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यहोवा को खोजिए जो दिलों को जाँचता है

यहोवा को खोजिए जो दिलों को जाँचता है

यहोवा को खोजिए जो दिलों को जाँचता है

“मेरी खोज में लगो, तब जीवित रहोगे।”आमोस 5:4.

1, 2. जब बाइबल कहती है कि यहोवा “हृदय को देखता है” तो इसका क्या मतलब है?

 परमेश्‍वर यहोवा ने भविष्यवक्‍ता शमूएल से कहा: “मनुष्य तो बाहरी रूप को देखता है, परन्तु [यहोवा] हृदय को देखता है।” (1 शमूएल 16:7, NHT) यहोवा किस मायने में “हृदय को देखता है”?

2 बाइबल में शब्द हृदय या दिल, अकसर अंदर के इंसान यानी उसकी ख्वाहिशों, उसके सोच-विचार, जज़बातों और पसंद-नापसंद को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया है। इसलिए जब बाइबल कहती है कि परमेश्‍वर दिलों को देखता है तो इसका मतलब है, वह बाहरी रूप से ज़्यादा यह देखता है कि एक इंसान अंदर से कैसा है।

परमेश्‍वर इस्राएल को जाँचता है

3, 4. आमोस 6:4-6 के मुताबिक दस गोत्रवाले इस्राएल राज्य का माहौल कैसा था?

3 दिलों को जाँचनेवाले यहोवा ने जब आमोस के दिनों में, दस गोत्रवाले इस्राएल राज्य पर नज़र डाली, तो उसने क्या देखा? आमोस 6:4-6 में ऐसे लोगों का ब्यौरा दिया गया है जो “हाथी दांत के पलंगों पर लेटते, और अपने अपने बिछौने पर पांव फैलाए सोते” थे। वे “भेड़-बकरियों में से मेम्ने और गौशालाओं में से बछड़े खाते” थे। वे “भांति भांति के बाजे बुद्धि से निकालते” थे और “कटोरों में से दाखमधु पीते” थे।

4 इन आयतों को पढ़ने पर पहले-पहल लग सकता है कि यहाँ एक खुशनुमा माहौल का ब्यौरा दिया गया है। रईस अपने आलीशान घरों में मज़े से रह रहे हैं, उनके सामने खाने-पीने की बढ़िया-से-बढ़िया चीज़ें रखी हैं और वे बेहतरीन साज़ों के संगीत का मज़ा ले रहे हैं। उनके पास ‘हाथी दांत के पलंग’ भी हैं। पुरातत्वविज्ञानियों को इस्राएल की राजधानी, सामरिया से ढेरों हाथी-दांत मिले जो बड़ी खूबसूरती से तराशे गए हैं। (1 राजा 10:22) शायद इनमें से ज़्यादातर हाथी-दांत, फर्नीचर और दीवारों पर मढ़े हुए थे।

5. परमेश्‍वर आमोस के दिनों के इस्राएलियों से नाराज़ क्यों था?

5 क्या परमेश्‍वर यहोवा इससे नाराज़ था कि इस्राएली आराम की ज़िंदगी बसर कर रहे थे, लज़ीज़ खाने, बढ़िया दाखमधु और मधुर संगीत का मज़ा ले रहे थे? बिलकुल नहीं! दरअसल, खुद यहोवा ने ये सारी चीज़ें इंसान की खुशी के लिए बहुतायत में दी हैं। (1 तीमुथियुस 6:17) वह नाराज़ इस बात से था कि लोगों ने अपने अंदर गलत अभिलाषाएँ पैदा कर ली थीं, दिल के खोटे हो गए थे, उनमें न तो परमेश्‍वर के लिए कोई श्रद्धा रह गयी थी और न ही अपने इस्राएली भाइयों के लिए प्यार।

6. आमोस के समय में इस्राएल की आध्यात्मिक हालत कैसी थी?

