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यहोवा हमारा सहायक है

यहोवा हमारा सहायक है

यहोवा हमारा सहायक है

“मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता है।”—भजन 121:2.

1, 2. (क) यह क्यों कहा जा सकता है कि हम सभी को कभी-न-कभी मदद की ज़रूरत पड़ती है? (ख) यहोवा किस तरह का सहायक है?

 हममें से ऐसा कौन है जिसे कभी दूसरों की मदद की ज़रूरत न पड़ती हो? ऐसा कोई नहीं होगा। हम सभी को कभी-न-कभी मदद की ज़रूरत आन पड़ती है, जैसे किसी मुश्‍किल समस्या का सामना करने, अपने अज़ीज़ की मौत का गम सहने या किसी बड़ी परीक्षा में धीरज धरने के लिए। ऐसे वक्‍त पर लोग अकसर अपने किसी दोस्त के पास जाते हैं जो उनका दर्द समझता हो। दोस्त को अपनी तकलीफ बताने से शायद हमारे दिल का बोझ हलका हो जाए। लेकिन वह पूरी तरह हमारी मदद नहीं कर पाता, क्योंकि आखिर वह भी एक इंसान है। और यह भी हो सकता है कि जब हम मुश्‍किल में होते हैं, तब दूसरे हमारी मदद करने की हालत में न हों।

2 लेकिन एक शख्स है जिसके पास हमारी मदद करने की बेहिसाब ताकत और साधन हैं। इतना ही नहीं, वह हमें यकीन दिलाता है कि हमें कभी नहीं त्यागेगा। यह वही शख्स है जिसकी पहचान कराते हुए भजनहार ने पूरे भरोसे के साथ कहा: “मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है।” (भजन 121:2) इस भजनहार को क्यों इतना पक्का यकीन था कि यहोवा उसकी मदद करेगा? जवाब के लिए, आइए भजन 121 की जाँच करें। इससे हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि हम भी यहोवा से मदद पाने का पूरा भरोसा क्यों रख सकते हैं।

वह शख्स जो मदद करने से कभी नहीं चूकता

3. भजनहार ने शायद किन पहाड़ों की तरफ अपनी आँखें लगायीं, और क्यों?

3 सबसे पहले भजनहार बताता है कि यहोवा इसलिए भरोसे के लायक है क्योंकि वह हर चीज़ का बनानेवाला है। वह कहता है: “मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा। मुझे सहायता कहां से मिलेगी? मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता है।” (भजन 121:1, 2) भजनहार ने किसी मामूली पर्वत पर अपनी आँखें नहीं लगायीं। जब ये शब्द लिखे गए थे, तब यहोवा का मंदिर यरूशलेम में था। वह शहर, यहूदा के ऊँचे पहाड़ों के ऊपर बसा हुआ था, और आध्यात्मिक अर्थ में यहोवा का निवासस्थान था। (भजन 135:21) भजनहार ने शायद यरूशलेम के उन पहाड़ों पर अपनी आँखें लगायीं, जहाँ यहोवा का मंदिर बनाया गया था। और इस तरह उसने पूरे भरोसे के साथ यहोवा से मदद माँगी। भजनहार को क्यों पक्का यकीन था कि यहोवा उसकी मदद कर सकता है? क्योंकि यहोवा “आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता है।” दूसरे शब्दों में, भजनहार यह कह रहा था कि ‘दुनिया की कोई भी ताकत सिरजनहार को मेरी मदद करने से नहीं रोक सकती क्योंकि वह सर्वशक्‍तिमान है!’—यशायाह 40:26.

4. भजनहार ने कैसे समझाया कि यहोवा हमेशा अपने लोगों की ज़रूरतों का खयाल रखता है, और इससे हमें क्यों सांत्वना मिलती है?

