शादीशुदा जोड़ों के लिए बुद्धि-भरी हिदायतें
शादीशुदा जोड़ों के लिए बुद्धि-भरी हिदायतें
“हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो।”—इफिसियों 5:22, 25.
1. शादी के बारे में कैसा नज़रिया रखना सही है?
यीशु ने कहा था कि शादी, एक ऐसा इंतज़ाम है जिसमें परमेश्वर स्त्री-पुरुष को जोड़ता है और वे “एक तन” हो जाते हैं। (मत्ती 19:5, 6) शादी ऐसे दो इंसानों का मिलन है जो अलग-अलग स्वभाव के होने के बावजूद कुछ मामलों में एक जैसी दिलचस्पी पैदा करना सीखते हैं और एक ही मंज़िल पाने की कोशिश करते हैं। वे मरते दम तक एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा करते हैं। यह कोई चंद दिनों का समझौता नहीं होता जिसे जब चाहें तोड़ दें। कई देशों में तलाक लेना कोई मुश्किल काम नहीं, मगर एक मसीही के लिए विवाह सबसे पवित्र बंधन है। इस बंधन को सिर्फ किसी गंभीर कारण से ही तोड़ा जाता है।—मत्ती 19:9.
2. (क) शादीशुदा जोड़ों के लिए क्या मदद हाज़िर है? (ख) शादी को कामयाब बनाने के लिए जतन करना क्यों ज़रूरी है?
2 शादी के बारे में एक सलाहकार कहती है: “एक कामयाब पति-पत्नी वे हैं जो नए-नए सवालों और समस्याओं को सुलझाने के लिए, ज़िंदगी के हर मोड़ पर जो भी मदद मिल सकती है, उसका फायदा उठाते हैं और कोई भी बदलाव करने को तैयार रहते हैं।” मसीही पति-पत्नियों को यह मदद बाइबल की बुद्धि-भरी सलाह से, मसीही भाई-बहनों के सहारे से और प्रार्थना के ज़रिए यहोवा के साथ एक करीबी रिश्ते से मिलती है। एक कामयाब शादी मुश्किलों के तूफान से बच निकलती है और समय के गुज़रते पति-पत्नी को इस रिश्ते से खुशी और संतोष मिलता है। इससे बढ़कर, यहोवा परमेश्वर का आदर होता है जिसने शादी की शुरूआत की थी।—उत्पत्ति 2:18, 21-24; 1 कुरिन्थियों 10:31; इफिसियों 3:15; 1 थिस्सलुनीकियों 5:17.
यीशु और उसकी कलीसिया की मिसाल पर चलिए
3. (क) शादीशुदा जोड़ों को दी गयी पौलुस की सलाह का निचोड़ बताइए। (ख) यीशु ने क्या उम्दा मिसाल रखी?
3 प्रेरित पौलुस ने 2,000 साल पहले मसीही पति-पत्नियों को यह बुद्धि-भरी सलाह दी: “जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपने अपने पति के आधीन रहें। हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया।” (इफिसियों 5:24, 25) पौलुस ने यहाँ कैसी बेहतरीन बराबरी की है! नम्रता का गुण दिखाकर अपने पति के अधीन रहने से मसीही पत्नियाँ दिखाती हैं कि वे मसीही कलीसिया की तरह मुखियापन के सिद्धांत को अच्छी तरह समझती और मानती हैं। दूसरी तरफ, अच्छे-बुरे वक्त में अपनी पत्नियों से प्यार करनेवाले मसीही पति दिखाते हैं कि वे मसीह के नक्शेकदम पर करीब से चलते हैं, जिसने कलीसिया से प्यार किया और उसका खयाल रखा।
4. पति, यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
4 मसीही पति अपने परिवार का मुखिया है, मगर खुद उसका भी एक मुखिया है, यीशु। (1 कुरिन्थियों 11:3) इसलिए, जिस तरह यीशु ने अपनी कलीसिया की देखभाल की, उसी तरह एक पति भी प्यार से अपने परिवार की आध्यात्मिक और शारीरिक ज़रूरतों का खयाल रखता है, फिर चाहे इसके लिए उसे थोड़ा-बहुत त्याग ही क्यों न करना पड़े। वह अपनी पसंद या अपने अरमानों से ज़्यादा अपने परिवार की भलाई को पहली जगह देता है। यीशु ने कहा था: “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (मत्ती 7:12) यह सिद्धांत खासकर शादी के बंधन में लागू होता है। इस बारे में पौलुस ने कहा: “पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, . . . किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है।” (इफिसियों 5:28, 29) एक आदमी अपना खयाल रखने के लिए जितनी मेहनत करता है उतनी ही मेहनत उसे अपनी पत्नी का पालन-पोषण करने और उसका खयाल रखने के लिए करनी चाहिए।
5. पत्नियाँ, मसीही कलीसिया के आदर्श पर कैसे चल सकती हैं?
