इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

यहोवा नम्र लोगों पर अपनी महिमा प्रकट करता है

यहोवा नम्र लोगों पर अपनी महिमा प्रकट करता है

यहोवा नम्र लोगों पर अपनी महिमा प्रकट करता है

“नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है।”नीतिवचन 22:4.

1, 2. (क) प्रेरितों की किताब कैसे दिखाती है कि स्तिफनुस “विश्‍वास और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था”? (ख) इस बात का क्या सबूत है कि स्तिफनुस नम्र था?

 स्तिफनुस ‘नाम का पुरुष विश्‍वास और पवित्र आत्मा से,’ साथ ही “अनुग्रह और सामर्थ से परिपूर्ण” था। पहली सदी में यीशु का चेला होने की वजह से उसने लोगों के बीच बड़े-बड़े चिन्ह दिखाए और चमत्कार के काम किए थे। एक मौके पर कुछ आदमी स्तिफनुस से बहस करने लगे, मगर ‘जिस ज्ञान और जिस आत्मा से उसने बातें कीं उसका वे सामना न कर सके।’ (प्रेरितों 6:5, 8-10) स्तिफनुस परमेश्‍वर के वचन का गहराई से अध्ययन करता था, और उसने अपने ज़माने के यहूदी धर्म-गुरुओं के सामने परमेश्‍वर के वचन के पक्ष में ज़बरदस्त गवाही दी। इस गवाही का पूरा ब्यौरा प्रेरितों के काम के अध्याय 7 में दर्ज़ है। यह दिखाता है कि परमेश्‍वर अपने मकसद के बारे में जो बातें सिलसिलेवार ढंग से ज़ाहिर करता था, उन्हें जानने में स्तिफनुस को गहरी दिलचस्पी थी।

2 स्तिफनुस एक नम्र इंसान था। वह उन धर्म-गुरुओं की तरह नहीं था जो अपने ओहदे और ज्ञान की वजह से खुद को आम लोगों से ऊँचा समझते थे। (मत्ती 23:2-7; यूहन्‍ना 7:49) हालाँकि स्तिफनुस को शास्त्र का अच्छा ज्ञान था, फिर भी जब उसे “खिलाने-पिलाने” का काम सौंपा गया तो उसने खुशी-खुशी यह काम किया ताकि प्रेरित “प्रार्थना में और वचन की सेवा में” लगे रहें। भाइयों में अच्छा नाम होने की वजह से ही वह उन सात सुनाम पुरुषों में एक था जिन्हें रोज़ाना भोजन बाँटने के लिए चुना गया था। उसने इस काम को पूरी नम्रता से कबूल किया।—प्रेरितों 6:1-6.

3. स्तिफनुस को कैसे परमेश्‍वर की अपार कृपा का शानदार सबूत दिया गया?

3 यहोवा ने स्तिफनुस के इस नम्र स्वभाव, साथ ही आध्यात्मिक बातों में उसकी दिलचस्पी और खराई को अनदेखा नहीं किया। जब स्तिफनुस महासभा में गुस्से से भड़के यहूदी अगुवों को गवाही दे रहा था, तो उन्होंने ‘देखा कि उसका मुखड़ा स्वर्गदूत का सा है।’ (प्रेरितों 6:15) उसके चेहरे के भाव से लग रहा था कि वह परमेश्‍वर का भेजा हुआ है, ऐसा सुकून झलक रहा था जो महिमा के परमेश्‍वर यहोवा से मिलता है। महासभा में निडरता से गवाही देने के बाद, स्तिफनुस को परमेश्‍वर की अपार कृपा का एक शानदार सबूत मिला। ‘उस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्‍वर की महिमा को और यीशु को परमेश्‍वर की दाहिनी ओर खड़ा देखा।’ (प्रेरितों 7:55) इस हैरतअंगेज़ दर्शन से उसे इस बात का और भी पक्का सबूत मिला कि यीशु, परमेश्‍वर का बेटा और मसीहा है। इस दर्शन ने नम्र स्तिफनुस को और भी मज़बूत किया और उसे यकीन दिलाया कि उस पर यहोवा का अनुग्रह है।

4. यहोवा किन पर अपनी महिमा ज़ाहिर करता है?

