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“एक-दूसरे के लिए कोमल स्नेह रखो”

“एक-दूसरे के लिए कोमल स्नेह रखो”

“एक-दूसरे के लिए कोमल स्नेह रखो”

“भाईचारे के प्रेम में एक-दूसरे के लिए कोमल स्नेह रखो।”रोमियों 12:10, NW.

1, 2. एक मिशनरी भाई और प्रेरित पौलुस का अपने भाइयों के साथ कैसा रिश्‍ता था?

 डॉन ने पूरब में 43 साल मिशनरी सेवा की थी। वह अपने बाइबल विद्यार्थियों के साथ बड़े प्यार से पेश आने के लिए जाना जाता था। जब वह बहुत बीमार हो गया और आखिरी साँसें गिन रहा था, तो कुछ भाई-बहन, जिनके साथ उसने बाइबल अध्ययन किया था, हज़ारों किलोमीटर दूर से सफर करके उसके पास आए। उन्होंने उसके पलंग के पास आकर कोरियाई भाषा में उससे कहा: “कमसाम्नीदा, कमसाम्नीदा!” जिसका मतलब है, “आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!” डॉन का कोमल स्नेह उनके दिल को छू गया था।

2 दूसरों के लिए कोमल स्नेह दिखाने में डॉन की तरह और भी कई लोग अच्छी मिसाल रहे हैं। ऐसा ही एक इंसान था, पहली सदी का प्रेरित पौलुस। उसने जिनकी सेवा की, उनके लिए उसने गहरा स्नेह ज़ाहिर किया। उसने खुद को उनकी खातिर दे दिया। हालाँकि वह मज़बूत इरादोंवाला था, फिर भी वह दूसरों के साथ इस तरह कोमलता से पेश आता और उनकी परवाह करता था, “जिस तरह माता अपने बालकों का पालन-पोषण करती है।” उसने थिस्सलुनीके की कलीसिया को लिखा: “हम ने भी तुम्हारे बीच में रहकर कोमलता दिखाई है। और वैसे ही हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्‍वर का सुसमाचार, पर अपना अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिये कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे।” (1 थिस्सलुनीकियों 2:7, 8) बाद में जब पौलुस ने इफिसुस के भाइयों से कहा कि वे उसे दोबारा नहीं देख पाएँगे, तो “वे सब बहुत रोए और पौलुस के गले में लिपट कर उसे चूमने लगे।” (प्रेरितों 20:25, 37) इससे साफ है कि पौलुस और उन भाइयों के बीच दोस्ती की वजह सिर्फ यह नहीं थी कि उनका विश्‍वास एक जैसा था, बल्कि यह कि उनके दिल में एक-दूसरे के लिए कोमल स्नेह था।

कोमल स्नेह और प्रेम

3. स्नेह और प्रेम के लिए बाइबल में दिए शब्द किस तरह एक-दूसरे से जुड़े हैं?

3 बाइबल में कोमल स्नेह, हमदर्दी और करुणा का गहरा ताल्लुक प्रेम से है जो कि सबसे उम्दा मसीही गुण है। (1 थिस्सलुनीकियों 2:8; 2 पतरस 1:7) जिस तरह एक हीरे के अलग-अलग पहलुओं की वजह से वह खूबसूरत होता है, उसी तरह मसीहियों में ये सारे गुण होने की वजह से अच्छे नतीजे निकलते हैं। ये गुण मसीहियों को न सिर्फ एक-दूसरे के बल्कि स्वर्ग में रहनेवाले उनके पिता के भी करीब लाते हैं। इसलिए प्रेरित पौलुस ने अपने संगी विश्‍वासियों से यह गुज़ारिश की: “तुम्हारे प्रेम में कपट न हो। . . . भाईचारे के प्रेम में एक-दूसरे के लिए कोमल स्नेह रखो।”—रोमियों 12:9, 10, NW.

4. “कोमल स्नेह” का मतलब क्या है?

