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आज “बहुमूल्य मोती” के लिए कड़ी मेहनत करना

आज “बहुमूल्य मोती” के लिए कड़ी मेहनत करना

आज “बहुमूल्य मोती” के लिए कड़ी मेहनत करना

“राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो।”मत्ती 24:14.

1, 2. (क) परमेश्‍वर के राज्य के बारे में, यीशु के दिनों के यहूदियों का क्या खयाल था? (ख) यीशु ने राज्य के बारे में सही समझ देने के लिए क्या किया, और नतीजा क्या हुआ?

 समय के जिस दौर में यीशु धरती पर आया, उस वक्‍त यहूदियों के बीच परमेश्‍वर का राज्य एक दिलचस्प विषय था। (मत्ती 3:1, 2; 4:23-25; यूहन्‍ना 1:49) मगर शुरू-शुरू में ज़्यादातर यहूदियों को इस बारे में पूरी समझ नहीं थी कि राज्य कितने बड़े पैमाने पर और कैसे हुकूमत करेगा; ना ही उन्होंने समझा कि राज्य एक स्वर्गीय सरकार होगा। (यूहन्‍ना 3:1-5) यहाँ तक कि यीशु के कुछ चेले भी ठीक-ठीक नहीं जानते थे कि परमेश्‍वर का राज्य क्या है और मसीह के साथी राजा बनने की आशीष पाने के लिए उन्हें क्या करना होगा।—मत्ती 20:20-22; लूका 19:11; प्रेरितों 1:6.

2 समय के गुज़रते यीशु ने धीरज से अपने चेलों को राज्य के बारे में कई बातें सिखायीं। उसने बहुमूल्य मोती का वह दृष्टांत भी बताया जिस पर पिछले लेख में चर्चा की गयी थी। इस तरह कई सीख देकर यीशु ने चेलों को एहसास दिलाया कि स्वर्ग के राज्य के लिए उन्हें जी-जान से मेहनत करनी होगी। (मत्ती 6:33; 13:45, 46; लूका 13:23, 24) यीशु की बातों ने चेलों के दिल पर ज़रूर गहरा असर किया होगा। ऐसा हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि उन्होंने बिना देर किए पूरी निडरता से और दिन-रात एक करके राज्य की खुशखबरी पृथ्वी की छोर तक पहुँचायी। इसके ढेरों सबूत हमें प्रेरितों के काम की किताब से मिलते हैं।—प्रेरितों 1:8; कुलुस्सियों 1:23.

3. यीशु ने हमारे ज़माने का ज़िक्र करते हुए राज्य के बारे में क्या कहा?

3 मगर आज के बारे में क्या? आज भी करोड़ों लोगों तक यह संदेश पहुँचाया जा रहा है कि वे राज्य के अधीन धरती पर फिरदौस में आशीषें पाने की आशा रख सकते हैं। यीशु ने “जगत के अन्त” के बारे में अपनी महान भविष्यवाणी में यह साफ-साफ कहा था: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती 24:3, 14; मरकुस 13:10) उसने यह भी समझाया कि इस बड़े काम को पूरा करने में पहाड़ समान रुकावटों और चुनौतियों का, यहाँ तक कि ज़ुल्मों का भी सामना करना पड़ेगा। मगर उसने हिम्मत दिलाते हुए कहा: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती 24:9-13) यह सब करने के लिए बिलकुल वैसी ही त्याग की भावना और अटल इरादे की ज़रूरत है, जैसा यीशु के दृष्टांत के सौदागर में था। क्या आज ऐसे लोग हैं जो मज़बूत विश्‍वास और जोश के साथ राज्य की खातिर काम करते हों?

सच्चाई पा लेने की खुशी

4. आज राज्य की सच्चाई का लोगों पर कैसा असर हो रहा है?

