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अपनी मसीही पहचान की रक्षा करना

अपनी मसीही पहचान की रक्षा करना

अपनी मसीही पहचान की रक्षा करना

“यहोवा की वाणी है कि तुम मेरे साक्षी हो।”यशायाह 43:10.

1. यहोवा किस किस्म के लोगों को अपने पास खींचता है?

 जब आप राज्य घर में हों, तो अपने आस-पास के लोगों को गौर से देखिए। उपासना की इस जगह पर आप किस-किस को देखते हैं? आपको शायद उत्साह से भरे ऐसे नौजवान नज़र आएँ जो बाइबल की बुद्धि भरी बातें ध्यान से सुनकर अपने ज़हन में उतार रहे हैं। (भजन 148:12, 13) शायद आपको परिवारों के मुखिया नज़र आएँ जो ऐसी दुनिया में जीते हैं जहाँ परिवार के इंतज़ाम की इज़्ज़त नहीं की जाती, मगर फिर भी वे परमेश्‍वर को खुश करने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं। शायद आपकी नज़र कुछ ऐसे प्यारे बुज़ुर्गों पर पड़े, जो अपने समर्पण के वादे के मुताबिक लगातार यहोवा की सेवा करते आए हैं, फिर चाहे बुढ़ापे की वजह से उन्हें कितनी ही तकलीफों से क्यों न जूझना पड़ता हो। (नीतिवचन 16:31) ये सभी दिल की गहराइयों से यहोवा को प्यार करते हैं। और यहोवा को भी यह भाया है कि इन्हें अपने पास लाकर इनके साथ निजी रिश्‍ता कायम करे। परमेश्‍वर के पुत्र ने भी इस बात को पक्का किया: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।”—यूहन्‍ना 6:37, 44, 65.

2, 3. हर पल अपनी मसीही पहचान का एहसास रखना क्यों एक चुनौती हो सकती है?

2 क्या हमें इस बात से खुशी नहीं मिलती कि हम उन लोगों में शामिल हैं जिनसे यहोवा खुश है और जिन पर उसकी आशीष है? मगर, यह भी सच है कि इस “कठिन समय” में हर पल इस बात का एहसास रखना कि हम मसीही हैं, वाकई एक चुनौती है। (2 तीमुथियुस 3:1) यह खासकर उन नौजवानों के लिए चुनौती है जिनकी परवरिश मसीही परिवारों में हो रही है। ऐसे ही एक नौजवान ने कबूल किया: “मैं मसीही सभाओं में हाज़िर ज़रूर होता था, मगर मेरे सामने कोई आध्यात्मिक लक्ष्य नहीं थे और सच कहूँ तो, मुझमें यहोवा की सेवा करने की कोई खास इच्छा भी नहीं थी।”

3 कुछ नौजवान सच्चे दिल से यहोवा की सेवा करना चाहते तो हैं, मगर हमउम्र साथियों का ज़बरदस्त दबाव, दुनिया का असर और गलत काम करने की ओर झुकाव, परमेश्‍वर की सेवा से उनका ध्यान हटा सकता है। दबाव डाले जाने पर हम शायद धीरे-धीरे अपनी मसीही पहचान खो दें। मसलन, आज दुनिया में बहुत-से लोग मानते हैं कि बाइबल में सही-गलत के बारे में बताए गए स्तर पुराने पड़ चुके हैं और इन पर चलकर आज की दुनिया में नहीं जीया जा सकता। (1 पतरस 4:4) कुछ लोगों को यह ज़रूरी नहीं लगता कि परमेश्‍वर की उपासना उसी तरीके से की जाए जिस तरीके से वह चाहता है। (यूहन्‍ना 4:24) इफिसियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस कहता है कि संसार की एक “आत्मा” यानी इसका एक स्वभाव है। (इफिसियों 2:2) यह आत्मा, लोगों पर दबाव डालती है कि वे उस समाज की सोच के मुताबिक खुद को ढालें जो यहोवा से दूर है और उसे नहीं जानता।

4. यीशु ने कैसे ज़ोर देकर बताया कि मसीहियों के नाते अपनी पहचान की रक्षा करना हमारे लिए ज़रूरी है?

