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मसीहियो—आप जो हैं उस पर गर्व कीजिए!

मसीहियो—आप जो हैं उस पर गर्व कीजिए!

मसीहियो—आप जो हैं उस पर गर्व कीजिए!

“जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।”1 कुरिन्थियों 1:31.

1. धर्म के मामले में लोगों में कौन-सा चलन दिखायी दे रहा है?

 “धर्म से बेरुखी।” अपने धर्म के मामले में ज़्यादातर लोगों का रवैया कैसा है, यह बताने के लिए धार्मिक मामलों के एक टीकाकार ने हाल ही में ऊपर लिखे शब्द इस्तेमाल किए। उसने समझाया: “धर्म को माननेवालों में आजकल एक नया चलन है जो धर्म के बारे में नहीं बल्कि लोगों के रवैए के बारे में है। इस रवैए को इन शब्दों में सबसे बेहतरीन तरीके से बयान किया जा सकता है, ‘धर्म से बेरुखी।’” इस बारे में समझाते हुए उसने कहा कि धर्म से बेरुखी का मतलब है, “अपने धर्म में कोई खास दिलचस्पी न लेना।” उसके मुताबिक बहुत-से लोग “ईश्‍वर को मानते हैं . . . ; मगर उनकी ज़िंदगी पर उसे मानने का कोई खास फर्क नहीं पड़ता।”

2. (क) यह देखकर हैरानी क्यों नहीं होती कि धर्म के मामलों में लोगों में बेरुखी आ गयी है? (ख) बेरुखी, सच्चे मसीहियों के लिए क्या खतरा पैदा कर सकती है?

2 बाइबल का अध्ययन करनेवाले, बेरुखी के इस चलन को देखकर हैरान नहीं होते। (लूका 18:8) धर्म चाहे कोई भी हो, इसमें लोगों की दिलचस्पी कम होना लाज़िमी है। क्योंकि झूठे धर्म ने सदियों से इंसान को गुमराह और निराश किया है। (प्रकाशितवाक्य 17:15, 16) मगर जब सच्चे मसीहियों की बात आती है, तो उपासना में लगन और जोश की कमी का यह माहौल उनके लिए बहुत खतरनाक है। अगर हम मसीही अपने विश्‍वास के बारे में लापरवाह हो जाएँ और परमेश्‍वर की सेवा के लिए, साथ ही बाइबल की सच्चाई के लिए अपना जोश ठंडा पड़ने दें तो इसकी हमें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। यीशु ने लौदीकिया में रहनेवाले पहली सदी के मसीहियों को इस तरह गुनगुने होने से खबरदार किया था: “तू न तो ठंडा है और न गर्म: भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता। . . . तू गुनगुना है।”—प्रकाशितवाक्य 3:15-18.

हम कौन हैं यह समझना

3. मसीही अपनी पहचान के किन पहलुओं पर गर्व कर सकते हैं?

3 आध्यात्मिक बातों में बेरुखी की भावना से लड़ने के लिए, मसीहियों को यह साफ-साफ समझने की ज़रूरत है कि वे कौन हैं और उन्हें अपनी इस अलग पहचान पर गर्व महसूस करना चाहिए। यहोवा के सेवक और मसीह के चेले होने के नाते, बाइबल हमें बताती है कि हम कौन हैं। हम यहोवा के “साक्षी” हैं और “परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं” क्योंकि हम पूरे जोश से दूसरों को “सुसमाचार” सुनाते हैं। (मत्ती 24:14; यशायाह 43:10; 1 कुरिन्थियों 3:9) हम लोग “एक दूसरे से प्रेम” करते हैं। (यूहन्‍ना 13:34) सच्चे मसीही ऐसे लोग हैं “जिन के ज्ञानेन्द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।” (इब्रानियों 5:14) हम “जगत में जलते दीपकों” की तरह हैं। (फिलिप्पियों 2:15) हम “अन्यजातियों में [अपना] चालचलन भला” रखने की कोशिश करते हैं।—1 पतरस 2:12; 2 पतरस 3:11, 14.

4. यहोवा का एक उपासक कैसे तय कर सकता है कि वह क्या नहीं है?