5 परमेश्वर का भय माननेवाली पत्नियाँ, मसीही कलीसिया को अपना आदर्श मानती हैं। जब यीशु धरती पर था, तो उसके चेले खुशी-खुशी अपना काम-धंधा छोड़कर उसके पीछे हो लिए थे। यीशु की मौत के बाद भी वे उसके अधीन रहे और आज, करीब 2,000 साल बाद भी सच्ची मसीही कलीसिया उसके अधीन है और सभी बातों में उसकी अगुवाई में चलती है। उसी तरह, मसीही पत्नियाँ भी अपने पति को तुच्छ नहीं समझतीं और ना ही बाइबल में बताए मुखियापन के इंतज़ाम को नकारती हैं। इसके बजाय, वे अपने-अपने पतियों को सहयोग देकर और उनके अधीन रहकर उनकी हिम्मत बँधाती हैं। जब पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ इस तरह प्यार से पेश आएँगे, तो उनकी शादीशुदा ज़िंदगी ज़रूर कामयाब होगी और इस रिश्ते से दोनों को खुशियाँ मिलेंगी।
उनके साथ जीवन निर्वाह करो
6. पतरस ने पतियों को क्या सलाह दी, और इस सलाह को मानना क्यों ज़रूरी है?
6 प्रेरित पतरस ने भी शादीशुदा जोड़ों को कुछ सलाह दी। खासकर पतियों को उसने साफ शब्दों में कहा: “तुम भी बुद्धिमानी से [अपनी] पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के बरदान के वारिस हैं, जिस से तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं।” (1 पतरस 3:7) आयत के आखिरी शब्दों से पता चलता है कि पतरस की सलाह मानना कितना ज़रूरी है। अगर एक पति अपनी पत्नी का आदर न करे, तो यहोवा के साथ उसका रिश्ता बिगड़ सकता है। उसकी प्रार्थनाएँ सुनी नहीं जाएँगी।
7. एक पति को अपनी पत्नी का आदर कैसे करना चाहिए?
7 तो फिर एक पति अपनी पत्नी का आदर कैसे कर सकता है? पत्नी का आदर करने का मतलब है, उसके साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आना और उसे अनमोल समझना। शायद ऐसा करना उस ज़माने के ज़्यादातर लोगों को अजीब लगा होगा। क्योंकि एक यूनानी विद्वान कहता है: “रोमी कानून के तहत एक स्त्री को कोई अधिकार नहीं मिलता था। उसके पास सिर्फ उतना ही कानूनी अधिकार होता था जितना कि एक बच्चे के पास होता है। . . . वह पूरी तरह अपने पति के अधीन और उसके रहमो-करम पर जीती थी।” इस कानून और मसीही शिक्षाओं में कैसा ज़मीन-आसमान का फर्क है! उस ज़माने के मसीही पतियों ने अपनी पत्नी का आदर किया। वे अपने मन-मुताबिक नहीं बल्कि मसीही उसूलों पर चलते हुए उनके साथ व्यवहार करते थे। यही नहीं, उन्होंने “बुद्धिमानी से” अपनी पत्नियों का लिहाज़ किया यानी यह ध्यान रखा कि वे निर्बल पात्र हैं।
किस मायने में “निर्बल पात्र”?
8, 9. किन तरीकों से स्त्री, पुरुष के बराबर है?
