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माता-पिताओ, अपनी अनमोल विरासत की रक्षा कीजिए

माता-पिताओ, अपनी अनमोल विरासत की रक्षा कीजिए

माता-पिताओ, अपनी अनमोल विरासत की रक्षा कीजिए

‘बुद्धि संरक्षण प्रदान करती है, वह अपने रखनेवालों के जीवन की रक्षा करती है।’सभोपदेशक 7:12, NHT.

1. माता-पिताओं को अपने बच्चों को तोहफा क्यों समझना चाहिए?

 माता-पिता, एक जीते-जागते, नए इंसान को दुनिया में लाते हैं, जिसके नैन-नक्श और स्वभाव काफी हद तक उनसे मिलता-जुलता है। बाइबल ऐसे नन्हे-मुन्‍नों को ‘यहोवा की ओर से एक विरासत’ कहती है। (भजन 127:3, NW) यहोवा ही सही मायने में जीवन-दाता है, इसलिए वह माता-पिता को कुछ ऐसा सौंप रहा है जो दरअसल उसकी अपनी मिल्कियत है। (भजन 36:9) माता-पिताओ, परमेश्‍वर से ऐसा कीमती तोहफा पाने के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

2. जब मानोह को पता चला कि वह बाप बननेवाला है, तब उसने क्या किया?

2 बेशक, ऐसा तोहफा पाकर हमें नम्रता और एहसानमंदी की भावना से भर जाना चाहिए। आज से 3,000 से ज़्यादा साल पहले, इस्राएली मानोह ने ऐसी ही भावना दिखायी जब उसकी पत्नी को एक स्वर्गदूत ने बताया कि वह एक बच्चा जननेवाली है। यह खुशखबरी सुनकर मानोह ने बिनती की: “हे प्रभु, बिनती सुन, परमेश्‍वर का वह जन जिसे तू ने भेजा था फिर हमारे पास आए, और हमें सिखलाए कि जो बालक उत्पन्‍न होनेवाला है उस से हम क्या क्या करें।” (न्यायियों 13:8) माता-पिताओ, आप मानोह की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

आज परमेश्‍वर की मदद की ज़रूरत क्यों है

3. बच्चों को पालने-पोसने में खासकर आज परमेश्‍वर की मदद की ज़रूरत क्यों है?

3 सबसे ज़्यादा आज माता-पिताओं को अपने बच्चों की परवरिश करने में यहोवा की मदद की ज़रूरत है। क्यों? क्योंकि शैतान इब्‌लीस और उसके दूतों को स्वर्ग से पृथ्वी पर फेंक दिया गया है। बाइबल खबरदार करती है: “हे पृथ्वी, . . . [तुझ] पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” (प्रकाशितवाक्य 12:7-9, 12) बाइबल समझाती है कि शैतान “गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए।” (1 पतरस 5:8) सिंह, कमज़ोर जानवरों, खासकर बच्चों को अपना शिकार बनाता है। इसलिए मसीही माता-पिता, अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए समझदारी दिखाते हुए यहोवा से मदद माँगते हैं। आप अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए किस हद तक कोशिश कर रहे हैं?

4. (क) आस-पड़ोस के इलाके में शेर के खुलेआम घूमने की बात जानकर माता-पिता को फौरन क्या करना चाहिए? (ख) बच्चों को अपनी रक्षा के लिए किसकी ज़रूरत है?

4 अगर आपको पता चले कि आपके आस-पड़ोस में एक शेर खुलेआम घूम रहा है, तो क्या आपकी सबसे बड़ी चिंता अपने बच्चों की रक्षा करना नहीं होगी? बेशक। शैतान उस शेर की तरह शिकार करता है। वह परमेश्‍वर के लोगों को भ्रष्ट करने पर तुला हुआ है, ताकि वे परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने के लायक न रहें। (अय्यूब 2:1-7; 1 यूहन्‍ना 5:19) वह नादान बच्चों को बड़ी आसानी से अपना शिकार बना सकता है। शैतान के फँदों से बचने के लिए ज़रूरी है कि बच्चे यहोवा को जानें और उसकी आज्ञाएँ मानें। इसके लिए बाइबल का ज्ञान लेना बेहद ज़रूरी है। यीशु ने कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना 17:3) इसके अलावा, बच्चों को बुद्धि की ज़रूरत है, यानी सीखी हुई बातों को समझकर उन पर चलना ज़रूरी है। यह ‘बुद्धि अपने रखनेवालों के जीवन की रक्षा करती है,’ इसलिए आप माता-पिता को अपने बच्चों के दिल में सच्चाई बिठाने की ज़रूरत है। (सभोपदेशक 7:12, NHT) आप यह कैसे कर सकते हैं?