4 यीशु के दृष्टांत में सौदागर को जब मनचाहे “बहुमूल्य मोती” का पता चला, तो वह फूला न समाया। वह इस कदर उमंग से भर गया कि मोती को पाने के लिए उससे जो कुछ बन पड़ा उसने किया। (इब्रानियों 12:1) उसी तरह, आज जब लोग परमेश्‍वर और उसके राज्य के बारे में सच्चाई जान लेते हैं तो वे उसकी तरफ खिंचे चले आते हैं और उनमें जोश भर आता है। इससे हमें भाई ए. एच. मैकमिलन की कही बात याद आती है। इस भाई ने आगे बढ़ता विश्‍वास (अँग्रेज़ी) किताब में बताया कि उन्होंने परमेश्‍वर को और इंसानों के वास्ते ठहराए उसके मकसद को जानने के लिए कैसी खोजबीन की थी। उन्होंने कहा: “जो मैंने पा लिया है, उसे आज भी हर साल हज़ारों लोग पा रहे हैं। और वे भी मेरे और आपके जैसे लोग हैं। वे दुनिया के सभी देशों, जातियों, अलग-अलग पेशों से आए हैं और हर उम्र के हैं। सच्चाई किसी तरह का भेद-भाव नहीं रखती। यह हर तरह के लोगों को अपनी तरफ खींचती है।”

5. सन्‌ 2004 के सेवा वर्ष की रिपोर्ट से कौन-से बढ़िया नतीजे देखने को मिलते हैं?

5 भाई मैकमिलन के उन शब्दों की सच्चाई आज भी साफ देखी जा सकती है। साल-दर-साल लाखों नेकदिल लोगों पर राज्य की खुशखबरी का इतना बढ़िया असर हो रहा है कि वे अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करके उसकी मरज़ी पूरी कर रहे हैं। सन्‌ 2004 के सेवा वर्ष में भी ऐसा ही हुआ, जो सितंबर 2003 से अगस्त 2004 तक जारी रहा। इन 12 महीनों के दौरान 2,62,416 लोगों ने पानी में बपतिस्मा लेकर यहोवा को किए अपने समर्पण का सबूत दिया। ऐसा 235 देशों में हुआ, जहाँ यहोवा के साक्षी हर हफ्ते 60,85,387 बाइबल अध्ययन चलाते हैं। इस तरह वे कई जातियों, कबीलों और भाषाओं के लोगों को बाइबल की जीवनदायी सच्चाई सिखाते हैं, फिर चाहे इन लोगों का पेशा और समाज में दर्जा जो भी हो।—प्रकाशितवाक्य 7:9.

6. बीते सालों में लगातार जो तरक्की हुई है, उसके पीछे क्या कारण हैं?

6 यह सब कैसे मुमकिन हुआ है? इसमें शक नहीं कि सही मन रखनेवाले इन लोगों को यहोवा ने ही अपनी तरफ खींचा है। (यूहन्‍ना 6:65; प्रेरितों 13:48) लेकिन हम उन प्रचारकों की त्याग की भावना और कड़ी मेहनत को भी नहीं भूल सकते जिन्होंने राज्य की खातिर खुद को पूरी तरह लगा दिया है। भाई मैकमिलन ने 79 साल की उम्र में लिखा: “जब मुझे पहली बार पता चला कि मौत के कगार पर खड़ी इस रोगी मानवजाति के लिए उज्ज्वल भविष्य के वादे किए गए हैं, तब से लेकर आज तक बाइबल के उस संदेश पर मेरी आशा ज़रा भी धुँधली नहीं हुई। जब मैंने पहली बार इसे जाना, तभी मैंने ठान लिया था कि बाइबल जो सिखाती है, उसे जानने की मैं और भी कोशिश करूँगा, ताकि मैं उन लोगों की मदद करने के काबिल बनूँ जो सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा के बारे में और इंसानों के लिए उसके भले मकसद के बारे में जानना चाहते हैं।”

7. कौन-सा अनुभव दिखाता है कि बाइबल की सच्चाई पाने पर लोगों में खुशी और जोश भर आता है?