4 इसके बाद भजनहार ने समझाया कि यहोवा हमेशा अपने सेवकों की ज़रूरतों का खयाल रखता है: “वह तेरे पांव को टलने न देगा, तेरा रक्षक कभी न ऊंघेगा। सुन, इस्राएल का रक्षक, न ऊंघेगा और न सोएगा।” (भजन 121:3, 4) ऐसा कभी नहीं हो सकता कि जो परमेश्‍वर पर भरोसा रखते हैं, वह उनके “पांव को टलने” दे या उन्हें इस तरह गिर जाने दे कि वे दोबारा उठने न पाएँ। (नीतिवचन 24:16) यहोवा ऐसा क्यों नहीं होने देगा? क्योंकि वह उस चरवाहे की तरह है जो अपनी भेड़ों की रखवाली करने के लिए पूरी तरह जागा रहता है। इस बात से हमें कितनी सांत्वना मिलती है, है ना? यहोवा एक पल के लिए भी अपने लोगों की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ नहीं करेगा। वह दिन-रात उनकी रखवाली करता है।

5. यहोवा के बारे में ऐसा क्यों कहा गया है कि वह “दहिनी” ओर हमारी आड़ है?

5 भजनहार को यहोवा पर पूरा भरोसा था कि वह अपने लोगों का वफादार रहेगा और उनकी रक्षा करेगा। उसने लिखा: “यहोवा तेरा रक्षक है; यहोवा तेरी दहिनी ओर तेरी आड़ है। न तो दिन को धूप से, और न रात को चाँदनी से तेरी कुछ हानि होगी।” (भजन 121:5, 6) मध्य-पूर्वी देशों में जब एक मुसाफिर, किसी पेड़ की छाँव तले बैठता, तो उसे सूरज की तपन से राहत मिलती थी। उसी तरह, यहोवा मुसीबतों की झुलसती धूप से अपने लोगों को बचाने के लिए छाँव बनता है। ध्यान दीजिए कि यहोवा के बारे में बताया गया है कि वह हमारी “दहिनी” ओर आड़ है। पुराने ज़माने में युद्ध के वक्‍त, एक सैनिक के दाहिने हाथ को कुछ हद तक खतरा रहता था, क्योंकि ढाल उसके बाएँ हाथ में होती थी। ऐसे में उसकी हिफाज़त करने के लिए सैनिकों में से उसका कोई सच्चा दोस्त उसकी दाहिनी ओर आड़ बनकर खड़ा होता और वहीं से दुश्‍मनों से लड़ता था। यहोवा भी एक वफादार दोस्त की तरह मानो अपने उपासकों की दाहिनी ओर खड़ा रहता और हमेशा उनकी मदद करने को तैयार रहता है।

6, 7. (क) भजनहार हमें किस तरह यकीन दिलाता है कि यहोवा अपने लोगों की मदद करना कभी नहीं छोड़ेगा? (ख) हम भी भजनहार की तरह क्यों भरोसा रख सकते हैं?

6 क्या यहोवा कभी अपने लोगों की मदद करना छोड़ देगा? ऐसा हम कभी सोच भी नहीं सकते। भजनहार ने आखिर में कहा: “यहोवा सारी विपत्ति से तेरी रक्षा करेगा; यह तेरे प्राण की रक्षा करेगा। यहोवा तेरे आने जाने में तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा।” (भजन 121:7, 8) ध्यान दीजिए कि भजनहार ने पहले आयत 5 में मौजूदा वक्‍त के बारे में कहा था: “यहोवा तेरा रक्षक है।” फिर आयत 7 और 8 में उसने भविष्य के बारे में लिखा: “यहोवा . . . तेरी रक्षा करेगा।” इस तरह सच्चे उपासकों को यकीन दिलाया गया है कि यहोवा भविष्य में भी उनकी मदद करता रहेगा। वे चाहे जहाँ भी रहें और उन पर चाहे जो भी मुसीबत आए, यहोवा उनकी मदद करने के लिए हमेशा मौजूद रहेगा। (सभी तिरछे टाइप हमारे।)—नीतिवचन 12:21.