5. (क) बुद्धि की बातें कैसे सिखायी जा सकती हैं? (ख) नीतिवचन में बुद्धि की अहमियत कैसे समझायी गयी है?

5 आप अपने बच्चों को परमेश्‍वर का वचन पढ़कर सुना सकते हैं। दरअसल यह आपकी ही ज़िम्मेदारी है। लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे यहोवा से प्रेम करें और उसकी आज्ञा मानें, तो इसके लिए सिर्फ उन्हें बाइबल पढ़कर सुनाना ही काफी नहीं है। उनके लिए परमेश्‍वर का वचन समझना भी ज़रूरी है। एक मिसाल लीजिए: आप शायद बच्चे से कहें कि दाएँ-बाएँ देखने के बाद ही सड़क पार किया करे। फिर भी, कुछ बच्चे नहीं मानते। क्यों नहीं? क्योंकि बच्चे को शायद बार-बार समझाया न गया हो कि किसी गाड़ी से टकराने का अंजाम क्या हो सकता है। इसलिए बच्चे के मन में यह बात नहीं बैठती कि बिना देखे सड़क पार करने में क्या खतरा है और यही “मूढ़ता” उसकी दुर्घटना का सबब हो सकती है। किसी को बुद्धि की बातें सिखाने के लिए वक्‍त की और बेइंतहा सब्र की ज़रूरत होती है। मगर बुद्धि कितनी अनमोल है! बाइबल कहती है: “उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं। जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।”—नीतिवचन 3:13-18; 22:15.

शिक्षा जो बुद्धि देती है

6. (क) बच्चे अकसर बुद्धि की कमी दिखाते हुए गलत काम क्यों कर बैठते हैं? (ख) कैसी जंग छिड़ी हुई है?

6 बच्चे अकसर गलत काम कर बैठते हैं, इसलिए नहीं कि उन्हें सही क्या है यह सिखाया नहीं गया, बल्कि इसलिए कि ये शिक्षाएँ उनके दिल तक यानी अंदर के इंसान तक नहीं पहुँचीं। इब्‌लीस ने बच्चों का दिल लुभाने के लिए बड़ी ज़बरदस्त जंग छेड़ी हुई है। इसके लिए वह ऐसी चाल चलता है कि बच्चों को उसकी इस दुनिया के गंदे असर और गंदी सोच का सामना करना पड़ता है। वह बुराई की तरफ उनके पैदाइशी झुकाव का फायदा उठाने की भी कोशिश करता है। (उत्पत्ति 8:21; भजन 51:5) माता-पिता को यह समझने की ज़रूरत है कि उनके बच्चों का दिल लुभाने के लिए शैतान सचमुच एक जंग छेड़े हुए है।

7. बच्चे को सिर्फ सही-गलत के बारे में बता देना ही काफी क्यों नहीं है?

7 आम तौर पर माता-पिता बच्चे को बताते हैं कि सही-गलत क्या है और यह मान लेते हैं कि उन्होंने बच्चे को एक उसूल सिखा दिया। वे शायद बच्चे से कहें कि झूठ बोलना, चोरी करना या किसी ऐसे शख्स से लैंगिक संबंध रखना गलत है जिससे आपकी शादी नहीं हुई। लेकिन मम्मी-पापा ने मना किया है, यह वजह बच्चे के लिए काफी नहीं है। उसके पास ये आज्ञाएँ मानने की इससे बड़ी और ठोस वजह होनी चाहिए। उसे समझाना ज़रूरी है कि ये यहोवा के कानून हैं। उसके मन में यह बात बैठनी चाहिए कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानने में ही बुद्धिमानी है।—नीतिवचन 6:16-19; इब्रानियों 13:4.