4 यहोवा के सच्चे उपासक यह भी जानते हैं कि वे क्या नहीं हैं। वे “संसार के नहीं,” ठीक जैसे उनका अगुवा यीशु मसीह संसार का नहीं था। (यूहन्‍ना 17:16) वे ‘अन्यजातियों’ से अलग रहते हैं, जिनकी “बुद्धि अन्धेरी हो गयी है और . . . परमेश्‍वर के जीवन से अलग किए हुए हैं।” (इफिसियों 4:17, 18) इसलिए यीशु के चेले “अभक्‍ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेरकर इस युग में संयम और धर्म और भक्‍ति से जीवन” बिताते हैं।—तीतुस 2:12.

5. ‘यहोवा में घमण्ड करने’ के बढ़ावे का क्या मतलब है?

5 हम अच्छी तरह समझते हैं कि हम कौन हैं, यही नहीं इस जहान के महाराजाधिराज के साथ हमारा रिश्‍ता भी हमें यहोवा में ‘घमण्ड करने’ के लिए उकसाता है। (1 कुरिन्थियों 1:31) यह किस तरह का घमंड है? सच्चे मसीहियों के नाते हमें फख्र है कि यहोवा हमारा परमेश्‍वर है। इस आयत में हमें जो बढ़ावा दिया गया है, हम वही करते हैं: “जो घमण्ड करे वह इसी बात पर घमण्ड करे, कि वह मुझे जानता और समझता है, कि मैं ही वह यहोवा हूं, जो पृथ्वी पर करुणा, न्याय और धर्म के काम करता है।” (यिर्मयाह 9:24) हम इस बात पर “घमण्ड” करते हैं कि हमें परमेश्‍वर को जानने का बहुत बड़ा सम्मान मिला है और वह हमें दूसरों की मदद करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है।

चुनौती

6. कुछ मसीहियों के लिए अपनी पहचान को साफ-साफ समझना क्यों मुश्‍किल होता है?

6 यह सच है कि मसीहियों के नाते अपनी अलग पहचान को साफ-साफ समझना हमेशा आसान नहीं होता। मसीही परिवार में पले-बढ़े एक नौजवान ने बताया कि कुछ वक्‍त के लिए वह आध्यात्मिक मायने में कमज़ोर पड़ गया था। वह कहता है: “मुझे बचपन से बाइबल की सच्चाई सिखायी गयी थी। मगर फिर भी मुझे लगता था कि यहोवा का एक साक्षी होने की मेरे पास कोई ठोस वजह नहीं है। कभी-कभी मुझे लगता था कि यह धर्म भी बाकी जाने-माने धर्मों जैसा ही है।” इसके अलावा, कई मसीहियों ने अपनी पहचान को मनोरंजन की दुनिया, मीडिया और ज़िंदगी के बारे में दुनियावी रवैए के मुताबिक ढलने दिया है। (इफिसियों 2:2, 3) कुछ मसीहियों को समय-समय पर शक सताने लगता है और वे खुद से पूछते हैं कि क्या मुझे अपने आदर्श और लक्ष्य बदलने चाहिए?

7. (क) परमेश्‍वर के सेवकों के लिए किस तरह खुद अपनी जाँच करना सही होगा? (ख) खतरा कहाँ छिपा हुआ है?

7 क्या इस तरह कुछ हद तक सख्ती से अपनी जाँच करना गलत है? नहीं। आपको शायद याद हो कि प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को उकसाया था कि खुद अपनी जाँच करते रहें। उसने कहा: “अपने आप को परखो, कि विश्‍वास में हो कि नहीं; अपने आप को जांचो।” (2 कुरिन्थियों 13:5) यहाँ प्रेरित हमें उकसा रहा है कि हमें यह पता लगाने की अच्छी कोशिश करनी चाहिए कि कहीं हममें कुछ आध्यात्मिक कमज़ोरियाँ तो पैदा नहीं हो गयी हैं और फिर उन्हें सुधारने के लिए ज़रूरी कदम उठाने चाहिए। एक मसीही को यह जाँचते वक्‍त कि वह विश्‍वास में है या नहीं, देखना चाहिए कि जिन बातों पर वह विश्‍वास करने का दावा करता है, क्या वह उसकी कथनी और करनी से ज़ाहिर होता है। लेकिन, अगर हम अपनी जाँच करते-करते गलत दिशा में चले जाएँ, यानी हम यहोवा और मसीही कलीसिया के साथ अपने रिश्‍ते के दायरे से बाहर अपनी “पहचान” खोजें या अपने सवालों के जवाब ढूँढ़ें, तो हमारी इस जाँच का कोई फायदा नहीं होगा और यह आध्यात्मिक मायने में हमारे लिए जानलेवा हो सकती है। * हम कभी नहीं चाहेंगे कि हमारा “विश्‍वास रूपी जहाज डूब” जाए!—1 तीमुथियुस 1:19.