7 आज भी यहोवा के सेवकों में ऐसा ही जोश देखने को मिलता है। मसलन, ऑस्ट्रिया के वीएना शहर की डान्येला को लीजिए। उसने कहा: “बचपन से परमेश्‍वर मेरा जिगरी दोस्त रहा है। मैं शुरू से ही उसका नाम जानना चाहती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि सिर्फ ‘परमेश्‍वर’ कहने से उसके साथ करीबी रिश्‍ता नहीं जोड़ा जा सकता। लेकिन 17 साल की उम्र में कहीं जाकर मेरी मुलाकात यहोवा के साक्षियों से हुई, जो मेरे घर आए थे। उन्होंने परमेश्‍वर के बारे में मुझे वो सारी बातें समझायी जो मैं जानना चाहती थी। आखिकार मुझे सच्चाई मिल गयी और उस वक्‍त मुझे इतनी खुशी हुई कि क्या बताऊँ! मैं इतनी उमंग से भरी थी कि मैं हर किसी को प्रचार करने लगी।” मगर इस जोश पर उसके स्कूल के साथी उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। डान्येला आगे कहती है: “लेकिन मैं खुश भी थी और हैरान भी, क्योंकि उनका मज़ाक उड़ाना देखकर मुझे ऐसा लगा मानो मैं बाइबल की एक भविष्यवाणी पूरी होते देख रही हूँ। मैंने सीखा कि यीशु ने कहा था, उसके चेले उसके नाम की खातिर नफरत और ज़ुल्म का शिकार होंगे।” कुछ ही समय बाद, डान्येला ने अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया, बपतिस्मा लिया और मिशनरी सेवा का लक्ष्य हासिल करने में जुट गयी। शादी के बाद, डान्येला अपने पति हेलमूट के साथ वीएना में रहनेवाले अफ्रीकी, चीनी, फिलिपीनो और भारतीय लोगों को प्रचार करने लगी। आज डान्येला और हेलमूट दक्षिण-पश्‍चिमी अफ्रीका में मिशनरी सेवा कर रहे हैं।

वे हार नहीं मानते

8. एक तरीका क्या है जिससे कई लोगों ने परमेश्‍वर के लिए प्यार और राज्य के लिए अपनी वफादारी दिखायी है, जिससे उन्हें आशीषें मिली हैं?

8 सचमुच, मिशनरी सेवा उन कई तरीकों में से एक है जिनसे आज यहोवा के लोग उसके लिए प्यार और उसके राज्य के लिए अपनी वफादारी का सबूत देते हैं। यीशु के दृष्टांत के सौदागर की तरह, जो लोग मिशनरी काम हाथ में लेते हैं, वे राज्य की खातिर दूर-दूर तक सफर करने को तैयार रहते हैं। इन मिशनरियों को राज्य की खुशखबरी की तलाश नहीं, बल्कि वे तो धरती के दूर-दराज़ इलाकों तक जाकर लोगों को खुशखबरी दे रहे हैं। साथ ही, वे लोगों को यीशु मसीह के चेले बनने के लिए तालीम और मदद दे रहे हैं। (मत्ती 28:19, 20) कई देशों में उन्हें बड़ी-बड़ी मुश्‍किलों से गुज़रना पड़ता है। मगर ऐसे हालात में धीरज धरने से उन्हें ढेरों आशीषें भी मिलती हैं।

9, 10. मध्य अफ्रीकी गणराज्य जैसी दूर-दराज़ जगहों में मिशनरियों को किस तरह के रोमांचक अनुभव मिल रहे हैं?

9 इसका एक उदाहरण है, मध्य अफ्रीकी गणराज्य। यहाँ पिछले साल मसीह की मौत के स्मारक में 16,184 लोग हाज़िर हुए थे, यानी यहाँ के राज्य प्रचारकों की गिनती से करीब सात गुना ज़्यादा लोग। इस देश के कई हिस्सों में बिजली की सहूलियत नहीं है, इसलिए लोग आम तौर पर अपने रोज़मर्रा के काम घर से बाहर किसी पेड़ की छाँव में करते हैं। यह देखकर ताज्जुब नहीं होता कि मिशनरी भी अपना काम उन्हीं की तरह बाहर करते हैं। वे किसी पेड़ की छाँव में बैठकर बाइबल अध्ययन चलाते हैं। इससे न सिर्फ अच्छी रोशनी और ठंडी हवा मिलती है, बल्कि एक और फायदा होता है। अकसर जब कोई राही बाइबल अध्ययन होते देखता है, तो वह भी वहाँ आकर बैठ जाता है, क्योंकि यहाँ के लोगों को बाइबल से काफी लगाव है। यहाँ धार्मिक विषयों पर बातचीत करना उतना ही आम है, जितना दूसरे देशों में खेल-कूद या मौसम के बारे में चर्चा करना।

10 एक दिन जब एक मिशनरी भाई घर के बाहर बाइबल अध्ययन चला रहा था, तो सड़क की दूसरी तरफ रहनेवाला एक नौजवान उसके पास आया। उसने कहा कि अब तक उसके पास कोई साक्षी नहीं आया है, इसलिए वह मिशनरी उसके घर ज़रूर आए और उसके साथ भी बाइबल अध्ययन करे। कहने की ज़रूरत नहीं, मिशनरी ने खुशी-खुशी उसकी गुज़ारिश मानी और अब वह नौजवान बड़ी तेज़ी से तरक्की कर रहा है। उस देश में पुलिस अकसर साक्षियों को रास्ते पर रोक लेती है, उनको सम्मन जारी करने या उनसे जुरमाना वसूल करने के लिए नहीं, बल्कि यह पूछने के लिए कि क्या उनके पास प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के नए अंक हैं, या फिर उन्हें किसी ऐसे लेख के लिए शुक्रिया कहने, जिसे पढ़ने में उन्हें बहुत आनंद आया हो।