4 स्तिफनुस को मिला यह दर्शन दिखाता है कि यहोवा अपनी महिमा और अपना मकसद उन लोगों पर ज़ाहिर करता है जो नम्र हैं, उसका भय मानते और उसके साथ अपने रिश्‍ते को अनमोल समझते हैं। बाइबल कहती है कि “नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है।” (नीतिवचन 22:4) तो हमारे लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि सच्ची नम्रता क्या होती है, हम इस अहम गुण को कैसे बढ़ा सकते हैं, और ज़िंदगी के सभी पहलुओं में यह गुण दिखाने से हमें क्या फायदा होगा।

नम्रता—परमेश्‍वर का गुण

5, 6. (क) नम्रता का मतलब क्या है? (ख) यहोवा ने नम्रता कैसे दिखायी? (ग) यहोवा की नम्रता का हम पर कैसा असर होना चाहिए?

5 कुछ लोगों को शायद यह जानकर ताज्जुब हो कि विश्‍व की सबसे महान और महिमावान हस्ती यहोवा खुद नम्रता की सबसे बड़ी मिसाल है। राजा दाऊद ने यहोवा से कहा: “तू ने मुझ को अपने बचाव की ढाल दी है, तू अपने दहिने हाथ से मुझे सम्भाले हुए है, और तेरी नम्रता ने महत्व दिया है।” (भजन 18:35) यहोवा को नम्र कहते वक्‍त दाऊद ने एक मूल इब्रानी शब्द का इस्तेमाल किया जिसका असल मतलब है “झुकना।” उस शब्द से “नम्रता” के साथ-साथ ये शब्द भी निकले हैं: “दीनता,” “विनम्रता” और “अपने आप को झुकाना।” तो यहोवा ने खुद को नीचे झुकाकर असिद्ध इंसान दाऊद के साथ नाता रखा और उसे अपने ठहराए राजा के तौर पर इस्तेमाल किया। इस तरह उसने नम्रता दिखायी। जैसे भजन 18 का उपरिलेख दिखाता है, यहोवा ने दाऊद की हिफाज़त की और उसे सहारा दिया। उसने दाऊद को “उसके सारे शत्रुओं के हाथ से, और शाऊल के हाथ से बचाया।” दाऊद जानता था कि उसे राजा की हैसियत से कुछ हद तक महानता या महिमा तभी मिलेगी जब यहोवा नम्रता से उसकी मदद करेगा। इस सच्चाई को मन में रखने की वजह से दाऊद हमेशा नम्र बना रहा।

6 हमारे बारे में क्या? यहोवा ने हमें इस काबिल पाया है कि वह हमें सच्चाई सिखाए, और शायद उसने अपने संगठन के ज़रिए हमें सेवा के कुछ खास मौके दिए हों या अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए हमें किसी खास तरीके से इस्तेमाल किया हो। इस बारे में हमें कैसा महसूस करना चाहिए? क्या हमें नम्र नहीं होना चाहिए? क्या हमें यहोवा की नम्रता के लिए उसका एहसान नहीं मानना चाहिए? और क्या हमें अपनी बड़ाई करने से दूर नहीं रहना चाहिए ताकि हम पर कोई बड़ी मुसीबत न आए?—नीतिवचन 16:18; 29:23.

7, 8. (क) यहोवा ने मनश्‍शे के साथ कैसे नम्रता से व्यवहार किया? (ख) नम्रता दिखाने में यहोवा ने और साथ ही मनश्‍शे ने हमारे लिए क्या मिसाल रखी?

