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“परमेश्‍वर के सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र धारण करो”

“परमेश्‍वर के सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र धारण करो”

“परमेश्‍वर के सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र धारण करो”

“परमेश्‍वर के सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र धारण करो जिस से तुम शैतान की युक्‍तियों का दृढ़तापूर्वक सामना कर सको।”इफिसियों 6:11, NHT.

1, 2. अपने शब्दों में बताइए कि मसीहियों को कौन-से आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र धारण करने की ज़रूरत है।

 पहली सदी में रोम दुनिया का सबसे ताकतवर देश था। फौजी ताकत की वजह से उस ज़माने की लगभग सारी दुनिया रोम की मुट्ठी में थी। एक इतिहासकार ने इस फौज को “इतिहास की सबसे कामयाब फौज” बताया। रोम की फौज में सैनिक कड़े अनुशासन का पालन करते थे और सख्त ट्रेनिंग से गुज़रते थे, मगर युद्ध में कामयाबी पाने के लिए ज़रूरी था कि उनके पास अच्छे अस्त्र-शस्त्र भी हों। प्रेरित पौलुस ने रोम के सैनिकों के अस्त्र-शस्त्रों का उदाहरण देकर समझाया कि इब्‌लीस के खिलाफ अपनी जंग में कामयाब होने के लिए मसीहियों को किन आध्यात्मिक हथियारों की ज़रूरत है।

2 इस आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र की जानकारी हमें इफिसियों 6:14-17 में मिलती है। पौलुस ने लिखा: “सत्य से अपनी कमर कसकर, और धार्मिकता की झिलम पहिन कर। और पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिन कर। और उन सब के साथ विश्‍वास की [बड़ी] ढाल लेकर स्थिर रहो जिस से तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको। और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार जो परमेश्‍वर का वचन है, ले लो।” पौलुस ने जो अस्त्र-शस्त्र बताए, उन्हें पहनकर रोमी सैनिक अपनी हिफाज़त कर सकता था। इसके अलावा, उसके पास तलवार होती थी जो दूसरे सैनिकों के साथ लड़ने में उसका खास हथियार थी।

3. हमें क्यों यीशु मसीह की हिदायतों को मानना चाहिए और उसकी मिसाल पर चलना चाहिए?

3 जीत हासिल करने के लिए अच्छे हथियारों और अच्छी ट्रेनिंग के अलावा, रोम के सैनिकों के लिए अपने सेनापति का हुक्म मानना भी ज़रूरी था। मसीहियों को भी यीशु मसीह का हुक्म मानना चाहिए, जिसे बाइबल ‘देशों का सेनापति’ कहती है। (यशायाह 55:4, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) वह “कलीसिया का सिर” भी है। (इफिसियों 5:23) यीशु ने आध्यात्मिक जंग लड़ने के लिए हमें बहुत-सी हिदायतें दी हैं और आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र कैसे पहनें इसकी उसने खुद एक उम्दा मिसाल रखी है। (1 पतरस 2:21) मसीह की शख्सियत हमारे आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र से काफी मिलती-जुलती है, इसलिए बाइबल हमें मसीह के मन को “शस्त्र के रूप में धारण” करने की सलाह देती है। (1 पतरस 4:1, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) तो फिर, अपने आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र के हर हथियार की जाँच करते वक्‍त आइए हम हर हथियार की अहमियत और उसके असरदार होने का सबूत यीशु की मिसाल से दें।

कमर, छाती और पाँवों की हिफाज़त

4. एक सैनिक के अस्त्र-शस्त्र में कमरबंद की क्या अहमियत थी, और इसका उदाहरण देकर क्या समझाया गया है?

