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थके हुए, पर हिम्मत नहीं हारते

थके हुए, पर हिम्मत नहीं हारते

थके हुए, पर हिम्मत नहीं हारते

“यहोवा जो . . . पृथ्वी भर का सिरजनहार है, . . . वह थके हुए को बल देता है और शक्‍तिहीन को बहुत सामर्थ देता है।”यशायाह 40:28, 29.

1, 2. (क) जो शुद्ध उपासना करना चाहते हैं, उन सभी को कौन-सा मनभावना न्यौता दिया गया है? (ख) क्या बात हमारी आध्यात्मिकता के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकती है?

 हम यीशु के चेले, उसके इस मनभावने न्यौते से बहुत अच्छी तरफ वाकिफ हैं: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। . . . क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” (मत्ती 11:28-30) मसीहियों को यहोवा के “सन्मुख से विश्रान्ति के दिन” पाने का भी न्यौता मिलता है। (प्रेरितों 3:19) बेशक आपने खुद महसूस किया होगा कि बाइबल की सच्चाइयाँ सीखने, भविष्य के लिए एक उज्ज्वल आशा पाने और अपनी ज़िंदगी में यहोवा के सिद्धांतों को लागू करने से हम कितने तरोताज़ा हो जाते हैं।

2 फिर भी, यहोवा के कुछ उपासकों को कभी-कभी मन की थकान आ घेरती है। कुछ मामलों में यह निराशा थोड़े वक्‍त के लिए रहती है, तो कई बार यह मायूसी लंबे अरसे तक कायम रहती है। जैसे-जैसे वक्‍त बीतता जाता है, कुछ भाई-बहनों को लगता है कि मसीही ज़िम्मेदारियों का भार उठाने से उन्हें विश्राम तो नहीं मिलता जैसा यीशु ने वादा किया था, इसके बजाय वे इस भार को उठाते-उठाते थक गए हैं। ऐसी गलत सोच, यहोवा के साथ एक मसीही के रिश्‍ते के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकती है।

3. यीशु ने यूहन्‍ना 14:1 में पायी जानेवाली सलाह क्यों दी?

3 यीशु ने अपनी गिरफ्तारी और मौत के कुछ ही समय पहले चेलों से कहा था: “तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखते हो मुझ पर भी विश्‍वास रखो।” (यूहन्‍ना 14:1) यीशु ने ये शब्द इसलिए कहे क्योंकि प्रेरित बहुत जल्द बड़े-बड़े हादसों से गुज़रनेवाले थे। और फिर ज़ुल्मों का एक लंबा दौर शुरू होनेवाला था। यीशु जानता था कि उसके प्रेरित पूरी तरह निराश होकर ठोकर खा सकते थे। (यूहन्‍ना 16:1) अगर मायूसी की इन भावनाओं पर काबू न किया जाता, तो ये उन्हें आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर कर देतीं और यहोवा पर उनका भरोसा तोड़ देतीं। यह आज मसीहियों के बारे में भी सच है। लंबे अरसे तक निराशा का सामना करते-करते हम बहुत दुःखी हो सकते हैं और हमारा दिल इस बोझ तले दबकर चूर-चूर हो सकता है। (यिर्मयाह 8:18) हमारे अंदर का इंसान कमज़ोर पड़ सकता है। ऐसा दबाव सहते-सहते, हमारी भावनाएँ मानो मर जाती हैं और आध्यात्मिक तरीके से हम बेजान हो जाते हैं, यहाँ तक कि हमारे अंदर यहोवा की उपासना करने की इच्छा भी खत्म हो जाती है।

4. हमें अपने मन की रक्षा करने में कैसे मदद मिलती है ताकि यह थक न जाए?

