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जवानो—अपने मन की रक्षा करने में माता-पिता की मदद लें!

जवानो—अपने मन की रक्षा करने में माता-पिता की मदद लें!

जवानो—अपने मन की रक्षा करने में माता-पिता की मदद लें!

आपका क्या खयाल है, एक जहाज़ के कप्तान के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या हो सकती है? एक महासागर को सही-सलामत पार करना? नहीं, आम तौर पर इसमें कोई खास मुश्‍किल नहीं आती। ज़्यादातर जहाज़ गहरे सागर में नहीं बल्कि किनारे पर डूबते हैं। असल में देखा जाए तो जहाज़ को बंदरगाह तक सही-सलामत पहुँचाना, एक हवाई-जहाज़ को ज़मीन पर उतारने से भी ज़्यादा जोखिम-भरा काम हो सकता है। क्यों?

जहाज़ को बंदरगाह पर लगाने के लिए, कप्तान को उसे आस-पास के खतरों से बचाकर ले जाना होता है। उसे पानी के नीचे की तरंगों को ध्यान में रखने के साथ-साथ यह भी देखना होता है कि उसका जहाज़ दूसरे जहाज़ों से न टकराए। साथ ही, उसे रेत के टीलों, चट्टानों और पानी के नीचे छिपी चीज़ों से बचना होता है। उस पर, अगर वह इस बंदरगाह पर पहली बार आ रहा है तो यह काम उसके लिए और भी मुश्‍किल हो जाता है।

इन मुश्‍किलों को पार करने के लिए एक अक्लमंद कप्तान, नौकायन पाइलट की मदद लेता है जिसे उस बंदरगाह की अच्छी मालुमात होती है। पाइलट, जहाज़ पर कप्तान के केबिन में उसके साथ खड़ा रहकर उसे सही रास्ता दिखाता है। वे साथ मिलकर तय करते हैं कि खतरों को कैसे पार किया जाए, और फिर जहाज़ को तंग रास्तों से ले जाते हुए बंदरगाह तक पहुँचाते हैं।

पाइलट का यह तजुरबा इस बात की मिसाल है कि मसीही जवानों के लिए भी ऐसी अनमोल मदद हाज़िर है जिससे वे ज़िंदगी की मुश्‍किलों का सामना करते हुए अपनी नैया पार लगा सकते हैं। यह कैसी मदद है? और किशोरों को ऐसी मदद की ज़रूरत क्यों है?

आइए जहाज़ के उदाहरण पर फिर से ध्यान दें। अगर आप एक किशोर हैं, तो आपके हालात कुछ हद तक जहाज़ के कप्तान जैसे हैं, क्योंकि अपनी ज़िंदगी के जहाज़ को सही दिशा में ले जाने की ज़िम्मेदारी आप ही की होगी। आपके माता-पिता उस पाइलट के जैसे हैं क्योंकि आपकी ज़िंदगी में मुश्‍किल हालात पैदा होने पर वे आपको सही राह दिखा सकते हैं। लेकिन इस उम्र में आप पाएँगे कि माता-पिता की सलाह मानना आसान नहीं है। ऐसा क्यों?

अकसर इसकी वजह आपका मन होता है। आपको जो काम करने से मना किया जाता है वही करने के लिए शायद आपका मन ललचाए, या फिर यह आपको ऐसी आज्ञाओं के खिलाफ बगावत करने के लिए उकसाए जो आपके हिसाब से आपकी आज़ादी छीन लेती हैं। बाइबल कहती है: “मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्‍न होता है सो बुरा ही होता है।” (उत्पत्ति 8:21) यहोवा आपको साफ-साफ बताता है कि आपके आगे एक बड़ी चुनौती है। वह आगाह करता है: “मनुष्य का हृदय छल-कपट से भरा होता है, निस्सन्देह वह सब से अधिक भ्रष्ट होता है।” (यिर्मयाह 17:9, नयी हिन्दी बाइबिल) एक जवान का मन उसमें बुरी इच्छाएँ पैदा करने के साथ-साथ, उसे इस धोखे में डाल सकता है कि वह अपने माता-पिता से ज़्यादा जानता है, हालाँकि उनको ज़िंदगी का तजुरबा उससे कहीं ज़्यादा है। लेकिन जवानी के इस मुश्‍किल दौर से गुज़रते वक्‍त अपने माता-पिता की मदद क्यों लेनी चाहिए इसकी कई अच्छी वजह हैं।

माता-पिता का कहना क्यों मानें?