4 लेकिन, यहोवा के समर्पित सेवकों के नाते, हम जानते हैं कि अगर हममें से कोई भी, चाहे जवान हो या बुज़ुर्ग, अपनी मसीही पहचान खो दे तो इससे बड़े दुःख की बात और कोई नहीं होगी। अपनी मसीही पहचान के बारे में हमारा नज़रिया सिर्फ तभी सही हो सकता है जब इसकी बुनियाद यहोवा के स्तरों पर रखी हो और हमें अच्छी तरह पता हो कि वह हमसे क्या चाहता है। और ऐसा होना लाज़िमी भी है, क्योंकि हम यहोवा के स्वरूप में बनाए गए हैं। (उत्पत्ति 1:26; मीका 6:8) बाइबल, मसीहियों के नाते हमारी साफ पहचान को बाहरी वस्त्र के जैसा बताती है, जिसे पहनने पर सभी इसे देखते हैं। हमारे वक्‍त के बारे में यीशु ने चेतावनी दी थी: “देख, मैं चोर की नाईं आता हूं; धन्य वह है, जो जागता रहता है, और अपने वस्त्र की चौकसी करता है, कि नंगा न फिरे, और लोग उसका नंगापन न देखें।” * (प्रकाशितवाक्य 16:15) हम नहीं चाहते कि हम अपने मसीही गुणों और अच्छे व्यवहार को उतार फेंके और शैतान की दुनिया हमें अपने साँचे में ढाल ले। अगर ऐसा होगा, तो हम ये “वस्त्र” खो देंगे। हमारी ऐसी हालत बहुत ही अफसोसजनक और शर्मनाक होगी।

5, 6. आध्यात्मिक मायने में मज़बूत रहना हमारे लिए बेहद ज़रूरी क्यों है?

5 अगर एक इंसान को हर पल इस बात का एहसास है कि वह एक मसीही है, तो इससे काफी हद तक तय होगा कि वह अपनी ज़िंदगी कैसे जीएगा। ऐसा क्यों? अगर यहोवा के एक सेवक में यह एहसास न रहे कि वह कौन है, तो वह उस मुसाफिर की तरह भटकता रह जाएगा जिसे यह नहीं मालूम कि उसकी मंज़िल या लक्ष्य क्या है। बाइबल हमें बार-बार खबरदार करती है कि हम ऐसी ढुलमुल हालत में न रहें। शिष्य याकूब ने आगाह किया: “सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा। वह व्यक्‍ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।”—याकूब 1:6-8; इफिसियों 4:14; इब्रानियों 13:9.

6 हम अपनी मसीही पहचान की रक्षा कैसे कर सकते हैं? क्या बात हमारे अंदर इस एहसास को बढ़ाने में मदद दे सकती है कि परमप्रधान परमेश्‍वर का उपासक होना हमारे लिए बहुत बड़े सम्मान की बात है? नीचे बताए तरीकों पर ज़रा गौर कीजिए।

अपनी मसीही पहचान को पक्का कीजिए

7. यहोवा से यह मिन्‍नत करना क्यों फायदेमंद होगा कि वह हमें जाँचे?

7 यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को लगातार मज़बूत करते रहिए। एक मसीही की सबसे बड़ी दौलत है, परमेश्‍वर के साथ उसका निजी रिश्‍ता। (भजन 25:14; नीतिवचन 3:32) अगर अपनी मसीही पहचान के बारे में हमारे मन में परेशान करनेवाले सवाल उठने लगे हैं, तो समझ लीजिए वक्‍त आ गया है कि हम परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते की अच्छी तरह जाँच-परख करें और जानें कि यह कितना मज़बूत और गहरा है। भजनहार की यह मिन्‍नत कितनी सही थी: “हे यहोवा, मुझ को जांच और परख; मेरे मन और हृदय को परख।” (भजन 26:2) ऐसी जाँच ज़रूरी क्यों है? क्योंकि हम खुद दिल की गहराइयों में छिपे हुए अपने इरादों और अंदर के स्वभाव को पूरी ईमानदारी से नहीं जाँच सकते। सिर्फ यहोवा हमारे अंदर के इंसान को यानी हमारे इरादों, विचारों और भावनाओं को अच्छी तरह समझने के काबिल है।—यिर्मयाह 17:9, 10.