7 जी हाँ, भजन 121 के लेखक को पूरा भरोसा था कि जिस तरह एक भला चरवाहा हरदम जागता रहता और अपनी भेड़ों की कोमलता से रखवाली करता है, उसी तरह सर्वशक्‍तिमान सिरजनहार यहोवा प्यार से अपने सेवकों की देखभाल करता है। भजनहार की तरह हम भी पूरा-पूरा भरोसा रख सकते हैं, क्योंकि यहोवा कभी बदलता नहीं। (मलाकी 3:6) क्या इसका यह मतलब है कि यहोवा हम पर कोई आँच नहीं आने देगा? ऐसी बात नहीं है। लेकिन जब तक हम यहोवा को अपना सहायक मानकर चलेंगे, तब तक वह हमें उन सभी खतरों से बचाएगा जिनसे हमें आध्यात्मिक नुकसान हो सकता है। अब हमारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है: ‘यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है?’ आइए ऐसे चार तरीकों की जाँच करें जिनसे वह हमारी मदद करता है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि यहोवा ने बाइबल के ज़माने में अपने सेवकों की कैसे मदद की थी। और अगले लेख में हम देखेंगे कि आज वह अपने लोगों की कैसे मदद करता है।

स्वर्गदूतों से मदद

8. यह क्यों ताज्जुब की बात नहीं कि स्वर्गदूत, परमेश्‍वर की सेवा करनेवाले इंसानों में गहरी दिलचस्पी रखते हैं?

8 यहोवा के लाखों-लाख स्वर्गदूत उसकी कमान के अधीन सेवा कर रहे हैं। (दानिय्येल 7:9, 10) ये आत्मिक पुत्र वफादारी से यहोवा की मरज़ी पूरी करते हैं। (भजन 103:20) उन्हें अच्छी तरह पता है कि यहोवा ऐसे इंसानों से बेहद प्यार करता है जो उसकी सेवा करते हैं, और वह उनकी मदद करना चाहता है। इसलिए ताज्जुब नहीं कि स्वर्गदूत परमेश्‍वर के सेवकों में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। (लूका 15:10) यकीनन, स्वर्गदूतों को ऐसे वक्‍त पर बड़ी खुशी होती होगी जब यहोवा इंसानों की मदद करने के लिए उनका इस्तेमाल करता है। पुराने ज़माने में यहोवा ने अपने सेवकों की मदद करने के लिए स्वर्गदूतों का किन तरीकों से इस्तेमाल किया था?

9. एक मिसाल देकर समझाइए कि परमेश्‍वर ने किस तरह स्वर्गदूतों को वफादार इंसानों की रक्षा करने का अधिकार और ताकत दी थी।

9 परमेश्‍वर ने स्वर्गदूतों को इंसानों की रक्षा करने और उन्हें मुसीबत से बचाने का अधिकार और ताकत दी है। मसलन, दो स्वर्गदूतों ने लूत और उसकी बेटियों को सदोम और अमोरा के विनाश से बचने में मदद दी। (उत्पत्ति 19:1, 15-17) एक अकेले स्वर्गदूत ने उन 1,85,000 अश्‍शूरी सैनिकों को मार गिराया जो यरूशलेम को घेरे हुए थे। (2 राजा 19:35) जब दानिय्येल को शेरों की माँद में फिंकवा दिया गया, तो “परमेश्‍वर ने अपना दूत भेजकर सिंहों के मुंह को . . . बन्द कर रखा।” (दानिय्येल 6:21, 22) एक स्वर्गदूत ने प्रेरित पतरस को जेल से छुड़ाया। (प्रेरितों 12:6-11) बाइबल में ऐसे और भी कई वाकये दर्ज़ हैं जिनमें स्वर्गदूतों ने इंसानों की मदद की थी। ये सारी मिसालें भजन 34:7 में लिखी इस बात को पुख्ता करती हैं: “यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है।”

10. यहोवा ने दानिय्येल नबी की हिम्मत बँधाने के लिए एक स्वर्गदूत का कैसे इस्तेमाल किया?