7 यहोवा ने असिद्ध इंसानों के साथ नम्रता से व्यवहार तो किया ही है, पर साथ ही उसने ऐसे लोगों पर दया करके उन्हें ऊँचा उठाया, जिन्होंने खुद को दीन किया। (भजन 113:4-7) यहूदा के राजा मनश्‍शे पर गौर कीजिए। उसने राजा के पद का गलत इस्तेमाल करके झूठी उपासना को बढ़ावा दिया और “ऐसे बहुत से काम किए, जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं और जिन से वह अप्रसन्‍न होता है।” (2 इतिहास 33:6) आखिरकार यहोवा ने मनश्‍शे को सज़ा दी। अश्‍शूर के राजा ने आकर उसकी राजगद्दी छीन ली और उसे बंदी बना लिया। जब मनश्‍शे कैद में था तो ‘वह अपने परमेश्‍वर यहोवा को मानने लगा और उसके सामने इतना दीन हुआ’ कि यहोवा ने यरूशलेम की राजगद्दी उसे लौटा दी। तब मनश्‍शे को “निश्‍चय हो गया कि यहोवा ही [सच्चा] परमेश्‍वर है।” (2 इतिहास 33:11-13) जी हाँ, आखिर में मनश्‍शे ने जो नम्रता दिखायी, उससे यहोवा खुश हुआ और उसने भी नम्रता दिखाते हुए मनश्‍शे को माफ किया और उसे दोबारा राजा बनाया।

8 यहोवा जिस तरह माफ करने को तैयार था और मनश्‍शे ने जिस तरह पश्‍चाताप दिखाया, उससे हम नम्रता के बारे में कुछ अहम सबक सीखते हैं। हम यह कभी न भूलें कि हमें जो ठेस पहुँचाते हैं, उनके साथ हम जैसा बर्ताव करेंगे और खुद पाप करने पर जो रवैया दिखाएँगे, उसी के मुताबिक यहोवा भी हमारे साथ पेश आएगा। अगर हम दूसरों की गलतियों को खुशी-खुशी माफ करेंगे और खुद गलती करने पर नम्रता से उसे कबूल करेंगे तो यहोवा हम पर दया करेगा।—मत्ती 5:23, 24; 6:12.

परमेश्‍वर की महिमा नम्र लोगों पर प्रकट होती है

9. क्या नम्रता कमज़ोरी की निशानी है? समझाइए।

9 लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि नम्रता और उससे ताल्लुक रखनेवाले गुण दिखाना कमज़ोरी की निशानी है या ये गुण बुराई को बरदाश्‍त कर लेते हैं। पवित्रशास्त्र साफ दिखाता है कि यहोवा नम्र ज़रूर है, मगर जब हालात माँग करते हैं तो वह धार्मिकता की खातिर अपना क्रोध प्रकट करता और अपनी विस्मयकारी शक्‍ति का इस्तेमाल करके दुष्टों को सज़ा भी देता है। अपनी नम्रता की वजह से यहोवा ऐसे लोगों की खास परवाह करता है जो मन के दीन हैं, पर साथ ही वह घमंडियों से दूर रहता है। (भजन 138:6) यहोवा ने अपने नम्र सेवकों के लिए खास परवाह कैसे दिखायी है?

10. पहला कुरिन्थियों 2:6-10 के मुताबिक यहोवा नम्र लोगों पर क्या ज़ाहिर करता है?

10 यहोवा अपने ठहराए समय पर और अपने इंतज़ाम के ज़रिए नम्र लोगों को जानकारी देता है कि वह अपना मकसद कैसे पूरा करेगा। ये शानदार बातें उन लोगों से छिपी रहती हैं जिन्हें संसार की बुद्धि या सोच-विचार पर बहुत घमंड होता है या जो उन पर अड़े रहते हैं। (1 कुरिन्थियों 2:6-10) लेकिन जहाँ तक नम्र लोगों की बात है, यहोवा के मकसद के बारे में सही समझ पाने की वजह से उसके वैभव के लिए उनकी कदर और भी बढ़ जाती है, इसलिए वे दिल की गहराइयों से उसकी बड़ाई करते हैं।

11. पहली सदी में कुछ लोगों ने कैसे दिखाया कि उनमें नम्रता नहीं थी, और इस वजह से उनका क्या नुकसान हुआ?

