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यहोवा हमेशा वही करता है जो सही है

यहोवा हमेशा वही करता है जो सही है

यहोवा हमेशा वही करता है जो सही है

‘यहोवा अपनी सब गति में धर्मी है।’भजन 145:17.

1. जब कोई आपके बारे में गलत राय कायम करता है तो आपको कैसा लगता है, और हम इससे क्या सबक सीखते हैं?

 क्या किसी ने कभी आपके बारे में गलत राय कायम की है? किसी मामले की पूरी सच्चाई जाने बगैर आपके इरादों पर शक किया है? अगर हाँ, तो हम समझ सकते हैं कि आपको कितनी ठेस पहुँची होगी। इससे हम एक ज़रूरी सबक सीखते हैं: हमें जिस मामले की पूरी जानकारी नहीं है, उसके बारे में फट-से किसी नतीजे पर पहुँचना अक्लमंदी नहीं होगी।

2, 3. बाइबल में जिन वाकयों की विस्तार से जानकारी नहीं दी गयी है, उनकी तरफ कुछ लोगों ने कैसा रवैया दिखाया है, मगर बाइबल हमें यहोवा के बारे में क्या बताती है?

2 यहोवा परमेश्‍वर के बारे में कोई राय कायम करते वक्‍त हमें यह सबक ज़रूर याद रखना चाहिए। वह क्यों? क्योंकि बाइबल में ऐसे कुछ वाकए दर्ज़ हैं जिन्हें सरसरी तौर पर पढ़ने से शायद उनसे जुड़ी सारी बातें हमें समझ न आएँ। ये वाकए शायद परमेश्‍वर के कुछ उपासकों के कामों के बारे में हों या फिर ऐसी घटनाओं के बारे में जिनमें परमेश्‍वर ने लोगों को सज़ा दी थी। हो सकता है, इन वृत्तांतों में सारी बातें विस्तार से न लिखी हों और इसलिए हमें सभी सवालों के जवाब न मिलें। अफसोस कि कुछ लोगों ने ऐसी घटनाओं की नुक्‍ताचीनी की है, यहाँ तक परमेश्‍वर के धर्मी और न्यायी होने पर भी सवाल किया है। मगर बाइबल हमें बताती है कि ‘यहोवा अपनी सब गति में धर्मी है।’ (भजन 145:17) उसका वचन हमें इस बात का भी यकीन दिलाता है कि वह “दुष्टता नहीं करता।” (अय्यूब 34:12; भजन 37:28) तो सोचिए कि जब लोग उसके बारे में गलत राय कायम करते हैं, तो उसे कितनी ठेस पहुँचती होगी!

3 आइए हम ऐसे पाँच कारणों पर गौर करें जिनसे पता चलेगा कि हमें क्यों यहोवा के न्यायदंड को सही मानना चाहिए। इसके बाद, इन कारणों को मन में रखकर हम बाइबल के ऐसे दो वाकयों की जाँच करेंगे, जिन्हें कुछ लोग समझना मुश्‍किल पाते हैं।

यहोवा के न्यायदंड को सही क्यों मानें?

4. परमेश्‍वर के कामों के बारे में राय कायम करते वक्‍त हमें अपनी मर्यादा में क्यों रहना चाहिए? उदाहरण दीजिए।

4 पहला कारण यह है कि यहोवा एक मामले से जुड़ी हर सच्चाई से वाकिफ होता है, जबकि हमें पूरी जानकारी नहीं होती। इसलिए उसके बारे में कोई भी राय कायम करते वक्‍त हमें अपनी मर्यादा पार नहीं करनी चाहिए। मिसाल के तौर पर, मान लीजिए कि एक जज ने बिना किसी तरफदारी के इंसाफ करने का बढ़िया रिकॉर्ड कायम किया है। वह अदालत में किसी मुकद्दमे का फैसला सुनाता है। मगर एक ऐसा आदमी उस जज की नुक्‍ताचीनी करने लगता है जिसे मामले का ओर-छोर नहीं मालूम या उससे जुड़े कायदे-कानूनों की जानकारी नहीं है। आप उस आदमी के बारे में क्या सोचेंगे? किसी मामले की पूरी जानकारी लिए बगैर नुक्स निकालना मूर्खता है। (नीतिवचन 18:13) अब सोचिए कि हम मामूली इंसान अगर ‘सारी पृथ्वी के न्यायी’ यहोवा की नुक्‍ताचीनी करें, तो यह और कितनी बड़ी मूर्खता होगी!—उत्पत्ति 18:25.