हम भी मुश्‍किलों का सामना करते हैं

8, 9. (क) मूसा ने क्या कहकर दिखाया कि वह खुद को नाकाबिल समझता है? (ख) जब मूसा ने अपनी कमियाँ बतायीं तो यहोवा ने क्या किया? (ग) यहोवा के दिलासों का आप पर क्या असर होता है?

8 कभी-कभी मसीहियों को अपनी काबिलीयत पर शक होता है, क्या इसका यह मतलब है कि वे किसी लायक नहीं? ऐसा हरगिज़ नहीं है! दरअसल, वे यह जानकर तसल्ली पा सकते हैं कि ऐसा महसूस करना कोई नयी बात नहीं है। प्राचीन समय में परमेश्‍वर के वफादार साक्षी ऐसी ही भावनाओं से गुज़रे थे। मूसा को लीजिए जिसने बेजोड़ विश्‍वास, वफादारी और भक्‍ति की मिसाल कायम की। मुश्‍किल लगनेवाला काम मिलने पर मूसा ने झिझकते हुए पूछा: “मैं कौन हूं?” (निर्गमन 3:11) ज़ाहिर है मूसा के मन में यही जवाब था कि ‘मैं तो कुछ भी नहीं हूँ!’ या ‘मैं इस काबिल कहाँ!’ मूसा जिस जाति में पैदा हुआ था और जिस तरह उसका बचपन बीता था उसकी वजह से उसने खुद को नाकाबिल महसूस किया होगा: उसके भाई-बंधु दास थे। उन्हीं इस्राएली भाइयों ने पहले एक मौके पर उसे ठुकरा दिया था। बोलने में भी वह निपुण नहीं था। (निर्गमन 1:13, 14; 2:11-14; 4:10) वह पेशे से एक चरवाहा था, और मिस्री इस पेशे से नफरत करते थे। (उत्पत्ति 46:34) इन्हीं वजहों से मूसा खुद को इस ज़िम्मेदारी के काबिल नहीं समझता था कि वह परमेश्‍वर के लोगों को गुलामी से छुड़ाए!

9 यहोवा ने दो ज़बरदस्त वादों से मूसा की हिम्मत बँधायी: “निश्‍चय मैं तेरे संग रहूंगा; और इस बात का कि तेरा भेजनेवाला मैं हूं, तेरे लिये यह चिन्ह होगा; कि जब तू उन लोगों को मिस्र से निकाल चुके तब तुम इसी पहाड़ पर परमेश्‍वर की उपासना करोगे।” (निर्गमन 3:12) परमेश्‍वर अपने सेवक मूसा की झिझक दूर करने के लिए उससे कह रहा था कि वह हर पल उसके साथ रहेगा। इसके अलावा, यहोवा यह भी बता रहा था कि वह हर हाल में अपने लोगों का उद्धार करेगा। सदियों के दौरान, परमेश्‍वर ने अपने और भी कई सेवकों से वादे किए कि वह इसी तरह उन्हें मदद देता रहेगा। मसलन, जब इस्राएल जाति वादा किए देश में कदम रखने ही वाली थी तब मूसा के ज़रिए परमेश्‍वर ने उनसे कहा: “तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो, . . . तेरे संग चलनेवाला तेरा परमेश्‍वर यहोवा है; वह तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा।” (व्यवस्थाविवरण 31:6) यहोवा ने यहोशू को भी यकीन दिलाया: “तेरे जीवन भर कोई तेरे साम्हने ठहर न सकेगा; [मैं] तेरे संग . . . रहूंगा; और न तो मैं तुझे धोखा दूंगा, और न तुझ को छोड़ूंगा।” (यहोशू 1:5) और वह मसीहियों से भी वादा करता है: “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।” (इब्रानियों 13:5) ऐसा मज़बूत सहारा पाकर हमें अपने मसीही होने पर गर्व होना चाहिए!

