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हमने बदलते हालात का इस्तेमाल दूर-दराज़ के इलाकों में गवाही देने के लिए किया

हमने बदलते हालात का इस्तेमाल दूर-दराज़ के इलाकों में गवाही देने के लिए किया

जीवन कहानी

हमने बदलते हालात का इस्तेमाल दूर-दराज़ के इलाकों में गवाही देने के लिए किया

रीकार्डो मालिक्सी की ज़ुबानी

अपनी मसीही निष्पक्षता की वजह से जब मुझे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा, तब मैंने अपने परिवार के साथ मिलकर यहोवा से प्रार्थना की कि अब तू ही रास्ता दिखा, हम क्या करें। हमने अपनी यह चाहत भी ज़ाहिर की कि हम अपनी सेवा बढ़ाना चाहते हैं। इसके बाद, जल्द ही हम खानाबदोशों की ज़िंदगी गुज़ारने लगे। हम आठ अलग-अलग देशों में रहे जो दो महाद्वीपों के तहत आते हैं। नतीजा यह हुआ कि हम दूर-दराज़ के इलाकों में प्रचार कर पाए।

मेरा जन्म सन्‌ 1933 में फिलीपींस में हुआ। मेरा परिवार फिलीपींस इंडिपेंडंट चर्च से जुड़ा था। हमारे परिवार के सभी 14 सदस्य उस चर्च में जाते थे। जब मैं लगभग 12 साल का हुआ, तब मैंने परमेश्‍वर से प्रार्थना की कि वह मुझे सच्चा धर्म दिखाए। मेरे एक टीचर ने मेरा नाम एक धार्मिक क्लास में लिखवा दिया और मैं एक पक्का कैथोलिक बन गया। शनिवार के दिन, पापों की माफी और रविवार को मिस्सा के लिए जाना, मैं कभी नहीं भूलता था। फिर भी, धीरे-धीरे मैं असंतुष्ट महसूस करने लगा और इन सबसे मेरा भरोसा उठने लगा। नरक की आग, त्रियेक की शिक्षा और मरने के बाद इंसान का क्या होता है, इनके बारे में मेरे मन में कई सवाल उठने लगे जो मुझे लगातार परेशान करते? इस मामले में पादरियों के जवाब मुझे खोखले मालूम हुए जिनमें मुझे सच्चाई नज़र नहीं आयी।

सही जवाब मिले

कॉलेज के दिनों में, मैं विद्यार्थियों के एक ऐसे संघ से जुड़ गया जिसमें मार-पीट करना, जुआ खेलना, सिगरेट फूँकना और दूसरे कई गंदे काम करना आम था। एक शाम, मेरी मुलाकात मेरे साथ पढ़नेवाले एक लड़के की माँ से हुई। वे यहोवा की साक्षी थीं। जो सवाल मैंने अपने पादरियों से पूछे थे, वही मैंने उनसे भी पूछे। उन्होंने मेरे सारे सवालों के जवाब बाइबल से दिए जिससे मैं पूरी तरह कायल हो गया कि उनकी बातों में सच्चाई है।

मैंने एक बाइबल खरीदी और साक्षियों के साथ अध्ययन करने लगा। जल्द ही मैं साक्षियों की सारी सभाओं में हाज़िर होने लगा। बाइबल की इस बुद्धि-भरी सलाह को मानते हुए कि “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है,” मैंने अपने सारे आवारा और बदचलन यारों के साथ यारी तोड़ दी। (1 कुरिन्थियों 15:33) इस वजह से मैं बाइबल अध्ययन में तरक्की कर सका और आखिरकार मैंने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया। सन्‌ 1951 में अपने बपतिस्मे के बाद मैंने कुछ समय तक पूरे समय के सेवक (पायनियर) के तौर पर सेवा की। फिर दिसंबर 1953 में मैंने अउरेआ मेनडोज़ा क्रूस से शादी कर ली। वह मेरी जीवन-साथी बनी और परमेश्‍वर की सेवा में पग-पग पर उसने मेरा साथ दिया।

हमारी प्रार्थनाओं का जवाब

हमारी बड़ी ख्वाहिश थी कि हम पायनियर बनकर यहोवा की और भी अच्छी तरह सेवा करें। लेकिन हमारी यह चाहत तुरंत पूरी नहीं हुई। फिर भी, हम यहोवा से प्रार्थना करते रहे कि वह अपनी सेवा में हमारे लिए बड़ा द्वार खोल दे। वैसे हमारी ज़िंदगी इतनी आसान नहीं थी। फिर भी, हमने अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को कभी धुँधला नहीं पड़ने दिया। पच्चीस की उम्र में मुझे कॉन्ग्रिगेशन सर्वेंट बनाया गया यानी यहोवा के साक्षियों की कलीसिया का प्रिसाइडिंग ओवरसियर।

