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ऑलेकॉन्द्रॉ की चिट्ठी

ऑलेकॉन्द्रॉ की चिट्ठी

राज्य उद्‌घोषक रिपोर्ट करते हैं

ऑलेकॉन्द्रॉ की चिट्ठी

चिट्ठी लिखना, लंबे अरसे से गवाही देने का एक असरदार तरीका रहा है। कभी-कभी हम नहीं जानते कि चिट्ठी लिखने का क्या नतीजा निकलेगा, मगर देखा गया है कि जो लोग पूरी लगन से यह तरीका आज़माते हैं, उन्हें बढ़िया आशीषें मिलती हैं। वे बाइबल की इस बुद्धिमानी भरी सलाह को याद रखते हैं: “भोर को अपना बीज बो, और सांझ को भी अपना हाथ न रोक; क्योंकि तू नहीं जानता कि कौन सुफल होगा, यह या वह, वा दोनों के दोनों अच्छे निकलेंगे।”—सभोपदेशक 11:6.

ऑलेकॉन्द्रॉ नाम की एक जवान साक्षी, मेक्सिको में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में करीब दस साल से सेवा कर रही थी। उसे कैंसर हो गया था, इसलिए कीमोथेरेपी से उसका इलाज किया जाने लगा। उसकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती गयी और वह इतनी कमज़ोर हो गयी कि रोज़मर्रा के काम भी उससे नहीं हो पाते थे। मगर ऐसे में भी वह प्रचार काम को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहती थी, इसलिए उसने सोचा कि वह चिट्ठियों के ज़रिए लोगों को गवाही देगी। उसने अपनी चिट्ठियों में मुफ्त बाइबल अध्ययन के इंतज़ाम के बारे में बताया और अपनी माँ का टेलिफोन नंबर लिखा। फिर ये चिट्ठियाँ उसने माँ को देते हुए कहा कि जब वह घर-घर प्रचार में जाए, तो इन्हें ऐसे घरों के पास रख दे जहाँ उस वक्‍त लोग घरों में नहीं होंगे।

इस बीच ऐसा हुआ कि ग्वाटेमाला की एक लड़की ड्योहॉनि, मेक्सिको के कैनकून शहर में नौकरानी का काम करने आयी। वहाँ उसकी मुलाकात यहोवा के साक्षियों से हुई, जो उसके साथ बाइबल पर चर्चा करने लगे। ऐसी बातचीत ड्योहॉनि को बहुत अच्छी लगती थी। बाद में ड्योहॉनि के मालिक और मालकिन ने मेक्सिको सिटी नाम के एक दूसरे शहर में जा बसने का फैसला किया, और वे चाहते थे कि वह भी उनके साथ चले। मगर ड्योहॉनि उनके साथ नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि उसे लगा कि वहाँ जाने से साक्षियों से उसका मिलना-जुलना बंद हो जाएगा।

मगर ड्योहॉनि के मालिक और मालकिन ने उसे यकीन दिलाते हुए कहा: “तुम इसकी फिक्र मत करो। साक्षी हर जगह होते हैं। हम वहाँ जाते ही उनका पता लगाएँगे।” यह सुनकर ड्योहॉनि खुश हुई और पूरी उम्मीद लिए उनके साथ जाने को राज़ी हो गयी। मेक्सिको सिटी में बसते ही ड्योहॉनि के मालिक और मालकिन ने साक्षियों को बहुत ढूँढ़ा। हालाँकि उस शहर में 41,000 से ज़्यादा साक्षी और 730 कलीसियाएँ थीं, मगर किसी वजह से वे उन्हें नहीं पा सके।

अब ड्योहॉनि निराश होने लगी, क्योंकि वह बाइबल पर चर्चा करने के लिए साक्षियों को नहीं पा सकी। फिर एक दिन अचानक उसकी मालकिन उसके पास आयी और कहने लगी: “कमाल हो गया! परमेश्‍वर ने तुम्हारी दुआएँ सुन लीं।” फिर उसने ड्योहॉनि को एक खत देते हुए कहा: “यह चिट्ठी साक्षी तुम्हारे लिए छोड़ गए हैं।” वह ऑलेकॉन्द्रॉ की चिट्ठी थी।

ड्योहॉनि ने ऑलेकॉन्द्रॉ की माँ और उसकी बहन, ब्लॉन्का से संपर्क किया और एक बाइबल अध्ययन कबूल किया। कुछ हफ्तों बाद, ऑलेकॉन्द्रॉ से भी उसकी मुलाकात हुई। वे दोनों एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुईं। ऑलेकॉन्द्रॉ ने ड्योहॉनि का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि वह बाइबल अध्ययन के लिए यूँ ही मेहनत करती रहे, ताकि आध्यात्मिक बातों में तरक्की कर सके।

कुछ महीनों बाद, जुलाई 2003 में ऑलेकॉन्द्रॉ गुज़र गयी। वह मज़बूत विश्‍वास और हिम्मत दिखाने में अपने मसीही भाई-बहनों के लिए एक अच्छी मिसाल छोड़ गयी। उसकी अंत्येष्टि पर ड्योहॉनि से मिलकर और उसकी यह बात सुनकर कइयों का दिल भर आया: “ऑलेकॉन्द्रॉ और उसके परिवार ने मेरे लिए एक बढ़िया मिसाल कायम की है। मैंने यह अटल फैसला किया है कि मैं यहोवा की सेवा करूँगी और जल्द ही बपतिस्मा लूँगी। मैं वह दिन देखने के लिए तरस रही हूँ जब मैं फिरदौस में ऑलेकॉन्द्रॉ से दोबारा मिलूँगी!”

जी हाँ, चिट्ठी दिखने में भले ही छोटी लगे, मगर है बड़े काम की चीज़। यह दूसरों को हमेशा के लिए फायदा पहुँचा सकती है!