4 पौलुस ने “कोमल स्नेह” के लिए जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया, उसके दो भाग हैं। एक का मतलब है, दोस्ती और दूसरे का मतलब है, ऐसा स्नेह जो इंसान में पैदाइशी होता है। जैसे एक बाइबल विद्वान ने समझाया, यह शब्द दिखाता है कि मसीहियों “की पहचान ऐसे गहरे प्यार से होनी चाहिए जो एक परिवार के सदस्यों के बीच होता है। जिस तरह वे प्यार और एकता की मज़बूत डोर से बंधे होते हैं और एक-दूसरे का साथ देते हैं, मसीहियों को भी वैसा ही होना चाहिए।” क्या आप अपने मसीही भाई-बहनों के बारे में ऐसा महसूस करते हैं? मसीही कलीसिया में एक परिवार जैसा अपनापन और प्यार भरा माहौल होना चाहिए। (गलतियों 6:10) इसलिए बुल्के बाइबिल में रोमियों 12:10 यूँ कहता है: “आप सच्चे भाइयों की तरह एक दूसरे को सारे हृदय से प्यार करें।” जी हाँ, मसीही एक-दूसरे से सिर्फ इसलिए प्यार नहीं करते क्योंकि ऐसा करना सही है या यह उनका फर्ज़ है। हमें ‘भाईचारे की निष्कपट प्रीति के निमित्त मन लगाकर एक दूसरे से अधिक प्रेम रखना’ चाहिए।—1 पतरस 1:22.

‘आपस में प्रेम रखना, परमेश्‍वर से सीखा’

5, 6. (क) यहोवा ने अपने लोगों को मसीही स्नेह के बारे में सिखाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों का कैसे इस्तेमाल किया है? (ख) समय के गुज़रते भाइयों के बीच प्यार का बंधन कैसे मज़बूत होने लगता है?

5 हालाँकि आज दुनिया में “बहुतों का प्रेम” ठंडा हो रहा है, मगर यहोवा अपने लोगों को “आपस में प्रेम रखना” सिखा रहा है। (मत्ती 24:12; 1 थिस्सलुनीकियों 4:9) यहोवा के साक्षियों के अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों के दौरान ऐसी तालीम पाने का बढ़िया मौका मिलता है। जिन शहरों में ये अधिवेशन होते हैं, वहाँ के साक्षी दूर-दूर के देशों से आए भाई-बहनों का स्वागत करते हैं, और कई तो उन्हें अपने घर में ठहराते भी हैं। हाल के एक अधिवेशन में, कुछ भाई-बहन ऐसे देशों से आए थे जहाँ के लोग आम तौर पर अपनी भावनाएँ खुलकर ज़ाहिर नहीं करते। इनके ठहरने के इंतज़ाम में मदद देनेवाले एक मसीही ने कहा: “जब ये भाई-बहन यहाँ आए तो शुरू में थोड़े घबराए हुए से लग रहे थे और संकोच महसूस कर रहे थे। मगर सिर्फ छः दिन बाद जब अलविदा कहने का वक्‍त आया, तो वे और उनके मेज़बान एक-दूसरे के गले लगकर रोने लगे। वे मसीही प्यार के ऐसे माहौल से घिरे हुए थे जिसे वे ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे।” हमारे भाई चाहे किसी भी संस्कृति के क्यों न हों, उनकी खातिरदारी करने से उनमें और हममें छिपे बढ़िया गुण खुलकर ज़ाहिर होंगे।—रोमियों 12:13.

6 अधिवेशनों के वक्‍त होनेवाले ऐसे अनुभव वाकई बड़े रोमांचक होते हैं! लेकिन जब मसीही साथ मिलकर यहोवा की सेवा करते हैं, तो समय गुज़रते उनका आपसी रिश्‍ता और भी गहरा होता जाता है। जब हम अपने भाइयों को करीब से जानने लगते हैं, तो हम और अच्छी तरह देख पाते हैं कि उनमें कितने मनभावने गुण हैं, जैसे सच्चाई, भरोसेमंदी, वफादारी, कृपा, दरियादिली, परवाह, दया और निःस्वार्थ प्रेम। (भजन 15:3-5; नीतिवचन 19:22) पूर्वी अफ्रीका में मिशनरी रह चुके मार्क ने कहा: “भाइयों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम करने से हमारे बीच ऐसा मज़बूत बंधन कायम होता है जिसे कोई तोड़ नहीं सकता।”

7. कलीसिया में मसीही स्नेह का आनंद उठाने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?