जैसे-जैसे बाइबल के बारे में मेरा ज्ञान बढ़ता गया और यहोवा के सिद्धांतों की बेहतर समझ मिलती गयी, मुझे एहसास हुआ कि अपनी नौकरी की वजह से मैं मसीही निष्पक्षता नहीं बनाए रख पा रहा। मेरा विवेक मुझे कचोटने लगा। (यशायाह 2:2-4) मैंने फैसला किया कि मैं यह नौकरी छोड़ दूँगा। यह हमारे विश्‍वास के लिए एक परीक्षा साबित हुई। मैं परिवार के लिए रोज़ी-रोटी का जुगाड़ कैसे करता? एक बार फिर हमने यहोवा परमेश्‍वर से प्रार्थना की। (भजन 65:2) हमने खुलकर अपनी चिंताएँ और अपना डर ज़ाहिर किया, साथ ही यह भी कहा कि हम ऐसी जगह पर उसकी सेवा करना चाहते हैं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत हो। (फिलिप्पियों 4:6, 7) हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारे सामने सेवा के इतने अलग-अलग द्वार खुल जाएँगे!

अपने सफर की शुरूआत

अप्रैल 1965 में मुझे लाओस के विएशिएन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सुपरवाइज़र की नौकरी मिली। मेरा काम था, जहाज़ के दुर्घटना होने पर लोगों की जान बचाने और आग लगी हो तो उसे बुझाने में मदद करना। मैं अपने परिवार समेत वहाँ चला गया। विएशिएन शहर में कुल 24 साक्षी रहते थे। मिशनरियों और वहाँ के कुछ भाइयों के साथ प्रचार करके हमें बड़ी खुशी मिली। इसके बाद मेरा तबादला थाइलैंड में उदोन तानी हवाई अड्डे पर हुआ। उस नगर में एक भी साक्षी नहीं था। हमारा पूरा परिवार मिलकर हर हफ्ते सारी सभाएँ खुद ही करता था। हमने घर-घर जाकर प्रचार किया, वापसी भेंट की और कई बाइबल अध्ययन शुरू किए।

हमने यीशु की वह सलाह मन में रखी जो उसने अपने चेलों को दी थी कि ‘बहुत सा फल लाते रहो।’ (यूहन्‍ना 15:8) सो हमने उनके नक्शेकदम पर चलने की ठान ली और सुसमाचार का ऐलान करते रहे। जल्द ही हमें इसके बढ़िया नतीजे मिले। एक थाइ लड़की ने सच्चाई अपनायी और हमारी आध्यात्मिक बहन बन गयी। फिर उत्तर अमरीका से आए दो लोगों ने भी सच्चाई अपनायी और आगे चलकर मसीही प्राचीन बने। हमने उत्तरी थाइलैंड में 10 से भी ज़्यादा सालों तक सुसमाचार का प्रचार किया। अब हमें यह जानकर कितनी खुशी होती है कि उदोन तानी में एक कलीसिया बन चुकी है! हमने जिन लोगों में सच्चाई के बीज बोए थे, उनमें से कुछ अब भी फल ला रहे हैं।

मगर अफसोस, फिर से बोरिया-बिस्तर बाँधने का वक्‍त आया और हमने “खेत के स्वामी” से बिनती की कि वह हमारी मदद करे ताकि हम आगे भी प्रचार करते रहें। (मत्ती 9:38) इस बार हमारा तबादला ईरान की राजधानी, तेहरान में हुआ। उन दिनों वहाँ शाह की हुकूमत चल रही थी।

चुनौती भरे इलाकों में प्रचार

तेहरान पहुँचते ही हमने तुरंत अपने आध्यात्मिक भाइयों का पता लगाया और उनके साथ संगति करने लगे। साक्षियों का यह छोटा-सा समूह 13 अलग-अलग देशों के भाई-बहनों से बना था। ईरान में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए हमें कुछ तबदीलियाँ करनी पड़ीं। हालाँकि हमने सीधे-सीधे विरोध का सामना नहीं किया, फिर भी हमें बहुत सावधान रहना पड़ा।

हमें दिलचस्पी दिखानेवालों के साथ कभी-कभी आधी रात को या मुँह अँधेरे बाइबल अध्ययन करना पड़ता था क्योंकि उनके काम का समय ही ऐसा था कि तभी उन्हें फुरसत मिलती। लेकिन जब हमने अपनी कड़ी मेहनत का फल देखा तो खुशी से फूले न समाए! कई फिलिपीनो और कोरियाई परिवारों ने मसीही सच्चाई अपनायी और अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की।