5. बाइबल के जिन वृत्तांतों में परमेश्‍वर के न्यायदंड का ज़िक्र है, उन्हें पढ़ते वक्‍त हमें क्या नहीं भूलना चाहिए?

5 परमेश्‍वर के न्यायदंड को सही मानने का दूसरा कारण यह है: वह देख सकता है कि लोगों के दिल में क्या है, जबकि इंसान ऐसा नहीं कर सकते। (1 शमूएल 16:7) उसका वचन कहता है: “मैं यहोवा मन की खोजता और हृदय को जांचता हूं ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात्‌ उसके कामों का फल दूं।” (यिर्मयाह 17:10) इसलिए जब हम बाइबल के ऐसे वृत्तांत पढ़ते हैं जिनमें बताया गया है कि परमेश्‍वर ने कैसे कुछ लोगों को सज़ा दी थी, तो हम यह न भूलें कि उसके सामने सबकुछ बेनकाब है। उसने ज़रूर लोगों के अंदर छिपे गलत विचारों, इरादों और ख्वाहिशों को देखकर दंड दिया होगा, जिनका ज़िक्र उसके वचन में नहीं है।—1 इतिहास 28:9.

6, 7. (क) यहोवा ने कैसे दिखाया कि वह अपने न्याय और धार्मिकता की माँगों पर सख्ती से चलता है, फिर चाहे उसे कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े? (ख) जब हमें बाइबल का कोई वाकया पढ़ने पर शक होता है कि यहोवा ने जो किया वह सही था या नहीं, तो ऐसे में हमें क्या याद रखना चाहिए?

6 यहोवा का न्यायदंड हमेशा क्यों सही होता है, इसकी तीसरी वजह पर ध्यान दीजिए: वह हर काम अपने धर्मी स्तरों के मुताबिक करता है, फिर चाहे उसे कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। इसकी एक मिसाल लीजिए। यहोवा ने आज्ञाकारी इंसानों को पाप और मौत से छुटकारा दिलाने के लिए अपने बेटे की छुड़ौती का इंतज़ाम करके न्याय और धार्मिकता के अपने स्तरों का पालन किया। (रोमियों 5:18, 19) अपने इस अज़ीज़ बेटे को यातना स्तंभ पर दर्द से छटपटाते और मरते देख यहोवा इस कदर तड़प उठा होगा जिसका हम शायद ही अंदाज़ा लगा सकें। इससे परमेश्‍वर के बारे में क्या पता चलता है? ‘मसीह यीशु के दिए छुटकारे’ के बारे में बाइबल कहती है: ‘परमेश्‍वर ने अपनी धार्मिकता प्रकट करने के लिए ऐसा किया।’ (रोमियों 3:24-26) बाइबल के एक और अनुवाद में रोमियों 3:25 कहता है: “यह दिखाता है कि परमेश्‍वर हमेशा वही करता है जो सही हो और इंसाफ की माँग हो।” (न्यू सैंचुरी वर्शन) जी हाँ, छुड़ौती का इंतज़ाम करने के लिए यहोवा जिस हद तक गया, वह दिखाता है कि यहोवा हर हाल में वही करता है जो ‘सही और इंसाफ की माँग’ हो।

7 तो जब हम बाइबल की ऐसी कोई घटना पढ़ते हैं जिसके बारे में शायद कुछ लोगों के मन में शक पैदा हो कि परमेश्‍वर ने उस मामले में जो किया वह न्याय के हिसाब से ठीक था या नहीं, तब हमें यह बात याद रखनी चाहिए: यहोवा अपनी धार्मिकता और न्याय के स्तरों का इतना पक्का है कि हमारी छुड़ौती का इंतज़ाम करने के लिए उसने अपने बेटे को एक दर्दनाक मौत से भी गुज़रने दिया। तो क्या वह दूसरे मामलों में अपने स्तरों के साथ समझौता कर सकता है? सच तो यह है कि यहोवा अपनी धर्मी और न्यायी माँगों के खिलाफ कभी नहीं जाता। इसलिए हमारे पास यह मानने के ढेरों सबूत हैं कि यहोवा हमेशा वही करता है, जो सही और न्याय की माँगों के मुताबिक होता है।—अय्यूब 37:23.