8. किस तरह की शिक्षा से बच्चों को बुद्धिमानी से काम करने में मदद मिल सकती है?

8 इस विश्‍व की जटिल बनावट, जीवों की बेहिसाब किस्में, बदलते मौसम, इन सब चीज़ों से बच्चे को यह समझने में मदद दी जा सकती है कि इनका एक सिरजनहार है जो सबसे बुद्धिमान है। (रोमियों 1:20; इब्रानियों 3:4) इसके अलावा, बच्चे को यह सिखाया जाना चाहिए कि परमेश्‍वर उससे प्रेम करता है और अपने बेटे की कुरबानी देकर उसने, उसके लिए हमेशा की ज़िंदगी पाने का इंतज़ाम किया है। साथ ही, अगर वह चाहे तो परमेश्‍वर की बात मानकर उसे खुश कर सकता है। तब मुमकिन है कि बच्चे में यहोवा की सेवा करने की इच्छा पैदा हो, फिर चाहे शैतान उसकी राह में कितनी ही रुकावटें क्यों न लाए।—नीतिवचन 22:6; 27:11; यूहन्‍ना 3:16.

9. (क) बच्चों को जान बचानेवाली शिक्षा देने के लिए क्या ज़रूरी है? (ख) पिताओं को क्या करने की आज्ञा दी गयी है, और इसमें क्या शामिल है?

9 अगर आप अपने बच्चे को ऐसी शिक्षा देना चाहते हैं जिससे उसकी रक्षा हो और उसे सही काम करने का बढ़ावा मिले, तो इसके लिए आपको वक्‍त निकालना होगा, बहुत सोच-समझकर तैयारी करनी होगी और बच्चे पर पूरा ध्यान देना होगा। इसके लिए माता-पिता का परमेश्‍वर से निर्देशन माँगना ज़रूरी है। बाइबल कहती है: “पिताओ, . . . [यहोवा] की शिक्षा और अनुशासन में [अपने बच्चों का] पालन-पोषण करो।” (इफिसियों 6:4, NHT) इसका क्या मतलब है? “अनुशासन” के लिए मूल यूनानी भाषा के शब्द से “में मन बिठाना” का विचार मिलता है। तो फिर, पिताओं से असल में गुज़ारिश की गयी है कि वे अपने बच्चों में यहोवा का मन बिठाएँ। बच्चों की इससे कितनी हिफाज़त होगी! अगर बच्चों के मन में, परमेश्‍वर के विचार और उसके सोचने का तरीका बिठाया गया है, तो यह उन्हें बुराई करने से बचाए रखेगा।

प्यार की खातिर

10. अपने बच्चे को अच्छी तरह सिखाने के लिए क्या जानना ज़रूरी है?

10 अगर आप अपनी यह आरज़ू पूरी करना चाहते हैं कि अपने बच्चे की अच्छी परवरिश करें, तो आप प्यार की खातिर उसके लिए मेहनत भी करेंगे। इसके लिए बच्चे के साथ अच्छी बातचीत करना निहायत ज़रूरी है। पता लगाइए कि आपके बच्चे की ज़िंदगी में क्या हो रहा है और वह क्या सोचता/ती है। हलके-फुलके माहौल में, कुशलता के साथ बातों-बातों में अपने बच्चे के दिल की बात जानने की कोशिश कीजिए। कभी-कभी उसकी बात सुनकर आप शायद चौंक जाएँ। मगर ध्यान रहे कि आप भड़क ना उठें। इसके बजाय, परवाह करनेवाले एक हमदर्द दोस्त की तरह उसकी बात सुनिए।

11. माता/पिता अपने बच्चे में परमेश्‍वर का मन कैसे बिठा सकता/ती है?