8 पतरस का स्त्री को “निर्बल पात्र” कहने का यह मतलब नहीं था कि वह दिमागी और आध्यात्मिक तौर पर पुरुष से कमज़ोर है। यह सच है कि कई मसीही पुरुषों को कलीसिया में सेवा की खास ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं जिन्हें पाने की उम्मीद स्त्रियाँ नहीं करतीं, और परिवार में स्त्रियाँ अपने पति के अधीन रहती हैं। (1 कुरिन्थियों 14:35; 1 तीमुथियुस 2:12) फिर भी, मसीही स्त्री-पुरुष दोनों से विश्वास और धीरज दिखाने, साथ ही ऊँचे नैतिक स्तरों पर चलने की माँग की जाती है। और जैसे पतरस ने कहा पति-पत्नी “दोनों जीवन के बरदान के वारिस हैं।” जहाँ तक उद्धार की बात है, तो यहोवा किसी की तरफदारी नहीं करता। (गलतियों ) पतरस ने यह बात पहली सदी के अभिषिक्त मसीहियों को लिखी थी। इसलिए उसके शब्दों ने मसीही पतियों को याद दिलाया कि उनकी पत्नियाँ भी उन्हीं की तरह स्वर्ग में “मसीह के संगी वारिस” होने की आशा रखती हैं। ( 3:28रोमियों 8:17) जी हाँ, एक दिन आता जब वे दोनों परमेश्वर के स्वर्गीय राज में याजकों और राजाओं की हैसियत से सेवा करते।—प्रकाशितवाक्य 5:10.
9 अभिषिक्त मसीही पत्नियों का दर्जा, अपने अभिषिक्त पतियों से बिलकुल कम नहीं था। और देखा जाए तो यही सिद्धांत धरती पर जीने की आशा रखनेवालों के मामले में भी लागू होता है। “बड़ी भीड़” में से स्त्री-पुरुष दोनों अपने-अपने वस्त्र मेम्ने के लहू में धोकर श्वेत करते हैं। दुनिया-भर में “दिन रात” परमेश्वर की जो बड़ाई की जा रही है, उसमें दोनों ही मिलकर हिस्सा लेते हैं। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 10, 14, 15) स्त्री-पुरुष दोनों को उस दिन का इंतज़ार है जब उन्हें “परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता” मिलेगी और वे “सत्य जीवन” का लुत्फ उठाएँगे। (रोमियों 8:21; 1 तीमुथियुस 6:19) सभी मसीही, फिर चाहे वे अभिषिक्त वर्ग या अन्य भेड़ के हों, “एक ही झुण्ड” होकर ‘एक ही चरवाहे’ के अधीन रहते हैं और यहोवा की सेवा करते हैं। (यूहन्ना 10:16) मसीही पति-पत्नियों के लिए एक-दूसरे को आदर देने का इससे अच्छा कारण और क्या हो सकता है!
10. स्त्रियाँ किस मायने में “निर्बल पात्र” हैं?
10 तो फिर किस मायने में स्त्री “निर्बल पात्र” है? शायद पतरस यह हकीकत बयान कर रहा था कि आम तौर पर स्त्री के शरीर की बनावट पुरुषों के मुकाबले छोटी होती है और उसमें कम ताकत होती है। इसके अलावा, स्त्रियों को बच्चे पैदा करने का जो अनोखा वरदान मिला है, असिद्धता की वजह से उनकी सेहत पर इसका बहुत बुरा असर होता है। बच्चा जनने की उम्रवाली औरतों को हर महीने शारीरिक तकलीफ झेलनी पड़ सकती है। जब स्त्रियाँ इन तकलीफों से गुज़रती हैं या गर्भवती होने से लेकर बच्चे को जन्म देने तक की तकलीफ झेलते-झेलते पस्त हो जाती हैं, तो ऐसे वक्त पर उनका खास खयाल रखना और लिहाज़ दिखाना ज़रूरी हो जाता है। जो पति अपनी पत्नी का आदर करता है और यह मानता है कि ऐसे वक्त पर पत्नी को उसके प्यार और सहारे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वह पति अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को ज़रूर कामयाब बनाएगा।
घराना जिसमें सिर्फ पति या पत्नी सच्चाई में हो
11. अलग-अलग धर्म से होने के बावजूद पति-पत्नी की शादीशुदा ज़िंदगी किस मायने में कामयाब हो सकती है?