8. इंसानों के लिए यह सोचना क्यों बेतुका होगा कि यहोवा में न्याय और धार्मिकता का गुण नहीं है?

8 अब चौथे कारण पर गौर कीजिए कि हमें क्यों यहोवा के न्यायदंड को सही मानना चाहिए: यहोवा ने इंसान को अपने स्वरूप में बनाया था। (उत्पत्ति 1:27) इसलिए इंसान में परमेश्‍वर जैसे गुण दिखाने की काबिलीयत होती है, जिसमें धार्मिकता और न्याय का जज़्बा भी शामिल है। अगर धार्मिकता और न्याय का जज़्बा हमें यह सोचने के लिए मजबूर करे कि ये गुण यहोवा में नहीं हैं, तो यह कितनी गलत बात होगी। अगर हम बाइबल के किसी वृत्तांत को लेकर उलझन में पड़ जाएँ, तो हमें याद रखना चाहिए कि विरासत में मिले पाप की वजह से धार्मिकता और न्याय के बारे में हमारी समझ गलत हो सकती है। मगर यहोवा परमेश्‍वर न्याय और धार्मिकता के काम करने में पूरी तरह सिद्ध है, जिसके स्वरूप में हम बनाए गए हैं। (व्यवस्थाविवरण 32:4) यह सोचना भी बिलकुल बेतुका होगा कि इंसान, परमेश्‍वर से ज़्यादा न्याय और धार्मिकता से पेश आ सकते हैं!—रोमियों 3:4, 5; 9:14.

9, 10. यहोवा इंसानों को अपने कामों के बारे में समझाने या उन्हें जायज़ ठहराने के लिए मजबूर क्यों नहीं है?

9 यहोवा के न्यायदंडों को सही मानने का पाँचवाँ कारण यह है कि वह “सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” (भजन 83:18) इसलिए वह इंसानों के सामने अपने कामों को जायज़ ठहराने या उन्हें अपने हर काम की वजह समझाने के लिए मजबूर नहीं है। वह महान कुम्हार है और हम मिट्टी के लोंदे की तरह हैं जिसे ढालकर बर्तनों का रूप दिया गया है। इसलिए यहोवा हमारे साथ जैसा चाहे वैसा व्यवहार कर सकता है। (रोमियों 9:19-21) जब हम उसके हाथ के बनाए मिट्टी के बर्तन हैं, तो हमारा क्या हक बनता है कि हम उसके फैसलों और कामों पर उँगली उठाएँ? जब कुलपिता अय्यूब ने इंसान के साथ यहोवा के व्यवहार को गलत समझा, तो यहोवा ने उसकी सोच को सुधारते हुए उससे पूछा: “क्या तू मेरा न्याय भी व्यर्थ ठहराएगा? क्या तू आप निर्दोष ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा?” जब अय्यूब को एहसास हुआ कि उसने बिना सोचे-समझे यहोवा के बारे में बात की है, तो उसने पश्‍चाताप किया। (अय्यूब 40:8; 42:6) हम परमेश्‍वर में खामी निकालने की गलती कभी न करें!

10 बेशक, हमारे पास यह मानने के ठोस कारण हैं कि यहोवा हमेशा सही काम करता है। यहोवा के मार्गों के बारे में इस बुनियादी समझ को ध्यान में रखते हुए, आइए हम बाइबल के ऐसे दो वृत्तांतों की जाँच करें जिन्हें समझना शायद कुछ लोगों को मुश्‍किल लगे। पहला वृत्तांत परमेश्‍वर के एक उपासक के काम के बारे में है, और दूसरा यहोवा के दिए एक न्यायदंड के बारे में।

लूत ने गुस्से से पागल भीड़ के सामने अपनी बेटियों की पेशकश क्यों की?

