आज कौन परमेश्वर की महिमा कर रहे हैं?
आज कौन परमेश्वर की महिमा कर रहे हैं?
“हे हमारे प्रभु, और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है।”—प्रकाशितवाक्य 4:11.
1, 2. (क) कौन-सी मिसालें बायोमिमेटिक्स को समझने में हमारी मदद करती हैं? (ख) हमारे सामने कौन-सा सवाल उठता है, और उसका जवाब क्या है?
सन् 1940 के दशक की बात है। एक दिन स्विट्ज़रलैंड का एक इंजीनियर, जॉर्ज ड मिस्त्राल अपने कुत्ते को सैर कराने ले गया। घर लौटने पर उसने देखा कि उसके कपड़ों और कुत्ते के बालों पर छोटे-छोटे कँटीले बीज चिपके हुए हैं। अब वह उन बीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक हो गया, इसलिए वह माइक्रोस्कोप से उनकी जाँच करने लगा। वह यह देखकर दंग रह गया कि बीज में छोटे-छोटे हुकनुमा काँटें थे जिनकी वजह से वे कहीं भी लग सकते थे। आगे चलकर, उसने इसका कृत्रिम रूप तैयार किया, जिसे वॆल्क्रो कहा जाता है। ड मिस्त्राल अकेला वह इंसान नहीं था जिसने कुदरत में पायी जानेवाली रचनाओं की नकल की। अमरीका में, राइट भाइयों ने बड़े-बड़े पक्षियों की उड़ान का अध्ययन करके एक विमान तैयार किया। फ्रांसीसी इंजीनियर, एलेकसांड्र गूईस्तेव आइफल ने पैरिस में अपने नाम की मीनार, आइफल टावर बनाने के लिए उन्हीं बुनियादी नियमों का इस्तेमाल किया जिनके आधार पर इंसान की जाँघ की हड्डी, पूरे शरीर का वज़न ढोती है।
2 ये मिसालें बायोमिमेटिक्स को समझने में हमारी मदद करती हैं। यह विज्ञान का ऐसा क्षेत्र है जिसमें कुदरत की रचनाओं की नकल करके नयी-नयी चीज़ें बनाने की कोशिश की जाती है। * मगर यह सवाल उठना लाज़िमी है कि ऐसे कितने आविष्कारक हैं जो उस शख्स की तारीफ करते हैं जिसने छोटे-छोटे बीजों, बड़े-बड़े पक्षियों, जाँघ की हड्डी और दूसरी बेमिसाल रचना की जिनकी नकल करके वे नयी-नयी चीज़ें ईजाद करते हैं? अफसोस की बात है कि आज की इस दुनिया में परमेश्वर को वह महिमा नहीं मिलती जिसका वह हकदार है।
3, 4. जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “महिमा” किया गया है, उसका मतलब क्या है, और यहोवा के मामले में यह क्या दर्शाता है?
3 कुछ लोग शायद सोचें कि ‘हमें परमेश्वर की महिमा करने की क्या ज़रूरत है? वो तो वैसे ही महिमा से भरपूर है!’ यह सच है कि यहोवा पूरे विश्व की सबसे महिमावान हस्ती है, मगर इसका यह मतलब नहीं कि सभी इंसान उसे महिमा से भरपूर समझते हैं। बाइबल में “महिमा” के लिए इस्तेमाल किए गए इब्रानी शब्द का असल मतलब है, “भारीपन।” यह शब्द दिखाता है कि किन कारणों से एक व्यक्ति दूसरों की नज़र में बड़ा बनता है। और जब वह शब्द परमेश्वर के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो दिखाता है कि यहोवा किस वजह से इंसान की नज़र में महान बनता है।
4 आज बहुत कम लोग इस बात पर ध्यान देते हैं कि क्यों परमेश्वर सबसे महान है। (भजन 10:4; 14:1) दरअसल, दुनिया के ज़्यादातर बड़े-बड़े लोग परमेश्वर को नहीं मानते, और जो मानते हैं, उन्होंने लोगों पर इतना बुरा असर किया है कि इससे विश्व के महिमावान रचयिता का अपमान होता है। उन्होंने किन तरीकों से ऐसा किया है?
“वे निरुत्तर हैं”
5. कुछ वैज्ञानिक सृष्टि की अद्भुत चीज़ों के बारे में क्या कहते हैं?