11 ऐसी शादी के बारे में क्या कहा जा सकता है जिसमें पति-पत्नी अलग-अलग धर्म से हों? यानी उनमें से किसी एक ने शादी के कुछ समय बाद सच्चाई कबूल की होगी। क्या ऐसे हालात में भी शादीशुदा ज़िंदगी कामयाब हो सकती है? जी हाँ, ऐसी कई शादियाँ कामयाब हुई हैं। अलग-अलग धर्म के होने के बावजूद पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ खुश रह सकते हैं और उनकी शादी कायम रह सकती है। इस मायने में कहा जा सकता है कि उनकी शादीशुदा ज़िंदगी कामयाब है। इसके अलावा, अगर एक साथी ने सच्चाई कबूल की है तो उसका विवाह-बंधन रद्द नहीं हो जाता। यहोवा की नज़रों में वह बंधन अब भी जायज़ है और वे अब भी “एक तन” हैं। इसलिए मसीही पति-पत्नी को सलाह दी जाती है कि अगर अविश्वासी साथी उसके संग रहने को रज़ामंद हो, तो वह उसे न छोड़े। अगर उनके बच्चे हैं, तो मसीही माता या पिता की वफादारी का बच्चों पर अच्छा असर पड़ेगा।—1 कुरिन्थियों 7:12-14.
12, 13. पतरस की नसीहत के मुताबिक एक मसीही पत्नी कैसे अपने पति की मदद कर सकती है जो सच्चाई में नहीं है?
12 पतरस उन मसीही स्त्रियों को प्यार-भरी नसीहत देता है जिनके पति सच्चाई में नहीं हैं। उसके शब्दों में दिया गया सिद्धांत उन मसीही पतियों के हालात पर भी लागू हो सकता है जिनकी पत्नियाँ सच्चाई में नहीं हैं। पतरस ने कहा: “हे पत्नियो, तुम भी अपने पति के आधीन रहो। इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हों जो वचन को न मानते हों, तौभी तुम्हारे भय सहित पवित्र चालचलन को देखकर बिना वचन के अपनी अपनी पत्नी के चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।”—1 पतरस 3:1, 2.
13 अगर एक पत्नी सूझ-बूझ के साथ पति को अपने विश्वास के बारे में बता सकती है तो यह बहुत अच्छी बात होगी। लेकिन अगर वह सुनने से इनकार कर दे, तब क्या? तब वह पति के इस फैसले का लिहाज़ करेगी। फिर भी, इसका यह मतलब नहीं कि उसके बदलने की कोई उम्मीद नहीं क्योंकि मसीही पत्नी अपने व्यवहार से ज़बरदस्त गवाही दे सकती है। दरअसल कई पतियों के मामले में ऐसा ही हुआ है। उन्हें पहले अपनी पत्नियों के धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं थी या वे खुलकर उनका विरोध भी करते थे। मगर अपनी पत्नियों का अच्छा व्यवहार देखकर वे ‘अनंत जीवन के लिए सही मन रखनेवाले’ बन गए हैं। (प्रेरितों 13:48, NW) अगर एक पति मसीही सच्चाई को न भी अपनाए, फिर भी शायद वह अपनी पत्नी के व्यवहार से बहुत खुश हो, जिसका नतीजा यह होता है कि उनकी शादी और भी मज़बूत हो जाती है। एक पति जिसकी पत्नी यहोवा की साक्षी है, कबूल करता है कि वह साक्षियों के ऊँचे स्तरों के मुताबिक नहीं जी सकता। फिर भी वह कहता है कि “मेरी पत्नी लाखों में एक है।” और एक अखबार को लिखे एक खत में उसने अपनी पत्नी और बाकी साक्षियों की खूब तारीफ की।
14. पति, अपनी पत्नी की मदद कैसे कर सकता है जो सच्चाई में नहीं है?