11, 12. (क) परमेश्‍वर ने जब दो स्वर्गदूतों को सदोम भेजा तो क्या हुआ? (ख) यह वाकया पढ़ने पर कुछ लोगों के मन में क्या सवाल उठे हैं?

11 उत्पत्ति के अध्याय 19 में हम पढ़ते हैं कि जब परमेश्‍वर ने इंसान का रूप धारण किए हुए दो स्वर्गदूतों को सदोम भेजा तो क्या हुआ। लूत ने इन मेहमानों से अपने घर ठहरने की ज़िद की थी। मगर जब वे रात को वहाँ ठहरे तो शहर के आदमियों की एक भीड़ ने लूत के घर को घेर लिया और माँग करने लगे कि वह उन मेहमानों को उनके हवाले कर दे, ताकि वे उनके साथ अनैतिक संबंध रख सकें। लूत ने उन आदमियों को बहुत समझाया, मगर वे नहीं माने। तब अपने मेहमानों की हिफाज़त करने के इरादे से लूत ने उनसे कहा: “हे मेरे भाइयो, ऐसी बुराई न करो। सुनो, मेरी दो बेटियां हैं जिन्हों ने अब तक पुरुष का मुंह नहीं देखा, इच्छा हो तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर ले आऊं, और तुम को जैसा अच्छा लगे वैसा व्यवहार उन से करो: पर इन पुरुषों से कुछ न करो; क्योंकि ये मेरी छत के तले आए हैं।” मगर उन आदमियों ने उसकी एक न सुनी, और दरवाज़ा तोड़कर बस अंदर घुसने ही वाले थे कि स्वर्गदूतों ने उनको अंधा कर दिया।—उत्पत्ति 19:1-11.

12 ताज्जुब नहीं कि यह किस्सा पढ़ने पर कुछ लोगों के मन में सवाल उठे हैं। वे सोचते हैं: ‘लूत अपने मेहमानों की हिफाज़त के लिए, उन कामुक लोगों के सामने अपनी बेटियों को पेश करने की सोच भी कैसे सकता था? क्या ऐसी पेशकश करना गलत नहीं था, और क्या इससे ज़ाहिर नहीं होता कि वह बुज़दिल था?’ इस वाकए को ध्यान में रखते हुए शायद कोई पूछे कि परमेश्‍वर ने लूत को “धर्मी” कहने के लिए पतरस को क्यों प्रेरित किया? क्या लूत ने जो किया वह परमेश्‍वर को मंज़ूर था? (2 पतरस 2:7, 8) आइए मामले की तह तक जाकर इसकी जाँच करें ताकि हम कोई गलत राय न कायम करें।

13, 14. (क) बाइबल में दर्ज़ लूत के किस्से के बारे में हमें क्या ध्यान देना चाहिए? (ख) क्या दिखाता है कि लूत बुज़दिल नहीं था?

13 सबसे पहले तो हमें ध्यान देना चाहिए कि बाइबल में लूत के इस काम की न तो सराहना की गयी है, और ना ही निंदा की गयी है। यह सिर्फ उस घटना का ब्यौरा देती है। बाइबल यह भी नहीं बताती कि लूत ने किस इरादे से अपनी बेटियों को उन कामुक आदमियों के सामने पेश करने की बात कही। फिरदौस में जब ‘धर्मी लोगों के जी उठते’ वक्‍त लूत भी ज़िंदा होगा, तब वह हमें इस बारे में खुलकर बता सकेगा।—प्रेरितों 24:15.

14 लूत को बुज़दिल हरगिज़ नहीं कहा जा सकता। दरअसल वह बड़ी दुविधा में था। जब उसने शहर के आदमियों से कहा कि उसके मेहमान उसकी “छत के तले आए हैं,” तो उसके कहने का यह मतलब था कि उन मेहमानों की हिफाज़त करना उसका फर्ज़ है। मगर यह कोई आसान काम नहीं था। यहूदी इतिहासकार जोसीफस बताता है कि सदोमवासी, “पुरुषों के साथ बहुत अन्याय करते थे और परमेश्‍वर का बिलकुल आदर नहीं करते थे . . . उन्हें अजनबियों से नफरत थी और वे नीच लैंगिक हरकतें करते थे।” मगर लूत नफरत से अंधी उस भीड़ से ज़रा भी नहीं डरा। इसके बजाय, वह उन भड़के हुए आदमियों के पास गया और उसने उन्हें समझाने की कोशिश की। यहाँ तक कि उसने “किवाड़ को अपने पीछे बन्द” कर दिया।—उत्पत्ति 19:6.

15. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि लूत ने परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखा था?

15 कुछ लोग शायद पूछें, ‘फिर भी लूत ने भीड़ के सामने अपनी बेटियों की पेशकश क्यों की?’ लूत के इरादों पर शक करने के बजाय, क्यों न कुछ संभावनाओं पर गौर करें कि उसने क्यों ऐसा किया होगा। पहली बात, लूत ने शायद यहोवा पर विश्‍वास रखकर ऐसा किया। वह कैसे? बेशक वह जानता था कि यहोवा ने उसके चाचा इब्राहीम की पत्नी सारा की कैसे हिफाज़त की थी। याद कीजिए कि सारा के बेहद खूबसूरत होने की वजह से इब्राहीम को डर था कि कोई उसे अगवा न कर ले और इब्राहीम का कत्ल न कर दे। इसलिए उसने सारा से गुज़ारिश की कि वह दूसरों से कहे कि इब्राहीम उसका भाई है। * बाद में सारा को फिरौन के घर ले जाया गया। मगर इससे पहले कि फिरौन सारा के साथ कुछ गलत काम करे, यहोवा ने दखल देकर उसे रोक दिया। (उत्पत्ति 12:11-20) शायद लूत को पूरा विश्‍वास था कि परमेश्‍वर उसी तरह उसकी बेटियों की भी हिफाज़त करेगा। और यह बात गौर करनेलायक है कि यहोवा ने वाकई अपने स्वर्गदूतों के ज़रिए दखल दिया, और उन जवान लड़कियों की रक्षा की।

16, 17. (क) लूत ने किस तरह सदोम के आदमियों को चौंका देने या उलझन में डालने की सोची? (ख) लूत ने चाहे जो भी सोचा हो, मगर हम किस बात का पक्का यकीन रख सकते हैं?

16 एक और संभावना पर गौर कीजिए। लूत ने शायद उन आदमियों को चौंकाने या उलझन में डालने के वास्ते ऐसा किया होगा। उसे यकीन रहा होगा कि वे आदमी उसकी बेटियों की तरफ नहीं लुभाए जाएँगे, क्योंकि वे समलिंगी थे। (यहूदा 7) इसके अलावा, शहर के दो आदमियों से उन लड़कियों की सगाई हो चुकी थी। तो ज़ाहिर है कि लूत के होनेवाले दामादों के नाते-रिश्‍तेदार, दोस्त या उनके साथ काम करनेवाले उस भीड़ में मौजूद रहे होंगे। (उत्पत्ति 19:14) लूत ने सोचा होगा कि रिश्‍ते की खातिर उस भीड़ के कुछ आदमी लूत की बेटियों के पक्ष में बात करेंगे। इस तरह जब भीड़ में फूट पड़ जाएगी, तो खतरा कुछ हद तक कम हो जाएगा। *

17 लूत ने चाहे जो भी सोचा हो या चाहे जिस इरादे से ऐसा किया हो, मगर हम इस बात का यकीन रख सकते हैं: लूत को “धर्मी” करार देने के लिए यहोवा के पास ज़रूर कोई ठोस कारण रहा होगा, क्योंकि यहोवा हमेशा वही करता है जो सही है। और जब हम गौर करते हैं कि सदोमियों की वह पागल भीड़ किस हद तक गिरी हुई थी, तो क्या शक की कोई गुँजाइश रह जाती है कि यहोवा ने उस दुष्ट नगर के लोगों को खाक में मिलाकर पूरी तरह इंसाफ किया था?—उत्पत्ति 19:23-25.

यहोवा ने उज्जा को क्यों मार डाला?

18. (क) जब दाऊद ने संदूक को यरूशलेम लाने की कोशिश की तो क्या घटना घटी? (ख) इस वाकये से कौन-से सवाल उठते हैं?