6 जो लोग ‘अपने अपने बिछौने पर पांव फैलाए सोते थे, भेड़-बकरियों में से मेम्ने खाते थे, दाखमधु पीते और भांति भांति के बाजे बुद्धि से निकालते थे,’ उनके होश जल्द ही ठिकाने लगनेवाले थे। उनसे पूछा गया: ‘क्या तुम संकट के दिन को ताक पर रखते हो?’ (NHT) उन्हें तो इस्राएल की हालत पर बेहद दुःखी होना चाहिए था, मगर वे “यूसुफ पर आनेवाली विपत्ति का हाल सुनकर शोकित नहीं” हुए। (आमोस 6:3-6) लेकिन यहोवा ने यूसुफ यानी इस्राएल देश की बढ़ती धन-दौलत को नहीं बल्कि उसकी आध्यात्मिकता को देखा और पाया कि उसकी आध्यात्मिक हालत बहुत खराब है। फिर भी, लोग बेफिक्र होकर अपने रोज़मर्रा के कामों में मस्त थे। आज भी कई लोग ऐसा रवैया दिखाते हैं। वे शायद कबूल करें कि हम कठिन समय में जी रहे हैं, लेकिन जब तक उन पर मुश्‍किलें नहीं आतीं, तब तक कोई जीए या मरे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता और वे आध्यात्मिक बातों में ज़रा-भी दिलचस्पी नहीं लेते।

इस्राएल देश, जो अंदर-ही-अंदर सड़ता जा रहा था

7. अगर इस्राएली परमेश्‍वर की चेतावनियों पर कान नहीं देते तो उनका क्या होता?

7 आमोस एक ऐसे देश की तसवीर पेश करता है जो बाहर से बहुत खूबसूरत और खुशहाल लगता है, मगर अंदर-ही-अंदर सड़ता जा रहा है। लोगों ने न तो परमेश्‍वर की चेतावनियों पर ध्यान दिया, न ही अपनी सोच दुरुस्त की, इसलिए यहोवा भी उन्हें दुश्‍मनों से नहीं बचानेवाला था। अश्‍शूरी आते और इस्राएलियों को उनके आलीशान हाथी-दांत के पलंगों से घसीटकर बंधुआई में ले जाते। और उनके ऐशो-आराम की ज़िंदगी वहीं खत्म हो जाती!

8. इस्राएल की आध्यात्मिक हालत कैसे इतनी खराब हो गयी?

8 इस्राएली उस मुकाम तक कैसे पहुँचे कि उनको नाश करना ज़रूरी हो गया? दरअसल इस हालत की शुरूआत सा.यु.पू. 997 से हुई थी। तब राजा सुलैमान की जगह उसका बेटा रहूबियाम राजा बना और इस्राएल के दस गोत्र, यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों से अलग हो गए। दस गोत्रवाले इस्राएल राज्य का पहला राजा, ‘नबात का पुत्र’ यारोबाम प्रथम था। (1 राजा 11:26) उसने अपनी प्रजा को यह कहकर मना लिया कि यहोवा की उपासना करने के लिए इतनी दूर यरूशलेम जाना उनके लिए बहुत मुश्‍किल होगा। लेकिन असल में, उसे अपने लोगों की परवाह नहीं थी। वह तो बस अपना स्वार्थ पूरा करना चाहता था। (1 राजा 12:26) यारोबाम को डर था कि अगर इस्राएली सालाना पर्वों में यहोवा की उपासना के लिए यरूशलेम के मंदिर में जाते रहे, तो एक वक्‍त आएगा जब वे इस्राएल के नहीं बल्कि यहूदा के वफादार बन जाएँगे। इससे पहले कि ऐसा हो, यारोबाम ने दान और बेतेल में सोने के दो बछड़ों की मूरतें खड़ी करवायीं। इस तरह बछड़े की उपासना, इस्राएल का राष्ट्रीय धर्म बन गया।—2 इतिहास 11:13-15.

9, 10. (क) राजा यारोबाम प्रथम ने कौन-से धार्मिक त्योहारों का इंतज़ाम किया? (ख) यारोबाम द्वितीय के दिनों में मनाए जानेवाले त्योहारों के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया क्या था?

