर नहीं चल रहे।—यूहन्‍ना 5:41.

13. (क) एक ओवरसियर की नम्रता दूसरों पर कैसा असर कर सकती है? (ख) यह क्यों कहा जा सकता है कि नम्रता या दीनता का गुण बढ़ाना एक मसीही की मरज़ी पर नहीं छोड़ा गया है?

13 जब हम मसीह जैसी नम्रता दिखाने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं, तो हम दूसरों की सेवा करने के लिए आगे बढ़ते हैं। एक ज़ोन ओवरसियर की मिसाल पर गौर कीजिए। एक बार वे यहोवा के साक्षियों के एक शाखा दफ्तर के विभागों का मुआयना कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक जवान भाई को किताबों पर टाँके लगानेवाली मशीन का प्रोग्राम सॆट करने में दिक्कत हो रही है। हालाँकि ज़ोन ओवरसियर के पास बहुत-से काम थे, फिर भी उन्होंने रुककर उस जवान भाई की मदद की। उस जवान ने कहा: “मुझे अपनी आँखों पर विश्‍वास नहीं हो रहा था! भाई ने बताया कि जवानी में उन्होंने भी बेथेल में इसी तरह की मशीन पर काम किया था और उन्हें याद आया कि उस मशीन के प्रोग्राम को सही तरह से सॆट करना कितना मुश्‍किल है। उन्हें बहुत-से ज़रूरी काम निपटाने थे, फिर भी उन्होंने मेरे साथ कुछ देर उस मशीन पर काम किया। इस वाकये ने मेरे दिल पर गहरा असर किया।” यह जवान भाई, अब यहोवा के साक्षियों के एक शाखा दफ्तर में एक ओवरसियर है और आज भी उसे नम्रता की वह मिसाल अच्छी तरह याद है। हम खुद को कभी-भी इतना महान न समझें कि हमें छोटे दर्जे के काम करना अपनी शान के खिलाफ लगे। इसके बजाय, हमें “दीनता” से अपनी कमर बाँध लेनी चाहिए। दीनता दिखाना, हमारी मरज़ी पर नहीं छोड़ा गया है। यह उस “नए मनुष्यत्व” का एक हिस्सा है जिसे एक मसीही को धारण करना ही चाहिए।—फिलिप्पियों 2:3; कुलुस्सियों 3:10, 12; रोमियों 12:16.

महानता के बारे में मसीह का नज़रिया कैसे पैदा करें

14. परमेश्‍वर और दूसरे इंसानों की तुलना में हम क्या हैं, इस बारे में गहराई से सोचने से हम महानता के बारे में सही नज़रिया कैसे पैदा कर सकेंगे?

14 महानता के बारे में हम सही नज़रिया कैसे पैदा कर सकते हैं? एक तरीका है, इस बारे में गहराई से सोचना कि यहोवा परमेश्‍वर के आगे हम क्या हैं। यहोवा का प्रताप, उसकी शक्‍ति और बुद्धि इतनी बेमिसाल है कि अदना इंसान उसके सामने कुछ भी नहीं। (यशायाह 40:22) साथ ही यह भी ध्यान देने से हम दीनता पैदा कर सकेंगे कि दूसरे इंसानों की तुलना में हम क्या हैं। मसलन, हो सकता है हम कुछेक मामलों में दूसरों से ज़्यादा हुनरमंद हों, लेकिन वे शायद ऐसे मामलों में हमसे श्रेष्ठ हों जो ज़िंदगी में ज़्यादा मायने रखते हैं या उनमें कुछ ऐसे गुण हों जो हममें नहीं हैं। दरअसल देखा जाए तो ऐसे कई लोग जो परमेश्‍वर के लिए अनमोल हैं, वे इसलिए दूसरों की नज़रों में इतना नहीं आते क्योंकि वे नम्र और मन के दीन हैं।—नीतिवचन 3:34; याकूब 4:6.

15. परमेश्‍वर के लोगों की वफादारी की मिसालें कैसे दिखाती हैं कि कोई किसी से बड़ा नहीं है?

15 जिन यहोवा के साक्षियों को अपने विश्‍वास की खातिर ज़ुल्म सहना पड़ा उनके अनुभव इस सच्चाई को बखूबी साबित करते हैं। अकसर वही लोग आग जैसी परीक्षाओं में परमेश्‍वर के वफादार साबित हुए हैं, जिन्हें दुनिया मामूली समझती है। ऐसे वफादार लोगों की मिसालों पर मनन करने से हमें नम्र बने रहने में मदद मिलेगी और हम ‘अपने आप को जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर नहीं समझेंगे।’—रोमियों 12:3. *

16. कलीसिया के सभी लोग महानता के बारे में यीशु का नज़रिया कैसे पैदा कर सकते हैं?