11. लंबे समय से मिशनरी सेवा करनेवाले भाई-बहन, मुश्‍किलों के बावजूद अपनी सेवा के बारे में कैसा महसूस करते हैं?

11 जिन लोगों ने 40 या 50 साल पहले मिशनरी सेवा शुरू की थी, उनमें से ज़्यादातर आज भी वफादारी से यह सेवा कर रहे हैं। वे हम सभी के लिए विश्‍वास और लगन की क्या ही उम्दा मिसाल हैं! एक शादीशुदा जोड़ा पिछले 42 से ज़्यादा सालों से मिशनरी है और उन्होंने तीन देशों में यह सेवा की है। पति कहता है: “हमें कुछ तकलीफें भी सहनी पड़ीं। मसलन, हमने 35 साल तक मलेरिया के प्रकोप से संघर्ष किया। मगर हमें कभी-भी पछतावा नहीं हुआ कि हमने मिशनरी बनने का फैसला क्यों किया।” पत्नी कहती है: “हमें इतनी आशीषें मिली हैं कि दिल यहोवा के लिए एहसान से उमड़ पड़ता है। यहाँ प्रचार काम से बड़ी खुशी मिलती है और बाइबल अध्ययन शुरू करना बहुत आसान है। हर बार अपने विद्यार्थियों को सभाओं में आते और एक-दूसरे से जान-पहचान बढ़ाते देखकर ऐसा लगता है मानो परिवार के सदस्य आपस में मिल रहे हैं।”

वे ‘सब बातों को हानि समझते हैं’

12. राज्य के लिए सच्ची कदरदानी कैसे दिखायी जाती है?

12 जब सौदागर को बहुमूल्य मोती का पता चला, तो “उस ने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।” (मत्ती 13:46) इंसान की नज़र में जो चीज़ें बहुत मोल रखती हैं, उन्हें न्यौछावर कर देना ऐसे लोगों की खूबी है जो सच्चे दिल से राज्य की कदर करते हैं। प्रेरित पौलुस एक ऐसा इंसान था जिसे मसीह के साथ परमेश्‍वर के राज्य में महिमा पाने की आशा मिली थी। उसने कहा: “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं।”—फिलिप्पियों 3:8.

13. चेक गणराज्य में एक आदमी ने परमेश्‍वर के राज्य के लिए अपना प्यार कैसे दिखाया?

13 उसी तरह, आज बहुत-से लोग राज्य की आशीषें पाने के लिए खुशी से ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव करते हैं। इसकी एक मिसाल है, चेक गणराज्य के एक स्कूल का हैडमास्टर। साठ साल के इस आदमी को सन्‌ 2003 के अक्टूबर में ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब मिली जो बाइबल अध्ययन करने में मददगार है। इसे पढ़ने के बाद, उसने फौरन अपने इलाके के यहोवा के साक्षियों से संपर्क किया ताकि वह बाइबल अध्ययन कर सके। उसने बढ़िया आध्यात्मिक तरक्की की और जल्द ही वह सभी सभाओं में आने लगा। उसका पहले यह लक्ष्य था कि वह मेयर पद के लिए चुनाव लड़ेगा और बाद में सीनेटर पद के लिए। अब वह क्या करता? अब उसने एक अलग लक्ष्य पाने का, जी हाँ, जीवन की दौड़ में राज्य के प्रचारक के नाते मेहनत करने का फैसला किया। वह कहता है: “मैंने अपने विद्यार्थियों को बाइबल की कई किताबें-पत्रिकाएँ दी हैं।” उसने यहोवा को किया अपना समर्पण ज़ाहिर करने के लिए सन्‌ 2004 की जुलाई को पानी में बपतिस्मा लिया।

14. (क) राज्य की खुशखबरी ने लाखों लोगों को क्या करने के लिए उभारा है? (ख) हममें से हरेक जन खुद से कौन-से गंभीर सवाल पूछ सकता है?

