इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

जीत एक खास तरीके से

जीत एक खास तरीके से

जीत एक खास तरीके से

क्या लोग आपके विश्‍वास का विरोध करते हैं, जैसे काम की जगह पर, स्कूल में, या फिर सरकार की तरफ से लगायी गयी पाबंदियों के ज़रिए? अगर हाँ, तो हिम्मत मत हारिए। यहोवा के कई साक्षियों ने इस तरह की परीक्षाओं का सामना किया है, फिर भी जीत उन्हीं की हुई। एरना लूडॉल्फ की मिसाल पर गौर कीजिए।

एरना का जन्म सन्‌ 1908 में जर्मनी के लूबेक शहर में हुआ था। अपने परिवार में से केवल वही यहोवा की सेवा करती थी। सन्‌ 1933 में हिटलर की सरकार के सत्ता में आने के बाद से यहोवा के साक्षियों का जीना दुश्‍वार हो गया था। एरना ने हिटलर को सलामी देने से इनकार कर दिया था, इसलिए उसके साथ काम करनेवालों ने उसे सरेआम ज़लील किया, और नात्ज़ियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उसने आठ साल अलग-अलग कैदखानों और हॉमबुर्ग-फूल्सबूएटल, मोरिंगन, लिक्खटनबर्ग और रावन्सब्रूक जैसे यातना शिविरों में गुज़ारे। जब वह रावन्सब्रूक में थी, तब कुछ ऐसी बात हुई जिसकी वजह से उसने एक खास तरीके से जीत हासिल की।

एक अनोखी आया

प्रोफेसर फ्रीड्रिख हॉल्ट्‌स और उनकी पत्नी आलीस, बर्लिन में रहते थे। वे नात्ज़ी पार्टी के सदस्य नहीं थे और न ही वे उनके विचारों से सहमत थे। मगर वे एक सीनियर एसएस (हिटलर के खास सैनिक-दल के) अफसर के रिश्‍तेदार थे, जिस पर यातना शिविर के कुछ कैदियों की ज़िम्मेदारी थी। इसलिए जब प्रोफेसर और उनकी पत्नी अपने घर में काम करने के लिए एक आया ढूँढ़ रहे थे, तब इस अफसर ने उनसे कहा कि अगर वे चाहें तो महिला कैदियों में से किसी एक को चुन सकते हैं। इस तरह, सन्‌ 1943 के मार्च महीने में आलीस अपने लिए आया चुनने रावन्सब्रूक पहुँची। उसने किसे चुना? एरना लूडॉल्फ को। अब एरना, हॉल्ट्‌स परिवार के साथ रहने लगी और इस परिवार ने उसके साथ अच्छा बर्ताव किया। युद्ध खत्म होने के बाद, एरना उसी परिवार के साथ ज़ाला नदी के पास बसे हाला शहर चली गयी। वहाँ उसे दोबारा विरोध का सामना करना पड़ा, मगर इस बार पूर्वी जर्मनी के समाजवादी अधिकारियों की तरफ से। सन्‌ 1957 में हॉल्ट्‌स परिवार को देशनिकाला देकर पश्‍चिम जर्मनी भेज दिया गया और एरना भी उनके साथ गयी। आखिरकार, एरना को अपने विश्‍वास के मुताबिक जीने की आज़ादी मिल ही गयी।

एरना को कैसे एक खास तरीके से जीत मिली? उसका चालचलन बहुत बढ़िया था, साथ ही उसने बड़ी कुशलता से बाइबल का संदेश सुनाया। इस वजह से आलीस हॉल्ट्‌स और उसके पाँच बच्चे यहोवा के बपतिस्मा-शुदा साक्षी बन गए। और-तो-और, आलीस के 11 नाती-पोते भी आज साक्षी हैं। उनमें से दो फिलहाल सेलटर्स, जर्मनी में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में सेवा कर रहे हैं। आलीस की एक बेटी, ज़ूज़ाना कहती है: “आज हमारा परिवार सच्चाई में है, इसके पीछे एरना की मिसाल का सबसे बड़ा हाथ रहा है।” एरना को धीरज धरने की वजह से ढेरों आशीषें मिलीं। आपके बारे में क्या? मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी अगर आप वफादार बने रहें और धीरज धरते रहें, तो आपको भी ऐसे बढ़िया प्रतिफल मिल सकते हैं। जी हाँ, बढ़िया चालचलन और कुशलता से गवाही देकर आप भी खास तरीके से जीत हासिल कर सकते हैं। *

[फुटनोट]

^ जब यह लेख प्रकाशित होने के लिए तैयार किया जा रहा था, उस दौरान 96 साल की बहन एरना लूडॉल्फ गुज़र गयी। मरते दम तक वह यहोवा की वफादार रही।

[पेज 31 पर तसवीर]

एरना लूडॉल्फ (बैठी हुई) हॉल्ट्‌स परिवार के सदस्यों के साथ