सबसे अहम वजह यह है कि परिवार की शुरूआत करनेवाला यहोवा आपसे कहता है कि आपको माता-पिता का कहना मानना चाहिए। (इफिसियों 3:15) परमेश्‍वर ने आपकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी माता-पिता को सौंपी है, इसलिए वह आपको यह सलाह देता है: “हे बालको, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है।” (इफिसियों 6:1-3; भजन 78:5) इसके बावजूद कि अब आप छोटे बच्चे नहीं रहे, फिर भी आपके माता-पिता की यह ज़िम्मेदारी है कि वे आपको सही राह दिखाएँ; और आपका फर्ज़ बनता है कि आप उनका कहना मानें। जब प्रेरित पौलुस ने लिखा कि बालकों को माता-पिता की आज्ञा माननी चाहिए, तो उसने एक ऐसे यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया जिसे हर उम्र के बच्चों पर लागू किया जा सकता है। इसकी एक और मिसाल मत्ती 23:37 में मिलती है जहाँ यीशु ने यरूशलेम के रहनेवालों का ज़िक्र “बालकों” के तौर पर किया, जबकि वहाँ के ज़्यादातर लोग बालिग थे।

पुराने ज़माने में परमेश्‍वर के कई वफादार सेवक, बड़े होने के बाद भी अपने माता-पिता की आज्ञा मानते रहे। हालाँकि याकूब बड़ा हो चुका था, मगर उसने अपने पिता की इस आज्ञा की अहमियत समझी कि वह ऐसी किसी स्त्री से शादी न करे जो यहोवा की उपासना नहीं करती थी। (उत्पत्ति 28:1, 2) बेशक उसने यह भी देखा होगा कि उसके भाई ने कनानी लड़कियों से शादी करके अपने माता-पिता के दिल को कितना दुखाया था।—उत्पत्ति 27:46.

परमेश्‍वर से मिले फर्ज़ के मुताबिक मसीही माता-पिता आपको सही राह दिखाने के साथ-साथ, बेहतरीन सलाह देने के लिए सबसे ज़्यादा काबिल हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे आपको अच्छी तरह जानते हैं और कई सालों से वे बिना किसी स्वार्थ के आपके लिए प्यार दिखाते आए हैं। जहाज़ के पाइलट की तरह वे अपने अनुभव से आपको सलाह देते हैं। वे जानते हैं कि ‘जवानी की अभिलाषाएँ’ क्या होती हैं क्योंकि वे खुद इस दौर से गुज़र चुके हैं। और सच्चे मसीहियों के नाते उन्होंने बाइबल के उसूलों पर चलने की अहमियत जानी है।—2 तीमुथियुस 2:22.

जब ऐसे बेहतरीन सलाहकार आपके साथ हैं, तो आप मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात का भी सामना करने में कामयाब होंगे। मसलन, विपरीत सेक्स के साथ अपने बर्ताव को ही लीजिए। मसीही माता-पिता इस नाज़ुक मामले में आपको सही राह कैसे दिखा सकते हैं?