10, 11. यहोवा की सेवा में रहने की क्या अहमियत है, इस बारे में सही नज़रिया बनाए रखने में लेवी आसाप की मदद कैसे की गयी?

10 मूसा के 500 साल बाद, आसाप नाम का एक वफादार लेवी हुआ। उसने पूरी ईमानदारी से यह कबूल किया कि एक वक्‍त पर वह इस शक का शिकार हो गया था कि खरी चाल चलने का वाकई कोई फायदा है भी या नहीं। आसाप तकलीफें और परीक्षाएँ झेलते हुए भी परमेश्‍वर की सेवा जी-जान से करने की कोशिश करता रहा। इस दौरान उसने देखा कि परमेश्‍वर को ठट्ठों में उड़ानेवालों की ताकत और खुशहाली दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। आसाप पर इसका कैसा असर पड़ा? उसने कबूल किया: “मेरे डग तो उखड़ना चाहते थे, मेरे डग फिसलने ही पर थे। क्योंकि जब मैं दुष्टों का कुशल देखता था, तब उन घमण्डियों के विषय डाह करता था।” आसाप का यह यकीन टूटने लगा कि यहोवा का उपासक होना बड़े फख्र की बात है। उसने सोचा: “निश्‍चय, मैं ने अपने हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है; क्योंकि मैं दिन भर मार खाता आया हूं।”—भजन 73:2, 3, 13, 14.

11 आसाप ने ऐसी परेशान करनेवाली भावनाओं पर काबू कैसे पाया? क्या उसने इन भावनाओं को दबा दिया? नहीं। उसने प्रार्थना में परमेश्‍वर को अपनी ये भावनाएँ बतायीं, जिसके बारे में हम 73वें भजन में पढ़ते हैं। आसाप के रवैए में भारी बदलाव तब आया जब वह परमेश्‍वर के मंदिर में आया। वहाँ, उसे एहसास हुआ कि खुद को परमेश्‍वर की सेवा में न्योछावर कर देना ही सबसे बेहतरीन ज़िंदगी है। आसाप जब एक बार फिर इस बात की कदर करने लगा तो वह समझ सका कि यहोवा बुराई से घृणा करता है और सही वक्‍त आने पर दुष्टों को उनका बदला ज़रूर मिलेगा। (भजन 73:17-19) इस दौरान, आसाप ने यहोवा का सेवक होने के सम्मान के लिए अपनी कदरदानी बढ़ायी और अपनी पहचान को पहले से ज़्यादा पक्का किया। उसने परमेश्‍वर से कहा: “मैं निरन्तर तेरे संग ही था; तू ने मेरे दहिने हाथ को पकड़ रखा। तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा।” (भजन 73:23, 24) आसाप को एक बार फिर अपने परमेश्‍वर पर गर्व होने लगा।—भजन 34:2.

उन्हें अच्छी तरह पता था कि वे कौन हैं

12, 13. बाइबल के ऐसे किरदारों की मिसालें दीजिए जिन्हें परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते पर गर्व था।

12 अपने मसीही होने के एहसास को और मज़बूत करने का एक तरीका यह है कि हम बीते वक्‍त में परमेश्‍वर के वफादार उपासकों के विश्‍वास पर गौर करें और उन्हीं के जैसा विश्‍वास दिखाएँ। क्योंकि इन वफादार लोगों को मुसीबतें झेलते हुए भी इस बात पर फख्र था कि परमेश्‍वर के साथ उनका एक रिश्‍ता है। याकूब के बेटे यूसुफ को ही लीजिए। कच्ची उम्र में ही उसे धोखे से एक दास बनाकर बेच दिया गया और मिस्र ले जाया गया। वहाँ वह, परमेश्‍वर का भय माननेवाले अपने पिता से और उस घर के प्यार भरे माहौल से कोसों दूर था जहाँ उसकी हर ज़रूरत का ध्यान रखा जाता था। मिस्र में कोई ऐसा इंसान न था जो यूसुफ को परमेश्‍वर की इच्छा के मुताबिक सलाह देता और वहाँ वह ऐसे-ऐसे हालात से गुज़रा जिनमें उसके शुद्ध चालचलन और परमेश्‍वर पर भरोसे की परीक्षा हुई। मगर उसने हर पल यह याद रखने की पूरी कोशिश की कि वह परमेश्‍वर का एक सेवक है और उसने वफादार रहकर वही किया, जो उसे पता था कि सही है। यहोवा को न जाननेवालों के बीच रहते हुए भी उसने यहोवा का उपासक होने पर गर्व किया और इस बारे में अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने में उसने कभी शर्म महसूस नहीं की।—उत्पत्ति 39:7-10.