8. (क) यहोवा जब हमारी परीक्षा लेता है तो हमें कैसे फायदा होता है? (ख) एक मसीही के नाते आपको उन्‍नति करने में कैसे मदद मिली है?

8 जब हम यहोवा से हमें जाँचने-परखने के लिए कहते हैं, तो हम उसे हमारी परीक्षा लेने के लिए कह रहे हैं। वह शायद ऐसे हालात पैदा होने दे जिनसे हमारे असली इरादे और दिल का हाल साफ दिखायी देने लगता है। (इब्रानियों 4:12, 13; याकूब 1:22-25) हमें खुशी-खुशी ऐसी परीक्षाओं से गुज़रना चाहिए, क्योंकि इनसे हमें यह दिखाने का मौका मिलता है कि हम किस हद तक यहोवा के वफादार हैं। इनसे यह भी ज़ाहिर हो सकता है कि क्या हम ‘पूरे और सिद्ध हैं और हम में किसी बात की घटी तो नहीं।’ (याकूब 1:2-4) और इन परीक्षाओं से गुज़रते हुए हम आध्यात्मिक तरीके से उन्‍नति कर सकते हैं।—इफिसियों 4:22-24.

9. बाइबल की सच्चाई का खुद को यकीन दिलाना क्यों बेहद ज़रूरी है? समझाइए।

9 बाइबल की सच्चाई का खुद को यकीन दिलाइए। यहोवा के सेवकों के नाते हमारी पहचान होने का एहसास, अगर बाइबल के ज्ञान की ठोस बुनियाद पर न टिका हो तो यह कमज़ोर पड़ सकता है। (फिलिप्पियों 1:9, 10) छोटे-बड़े हर मसीही को, खुद यह तसल्ली करनी चाहिए कि वह जिन बातों पर विश्‍वास करता है वे वाकई बाइबल में पायी जानेवाली सच्चाइयाँ हैं। पौलुस ने संगी विश्‍वासियों से गुज़ारिश की: “सब बातों को परखो: जो अच्छी है उसे पकड़े रहो।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:21) परमेश्‍वर का भय माननेवाले माता-पिता के साये में पले नौजवान मसीहियों को यह समझना ज़रूरी है कि वे अपने माता-पिता के विश्‍वास की वजह से सच्चे मसीही नहीं बन जाएँगे। सुलैमान के पिता दाऊद ने उसे उकसाया कि “तू अपने पिता के परमेश्‍वर को जान और सम्पूर्ण हृदय . . . से उसकी सेवा कर।” (1 इतिहास 28:9, NHT) नौजवान सुलैमान के लिए अपने पिता को यहोवा पर विश्‍वास बढ़ाते हुए देखना काफी न था। उसे खुद यहोवा को जानना था और उसने ऐसा ही किया। उसने परमेश्‍वर से बिनती की: “अब मुझे ऐसी बुद्धि और ज्ञान दे, कि मैं इस प्रजा के साम्हने अन्दर-बाहर आना-जाना कर सकूं।”—2 इतिहास 1:10.

10. सही इरादे से सच जानने के लिए सवाल पूछना क्यों गलत नहीं है?