विपरीत सेक्स की तरफ आकर्षण

पाइलट, कप्तान को सलाह देता है कि वह जहाज़ को पानी के नीचे छिपे रेत के टीलों से दूर रखे। रेत के ये टीले नरम होने पर भी बड़े खतरनाक होते हैं, क्योंकि ये जगह-जगह खिसकते रहते हैं। पाइलट की तरह, आपके माता-पिता आपको ऐसे हालात से दूर रखना चाहते हैं जिनमें आपके जज़बात आपके लिए फँदा बन सकते हैं। मसलन, माँ-बाप जानते हैं कि विपरीत सेक्स की तरफ आकर्षण इतना ज़बरदस्त होता है कि यह साफ-साफ बताया नहीं जा सकता कि यह किस हद तक सही है। और एक बार इन ज़बरदस्त भावनाओं को खुली छूट दी जाए, तो वे आपको ले डूबेंगी।

दीना की मिसाल दिखाती है कि खतरे के बिलकुल करीब जाना, मुसीबत को दावत देना है। हो सकता है, उसने कनानी लड़कियों के बारे में जानने की ख्वाहिश से या मौज-मस्ती करने के इरादे से उनके साथ मेल-जोल रखना शुरू किया। मगर वे कनानी लड़कियाँ बदचलन थीं। दीना को शुरू में लगा होगा कि उनसे घुलने-मिलने में कोई हर्ज़ नहीं है मगर इसका बहुत ही दर्दनाक अंजाम निकला। उस कनानी शहर के सबसे “प्रतिष्ठित” पुरुष ने दीना का बलात्कार किया।—उत्पत्ति 34:1, 2, 19.

इस तरह के खतरे आज और भी बढ़ते जा रहे हैं क्योंकि यह दुनिया सेक्स के पीछे पागल है। (होशे 5:4) कई नौजवान शायद यह दिखाने की कोशिश करें कि किसी विपरीत सेक्स के साथ ऐश करने से ही ज़िंदगी का असली मज़ा मिलता है। जिस लड़के या लड़की की खूबसूरती पर आप फिदा हो जाते हैं, उसके साथ अकेले में होने के खयाल से शायद आपका दिल तेज़ी से धड़कने लगे। लेकिन आपके माता-पिता, जो आपसे प्यार करते हैं, वे आपको उन जवानों से दूर रखने की कोशिश करेंगे जिन्हें परमेश्‍वर के स्तरों की कोई कदर नहीं है।

लॉरा कबूल करती है कि विपरीत सेक्स के साथ वक्‍त बिताने में कैसा मज़ा आता है, यह जानने की चाहत जवानों को इस कदर अंधा कर सकती है कि वे खतरों को देख नहीं पाते। “जब क्लास की लड़कियाँ मुझे बताती हैं कि उन्होंने देर रात तक कुछ खूबसूरत लड़कों के साथ नाच-गाना किया था, तो उनकी बातों से ऐसा लगता है जैसे उन्होंने खूब मज़ा किया होगा और वे इसे ज़िंदगी-भर भुला नहीं पाएँगी। मैं मानती हूँ कि ये लड़कियाँ अकसर नमक-मिर्च लगाकर बोलती हैं, फिर भी मैं जानना चाहती हूँ कि ये पार्टियाँ होती कैसी हैं। कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि कहीं मैं ज़िंदगी का मज़ा खो तो नहीं रही हूँ। हाँ, मैं जानती हूँ कि मेरे मम्मी-पापा मुझे ऐसी पार्टियों में जाने से रोककर बिलकुल सही कर रहे हैं, लेकिन फिर भी मेरा मन वहाँ जाने को ललचाता है।”

जहाज़ में ब्रेक नहीं होते, इसलिए उसे रुकने में काफी समय लगता है। माता-पिता जानते हैं कि जहाज़ की तरह वासना पर भी रोक लगाना आसान नहीं। नीतिवचन की किताब वासना से बेकाबू नौजवान की तुलना एक ऐसे बैल से करती है जिसे कसाई-खाने ले जाया जा रहा है। (नीतिवचन 7:21-23) आप नहीं चाहेंगे कि आपके साथ भी ऐसा हो, कि आपका दिल टूट जाए और आपकी आध्यात्मिकता का जहाज़ डूब जाए। इस मामले में आपका मन अगर आपको गुमराह करने लगे तो शायद आपके माता-पिता यह भाँप लें और आपको ज़रूरी सलाह दें। क्या आप अक्लमंदी दिखाते हुए उनका कहना मानेंगे और मुसीबतों से बचेंगे?—नीतिवचन 1:8; 27:12.

