इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

‘एक बहुमूल्य मोती पाना’

‘एक बहुमूल्य मोती पाना’

‘एक बहुमूल्य मोती पाना’

“लोग स्वर्गराज्य के लिए बहुत प्रयत्न कर रहे हैं और जिन में उत्साह है, वे उस पर अधिकार प्राप्त करते हैं।”मत्ती 11:12, बुल्के बाइबिल।

1, 2. (क) यीशु ने राज्य के बारे में बताए एक दृष्टांत में किस खूबी का ज़िक्र किया जो बहुत कम लोगों में होती है? (ख) यीशु ने कीमती मोती का क्या दृष्टांत बताया?

 क्या दुनिया में ऐसी कोई चीज़ है जिसे आप दिलो-जान से चाहते हैं और उसे पाने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने को तैयार हैं? कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने ज़िंदगी में किसी मुकाम तक पहुँचने के लिए अपने आपको पूरी तरह अर्पित कर दिया है, जैसे दौलत, शोहरत, ताकत या ओहदा पाने के लिए। मगर उनके लिए दुनिया में शायद ही ऐसी कोई नायाब चीज़ हो जिसे पाने के लिए जो भी उनके पास है, वह सब कुरबान करने को राज़ी हो जाएँ। किसी चीज़ की खातिर अपना सबकुछ न्यौछावर करना एक ऐसी खूबी है जो बहुत कम लोगों में होती है। यीशु मसीह ने परमेश्‍वर के राज्य के बारे में ऐसे कई दृष्टांत बताए थे जो हमें कुछ अहम बातों पर सोचने को मजबूर करते हैं। उन्हीं में से एक दृष्टांत में उसने ऊपर बतायी खूबी का ज़िक्र किया था।

2 यीशु ने यह दृष्टांत सिर्फ अपने चेलों को बताया था, जिसे अकसर कीमती मोतीवाला दृष्टांत कहा जाता है। यीशु ने कहा: “स्वर्ग का राज्य एक ब्योपारी [“सौदागर”, हिन्दुस्तानी बाइबल] के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में था। जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उस ने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।” (मत्ती 13:36, 45, 46) इस दृष्टांत के ज़रिए यीशु अपने चेलों को क्या सिखाना चाहता था? और हम यीशु के इन शब्दों से कैसे फायदा पा सकते हैं?

मोतियों की ऊँची कीमत

3. पुराने ज़माने में बेहतरीन किस्म के मोती क्यों इतने अनमोल माने जाते थे?

3 प्राचीन समय से ही मोतियों को साज-सजावट में इस्तेमाल किया जाता रहा है और बहुत ही अनमोल माना गया है। एक किताब कहती है कि रोमी विद्वान प्लिनी दी ऐल्डर के मुताबिक, मोती “महँगी चीज़ों में सबसे पहले नंबर पर” आता था। सोना, चाँदी और दूसरे कई अनमोल रत्नों से मोती बिलकुल अलग हैं क्योंकि इन्हें जीवित प्राणी बनाते हैं। यह एक जानी-मानी बात है कि कुछ तरह के घोंघों की सीप में जब पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े या दूसरे कण चले जाते हैं, तो घोंघे उन पर नेकर नाम के तरल पदार्थ की परतें चढ़ाते रहते हैं। और इस तरह बेहद खूबसूरत दमकते मोती तैयार होते हैं। पुराने ज़माने में खासकर लाल सागर, फारस की खाड़ी और हिंद महासागर से सबसे बेहतरीन किस्म के मोती इकट्ठे किए जाते थे। ये सागर इस्राएल देश से काफी दूर हैं। तभी तो यीशु ने दृष्टांत में कहा कि “सौदागर” “अच्छे मोतियों की खोज में” था। वाकई, सच्चे और नायाब मोतियों को पाने में कितनी मेहनत लगती है।

4. सौदागर के बारे में यीशु के बताए दृष्टांत का खास मुद्दा क्या था?