7 कलीसिया में ऐसा बंधन कायम करने और उसे बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि उसके सभी सदस्य एक-दूसरे के करीब आएँ। मसीही सभाओं में लगातार हाज़िर होने से भाई-बहनों के साथ हमारा लगाव और भी गहरा होगा। जब हम सभाओं में हाज़िर रहते, उनमें हिस्सा लेते और सभाओं से पहले और उनके बाद, भाई-बहनों के साथ संगति करते हैं, तो हम “प्रेम, और भले कामों” के लिए एक-दूसरे का उत्साह बढ़ाते हैं। (इब्रानियों 10:24, 25) अमरीका का रहनेवाला एक प्राचीन कहता है: “बचपन के वे दिन याद करके मुझे बड़ी खुशी होती है, जब हमारा परिवार उन परिवारों में एक था जो सभाओं के बाद सबसे आखिर में किंगडम हॉल से जाते थे। हम देर तक एक-दूसरे की अच्छी संगति और बातचीत का आनंद उठाते थे।”

क्या आपको “अपना हृदय खोल” देने की ज़रूरत है?

8. (क) जब पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा कि वे अपना “हृदय खोल” दें, तो उसके कहने का क्या मतलब था? (ख) कलीसिया में प्यार का माहौल बढ़ाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

8 भाइयों पर पूरी तरह स्नेह ज़ाहिर करने के लिए हमें शायद “अपना हृदय खोल” देने की ज़रूरत पड़े। कुरिन्थुस की कलीसिया को प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हमारा हृदय तुम्हारी ओर खुला हुआ है। तुम्हारे लिये हमारे मन में कुछ सकेती नहीं।” फिर पौलुस ने उनसे कहा कि वे भी बदले में अपना “हृदय खोल” दें। (2 कुरिन्थियों 6:11-13) क्या आप भी भाई-बहनों पर स्नेह ज़ाहिर करने के लिए अपना “हृदय खोल” सकते हैं? आप इस इंतज़ार में मत रहिए कि दूसरे आपके पास आएँगे। पौलुस ने रोमियों को लिखी पत्री में, कोमल स्नेह दिखाने पर ज़ोर देने के साथ-साथ यह सलाह भी दी: “परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।” (रोमियों 12:10) दूसरों का आदर करने के लिए, सभाओं में आप खुद पहल करके उन्हें हैलो कह सकते हैं। आप उन्हें अपने साथ प्रचार में आने या आपके साथ मिलकर किसी सभा की तैयारी करने के लिए भी बुला सकते हैं। ऐसा करने से उनके लिए आपका स्नेह और भी बढ़ेगा।

9. कुछ लोगों ने अपने मसीही भाई-बहनों के करीबी दोस्त बनने के लिए क्या कदम उठाए हैं? (अपने इलाके की मिसालें शामिल कीजिए।)

9 अगर कलीसिया के परिवार और बाकी सदस्य एक-दूसरे से मिलने के लिए उनके घर जाएँ, साथ मिलकर सादा भोजन करें या मन-बहलाव के लिए अच्छे किस्म के काम करें तो यह एक और तरीका है जिससे वे अपना “हृदय खोल” सकते हैं। (लूका 10:42, फुटनोट; 14:12-14) हाकोप नाम का एक भाई कभी-कभी पिकनिक का इंतज़ाम करता है, जिनमें वह चंद भाई-बहनों को शामिल करता है। वह कहता है “पिकनिक में हर उम्र के लोग और अकेले परिवार चलानेवाले भी होते हैं। हर कोई मीठी यादें लेकर घर लौटता है और सभी पहले से ज़्यादा एक-दूसरे के करीब महसूस करते हैं।” मसीही होने के नाते, हमें न सिर्फ एक-दूसरे के संगी विश्‍वासी बल्कि सच्चे दोस्त भी होना चाहिए।—3 यूहन्‍ना 14.