हमउम्र नौजवानों से आनेवाले दबावों का सामना करना एक और मामला है जिसमें माता-पिता आपकी मदद कर सकते हैं। इस मामले में वे आपकी मदद कैसे कर सकते हैं?

हमउम्र नौजवानों का आप पर ज़बरदस्त दबाव

समुद्र के पानी की तेज़ तरंग से जहाज़ अपने रास्ते से भटक सकता है। लेकिन इससे बचने के लिए जहाज़ को तरंग के बिलकुल उलटी दिशा में ले जाना होगा। ठीक उसी तरह, अगर आप दूसरे जवानों से आनेवाले दबाव का विरोध करने के लिए कदम न उठाएँ, तो आप आध्यात्मिक राह से भटक सकते हैं।

दीना के साथ जो हुआ वह दिखाता है कि अगर आप ‘मूर्खों के साथी बनेंगे तो नाश हो जाएँगे।’ (नीतिवचन 13:20) याद रखिए कि बाइबल उन लोगों को ‘मूर्ख’ कहती है जो यहोवा को नहीं जानते या जो जानबूझकर उसके बताए रास्ते पर नहीं चलते।

लेकिन अपने क्लास के साथियों के सोच-विचार और उनके कामों को ठुकराना शायद इतना आसान न हो। मारीया होसे कहती है: “मैं चाहती थी कि दूसरे जवान मुझे पसंद करें, न कि वे मुझे अपने से अलग समझें। इसलिए मैंने उनके जैसा बनने की पूरी-पूरी कोशिश की।” शायद आपको एहसास न हो मगर आपके साथी कई मामलों में आप पर असर डाल सकते हैं, जैसे आप कौन-सा संगीत सुनेंगे, कौन-से कपड़े पहनेंगे, यहाँ तक कि किस अंदाज़ में बात करेंगे। हो सकता है आपको अपने हमउम्र नौजवानों के साथ रहना ज़्यादा अच्छा लगता हो। ऐसा महसूस करना गलत नहीं है मगर इससे उनके रंग में रंग जाने का खतरा बना रहता है जो आपको बरबाद कर सकता है।—नीतिवचन 1:10-16.

कारॉलीन याद करती है कि कुछ साल पहले वह किस कशमकश से गुज़री थी। वह कहती है: “तेरह साल की उम्र से, जिन लड़कियों के साथ मेरी दोस्ती थी, उनमें से ज़्यादातर के बॉयफ्रेंड थे। और कई सालों तक मुझ पर यह दबाव आता रहा है कि मैं भी उनकी तरह अपने लिए एक बॉयफ्रेंड ढूँढ़ लूँ। लेकिन मेरी मम्मी ने इस मुश्‍किल दौर में मुझे सही राह दिखायी। वह घंटों मेरी बातें सुनती, मेरे साथ तर्क करती और यह समझने में मेरी मदद करती थी कि बड़ी और समझदार होने पर ही ऐसे रिश्‍ते कायम करना ठीक होगा।”

कारॉलीन की माँ की तरह, आपके माता-पिता भी शायद आपको साथियों के दबाव के बारे में आगाह करना अपना फर्ज़ समझें। हो सकता है वे आपको कुछ कामों में हिस्सा लेने या कुछ लड़के-लड़कियों के साथ दोस्ती करने से मना भी करें। नेथन को कई वाकये याद हैं जब इन बातों को लेकर अपने माता-पिता के साथ उसकी तकरार होती थी। वह बताता है: “मेरे दोस्त अकसर मुझे अपने साथ बाहर घूमने के लिए बुलाते थे। मगर मम्मी-पापा मुझे जवानों की टोलियों के साथ मटरगश्‍ती करने या ऐसी बड़ी-बड़ी पार्टियों में जाने की इजाज़त नहीं देते थे जहाँ पर बड़े लोग मौजूद न हों। उस वक्‍त मैं समझ नहीं पा रहा था कि दूसरे बच्चों के मम्मी-पापा जब उन्हें खुली छूट देते हैं तो मेरे मम्मी-पापा इतने सख्त क्यों हैं।”