9 यारोबाम ने इस नए धर्म को सच्चाई का जामा पहनाने की कोशिश की। उसने ऐसे धार्मिक त्योहार रखे, जो यरूशलेम में होनेवाले पर्वों से काफी मिलते-जुलते थे। पहले राजा 12:32 में हम पढ़ते हैं: “यारोबाम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन यहूदा के पर्व के समान एक पर्व ठहरा दिया, और वेदी पर बलि चढ़ाने लगा; इस रीति उस ने बेतेल में अपने बनाए हुए बछड़ों के लिये वेदी पर, बलि किया।”

10 यहोवा को ऐसे झूठे धार्मिक त्योहार कभी मंज़ूर नहीं थे। एक सदी के बाद भी, करीब सा.यु.पू. 844 के दौरान जब यारोबाम द्वितीय राजा बना तब आमोस के ज़रिए यहोवा ने साफ-साफ इस बात को ज़ाहिर किया। (आमोस 1:1) आमोस 5:21-24 के मुताबिक परमेश्‍वर ने कहा: “मैं तुम्हारे पर्वों से बैर रखता, और उन्हें निकम्मा जानता हूं, और तुम्हारी महासभाओं से मैं प्रसन्‍न नहीं। चाहे तुम मेरे लिये होमबलि और अन्‍नबलि चढ़ाओ, तौभी मैं प्रसन्‍न न हूंगा, और तुम्हारे पाले हुए पशुओं के मेलबलियों की ओर न ताकूंगा। अपने गीतों का कोलाहल मुझ से दूर करो; तुम्हारी सारंगियों का सुर मैं न सुनूंगा। परन्तु न्याय को नदी की नाईं, और धर्म महानद की नाईं बहने दो।”

हमारे दिनों से मिलता-जुलता

11, 12. प्राचीन इस्राएल और ईसाईजगत की उपासना में क्या समानताएँ देखी जा सकती हैं?

11 यह साफ है कि यहोवा ने इस्राएल के त्योहारों में भाग लेनेवालों के दिल जाँचे और उसने उनके त्योहारों और बलियों को ठुकरा दिया। आज भी यहोवा, ईसाईजगत में मनाए जानेवाले क्रिसमस और ईस्टर जैसे त्योहारों को कबूल नहीं करता, जिनकी शुरूआत झूठे धर्म से हुई है। यहोवा के उपासकों के लिए धार्मिकता और अधर्म के बीच कोई साझेदारी नहीं हो सकती, ना ही उजियाले और अंधियारे का कभी मेल हो सकता है।—2 कुरिन्थियों 6:14-16.

12 उपासना के मामले में, ईसाईजगत और बछड़े की पूजा करनेवाले इस्राएलियों में और भी कई समानताएँ हैं। ईसाईजगत के उपासना करने का तरीका साफ दिखाता है कि उसे परमेश्‍वर से सच्चा प्यार नहीं है, फिर भले ही मसीही होने का दावा करनेवाले कुछ लोग परमेश्‍वर के वचन को सच्चा मानते हों। अगर ईसाईजगत को सचमुच यहोवा से प्यार होता, तो वह परमेश्‍वर की उपासना “आत्मा और सच्चाई” से करने पर ज़ोर देता, क्योंकि यहोवा को ऐसी ही उपासना भाती है। (यूहन्‍ना 4:24) इतना ही नहीं, ईसाईजगत “न्याय को नदी की नाईं, और धर्म [को] महानद की नाईं बहने” नहीं देता। इसके बजाय वह नैतिकता के मामले में परमेश्‍वर की माँगों की गंभीरता को हलका करता जा रहा है। वह अपने बीच व्यभिचार और दूसरे घोर पापों को बरदाश्‍त करता है और इतना गिर चुका है कि समलिंगियों का ब्याह कराता है!

“भलाई से प्रीति रखो”

13. हमें आमोस 5:15 के शब्दों को क्यों मानना चाहिए?

13 जो लोग यहोवा के बताए तरीके से उसकी उपासना करना चाहते हैं, उनसे वह कहता है: “बुराई से बैर और भलाई से प्रीति रखो।” (आमोस 5:15) प्रीति और बैर, दिल से निकलनेवाली गहरी भावनाएँ हैं। मन या दिल तो धोखा देनेवाला है, इसलिए हमें इसकी जी-जान से हिफाज़त करनी चाहिए। (नीतिवचन 4:23; यिर्मयाह 17:9) अगर हम अपने दिल में गलत अभिलाषाएँ पनपने दें, तो हम बुराई से प्रीति और भलाई से बैर करने लगेंगे। और अगर इन अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए हम पाप करते जाएँ और पछतावा न दिखाएँ, तो हम यहोवा की सेवा चाहे कितने ही जोश से क्यों न करें हमें उसका अनुग्रह नहीं मिलेगा। इसलिए आइए हम परमेश्‍वर से प्रार्थना करें कि वह “बुराई से बैर और भलाई से प्रीति” रखने में हमारी मदद करे।

14, 15. (क) इस्राएल में कौन भलाई के काम करते थे मगर उनमें से कुछ के साथ कैसा सलूक किया गया? (ख) आज हम कैसे पूरे समय की सेवा करनेवालों का हौसला बढ़ा सकते हैं?