4 सत्य से अपनी कमर कसकर। बाइबल के ज़माने में सैनिक, 5 से 15 सेंटीमीटर चौड़ा चमड़े का पट्टा या कमरबंद पहनते थे। कुछ अनुवादक कहते हैं कि इस आयत का अनुवाद यूँ होना चाहिए, “सच्चाई को एक पट्टे की तरह कमर पर कसकर बाँधे हुए।” सैनिक का यह पट्टा उसकी कमर की हिफाज़त करता था और तलवार लटकाने के काम भी आता था। जब एक सैनिक जंग की तैयारी करता था, तो कमर पर पट्टा बाँधता था। पौलुस ने सैनिक के इस पट्टे का उदाहरण देकर समझाया कि बाइबल की सच्चाई का हमारी ज़िंदगी पर किस हद तक असर होना चाहिए। इसे मानो हमें अपने चारों तरफ कसकर बाँधना चाहिए, ताकि हम इस सच्चाई के मुताबिक जीएँ और किसी भी मौके पर इसके पक्ष में बोलने के लिए तैयार रहें। (भजन 43:3; 1 पतरस 3:15) इसके लिए हमें मन लगाकर बाइबल का अध्ययन करने और इसकी सच्चाइयों पर मनन करने की ज़रूरत है। परमेश्‍वर की व्यवस्था यीशु के “हृदय में बसी” थी। (भजन 40:8, NHT) इसलिए जब यीशु के दुश्‍मन उससे सवाल करते थे, तो वह शास्त्र के हवालों को ज़बानी दोहराकर जवाब देता था।—मत्ती 19:3-6; 22:23-32.

5. समझाइए कि बाइबल की सलाह कैसे हमें मुसीबत की घड़ी में या गलत काम के लिए लुभाए जाते वक्‍त मदद दे सकती है।

5 जब हम बाइबल की सच्चाई के मुताबिक चलते हैं, तो यह गलत सोच-विचार से हमारी रक्षा कर सकती है और सही फैसले करने में मदद देती है। जब हम मुसीबत में होते हैं या गलत काम करने की परीक्षा हम पर आती है, तब बाइबल की सलाह, सही काम करने के हमारे इरादे को और भी पक्का करेगी। यह ऐसा होगा मानो हम अपने महान उपदेशक, यहोवा को देख रहे हों और पीछे से उसकी आवाज़ सुन रहे हों: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।”—यशायाह 30:20, 21.

6. हमारे लाक्षणिक हृदय को हिफाज़त की ज़रूरत क्यों है और धार्मिकता से कैसे इसकी अच्छी तरह रक्षा हो सकती है?

6 धार्मिकता की झिलम। सैनिक की झिलम उसके एक बेहद ज़रूरी अंग की हिफाज़त करती थी और वह है उसका हृदय। हमारा लाक्षणिक हृदय, यानी हमारे अंदर के इंसान को खास हिफाज़त की ज़रूरत है क्योंकि स्वभाव से यह गलत काम करना चाहता है। (उत्पत्ति 8:21) इसलिए ज़रूरी है कि हम यहोवा के धर्मी स्तरों के बारे में सीखें और उनसे प्रेम करें। (भजन 119:97, 105) धार्मिकता से प्रेम करने की वजह से हम ऐसी दुनियावी सोच को ठुकरा देंगे जो यहोवा के स्पष्ट नियमों को ताक पर रख देती है या फिर किसी तरह उनकी गंभीरता मिटा देती है। इसके अलावा, जो सही है उससे प्रेम और जो गलत है उससे नफरत करने पर हम ऐसी राह से दूर रहते हैं जिस पर चलकर हमारी ज़िंदगी बरबाद हो सकती है। (भजन 119:99-101; आमोस 5:15) इस बात में यीशु की मिसाल काबिले-तारीफ है क्योंकि उसके बारे में बाइबल कहती है: “तू ने धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखा।”—इब्रानियों 1:9. *

7. एक रोमी सैनिक को अच्छे जूतों की ज़रूरत क्यों थी और यह किस बात की निशानी है?

7 पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिन कर। रोमी सैनिकों को मज़बूत और टिकाऊ जूतों की ज़रूरत होती थी, क्योंकि जंग के दौरान वे अकसर हर दिन लगभग 27 किलो वज़न के हथियार या दूसरा सामान लेकर 30 किलोमीटर तक पैदल चलते थे। हर सुननेवाले को राज्य का संदेश प्रचार करने की हमारी तैयारी के लिए, पौलुस ने जूतों का बिलकुल सही उदाहरण चुना। ऐसी तैयारी की बहुत बड़ी अहमियत है क्योंकि अगर हम लोगों को प्रचार करने के लिए तैयार नहीं होंगे तो वे यहोवा को कैसे जानेंगे?—रोमियों 10:13-15.