मगर बाद में नेथन ने समझा कि उसके माता-पिता इतने सख्त क्यों थे। वह कबूल करता है: “मैं जानता हूँ कि मेरे मामले में यह बात सच थी कि ‘लड़के के मन में मूढ़ता बन्धी रहती है।’ और जब कई जवान लड़के मटरगश्‍ती करने के लिए साथ मिल जाते हैं तो वे बड़ी आसानी से मूढ़ता के काम कर बैठते हैं। अगर एक ने कोई गलत काम शुरू किया, तो दूसरा उससे भी बदतर कुछ करता है और तीसरा तो हद कर जाता है। फिर देखते-ही-देखते उनके गलत काम में शरीक होने के लिए सभी पर दबाव डाला जाता है। ऐसे फँदे में वे जवान भी फँस सकते हैं जो यहोवा की सेवा करने का दावा करते हैं।”—नीतिवचन 22:15.

नेथन और मारीया होसे के माता-पिता ने जब उन्हें अपने यार-दोस्तों के बताए काम करने की इजाज़त नहीं दी, तो पहले-पहल उनका मन यह मानने को तैयार नहीं था। फिर भी उन्होंने माता-पिता की बात मानी और आगे चलकर उन्हें बहुत खुशी हुई कि उन्होंने ऐसा किया। नीतिवचन कहता है: “कान लगाकर बुद्धिमानों के वचन सुन, और मेरी ज्ञान की बातों की ओर मन लगा।”—नीतिवचन 22:17.

आदर पाने के हकदार

जो जहाज़ एक तरफ झुकता है, उसे चलाना आसान नहीं होता। और अगर वह बहुत ज़्यादा झुक जाए, तो बड़ी आसानी से पलट सकता है। असिद्ध होने के नाते हमारा जी वही चाहता है या उसी ओर झुकता है जो गलत है या जिससे हमारा स्वार्थ पूरा होता है। मगर ऐसी कमज़ोरियों के बावजूद जवान लोग अपनी मंज़िल तक पहुँच सकते हैं, बशर्ते वे आपने माता-पिता के दिखाए रास्ते पर ध्यान से चलें।

मसलन, आपके माता-पिता ऐसी सोच को ठुकराने में आपकी मदद कर सकते हैं कि जीवन के सकरे मार्ग और विनाश की ओर ले जानेवाले चौड़े मार्ग के बीच में भी एक मार्ग है। (मत्ती 7:13, 14) यह बात भी बिलकुल बेबुनियाद है कि आप पाप को निगले बगैर उसे “चख” सकते हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो परमेश्‍वर के कानूनों को तोड़े बिना गलत कामों का थोड़ा-बहुत मज़ा ले सकते हैं। जो ऐसा करते हैं वे “दो विचारों में लटके” रहते हैं यानी वे कुछ हद तक यहोवा की सेवा करते हैं लेकिन साथ ही संसार से और उसकी वस्तुओं से भी प्यार करते हैं। (1 राजा 18:21; 1 यूहन्‍ना 2:15) ऐसा करनेवालों का आध्यात्मिक जहाज़ बड़ी आसानी से थपेड़े खाकर उलट सकता है। क्यों? क्योंकि हमारे अंदर पाप करने की कमज़ोरी जो है।