14 सभी इस्राएली ऐसे काम नहीं कर रहे थे, जो यहोवा की नज़र में बुरे थे। मसलन, होशे और आमोस ने “भलाई से प्रीति” रखी और उन्होंने नबी के तौर पर वफादारी से यहोवा की सेवा की। औरों ने कुछ वक्‍त तक नाज़ीरों की ज़िंदगी जीने की शपथ खायी। इस दौरान, वे अंगूर से बनी किसी भी चीज़ से, खासकर दाखमधु से दूर रहते थे। (गिनती 6:1-4) भलाई के काम करनेवाले इन लोगों की त्याग भरी ज़िंदगी देखकर बाकी इस्राएलियों ने क्या किया? इसका जवाब हमें चौंका देता है और दिखाता है कि यह देश किस हद तक गिर चुका था। आमोस 2:12 कहता है: “तुम ने नाज़ीरों को दाखमधु पिलाया, और नबियों को आज्ञा दी कि भविष्यद्वाणी न करें।”

15 नाज़ीरों और भविष्यवक्‍ताओं की वफादारी और अच्छी मिसाल देखकर इन इस्राएलियों को अपने किए पर शर्म आनी चाहिए थी और अपने तौर-तरीके बदलने चाहिए थे। मगर ऐसा करने के बजाय, वे परमेश्‍वर की महिमा करनेवाले वफादार जनों की हिम्मत तोड़ने पर तुले हुए थे। हम कभी-भी पायनियरों, सफरी ओवरसियरों, मिशनरियों या बेथेल परिवार के सदस्यों का, यह कहकर हौसला ना तोड़ें कि वे अपने पूरे समय की सेवा छोड़कर ऐसी ज़िंदगी जीएँ जो लोगों के मुताबिक एक आम ज़िंदगी है। इसके बजाय, हम उनको बढ़ावा दें कि वे इस अच्छे काम में लगे रहें!

16. इस्राएलियों की आध्यात्मिक हालत, क्यों आमोस के दिनों से ज़्यादा मूसा के दिनों में अच्छी थी?

16 आमोस के दिनों में हालाँकि कई इस्राएली धन-दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ों का मज़ा लूट रहे थे, मगर वे “परमेश्‍वर की दृष्टि में धनी नहीं” थे। (लूका 12:13-21) जब उनके पूर्वज 40 साल वीराने में थे, तो उनके पास खाने के लिए सिर्फ मन्‍ना था। वे खाने में ना तो पले हुए बैल का मज़ा लेते थे, ना ही हाथी-दांत के पलंगों पर पैर पसारे आराम करते थे। फिर भी उन तमाम सालों के बारे में मूसा ने कहा: “तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हारे हाथों के सब कामों के विषय तुम्हें आशीष देता आया है; . . . इन चालीस वर्षों में तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हारे संग संग रहा है; और तुम को कुछ घटी नहीं हुई।” (व्यवस्थाविवरण 2:7) जी हाँ, वीराने में इस्राएलियों की हर मुनासिब ज़रूरत पूरी की गयी। इससे भी बढ़कर, परमेश्‍वर ने उनकी हिफाज़त की और उन्हें परमेश्‍वर का प्यार और आशीष मिली!

17. यहोवा इस्राएलियों के बाप-दादों को वादा किए हुए देश में क्यों ले आया?