10 कुछेक मौकों पर यहोवा ने वफादार इंसानों का हौसला बढ़ाने और उन्हें मज़बूत करने के लिए स्वर्गदूत इस्तेमाल किए। इसकी एक मिसाल दानिय्येल के अध्याय 10 में दर्ज़ है जो हमारे दिल को छू जाती है। यह तब की बात है जब दानिय्येल शायद करीब 100 साल का हो गया था। वह बहुत मायूस था, शायद इसलिए कि यरूशलेम की हालत बहुत खराब थी और मंदिर को दोबारा बनाने के काम में देर हो रही थी। इतना ही नहीं, जब उसे एक भयानक दर्शन मिला तो वह और भी परेशान हो उठा। (दानिय्येल 10:2, 3, 8) ऐसे में परमेश्‍वर ने प्यार से उसकी हिम्मत बँधाने के लिए एक स्वर्गदूत भेजा। स्वर्गदूत ने कई बार, दानिय्येल को ध्यान दिलाया कि वह परमेश्‍वर की नज़रों में “अति प्रिय” है। नतीजा क्या हुआ? इस बुज़ुर्ग नबी ने स्वर्गदूत से कहा: “तू ने मेरा हियाव बन्धाया है।”—दानिय्येल 10:11, 19.

11. परमेश्‍वर ने प्रचार काम में निर्देश देने के लिए स्वर्गदूतों का जिस तरह इस्तेमाल किया, उसकी एक मिसाल क्या है?

11 यहोवा ने सुसमाचार के प्रचार काम में निर्देश देने के लिए भी स्वर्गदूत इस्तेमाल किए। एक स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस को निर्देश दिया कि वह एक कूशी खोजे के पास जाकर मसीह का प्रचार करे। नतीजा यह हुआ कि उस खोजे ने सच्चाई कबूल करके बपतिस्मा लिया। (प्रेरितों 8:26, 27, 36, 38) इस घटना के कुछ ही समय बाद, परमेश्‍वर ने अपनी यह मरज़ी ज़ाहिर की कि खतनारहित गैर-यहूदियों को भी खुशखबरी सुनायी जाए। परमेश्‍वर का भय माननेवाले एक गैर-यहूदी पुरुष, कुरनेलियुस को दर्शन में एक स्वर्गदूत ने यह निर्देश दिया कि वह प्रेरित पतरस को अपने यहाँ बुला भेजे। जब कुरनेलियुस के दूतों ने पतरस को पा लिया, तो उन्होंने कहा: “कुरनेलियुस . . . ने एक पवित्र स्वर्गदूत से यह चितावनी पाई है, कि तुझे अपने घर बुलाकर तुझ से वचन सुने।” पतरस ने कुरनेलियुस की गुज़ारिश मानी और इस तरह पहली बार खतनारहित गैर-यहूदी, मसीही कलीसिया का हिस्सा बने। (प्रेरितों 10:22, 44-48) ज़रा सोचिए, अगर आपको पता चले कि किसी नेकदिल इंसान से मुलाकात करने का निर्देश आपको एक स्वर्गदूत ने दिया था, तो आप कैसा महसूस करेंगे!

पवित्र आत्मा के ज़रिए मदद

12, 13. (क) यीशु के प्रेरित क्यों पक्का यकीन रख सकते थे कि पवित्र आत्मा उनकी मदद कर सकती है? (ख) पवित्र आत्मा ने पहली सदी के मसीहियों को कैसे ताकत दी?

12 यीशु ने अपनी मौत से कुछ ही समय पहले, प्रेरितों को यकीन दिलाया कि उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ा जाएगा। पिता उन्हें एक “सहायक अर्थात्‌ पवित्र आत्मा” देगा। (यूहन्‍ना 14:26) प्रेरितों के पास यह मानने के लिए ठोस सबूत थे कि पवित्र आत्मा उनकी मदद कर सकती है। परमेश्‍वर की प्रेरणा से शास्त्र में ऐसी ढेरों घटनाएँ दर्ज़ की गयी हैं, जिनसे वे समझ सकते थे कि यहोवा ने अपने लोगों की मदद करने के लिए विश्‍व की सबसे ताकतवर शक्‍ति, पवित्र आत्मा का कैसे इस्तेमाल किया था।

13 कई मौकों पर, पवित्र आत्मा के ज़रिए इंसानों को यहोवा की मरज़ी पूरी करने का अधिकार और ताकत दी गयी थी। पवित्र आत्मा ने न्यायियों को ऐसी ताकत दी कि वे इस्राएल को दुश्‍मनों के चंगुल से छुड़ा सके। (न्यायियों 3:9, 10; 6:34) इसी आत्मा ने पहली सदी के मसीहियों को हर तरह के विरोध के बावजूद निडरता से प्रचार करते रहने में मदद दी। (प्रेरितों 1:8; 4:31) उन्हें सेवा में मिली कामयाबी से यह अच्छी तरह साबित हो गया कि उन पर पवित्र आत्मा काम कर रही थी। पवित्र आत्मा की मदद के बगैर ये “अनपढ़ और साधारण” लोग भला राज्य का संदेश सारी दुनिया में कैसे फैला सकते थे?—प्रेरितों 4:13; कुलुस्सियों 1:23.