4 हालाँकि बढ़िया मोती हमेशा से ही ऊँचे दाम पर बिकते रहे हैं, मगर यीशु के दृष्टांत का खास मुद्दा यह नहीं कि वे कितने कीमती होते हैं। उसने परमेश्‍वर के राज्य की तुलना सिर्फ बेशकीमती मोती से नहीं की। इसके बजाय, उसने चेलों का ध्यान इस बात की तरफ खींचा कि कैसे एक ‘सौदागर अच्छे मोतियों की खोज’ में था और उसने मोती मिलने पर कैसा रवैया दिखाया। जगह-जगह सफर करनेवाला मोतियों का सौदागर या दलाल, एक आम दुकानदार जैसा नहीं होता था, बल्कि वह इस सौदे में बड़ा माहिर होता था। वह अपनी पारखी नज़रों से एक मोती की उन बारीकियों और छिपे हुए गुणों को देख सकता था जिनसे पता चलता है कि वह दूसरे मोतियों से बेजोड़ है। वह एक ही नज़र में बता सकता था कि चीज़ असली है या नहीं, इसलिए उसे नकली या घटिया किस्म का मोती बेचकर कोई बेवकूफ नहीं बना सकता था।

5, 6. (क) यीशु के दृष्टांत के सौदागर के बारे में क्या बात खासकर गौर करने लायक है? (ख) छिपे हुए खज़ाने का दृष्टांत, सफर करनेवाले सौदागर के बारे में क्या ज़ाहिर करता है?

5 इस सौदागर की एक और खासियत गौर करने लायक है। एक आम सौदागर, पहले बाज़ार का भाव पता करेगा ताकि वह तय कर सके कि किस कीमत पर मोती को खरीदने से उसे ज़्यादा मुनाफा होगा। वह यह भी देखेगा कि बाज़ार में उसकी माँग कितनी है ताकि वह उसे जल्द-से-जल्द बेच सके। दूसरे शब्दों में कहें तो, उसे इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं रहती कि मोती उसके हाथ में आ गया है। इसके बजाय, वह मोती को जल्द-से-जल्द बेचकर मुनाफा कमाना चाहेगा। लेकिन यीशु के दृष्टांत का सौदागर बिलकुल अलग है। उसे पैसे या दौलत का नशा नहीं है। दरअसल, उसे जिस चीज़ की तलाश थी, उसे पाने के लिए उसने “अपना सब कुछ” यानी अपनी सारी ज़मीन-जायदाद और दौलत न्यौछावर कर दी।

6 ज़्यादातर सौदागरों को शायद लगे कि यीशु के दृष्टांत में उस आदमी ने जो किया वह मूर्खता का काम है। एक समझदार सौदागर ऐसा जोखिम उठाने की कभी सोच भी नहीं सकता। लेकिन यीशु के दृष्टांत के सौदागर के उसूल बिलकुल अलग थे। उसे मुनाफे से ज़्यादा एक ऐसी बेशकीमती चीज़ पाने में दिलचस्पी थी, जिससे उसे खुशी और संतुष्टि मिलती। यह मुद्दा यीशु के एक और दृष्टांत से साफ ज़ाहिर होता है जो मोती के दृष्टांत से मिलता-जुलता है। यीशु ने कहा: “स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पाकर छिपा दिया, और मारे आनन्द के जाकर और अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया।” (मत्ती 13:44) जी हाँ, उस आदमी को छिपा हुआ धन ढूँढ़ निकालने और उसका मालिक बनने से जो खुशी मिलती, उसे पाने की चाहत ने उसे अपना सबकुछ बेच देने के लिए उभारा। क्या आज दुनिया में ऐसे लोग हैं? क्या आज ऐसा कोई खज़ाना है जिसे पाने के लिए सबकुछ त्याग देने से फायदा होगा?

जिन्होंने उसकी कीमत जानी

7. यीशु ने कैसे दिखाया कि राज्य उसके लिए बेहद अनमोल है और वह उसकी गहरी कदर करता है?