14 दुनिया में ऐसे और भी लाखों लोग हैं जिन्होंने राज्य की खुशखबरी सुनने पर ऐसा ही कदम उठाया है। वे इस दुष्ट संसार से बाहर निकल आए हैं। उन्होंने अपना पुराना मनुष्यत्व उतार फेंका है, पुराने साथियों और दुनियावी पेशों को छोड़ दिया है। (यूहन्‍ना 15:19; इफिसियों 4:22-24; याकूब 4:4; 1 यूहन्‍ना 2:15-17) इतने सारे त्याग आखिर किस लिए? क्योंकि यह दुनिया जो भी देने की पेशकश करती है, उससे कहीं ज़्यादा वे परमेश्‍वर के राज्य में मिलनेवाली आशीषों की कदर करते हैं। क्या आप भी राज्य की खुशखबरी के बारे में ऐसा ही महसूस करते हैं? क्या राज्य के लिए कदरदानी आपको ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव करने के लिए उकसाती है, ताकि आपके जीने का तरीका, आपके उसूल और लक्ष्य यहोवा की माँगों से मेल खाएँ? ऐसे बदलाव करने से आपको अभी और भविष्य में बेशुमार आशीषें मिलेंगी।

कटनी का काम खत्म होने पर है

15. अंतिम दिनों में रहनेवाले परमेश्‍वर के लोगों के बारे में क्या भविष्यवाणी की गयी थी?

15 भजनहार ने लिखा: “तेरी प्रजा के लोग तेरे पराक्रम के दिन स्वेच्छाबलि बनते हैं।” जिन्होंने खुद को इस तरह अर्पित किया है, उनमें ‘भोर की ओस के समान जवान लोग’ और “शुभ समाचार सुनानेवालियों की बड़ी सेना” भी शामिल है। (भजन 68:11; 110:3) इन अंतिम दिनों के दौरान, स्त्री-पुरुष, जवान-बूढ़े, सभी ने जो मेहनत की और त्याग की भावना दिखायी है, उसका क्या नतीजा निकला है?

16. एक मिसाल देकर समझाइए कि परमेश्‍वर के सेवक किस तरह दूसरों को राज्य के बारे में सिखाने के लिए मेहनत कर रहे हैं।

16 भारत के बैंगलोर शहर की एक पायनियर यानी पूरे समय की सेवा करनेवाली बहन को चिंता होने लगी कि इस देश में जो 20 लाख से ज़्यादा बधिर हैं, उन्हें राज्य के बारे में सीखने में कैसे मदद दी जाए। (यशायाह 35:5) उसने साइन लैंगवेज सिखानेवाले एक संस्थान में दाखिला लेने का फैसला किया। बहन ने वहाँ कई बधिरों को राज्य की आशा बतायी और इस तरह बाइबल अध्ययन के कई समूह तैयार हुए। कुछ ही हफ्तों में, 12 से ज़्यादा लोग सभाओं के लिए राज्य घर आने लगे। कुछ समय बाद जब वह पायनियर बहन एक शादी में गयी, तो उसकी मुलाकात एक जवान बधिर से हुई जो कोलकाता का रहनेवाला है। उसके कई सवाल थे और उसने यहोवा के बारे में ज़्यादा जानने की गहरी दिलचस्पी दिखायी। मगर एक समस्या थी। उस जवान को कॉलेज की पढ़ाई के लिए कोलकाता लौटना था, जो कि बैंगलोर से करीब 1,600 किलोमीटर दूर है और वहाँ साइन लैंगवेज जाननेवाला एक भी साक्षी नहीं था। इसलिए उस जवान ने बाइबल अध्ययन जारी रखने के इरादे से अपने पिता को बड़ी मुश्‍किल से राज़ी कराया कि उसे आगे की पढ़ाई के लिए बैंगलोर जाने की इजाज़त दे दें। उसने बढ़िया आध्यात्मिक तरक्की की और करीब एक साल बाद अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया। फिर उसने भी कई बधिरों के साथ बाइबल अध्ययन किया, जिनमें उसका एक बचपन का दोस्त भी है। भारत का शाखा दफ्तर अब बधिरों की मदद करने के लिए पायनियरों को साइन लैंगवेज सिखाने का इंतज़ाम कर रहा है।

17. पेज 19 से 22 पर सन्‌ 2004 की जो सेवा वर्ष रिपोर्ट दी गयी है, उसकी किस बात ने खासतौर पर आपका हौसला बढ़ाया?

