पुनरुत्थान, ऐसी शिक्षा जिसका आप पर असर होता है
पुनरुत्थान, ऐसी शिक्षा जिसका आप पर असर होता है
“[मैं] परमेश्वर से आशा रखता हूं . . . कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।”—प्रेरितों 24:15.
1. महासभा के सामने पुनरुत्थान का मसला कैसे उठा?
प्रेरित पौलुस सा.यु. 56 में, अपने तीसरे मिशनरी दौरे के खत्म होने पर यरूशलेम में था। रोमी सिपाहियों ने उसे गिरफ्तार किया और फिर महासभा नाम की यहूदी अदालत के सामने उसे पेश किया। (प्रेरितों 22:29, 30) जब पौलुस ने उस अदालत के सदस्यों को देखा तो गौर किया कि उसमें कुछ सदूकी थे और कुछ फरीसी। इन दोनों समूहों के बीच एक मुद्दे को लेकर ज़बरदस्त मतभेद था। सदूकी पुनरुत्थान के सच होने से इनकार करते थे; जबकि फरीसी पुनरुत्थान पर विश्वास करते थे। पौलुस ने इन शब्दों से बताया कि इस मामले में वह क्या विश्वास करता है: “हे भाइयो, मैं फरीसी और फरीसियों के वंश का हूं, मरे हुओं की आशा और पुनरुत्थान के विषय में मेरा मुकद्दमा हो रहा है।” पौलुस की यह बात सुनकर सभा में फूट पड़ गयी और हाहाकार मच गया!—प्रेरितों 23:6-9.
2. पौलुस, पुनरुत्थान में अपने विश्वास की पैरवी करने के लिए क्यों तैयार था?
2 बरसों पहले जब पौलुस दमिश्क के रास्ते पर था, तब उसने एक दर्शन देखा जिसमें उसे यीशु की आवाज़ सुनायी दी। पौलुस ने उससे यह तक पूछा: “हे प्रभु मैं क्या करूं?” यीशु ने जवाब दिया: “उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहां तुझ से सब कह दिया जाएगा।” पौलुस के दमिश्क पहुँचने के बाद, एक मसीही चेला हनन्याह उसे ढूँढ़ता हुआ उसके पास आया और उसकी मदद की। हनन्याह ने उसे बताया: “हमारे बापदादों के परमेश्वर ने तुझे इसलिये ठहराया है, कि तू उस की इच्छा को जाने, और उस धर्मी [पुनरुत्थान पाए यीशु] को देखे, और उसके मुंह से बातें सुने।” (प्रेरितों 22:6-16) इस वाकये के बारे में जानकर हमें हैरानी नहीं होती कि पौलुस क्यों पुनरुत्थान में अपने विश्वास की पैरवी करने के लिए तैयार था।—1 पतरस 3:15.
पुनरुत्थान की आशा के बारे में सबको बताना
3, 4. पौलुस ने कैसे पुनरुत्थान का ज़बरदस्त पैरोकार होने का सबूत दिया, और हम उसकी मिसाल से क्या सीख सकते हैं?
3 आगे चलकर, पौलुस को हाकिम फेलिक्स के सामने लाया गया। उस अवसर पर, “वकील” तिरतुल्लुस ने पौलुस के खिलाफ यहूदियों का मुकद्दमा पेश किया और उस पर एक पंथ का मुखिया होने और देशद्रोही होने का इलज़ाम लगाया। पौलुस ने बेझिझक जवाब दिया: “यह मैं तेरे साम्हने मान लेता हूं, कि जिस पन्थ को वे कुपन्थ कहते हैं, उसी की रीति पर मैं अपने बापदादों के परमेश्वर की सेवा करता हूं।” फिर असल मुद्दे पर आते हुए उसने आगे कहा: “[मैं] परमेश्वर से आशा रखता हूं जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।”—प्रेरितों 23:23, 24; 24:1-8, 14, 15.