5 बहुत-से वैज्ञानिक इस बात पर अड़े रहते हैं कि परमेश्वर है ही नहीं। तो फिर वे इस सवाल का क्या जवाब देते हैं कि सृष्टि की सारी अद्भुत चीज़ें, यहाँ तक कि इंसान कैसे वजूद में आए? उनका कहना है कि ये सब इत्तफाक से या अपने आप विकास होकर आ गए। मसलन, विकासवादी स्टीफन जे. गूल्ड ने लिखा: “आज हम दुनिया में इसलिए हैं क्योंकि बहुत पहले, कुछ अजीब तरह की मछलियों की पीठ पर अनोखे किस्म के पंख हुआ करते थे जो पैरों में बदल सकते थे और ये मछलियाँ ज़मीन पर रहनेवाले प्राणियों का रूप ले सकती थीं। . . . हम दुनिया में कैसे आए, इस सवाल का शायद हम कोई ‘बढ़िया’ जवाब जानने के लिए तरसें, मगर ऐसा कोई जवाब नहीं है।” उसी तरह, रिचर्ड ई. लीकी और रॉजर लूअन ने लिखा: “शायद मानवजाति का वजूद किसी बड़ी गड़बड़ी का नतीजा है।” यहाँ तक कि कुछ वैज्ञानिक जो प्रकृति की सुंदरता और अनोखी रचनाओं के गुण गाते हैं, वे भी इनका श्रेय परमेश्वर को नहीं देते।
6. किस वजह से ज़्यादातर लोग परमेश्वर को सिरजनहार होने का श्रेय नहीं देते जिसका वह हकदार है?
6 जब ऐसे-ऐसे जानकार लोग दावे के साथ कहते हैं कि विकासवाद का सिद्धांत सच है, तो वे एक तरह से कहते हैं कि सिर्फ अनपढ़-गँवार लोग ही इस सिद्धांत को ठुकराते हैं। ऐसे विचार का दूसरों पर क्या असर पड़ता है? कुछ साल पहले, विकासवाद के बारे में अच्छी जानकारी रखनेवाले एक आदमी ने ऐसे लोगों का इंटरव्यू लिया जो इस सिद्धांत पर यकीन करते हैं। वह कहता है: “मैंने पाया कि विकासवाद पर यकीन करनेवाले ज़्यादातर लोग सिर्फ इसलिए यकीन करते हैं क्योंकि उन्हें बताया गया है कि हर अक्लमंद इंसान इसे सच मानता है।” जी हाँ, जब बड़े-बड़े ज्ञानी अपने नास्तिक विचार दूसरों पर ज़ाहिर करते हैं तो उन पर बहुत असर पड़ता है, वे भी परमेश्वर को सिरजनहार होने का श्रेय नहीं देते जिसका वह हकदार है।—नीतिवचन 14:15, 18.
7. रोमियों 1:20 के मुताबिक सृष्टि से क्या बात साफ दिखायी पड़ती है, और क्यों?
7 क्या वैज्ञानिकों के पास ऐसे सबूत हैं जिनकी बिना पर वे इस नतीजे पर पहुँचे कि सबकुछ अपने आप विकसित हुआ है? हरगिज़ नहीं! सच तो यह है कि हमारे सामने सिरजनहार के होने के ढेरों सबूत मौजूद हैं। सिरजनहार के बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की [इंसानों की] सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहां तक कि वे [अविश्वासी] निरुत्तर हैं।” (रोमियों 1:20) सिरजनहार ने मानो अपनी हस्तकला पर अपनी छाप छोड़ी है। इसलिए पौलुस यह कह रहा था कि जब से इंसान दुनिया में आया है, तब से वह सृष्टि के ज़रिए, परमेश्वर के वजूद का सबूत ‘देख’ सका है। यह सबूत कहाँ है?
8. (क) आकाश कैसे परमेश्वर की शक्ति और बुद्धि की गवाही देता है? (ख) क्या दिखाता है कि विश्व की शुरूआत ज़रूर किसी ने की थी?