11 बेशक, आपने अपने बच्चे को बाइबल से एक बार नहीं, बल्कि बार-बार परमेश्‍वर के वे कानून पढ़कर सुनाए होंगे, जिनमें लैंगिक अनैतिकता के खिलाफ सख्त मनाही की गयी है। (1 कुरिन्थियों 6:18; इफिसियों 5:5) इससे शायद आपके बच्चों के मन में यह बात बैठ गयी होगी कि किस बात से यहोवा खुश होता है और किससे खफा। मगर, बच्चे में यहोवा का मन बिठाने के लिए इससे ज़्यादा करने की ज़रूरत है। बच्चों को, यहोवा के कानूनों की अहमियत समझने में मदद की ज़रूरत है। उन्हें इस बात का यकीन होना चाहिए कि परमेश्‍वर के कानून सही और फायदेमंद हैं और उन्हें मानकर हम सही काम करते हैं और अपने प्रेम का सबूत भी देते हैं। अगर आप बाइबल से बच्चों के साथ तर्क करें, ताकि वे परमेश्‍वर की सोच को अपनाने लगें, तब यह कहा जा सकता है कि आपने उनमें उसका मन बिठाया है।

12. माता/पिता अपने बच्चे को लैंगिक संबंधों के बारे में सही नज़रिया अपनाने में किस तरह मदद कर सकता/ती है?

12 सेक्स के बारे में बात करते वक्‍त, आप बच्चे से पूछ सकते हैं: “यहोवा का कानून है कि हमें शादी से पहले सेक्स-संबंध नहीं रखने चाहिए। क्या तुम्हें लगता है कि अगर एक इंसान इस कानून को माने, तो उसकी खुशी छिन जाएगी?” आपका बच्चा जो भी जवाब देता है, उसकी वजह समझाने का उसे बढ़ावा दीजिए। बच्चे पैदा करने के परमेश्‍वर के बेजोड़ इंतज़ाम पर चर्चा करने के बाद, आप पूछ सकते हैं: “क्या तुम्हें लगता है कि हमारा प्यारा परमेश्‍वर ऐसे कानून बनाएगा जिससे हम ज़िंदगी का मज़ा न ले पाएँ? या क्या तुम्हें लगता है कि उसके कानून हमारी खुशी के लिए हैं और हमारी हिफाज़त करते हैं?” (भजन 119:1, 2; यशायाह 48:17) इस बारे में आपका बच्चा क्या सोचता है, यह पता लगाइए। फिर आप ऐसे लोगों की मिसालें दे सकते हैं जिन्होंने लैंगिक अनैतिकता की वजह से बहुत-से दुःख-दर्द उठाए और परेशानियाँ झेलीं। (2 शमूएल 13:1-33) जब आप अपने बच्चे के साथ तर्क करते हैं जिससे वह परमेश्‍वर की सोच को समझकर उसे अपनाता है, तो आप उसमें परमेश्‍वर का मन बिठाने में काफी हद तक कामयाब रहते हैं। मगर, कुछ और भी है जो आप कर सकते हैं।

13. किस बात को समझने से एक बच्चे को यहोवा की आज्ञा मानने की खासकर प्रेरणा मिलेगी?

13 समझदारी इसी में होगी कि हम अपने बच्चे को न सिर्फ यह सिखाएँ कि यहोवा की आज्ञा तोड़ने का अंजाम क्या होगा, बल्कि यह भी बताएँ कि हम जैसी ज़िंदगी जीते हैं उसका यहोवा पर कैसा असर होता है। बाइबल से अपने बच्चे को दिखाइए कि जब हम यहोवा की मरज़ी पर नहीं चलते तो उसका दिल दुखाते हैं। (भजन 78:41) आप पूछ सकते हैं: “तुम क्यों यहोवा के दिल को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते?” और फिर समझाइए: “परमेश्‍वर के दुश्‍मन शैतान का दावा है कि हम यहोवा की सेवा प्यार की खातिर नहीं बल्कि अपने किसी स्वार्थ की वजह से करते हैं।” इसके बाद, समझाइए कि अय्यूब ने कैसे खराई रखकर परमेश्‍वर का दिल खुश किया और इस तरह शैतान के झूठे इलज़ाम का जवाब दिया। (अय्यूब 1:9-11; 27:5) आपके बच्चे के लिए यह समझना ज़रूरी है कि वह जैसा बर्ताव करेगा, उससे या तो यहोवा खुश होगा या दुखी। (नीतिवचन 27:11) ये और ऐसे ही दूसरे ज़रूरी सबक बच्चों को महान शिक्षक से सीखिए (अँग्रेज़ी) * किताब से सिखाए जा सकते हैं।