4 लगभग दो साल बाद, फेलिक्स की जगह लेनेवाले हाकिम पुरकियुस फेस्तुस ने राजा हेरोदेस अग्रिप्पा को बुलवा भेजा ताकि वे मिलकर, कैदी पौलुस से पूछताछ करें। फेस्तुस ने कहा कि पौलुस पर इलज़ाम लगानेवाले उसके इस दावे को झूठ बतला रहे हैं कि ‘यीशु नाम मनुष्य जो मर गया था, जीवित है।’ अपने बचाव में पौलुस ने उनसे पूछा: “यह बात तुम लोगों को अविश्वसनीय क्यों लगती है कि परमेश्वर मृतकों को जीवित करता है?” (NHT) आगे पौलुस ने कहा: “परमेश्वर की सहायता से मैं आज तक बना हूं और छोटे बड़े सभी के साम्हने गवाही देता हूं और उन बातों को छोड़ कुछ नहीं कहता, जो भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने भी कहा कि होनेवाली हैं। कि मसीह को दुख उठाना होगा, और वही सब से पहिले मरे हुओं में से जी उठकर, हमारे लोगों में और अन्यजातियों में ज्योति का प्रचार करेगा।” (प्रेरितों 24:27; 25:13-22; 26:8, 22, 23) पौलुस ने पुनरुत्थान की शिक्षा की क्या ही ज़बरदस्त पैरवी की! पौलुस की तरह, हम भी पूरे विश्वास के साथ यह ऐलान कर सकते हैं कि पुनरुत्थान ज़रूर होगा। मगर लोगों पर इस शिक्षा का कैसा असर होगा इस बारे में हम क्या उम्मीद कर सकते हैं? शायद उन पर भी वैसा ही असर हो जैसा पौलुस के दिनों में हुआ था।
5, 6. (क) प्रेरितों ने जब पुनरुत्थान की शिक्षा की पैरवी की तो लोगों पर इसका क्या असर हुआ? (ख) लोगों को पुनरुत्थान की आशा के बारे में बताते वक्त, क्या करना बेहद ज़रूरी है?
5 गौर कीजिए कि पौलुस के दूसरे मिशनरी दौरे (लगभग सा.यु. 49-52) की शुरूआत में क्या हुआ। वह उस वक्त अथेने के दौरे पर था। वहाँ के लोग बहुत-से देवी-देवताओं को मानते थे। पौलुस ने उनके साथ तर्क किया और परमेश्वर जो करने जा रहा है उस पर ध्यान देने की बिनती की। पौलुस ने बताया कि परमेश्वर अपने ठहराए हुए मनुष्य के ज़रिए सारे जगत के लोगों का धार्मिकता से न्याय करेगा। यह मनुष्य कोई और नहीं बल्कि यीशु है। पौलुस ने बताया कि इस बात की गारंटी देने के लिए परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से जी उठाया है। लोगों पर इसका क्या असर हुआ? हम पढ़ते हैं: “मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो ठट्ठा करने लगे, और कितनों ने कहा, यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे।”—प्रेरितों 17:29-32.