11 पहली सदी में कई लोगों ने नम्रता नहीं दिखायी, यहाँ तक कि कुछ ऐसे लोगों ने भी जो खुद को मसीही कहते थे। इसलिए जब प्रेरित पौलुस ने परमेश्‍वर के मकसद के बारे में उन्हें बताया तो वे ठोकर खा गए। पौलुस को जब “अन्यजातियों के लिये प्रेरित” चुना गया तो यह नहीं देखा गया कि वह किस जाति का है, उसने कितनी शिक्षा हासिल की, उसकी उम्र क्या है या वह कितने लंबे समय से भले काम कर रहा है। (रोमियों 11:13) जो लोग मामलों को आध्यात्मिक नज़रिए से नहीं देखते वे अकसर मानते हैं कि यहोवा इन्हीं बातों की बिनाह पर अपने काम के लिए लोगों को चुनता है। (1 कुरिन्थियों 1:26-29; 3:1; कुलुस्सियों 2:18) लेकिन यहोवा ने अपने सच्चे प्यार की वजह से और अपने धर्मी मकसद को पूरा करने के लिए पौलुस को चुना था। (1 कुरिन्थियों 15:8-10) पौलुस ने जिनका ज़िक्र “बड़े से बड़े प्रेरितों” के तौर पर किया, उन्होंने और दूसरे विरोधियों ने, न तो पौलुस को एक प्रेरित कबूल किया, न ही शास्त्र से दी गयी उसकी दलीलों को माना। उनमें नम्रता नहीं थी, इसलिए वे इस बारे में ज्ञान और समझ नहीं पा सके कि यहोवा अपना मकसद कैसे शानदार तरीके से पूरा करता है। हम ऐसी गलती कभी न करें, यानी यहोवा जिन्हें अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए चुनता है, उन्हें कभी तुच्छ न जानें या उनके बारे में गलत राय कायम न करें।—2 कुरिन्थियों 11:4-6.

12. मूसा की मिसाल कैसे दिखाती है कि यहोवा नम्र लोगों को आशीष देता है?

12 दूसरी तरफ, बाइबल की कई मिसालें दिखाती हैं कि नम्र लोगों को कैसे परमेश्‍वर की महिमा की झलक पाने की आशीष मिलती है। मूसा, सब इंसानों से “बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।” उसने परमेश्‍वर की महिमा देखी और उसके साथ एक करीबी रिश्‍ते का आनंद उठाया। (गिनती 12:3) मूसा ने 40 साल तक एक मामूली चरवाहे के तौर पर ज़िंदगी बितायी। इनमें से ज़्यादातर साल शायद उसने अरब प्रायद्वीप में गुज़ारे थे। सिरजनहार ने इस नम्र इंसान पर कई तरीकों से खास अनुग्रह दिखाया। (निर्गमन 6:12, 30) यहोवा की मदद से मूसा, इस्राएल जाति का प्रवक्‍ता बना और उनको संगठित करने में उसने खास ज़िम्मेदारी निभायी। उसे परमेश्‍वर के साथ बातचीत करने का सुअवसर मिला। और एक दर्शन में उसने “यहोवा का स्वरूप” भी देखा। (गिनती 12:7, 8; निर्गमन 24:10, 11) जिन लोगों ने परमेश्‍वर के इस नम्र सेवक और प्रतिनिधि को कबूल किया, उन्हें भी आशीषें मिलीं। उसी तरह अगर हम मूसा से भी महान नबी, यीशु को, साथ ही उसके ठहराए “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को कबूल करें और उनकी आज्ञाएँ मानें तो हमें भी आशीषें मिलेंगी।—मत्ती 24:45, 46; प्रेरितों 3:22.