10. जब भाई-बहनों के साथ हमारे रिश्‍ते में दरार पैदा होने लगती है, तो हम क्या कर सकते हैं?

10 लेकिन कभी-कभी हमारी असिद्धता, एक-दूसरे से दोस्ती करने और स्नेह पैदा करने में रुकावट डाल सकती है। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? सबसे पहले तो हम प्रार्थना कर सकते हैं कि भाइयों के साथ हमारा अच्छा रिश्‍ता हो। परमेश्‍वर चाहता है कि उसके सेवक मिल-जुलकर रहें, इसलिए वह सच्चे दिल से की जानेवाली प्रार्थनाओं का जवाब ज़रूर देगा। (1 यूहन्‍ना 4:20, 21; 5:14, 15) हमें अपनी प्रार्थनाओं के मुताबिक कदम भी उठाना चाहिए। पूर्वी अफ्रीका का एक सफरी ओवरसियर, रिक एक ऐसे भाई के बारे में बताता है जिसके साथ उसकी पटती नहीं थी, क्योंकि वह मुँह-फट था और दूसरों का लिहाज़ नहीं करता था। रिक कहता है: “मैंने उस भाई से दूर-दूर रहने के बजाय ठान लिया कि मैं उसे अच्छी तरह जानूँगा। भाई के करीब आने पर मैंने जाना कि उसके पिताजी बहुत सख्त थे और उन्होंने बचपन में उसे कड़े अनुशासन में रखा था। जब मुझे पता चला कि ऐसे माहौल में पलने की वजह से उसे अपने रूखेपन पर काबू पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा और उसने अपने अंदर काफी सुधार किया है, तो मैं उसकी और भी इज़्ज़त करने लगा। फिर हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए।”—1 पतरस 4:8.

अपना हृदय खोलिए!

11. (क) कलीसिया में प्यार का माहौल बढ़ाने के लिए क्या करने की ज़रूरत है? (ख) अगर हम दूसरों पर कभी अपनी भावनाएँ ज़ाहिर न करें, तो आध्यात्मिक तौर पर हमें कैसे नुकसान हो सकता है?

11 आज कई लोग ऐसे हैं जो किसी के भी पक्के दोस्त नहीं बनते, बस यूँ ही ज़िंदगी गुज़ार लेते हैं। यह कितने अफसोस की बात है! लेकिन मसीही कलीसिया में ऐसे हालात पैदा होने की ज़रूरत नहीं है और ऐसा होना भी नहीं चाहिए। सच्चे भाईचारे के प्यार का मतलब सिर्फ एक-दूसरे के साथ अदब से बात करना और पेश आना नहीं है; ना ही अपनी भावनाओं को हद-से-ज़्यादा ज़ाहिर करना है। इसके बजाय, जैसे पौलुस ने कुरिन्थियों के लिए अपना हृदय खोल दिया था, वैसे हमें भी भाइयों के लिए अपना हृदय खोल देना चाहिए और उन्हें दिखाना चाहिए कि हम सच्चे दिल से उनकी खैरियत चाहते हैं। हालाँकि हममें से हरेक जन स्वभाव से मिलनसार या बातूनी नहीं होता, लेकिन अगर हम दूसरों पर कभी-भी अपनी भावनाएँ ज़ाहिर न करें तो इससे हमें नुकसान हो सकता है। बाइबल चेतावनी देती है: “जो औरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है, और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है।”—नीतिवचन 18:1.

12. कलीसिया में एक-दूसरे के साथ करीबी रिश्‍ता कायम करने के लिए अच्छी बातचीत क्यों बहुत ज़रूरी है?