6 इन लोगों ने काफी हद तक वैसा ही रवैया दिखाया जैसा रवैया सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के कुछ समय बाद, पतरस और यूहन्ना ने देखा था। इस वाकये में भी जो हुआ उसमें सदूकियों का बड़ा हाथ था। प्रेरितों 4:1-4 में इसका ब्यौरा दिया है: “जब वे लोगों से यह कह रहे थे, तो याजक और मन्दिर के सरदार और सदूकी उन पर चढ़ आए। क्योंकि वे बहुत क्रोधित हुए कि वे लोगों को सिखाते थे और यीशु का उदाहरण दे देकर मरे हुओं के जी उठने का प्रचार करते थे।” मगर कुछ लोगों ने उनकी बात पर ध्यान दिया। “वचन के सुननेवालों में से बहुतों ने विश्वास किया, और उन की गिनती पांच हजार पुरुषों के लगभग हो गई।” इससे ज़ाहिर है कि जब हम लोगों को पुनरुत्थान की आशा के बारे में बताते हैं, तब यह उम्मीद कर सकते हैं कि इसका सब पर एक-सा असर नहीं होगा। इसलिए, यह बेहद ज़रूरी है कि हम पुनरुत्थान की शिक्षा पर अपने विश्वास को और मज़बूत करें।
विश्वास और पुनरुत्थान
7, 8. (क) पहली सदी में कुरिन्थुस कलीसिया को लिखी पत्री में जैसे दिखाया गया है, हमारा विश्वास कैसे व्यर्थ हो सकता है? (ख) पुनरुत्थान की आशा की सही समझ कैसे सच्चे मसीहियों को दूसरों से अलग करती है?
7 पहली सदी में जो लोग मसीही बने, उनमें से कुछ लोगों को पुनरुत्थान की आशा पर विश्वास करना मुश्किल लग रहा था। ऐसे ही कुछ लोग कुरिन्थुस की कलीसिया में थे। उन्हें पौलुस ने लिखा: “मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। और गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा।” पौलुस ने फिर इस सच्चाई को पुख्ता करते हुए कहा कि पुनरुत्थान पाने के बाद यीशु “पांच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया।” उसने यह भी कहा कि उनमें से ज़्यादातर जन उस वक्त तक ज़िंदा थे। (1 कुरिन्थियों 15:3-8) आगे उसने तर्क किया: “सो जब कि मसीह का यह प्रचार किया जाता है, कि वह मरे हुओं में से जी उठा, तो तुम में से कितने क्योंकर कहते हैं, कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं? यदि मरे हुओं का पुनरुत्थान ही नहीं, तो मसीह भी नहीं जी उठा। और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्थ है; और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्थ है।”—1 कुरिन्थियों 15:12-14.
8 जी हाँ, मसीही विश्वास में पुनरुत्थान की शिक्षा की इतनी अहमियत है कि अगर एक मसीही इस शिक्षा को न माने तो उसका विश्वास व्यर्थ है। दरअसल, पुनरुत्थान की सही समझ ही सच्चे मसीहियों को झूठे मसीहियों से अलग करती है। (उत्पत्ति 3:4; यहेजकेल 18:4) इस वजह से, पौलुस पुनरुत्थान की शिक्षा को मसीहियत की “आरम्भ की बातों” में शामिल करता है। आइए हम ‘सिद्धता की ओर आगे बढ़ते जाने’ की ठान लें। पौलुस हमें उकसाता है कि “यदि परमेश्वर चाहे, तो हम यही करेंगे।”—इब्रानियों 6:1-3.
पुनरुत्थान की आशा
9, 10. बाइबल में “पुनरुत्थान” शब्द का क्या मतलब है?
9 पुनरुत्थान में अपने विश्वास को और मज़बूत करने के लिए आइए हम इन सवालों पर गौर करें: जब बाइबल पुनरुत्थान का ज़िक्र करती है तो इसका क्या मतलब है? पुनरुत्थान की शिक्षा से कैसे यहोवा के प्रेम की बड़ाई होती है? इन सवालों के जवाब हमें परमेश्वर के और करीब लाएँगे और हमें दूसरों को सिखाने में भी मदद मिलेगी।—2 तीमुथियुस 2:2; याकूब 4:8.