मेरी नौकरी का अगला पड़ाव बंगलादेश के ढाका शहर में था। हम वहाँ दिसंबर 1977 में पहुँचे। यह एक और देश था, जहाँ हमारे लिए प्रचार काम पूरा करना इतना आसान नहीं था। मगर हमने हमेशा यह बात ध्यान रखी कि प्रचार तो हर हाल में करना ही है। यहोवा की पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन से हम कई ईसाई परिवारों को ढूँढ़ पाए। इनमें से कुछ बाइबल की सच्चाई के जल के प्यासे थे जिससे उन्हें ताज़गी मिलती। (यशायाह 55:1) नतीजा, हमने कई बाइबल अध्ययन शुरू किए।

हमने दिल में यह बात अच्छी तरह बिठायी थी कि परमेश्‍वर चाहता है, “सब मनुष्यों का उद्धार हो।” (1 तीमुथियुस 2:4) और खुशी की बात है कि यहाँ किसी ने भी हमारे लिए कोई समस्या खड़ी नहीं की। अगर किसी के दिल में कोई भेद-भाव होता, तो उन्हें दूर करने के लिए हमारी यही कोशिश रहती कि सबसे हँसकर मिलें। प्रेरित पौलुस की तरह हमने भी “सब मनुष्यों के लिये सब कुछ” बनने की कोशिश की। (1 कुरिन्थियों 9:22) यहाँ जो लोग हमसे हमारे आने की वजह पूछते, हम उन्हें प्यार से समझाते और हमने देखा कि ज़्यादातर लोग बड़े मिलनसार थे।

ढाका में हमें एक साक्षी मिली। हमने उसे पहले मसीही सभा में और फिर अपने साथ प्रचार में आने के लिए उकसाया। बाद में मेरी पत्नी ने एक परिवार के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया और उन्हें सभाओं में आने का न्यौता दिया। यहोवा की कृपा से पूरा परिवार सच्चाई में आ गया। बाद में उनकी दो बेटियों ने बंगाली में बाइबल साहित्य अनुवाद करने में मदद दी और फिर उसके कई रिश्‍तेदार भी यहोवा को जान गए। दूसरे कई बाइबल विद्यार्थियों ने भी सच्चाई अपनायी। उनमें से ज़्यादातर आज प्राचीन या पायनियर के तौर पर सेवा कर रहे हैं।

ढाका घनी आबादीवाला शहर है, इसलिए हमने अपने परिवार के कुछ सदस्यों को प्रचार में मदद देने के लिए बुलाया। उनमें से कइयों ने बंगलादेश आकर हमारी मदद की। यहोवा ने हमें यहाँ खुशखबरी सुनाने में अपना भाग अदा करने का जो मौका दिया, उसके लिए हम बहुत खुश हैं और यहोवा के बहुत शुक्रगुज़ार भी! शुरूआत सिर्फ एक इंसान से हुई और अब बंगलादेश में दो कलीसियाएँ बन चुकी हैं।

सन्‌ 1982 की जुलाई में बंगलादेश छोड़ने की बारी आयी। भाइयों से विदा लेते वक्‍त, हम अपने आँसुओं को रोक न सके। इसके तुरंत बाद, युगाण्डा के एन्टेब अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मैंने काम शुरू किया। यहाँ हमने चार साल और सात महीने बिताए। इस देश में हमने यहोवा का महान नाम कैसे रोशन किया?

पूर्वी अफ्रीका में यहोवा की सेवा

एन्टेब अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुँचने पर एक ड्राइवर मुझे और मेरी पत्नी को हमारे रहने की जगह पर छोड़ने आया। हवाई अड्डे से निकलते वक्‍त, मैंने ड्राइवर को परमेश्‍वर के राज्य के बारे में बताना शुरू किया। उसने मुझसे पूछा: “क्या आप यहोवा के साक्षी हैं?” मैंने कहा हाँ, तो वह बोला: “आपका एक भाई कंट्रोल टॉवर में काम करता है।” मैंने उससे तुरंत वहाँ ले जाने की गुज़ारिश की। जब हम उस भाई से मिले तो वह हमें देखकर बहुत खुश हुआ और उसने हमें प्रचार और सभाओं में ले जाने का इंतज़ाम किया।

उन दिनों युगाण्डा में सिर्फ 228 राज्य प्रचारक थे। एन्टेब में दो भाइयों के साथ हमने अपने पहले साल में सच्चाई के बीज बोए। वहाँ के लोग पढ़ने के बड़े शौकीन हैं इसलिए हम बहुत-सा साहित्य पेश कर सके जिनमें सैकड़ों पत्रिकाएँ भी थीं। हमने एन्टेब में शनिवार-रविवार को प्रचार में मदद देने के लिए राजधानी कम्पाला से कुछ भाइयों को बुलाया। वहाँ पर मुझे मिलाकर मेरे पहले जन भाषण की कुल हाज़िरी थी—पाँच!