10 चट्टान की तरह अटल विश्‍वास की नींव ज्ञान होता है। पौलुस ने कहा: “विश्‍वास सुनने . . . से होता है।” (रोमियों 10:17) पौलुस के ऐसा कहने का क्या मतलब था? उसका मतलब था कि परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने से, हम यहोवा, उसके वादों और संगठन पर अपने विश्‍वास और भरोसे को और भी मज़बूत करते हैं। सच्चाई जानने के इरादे से अगर हम बाइबल के बारे में सवाल पूछें, तो हमें यकीन दिलानेवाले जवाब मिलेंगे। इसके अलावा, रोमियों 12:2 में हमें पौलुस की सलाह मिलती है: “तुम परमेश्‍वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” यह हम कैसे कर सकते हैं? ‘सत्य का [सही] ज्ञान’ हासिल करने से। (तीतुस 1:1, NHT) यहोवा की आत्मा हमें मुश्‍किल विषयों को भी समझने में मदद दे सकती है। (1 कुरिन्थियों 2:11, 12) अगर हमें कोई बात समझने में मुश्‍किल लग रही है तो हमें परमेश्‍वर से मदद पाने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। (भजन 119:10, 11, 27) यहोवा चाहता है कि हम उसका वचन समझें, उस पर विश्‍वास करें और उसे मानें। जब हम सही इरादे से सच जानने के लिए सवाल पूछते हैं, तो यह उसे भाता है।

परमेश्‍वर को खुश करने की ठान लीजिए

11. (क) कौन-सी ज़रूरत हमारे लिए फंदा बन सकती है? (ख) हम साथियों के दबाव का सामना करने के लिए हिम्मत कैसे जुटा सकते हैं?

11 इंसान को नहीं, परमेश्‍वर को खुश करने की कोशिश में रहिए। यह कोई नयी बात नहीं कि लोग कुछ हद तक अपनी पहचान कायम करने के लिए किसी समूह के साथ खुद को जोड़ लेते हैं। हर किसी को दोस्तों की ज़रूरत होती है, और जब लोग हमें पसंद करते हैं तो हमें अच्छा लगता है। लड़कपन में और बड़े होने के बाद भी, साथियों का हम पर ज़बरदस्त दबाव हो सकता है और इस वजह से हम हर हाल में उनके जैसा बनने या उन्हें खुश करने की कोशिश करते हैं। मगर हमारे दोस्त और साथी हमेशा हमारी भलाई नहीं सोचते। कभी-कभी उन्हें कोई गलत काम करने के लिए बस किसी का साथ चाहिए होता है। (नीतिवचन 1:11-19) जब एक मसीही साथियों के दबाव में आकर कोई गलत काम कर बैठता है, तो वह अकसर अपनी पहचान छिपाने की कोशिश करता है। (भजन 26:4) प्रेरित पौलुस ने खबरदार किया: “अपनी चारों तरफ की दुनिया के चालचलन के मुताबिक खुद को न ढालो।” (रोमियों 12:2, द जॆरूसलेम बाइबल) यहोवा हमें अंदरूनी ताकत देता है ताकि हम दुनिया की सी चाल चलने के बाहर से आनेवाले दबाव का सामना कर सकें।—इब्रानियों 13:6.

12. कौन-सा सिद्धांत और किसकी मिसाल हमें परमेश्‍वर पर अपना भरोसा कायम रखने की हिम्मत देगी?

12 जब बाहर से आनेवाले दबाव की वजह से मसीही होने के हमारे एहसास के मिटने का खतरा हो, तब यह याद रखना अच्छा होगा कि हमारे लिए परमेश्‍वर का वफादार रहना ज़्यादा ज़रूरी है बजाय इसके कि लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे या ज़्यादातर लोग ऐसी हालत में क्या करेंगे। निर्गमन 23:2 (NHT) के सिद्धांत से हमारी हिफाज़त होगी: “तू बुराई करने के लिए भीड़ के पीछे न हो लेना।” जब ज़्यादातर इस्राएलियों को यकीन नहीं हो रहा था कि यहोवा अपने वादे पूरे करने की काबिलीयत रखता है, तब कालेब ने भीड़ का साथ देने से साफ इनकार कर दिया। उसे पूरा यकीन था कि परमेश्‍वर के वादों पर आँख मूँदकर विश्‍वास किया जा सकता है और इस अटल फैसले की वजह से उसे बेहिसाब आशीषें मिलीं। (गिनती 13:30; यहोशू 14:6-11) क्या आप भी परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते की हिफाज़त करने के लिए, कालेब की तरह ज़माने से लड़ने को तैयार हैं?