7 यीशु ने ‘स्वर्ग के राज्य’ के सिलसिले में बात करते वक्‍त मोती का दृष्टांत बताया था। बेशक, यीशु जानता था कि यह राज्य कितनी अहमियत रखता है। सुसमाचार की किताबों में दर्ज़ वृत्तांत इस सच्चाई के ज़बरदस्त सबूत हैं। सामान्य युग 29 में अपने बपतिस्मे के बाद, यीशु ने “प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, कि मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” साढ़े तीन साल तक, उसने लोगों की भीड़ को राज्य के बारे में सिखाया। उसने इस्राएल देश के कोने-कोने तक प्रचार किया। “वह नगर नगर और गांव गांव प्रचार करता हुआ, और परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ, फिरने लगा।”—मत्ती 4:17; लूका 8:1.

8. परमेश्‍वर के राज्य में होनेवाले कामों की झलक देने के लिए यीशु ने क्या किया?

8 यीशु ने इस्राएल का दौरा करते वक्‍त कई चमत्कार किए। जैसे उसने बीमारों को चंगा किया, भूखों को खिलाया, कुदरती शक्‍तियों को काबू किया, यहाँ तक कि मरे हुओं को ज़िंदा किया। (मत्ती 14:14-21; मरकुस 4:37-39; लूका 7:11-17) ऐसे चमत्कारों के ज़रिए यीशु ने यह भी दिखाया कि परमेश्‍वर के राज्य में कैसे-कैसे काम किए जाएँगे। आखिर में, वह यातना स्तंभ पर एक शहीद की मौत मरा। इस तरह अपनी जान देकर उसने परमेश्‍वर और राज्य की खातिर अपनी वफादारी का सबूत दिया। जिस तरह उस सौदागर ने “बहुमूल्य मोती” के बदले अपना सबकुछ खुशी-खुशी दे दिया, उसी तरह यीशु, राज्य लिए जीया और उसी के लिए अपनी जान कुरबान कर दी।—यूहन्‍ना 18:37.

9. यीशु के शुरूआती चेलों में ऐसी क्या खूबी थी जो बहुत कम लोगों में पायी जाती है?

9 यीशु ने अपनी ज़िंदगी में राज्य को पहली जगह देने के अलावा चेलों के एक छोटे-से समूह को भी इकट्ठा किया। इन चेलों ने भी राज्य को अनमोल समझा और उसकी बहुत कदर की। इनमें से एक था, अन्द्रियास जो पहले यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का चेला हुआ करता था। उसने और यूहन्‍ना के एक और चेले ने यूहन्‍ना को यीशु के बारे में यह गवाही देते सुना कि वह “परमेश्‍वर का मेम्ना” है। तब वे दोनों फौरन यीशु की तरफ खिंचे चले आए और विश्‍वासी बन गए। यह दूसरा चेला शायद जब्‌दी का एक बेटा था और उसका नाम भी यूहन्‍ना था। इतना ही नहीं, अन्द्रियास फौरन अपने भाई शमौन के पास गया और उससे बोला: ‘हम को मसीह मिल गया।’ फिर जल्द ही शमौन (जो कैफा और पतरस कहलाया), साथ ही फिलिप्पुस और उसके दोस्त नतनएल ने भी जान लिया कि यीशु ही मसीहा है। यीशु को पाकर नतनएल का दिल इस कदर खुशी से भर गया कि उसने यीशु से कहा: “तू परमेश्‍वर का पुत्र है; तू इस्राएल का महाराजा है।”—यूहन्‍ना 1:35-49.

काम करने के लिए उकसाए गए

10. पहली मुलाकात के कुछ समय बाद, जब यीशु ने चेलों के पास आकर उन्हें बुलाया तो उन्होंने क्या किया?

10 मसीहा को पाने पर अन्द्रियास, पतरस, यूहन्‍ना और दूसरे चेले बिलकुल उसी तरह उमंग से भर गए जैसे दृष्टांत में बताया सौदागर, बहुमूल्य मोती पाने पर उमंग से भर गया था। अब ये चेले आगे क्या करते? सुसमाचार की किताबें इस बारे में ज़्यादा रोशनी नहीं डालतीं कि यीशु से हुई इस पहली मुलाकात के फौरन बाद उन्होंने क्या किया। ज़ाहिर है कि उनमें से ज़्यादातर चेले दोबारा अपने रोज़मर्रा के कामों में लग गए। लेकिन, इस पहली मुलाकात के करीब एक साल के अंदर, यीशु एक बार फिर गलील सागर के पास आया जहाँ अन्द्रियास, पतरस, यूहन्‍ना और उसका भाई याकूब मछुवाई कर रहे थे। * उन्हें देखकर यीशु ने कहा: “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊंगा।” इस पर उन्होंने क्या किया? पतरस और अन्द्रियास के बारे में मत्ती का वृत्तांत कहता है: “वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।” याकूब और यूहन्‍ना के बारे में हम पढ़ते हैं: “वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।” लूका का वृत्तांत यह भी कहता है कि वे “सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।”—मत्ती 4:18-22; लूका 5:1-11.