8. सुसमाचार के प्रचारक के नाते हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

8 यीशु की ज़िंदगी में सबसे अहम काम क्या था? उसने रोमी गवर्नर पुन्तियुस पीलातुस से कहा: “मैं . . . इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।” यीशु को जहाँ कहीं सुननेवाले मिले, उसने उन्हें प्रचार किया। उसको अपनी सेवा से इतनी खुशी मिलती थी कि वह अपनी भूख-प्यास या दूसरी ज़रूरतों से ज़्यादा इस सेवा को अहमियत देता था। (यूहन्‍ना 4:5-34; 18:37) यीशु की तरह अगर हमारे अंदर भी हर किसी को सुसमाचार सुनाने का जज़्बा हो, तो ऐसा करने के हमें बहुत-से मौके मिलेंगे। और, जब हम अपनी सेवा में डूबे रहेंगे तो आध्यात्मिक रूप से मज़बूत बने रहेंगे।—प्रेरितों 18:5.

ढाल, टोप और तलवार

9. बड़ी ढाल से एक रोमी सैनिक की किस तरह हिफाज़त होती थी?

9 विश्‍वास की बड़ी ढाल। ‘बड़ी ढाल’ के लिए इस्तेमाल हुए यूनानी शब्द का मतलब इतनी बड़ी ढाल है जिससे लगभग पूरे शरीर की हिफाज़त हो। यह ढाल, “जलते हुए तीरों” से एक इंसान की रक्षा कर सकती है, जिनका ज़िक्र इफिसियों 6:16 में किया गया है। बाइबल के ज़माने में, सैनिक खोखली डंडियों के तीर बनाते थे जिनमें लोहे के छोटे-छोटे खानों में नैफ्था भरकर जलाया जाता था और ये जलते हुए तीर छोड़े जाते थे। एक विद्वान इन तीरों को “प्राचीन युद्धों के सबसे खतरनाक हथियार” बताता है। अगर एक सैनिक के पास इन तीरों से बचने के लिए बड़ी ढाल न होती, तो वह बहुत बुरी तरह ज़ख्मी हो सकता था या मारा भी जा सकता था।

10, 11. (क) शैतान किन “जलते हुए तीरों” से हमारे विश्‍वास को कमज़ोर कर सकता है? (ख) यीशु ने अपनी मिसाल से परीक्षा के वक्‍त में विश्‍वास रखने की अहमियत कैसे दिखायी?

10 हमारे विश्‍वास को कमज़ोर करने के लिए शैतान किन “जलते हुए तीरों” को हमारी तरफ फेंकता है? वह लोगों को हमारे खिलाफ भड़का सकता है ताकि परिवार में, काम या स्कूल की जगह हम पर ज़ुल्म ढाए जाएँ या हमारा विरोध किया जाए। यही नहीं, ज़्यादा-से-ज़्यादा ऐशो-आराम की चीज़ें हासिल करने की चाहत और अनैतिक कामों का फंदा बहुतों के लिए आध्यात्मिक तबाही का सबब बना है। ऐसे खतरों से अपनी रक्षा करने के लिए, हमें सबसे बढ़कर ‘विश्‍वास की बड़ी ढाल लेनी’ चाहिए। विश्‍वास पैदा करने के लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा के बारे में सीखें, प्रार्थना में नित उससे बात करें, और यह समझें कि वह कैसे हमारी हिफाज़त करता है और हमें आशीष देता है।—यहोशू 23:14; लूका 17:5; रोमियों 10:17.