17 इस पत्रिका के पेज 19 से 22 पर सन्‌ 2004 के सेवा वर्ष की रिपोर्ट दी गयी है। यह दिखाती है कि सारी दुनिया में यहोवा के साक्षियों का प्रचार काम कैसा रहा। समय निकालकर उसकी जाँच कीजिए और खुद इस बात का सबूत देखिए कि आज धरती के हर हिस्से में यहोवा के लोग “बहुमूल्य मोती” पाने के लिए कैसी मेहनत कर रहे हैं।

‘पहिले राज्य की खोज’ करते रहिए

18. यीशु ने सौदागर के दृष्टांत में कौन-सी जानकारी नहीं दी, और इसकी वजह क्या थी?

18 एक बार फिर अगर हम सौदागर के दृष्टांत पर गौर करें, तो पता चलता है कि यीशु ने इस बारे में कुछ नहीं बताया कि सौदागर ने अपना सबकुछ बेच देने के बाद गुज़ारा कैसे किया। इसलिए कुछ लोगों का यह पूछना वाजिब होगा: ‘अब उसके पास कुछ नहीं बचा तो उसे खाने-पहनने की चीज़ें और सिर छिपाने की जगह कैसे मिलती? वह बहुमूल्य मोती उसके किस काम आता?’ इंसानी नज़रिए से देखा जाए तो ऐसे सवाल पूछना सही लग सकता है। मगर क्या यीशु ने अपने चेलों को यह कहकर बढ़ावा नहीं दिया था, “पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी”? (मत्ती 6:31-33) दृष्टांत का खास मुद्दा यह था कि हमें तन-मन से परमेश्‍वर की भक्‍ति करने और राज्य के लिए जोश दिखाने की ज़रूरत है। क्या इससे हमें कोई सबक मिलता है?

19. बहुमूल्य मोती के बारे में यीशु के दृष्टांत से हम कौन-सा खास सबक सीखते हैं?

19 हो सकता है, हमने हाल ही में खुशखबरी के बारे में सीखा हो या फिर दशकों से राज्य की खातिर मेहनत करते और दूसरों को उसकी आशीषों के बारे में बताते आए हों। बात चाहे जो भी हो, हमें आगे भी ज़िंदगी में राज्य को पहला स्थान देते रहना चाहिए। यह सच है कि आज हम मुश्‍किल समय में जी रहे हैं। मगर हमारे पास यह मानने के ठोस कारण हैं कि हम जिस चीज़ के लिए मेहनत कर रहे हैं, वह सचमुच अनमोल है और उसकी बराबरी दुनिया की किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती, बिलकुल उस मोती की तरह जिसे सौदागर ने पा लिया था। दुनिया की घटनाएँ और बाइबल की भविष्यवाणियों का पूरा होना इस बात का पक्का सबूत है कि आज हम “जगत के अन्त” के समय में जी रहे हैं। (मत्ती 24:3) इसलिए आइए उस सौदागर की तरह, परमेश्‍वर के राज्य के लिए तन-मन से और जोश से काम करें और इस बात से मगन हों कि हमें खुशखबरी सुनाने का सम्मान मिला है।—भजन 9:1, 2.

क्या आपको याद है?

• बीते सालों के दौरान, सच्चे उपासकों के काम में बढ़ोतरी कैसे मुमकिन हुई?

• मिशनरी सेवा करनेवालों में कैसा जज़्बा देखा जा सकता है?

• राज्य की खुशखबरी पाकर लोगों ने कैसे बदलाव किए हैं?

• बहुमूल्य मोती के बारे में यीशु के दृष्टांत से हम कौन-सा ज़रूरी सबक सीख सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 19-22 पर चार्ट]

संसार-भर में यहोवा के साक्षियों की 2004 सेवा वर्ष रिपोर्ट

(पत्रिका देखिए)

[पेज 14 पर तसवीर]

“सच्चाई . . . हर तरह के लोगों को अपनी तरफ खींचती है।”—ए. एच. मैकमिलन

[पेज 15 पर तसवीर]

डान्येला और हेलमूट ने वीएना में विदेशी भाषाएँ बोलनेवालों को प्रचार किया

[पेज 16, 17 पर तसवीरें]

सौदागर की तरह आज मिशनरी ढेरों आशीषें पा रहे हैं

[पेज 17 पर तसवीर]

‘तेरी प्रजा के लोग स्वेच्छाबलि बनते हैं’