4 बाइबल की यह सलाह वाकई बहुत सही है: “सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।” (नीतिवचन 4:23) बाइबल की व्यावहारिक सलाह से हमें अपने मन की रक्षा करने में मदद मिलती है ताकि यह मायूस होकर आध्यात्मिक रूप से थक न जाए। लेकिन, सबसे पहले हमें अपनी थकान की वजह जानने की ज़रूरत है।

मसीहियत बोझ नहीं डालती

5. मसीह के चेले बनने के बारे में कौन-सी दो बातें एक-दूसरे को काटती हुई मालूम होती हैं?

5 यह सच है कि मसीही जीवन जीने के लिए कड़ा संघर्ष करना ज़रूरी है। (लूका 13:24) यीशु ने तो यहाँ तक कहा था: “जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता।” (लूका 14:27) ऊपरी तौर पर, ऐसा लग सकता है कि यीशु के ये शब्द, उसका जूआ सहज और बोझ हलका होने की बात को काटते हैं। मगर, असल में ऐसा नहीं है।

6, 7. यह क्यों कहा जा सकता है कि हमारा उपासना का तरीका थकानेवाला नहीं है?

6 कड़ा संघर्ष और मेहनत-मशक्कत हमारे शरीर को ज़रूर थका देती है, मगर किसी अच्छे काम के लिए की गयी मेहनत से हमें संतोष और ताज़गी मिल सकती है। (सभोपदेशक 3:13, 22) और दूसरों को बाइबल की शानदार सच्चाइयाँ बताने से अच्छा काम भला और क्या हो सकता है? यही नहीं, परमेश्‍वर के उच्च नैतिक स्तरों के मुताबिक जीने की हमारी जद्दोजेहद, उन आशीषों के मुकाबले कुछ भी नहीं जो हमें इससे मिलती हैं। (नीतिवचन 2:10-20) सताए जाने पर भी, परमेश्‍वर के राज्य की खातिर दुःख झेलने को हम बड़े सम्मान की बात मानते हैं।—1 पतरस 4:14.

7 यीशु का जूआ वाकई हमें तरोताज़ा करता है, खासकर जब हम देखते हैं कि झूठे धर्म के जूए से दबे रहनेवाले लोग कैसे आध्यात्मिक अंधकार में हैं। परमेश्‍वर हमसे प्यार करता है और ऐसी कोई माँग नहीं करता जिसे हम पूरा न कर पाएँ। यहोवा की “आज्ञाएं कठिन नहीं” हैं। (1 यूहन्‍ना 5:3) बाइबल में बतायी सच्ची मसीहियत हम पर बोझ नहीं डालती। जी हाँ, हमारा उपासना का तरीका थकाने और मायूस करनेवाला नहीं है।

‘हर एक बोझ को दूर कर’

8. आध्यात्मिक थकान की वजह अकसर क्या होती है?

8 अगर हम आध्यात्मिक तौर पर थक रहे हैं, तो इस भ्रष्ट दुनिया ने हम पर जो बोझ लादा है, अकसर उसकी वजह से हम थकान महसूस करते हैं। “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है,” इसलिए हम विरोधियों से घिरे हुए हैं जो हमें थका सकते हैं और मसीही सेवा में हमारे जोश को धीरे-धीरे कम कर सकते हैं। (1 यूहन्‍ना 5:19) गैर-ज़रूरी काम, हमें उलझा सकते हैं और मसीही सेवा के हमारे रोज़ाना कार्यक्रम में बाधा डाल सकते हैं। इनके बोझ से हम दब सकते हैं और हमारे हौसले भी पस्त हो सकते हैं। इसलिए बाइबल की यह सलाह बिलकुल सही है कि हम ‘हर एक बोझ को दूर करें।’—इब्रानियों 12:1-3, हिन्दुस्तानी बाइबिल।

9. शारीरिक सुख-विलास के काम कैसे हम पर बोझ बन सकते हैं?