13 आठ सौ साल बाद, एक इस्राएली लड़की बंदी बनकर अराम के सेनापति नामान के घर में दासी का काम करने लगी। वह भी यहोवा के उपासक की हैसियत से अपनी पहचान नहीं भूली। जब मौका आया, तब उसने हिम्मत के साथ यहोवा के बारे में बेहतरीन गवाही दी और एलीशा को सच्चे परमेश्‍वर का भविष्यवक्‍ता बताया। (2 राजा 5:1-19) इस घटना के बरसों बाद, नौजवान राजा योशिय्याह ने भ्रष्ट माहौल में रहकर भी, धार्मिक मामलों में सुधार शुरू किया जो सालों-साल चला। उसने परमेश्‍वर के मंदिर की मरम्मत करवायी और पूरे देश में फिर से यहोवा की उपासना बहाल की। उसे अपने धर्म और अपनी उपासना पर नाज़ था। (2 इतिहास, अध्याय 34, 35) दानिय्येल और उसके तीन इब्री साथी बाबुल में रहते वक्‍त कभी नहीं भूले कि वे यहोवा के सेवक हैं और दबाव और परीक्षाएँ आने पर भी उन्होंने अपनी खराई बनाए रखी। इससे साफ ज़ाहिर है, उन्हें यहोवा के सेवक होने पर गर्व था।—दानिय्येल 1:8-20.

आप जो हैं उस पर गर्व कीजिए

14, 15. अपनी मसीही पहचान पर घमंड करने में क्या शामिल है?

14 परमेश्‍वर के ये सेवक कामयाब रहे, क्योंकि इन्होंने परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते के बारे में अपने अंदर गर्व की भावना पैदा की। हमारे बारे में क्या? अपनी मसीही पहचान पर घमंड करने में आज क्या शामिल है?

15 खास तौर पर, इसमें यहोवा के नाम के लोग कहलाए जाने और हम पर उसकी आशीष और मंज़ूरी होने की वजह से सच्चे दिल से उसके एहसानमंद होना शामिल है। परमेश्‍वर बखूबी जानता है कि कौन उसका सेवक है। प्रेरित पौलुस के ज़माने में जब लोग तरह-तरह के धर्मों को लेकर उलझन में थे, तब उसने लिखा: “प्रभु अपनों को पहिचानता है।” (2 तीमुथियुस 2:19; गिनती 16:5) यहोवा “अपनों” पर घमंड करता है। वह ऐलान करता है: “जो तुम को छूता है, वह मेरी आंख की पुतली ही को छूता है।” (जकर्याह 2:8) साफ ज़ाहिर है, यहोवा हमसे प्यार करता है। बदले में, उसके साथ हमारे रिश्‍ते की बुनियाद भी गहरा प्यार होना चाहिए। पौलुस ने कहा: “यदि कोई परमेश्‍वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्‍वर पहिचानता है।”—1 कुरिन्थियों 8:3.

16, 17. नौजवान और बुज़ुर्ग, सभी मसीही क्यों अपनी आध्यात्मिक विरासत पर गर्व कर सकते हैं?