बढ़िया नतीजे

14, 15. (क) शिक्षक किताब के किन भागों ने बच्चों को सही काम करने के लिए उकसाया है? (ख) इस किताब को इस्तेमाल करने से आपको कौन-से अच्छे नतीजे मिले हैं? (पेज 18-19 पर बक्स भी देखिए।)

14 क्रोएशिया में एक दादाजी अपने सात साल के पोते को यह शिक्षक किताब पढ़कर सुनाते हैं। वे लिखते हैं कि उनके पोते ने उनसे क्या कहा: “मम्मी ने मुझे एक काम करने को कहा था, मगर मैं वह काम नहीं करना चाहता था। फिर मुझे वह भाग याद आया, ‘आज्ञा मानने से आपकी हिफाज़त होती है।’ फिर मैं मम्मी के पास गया और उनसे कहा कि मैं उनकी हर बात मानूँगा।” “हमें झूठ क्यों नहीं बोलना चाहिए,” इस अध्याय के बारे में फ्लोरिडा, अमरीका के एक शादीशुदा जोड़े ने कहा: “इस किताब में ऐसे सवाल पूछे गए हैं जो बच्चों को अपने दिल की बात खुलकर कहने और अपनी गलतियाँ कबूल करने में मदद देते हैं, जो वे शायद वैसे कबूल न करते।”

15 शिक्षक किताब में 230 से भी ज़्यादा तसवीरें हैं, और हर तसवीर या कुछ तसवीरों के लिए एक साथ एक चित्र-शीर्षक दिया है या उसे समझाया गया है। इस किताब के लिए एहसानमंद एक माँ ने कहा: “कई बार ऐसा हुआ है कि जब मेरा बेटा किसी तसवीर को देखता है तो बस देखता ही रह जाता, वह पन्‍ना पलटने ही नहीं देता। इस किताब की तसवीरें न सिर्फ बहुत लुभावनी हैं, बल्कि उनसे सबक भी सीखने को मिलते हैं, या इन्हें देखकर बच्चे सवाल पूछने लगते हैं। अंधेरे कमरे में टीवी देख रहे लड़के की तसवीर को देखकर मेरे बेटे ने पूछा: ‘मम्मी यह लड़का क्या कर रहा है?’ और यह बात उसने इस लहज़े में पूछी मानो उसे पता हो कि वह कोई गलत काम कर रहा है।” इस तसवीर का चित्र-शीर्षक कहता है: “कौन है जो हमारे हर काम को देख सकता है?”

आज के लिए ज़रूरी शिक्षा

16. आज बच्चों को क्या सिखाना बेहद ज़रूरी है, और क्यों?

16 बच्चों के लिए यह जानना ज़रूरी है कि शरीर के गुप्त अंगों का सही और गलत इस्तेमाल क्या होता है। मगर इस बारे में बात करना हमेशा आसान नहीं होता। एक अखबार की लेखिका ने कहा कि वह ऐसे ज़माने में बड़ी हुई जब लैंगिक अंगों की ओर इशारा करनेवाले शब्दों का इस्तेमाल करना बेहूदगी समझा जाता था। अपने बच्चों को सिखाने के बारे में वह लिखती है: “मुझे अपनी शर्मिंदगी पर काबू पाना ही होगा।” यह सच है कि जब माता-पिता शर्म की वजह से बच्चे के साथ सेक्स के विषय पर बात नहीं करते, तो इससे बच्चे की हिफाज़त नहीं होती। लैंगिक अंगों से छेड़खानी करनेवाले, बच्चों के इस मामले में बेखबर होने का फायदा उठाते हैं। महान शिक्षक से सीखिए किताब में पूरी इज़्ज़त और गरिमा के साथ इस विषय पर बात की गयी है। बच्चों को सेक्स के बारे में बताने से उनकी मासूमियत खत्म नहीं हो जाती। जबकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे, तो हो सकता है कि उनकी मासूमियत, उनकी आबरू कोई छीन ले जाए।

17. शिक्षक किताब से माता-पिता को अपने बच्चे को सेक्स के बारे में सिखाने में कैसे मदद मिली है?