8 हम यह सबूत तारों जड़े आसमान में देख सकते हैं। भजन 19:1 कहता है: “आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है।” “आकाश” यानी सूरज, चाँद, सितारे सभी परमेश्वर की शक्ति और बुद्धि की गवाही देते हैं। तारों की अनगिनत संख्या के बारे में सोचने से ही हम विस्मय और श्रद्धा से भर जाते हैं। ये सभी आकाशीय पिंड, अंतरिक्ष में जहाँ चाहे वहाँ नहीं घूमते बल्कि परमेश्वर के ठहराए नियमों के मुताबिक घूमते हैं। * (यशायाह ) तो क्या इस बात में तुक बनता है कि यह सारी व्यवस्था अपने आप वजूद में आ गयी? यह गौरतलब है कि कई वैज्ञानिक मानते हैं कि विश्व की शुरूआत अचानक हुई थी। उनकी यह बात क्या ज़ाहिर करती है, इसे समझाते हुए एक प्रोफेसर ने लिखा: “जो परमेश्वर के वजूद पर यकीन नहीं करते या शक करते हैं उनके लिए यह मानना ज़्यादा गवारा होगा कि यह विश्व हमेशा से वजूद में रहा है। अगर माना जाए कि विश्व की शुरूआत हुई थी, तो इससे एक सवाल उठता है कि इसकी शुरूआत किसने की; भला किसी के बनाए बिना इसकी शुरूआत कैसे हो सकती है?” 40:26
9. पशु-पक्षियों में यहोवा की बुद्धि कैसे नज़र आती है?
9 हम परमेश्वर के वजूद के सबूत पृथ्वी पर भी देखते हैं। भजनहार ने ताज्जुब करते हुए कहा: “हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है।” (भजन 104:24) यहोवा की “सम्पत्ति” में पशु-पक्षी भी शामिल हैं जिनसे उसकी बुद्धि का सबूत मिलता है। जैसे हमने लेख की शुरूआत में देखा, जीवित प्राणियों की रचना इतनी लाजवाब है कि अकसर वैज्ञानिक उनकी नकल करके नयी-नयी चीज़ें बनाने की कोशिश करते हैं। कुछ और मिसालों पर गौर कीजिए। आजकल खोजकर्ता ऐन्टलर नाम के हिरन के सींग का अध्ययन कर रहे हैं ताकि वे और भी मज़बूत हैलमट बना सकें; वे एक तरह की मक्खी का भी अध्ययन कर रहे हैं जो सुनने में बड़ी तेज़ है ताकि वे सुनने में मदद देनेवाले बेहतरीन यंत्र तैयार कर सकें; और वे उल्लू के पंखों की जाँच कर रहे हैं ताकि ऐसे बेहतरीन किस्म के विमान तैयार कर सकें जिनकी उड़ान का रेडार से भी पता ना लगाया जा सके। लेकिन इंसान चाहे लाख कोशिश कर ले, वह कुदरत की चीज़ों की हू-ब-हू नकल कभी नहीं कर पाएगा जिनमें कोई खोट नहीं है। बायोमिमिक्री—कुदरत की प्रेरणा से ईजाद (अँग्रेज़ी) नाम की किताब कहती है: “जीव-जंतुओं ने ऐसा हर काम किया है जो हम इंसान करना चाहते हैं, और वह भी कोयले और तेल का हद-से-ज़्यादा इस्तेमाल किए बिना, इस ग्रह को प्रदूषित किए बिना या अपने ही भविष्य को खतरे में डाले बिना।” वाकई, है ना कमाल की बुद्धि!
10. एक महान रचनाकार के वजूद को इनकार करना क्यों बेतुकी बात होगी? उदाहरण देकर समझाइए।
10 चाहे आप आसमान को निहारें या धरती पर पायी जानेवाली सृष्टि पर गौर करें, आप सिरजनहार के वजूद के सबूत साफ-साफ देख पाएँगे। (यिर्मयाह 10:12) हमें स्वर्ग के प्राणियों के साथ पूरे दिल से सहमत होना चाहिए जो यह कहकर यहोवा की जयजयकार करते हैं: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं।” (प्रकाशितवाक्य 4:11) फिर भी कई वैज्ञानिक, ‘अपने मन की आंखों’ से सिरजनहार के होने के सबूत नहीं देख पाते, इसके बावजूद कि वे सृष्टि को देखने पर दंग रह जाते हैं। (इफिसियों 1:18) उनके इस रवैये को समझाने के लिए हम यह मिसाल दे सकते हैं: कुदरत में पायी जानेवाली खूबसूरती और अनोखी बनावट की तारीफ करने के साथ-साथ एक महान सिरजनहार के वजूद को इनकार करना, उतना ही बेतुका है जितना कि एक लाजवाब पेंटिंग की तारीफ करना मगर उस कलाकार के वजूद को इनकार करना जिसने कोरे कैनवस पर रंगों की छटा बिखेरी है। इसलिए ताज्जुब की बात नहीं कि जो परमेश्वर को मानने से इनकार करते हैं, उन्हें “निरुत्तर” कहा गया है!