13. मसीही होने के नाते अपनी पहचान जग-ज़ाहिर करना क्यों बुद्धिमानी का काम है?

13 अपनी मसीही पहचान को जग-ज़ाहिर कीजिए। कहते हैं कि खुद को दुश्‍मन से बचाने का सबसे अच्छा तरीका है दुश्‍मन पर वार करना। यह बात तब भी सच होती है जब हम अपनी मसीही पहचान की रक्षा करने के लिए कमर कस लेते हैं। एज्रा के दिनों में जब वफादार इस्राएली यहोवा की मरज़ी पूरी करना चाहते थे और उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा, तब उन्होंने कहा: “हम तो आकाश और पृथ्वी के परमेश्‍वर के दास हैं।” (एज्रा 5:11) अगर हमारे बैरियों के गुस्से और नुक्‍ताचीनी का हम पर असर होता है, तो हम शायद डर के मारे होश खो बैठें। अगर हम यह मानकर चलेंगे कि हमें सबको खुश रखना है तो फिर हम अपना काम सही-सही नहीं कर पाएँगे। इसलिए कोई आपको डराने न पाए। हमेशा अच्छा यही होता है कि दूसरों को साफ-साफ बताएँ कि आप एक यहोवा के साक्षी हैं। आदर के साथ मगर बिना घबराए, आप दूसरों को अपने आदर्शों, विश्‍वासों और एक मसीही के नाते आप जिन बातों पर अटल हैं उनके बारे में बता सकते हैं। दूसरों को बताइए कि नैतिकता के मामले में आपने यहोवा के ऊँचे स्तरों पर चलते रहने की ठान ली है। साफ-साफ बताइए कि आप अपनी मसीही खराई को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ सकते। दिखाइए कि आपको अपने मसीही उसूलों और आदर्शों पर नाज़ है। (भजन 64:10) अपने विश्‍वास पर अटल रहनेवाले मसीही की पहचान कायम करने से आपको हिम्मत मिलेगी, आपकी हिफाज़त होगी, और-तो-और कुछ लोग आपको देखकर यहोवा और उसके लोगों के बारे में जानना चाहेंगे।

14. लोग अगर हमारा मज़ाक उड़ाते या विरोध करते हैं तो क्या हमें हिम्मत हारनी चाहिए? समझाइए।

14 यह सच है कि कुछ लोग आपका मज़ाक उड़ाएँगे या विरोध करेंगे। (यहूदा 18) जब आप दूसरों को अपने मसीही आदर्शों के बारे में बताते हैं और वे आपकी बातों को अनसुना कर देते हैं, तो दिल छोटा मत कीजिए। (यहेजकेल 3:7, 8) चाहे आपके इरादे कितने ही बुलंद क्यों न हों, आप उन लोगों को कभी यकीन नहीं दिला पाएँगे जो यकीन करना ही नहीं चाहते। फिरौन को याद कीजिए। बड़ी-से-बड़ी विपत्ति या बड़े-से-बड़ा चमत्कार भी, यहाँ तक कि उसके पहिलौठे की मौत भी, उसको इस बात का यकीन न दिला सकी कि मूसा यहोवा की तरफ से बोल रहा है। इसलिए, इंसान के खौफ को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए। परमेश्‍वर पर भरोसा और विश्‍वास हमें डर पर काबू पाने में मदद दे सकता है।—नीतिवचन 3:5, 6; 29:25.

गुज़रे कल से सीखकर आनेवाला कल सँवारिए

15, 16. (क) हमारी आध्यात्मिक विरासत क्या है? (ख) परमेश्‍वर के वचन की मदद से अपनी आध्यात्मिक विरासत पर मनन करने से हमें कैसे फायदा हो सकता है?