अगले तीन सालों में हमने अपनी ज़िंदगी के सबसे खुशनुमा पल का अनुभव किया, जब हमने देखा कि जिनको हमने सिखाया था, उन्होंने जीवन में फेरबदल करके तेज़ी से तरक्की की है। (3 यूहन्‍ना 4) एक सर्किट सम्मेलन में हमारे छः बाइबल विद्यार्थियों ने बपतिस्मा लिया। उनमें से कइयों ने कहा कि उन्हें हमें देखकर पूरे समय की सेवा करने का बढ़ावा मिला है। क्योंकि उन्होंने देखा कि हम पूरे समय की नौकरी के बावजूद पायनियर सेवा कर रहे थे।

हमने जाना कि हमारी नौकरी की जगह भी हमें अच्छे नतीजे मिल सकते हैं। एक बार मैं हवाई अड्डे के फायर अफसर के पास गया और बाइबल से मैंने उसे फिरदौस की आशा के बारे में बताया। मैंने उसी की बाइबल से उसे दिखाया कि नयी दुनिया में आज्ञा माननेवाले इंसान किस तरह अमन-चैन और एकता से रहेंगे, तब न तो कोई गरीब होगा, न बेघर, न युद्ध होंगे, ना बीमारी, यहाँ तक कि मौत भी नहीं रहेगी। (भजन 46:9; यशायाह 33:24; 65:21, 22; प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) अपनी बाइबल से इन बातों को पढ़कर उसकी दिलचस्पी जाग उठी। उसी दम बाइबल अध्ययन शुरू हो गया। वह सारी सभाओं में आने लगा। और जल्द ही उसने यहोवा को अपना जीवन समर्पित करके बपतिस्मा ले लिया। बाद में वह भी हमारे साथ पूरे समय की सेवा करने लगा।

जब हम युगाण्डा में थे, तब दो बार देश में बड़े दंगे-फसाद हुए। लेकिन इससे हमारा आध्यात्मिक काम बिलकुल नहीं रुका। जो अंतर्राष्ट्रीय एजैंसियों के कर्मचारी थे, उनके घरवालों को छः महीने के लिए केन्या के नाइरोबी शहर भेज दिया गया। और हममें से जो साक्षी युगाण्डा में रह गए, हमने अपनी मसीही सभाओं और प्रचार काम को जारी रखा। लेकिन हाँ, हमें सावधानी और समझदारी से काम लेने की ज़रूरत थी।

अप्रैल 1988 में, हवाई अड्डे पर मेरा काम पूरा हुआ और एक बार फिर हमने अपना सामान बाँधा। जब हमने एन्टेब कलीसिया को अलविदा कहा तो दिल में गहरा संतोष था क्योंकि वहाँ अच्छी आध्यात्मिक बढ़ोतरी हुई थी। हमें जुलाई 1997 में एक बार फिर वहाँ जाने का मौका मिला। जिन लोगों के साथ हमने पहले बाइबल अध्ययन किया था, उनमें से कुछ उस वक्‍त प्राचीन के तौर पर सेवा कर रहे थे। जन भाषण में 106 जनों की हाज़िरी देखकर हमारा रोम-रोम खिल उठा!

ऐसे इलाके में जाना जहाँ कभी प्रचार नहीं हुआ

क्या आगे हमारे लिए सेवा के नए द्वार खुलते? ज़रूर। मेरा अगला काम सोमालिया के मोगादिशू अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पर था। यह ऐसी जगह थी, जहाँ पहले कभी प्रचार नहीं हुआ था और हमारा पक्का इरादा था कि इस मौके का हम अच्छा इस्तेमाल करेंगे।