“अन्धे मार्ग दिखानेवाले” कइयों को गुमराह करते हैं
11, 12. भाग्य की शिक्षा किस कल्पना पर आधारित है, और क्या दिखाता है कि इससे परमेश्वर की महिमा नहीं होती?
11 कई धार्मिक लोग सच्चे दिल से मानते हैं कि वे जिस तरह से उपासना करते हैं, उससे परमेश्वर की महिमा होती है। (रोमियों 10:2, 3) मगर सच्चाई यह है कि मोटे तौर पर धर्म भी समाज का ऐसा हिस्सा है जिसने करोड़ों लोगों को परमेश्वर की महिमा करने से रोका है। वह कैसे? आइए ऐसे दो तरीकों पर गौर करें।
12 पहला, दुनिया के धर्म झूठी शिक्षाएँ फैलाकर लोगों को परमेश्वर की महिमा करने से रोकते हैं। मसलन, भाग्य की शिक्षा को ही लीजिए। यह इस कल्पना पर आधारित है कि जब परमेश्वर के पास भविष्य जानने की काबिलीयत है, तो उसे ज़रूर हर बात का अंजाम पहले से मालूम होगा। इस तरह भाग्य की शिक्षा परमेश्वर के बारे में यह राय पेश करती है कि उसने बहुत पहले ही हर इंसान का नसीब लिख दिया है, किसी के लिए अच्छा तो किसी के लिए बुरा। इस धारणा के मुताबिक, दुनिया के सभी दुःखों और दुष्ट कामों के लिए परमेश्वर ही कसूरवार है। भाग्य की शिक्षा से परमेश्वर की महिमा हरगिज़ नहीं होती, क्योंकि इससे परमेश्वर पर वह दोष मढ़ा जाता है जो असल में उसके सबसे बड़े दुश्मन शैतान का है, जिसे बाइबल में “संसार का सरदार” कहा गया है।—यूहन्ना 14:30; 1 यूहन्ना 5:19.
13. यह सोचना बेवकूफी क्यों होगी कि परमेश्वर भविष्य जानने की अपनी काबिलीयत का बेरोक-टोक इस्तेमाल करता है? मिसाल दीजिए।
13 भाग्य की शिक्षा बाइबल के बिलकुल खिलाफ है और इससे परमेश्वर की निंदा होती है। परमेश्वर जो कर सकता है और वह असल में जो करता है, उसमें फर्क करने में यह शिक्षा लोगों को उलझन में डाल देती है। यह बात बाइबल में भी साफ बतायी गयी है कि परमेश्वर के पास भविष्य में होनेवाली घटनाओं को पहले से जानने की काबिलीयत है। (यशायाह 46:9, 10) मगर यह सोचना बेमाने होगा कि वह अपनी इस काबिलीयत का बेरोक-टोक इस्तेमाल करता या दुनिया में होनेवाले हर भले-बुरे काम का वही ज़िम्मेदार है। इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर गौर करें। अगर आप बहुत ताकतवर हैं तो क्या आपका मन करेगा कि आप दिखनेवाली हर भारी-भरकम चीज़ को उठाते रहें? बेशक नहीं! उसी तरह परमेश्वर के पास भविष्य जानने की काबिलीयत है, तो इसका यह मतलब नहीं कि वह हरेक बात को पहले से जान लेता या हर काम का अंजाम पहले से तय करता है। वह भविष्य जानने की अपनी काबिलीयत का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर और सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर करता है। * तो यह बिलकुल साफ है कि तकदीर जैसी झूठी शिक्षाओं से परमेश्वर की महिमा नहीं होती।
14. धर्मों ने और किस तरह परमेश्वर का अपमान किया है?