17 अध्याय 10 में, धरती पर आकर संतान पैदा करनेवाले दुष्ट स्वर्गदूतों के बारे में चर्चा करते वक्‍त, बच्चे से पूछा गया है: “आप सेक्स-संबंधों के बारे में क्या जानते हैं?” किताब में इसका जवाब आसान शब्दों में मगर इज़्ज़त के साथ दिया गया है। बाद में, अध्याय 32 में समझाया गया है कि कैसे बदचलन लोगों से बच्चों की हिफाज़त की जा सकती है जो उनके लैंगिक अंगों से छेड़खानी कर सकते हैं। इस पत्रिका के प्रकाशकों को मिलनेवाली ढेरों चिट्ठियाँ बताती हैं कि ऐसी शिक्षा बेहद ज़रूरी है। एक माँ ने यूँ लिखा: “पिछले हफ्ते हम अपने बेटे, जेवन को बाल-चिकित्सक के पास ले गए। तब डॉक्टर ने हमसे पूछा कि क्या हमने शरीर के गुप्त अंगों के सही इस्तेमाल के बारे में उससे बात की है। उसे यह जानकर बड़ा ताज्जुब और खुशी भी हुई कि हम अपनी नयी किताब की मदद से उसके साथ यह चर्चा कर चुके हैं।”

18. शिक्षक किताब में राष्ट्रीय चिन्हों की भक्‍ति करने के बारे में कैसे चर्चा की गयी है?

18 एक और अध्याय में बाइबल का वह किस्सा बताया गया है जिसमें तीन इब्री जवान, शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने बाबुल की हुकूमत की निशानी, एक मूरत के आगे झुकने से इनकार किया था। (दानिय्येल 3:1-30) कुछ लोगों को शायद यह समझ न आए कि एक मूरत के सामने झुकना और एक झंडे को सलामी देना कैसे एक ही बात है, जैसे कि शिक्षक किताब में बताया गया है। लेकिन, गौर कीजिए कि यू.एस. कैथोलिक पत्रिका के एक इंटरव्यू में लेखक एडवर्ड गाफनी ने क्या कहा। उन्होंने बताया कि मेरी बेटी जब पहले दिन स्कूल से लौटकर आयी तो मुझसे बोली कि स्कूल में मैंने एक “नयी प्रार्थना सीखी” है। जब मैंने उसे प्रार्थना दोहराने को कहा, तो “उसने अपने दिल पर हाथ रखकर बड़े फख्र के साथ बोलना शुरू किया, ‘मैं शपथ लेती हूँ कि झंडे से वफादारी निभाऊँगी . . . ।’” गाफनी आगे कहते हैं: “अचानक मुझे एक बात समझ में आयी। यहोवा के साक्षी ठीक कहते हैं। स्कूल में छुटपन से ही हममें देश-भक्‍ति की भावना बढ़ायी जाती है। ऐसी भक्‍ति और वफादारी जिसमें सवाल पूछने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती और सबसे पहले देश के लिए वफादारी आती है।”

मेहनत वसूल

19. बच्चों को सिखाने से कौन-से फायदे मिलते हैं?

19 वाकई, अपने बच्चों को सिखाने के लिए आप जो भी मेहनत करते हैं उससे आपको बहुत फायदे मिलेंगे। अमरीका के कानसस राज्य में रहनेवाली एक माँ को जब अपने बेटे से एक खत मिला तो उसके आँसू छलक पड़े। बेटे ने लिखा था: “मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे ऐसी परवरिश मिली जिससे मैं एक ज़िम्मेदार और जज़्बाती तौर पर मज़बूत इंसान बना। आप और डैडी वाकई तारीफ के काबिल हैं।” (नीतिवचन 31:28) महान शिक्षक से सीखिए किताब और भी कई माता-पिताओं को मदद देगी कि वे अपने बच्चों को सिखाएँ और इस अनमोल विरासत की हिफाज़त करें।

20. माता-पिता को हर पल क्या याद रखना चाहिए, और इसका उन पर क्या असर होना चाहिए?