12 सच्ची दोस्ती कायम करने के लिए सबसे ज़रूरी है, दिल से बातचीत करना। (यूहन्‍ना 15:15) हम सभी को ऐसे दोस्तों की ज़रूरत होती है जिन पर हम भरोसा करके अपने दिल का गुबार निकाल सकें। इतना ही नहीं, एक-दूसरे को जितनी अच्छी तरह जानेंगे, उतनी अच्छी तरह हम दूसरों की ज़रूरतों को पूरा कर पाएँगे। इस तरह एक-दूसरे की परवाह करने से हम कलीसिया में कोमल स्नेह बढ़ाएँगे और यीशु के इन शब्दों की सच्चाई को अनुभव करेंगे: “लेने से देने में अधिक सुख है।”—प्रेरितों 20:35, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; फिलिप्पियों 2:1-4.

13. हम कैसे दिखा सकते हैं कि भाइयों के लिए हमारा प्यार सच्चा है?

13 दूसरों को हमारे स्नेह से सबसे बढ़िया फायदा तभी होगा जब हम उसे ज़ाहिर करेंगे। (नीतिवचन 27:5) अगर हमारा प्यार सच्चा है तो यह हमारे चेहरे पर भी झलक सकता है, और इससे दूसरों का मन भी उन्हें हमसे प्यार करने के लिए उभारेगा। बाइबल का एक नीतिवचन कहता है: “आंखों की चमक से मन को आनन्द होता है।” (नीतिवचन 15:30) दूसरों की ज़रूरतों को समझकर उनकी मदद करने पर भी कोमल स्नेह बढ़ता है। हालाँकि सच्चा स्नेह खरीदा नहीं जा सकता, फिर भी तहेदिल से किसी को तोहफा देना बहुत मायने रखता है। एक कार्ड, एक खत या “ठीक समय पर कहा हुआ वचन”—इन सभी के ज़रिए हम गहरा प्यार ज़ाहिर कर सकते हैं। (नीतिवचन 25:11; 27:9) एक बार जब हम किसी से दोस्ती कर लेते हैं, तो हमें नि:स्वार्थ प्यार दिखाते हुए दोस्ती को बरकरार रखना चाहिए। खासकर मुसीबत की घड़ी में हमें अपने दोस्तों को थाम लेना चाहिए। बाइबल कहती है: “मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।”—नीतिवचन 17:17.

14. ऐसे वक्‍त पर हम क्या कर सकते हैं जब हम किसी से दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहते हैं, मगर हमें लगता है कि वह इसके लिए राज़ी नहीं है?

14 यह सच है कि कलीसिया के हर सदस्य के साथ करीबी रिश्‍ता कायम करना मुमकिन नहीं हो सकता। स्वाभाविक है कि कुछ लोगों के हम ज़्यादा करीब महसूस करते हैं, तो कुछ के कम। इसलिए अगर आप किसी के दोस्त बनना चाहते हैं, मगर आपको लगता है कि वह आपके करीब नहीं आना चाहता, तो झट से यह मत सोच लीजिए कि आपमें या उस व्यक्‍ति में कोई खामी है। और ना ही आपके करीब आने के लिए उसके साथ ज़बरदस्ती कीजिए। उसे जिस हद तक दोस्ती मंज़ूर है बस उतनी दोस्ती रखिए। इससे भविष्य में उसके साथ करीबी रिश्‍ता बनाने की गुंजाइश रहेगी।

“तुझ से मैं प्रसन्‍न हूं”

15. शाबाशी देने या न देने का दूसरों पर कैसा असर पड़ सकता है?

15 यीशु के बपतिस्मे के वक्‍त जब स्वर्ग से यह आवाज़ आयी कि “तुझ से मैं प्रसन्‍न हूं,” तो वह कितना खुश हुआ होगा! (मरकुस 1:11) परमेश्‍वर ने जब इस तरह अपनी मंज़ूरी ज़ाहिर की, तो यीशु को और भी यकीन हुआ होगा कि उसका पिता उसे बहुत प्यार करता है। (यूहन्‍ना 5:20) अफसोस कि कई लोगों को अपने परिवार के लोगों से कभी शाबाशी नहीं मिलती जिन्हें वे आदर देते और प्यार करते हैं। एन कहती है: “मेरे जैसे कई जवानों के परिवार के लोग सच्चाई में नहीं हैं। हमें घर पर सिर्फ डाँट-फटकार ही सुनने को मिलती है। इससे हम बहुत उदास हो जाते हैं।” लेकिन जब ऐसे जवान, कलीसिया के सदस्य बन जाते हैं तो उन्हें आध्यात्मिक माता, पिता और भाई-बहन मिल जाते हैं। इस आध्यात्मिक परिवार में उन्हें प्यार मिलता है और सभी उनकी मदद और देखभाल करते हैं।—मरकुस 10:29, 30; गलतियों 6:10.