14 उसी तरह, पतरस के शब्दों में दिए गए सिद्धांतों पर चलकर मसीही पतियों ने भी अपने व्यवहार से अपनी पत्नियों का दिल जीता है। अविश्वासी पत्नियों ने देखा है कि कैसे सच्चाई सीखने के बाद उनके पति ज़िम्मेदार हो गए हैं, उन्होंने सिगरेट, शराब और जुए में पैसा उड़ाना और गाली-गलौज करना छोड़ दिया है। कुछ पत्नियों की तो कलीसिया के दूसरे सदस्यों से जान-पहचान भी हुई है। मसीही बिरादरी का प्यार उनके दिल को भा गया और जो कुछ उन्होंने अपनी आँखों से देखा, उससे वे यहोवा की ओर खिंची चली आयीं।—यूहन्ना 13:34, 35.
“छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व”
15, 16. मसीही स्त्री किस तरह के गुणों से अपने अविश्वासी पति का दिल जीत सकती है?
15 किस तरह के गुण पति का दिल जीत सकते हैं? ऐसे गुण जो एक मसीही स्त्री अपने अंदर सहज ही पैदा करेगी। पतरस कहता है: “तुम्हारा सिंगार दिखावटी न हो, अर्थात् बाल गूंथने, और सोने के गहने, या भांति भांति के कपड़े पहिनना। बरन तुम्हारा छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व, नम्रता और मन की दीनता की अविनाशी सजावट से सुसज्जित रहे, क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा है। और पूर्वकाल में पवित्र स्त्रियां भी, जो परमेश्वर पर आशा रखती थीं, अपने आप को इसी रीति से सवांरती और अपने अपने पति के आधीन रहती थीं। जैसे सारा इब्राहीम की आज्ञा में रहती और उसे स्वामी कहती थी: सो तुम भी यदि भलाई करो, और किसी प्रकार के भय से भयभीत न हो तो उस की बेटियां ठहरोगी।”—1 पतरस 3:3-6.
16 पतरस ने मसीही स्त्रियों को सलाह दी कि उन्हें अपनी बाहरी खूबसूरती पर हद-से-ज़्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें अपने अंदर की खूबसूरती निखारने पर ध्यान देना चाहिए जिससे एक पति देख सके कि बाइबल की शिक्षाओं का उसकी पत्नी पर अच्छा असर पड़ रहा है। और यह भी कि उसने नया मनुष्यत्व धारण कर लिया है। शायद वह इसकी बराबरी अपनी पत्नी के पुराने मनुष्यत्व से करे। (इफिसियों 4:22-24) उसकी “नम्रता और मन की दीनता” पति को भा जाएगी और अपनी पत्नी का साथ उसे अच्छा लगेगा। अपनी पत्नी में ऐसा स्वभाव पाकर न सिर्फ उसका पति खुश होगा बल्कि “परमेश्वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा” होगा।—कुलुस्सियों 3:12.
17. सारा कैसे मसीही पत्नियों के लिए बेहतरीन मिसाल है?
17 ऊपर की आयतों में सारा का ज़िक्र किया गया है जो मसीही पत्नियों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है, फिर चाहे उनके पति सच्चाई में हों या न हों। इसमें कोई शक नहीं कि सारा, इब्राहीम को अपना मुखिया मानती थी। यहाँ तक कि उसने मन में उसे “स्वामी” कहा। (उत्पत्ति 18:12, NHT) ऐसा करने से उसका दर्जा कम नहीं हुआ। यहोवा पर अपने पक्के विश्वास से सारा ने साफ ज़ाहिर किया कि वह आध्यात्मिक बातों में मज़बूत है। बेशक, वह ‘गवाहों के बड़े बादल’ का एक हिस्सा है जिनके विश्वास की मिसाल हमें उकसाती है कि हम ‘वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें।’ (इब्रानियों 11:11; 12:1) एक मसीही पत्नी के लिए सारा की मिसाल पर चलना कोई अपमान की बात नहीं है।
18. एक घर में जहाँ पति-पत्नी अलग-अलग धर्म से हों, वहाँ किन सिद्धांतों को मन में रखना ज़रूरी है?