11 धरती पर रहते वक्‍त यीशु ने अपनी मिसाल से दिखाया कि मुसीबतों के दौर में अटल विश्‍वास रखने की अहमियत क्या है। उसे अपने पिता के फैसलों पर पूरा-पूरा भरोसा था और परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने से उसे खुशी मिलती थी। (मत्ती 26:42, 53, 54; यूहन्‍ना 6:38) गतसमनी के बाग में जब वह बहुत बड़ी वेदना से गुज़र रहा था, तब भी यीशु ने अपने पिता से कहा: “जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” (मत्ती 26:39) यीशु ने हर पल यह याद रखा कि उसे किसी भी कीमत पर अपनी खराई बनाए रखनी है और अपने पिता का दिल खुश करना है। (नीतिवचन 27:11) अगर यीशु की तरह हमें भी यहोवा पर पूरा भरोसा हो, तो चाहे हम पर तानाकशी की जाए या हमारा विरोध किया जाए फिर भी हमारा विश्‍वास कमज़ोर नहीं होगा। इसके बजाय, अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, उसके लिए प्यार दिखाएँ और उसकी आज्ञाएँ मानें, तो हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा। (भजन 19:7-11; 1 यूहन्‍ना 5:3) दुनिया की कीमती चीज़ें या कुछ पल का शारीरिक सुख, यहोवा की उन आशीषों के सामने कुछ भी नहीं जो उसने अपने प्यार करनेवालों के लिए रख छोड़ी हैं।—नीतिवचन 10:22.

12. हमारा लाक्षणिक टोप हमारे किस ज़रूरी अंग की रक्षा करता है, और ऐसी हिफाज़त बेहद ज़रूरी क्यों है?

12 उद्धार का टोप। टोप से एक सैनिक के ज्ञान के भंडार यानी दिमाग और सिर की रक्षा होती थी। मसीही होने के नाते हमारी आशा की बराबरी एक टोप से की गयी है क्योंकि इस आशा से हमारा दिमाग सुरक्षित रहता है। (1 थिस्सलुनीकियों 5:8) हालाँकि हमने परमेश्‍वर के वचन के सही ज्ञान से अपनी बुद्धि या मन को नया कर लिया है, मगर हम अभी-भी कमज़ोर और असिद्ध इंसान ही हैं। हमारा मन बड़ी आसानी से भ्रष्ट हो सकता है। इस दुनिया में लोग जिन चीज़ों के पीछे भाग रहे हैं, वे चीज़ें हमारा भी ध्यान भटका सकती हैं यहाँ तक कि परमेश्‍वर ने हमें जो आशा दी है उसकी जगह ले सकती हैं। (रोमियों 7:18; 12:2) इब्‌लीस ने यीशु के आगे “सारे जगत के राज्य और उसका विभव” देने की पेशकश रखकर उसे गुमराह करना चाहा मगर नाकाम रहा। (मत्ती 4:8) यीशु ने फौरन इस पेशकश को ठुकरा दिया और पौलुस ने उसके बारे में कहा: “[यीशु] ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्‍वर के दहिने जा बैठा।”—इब्रानियों 12:2.

13. आगे के लिए हम अपनी आशा पर भरोसा कैसे बनाए रख सकते हैं?

13 यीशु को परमेश्‍वर पर जैसा भरोसा था वह अपने आप ही पैदा नहीं हुआ था। अगर हम दिन-रात इस दुनिया में कुछ हासिल करने के सपने देखते रहें और आगे के लिए अपनी आशा पर ध्यान न लगाएँ, तो परमेश्‍वर के वादों पर हमारा विश्‍वास कमज़ोर होता जाएगा। कुछ वक्‍त के बाद, हो सकता है हम अपनी आशा से पूरी तरह हाथ धो बैठें। इसके बजाय, अगर हम लगातार परमेश्‍वर के वादों पर मनन करते रहें, तो हम आगे के लिए अपनी आशा से खुशी पाते रहेंगे।—रोमियों 12:12.