14. यहोवा ने अपने लोगों की समझ बढ़ाने के लिए पवित्र आत्मा का कैसे इस्तेमाल किया?

14 यहोवा ने अपने लोगों को ज़्यादा समझ देने के लिए भी अपनी पवित्र आत्मा इस्तेमाल की। इस आत्मा की मदद से, यूसुफ फिरौन के उन सपनों का मतलब समझा सका जो दरअसल भविष्यवाणियाँ थे। (उत्पत्ति 41:16, 38, 39) यहोवा ने अपनी आत्मा का इस्तेमाल करके नम्र लोगों पर अपने मकसद ज़ाहिर किए, जबकि घमंडी लोगों से यह जानकारी छिपाए रखी। (मत्ती 11:25) इसीलिए “परमेश्‍वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये” जो कुछ देने का इंतज़ाम किया था, उसके बारे में प्रेरित पौलुस कहता है: “परमेश्‍वर ने उन को अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया।” (1 कुरिन्थियों 2:7-10) सिर्फ पवित्र आत्मा की मदद से ही एक इंसान सही मायनों में परमेश्‍वर की मरज़ी जान सकता है।

परमेश्‍वर के वचन से मदद

15, 16. यहोशू को बुद्धिमानी से काम लेने के लिए क्या करना था?

15 यहोवा की प्रेरणा से लिखा गया वचन ‘उपदेश देने के लिये लाभदायक’ है और यह परमेश्‍वर के सेवकों को ‘सिद्ध बनने और हर एक भले काम के लिये तत्पर होने’ के काबिल बनाता है। (2 तीमुथियुस 3:16, 17) बाइबल में दर्ज़ ढेरों मिसालें दिखाती हैं कि पुराने ज़माने में परमेश्‍वर के सेवकों को उसके वचन में दी गयी जानकारी से कैसे मदद मिली थी।

16 परमेश्‍वर के वचन ने उसके उपासकों को सही मार्गदर्शन पाने में मदद दी थी। जब यहोशू को इस्राएलियों की अगुवाई करने का ज़िम्मा सौंपा गया, तब उसे यह बताया गया: “व्यवस्था की यह पुस्तक [जिसे मूसा ने लिखा था] तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।” ध्यान दीजिए कि परमेश्‍वर ने यहोशू से यह वादा नहीं किया कि वह कोई चमत्कार करके उसके दिमाग को बुद्धि से भर देगा। इसके बजाय, उसने यहोशू को बताया कि अगर वह ‘व्यवस्था की पुस्तक’ पढ़े और उस पर मनन करे, तो बुद्धिमानी से काम कर पाएगा।—यहोशू 1:8; भजन 1:1-3.

17. दानिय्येल और राजा योशिय्याह, दोनों को शास्त्र के उन हिस्सों से कैसे फायदा हुआ जो उस वक्‍त उपलब्ध थे?