11. शायद किस वजह से यीशु के चेलों ने फौरन उसका न्यौता कबूल किया?

11 क्या ये चेले बिना सोचे-समझे उतावली में यीशु के पीछे हो लिए थे? बिलकुल नहीं! हालाँकि यीशु से पहली मुलाकात के बाद वे मछुवाई करने लौट गए थे, फिर भी उस मौके पर उन्होंने जो देखा और सुना था, उसका उनके दिलो-दिमाग पर गहरा असर पड़ा। यीशु की पहली मुलाकात से लेकर न्यौता देने के समय तक करीब एक साल हो चुका था, इसलिए उन्हें यीशु की बातों पर गहराई से सोचने का काफी वक्‍त मिला। अब फैसला करने की घड़ी आ पहुँची थी। क्या वे दृष्टांत में बताए सौदागर जैसा नज़रिया दिखाते? यीशु ने बताया कि बहुमूल्य मोती पाने पर वह इस कदर जोश से भर गया कि “उसने फौरन जाकर” (NW) उसे खरीदने के लिए ज़रूरी कदम उठाया। जी हाँ, चेले भी ऐसा ही करते। यीशु की कही बातों और कामों ने उन्हें अंदर तक झकझोरकर रख दिया था। उन्होंने समझ लिया कि अब वक्‍त आ गया है कि वे सीखी हुई बातों पर चलें। इसलिए जैसा वृत्तांत कहता है, वे बेझिझक सब कुछ छोड़-छाड़कर यीशु के पीछे हो लिए।

12, 13. (क) यीशु का संदेश सुनने पर कई लोगों ने क्या किया? (ख) यीशु ने अपने वफादार चेलों के बारे में क्या कहा, और उसके शब्दों का क्या मतलब है?

12 ये वफादार लोग, सुसमाचार की किताबों में बताए दूसरे कई लोगों से कितने अलग थे! यीशु ने कइयों को चंगा किया और खिलाया, मगर वे एहसानफरामोश निकले और अपने रोज़मर्रा के कामों में मशगूल हो गए। (लूका 17:17, 18; यूहन्‍ना 6:26) यीशु ने जब लोगों को चेला बनने का न्यौता दिया तो कुछ ने बहाने बनाकर इनकार कर दिया। (लूका 9:59-62) मगर ये वफादार चेले उनसे बिलकुल जुदा थे। आगे चलकर यीशु ने उनके बारे में कहा: “[यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले] के समय से आज तक लोग स्वर्गराज्य के लिए बहुत प्रयत्न कर रहे हैं और जिन में उत्साह है, वे उस पर अधिकार प्राप्त करते हैं।”—मत्ती 11:12, बुल्के बाइबिल।

13 “बहुत प्रयत्न कर रहे हैं”—इन शब्दों का क्या मतलब है? जिस यूनानी क्रिया से ये शब्द निकले हैं, उनके बारे में वाइन्स्‌ एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ ओल्ड एण्ड न्यू टेस्टामेंट वर्ड्‌स्‌ कहती है: “इस क्रिया का मतलब है पुरज़ोर कोशिश करना।” और उस आयत के बारे में बाइबल विद्वान हाइनरिख मेयर कहते हैं: “इस आयत के ज़रिए समझाया गया है कि आनेवाले मसीहाई राज्य के लिए कैसी गर्मजोशी और संघर्ष की ज़रूरत है और काम करने की ऐसी लौ होनी चाहिए जो किसी भी हाल में बुझने न पाए, . . . राज्य के लिए वाकई पूरी उमंग और जोशो-खरोश से काम करना होगा (अब यह वक्‍त आराम से बैठकर इंतज़ार करने का नहीं)।” उस सौदागर की तरह, यीशु के ये चंद चेले भी फौरन जान गए कि कौन-सी चीज़ सही मायनों में अनमोल है, और इस अनमोल चीज़ यानी राज्य के लिए उन्होंने खुशी-खुशी अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया।—मत्ती 19:27, 28; फिलिप्पियों 3:8.