अगर हम अपनी असिद्ध इच्छाओं के आगे हथियार डाल दें, तो वे हम पर हावी हो जाएँगी। “धोखा देनेवाला” हमारा “मन” सिर्फ पाप को चखने से संतुष्ट नहीं रहेगा, बल्कि और भी ज़्यादा की माँग करेगा। (यिर्मयाह 17:9) एक बार हम आध्यात्मिक रूप से बहकना शुरू कर दें, तो दुनिया हम पर ज़्यादा-से-ज़्यादा दबाव डालने लगेगी। (इब्रानियों 2:1) आप शायद न देख पाएँ कि आप आध्यात्मिक रूप से डगमगा रहे हैं मगर आपके मसीही माता-पिता इसे भाँप लेंगे। माना कि आपके माता-पिता कंप्यूटर का कोई प्रोग्राम सीखने में आपके जैसे तेज़ न हों, मगर जहाँ तक धोखा देनेवाले मन की बात है उसे वे आपसे बेहतर जानते हैं। और वे आपकी मदद करना चाहते हैं ताकि आप अपने ‘मन को सुमार्ग में सीधा चला’ सकें और ज़िंदगी पाएँ।—नीतिवचन 23:19.

लेकिन हाँ, जब आपके माता-पिता को संगीत, मनोरंजन और बनाव-श्रृंगार जैसे पेचीदा मामलों में आपको सलाह देनी पड़ती है, तो यह मत उम्मीद कीजिए कि वे हर बात को बिलकुल सही-सही समझेंगे। उनके पास शायद सुलैमान के जैसी बेजोड़ बुद्धि न हो, न ही अय्यूब जैसा धीरज हो। जहाज़ के पाइलट की तरह कभी-कभी वे आपको खतरों से बचाने के लिए शायद आप पर कुछ ज़्यादा ही पाबंदियाँ लगा दें। फिर भी, अगर आप ‘अपने पिता की शिक्षा पर कान लगाएँ, और अपनी माता की शिक्षा को न तजें’ तो उनकी नसीहत आपके लिए अनमोल साबित होगी।—नीतिवचन 1:8, 9.

दूसरे जवान शायद अपने माता-पिता के बारे में बात करते वक्‍त उन्हें इज़्ज़त न दें। लेकिन आपके माता-पिता, जो बाइबल के मुताबिक चलने की पूरी कोशिश करते हैं, एक पाइलट की तरह अच्छे-बुरे सभी हालात में आपको सही राह दिखाने और मुसीबत के हर तूफान का डटकर सामना करने में आपकी मदद करने के लिए तैयार हैं। जिस तरह जहाज़ के कप्तान को एक तजुरबेकार पाइलट की मदद की ज़रूरत होती है, उसी तरह ज़िंदगी के रास्ते पर बुद्धिमानी से चलने के लिए आपको अपने माता-पिता के मार्गदर्शन की ज़रूरत है। इससे आपको बेशुमार फायदे मिलेंगे।

“बुद्धि तो तेरे हृदय में प्रवेश करेगी, और ज्ञान तुझे मनभाऊ लगेगा; विवेक तुझे सुरक्षित रखेगा; और समझ तेरी रक्षक होगी; ताकि तुझे बुराई के मार्ग से, और उलट फेर की बातों के कहनेवालों से बचाए, जो सीधाई के मार्ग को छोड़ देते हैं, ताकि अन्धेरे मार्ग में चलें . . . क्योंकि धर्मी लोग देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे।”—नीतिवचन 2:10-13, 21.

[पेज 22 पर तसवीर]

दूसरे जवानों के दबाव से आप आध्यात्मिक रूप से भटक सकते हैं

[पेज 23 पर तसवीर]

दीना के साथ जो हुआ उसे हमेशा याद रखिए

[पेज 24 पर तसवीर]

जैसे जहाज़ का कप्तान एक तजुरबेकार पाइलट की सलाह लेता है, नौजवानों को भी अपने माता-पिता से मदद लेनी चाहिए

[पेज 24 पर चित्र का श्रेय]

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