15 अपनी आध्यात्मिक विरासत को सीने से लगाए रखिए। परमेश्‍वर के वचन की मदद से, मसीही अपनी बेहिसाब आध्यात्मिक विरासत के बारे में मनन करने से फायदा पा सकते हैं। इस विरासत में हमें यहोवा के वचन से सच्चाई और हमेशा की ज़िंदगी जीने की आशा मिली है, इसके अलावा सुसमाचार के प्रचारकों के रूप में परमेश्‍वर के नुमाइंदे कहलाने की इज़्ज़त मिली है। क्या उसके साक्षियों में आपको अपनी एक जगह नज़र आती है? यह परमेश्‍वर की आशीष पानेवाले ऐसे खास लोगों का समूह है जिन्हें परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करने का काम दिया गया है जिससे लोगों की जान बचती है। याद रहे कि यहोवा ने खुद हमारी इस पहचान पर मुहर लगायी है: “तुम मेरे साक्षी हो।”—यशायाह 43:10.

16 आप खुद से ये सवाल पूछ सकते हैं: ‘मेरे लिए यह आध्यात्मिक विरासत क्या मोल रखती है? क्या यह मेरे लिए इतनी अनमोल है कि मैं अपनी ज़िंदगी में परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने को सबसे पहली जगह देता हूँ? क्या इस विरासत के लिए मेरी कदरदानी इतनी ज़्यादा है कि यह मुझे ऐसी हर परीक्षा पार करने की हिम्मत देगी जिसकी वजह से शायद यह विरासत मेरे हाथ से निकल सकती है?’ अपनी आध्यात्मिक विरासत से हमें आध्यात्मिक रूप से महफूज़ होने का ऐसा ज़बरदस्त एहसास मिलता है जो सिर्फ यहोवा के संगठन में मुमकिन है। (भजन 91:1, 2) हमारे ज़माने में यहोवा के संगठन के इतिहास की कुछ खास घटनाओं पर गौर करने से हमारे मन में यह बात बैठ जाएगी कि इस दुनिया में कोई ऐसा शख्स या ऐसी चीज़ नहीं है, जो यहोवा के लोगों को इस धरती से मिटा सके।—यशायाह 54:17; यिर्मयाह 1:19.

17. सिर्फ अपनी आध्यात्मिक विरासत पर निर्भर रहने के बजाय और क्या करना ज़रूरी है?

17 यह भी सच है कि हम सिर्फ अपनी आध्यात्मिक विरासत पर निर्भर नहीं रह सकते। हममें से हरेक को परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करना होगा। पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों का विश्‍वास मज़बूत करने के लिए कड़ी मेहनत की थी। उसके बाद उसने उन्हें लिखा: “सो हे मेरे प्यारो, जिस प्रकार तुम सदा से आज्ञा मानते आए हो, वैसे ही अब भी न केवल मेरे साथ रहते हुए पर विशेष करके अब मेरे दूर रहने पर भी डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य्य पूरा करते जाओ।” (फिलिप्पियों 2:12) हम अपने उद्धार के लिए किसी और पर निर्भर नहीं रह सकते।

18. मसीही कामों में लगे रहने से मसीही होने का हमारा एहसास कैसे मज़बूत हो सकता है?

18 मसीही कामों में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लीजिए। कहा जाता है कि “इंसान के कामों से उसकी पहचान होती है।” आज मसीहियों को परमेश्‍वर के स्थापित राज्य का सुसमाचार सुनाने का ज़रूरी काम दिया गया है। पौलुस ने कहा: “जब कि मैं अन्यजातियों के लिये प्रेरित हूं, तो मैं अपनी सेवा की बड़ाई करता हूं।” (रोमियों 11:13) हमारा प्रचार काम हमें दुनिया से अलग करता है और इसमें हिस्सा लेने से हमारी मसीही पहचान में और निखार आता है। परमेश्‍वर की सेवा के अलग-अलग कामों में जैसे मसीही सभाएँ, उपासना की जगहों का निर्माण करने के कार्यक्रम, ज़रूरतमंदों की मदद करने की कोशिशों वगैरह में लगे रहने से, मसीही होने का हमारा एहसास और मज़बूत होता जाता है।—गलतियों 6:9, 10; इब्रानियों 10:23, 24.