दूसरे भी खोज में शामिल हो गए

14. यीशु ने राज्य के प्रचार काम के लिए प्रेरितों को कैसे तैयार किया, और इसका नतीजा क्या हुआ?

14 जैसे-जैसे यीशु अपनी सेवा करता रहा, उसने और भी कइयों को तालीम और मदद दी, ताकि वे राज्य में अधिकार पाने के काबिल बन सकें। सबसे पहले उसने अपने चेलों में से 12 को चुना और उन्हें प्रेरित ठहराया। प्रेरित का मतलब है, भेजा हुआ। इन प्रेरितों को यीशु ने साफ-साफ हिदायतें दीं कि उन्हें प्रचार काम कैसे करना चाहिए। साथ ही, उसने आनेवाली चुनौतियों और मुश्‍किलों के बारे में उन्हें आगाह भी किया। (मत्ती 10:1-42; लूका 6:12-16) इसके बाद, प्रेरितों ने करीब दो साल तक यीशु के साथ पूरे इस्राएल देश में प्रचार किया। इस दौरान वे यीशु के बहुत करीब आ गए। उन्होंने यीशु का उपदेश सुना, उसके चमत्कार देखे और जीवन के हर पहलू में उसकी मिसाल पर गौर किया। (मत्ती 13:16, 17) बेशक ये सारी बातें उनके दिलो-दिमाग में इस कदर उतर गयीं कि उनमें राज्य की खातिर तन-मन से काम करने का जोश भर आया, ठीक जैसे दृष्टांत के सौदागर में मोती पाने की लगन थी।

15. यीशु ने अपने चेलों को आनंदित होने की कौन-सी ठोस वजह बतायी?

15 बारह प्रेरितों के अलावा, यीशु ने “सत्तर और मनुष्य नियुक्‍त किए और जिस जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहां उन्हें दो दो करके अपने आगे भेजा।” उसने इन चेलों को यह भी बताया कि उन्हें भविष्य में कैसी परीक्षाओं और तकलीफों का सामना करना पड़ेगा। और उसने हिदायत दी कि वे लोगों को यह संदेश सुनाएँ: “परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।” (लूका 10:1-12) जब ये 70 चेले प्रचार से लौटे तो वे खुशी से फूले न समा रहे थे। उन्होंने यीशु को यह रिपोर्ट दी: “हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में हैं।” मगर यीशु ने कहा कि भविष्य में उन्हें और भी ज़्यादा खुशी मिलनेवाली है, क्योंकि उनमें राज्य के लिए इतनी धुन है। यह बात सुनकर वे ज़रूर हैरत में पड़ गए होंगे। यीशु ने उनसे कहा: “इस से आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इस से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।”—लूका 10:17, 20.

16, 17. (क) यीशु ने अपने वफादार प्रेरितों के साथ बितायी आखिरी रात को उनसे क्या कहा? (ख) यीशु के शब्दों से प्रेरितों को कैसी खुशी मिली और किस बात का यकीन हुआ?

16 यीशु ने अपने प्रेरितों के साथ सा.यु. 33 के निसान 14 को जो आखिरी रात बितायी, उस वक्‍त उसने एक समारोह की शुरूआत की जो बाद में प्रभु का संध्या भोज कहलाया। उसने प्रेरितों को आज्ञा दी कि वे इस समारोह की यादगार मनाया करें। उस शाम यीशु ने बचे हुए ग्यारह प्रेरितों से कहा: “तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूं, ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पिओ; बरन सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।”—लूका 22:19, 20, 28-30.