17 यहोवा ने आमोस के दिनों के इस्राएलियों को याद दिलाया कि वह उनके बाप-दादों को वादा किए हुए देश में लाया और देश में से उनके सारे दुश्‍मनों का सफाया करने में भी उनकी मदद की। (आमोस 2:9, 10) मगर किस वजह से यहोवा ने इस्राएलियों को मिस्र से छुड़ाकर वादा किए हुए देश में पहुँचाया था? क्या इसलिए कि वे ऐयाशी करें और अपने सिरजनहार को भूल जाएँ? नहीं! उसने ऐसा इसलिए किया ताकि वे आज़ाद और आध्यात्मिक तौर पर शुद्ध होकर यहोवा की उपासना करें। मगर दस गोत्रवाले इस्राएल के लोगों ने बुराई से नफरत और भलाई से प्यार नहीं किया। वे यहोवा को महिमा देने के बजाय गढ़ी हुई मूर्तियों को महिमा दे रहे थे। कितनी शर्मनाक बात!

यहोवा उनसे लेखा लेता है

18. यहोवा ने हमें आध्यात्मिक रूप से आज़ाद क्यों किया है?

18 परमेश्‍वर इस्राएलियों के घिनौने चालचलन को अनदेखा नहीं करनेवाला था। परमेश्‍वर ने साफ-साफ बता दिया कि वह क्या करने जा रहा है, जब उसने कहा: ‘तुम्हारे सारे अपराधों के लिए मैं तुमसे लेखा लूँगा।’ (आमोस 3:2, NW) ये शब्द हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि आज जब हमें मिस्र यानी इस दुष्ट संसार की गुलामी से छुड़ाया गया है तो हम अपनी आज़ादी का इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं। यहोवा ने हमें आध्यात्मिक रूप से इसलिए आज़ाद नहीं किया कि हम अपना स्वार्थ पूरा करने में लग जाएँ। बल्कि इसलिए कि हम आज़ाद लोगों की हैसियत से शुद्ध उपासना के ज़रिए दिल से यहोवा की महिमा कर सकें। परमेश्‍वर से मिली आज़ादी का हम जिस तरह इस्तेमाल करते हैं, उसका लेखा हममें से हरेक को देना होगा।—रोमियों 14:12.

19. आमोस 4:4, 5 के मुताबिक ज़्यादातर इस्राएली किस चीज़ से प्यार करने लगे थे?

19 आमोस का संदेश बड़ा ज़बरदस्त था मगर अफसोस कि ज़्यादातर इस्राएलियों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। आमोस 4:4, 5 में भविष्यवक्‍ता, आध्यात्मिक रूप से उनकी बीमार हालत को इन शब्दों में उजागर करता है: “बेतेल में आकर अपराध करो, और गिल्गाल में आकर बहुत से अपराध करो; . . . क्योंकि हे इस्राएलियो, ऐसा करना तुमको भावता है।” इस्राएलियों ने बुरी अभिलाषाओं को अपने अंदर पनपने दिया था। वे अपने दिलों की हिफाज़त करने से चूक गए थे। नतीजा यह हुआ कि ज़्यादातर लोग, बुराई से प्यार और भलाई से बैर करने लगे थे। बछड़े की उपासना करनेवाले ये इस्राएली इतने ढीठ हो चुके थे कि खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं थे। आखिरकार यहोवा ज़रूर उनसे लेखा लेता और उन्हें मौत की सज़ा सुनाता। मगर तब तक वे पाप करने से बाज़ नहीं आते!

20. आमोस 5:4 में बताए रास्ते पर एक इंसान कैसे चल सकता है?

20 उस ज़माने में, किसी भी इस्राएली के लिए यहोवा का वफादार रहना आसान नहीं था। आज भी सभी मसीहियों को पता है कि दुनिया से अलग नज़र आना कितना मुश्‍किल है। यह नदी की तेज़ धारा के खिलाफ तैरने जैसा है। मगर फिर भी परमेश्‍वर के लिए प्यार और उसे खुश करने की इच्छा ने कुछ इस्राएलियों को उभारा कि वे सच्ची उपासना करें। उन लोगों को यहोवा ने आमोस 5:4 में दर्ज़ यह प्यार-भरा न्यौता दिया: “मेरी खोज में लगो, तब जीवित रहोगे।” आज भी परमेश्‍वर उन पर दया करता है जो पश्‍चाताप दिखाते हैं और उसके वचन का सही-सही ज्ञान लेते और उसकी मरज़ी पूरी करने के ज़रिए उसे खोजते हैं। यह करना आसान नहीं है, मगर ऐसा करनेवालों को आखिर में अनंत जीवन मिलेगा।—यूहन्‍ना 17:3.