13. पहली सदी में नम्र चरवाहों पर यहोवा की महिमा कैसे प्रकट हुई?

13 स्वर्गदूतों ने ‘उद्धारकर्त्ता, प्रभु मसीह’ के जन्म की खुशखबरी सबसे पहले किन्हें दी और किन लोगों पर ‘यहोवा का तेज चमका’? अहंकारी धर्म-गुरुओं या समाज के रुतबेदार लोगों पर नहीं, बल्कि उन नम्र चरवाहों पर जो “रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा देते थे।” (लूका 2:8-11) इन आदमियों में कोई खास हुनर या ऐसी काबिलीयत नहीं थी जिससे समाज में उन्हें ऊँचा दर्जा दिया जाता। लेकिन, यहोवा ने उन पर ध्यान दिया और सबसे पहले उन्हीं को मसीहा के जन्म की खबर दी। जी हाँ, यहोवा ऐसे लोगों पर अपनी महिमा प्रकट करता है जो नम्र होते और उसका भय मानते हैं।

14. नम्र लोगों को यहोवा कैसी आशीषें देता है?

14 इन मिसालों से हम क्या सीखते हैं? यही कि यहोवा नम्र लोगों पर अनुग्रह करता और उन्हीं को अपने मकसद के बारे में ज्ञान और समझ देता है। यहोवा अपने शानदार मकसद के बारे में जानकारी देने के लिए साधारण लोगों का इस्तेमाल करता है, जिनमें शायद कोई खास हुनर या काबिलीयत न हो। अब तक हमने जो सीखा, उसके मुताबिक हमें लगातार यहोवा, उसके वचन और संगठन की मदद लेनी चाहिए। हम पक्का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आगे भी नम्र सेवकों को अपने शानदार मकसद की जानकारी देता रहेगा। आमोस नबी ने कहा था: “प्रभु यहोवा अपने दास भविष्यद्वक्‍ताओं पर अपना मर्म बिना प्रगट किए कुछ भी न करेगा।”—आमोस 3:7.

नम्रता बढ़ाइए और परमेश्‍वर का अनुग्रह पाइए

15. हमें नम्रता बनाए रखने के लिए मेहनत क्यों करनी चाहिए, और यह बात इस्राएल के राजा शाऊल के मामले से कैसे ज़ाहिर होती है?

15 अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हम पर हमेशा अनुग्रह करता रहे तो हमें नम्र बने रहना चाहिए। अगर एक इंसान ने कभी नम्रता दिखायी है तो इसका यह मतलब नहीं कि वह ज़िंदगी भर नम्र बना रहेगा। वह अपनी नम्रता खो सकता है और उसमें घमंड और बड़ा बनने का जुनून पैदा हो सकता है। तब वह अपनी मर्यादा पार करके कुछ ऐसा कर बैठेगा जिससे उसकी ज़िंदगी बरबाद हो सकती है। इस्राएल के पहले अभिषिक्‍त राजा शाऊल ने बिलकुल ऐसा ही किया था। जब उसे राजा चुना गया, तब वह खुद को “अपनी दृष्टि में छोटा” समझता था। (1 शमूएल 15:17) मगर दो साल तक उसने हुकूमत क्या की, वह अपनी हद भूल गया। यहोवा ने शमूएल के ज़रिए बलिदान चढ़ाने का जो इंतज़ाम किया था, उसका शाऊल ने अनादर करके खुद बलिदान चढ़ा दिया। फिर अपनी गलती को जायज़ ठहराने के लिए उसने बहाने बनाए। (1 शमूएल 13:1, 8-14) यह उन घटनाओं की बस शुरूआत थी जिनसे साफ ज़ाहिर हो गया कि उसमें पहले जैसी नम्रता नहीं रही। नतीजा यह हुआ कि वह परमेश्‍वर की आत्मा और अनुग्रह खो बैठा और आखिरकार एक शर्मनाक मौत मरा। (1 शमूएल 15:3-19, 26; 28:6; 31:4) इससे मिलनेवाला सबक बिलकुल साफ है: हमें अपनी नम्रता और अधीनता का गुण बनाए रखने और अहंकार की भावना पर काबू पाने के लिए लगातार मेहनत करने की ज़रूरत है, ताकि हम अपनी हद पार करके यहोवा के क्रोध का निशाना न बन जाएँ।