20 हमारे बच्चों को हमारा वह सारा वक्‍त, ध्यान और मेहनत मिलनी चाहिए, जो हम उन्हें दे सकते हैं। उनका बचपन पलक झपकते ही बीत जाएगा। इसलिए उनके साथ रहने और उनकी मदद करने के हर मौके का फायदा उठाइए। आपको कभी इसका अफसोस नहीं होगा। एक वक्‍त आएगा जब आपने जो किया उसके लिए बच्चे आपसे मुहब्बत करेंगे। हर पल यह याद रखिए, परमेश्‍वर ने आपके बच्चे आपको तोहफे में दिए हैं। वे कितनी अनमोल विरासत हैं! (भजन 127:3-5) इसलिए उनकी देखभाल भी यह याद रखते हुए कीजिए, मानो आपको परमेश्‍वर को जवाब देना है कि आपने अपने बच्चों की परवरिश कैसे की है। और वाकई आप जवाबदेह हैं!

[फुटनोट]

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है। अध्याय 40 देखिए, “परमेश्‍वर को कैसे खुश करें।”

आप कैसे जवाब देंगे?

• क्यों खासकर आज माता-पिता के लिए अपने बच्चों की हिफाज़त करना ज़रूरी है?

• किस तरह की शिक्षा से बुद्धि सिखायी जाती है?

• आज आपको अपने बच्चों के साथ किन ज़रूरी मसलों पर चर्चा करनी चाहिए?

शिक्षक किताब ने बच्चों को सिखाने में माता-पिता की कैसे मदद की है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18, 19 पर बक्स/तसवीरें]

सबके लिए एक किताब

महान शिक्षक से सीखिए (अँग्रेज़ी) किताब माता-पिताओं या दूसरे बड़े लोगों की मदद करने के लिए तैयार की गयी थी ताकि वे बच्चों के साथ यीशु मसीह की शिक्षाओं के बारे में पढ़ सकें और उन पर चर्चा कर सकें। मगर जिन बड़े लोगों ने खुद यह किताब पढ़ी, उन्होंने इसमें से सीखी हुई बातों के लिए गहरी कदरदानी ज़ाहिर की है।

अमरीका के टेक्सस राज्य के एक आदमी ने कहा: “महान शिक्षक से सीखिए किताब इतनी सरल भाषा में लिखी गयी है कि इसका जवाब नहीं! यह हर उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि मुझ जैसे 76 साल के उम्रदराज़ इंसान को भी कुछ कदम उठाने के लिए उकसाती है। जवानी से यहोवा की सेवा करनेवाले की तरफ से आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।”

इंग्लैंड के लंदन शहर से एक पाठक ने कहा: “इसकी खूबसूरत तसवीरें, यकीनन बच्चे और उनके माता-पिता दोनों के मन को मोह लेंगी। इसमें दिए सवाल और इसकी रचना बहुत ही बढ़िया है। इसके अलावा, जिस बेहतरीन ढंग से नाज़ुक मसलों को समझाया गया है, उसके लिए आपको दाद देनी पड़ेगी। इसकी एक मिसाल है अध्याय 32, ‘यीशु को कैसे बचाया गया।’” आखिर में वह कहती है: “हालाँकि यह किताब खास यहोवा के साक्षियों के बच्चों के लिए तैयार की गयी है, फिर भी मुझे लगता है कि टीचर और दूसरे लोग भी इस किताब की कॉपियाँ पाकर बेहद खुश होंगे। आनेवाले समय में इस किताब का इस्तेमाल करने के लिए मैं बेताब हूँ।”