16 सभी मसीहियों को महानता के बारे में मसीह का नज़रिया पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए, फिर चाहे वे उम्र में छोटे हों या बड़े। कलीसिया में कई तरह के काम होते हैं। जब आपसे कुछ ऐसे काम करने के लिए कहा जाता है जिन्हें दुनिया तुच्छ समझती है, तो मन-ही-मन कुढ़िए मत। (1 शमूएल 25:41; 2 राजा 3:11) माता-पिताओ, क्या आप अपने छोटे और जवान बच्चों को सिखाते हैं कि उन्हें किंगडम हॉल में, सम्मेलन या अधिवेशन की जगहों पर जो भी काम सौंपा जाता है, उसे वे खुशी-खुशी करें? क्या वे आपको कम दर्जे के काम करते देखते हैं? यहोवा के साक्षियों के विश्‍व-मुख्यालय में काम करनेवाला एक भाई अपने माता-पिता की मिसाल याद करते हुए कहता है: “मेरे माता-पिता किंगडम हॉल में और अधिवेशन की जगह पर साफ-सफाई का काम जिस जोश के साथ करते थे, उससे मैंने यही जाना कि वे इस काम को बहुत ज़रूरी समझते थे। कलीसिया या भाई-बहनों की खातिर भले काम करने के लिए वे अकसर खुद आगे बढ़ते थे, फिर चाहे वे काम कितने ही कम दर्जे के क्यों न लगें। उन्हें देखकर मैंने सीखा कि मुझे यहाँ बेथेल में चाहे जो भी काम सौंपा जाए, उसे मैं खुशी-खुशी पूरा करूँ।”

17. किन तरीकों से नम्र स्त्रियाँ कलीसिया के लिए आशीष साबित हो सकती हैं?

17 खुद से ज़्यादा दूसरों की परवाह करने में, एस्तेर ने हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल कायम की है। सामान्य युग पूर्व पाँचवीं सदी में वह फारसी साम्राज्य की रानी बनी थी। महलों में रहने के बावजूद, वह अपने जाति-भाइयों को बचाने के लिए जान की बाज़ी लगाने को तैयार थी। इस तरह उसने परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक काम किया। (एस्तेर 1:5,6; 4:14-16) आज की मसीही स्त्रियाँ भी, एस्तेर के जैसा नज़रिया दिखा सकती हैं, फिर चाहे उनकी माली हालत जो भी हो। वे हताश लोगों का हौसला बढ़ाने, बीमारों को देखने जाने, प्रचार काम में हिस्सा लेने और प्राचीनों को सहयोग देने के ज़रिए ऐसा कर सकती हैं। ऐसी नम्र बहनें कलीसिया के लिए क्या ही बढ़िया आशीष हैं!

मसीह जैसी महानता दिखाने से मिलनेवाली आशीषें

18. मसीह जैसी महानता दिखाने के क्या फायदे हैं?

18 अगर आप महानता के बारे में मसीह जैसा नज़रिया रखेंगे तो आपको बहुत-से फायदे होंगे। निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करने से उन्हें और आपको भी खुशी मिलेगी। (प्रेरितों 20:35) जब आप भाइयों की खातिर राज़ी-खुशी से कड़ी मेहनत करेंगे, तो आप उनके और भी अज़ीज़ हो जाएँगे। (प्रेरितों 20:37) और सबसे बड़ी बात यह है कि भाइयों की खातिर आपकी यह मेहनत, यहोवा की नज़र में एक मनभावने बलिदान की तरह होगी जिससे उसकी स्तुति होती है।—फिलिप्पियों 2:17.

19. मसीह जैसी महानता दिखाने के बारे में हमारा क्या अटल फैसला होना चाहिए?

19 हममें से हरेक को अपने दिल की जाँच करके खुद से पूछना चाहिए: ‘मसीह जैसी महानता दिखाने के बारे में क्या मैं सिर्फ बातें ही करता रहूँगा या ऐसा नज़रिया दिखाने के लिए मेहनत भी करूँगा?’ यह तो बिलकुल साफ है कि यहोवा घमंडियों के बारे में कैसा महसूस करता है। (नीतिवचन 16:5; 1 पतरस 5:5) आइए हम अपने कामों से दिखाएँ कि हमें महानता के बारे में यीशु जैसा नज़रिया दिखाने में खुशी मिलती है, फिर चाहे ऐसा नज़रिया मसीही कलीसिया में दिखाना हो, या परिवार में या रोज़मर्रा के जीवन में। हमारे हर काम से परमेश्‍वर की स्तुति और महिमा होती रहे।—1 कुरिन्थियों 10:31.

[फुटनोट]

^ मई 1, 1982 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 3-6 पर दिया लेख देखिए जिसका शीर्षक है, “कामयाबी की तलाश में।”

^ उदाहरणों के लिए, 1992 इयरबुक ऑफ जेहोवाज़ विटनॆसॆस के पेज 181-2, और सितंबर 1, 1993 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 27-31 देखिए।

क्या आप समझा सकते हैं?

• हमें महानता के बारे में संसार के नज़रिए को क्यों ठुकराना चाहिए?

• यीशु की नज़र में महानता क्या है?

• ओवरसियर, मसीह जैसी नम्रता कैसे दिखा सकते हैं?

• मसीह जैसी महानता दिखाने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर बक्स]

महानता के बारे में मसीह जैसा नज़रिया किसमें है?

उसमें जो हमेशा दूसरों से अपनी सेवा करवाना चाहता है या जो दूसरों की सेवा करने को तैयार रहता है?

उसमें जो सबकी नज़रों में छाना पसंद करता है या जो छोटे-से-छोटा काम भी करने को तैयार रहता है?

उसमें जो खुद को दूसरों से बड़ा समझता है या जो दूसरों को अपने से ऊँचा उठाता है?

[पेज 14 पर तसवीर]

फिरौन आमेनहोटेप III की विशाल मूरत

[पेज 15 पर तसवीर]

आप जानते हैं कि हामान की बरबादी की वजह क्या थी?

[पेज 16 पर तसवीर]

क्या आप दूसरों की सेवा करने के मौके ढूँढ़ते हैं?