18 एक और वाकया जिसे समझना शायद कुछ लोगों को मुश्‍किल लगे, वह इस बारे में है कि दाऊद ने वाचा का संदूक यरूशलेम पहुँचाने की कैसी कोशिश की थी। संदूक को एक गाड़ी पर रखा गया और उसे उज्जा और उसका भाई हाँक रहे थे। बाइबल कहती है: “जब वे नाकोन के खलिहान तक आए, तब उज्जा ने अपना हाथ परमेश्‍वर के सन्दूक की ओर बढ़ाकर उसे थाम लिया, क्योंकि बैलों ने ठोकर खाई। तब यहोवा का कोप उज्जा पर भड़क उठा; और परमेश्‍वर ने उसके दोष के कारण उसको वहां ऐसा मारा, कि वह वहां परमेश्‍वर के सन्दूक के पास मर गया।” कुछ महीनों बाद, व्यवस्था में परमेश्‍वर के बताए तरीके से, कोहाती लेवी संदूक को कंधों पर रखकर यरूशलेम ले जाने में कामयाब रहे। (2 शमूएल 6:6, 7; गिनती 4:15; 7:9; 1 इतिहास 15:1-14) कुछ लोग शायद पूछें, ‘यहोवा क्यों इतना भड़क उठा? आखिर उज्जा तो बस संदूक को गिरने से बचाने की कोशिश कर रहा था।’ इस बारे में कुछ ज़रूरी जानकारी पर ध्यान देना ठीक रहेगा, ताकि हम किसी गलत नतीजे पर न पहुँचें।

19. यहोवा क्यों कभी अन्याय नहीं कर सकता?

19 हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा कभी अन्याय नहीं कर सकता। (अय्यूब 34:10) ऐसा करने का मतलब होगा कि उसमें प्यार नहीं है। मगर पूरी बाइबल का अध्ययन करके हमने यह जाना है कि “परमेश्‍वर प्रेम है।” (1 यूहन्‍ना 4:8) इसके अलावा, बाइबल हमें बताती है कि “धार्मिकता और न्याय [परमेश्‍वर के] सिंहासन के आधार हैं।” (भजन 89:14, NHT) तो यहोवा अन्याय कैसे कर सकता है? उसका ऐसा करना उस बुनियाद को कमज़ोर बनाना होगा जिस पर उसकी हुकूमत खड़ी है।

20. किन वजहों से उज्जा को संदूक के बारे में कायदे-कानूनों की जानकारी रही होगी?

20 याद रखें कि उज्जा को व्यवस्था से अच्छी तरह वाकिफ होना चाहिए था। वाचा का संदूक, यहोवा की मौजूदगी को दर्शाता था। व्यवस्था में साफ-साफ बताया गया था कि ऐसे लोगों के लिए संदूक को छूना मना है जिन्हें इजाज़त नहीं है, और चेतावनी दी गयी थी कि इस नियम का उल्लंघन करनेवालों को मौत की सज़ा दी जाएगी। (गिनती 4:18-20; 7:89) इसलिए उस पवित्र पेटी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के काम को हलका नहीं समझना था। ऐसा लगता है कि उज्जा एक लेवी था (भले ही वह याजक नहीं था), इसलिए उसे व्यवस्था की अच्छी जानकारी होनी थी। इतना ही नहीं, कई साल पहले संदूक को उज्जा के पिता के घर ले जाया गया था ताकि वहाँ पर वह सुरक्षित रहे। (1 शमूएल 6:20–7:1) संदूक वहाँ करीब 70 साल तक रहा, जब तक कि दाऊद ने उसे वहाँ से ले जाने का फैसला नहीं किया। तो उज्जा, बचपन से ही संदूक के बारे में कायदे-कानूनों से वाकिफ रहा होगा।

21. उज्जा के मामले में इस बात को याद रखना क्यों ज़रूरी है कि यहोवा इंसान का दिल देख सकता है?