17 परमेश्‍वर ने अपने लिखित वचन के ज़रिए अपनी मरज़ी और अपना मकसद भी ज़ाहिर किया है। मसलन, दानिय्येल ने यिर्मयाह के लेखनों को ध्यान से पढ़कर समझा कि यरूशलेम कब तक उजाड़ पड़ा रहेगा। (यिर्मयाह 25:11; दानिय्येल 9:2) और यह भी गौर कीजिए कि यहूदा के राजा योशिय्याह के दिनों में क्या हुआ था। उस समय तक पूरी इस्राएल जाति यहोवा से दूर जा चुकी थी, और ऐसा लगता है कि उसके राजा न तो अपने लिए व्यवस्था की नकल बनाते थे और ना ही उस पर चलते थे। (व्यवस्थाविवरण 17:18-20) लेकिन मंदिर की मरम्मत के वक्‍त “व्यवस्था की पुस्तक” पायी गयी, जिसे शायद मूसा ने खुद लिखा था। मुमकिन है कि यह व्यवस्था का मूल पाठ था, जिसकी लिखाई पूरी हुए करीब 800 साल बीत चुके थे। जब योशिय्याह को यह किताब पढ़कर सुनायी गयी, तो उसे एहसास हुआ कि इस्राएल जाति यहोवा के मार्ग से कितनी भटक चुकी थी। फिर राजा ने व्यवस्था में लिखी बातों के मुताबिक काम करने के लिए सख्त कदम उठाए। (2 राजा 22:8; 23:1-7) क्या इन मिसालों से यह साफ ज़ाहिर नहीं होता कि पुराने ज़माने में पवित्र शास्त्र के जो हिस्से उपलब्ध थे, उनसे परमेश्‍वर के लोगों को काफी फायदा हुआ?

संगी विश्‍वासियों के ज़रिए मदद

18. हम क्यों कह सकते हैं कि जब भी सच्चे उपासक एक-दूसरे की मदद करते हैं, तो इसके पीछे यहोवा का हाथ होता है?

18 यहोवा कभी-कभी हमारे संगी विश्‍वासियों के ज़रिए हमारी मदद करता है। जब भी सच्चे उपासक एक-दूसरे की मदद करते हैं, तो इसके पीछे असल में यहोवा का हाथ होता है। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? इसके दो कारण हैं। पहला, एक-दूसरे की मदद करने में परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा काम करती है। जो इस आत्मा के निर्देश पर चलते हैं, उनमें यह अच्छे फल पैदा करती है, जिनमें प्रेम और भलाई का गुण भी शामिल है। (गलतियों 5:22, 23) इसलिए जब परमेश्‍वर का एक सेवक, आगे बढ़कर दूसरे सेवक की मदद करता है, तो यह इस बात का सबूत होता है कि यहोवा की आत्मा उस पर काम कर रही है। दूसरा, हमें परमेश्‍वर के स्वरूप के अनुसार बनाया गया है। (उत्पत्ति 1:26) इसका मतलब यह है कि हमारे अंदर उसके जैसे गुण दिखाने की काबिलीयत है, जिसमें कृपा और करुणा भी शामिल हैं। इसलिए जब भी यहोवा का एक सेवक, दूसरे सेवक की मदद करता है, तो यह मदद दरअसल यहोवा की ओर से होती है, क्योंकि वह यहोवा के गुण दिखा रहा होता है।

19. बाइबल में दर्ज़ जानकारी के मुताबिक, यहोवा ने अपने लोगों की मदद करने के लिए संगी विश्‍वासियों का कैसे इस्तेमाल किया?

19 बाइबल के ज़माने में यहोवा ने अपने लोगों की मदद करने के लिए संगी विश्‍वासियों का कैसे इस्तेमाल किया? अकसर यहोवा ने अपने किसी सेवक को सलाह देने के लिए दूसरे सेवक को उभारा। मसलन, यिर्मयाह का इस्तेमाल करके उसने बारूक को ऐसी सलाह दी जिससे उसकी जान बची। (यिर्मयाह 45:1-5) जब-जब यहोवा के उपासकों को पैसे या खाने-पीने की चीज़ों के लाले पड़े तो उनकी मदद करने के लिए संगी विश्‍वासियों को उकसाया गया। मसलन, यरूशलेम के ज़रूरतमंद भाइयों की मदद करने के लिए मकिदुनिया और अखाया के मसीहियों ने फौरन कदम उठाया था। इस तरह जब उदारता से दान देकर यरूशलेम के भाइयों की मदद की गयी, तो उन्होंने “परमेश्‍वर का धन्यवाद” किया, जो कि प्रेरित पौलुस के मुताबिक बिलकुल सही था।—2 कुरिन्थियों 9:11.

20, 21. किन हालात में प्रेरित पौलुस को रोम के भाइयों से हिम्मत मिली थी?