14 एक दूसरा तरीका जिससे दुनिया के धर्म परमेश्वर का अपमान करते हैं, वह है उनके सदस्यों का बुरा चालचलन। मसीहियों से उम्मीद की जाती है कि वे यीशु की शिक्षाओं पर चलें। यीशु ने अपने चेलों को कई शिक्षाएँ दी थीं, जिनमें से कुछ ये हैं कि वे ‘एक दूसरे से प्रेम रखें’ और ‘संसार के न हों।’ (यूहन्ना 15:12; 17:14-16) ईसाईजगत के पादरियों के बारे में क्या? क्या वे सचमुच इन शिक्षाओं पर चलते हैं?
15. (क) युद्ध के मामले में पादरियों ने कैसा नाम कमाया है? (ख) उनके चालचलन का लाखों लोगों पर कैसा असर हुआ है?
15 ज़रा गौर कीजिए कि युद्ध के मामले में पादरियों ने कैसा नाम कमाया है। उन्होंने कई देशों के बीच युद्ध की चिंगारी भड़कायी, उसे जायज़ करार दिया, और कुछ युद्धों में तो वे ही सबसे आगे रहे। उन्होंने सेना को आशीष दी और मार-काट को सही ठहराया। उनकी ये करतूतें देखकर हमारे मन में यह सवाल उठना वाजिब है, ‘क्या पादरियों को कभी यह एहसास तक नहीं होता कि उन्हीं के धर्म को माननेवाले दुश्मन राष्ट्रों के पादरी भी परमेश्वर के नाम से ही अपनी सेना को आशीष देते हैं?’ (बक्स “आखिर परमेश्वर किसकी तरफ है?” देखिए।) जब पादरी यह दावा करते हैं कि खून की नदियाँ बहानेवाले युद्धों में परमेश्वर उनका साथ देता है, तो वे उसकी महिमा नहीं कर रहे होते। इतना ही नहीं, जब वे बाइबल के स्तरों को दकियानूसी कहते और हर तरह की लैंगिक अनैतिकता को जायज़ ठहराते हैं, तब भी वे परमेश्वर की महिमा नहीं कर रहे होते। वाकई, पादरियों से हमें उन धर्म-गुरुओं का खयाल आता है जिन्हें यीशु ने ‘कुकर्म करनेवाले’ और “अन्धे मार्ग दिखानेवाले” कहा था! (मत्ती 7:15-23; 15:14) पादरियों का बुरा चालचलन देखकर, लाखों लोगों के दिल में परमेश्वर के लिए प्रेम ठंडा पड़ गया है।—मत्ती 24:12.
आज कौन सही मायनों में परमेश्वर की महिमा कर रहे हैं?
16. आज कौन सही मायनों में परमेश्वर की महिमा कर रहे हैं, इसका जवाब पाने के लिए हमें बाइबल में क्यों झाँकना होगा?
16 अगर दुनिया के बड़े-बड़े, नामी-गिरामी लोग परमेश्वर की महिमा करने में नाकाम रहे हैं, तो फिर कौन सही मायनों में उसकी महिमा कर रहे हैं? इसका जवाब पाने के लिए हमें बाइबल में झाँकना होगा। परमेश्वर के पास यह बताने का हक है कि उसकी महिमा कैसे की जानी चाहिए, और उसने बाइबल में अपने स्तर बताए हैं। (यशायाह 42:8) आइए हम परमेश्वर की महिमा करने के तीन तरीकों पर गौर करें और फिर देखें कि हरेक मामले में आज कौन खरा उतरा है।
17. खुद यहोवा ने अपनी यह इच्छा कैसे ज़ाहिर की कि उसके नाम की महिमा करना बहुत ज़रूरी है, और आज कौन सारी धरती पर उसके नाम की स्तुति कर रहे हैं?
17 परमेश्वर की महिमा करने का एक तरीका है, उसके नाम की स्तुति करना। परमेश्वर इसे कितना ज़रूरी समझता है, यह हम यीशु से कही उसकी एक बात से जान सकते हैं। जब यीशु ने अपनी मौत से कुछ समय पहले प्रार्थना में कहा: “हे पिता, अपने नाम की महिमा कर,” तब यह आवाज़ सुनायी पड़ी: “मैं ने उस की महिमा की है, और फिर भी करूंगा।” (यूहन्ना 12:28) यह आवाज़ बेशक यहोवा की थी। यहोवा का जवाब साफ दिखाता है कि उसके नाम की महिमा करना उसके लिए बहुत मायने रखता है। तो सवाल यह है कि आज कौन यहोवा का नाम सारी धरती पर फैलाकर उसकी महिमा कर रहे हैं? यहोवा के साक्षी। वे 235 देशों में यह काम कर रहे हैं!—भजन 86:11, 12.