9 मिसाल के लिए, जब हम दुनिया को दौलत, शोहरत, मनोरंजन, सैर-सपाटे और सुख-विलास के दूसरे कामों में डूबा हुआ देखते हैं, तो इसका हमारी सोच पर भी असर हो सकता है। (1 यूहन्‍ना 2:15-17) पहली सदी के कुछ मसीहियों ने धन-दौलत के पीछे भागकर अपनी ज़िंदगी को बहुत बुरी तरह से उलझा दिया था। प्रेरित पौलुस समझाता है: “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं। क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्‍वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—1 तीमुथियुस 6:9,10.

10. बीज बोनेवाले के यीशु के दृष्टांत से हम धन-दौलत के बारे में क्या सीख सकते हैं?

10 अगर हम परमेश्‍वर की सेवा में थककर मायूस हो जाते हैं, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि ऐशो-आराम की चीज़ों के पीछे भागने की वजह से हमारी आध्यात्मिकता दम तोड़ रही है? यह काफी हद तक मुमकिन है, जैसा बीज बोनेवाले के यीशु के दृष्टांत से पता चलता है। यीशु ने बताया कि “संसार की चिन्ता, और धन का धोखा, और और वस्तुओं का लोभ” ऐसे काँटें हैं जो हमारे दिलों में “समाकर,” बीज की तरह बोए गए परमेश्‍वर के ‘वचन को दबा देते हैं।’ (मरकुस 4:18, 19) इसलिए बाइबल हमें सलाह देती है: “तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर सन्तोष करो; क्योंकि उस ने आप ही कहा है, मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।”—इब्रानियों 13:5.

11. हम पर बोझ बननेवाले कामों को हम कैसे बंद कर सकते हैं?

11 कभी-कभी हमारी ज़िंदगी ज़्यादा चीज़ें पाने के लिए दौड़-धूप करने से नहीं, बल्कि हमारे पास जो है उसी को हम जिस तरह इस्तेमाल करते हैं, उससे उलझ जाती है। कुछ लोग गंभीर बीमारियों, अपने अज़ीज़ों की मौत या दूसरी दर्दनाक समस्याओं की वजह से अंदर-ही-अंदर थककर पस्त हो चुके हैं। इसलिए उन्होंने समय-समय पर कुछ बदलाव करने की ज़रूरत महसूस की है। एक शादी-शुदा जोड़े ने अपने कुछ शौक छोड़ने और गैर-ज़रूरी काम बंद करने का फैसला किया। दरअसल, उन्होंने अपने साज़ो-सामान का मुआयना किया और गैर-ज़रूरी कामों से जुड़ी सभी चीज़ों को पैक करके, अपनी नज़र से दूर हटा दिया। समय-समय पर, हम सभी को अपनी आदतों और साज़ो-सामान की जाँच करनी चाहिए और हर गैर-ज़रूरी बोझ को दूर करना चाहिए ताकि हम थककर हिम्मत न हार बैठें।

कोमलता और मर्यादा बेहद ज़रूरी हैं

12. हमें अपनी गलतियों के बारे में क्या समझने की ज़रूरत है?

12 हमारी अपनी गलतियाँ, चाहे वे छोटी बातों में क्यों न हों, हमारी ज़िंदगी को धीरे-धीरे उलझा सकती हैं। दाऊद के ये शब्द कितने सच हैं: “मेरे अधर्म के कामों में मेरा सिर डूब गया, और वे भारी बोझ की नाईं मेरे सहने से बाहर हो गए हैं।” (भजन 38:4) अकसर सूझ-बूझ से कुछ बदलाव करने पर, हम इस भारी बोझ से छुटकारा पाएँगे।

13. कोमलता कैसे हमें अपनी मसीही सेवा के बारे में सही नज़रिया रखने में मदद दे सकती है?