21 जैसा पहले भी बताया गया है, यहोवा देख सकता है कि एक इंसान के दिल में क्या है। उसका वचन कहता है कि उज्जा ने जो किया वह ‘उसका दोष’ था। इसका मतलब है कि यहोवा ने उसमें स्वार्थ की भावना देखी होगी जिसका बाइबल के वृत्तांत में साफ-साफ ज़िक्र नहीं है। क्या उज्जा घमंडी था, जिसकी वजह से उसने अपनी हद पार करने की गुस्ताखी की? (नीतिवचन 11:2) यह देखते हुए कि उसके परिवार ने ही संदूक को छिपाकर उसकी रखवाली की थी, उसे सबके सामने से ले जाते वक्‍त क्या उज्जा खुद को बहुत ऊँचा समझने लगा? (नीतिवचन 8:13) क्या उज्जा को यहोवा पर इतना भी विश्‍वास नहीं था कि वह अपनी मौजूदगी को दर्शानेवाली पवित्र पेटी को गिरने से बचा सकता है? कारण चाहे जो भी रहा हो, मगर हम पक्का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ने जो किया वह सही था। उसने उज्जा के दिल में ज़रूर कोई ऐसी बात देखी होगी जिसकी वजह से उसने फौरन उसे दंड दिया।—नीतिवचन 21:2.

भरोसा रखने की ठोस वजह

22. यहोवा की बुद्धि इस बात से कैसे देखी जा सकती है कि उसके वचन में सारी जानकारी नहीं दी गयी है?

22 यहोवा की बेजोड़ बुद्धि का सबूत इस बात से देखा जा सकता है कि उसके वचन में दर्ज़ कुछ वाकयों में सारी जानकारी नहीं दी गयी है। इस तरह यहोवा ने हमें यह भरोसा रखने का मौका दिया है कि वह जो भी करता है वह सही है। अब तक हमने जिन बातों पर चर्चा की, क्या उनसे यह मानने के ठोस कारण नहीं मिलते कि यहोवा के न्यायदंड सही थे? जी हाँ, जब हम सच्चे दिल और खुले दिमाग से परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करते हैं, तो हमें यहोवा के बारे में ऐसी ढेरों जानकारी मिलती है जिससे हमें यकीन होता है कि वह हमेशा न्याय और धार्मिकता के काम करता है। इसलिए अगर बाइबल का कोई वाकया पढ़ने पर हमारे मन में ऐसे सवाल उठते हैं जिनके ठीक-ठीक जवाब हमें तुरंत नहीं मिलते, तो ऐसे में आइए हम भरोसा रखें कि यहोवा ने जो किया वह ज़रूर सही होगा।

23. यहोवा भविष्य में जो कार्यवाही करेगा, उसके बारे में हम क्या भरोसा रख सकते हैं?

23 हम यह भी भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा भविष्य में जो कार्यवाही करेगा, वह बिलकुल सही होगी। इसलिए आइए हम यकीन रखें कि आनेवाले बड़े क्लेश में जब यहोवा न्यायदंड लाएगा, तब वह “दुष्ट के संग धर्मी को . . . नाश” नहीं करेगा। (उत्पत्ति 18:23) धार्मिकता और न्याय के लिए प्यार उसे ऐसा कभी नहीं करने देगा। हम इस बात का भी पूरा यकीन रख सकते हैं कि आनेवाली नयी दुनिया में वह हमारी हर ज़रूरत को सबसे बेहतरीन तरीके से पूरा करेगा।—भजन 145:16.

[फुटनोट]

^ इब्राहीम का यह डर वाजिब था, क्योंकि एक प्राचीन पपाइरस बताता है कि एक फिरौन ने अपने हथियारबंद आदमियों से कहकर एक सुंदर स्त्री को अगवा कर लिया और उसके पति को मार डाला।

^ इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए, दिसंबर 1, 1979 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) का पेज 31 देखिए।

क्या आपको याद है?

• किन कारणों से हमें यहोवा के न्यायदंडों को सही मानना चाहिए?

• लूत ने गुस्से से पागल भीड़ के सामने अपनी बेटियों की जो पेशकश की, उस बारे में गलत नतीजे पर पहुँचने से क्या बात हमें रोक सकती है?

• यहोवा ने उज्जा को क्यों मार डाला, इसे समझने में कौन-सी बातें हमारी मदद कर सकती हैं?

• यहोवा भविष्य में जो करनेवाला है, उसके बारे में हम क्या भरोसा रख सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]