14, 15. (क) हमारी लाक्षणिक तलवार क्या है और इसे कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है? (ख) उदाहरण देकर समझाइए कि आत्मा की तलवार की मदद से हम लुभाए जाने पर गलत काम से कैसे इनकार कर सकते हैं।

14 आत्मा की तलवार। बाइबल में दर्ज़ परमेश्‍वर का वचन या संदेश, दोधारी तलवार की तरह बहुत तेज़ है और झूठे धर्म की शिक्षाओं को काटकर तहस-नहस कर सकता है और सच्चे दिल के लोगों को आध्यात्मिक आज़ादी पाने में मदद दे सकता है। (यूहन्‍ना 8:32; इब्रानियों 4:12) यह आध्यात्मिक तलवार हमारी उस वक्‍त भी रक्षा कर सकती है, जब हमें गलत काम के लिए बार-बार लुभाया जाता है या जब हमारा विश्‍वास मिटाने की कोशिश में धर्मत्यागी लगातार हम पर हमला करते हैं। (2 कुरिन्थियों 10:4, 5) हम कितने एहसानमंद हैं कि पूरा ‘पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और हर एक भले काम के लिये हमें सिद्ध बनाता है’!—2 तीमुथियुस 3:16, 17.

15 जब शैतान ने यीशु को वीराने में लुभाने की कोशिश की, तब यीशु ने आत्मा की तलवार को बड़े असरदार तरीके से चलाकर उसके झूठे तर्क और धूर्त चालों को काट दिया। शैतान की हर चुनौती का उसने यूँ जवाब दिया: “लिखा है कि।” (मत्ती 4:1-11) स्पेन में यहोवा के एक साक्षी, दावीद को भी बाइबल की मदद से परीक्षा का सामना करने में मदद मिली। जब वह 19 साल का था, तो साफ-सफाई करनेवाली एक कंपनी में काम करता था। उसी कंपनी में एक खूबसूरत युवती भी काम करती थी जो दावीद पर डोरे डालने की कोशिश कर रही थी। उसने दावीद को “साथ मिलकर रंग-रलियाँ मनाने” का न्यौता दिया, मगर दावीद ने साफ इनकार किया। उसने अपने सुपरवाइज़र से दूसरे इलाके में काम देने की गुज़ारिश की ताकि ऐसे हालात का उसे फिर सामना न करना पड़े। दावीद ने कहा: “मुझे यूसुफ की मिसाल याद आयी। बदचलनी को ठुकराकर वह फौरन वहाँ से निकल भागा। मैंने भी यही किया।”—उत्पत्ति 39:10-12.

16. समझाइए कि ‘सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने’ के लिए हमें प्रशिक्षण की ज़रूरत क्यों है?

16 यीशु ने लोगों को शैतान के चंगुल से छुड़ाने के लिए भी आत्मा की तलवार चलायी। यीशु ने कहा: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” (यूहन्‍ना 7:16) अगर हम यीशु की तरह सिखाने में माहिर होना चाहते हैं, तो हमें प्रशिक्षण की ज़रूरत है। रोमी सैनिकों के बारे में यहूदी इतिहासकार जोसीफस ने लिखा: “हर सैनिक रोज़ कसरत करते वक्‍त जी-जान लगा देता है, मानो वह सचमुच कोई जंग लड़ रहा हो। यही वजह है कि असल में जब वह युद्ध में होता है, तो उससे होनेवाली थकान को वह बड़ी आसानी से झेल पाता है।” अपनी आध्यात्मिक लड़ाई में हमें बाइबल इस्तेमाल करनी चाहिए। यही नहीं, हमें “अपने आप को परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर[ना चाहिए], जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” (2 तीमुथियुस 2:15) इसलिए, हमें कितना संतोष मिलता है जब हम बाइबल का इस्तेमाल करके सच्ची दिलचस्पी दिखानेवाले इंसान के सवालों का जवाब दे पाते हैं!

हर मौके पर प्रार्थना कीजिए

17, 18. (क) शैतान का विरोध करने में प्रार्थना की क्या अहमियत है? (ख) प्रार्थना की अहमियत समझाने के लिए एक उदाहरण दीजिए।

17 सभी आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र पर ध्यान देने के बाद, पौलुस एक और ज़रूरी सलाह देता है। शैतान का विरोध करते वक्‍त, मसीहियों को “हर प्रकार [की] प्रार्थना, और बिनती करते” रहना चाहिए। कितनी बार? पौलुस ने लिखा: ‘हर समय आत्मा में प्रार्थना करते रहो।’ (इफिसियों 6:18) जब हम परीक्षाओं, मुसीबतों या निराशा का सामना करते हैं, तब प्रार्थना हमें चट्टान की तरह मज़बूत कर सकती है। (मत्ती 26:41) यीशु ने “ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्‍ति के कारण उस की सुनी गई।”—इब्रानियों 5:7.