13 बाइबल हमें उकसाती है कि हम “खरी बुद्धि और विवेक” को बढ़ाएँ। (नीतिवचन 3:21, 22) बाइबल कहती है कि “जो ज्ञान [“बुद्धि,” NW] ऊपर से आता है वह . . . कोमल” होता है। (याकूब 3:17) कई लोग सोचते हैं कि मसीही प्रचार के काम में जितना दूसरे करते हैं, उन्हें भी करना चाहिए। लेकिन बाइबल हमें सलाह देती है: “हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा। क्योंकि हर एक व्यक्‍ति अपना ही बोझ उठाएगा।” (गलतियों 6:4, 5) यह सच है कि संगी मसीहियों की अच्छी मिसाल, हमें यहोवा की सेवा पूरे तन-मन से करने का बढ़ावा दे सकती है, मगर खरी बुद्धि और कोमलता हमें अपने हालात के मुताबिक ऐसे लक्ष्य रखने में मदद देगी जिन तक पहुँचना हमारे लिए मुमकिन हो।

14, 15. हमारे शरीर और मन की ज़रूरतों को पूरा करने में हम खरी बुद्धि कैसे दिखा सकते हैं?

14 ऐसे मामलों में भी कोमलता दिखाने से थकान की भावनाएँ दूर की जा सकती हैं, जिनकी शायद हमारी नज़र में खास अहमियत न हो। मिसाल के लिए, क्या हमारा रहन-सहन ऐसा है जो हमें अच्छी सेहत बनाए रखने में मदद दे? यहोवा के साक्षियों के एक शाखा दफ्तर में सेवा करनेवाले एक शादी-शुदा जोड़े की मिसाल पर गौर कीजिए। उन्होंने थका देनेवाली चीज़ों से दूर रहने के लिए खरी बुद्धि से काम लेने की अहमियत को समझा है। पत्नी कहती है: “चाहे हमारे पास कितना ही काम क्यों न हो, हम कोशिश करते हैं कि हर रात तकरीबन एक ही वक्‍त पर सोएँ। हम बिना नागा कसरत भी करते हैं। इससे हमें काफी फायदा हुआ है। हमने अपनी सीमाओं को ध्यान में रखकर काम करना सीखा है। हम अपनी तुलना ऐसे लोगों से करने की कोशिश नहीं करते, जिनके पास मानो बेहिसाब शक्‍ति है और वे दिन-रात काम करते रहते हैं।” क्या हम नियमित रूप से पौष्टिक खाना खाते हैं और अच्छी नींद लेते हैं? जहाँ तक मुनासिब है अपनी सेहत की देखभाल करने से, हमें मन से और आध्यात्मिक तरीके से कम थकान महसूस होगी।

15 हममें से कुछ लोगों की ज़रूरतें बिलकुल अलग हैं। एक मसीही बहन की मिसाल लीजिए, जिसने मुश्‍किल हालात में कई जगहों पर पूरे समय के प्रचारक के नाते सेवा की है। अब उसकी सेहत बहुत ज़्यादा बिगड़ चुकी है, यहाँ तक कि उसे कैंसर है। तनाव से भरे हालात का सामना करने में क्या बात उसकी मदद करती है? वह कहती है: “मेरे लिए बहुत ज़रूरी है कि बिना किसी शोर-शराबे के मैं कुछ पल तनहाई में बिताऊँ। जितना ज़्यादा मुझे महसूस होता है कि मेरा तनाव बढ़ रहा है और मैं थक रही हूँ, उतना ही अकेले में शांति के कुछ पल बिताना मेरे लिए ज़रूरी हो जाता है, ताकि मैं पढ़ाई और आराम कर सकूँ।” खरी बुद्धि और विवेक से हमें अपनी-अपनी ज़रूरतों को समझने और इन्हें पूरा करने में मदद मिलती है, ताकि हम आध्यात्मिक थकान से दूर रहें।

यहोवा परमेश्‍वर हमें शक्‍ति देता है

16, 17. (क) अपनी आध्यात्मिक सेहत की देखभाल करना सबसे ज़रूरी क्यों है? (ख) हमारे रोज़ के कार्यक्रम में हमें क्या शामिल करना चाहिए?