16. दूसरों की नुक्‍ताचीनी करने से क्यों उन पर बुरा असर पड़ सकता है?

16 कुछ संस्कृतियों में माता-पिता, बड़े-बुज़ुर्ग और टीचर, कभी-भी बच्चों या जवानों को शाबाशी नहीं देते क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे वे मेहनत करना छोड़ देंगे या घमंडी बन जाएँगे। ऐसा रवैया मसीही परिवार और कलीसिया के सदस्यों में भी पनप सकता है। जब एक जवान, कलीसिया में कोई भाग पेश करता या कोई और काम करता है, तो बड़े लोग शायद उससे कहें: “वैसे तो ठीक ही किया तुमने, लेकिन तुम और भी अच्छा कर सकते हो!” या किसी और तरीके से ज़ाहिर कर सकते हैं कि वे जवान के काम से खुश नहीं हैं। कई लोग सोचते हैं कि ऐसा करके वे जवानों को अपनी काबिलीयत का पूरा-पूरा इस्तेमाल करने के लिए उकसा रहे हैं। लेकिन सच तो यह है कि कई बार इससे जवानों पर बुरा असर पड़ता है, वे या तो हार मान लेते हैं या खुद को बिलकुल नालायक समझते हैं।

17. हमें क्यों दूसरों की तारीफ करने के मौके तलाशने चाहिए?

17 हमें दूसरों को शाबाशी सिर्फ सलाह देने से पहले ही नहीं देनी चाहिए। जब हम दूसरे मौकों पर भी उनकी सच्चे दिल से तारीफ करते हैं तो इससे परिवार और कलीसिया में कोमल स्नेह बढ़ता है, और इस तरह जवानों को तजुर्बेकार भाई-बहनों से सुझाव माँगने का बढ़ावा मिलता है। इसलिए हमारी संस्कृति जो सिखाती है, उसी के मुताबिक दूसरों के साथ व्यवहार करने के बजाय, आइए हम ‘नये मनुष्यत्व को पहिन लें, जो परमेश्‍वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता और पवित्रता में सृजा गया है।’ यहोवा की तरह आइए हम भी दूसरों की तारीफ करें।—इफिसियों 4:24.

18. (क) जवानो, आपको बड़ों की सलाह को किस नज़र से देखना चाहिए? (ख) बड़े लोग, दूसरों को सलाह देने की बात को क्यों गंभीरता से लेते हैं?

18 दूसरी तरफ जवानो, अगर बड़े लोग आपकी कोई गलती सुधारते या आपको सुझाव देते हैं, तो यह मत सोचिए कि वे आपको पसंद नहीं करते। (सभोपदेशक 7:9) सच तो यह है कि वे आपकी परवाह करते हैं और दिल की गहराइयों से आपसे प्यार करते हैं। वरना वे क्यों तकलीफ उठाकर आपको सलाह देने आएँगे? बड़े लोग और खासकर कलीसिया के प्राचीन जानते हैं कि उनकी बातों का दूसरों पर कितना गहरा असर पड़ सकता है, इसलिए वे सलाह देने से पहले इस बारे में सोचने और प्रार्थना करने में अकसर काफी वक्‍त बिताते हैं। वे सिर्फ इसलिए इतना जतन करते हैं क्योंकि वे आपका भला चाहते हैं।—1 पतरस 5:5.

“यहोवा का स्नेह बहुत कोमल है”

19. जिन्हें दूसरों पर कोमल स्नेह ज़ाहिर करने से निराशा हाथ लगी है, वे यहोवा से मदद पाने की उम्मीद क्यों कर सकते हैं?