अमरीका के मैसाचुसेट्‌स राज्य की एक स्त्री ने इस किताब में ‘अच्छी तरह से सोच-समझकर इस्तेमाल की गयी बहुत-सी तसवीरों’ की तारीफ की। उसने यह भी लिखा: “मैंने गौर किया है कि हालाँकि यह किताब बच्चों के लिए बनायी गयी है, मगर इसमें ऐसे विषयों पर चर्चा की गयी है जो हम बड़ों को भी यहोवा के साथ अपने निजी रिश्‍ते के बारे में सोचने के लिए मदद कर सकते हैं।”

“वाह! इस किताब के क्या कहने!” अमरीका के मेन राज्य की एक स्त्री ने यह कहकर इस किताब के बारे में अपनी भावना ज़ाहिर की। उसने आगे कहा: “यह किताब सिर्फ नन्हे-मुन्‍नों के लिए ही नहीं बल्कि हम सभी के लिए है क्योंकि हम भी परमेश्‍वर के बच्चे हैं। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि इसमें लिखी बातें मेरे दिल को इस कदर भा जाएँगी। इन बातों ने पहले मेरी भावनाओं को झँझोड़ दिया, फिर मैंने सुकून महसूस किया। इसके बाद मुझे बड़ी शांति मिली। अब मैं यहोवा के बहुत ही करीब महसूस करती हूँ, मानो वही मेरा पिता हो। बरसों से मैंने जितने भी दुःख-दर्द सहे हैं, उन सभी को उसने दूर कर दिया है। और उसने इस किताब के ज़रिए अपने उद्देश्‍य के बारे में भी साफ-साफ बताया है।” आखिर में वह कहती है: “मैं सबसे यही कह रही हूँ, ‘इस किताब को ज़रूर पढ़िए।’”

जापान के कीओटो शहर की एक स्त्री ने बताया कि जब वह अपने नाती-पोतों को यह किताब पढ़कर सुना रही थी, तब उन्होंने कई सवाल पूछे। जैसे: “‘यह लड़का क्या कर रहा है? इस लड़की को क्यों डाँटा जा रहा है? यह माँ क्या कर रही है? यह सिंह क्या कर रहा है?’ यह किताब हमें ऐसी बातें सिखाती है जिनमें हमें दिलचस्पी होती है, इसलिए यह मेरी सबसे मनपसंद किताब है और मुझे नहीं लगता कि ऐसी किताब किसी लाइब्रेरी में होगी।”

कैनडा के कैलगरी शहर से एक पिता बताता है कि जैसे ही यह किताब उसके हाथ लगी, वह अपनी छः साल की बेटी और नौ साल के बेटे को इसे पढ़कर सुनाने लगा। उसने बताया: “इसका फौरन, बहुत ही अच्छा नतीजा निकला। मेरे बच्चे ध्यान से सुनने लगे और सवालों के जवाब दिल से देने लगे। उन्हें ऐसा लगने लगा कि वे भी अध्ययन का एक हिस्सा हैं और उन्हें अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने का मौका भी मिला। उनमें नया जोश भर आया, और मेरी बेटी का कहना है कि वह हर रात को इस नयी किताब से अध्ययन करना चाहती है।”

एक अध्ययन के बाद उसी पिता ने बताया: “मेरे बेटे और मैंने घंटों बैठकर यहोवा और उसके उद्देश्‍यों के बारे में बातें कीं। उसके मन में इस किताब से जुड़े ढेरों सवाल थे। फिर रात को गुड नाइट कहने के बाद उसने मुझसे पूछा, ‘डैडी, क्या हम ऐसी चर्चा दोबारा कर सकते हैं? मेरे बहुत-से सवाल हैं और मैं यहोवा के बारे में सबकुछ जानना चाहता हूँ।’ यह सुनकर मेरी आँखें भर आयीं।”

[पेज 15 पर तसवीर]

माता-पिताओ, आप मानोह की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

[पेज 16 पर तसवीर]

बच्चो, आप तीन इब्रियों की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

[पेज 17 पर तसवीरें]

“शिक्षक” किताब की तसवीरें और चित्र-शीर्षक सिखाने के ज़बरदस्त औज़ार हैं

हनन्याह पतरस से क्या झूठ बोल रहा है?

कौन है जो हमारे हर काम को देख सकता है?