16 बेशक, सबसे ज़्यादा अपनी आध्यात्मिक सेहत की देखभाल करना ज़रूरी है। जब यहोवा परमेश्‍वर के साथ हमारा एक करीबी रिश्‍ता होता है, तो हम चाहे शरीर से थक जाएँ, पर उसकी उपासना करने से कभी नहीं थकेंगे। यहोवा ही है जो “थके हुए को बल देता है और शक्‍तिहीन को बहुत सामर्थ देता है।” (यशायाह 40:28, 29) प्रेरित पौलुस ने इन शब्दों की सच्चाई को खुद महसूस किया था। उसने लिखा: “हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है।”—2 कुरिन्थियों 4:16.

17 “दिन प्रतिदिन” शब्दों पर गौर कीजिए। इसका यह मतलब निकलता है कि हम हर दिन यहोवा के इंतज़ामों से फायदा उठाते रहें। एक मिशनरी की मिसाल लीजिए, जिसने 43 साल वफादारी से सेवा की है। इस दौरान, कई ऐसे मौके आए जब वह शारीरिक रूप से थक गयी और मायूस हो गयी। मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। वह कहती है: “मैंने सुबह जल्दी उठने की आदत डाल ली है, ताकि कोई भी काम शुरू करने से पहले मैं यहोवा से प्रार्थना करने और उसका वचन पढ़ने में वक्‍त बिता सकूँ। रोज़ के इस कार्यक्रम ने मुझे आज तक धीरज धरने में मदद दी है।” अगर हम बिना नागा, जी हाँ “दिन प्रतिदिन” उससे प्रार्थना करें और उसके महान गुणों और वादों पर मनन करें, तो हम वाकई यहोवा की सँभालने की ताकत पर निर्भर रह सकते हैं।

18. बाइबल उन वफादार जनों को क्या तसल्ली देती है, जिनकी उम्र ढल चुकी है या जो बीमार हैं?

18 इससे खासकर उन लोगों को मदद मिलती है जो ढलती उम्र और बिगड़ती सेहत की वजह से निराश महसूस करते हैं। इनकी हिम्मत इसलिए नहीं टूटती कि वे दूसरों के साथ अपनी तुलना करते हैं, बल्कि इसलिए कि वे अपनी मौजूदा हालत की तुलना अपने बीते वक्‍त के साथ करते हैं, जब वे परमेश्‍वर की सेवा ज़ोर-शोर से करते थे। यह जानकर कितनी तसल्ली मिलती है कि यहोवा, बुज़ुर्गों का सम्मान करता है! बाइबल कहती है: “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” (नीतिवचन 16:31) यहोवा हमारी सीमाओं को जानता है और हमारी कमज़ोरियों के बावजूद तन-मन से की गयी उपासना को वह अनमोल समझता है। और भलाई के जो काम हम अब तक कर चुके हैं, वे परमेश्‍वर की याद में हमेशा-हमेशा के लिए बस गए हैं। बाइबल हमें यकीन दिलाती है: “परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की, और कर भी रहे हो।” (इब्रानियों 6:10) हम सब कितने खुश हैं कि हमारे बीच ऐसे लोग हैं जिन्होंने बरसों यहोवा की सेवा वफादारी से की है!

हार मत मानिए

19. भलाई के कामों में लगे रहने से हमें कैसे फायदा होता है?

19 बहुतों का मानना है कि नियमित रूप से मेहनत-मशक्कत करने से थकान दूर होती है। उसी तरह, आध्यात्मिक कामों में नियमित रूप से मेहनत करने से, हमें मन की थकान या आध्यात्मिक थकान दूर करने में मदद मिल सकती है। बाइबल कहती है: “हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे। इसलिये जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्‍वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों 6:9, 10) इन शब्दों पर गौर कीजिए “भले काम करने” और “भलाई करें।” इनसे पता चलता है कि हमें कुछ करने की ज़रूरत है। दूसरों के लिए भले काम करने से वाकई हमें मदद मिलेगी कि यहोवा की सेवा करते-करते थक न जाएँ।

20. निराशा से लड़ने के लिए हमें कैसे लोगों से दूर रहना चाहिए?