18. “सच्चाई” से परमेश्वर की उपासना करनेवालों को हम कैसे पहचान सकते हैं, और कौन-सा समूह सौ से भी ज़्यादा सालों से लोगों को बाइबल की सच्चाइयाँ सिखा रहा है?
18 परमेश्वर की महिमा करने का दूसरा तरीका है, लोगों को उसके बारे में सच्चाई सिखाना। यीशु ने कहा था कि सच्चे उपासक “सच्चाई से [परमेश्वर का] भजन” करेंगे। (यूहन्ना 4:24) परमेश्वर की उपासना “सच्चाई” से करनेवालों की पहचान क्या है? उन्हें चाहिए कि वे ऐसी शिक्षाओं को ठुकरा दें जो बाइबल से नहीं हैं और जो परमेश्वर और उसकी मरज़ी के बारे में गलत तसवीर पेश करती हैं। इसके बजाय, उन्हें परमेश्वर के वचन की शुद्ध सच्चाइयाँ सिखानी चाहिए, जिनमें से कुछ हैं: यहोवा परमप्रधान परमेश्वर है और इस ऊँचे पद के लिए सिर्फ वही महिमा पाने का हकदार है (भजन 83:18); यीशु, परमेश्वर का बेटा और उसके मसीहाई राज्य का राजा है (1 कुरिन्थियों 15:27, 28); परमेश्वर का राज्य, उसके नाम को पवित्र ठहराएगा और धरती और इंसानों के लिए उसका मकसद पूरा करेगा (मत्ती 6:9, 10); इस राज्य के बारे में खुशखबरी सारी धरती पर सुनायी जानी चाहिए। (मत्ती 24:14) सिर्फ एक समूह ऐसा है जो सौ से भी ज़्यादा सालों से लोगों को ये अनमोल सच्चाइयाँ सिखा रहा है। वह है, यहोवा के साक्षियों का समूह!
19, 20. (क) किस तरह एक मसीही के बढ़िया चालचलन से परमेश्वर की महिमा हो सकती है? (ख) कौन-से सवाल हमें यह तय करने में मदद दे सकते हैं कि आज कौन अपने बढ़िया चालचलन से परमेश्वर की महिमा कर रहे हैं?
19 परमेश्वर की महिमा करने का तीसरा तरीका है, उसके स्तरों के मुताबिक जीना। प्रेरित पतरस ने लिखा: “अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्वर की महिमा करें।” (1 पतरस 2:12) एक मसीही का चालचलन, एक तरह से उसके विश्वास का आईना होता है। जब बाहरवाले इस बात पर ध्यान देते हैं कि एक मसीही के विश्वास की वजह से उसका चालचलन बढ़िया है, तो इससे परमेश्वर की महिमा होती है।
20 आज कौन अपने बढ़िया चालचलन से परमेश्वर की महिमा कर रहे हैं? जवाब के लिए ज़रा सोचिए कि सरकारों ने किस धार्मिक समूह के सदस्यों की तारीफ में कहा है कि वे अमन-पसंद हैं, देश के कायदे-कानूनों को मानते हैं और कर देते हैं? (रोमियों 13:1, 3, 6, 7) वे कौन हैं जो अपने संगी विश्वासियों के साथ एकता में रहने के लिए सारी दुनिया में मशहूर हैं—जिनकी एकता ने जाति, देश और जन-जातीय भेद-भाव की हर दीवार तोड़ दी है? (भजन 133:1; प्रेरितों 10:34, 35) किस समूह के लोग सारी दुनिया में बाइबल सिखाने के काम के लिए जाने जाते हैं, जिससे देश के कानून, परिवार के उसूलों और बाइबल के नैतिक स्तरों को मानने का बढ़ावा मिलता है? इस मामले में और दूसरे कई मामलों में सिर्फ एक समूह ऐसा है जिसके सदस्यों का बढ़िया चालचलन गवाही देता है कि वे परमेश्वर की महिमा कर रहे हैं। वे हैं, यहोवा के साक्षी!
क्या आप परमेश्वर की महिमा कर रहे हैं?
21. हममें से हरेक को क्यों अपने बारे में जाँचना चाहिए कि हम यहोवा की महिमा कर रहे हैं या नहीं?