20 बाइबल के ऐसे वाकये खासकर हमारे दिल को छू जाते हैं जिनमें यहोवा के सेवकों ने एक-दूसरे को मज़बूत किया और उनका हौसला बढ़ाया था। इसका एक उदाहरण लीजिए, जो प्रेरित पौलुस के बारे में है। जब उसे बंदी बनाकर रोम ले जाया जा रहा था, तब उसने ‘एपीएन मार्ग’ नाम के रोमी राजमार्ग से सफर किया। इस सफर का आखिरी पड़ाव बहुत तकलीफदेह था, क्योंकि यहाँ दलदलवाले निचले इलाके से गुज़रना पड़ता था। * रोम की कलीसिया के भाई जानते थे कि पौलुस वहाँ आ रहा है। वे अब क्या करते? क्या वे अपने घरों में आराम से बैठकर पौलुस के शहर पहुँचने का इंतज़ार करते और फिर उससे मिलने जाते?

21 बाइबल का लेखक, लूका भी पौलुस के साथ इस सफर में था। उसने बताया कि क्या हुआ: “वहां [रोम] से भाई हमारा समाचार सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन-सराए तक हमारी भेंट करने को निकल आए।” क्या आप इस घटना की मन में तसवीर बना सकते हैं? जब भाइयों को खबर मिली कि पौलुस रोम आ रहा है, तो उनका एक झुंड उससे मिलने के लिए रोम से निकल पड़ा। कुछ भाई अप्पियुस के चौक में इंतज़ार कर रहे थे। यह मुसाफिरों के आराम फरमाने की एक जानी-मानी जगह थी जो रोम से करीब 74 किलोमीटर दूर थी। बाकी भाई तीन-सराए नाम की ठहरने की जगह पर इंतज़ार कर रहे थे, जो शहर से करीब 58 किलोमीटर दूर थी। उन्हें देखकर पौलुस को कैसा लगा? लूका कहता है: ‘उन्हें देखकर पौलुस ने परमेश्‍वर का धन्यवाद किया और ढाढ़स बान्धा।’ (प्रेरितों 28:15) ज़रा सोचिए, उन भाइयों को देखते ही पौलुस को कितनी हिम्मत और सांत्वना मिली जो काफी तकलीफ उठाकर इतनी दूर से आए थे! और भाइयों से मिली इस मदद के लिए पौलुस ने किसका धन्यवाद किया? यहोवा परमेश्‍वर का, जिसने इस मदद का इंतज़ाम किया था।

22. सन्‌ 2005 के लिए हमारा सालाना वचन क्या है, और अगले लेख में किस बारे में चर्चा की जाएगी?

22 यहोवा के बारे में उसकी प्रेरणा से दर्ज़ किया गया रिकॉर्ड साफ दिखाता है कि वह हमारा सहायक है। मदद करने में उसका कोई सानी नहीं। इसलिए यहोवा के साक्षियों ने सन्‌ 2005 के लिए बिलकुल सही सालाना वचन चुना है। वह है, भजन 121:2: “मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है।” अब सवाल यह है कि आज यहोवा कैसे हमारी सहायता करता है? इस बारे में अगले लेख में चर्चा की जाएगी?

[फुटनोट]

^ रोमी कवि होरस (सा.यु.पू. 65-8) ने भी यह सफर तय किया था, और उसने बताया कि सफर के इस दौर में कैसी मुश्‍किलें आती थीं। होरस ने कहा कि अप्पियुस का चौक “नाववालों और कंजूस सरायवालों से खचाखच भरा होता था।” उसने शिकायत की कि वहाँ “मच्छरों और मेंढकों” की भरमार थी और पानी “बहुत ही गंदा” होता था।

क्या आपको याद है?

इन इंतज़ामों के ज़रिए यहोवा ने किन तरीकों से मदद की?

• स्वर्गदूतों के ज़रिए?

• अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए?

• अपने प्रेरित वचन से?

• संगी विश्‍वासियों के ज़रिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

सन्‌ 2005 का सालाना वचन यह होगा: “मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है।”—भजन 121:2.

[पेज 16 पर तसवीर]

रोम के भाइयों से मिली मदद के लिए पौलुस ने परमेश्‍वर का धन्यवाद किया