20 इसके उलटे, परमेश्‍वर के नियमों का तिरस्कार करनेवालों के साथ मेल-जोल रखना और काम करना हमारे लिए भारी बोझ बन सकता है। बाइबल हमें चिताती है: “पत्थर तो भारी है और बालू में बोझ है, परन्तु मूढ़ का क्रोध उन दोनों से भी भारी है।” (नीतिवचन 27:3) निराशा और थकान की भावनाओं से लड़ने के लिए, अच्छा होगा अगर हम ऐसे लोगों से दूर रहें जो गलत किस्म की सोच रखते हैं और दूसरों में कमियाँ निकालकर उनकी नुक्‍ताचीनी करते हैं।

21. हम मसीही सभाओं में कैसे दूसरों का हौसला बढ़ा सकते हैं?

21 मसीही सभाएँ यहोवा का ऐसा इंतज़ाम हैं जो हमें आध्यात्मिक ताकत से भर सकती हैं। इन सभाओं में हमें ताज़गी देनेवाले उपदेश और संगति से एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने का शानदार मौका मिलता है। (इब्रानियों 10:25) कलीसिया में सभी को कोशिश करनी चाहिए कि वे अपने जवाबों से या स्टेज पर कार्यक्रम में हिस्सा लेते वक्‍त दूसरों का हौसला बढ़ाएँ। जो भाई सिखानेवालों के नाते अगुवाई करते हैं, उन पर खासकर दूसरों का हौसला बढ़ाने की ज़िम्मेदारी है। (यशायाह 32:1, 2) यहाँ तक कि जहाँ सलाह या ताड़ना देना ज़रूरी हो, वहाँ भी यह ऐसे लहज़े में दी जानी चाहिए कि सामनेवाले को ताज़गी मिले। (गलतियों 6:1, 2) दूसरों के लिए हमारा प्यार वाकई हमारी मदद करेगा कि हम हिम्मत हारे बिना यहोवा की सेवा करते रहें।—भजन 133:1; यूहन्‍ना 13:35.

22. हमारी असिद्धता के बावजूद हम क्यों हौसला रख सकते हैं?

22 अंत के इस समय में यहोवा की सेवा करना, मेहनत का काम है। और मसीहियों को भी दिमागी थकान, दिल के दर्द और तनाव से भरे हालात से गुज़रना पड़ता है। हम असिद्ध इंसान, मिट्टी के बर्तनों की तरह नाज़ुक हैं जो बड़ी आसानी से टूट सकते हैं। ऐसा होने पर भी, बाइबल कहती है: “हमारे पास यह धन मिट्टी के बरतनों में रखा है, कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्‍वर ही की ओर से ठहरे।” (2 कुरिन्थियों 4:7) जी हाँ, हम थकेंगे ज़रूर मगर ऐसा हो कि हम कभी हिम्मत न हारें या हार न मानें। इसके बजाय, आइए हम ‘बेधड़क होकर कहें कि प्रभु [यहोवा] मेरा सहायक है।’—इब्रानियों 13:6.

चंद शब्दों में दोहराना

• हम किस भारी बोझ को उतारकर दूर कर सकते हैं?

• हम अपने मसीही भाई-बहनों की ‘भलाई करने’ में कैसे हिस्सा ले सकते हैं?

• जब हम थक जाते या मायूस होते हैं, तब यहोवा हमें कैसे सँभालता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

यीशु जानता था कि लंबे समय तक मायूसी, चेलों को व्याकुल कर देगी

[पेज 24 पर तसवीर]

कुछ लोगों ने अपने कुछ शौक छोड़ दिए हैं और गैर-ज़रूरी काम बंद कर दिए हैं

[पेज 26 पर तसवीर]

हमारी सीमाओं के बावजूद, यहोवा तन-मन से की गयी उपासना को अनमोल समझता है