21 हममें से हरेक को खुद से यह पूछना चाहिए, ‘क्या मैं यहोवा की महिमा कर रहा हूँ?’ भजन 148 दिखाता है कि यहोवा की बनायी ज़्यादातर सृष्टि उसकी महिमा कर रही है। स्वर्गदूत, आकाश, धरती और उस पर रहनेवाले पशु-पक्षी, सभी यहोवा की स्तुति करते हैं। (आयतें 1-10) लेकिन कितने अफसोस की बात है कि आज ज़्यादातर इंसान यहोवा की महिमा नहीं कर रहे! अगर आप अपनी ज़िंदगी इस तरह जीएँगे जिससे परमेश्वर की महिमा हो, तो आप भी उसकी स्तुति करनेवाली बाकी सृष्टि के साथ एक हो जाएँगे। (आयतें 11-13) जीने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है!
22. यहोवा की महिमा करने से क्या-क्या आशीषें मिलती हैं, और आपको क्या करने की ठान लेनी चाहिए?
22 यहोवा की महिमा करने की वजह से आपको कई आशीषें मिलती हैं। मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास ज़ाहिर करने से आपका परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप होता है और आप उसके साथ शांति कायम कर पाते हैं जिससे आपको बढ़िया प्रतिफल मिलते हैं। (रोमियों 5:10) जब आप परमेश्वर की महिमा करने की वजहों पर ध्यान देते हैं, तो आप ज़िंदगी के बारे में पहले से अच्छा नज़रिया रख पाते और एहसानमंद होते हैं। (यिर्मयाह 31:12) इसलिए आप दूसरों को भी एक मकसद-भरी और खुशहाल ज़िंदगी जीने में मदद दे पाते हैं, और इससे आपकी खुशी दुगुनी हो जाती है। (प्रेरितों 20:35) हमारी दुआ है कि आप भी उन लोगों में से एक हों जिन्होंने ठान लिया है कि वे परमेश्वर की महिमा करते रहेंगे—आज और सदा के लिए!
[फुटनोट]
^ शब्द “बायोमिमेटिक्स”, यूनानी शब्द बायोस और मिमेसिस से निकला है। बायोस का मतलब है, “जीवन” और मिमेसिस का मतलब है, “नकल उतारना।”
^ आकाश किस तरह परमेश्वर की बुद्धि और शक्ति का सबूत देता है, इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए, यहोवा के करीब आओ किताब के अध्याय 5 और 17 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
^ इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स का भाग 1, पेज 853 देखिए, जिसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
क्या आपको याद है?
• हम क्यों कह सकते हैं कि मोटे तौर पर, वैज्ञानिकों ने परमेश्वर की महिमा करने में लोगों की मदद नहीं की?
• किन दो तरीकों से धर्म ने लोगों को परमेश्वर की महिमा करने से रोका है?
• हम किन तरीकों से परमेश्वर की महिमा कर सकते हैं?
• आपको क्यों यह जाँचने की ज़रूरत है कि आप यहोवा की महिमा कर रहे हैं या नहीं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 12 पर बक्स]
“आखिर परमेश्वर किसकी तरफ है?”
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन वायु सेना में रह चुका एक आदमी, बाद में यहोवा का एक साक्षी बना। वह अपने बीते दिनों को याद करके कहता है:
“युद्ध के उन सालों के दौरान एक बात मुझे हमेशा परेशान करती थी . . . जब भी हमारा विमान दुश्मनों पर बम फेंकने के लिए उड़ान भरने को तैयार रहता, तो कैथोलिक, लूथरन, एपिसकोपल और तकरीबन हर चर्च के पादरी वहाँ पहुँच जाते और विमान और सेना को आशीष देते थे। मेरी समझ में नहीं आता था कि ‘आखिर परमेश्वर किसकी तरफ है?’
“जर्मन सैनिक एक बेल्ट पहनते थे जिसके बक्कल पर लिखा होता था, गॉट मिट उन्स (परमेश्वर हमारे साथ है)। मगर मैं सोचता था कि ‘परमेश्वर, दुश्मन की सेना के साथ क्यों नहीं होगा, आखिर वे भी तो हमारे ही धर्म के हैं और उसी परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं जिसके हम बंदे हैं?’”
[पेज 10 पर तसवीर]
यहोवा के साक्षी सारी धरती पर, सही मायनों में परमेश्वर की महिमा कर रहे हैं