साफ पहचान की सच्ची आशीषें

19, 20. (क) एक मसीही होने के नाते आपको क्या-क्या फायदे मिले हैं? (ख) हमारी सच्ची पहचान हमें किससे मिलती है?

19 सच्चे मसीही होने की वजह से हमें जो ढेरों आशीषें और फायदे मिलते हैं, उन पर कुछ देर के लिए गौर कीजिए। खुद यहोवा हमें जानता-पहचानता है। हमारे लिए इससे बड़ी इज़्ज़त की बात और क्या हो सकती है! भविष्यवक्‍ता मलाकी ने कहा: “यहोवा का भय माननेवालों ने आपस में बातें कीं, और यहोवा ध्यान धरकर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके साम्हने एक पुस्तक लिखी जाती थी।” (मलाकी 3:16) यह मुमकिन है कि परमेश्‍वर हमें अपना दोस्त माने। (याकूब 2:23) उसने हमारी ज़िंदगी को एक मंज़िल देकर इसे सँवारा है। हमारे जीने का सच्चा मकसद है और हमारे सामने ऐसे लक्ष्य हैं जिनसे हम बहुत कुछ हासिल कर पाते हैं। और हमें हमेशा-हमेशा तक जीने की आशा मिली है।—भजन 37:9.

20 यह कभी मत भूलिए कि आपकी सच्ची पहचान और आपका मोल इससे है कि परमेश्‍वर की नज़र में आपका मोल क्या है, न कि लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं। लोग, इंसान के ठहराए कमतर स्तरों के मुताबिक शायद हमारे बारे में एक राय कायम करें। मगर परमेश्‍वर का प्रेम और हममें से एक-एक जन में उसकी दिलचस्पी, हमें यह मानने की ठोस वजह देती है कि हम परमेश्‍वर के हैं और उसकी नज़र में हमारा भी कुछ मोल है। (मत्ती 10:29-31) दूसरी तरफ, परमेश्‍वर के लिए हमारे दिल में प्यार, हमें अपनी पहचान का पक्का एहसास दिलाएगा जिससे हमारी ज़िंदगी को बिलकुल सही दिशा मिलेगी। क्योंकि “यदि कोई परमेश्‍वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्‍वर पहिचानता है।”—1 कुरिन्थियों 8:3.

[फुटनोट]

^ ये शब्द शायद यरूशलेम के मंदिर के हाकिम के काम की ओर इशारा करते हैं। रात को पहरा देते वक्‍त, वह यह देखने के लिए मंदिर के चक्कर लगाता था कि लेवी पहरेदार अपनी-अपनी जगहों पर तैनात हैं और जाग रहे हैं या सो गए। अगर कोई पहरेदार सोता हुआ मिलता, तो उसे डंडे से पीटा जाता और बड़ी शर्मनाक सज़ा देने के लिए उसका बाहरी वस्त्र जला दिया जाता था।

क्या आपको याद है?

• मसीहियों के लिए अपनी आध्यात्मिक पहचान की रक्षा करना क्यों बेहद ज़रूरी है?

• हम अपनी मसीही पहचान को पक्का कैसे कर सकते हैं?

• जब आपके सामने सवाल आता है कि किसे खुश करें, तो क्या बातें आपको सही फैसला करने में मदद दे सकती हैं?

• मसीहियों के नाते अपनी पहचान का हर पल एहसास होना कैसे हमारे आनेवाले कल को सँवारेगा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीरें]

मसीही कामों में लगे रहने से हमारी मसीही पहचान में और निखार आ सकता है