16 जिन नौजवानों की परवरिश, साक्षी परिवारों में हुई है उन्हें यह जाँचना चाहिए कि क्या परमेश्‍वर के साथ उनका निजी रिश्‍ता इतना मज़बूत है कि इससे उनकी मसीही पहचान और पुख्ता हो रही है। वे सिर्फ अपने माता-पिता के विश्‍वास पर निर्भर नहीं रह सकते। परमेश्‍वर के हर सेवक के बारे में पौलुस ने लिखा: “उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है।” इसलिए पौलुस आगे कहता है: “हम में से हर एक परमेश्‍वर को अपना अपना लेखा देगा।” (रोमियों 14:4, 12) ज़ाहिर है, उपासना के मामले में पुश्‍तैनी परंपरा को निभाने के लिए अगर आप आधे-अधूरे मन से परमेश्‍वर की सेवा करते हैं, तो आप न यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता बना पाएँगे न उसे लंबे समय तक कायम रख पाएँगे।

17 इतिहास के हर दौर में, यहोवा के साक्षी होते आए हैं। शुरूआत 6,000 साल पहले वफादार पुरुष हाबिल से हुई और आज के ज़माने के साक्षियों की “बड़ी भीड़” यहोवा की उपासना करती है जो आगे चलकर हमेशा की ज़िंदगी का आनंद उठाएँगे। (प्रकाशितवाक्य 7:9; इब्रानियों 11:4) वफादार उपासकों की इस लंबी कतार में हम सबसे नए हैं। हमारी आध्यात्मिक विरासत कितनी उम्दा, कितनी लाजवाब है!

18. हमारे आदर्श और स्तर कैसे हमें संसार से अलग करते हैं?

18 हमारी मसीही पहचान में वे सभी आदर्श, गुण, स्तर और खासियतें शामिल हैं जिनकी वजह से हम मसीहियों के रूप में पहचाने जाते हैं। इस मसीही विश्‍वास को ‘मार्ग’ कहा जाता है, और यही एक ऐसा मार्ग है जिस पर चलकर हम अपनी ज़िंदगी को कामयाब बना सकते हैं और परमेश्‍वर को खुश कर सकते हैं। (प्रेरितों 9:2, NW; इफिसियों 4:22-24) मसीही ‘सब बातों को परखते’ हैं और ‘जो अच्छी है उसे पकड़े रहते हैं’! (1 थिस्सलुनीकियों 5:21) हमें इस बात की साफ-साफ समझ है कि सच्ची मसीहियत और परमेश्‍वर से अलग रहनेवाले संसार के बीच ज़मीन-आसमान का फर्क है। यहोवा ने सच्ची और झूठी उपासना के बीच साफ-साफ फर्क दिखाया है और उलझन की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी। अपने भविष्यवक्‍ता मलाकी के ज़रिए उसने ऐलान किया: “तब तुम फिरकर धर्मी और दुष्ट का भेद, अर्थात्‌ जो परमेश्‍वर की सेवा करता है, और जो उसकी सेवा नहीं करता, उन दोनों का भेद पहिचान सकोगे।”—मलाकी 3:18.

19. सच्चे मसीही कभी-भी किसके शिकार नहीं होंगे?

19 इस उलझी हुई और गड़बड़ी में पड़ी दुनिया में यहोवा पर घमंड करना इतना ज़रूरी है, तो क्या बात हमारी मदद करेगी कि हम अपने परमेश्‍वर पर फख्र करें और अपनी मसीही पहचान का एहसास हर पल बनाए रखें? अगले लेख में फायदेमंद सुझाव दिए गए हैं। इन पर गौर करते वक्‍त, आप एक बात का यकीन रख सकते हैं: सच्चे मसीही कभी-भी “धर्म से बेरुखी” के शिकार नहीं होंगे।

[फुटनोट]

^ इस लेख में हम सिर्फ अपनी आध्यात्मिक पहचान की बात कर रहे हैं। इसलिए हमारे कहने का यह मतलब नहीं कि मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए कलीसिया के बाहर यानी विशेषज्ञों से मदद लेना गलत है।

क्या आपको याद है?

• मसीही कैसे ‘यहोवा में घमंड’ कर सकते हैं?

• मूसा और आसाप की मिसालों से आपने क्या सीखा है?

• बाइबल के किन किरदारों को परमेश्‍वर के सेवक होने पर गर्व था?

• अपनी मसीही पहचान पर घमंड करने में क्या शामिल है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 14 पर तसवीर]

कुछ वक्‍त के लिए मूसा को अपनी काबिलीयत पर भरोसा नहीं था

[पेज 15 पर तसवीरें]

यहोवा के बहुत-से प्राचीन सेवकों ने अपनी अलग पहचान पर गर्व किया