19 हो सकता है, गुज़रे वक्‍त में दूसरों के लिए कोमल स्नेह दिखाने पर कुछ लोगों को कड़वे अनुभव हुए हों, इसलिए शायद वे सोचें कि अब आगे भी दूसरों पर स्नेह ज़ाहिर करने से उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी। उन्हें दूसरों के लिए एक बार फिर अपना हृदय खोलने के लिए साहस और मज़बूत विश्‍वास की ज़रूरत होगी। लेकिन उन्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि यहोवा “हम में से किसी से दूर नहीं” है। वह हमें उसके करीब आने का न्यौता देता है। (प्रेरितों 17:27; याकूब 4:8) वह यह भी समझता है कि हम दोबारा दूसरों के हाथों चोट खाने से डरते हैं, और वह हमें सहारा और मदद देने का वादा करता है। भजनहार दाऊद हमें यकीन दिलाता है: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।”—भजन 34:18.

20, 21. (क) हम कैसे जानते हैं कि हम यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता कायम कर सकते हैं? (ख) यहोवा के करीब रहने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?

20 यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता, दुनिया के किसी भी रिश्‍ते से खास और ज़रूरी है। लेकिन क्या यहोवा के दोस्त बनना मुमकिन है? जी हाँ। बाइबल ऐसे स्त्री-पुरुषों के बारे में बताती है जिन्होंने स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता के बहुत करीब महसूस किया था। उन्होंने यहोवा के लिए स्नेह ज़ाहिर करते हुए जो कहा, वह बाइबल में दर्ज़ है ताकि हमें भरोसा हो कि हम भी यहोवा के करीब आ सकते हैं।—भजन 23, 34, 139; यूहन्‍ना 16:27; रोमियों 15:4.

21 यहोवा ने अपने साथ दोस्ती करने के लिए जो माँगें बतायी हैं, उन्हें हर कोई पूरा कर सकता है। दाऊद ने कहा: “हे परमेश्‍वर तेरे तम्बू में कौन रहेगा? . . . वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है, और हृदय से सच बोलता है।” (भजन 15:1, 2; 25:14) जब हम देखेंगे कि यहोवा की सेवा करने से हमें अच्छे फल मिलते हैं, हम उसके साए में रह पाते और उसका मार्गदर्शन पाते हैं, तो हमें एहसास होगा कि “यहोवा का स्नेह बहुत कोमल है।”—याकूब 5:11, NW.

22. यहोवा अपने लोगों को किस तरह के रिश्‍ते का आनंद उठाते हुए देखना चाहता है?

22 यह हमारे लिए कितनी बड़ी आशीष है कि यहोवा हम असिद्ध इंसानों के साथ निजी रिश्‍ता कायम करना चाहता है! तो क्या हमें भी एक-दूसरे के लिए ऐसा ही स्नेह नहीं दिखाना चाहिए? कोमल स्नेह मसीही बिरादरी की एक खासियत है, और यहोवा की मदद से हममें से हरेक जन दूसरों के लिए यह स्नेह दिखा सकता और उनसे पा सकता है। परमेश्‍वर के राज्य में हर इंसान हमेशा-हमेशा के लिए इस स्नेह का आनंद उठाएगा।

क्या आप समझा सकते हैं?

• मसीही कलीसिया में कैसा माहौल होना चाहिए?

• हममें से हरेक जन कलीसिया में कोमल स्नेह बढ़ाने के लिए क्या कर सकता है?

• सच्चे दिल से तारीफ करने से मसीही स्नेह कैसे बढ़ता है?

• यहोवा का कोमल स्नेह कैसे हमारी मदद करता और हमें थामे रहता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

मसीही सिर्फ फर्ज़ के नाते एक-दूसरे से प्यार नहीं करते

[पेज 16, 17 पर तसवीर]

क्या आप दूसरों पर स्नेह ज़ाहिर करने के लिए अपना “हृदय खोल” सकते हैं?

[पेज 18 पर तसवीर]

आप नुक्‍ताचीनी करनेवाले हैं या उत्साह बढ़ानेवाले?