आध्यात्मिक अकाल के बावजूद खुशहाली

21. सच्ची उपासना न करनेवालों को किस अकाल का सामना करना पड़ता है?

21 सच्ची उपासना का साथ ना देनेवालों का क्या हश्र होगा? उन पर सबसे भयानक अकाल पड़ेगा—आध्यात्मिक अकाल! इस विश्‍व के सम्राट यहोवा ने कहा: “देखो, ऐसे दिन आते हैं, जब मैं इस देश में महंगी करूंगा; उस में न तो अन्‍न की भूख और न पानी की प्यास होगी, परन्तु यहोवा के वचनों के सुनने ही की भूख प्यास होगी।” (आमोस 8:11) आज ईसाईजगत ऐसी ही आध्यात्मिक भुखमरी के दर्दनाक दौर से गुज़र रहा है। मगर इसमें मौजूद नेकदिल लोग परमेश्‍वर के लोगों की आध्यात्मिक खुशहाली देख सकते हैं, इसलिए वे यहोवा के संगठन में चले आ रहे हैं। ईसाईजगत के और सच्चे मसीहियों के हालात में जो फर्क है, वह यहोवा के इन शब्दों में बखूबी देखा जा सकता है: “देखो, मेरे दास तो खाएंगे, पर तुम भूखे रहोगे; मेरे दास पीएंगे, पर तुम प्यासे रहोगे; मेरे दास आनन्द करेंगे, पर तुम लज्जित होगे।”—यशायाह 65:13.

22. हमारे पास खुश होने की क्या वजह है?

22 यहोवा के सेवक होने के नाते हमें जो आध्यात्मिक भोजन और आशीषें मिलती हैं, क्या हममें से हरेक उसकी कदर करता है? जब हम बाइबल और दूसरे मसीही साहित्य पढ़ते हैं, सभाओं, सम्मेलनों या अधिवेशनों में हाज़िर होते हैं, तो हमारा हर्षित मन वाकई हमें जयजयकार करने के लिए उकसाता है। हमें इस बात की खुशी है कि हमें परमेश्‍वर के वचन की, साथ ही ईश्‍वर-प्रेरणा से दी गयी आमोस की इस भविष्यवाणी की साफ समझ मिली है।

23. परमेश्‍वर की महिमा करनेवाले कैसी खुशी पाते हैं?

23 ऐसे सभी इंसान जो परमेश्‍वर से प्रेम करते और उसकी महिमा करना चाहते हैं, उनके लिए आमोस की भविष्यवाणी में आशा का संदेश है। हमारी मौजूदा माली हालत चाहे जो हो या दुःख-तकलीफों से भरी इस दुनिया में हम पर चाहे जैसी आज़माइशें आएँ, मगर फिर भी हमें परमेश्‍वर की आशीषें, और सबसे बढ़िया आध्यात्मिक भोजन मिल रहा है क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं। (नीतिवचन 10:22; मत्ती 24:45-47) इसलिए हमें परमेश्‍वर की महिमा करनी चाहिए जिसने सभी चीज़ें हमारे सुख के लिए बहुतायत में दी हैं! आइए हम यह दृढ़ फैसला करें कि हम सभी हमेशा-हमेशा तक दिल से उसका गुणगान करेंगे! और हमें यह बढ़िया सम्मान तभी मिल सकता है, जब हम दिलों को जाँचनेवाले यहोवा की खोज करते रहेंगे।

आप क्या जवाब देंगे?

• आमोस के दिनों में इस्राएल का माहौल कैसा था?

• दस गोत्रवाले इस्राएल राज्य की हालत आज हमारे दिनों में किससे मिलती है?

• आज कौन-सा अकाल पड़ा हुआ है, जिसके बारे में पहले से बताया गया था, मगर किन लोगों पर इसका असर नहीं होता?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीर]

हालाँकि कई इस्राएली ऐशो-आराम की ज़िंदगी जी रहे थे मगर आध्यात्मिक रूप से कंगाल थे

[पेज 23 पर तसवीर]

पूरे समय के सेवकों का हौसला बढ़ाइए कि वे अपने अच्छे काम में लगे रहें

[पेज 24, 25 पर तसवीर]

यहोवा के खुश लोगों में आध्यात्मिक अकाल नहीं है