17 यीशु के इन शब्दों को सुनकर प्रेरितों को कितनी खुशी और कामयाबी का एहसास हुआ होगा! उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान और सबसे सुनहरा मौका जो दिया जा रहा था। (मत्ती 7:13, 14; 1 पतरस 2:9) दृष्टांत के सौदागर की तरह, उन्होंने राज्य में अधिकार पाने के लिए अपना काफी कुछ त्याग दिया था। अब उन्हें यकीन दिलाया जा रहा था कि उन्होंने जो-जो त्याग किए, वे बेकार नहीं गए।

18. ग्यारह प्रेरितों के अलावा, बाद में और किन लोगों को राज्य से फायदा होता?

18 उस रात यीशु के साथ जो प्रेरित मौजूद थे, सिर्फ उन्हीं को राज्य से फायदा नहीं होता। यहोवा की मरज़ी थी कि कुल मिलाकर 1,44,000 जनों के साथ राज्य की वाचा बाँधी जाए, ताकि वे स्वर्ग के वैभवशाली राज्य में यीशु मसीह के साथी राजा बन सकें। इनके अलावा, यूहन्‍ना ने दर्शन में देखा कि “एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था . . . सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी है। और . . . कहती है, कि उद्धार के लिये हमारे परमेश्‍वर का जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने का जय-जय-कार हो।” इस बड़ी भीड़ के लोग राज्य की प्रजा के नाते धरती पर जीएँगे। *प्रकाशितवाक्य 7:9, 10; 14:1, 4.

19, 20. (क) सभी जातियों के लोगों के लिए कौन-सा मौका खुला है? (ख) अगले लेख में किस सवाल पर चर्चा की जाएगी?

19 यीशु ने स्वर्ग लौटने से कुछ ही समय पहले, अपने वफादार चेलों को यह हुक्म दिया: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती 28:19, 20) यह दिखाता है कि भविष्य में सब जातियों के लोग यीशु मसीह के चेले बनते। जिस तरह सौदागर ने बहुमूल्य मोती पर अपना मन लगाया था, उसी तरह वे भी पूरे दिल से राज्य पर आस लगाए रहते, फिर चाहे उनकी आशा स्वर्ग में इनाम पाने की होती या धरती पर।

20 यीशु ने जो कहा, उससे ज़ाहिर हुआ कि चेले बनाने का काम “जगत के अन्त” तक जारी रहता। तो सवाल यह है कि क्या आज हमारे ज़माने में भी ऐसे लोग हैं जो उस सौदागर की तरह परमेश्‍वर के राज्य की खातिर अपना सबकुछ त्यागने को तैयार हैं? इस सवाल का जवाब अगले लेख में दिया जाएगा।

[फुटनोट]

^ यीशु से इन चेलों की पहली मुलाकात के बाद, शायद जब्‌दी का बेटा यूहन्‍ना, यीशु के पीछे हो लिया था। उसने यीशु के कुछ काम अपनी आँखों से देखे होंगे। इसी वजह से वह यीशु के इन कामों का जीता-जागता ब्यौरा अपनी सुसमाचार की किताब में लिख सका। (यूहन्‍ना, अध्याय 2-5) मगर वह भी अपने परिवार का मछुवाई व्यापार सँभालने लौट गया और इसके कुछ समय बाद यीशु ने उसे अपने पीछे हो लेने का न्यौता दिया।

^ इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब का 10वाँ अध्याय देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

क्या आप समझा सकते हैं?

• सौदागर के दृष्टांत का असल मुद्दा क्या है?

• यीशु ने कैसे दिखाया कि वह राज्य को अनमोल समझकर उसकी दिल से कदर करता है?

• जब यीशु ने अन्द्रियास, पतरस, यूहन्‍ना और दूसरों को बुलाया तो किस बात ने उन्हें फौरन उसके पीछे हो लेने के लिए उकसाया?

• आज सभी जातियों के लोगों के सामने कौन-सा सुनहरा मौका खुला है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीर]

वे “सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए”

[पेज 12 पर तसवीर]

यीशु ने स्वर्ग लौटने से पहले अपने चेलों को आज्ञा दी कि वे दूसरों को भी चेले बनाएँ