18 एक घर में चाहे पति-पत्नी अलग-अलग धर्म से क्यों न हों, मगर पति फिर भी घर का मुखिया है। अगर वह सच्चाई में है, तो वह अपनी पत्नी के विश्वासों का आदर करने के साथ-साथ अपने विश्वासों के मामले में समझौता नहीं करेगा। उसी तरह अगर पत्नी सच्चाई में है, तो वह भी अपने विश्वास के मामले में समझौता नहीं करेगी। (प्रेरितों 5:29) मगर हाँ, वह ऐसा कुछ नहीं करेगी जिससे यह लगे कि वह अपने पति के मुखियापन को नहीं मानती। परिवार में पति का जो दर्जा है, उसका वह आदर करेगी और अपने “पति की व्यवस्था” के अधीन रहेगी।—रोमियों 7:2.
बाइबल की बुद्धि-भरी हिदायतें
19. किन बातों को लेकर शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव पैदा होते हैं, मगर इनका सामना कैसे किया जा सकता है?
19 आज, कई बातों को लेकर शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव पैदा हो सकते हैं। कुछ पुरुष अपनी ज़िम्मेदारियों से भागते हैं, तो कुछ स्त्रियाँ अपने पति के मुखियापन के अधीन रहने से इनकार करती हैं। कुछ घरों में पति या पत्नी को अपने साथी के हाथों मारा-पीटा जाता है या उससे गाली-गलौज की जाती है। मसीहियों के मामले में रुपए-पैसे की तंगी, असिद्धता, और संसार की आत्मा जो बदचलनी और सही-गलत के बारे में बिगड़े हुए आदर्शों पर ज़ोर देती है, उनसे वफादारी की परीक्षा हो सकती है। हालात चाहे जैसे भी हों, जो मसीही स्त्री-पुरुष बाइबल के सिद्धांतों पर चलते हैं यहोवा उन्हें ज़रूर आशीषें देगा। शादीशुदा ज़िंदगी में दोनों में से अगर एक भी बाइबल सिद्धांतों के मुताबिक जीए, तो हालात में काफी हद तक सुधार हो सकता है। यही नहीं, यहोवा अपने उन सेवकों को प्यार करता है और उनकी मदद करता है जो मुश्किल हालात में भी अपनी शादी की शपथ नहीं तोड़ते। वह उनकी इस वफा को कभी नहीं भूलता।—भजन 18:25; इब्रानियों 6:10; 1 पतरस 3:12.
20. सभी मसीहियों को पतरस ने क्या सलाह दी?
20 शादीशुदा स्त्री-पुरुषों को नसीहत देने के बाद, प्रेरित पतरस ने आखिर में प्यार से हौसला बढ़ाते हुए यह कहा: “निदान, सब के सब एक मन और कृपामय और भाईचारे की प्रीति रखनेवाले, और करुणामय, और नम्र बनो। बुराई के बदले बुराई मत करो; और न गाली के बदले गाली दो; पर इस के विपरीत आशीष ही दो: क्योंकि तुम आशीष के वारिस होने के लिये बुलाए गए हो।” (1 पतरस 3:8, 9) यह सभी के लिए, खासकर शादीशुदा जोड़ों के लिए क्या ही बुद्धि-भरी सलाह है!
क्या आपको याद है?
• मसीही पति, यीशु की मिसाल पर कैसे चलते हैं?
• मसीही पत्नियाँ, कलीसिया की मिसाल पर कैसे चलती हैं?
• पति किस तरह अपनी पत्नी का आदर कर सकता है?
• अगर मसीही पत्नी का पति सच्चाई में नहीं है, तो पत्नी के लिए क्या करना सबसे अच्छा होगा?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 16 पर तसवीर]
मसीही पति, अपनी पत्नी से प्यार करता और उसका खयाल रखता है
मसीही पत्नी, अपने पति की दिल से इज़्ज़त करती है
[पेज 17 पर तसवीर]
मसीही शिक्षाएँ, रोमी कानून से बिलकुल अलग थीं क्योंकि उन शिक्षाओं के तहत, एक पति को अपनी पत्नी का सम्मान करना था
[पेज 18 पर तसवीर]
“बड़ी भीड़” में से स्त्री-पुरुष, दोनों फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाने की आस लगाते हैं
[पेज 20 पर तसवीर]
सारा ने इब्राहीम को अपना स्वामी माना