18 मीलाग्रोस पिछले 15 से ज़्यादा साल से अपने बीमार पति की देखभाल करती आयी है। वह कहती है: “जब मैं निराश हो जाती हूँ, तब मैं यहोवा से प्रार्थना करती हूँ। और कोई नहीं है जो यहोवा से बढ़कर मेरी मदद कर सके। बेशक, कई पल ऐसे आए हैं जब मुझे लगा कि बस अब मैं और नहीं सह सकती। मगर बार-बार यहोवा से प्रार्थना करने के बाद, मुझे लगा जैसे मुझमें नयी जान आ गयी है और मेरे हौसले बुलंद हुए।”

19, 20. शैतान के खिलाफ लड़ाई में जीतने के लिए हमारे लिए क्या-क्या ज़रूरी है?

19 शैतान जानता है कि उसका थोड़ा ही समय बाकी रह गया है, इसलिए हम पर काबू पाने के लिए वह एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है। (प्रकाशितवाक्य 12:12, 17) हमें चाहिए कि इस ताकतवर दुश्‍मन का विरोध करें और “विश्‍वास की अच्छी कुश्‍ती” लड़ें। (1 तीमुथियुस 6:12) इसके लिए असीम सामर्थ की ज़रूरत है। (2 कुरिन्थियों 4:7) इतना ही नहीं, हमें परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की मदद की भी ज़रूरत है और इसलिए इसे पाने के लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए। यीशु ने कहा: “सो जब तुम बुरे होकर अपने लड़केबालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा”!—लूका 11:13.

20 साफ ज़ाहिर है कि यहोवा के दिए सभी अस्त्र-शस्त्र हमें धारण करने चाहिए। इन्हें धारण करने के लिए ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर को भानेवाले गुण पैदा करें जैसे विश्‍वास और धार्मिकता। हमसे माँग की गयी है कि सच्चाई से ऐसे प्रेम करें मानो यह पट्टे की तरह हमें चारों तरफ से घेरे हुए है, कि हम हर मौके पर सुसमाचार सुनाने के लिए तैयार रहें, और हम आगे के लिए अपनी आशा को मन में ताज़ा रखें। यह भी ज़रूरी है कि हम आत्मा की तलवार को बड़ी कुशलता से चलाना सीखें। परमेश्‍वर के सभी अस्त्र-शस्त्रों को धारण करने पर, हम दुष्ट आत्मिक सेनाओं के साथ अपने मल्लयुद्ध में जीत हासिल करेंगे और हाँ, यहोवा के पवित्र नाम को रोशन करेंगे।—रोमियों 8:37-39.

[फुटनोट]

^ यशायाह की भविष्यवाणी में, खुद यहोवा के बारे में कहा गया है कि वह “धार्मिकता को कवच के समान” धारण करता है। (NHT) इसलिए, वह माँग करता है कि कलीसिया के ओवरसियर न्याय करें और धार्मिकता से काम करें।—यशायाह 59:14, 15, 17.

आप कैसे जवाब देंगे?

• आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र धारण करने में सबसे उम्दा मिसाल किसने रखी और हमें उसकी मिसाल को नज़दीकी से क्यों जाँचना चाहिए?

• हम कैसे अपने मन और लाक्षणिक हृदय की रक्षा कर सकते हैं?

• हम आत्मा की तलवार चलाने में कुशल कैसे बन सकते हैं?

• हमें क्यों हर मौके पर प्रार्थना करते रहना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर तसवीर]

मन लगाकर बाइबल अध्ययन करने से हमारे अंदर हर मौके पर सुसमाचार सुनाने का जोश पैदा होगा

[पेज 18 पर तसवीर]

हमारी पक्की आशा हमें परीक्षाओं का सामना करने में मदद देती है

[पेज 19 पर तसवीर]

क्या आप प्रचार में “आत्मा की तलवार” इस्तेमाल करते हैं?