16. यहोवा और दूसरे इंसानों की तुलना में हम जो हैं, उसके बारे में गंभीरता से सोचने से हमें नम्रता बढ़ाने में कैसे मदद मिलेगी?

16 नम्रता परमेश्‍वर का एक गुण है जिसे हमें अपने अंदर बढ़ाना चाहिए। (कुलुस्सियों 3:10, 12) नम्रता हमारे सोच-विचार से ताल्लुक रखती है यानी इस बात से कि हम खुद के बारे में और दूसरों के बारे में कैसा नज़रिया रखते हैं। इसलिए नम्रता का गुण बढ़ाने के लिए हमें काफी मेहनत करनी होगी। अगर हम इस बारे में गंभीरता से सोचें कि यहोवा परमेश्‍वर और दूसरे इंसानों की तुलना में असल में हम क्या हैं, तो हम हमेशा नम्र बने रहेंगे। परमेश्‍वर की नज़र में सभी असिद्ध प्राणी, हरी घास की तरह हैं जो कुछ समय के लिए बढ़ती और फिर मुरझाकर सूख जाती है। इंसान बस खेत में उड़नेवाली टिड्डियों की तरह हैं। (यशायाह 40:6, 7, 22) अगर घास का एक तिनका दूसरे तिनकों से थोड़ा ऊँचा है, तो क्या वह खुद पर घमंड कर सकता है? या अगर एक टिड्डी दूसरी टिड्डियों से ज़्यादा दूर तक छलाँग मार सकती है, तो क्या उसे अपनी काबिलीयत पर शेखी बघारनी चाहिए? ऐसा करना कितनी बेतुकी बात होगी! इसलिए प्रेरित पौलुस ने अपने मसीही भाई-बहनों को याद दिलाया: ‘तुझ में और दूसरे में कौन भेद करता है? और तेरे पास क्या है जो तू ने नहीं पाया: और जब कि तू ने पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्यों करता है, कि मानो नहीं पाया?’ (1 कुरिन्थियों 4:7) बाइबल की ऐसी आयतों पर मनन करने से हमें नम्रता पैदा करने और दिखाने में मदद मिलेगी।

17. दानिय्येल नबी को नम्रता का गुण बढ़ाने में किन बातों ने मदद दी, और हमें भी कैसे मदद मिल सकती है?

17 इब्रानी नबी दानिय्येल ने खुद को “दीन किया” इसलिए वह परमेश्‍वर की नज़र में “अति प्रिय पुरुष” साबित हुआ। (दानिय्येल 10:11, 12) किन बातों ने दानिय्येल को नम्रता दिखाने में मदद दी? पहली बात, दानिय्येल यहोवा पर पूरा-पूरा भरोसा रखता था और नियमित तौर पर उससे प्रार्थना करता था। (दानिय्येल 6:10, 11) इसके अलावा, वह परमेश्‍वर के वचन का पूरी लगन से और सही इरादे से अध्ययन करता था। इस वजह से परमेश्‍वर के शानदार मकसद के बारे में उसके मन में एक साफ तसवीर बनी रही। एक और बात यह है कि उसने न सिर्फ अपने लोगों की बल्कि खुद की गलतियों को भी कबूल किया। साथ ही, उसे परमेश्‍वर की धार्मिकता की पैरवी करने में गहरी दिलचस्पी थी, न कि अपनी धार्मिकता में। (दानिय्येल 9:2, 5, 7) क्यों न हम दानिय्येल की उम्दा मिसाल पर चलकर नम्रता बढ़ाने और ज़िंदगी के हर पहलू में उसे दिखाने की कोशिश करें?