यहाँ हम ज़्यादातर ऐंबैसी (दूतावास) के स्टाफ, फिलिपीनो कर्मचारियों और दूसरे विदेशियों को ही प्रचार कर पाए। अकसर हम बाज़ारों में उनसे मिलते। कभी-कभार यूँ ही उनसे मिलने उनके घर भी चले जाते। हमने यहाँ बाइबल की सच्चाई बताने में बड़ी होशियारी और सूझ-बूझ के साथ नयी-नयी तरकीबें अपनायीं और यहोवा पर पूरा भरोसा रखा। इसका नतीजा यह हुआ कि अलग-अलग राष्ट्र के लोगों में फल लगे। दो साल बाद, मोगादिशू में युद्ध छिड़ने से पहले हमने वह जगह छोड़ दी थी।

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड़ान संगठन (International Civil Aviation Organization) ने मुझे म्यानमार के यांगोन शहर भेजा। हमें यहाँ भी नेकदिल लोगों को परमेश्‍वर के मकसदों के बारे में सिखाने का बढ़िया मौका मिला। म्यानमार के बाद हमारा तबादला, तंज़ानिया के शहर, दार एस सलाम में हुआ। यहाँ अँग्रेज़ी बोलनेवाले लोग थे इसलिए हमारे लिए घर-घर प्रचार करना बहुत आसान हो गया था।

हमने जितने भी देशों में काम किया, उनमें से हालाँकि कई जगहों में यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी थी, फिर भी हमें अपनी सेवा में कहीं कोई खास मुश्‍किल का सामना नहीं करना पड़ा। दरअसल मेरी नौकरी ही कुछ ऐसी थी कि उसका ताल्लुक सरकार और अंतर्राष्ट्रीय एजैंसियों से रहता था, इसलिए लोग हमारे काम पर कभी उँगली नहीं उठाते थे।

मेरी नौकरी की वजह से मुझे और मेरी पत्नी को 30 साल तक खानाबदोशों की तरह ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ी। लेकिन हमने इस नौकरी को सिर्फ एक लक्ष्य हासिल करने का ज़रिया समझा। हमेशा से हमारा लक्ष्य था, परमेश्‍वर के राज्य के काम को बढ़ावा देना। हम यहोवा को धन्यवाद देते हैं कि उसने हमें हमारे बदलते हालात का अच्छी तरह इस्तेमाल करने में मदद दी और इस तरह हमें दूर-दराज़ के इलाकों में सुसमाचार फैलाने का सुनहरा मौका दिया।

फिर वहीं, जहाँ से शुरू किया

अट्ठावन की उम्र में, समय से पहले रिटायरमेंट लेकर मैंने फिलीपींस लौटने का फैसला किया। लौटने पर हमने यहोवा से प्रार्थना की कि आगे के लिए भी वह हमें सही राह दिखाए। हमने ट्रेसे मार्टीरेस शहर की कलीसिया में सेवा शुरू की जो कवीटी प्रांत में पड़ती है। जब हम आए थे, तब यहाँ परमेश्‍वर के राज्य के सिर्फ 19 प्रचारक थे। हर रोज़ प्रचार काम का इंतज़ाम किया गया और कई बाइबल अध्ययन शुरू हुए। फिर कलीसिया बढ़ने लगी। एक समय में, मेरी पत्नी कम-से-कम 19 बाइबल अध्ययन कर रही थी और मैं 14.

जल्द ही किंगडम हॉल छोटा पड़ने लगा। इस बारे में हमने यहोवा से प्रार्थना की। एक आध्यात्मिक भाई और उसकी पत्नी ने अपनी थोड़ी-सी ज़मीन दान करने का फैसला किया और शाखा दफ्तर ने नया किंगडम हॉल बनाने के लिए लोन की मंज़ूरी दे दी। इस नयी इमारत का प्रचार काम पर बढ़िया असर हुआ और हफ्ते-दर-हफ्ते हाज़िरी बढ़ती गयी। फिलहाल हम 17 प्रचारकों से बनी एक दूसरी कलीसिया के साथ संगति कर रहे हैं, जहाँ आने-जाने में हमें दो घंटे लगते हैं।

मेरे और मेरी पत्नी के लिए वे पल बहुत अज़ीज़ हैं, जो हमने अलग-अलग देशों में सेवा करने में बिताए हैं। हमने दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाने में अपनी ज़िंदगी लगा दी और यही सोचकर हम गहरा संतोष महसूस करते हैं, फिर चाहे हम खानाबदोशों की तरह क्यों न जीए हों। आखिर, ज़िंदगी जीने का इससे बढ़िया तरीका और क्या हो सकता है?

[पेज 24, 25 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

तंज़ानिया

युगाण्डा

सोमालिया

ईरान

बंगलादेश

म्यानमार

लाओस

थाइलैंड

फिलीपींस

[पेज 23 पर तसवीर]

अपनी पत्नी अउरेआ के साथ