18. आज जो लोग नम्रता दिखाते हैं, उन्हें कैसी महिमा मिलेगी?

18 नीतिवचन 22:4 कहता है कि “नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है।” जी हाँ, यहोवा नम्र लोगों पर अनुग्रह करता है और इसलिए उन्हें महिमा और जीवन मिलता है। भजनहार आसाप की ज़िंदगी में एक वक्‍त ऐसा आया जब उसने परमेश्‍वर की सेवा छोड़ देनी चाही। मगर जब यहोवा ने उसकी सोच को सुधारा तो उसने नम्रता से कबूल किया: “तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा।” (भजन 73:24) आज के बारे में क्या? जो लोग नम्रता दिखाते हैं उन्हें कैसी महिमा मिलती है? एक तो वे यहोवा के साथ बढ़िया रिश्‍ते का आनंद उठाते हैं। इसके अलावा वे भविष्य में राजा दाऊद के इन शब्दों को पूरा होते देखेंगे जो उसने ईश्‍वर-प्रेरणा से कहे थे: “नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” वाकई उन्हें क्या ही बेहतरीन ज़िंदगी मिलनेवाली है!—भजन 37:11.

क्या आपको याद है?

• स्तिफनुस ने किस तरह एक ऐसे नम्र इंसान होने की मिसाल पेश की, जिस पर यहोवा ने अपनी महिमा प्रकट की?

• यहोवा परमेश्‍वर ने किन तरीकों से नम्रता दिखायी है?

• कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि यहोवा नम्र लोगों पर अपनी महिमा प्रकट करता है?

• नम्रता पैदा करने में दानिय्येल की मिसाल कैसे हमारी मदद कर सकती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर बक्स]

दृढ़ मगर फिर भी नम्र

सन्‌ 1919 में अमरीका के सीडर पॉइंट, ओहायो में बाइबल विद्यार्थियों (आज यहोवा के साक्षी कहलाते हैं) का जो अधिवेशन हुआ, उसमें भाई जे. एफ. रदरफर्ड ने होटल के कर्मचारी की तरह दूसरी जगहों से आए भाई-बहनों का सामान खुशी-खुशी उठाया और वे उन्हें कमरों तक ले गए। उस वक्‍त उनकी उम्र 50 थी और उन पर संस्था के कामों की देखरेख करने का भारी ज़िम्मा था। अधिवेशन के आखिरी दिन, उनके इन शब्दों ने वहाँ हाज़िर 7,000 लोगों में जोश भर दिया: “आप, राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु के राजदूत हो, लोगों के सामने आपको . . . हमारे प्रभु के महान राज्य की घोषणा करनी है।” भाई रदरफर्ड एक दृढ़ इंसान थे, और सच्चाई के बारे में पूरे यकीन के साथ और दमदार तरीके से बोलते थे और कोई समझौता नहीं करते थे। मगर जब भी वे परमेश्‍वर से बात करते तो पूरी नम्रता से पेश आते थे। उनकी यह नम्रता अकसर बेथेल में मॉर्निंग वर्शिप के वक्‍त उनकी प्रार्थनाओं से ज़ाहिर होती थी।

[पेज 9 पर तसवीर]

स्तिफनुस को शास्त्र का अच्छा ज्ञान था, फिर भी उसने भोजन बाँटने का काम नम्रता से किया

[पेज 10 पर तसवीर]

मनश्‍शे का नम्र स्वभाव देखकर यहोवा खुश हुआ

[पेज 12 पर तसवीर]

दानिय्येल क्यों “अति प्रिय पुरुष” कहलाया?