10 “पुनरुत्थान” एक यूनानी शब्द का अनुवाद है, जिसका शब्द-ब-शब्द मतलब है “फिर से उठ खड़ा होना।” इन शब्दों का क्या मतलब है? बाइबल के मुताबिक पुनरुत्थान की आशा रखना, इस बात पर यकीन करना है कि एक मरा हुआ इंसान फिर से जी उठेगा। बाइबल यह भी बताती है कि पुनरुत्थान होने पर एक शख्स को या तो इंसानी शरीर या फिर एक आत्मिक शरीर दिया जाता है। उसे कैसा शरीर मिलेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी आशा पृथ्वी पर जीने की है या स्वर्ग में। पुनरुत्थान की इस हैरतअँगेज़ उम्मीद से जिस तरह यहोवा का प्रेम, बुद्धि और शक्ति ज़ाहिर होती है उस पर हम ताज्जुब करते हैं।
11. परमेश्वर के अभिषिक्त सेवकों को पुनरुत्थान पाने के बारे में क्या उम्मीदें हैं?
11 यीशु और उसके अभिषिक्त भाइयों को पुनरुत्थान के बाद स्वर्ग में सेवा करने के लिए एक आत्मिक शरीर दिया जाता है। (1 कुरिन्थियों 15:35-38, 42-53) वे मिलकर मसीहाई राज्य के ज़रिए हुकूमत करेंगे, जो इस धरती पर फिरदौस जैसे हालात लाएगा। महायाजक यीशु के अधीन अभिषिक्त जन एक शाही याजकवर्ग की हैसियत से सेवा करते हैं। वे धार्मिकता की नयी दुनिया में मसीह के छुड़ौती बलिदान के फायदे इंसानों तक पहुँचाएँगे। (इब्रानियों 7:25, 26; 9:24; 1 पतरस 2:9; प्रकाशितवाक्य 22:1, 2) इस दरमियान, जो अभिषिक्त जन अभी इस धरती पर जी रहे हैं वे चाहते हैं कि परमेश्वर की मंज़ूरी उन पर बनी रहे। उनकी मौत होने पर, उन्हें पुनरुत्थान के ज़रिए अपना “बदला” मिलता है और वे स्वर्ग में अमर आत्मिक जीवन हासिल करते हैं। (2 कुरिन्थियों 5:1-3, 6-8, 10; 1 कुरिन्थियों 15:51, 52; प्रकाशितवाक्य 14:13) पौलुस ने लिखा: “यदि हम उसके साथ उसकी मृत्यु की समानता में एक हो गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी एक हो जाएंगे।” (रोमियों 6:5, NHT) मगर उन लोगों का क्या जिनका पुनरुत्थान इंसानी शरीर में इस धरती पर जीने के लिए होगा? पुनरुत्थान की आशा उन्हें परमेश्वर के करीब कैसे ला सकती है? हम इस बारे में इब्राहीम की मिसाल से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
पुनरुत्थान और यहोवा के साथ दोस्ती
12, 13. इब्राहीम के पास पुनरुत्थान पर विश्वास करने की एक बड़ी वजह क्या थी?
12 इब्राहीम जो ‘यहोवा का दोस्त’ कहलाया, उसका विश्वास वाकई तारीफ के काबिल था। (याकूब 2:23, हिन्दुस्तानी बाइबिल) पौलुस ने इब्रानियों की किताब के 11वें अध्याय में, विश्वासी स्त्री-पुरुषों का ब्यौरा देते वक्त, तीन बार इब्राहीम के विश्वास का ज़िक्र किया। (इब्रानियों 11:8, 9, 17) तीसरी बार ज़िक्र करते वक्त वह उस वाकये में इब्राहीम के विश्वास पर ध्यान दिलाता है जब उसने आज्ञा मानकर अपने बेटे इसहाक को बलि चढ़ाने की तैयारी की। इब्राहीम को यकीन था कि इसहाक के ज़रिए ही वह वादा किया हुआ वंश आएगा और इसकी गारंटी खुद यहोवा ने दी थी। अगर इसहाक बलि चढ़ भी जाता, तो भी इब्राहीम ने “मान लिया कि परमेश्वर, लोगों को मरे हुओं में से जीवित करने में समर्थ है।”
13 जब यहोवा ने देखा कि इब्राहीम का विश्वास कितना पक्का है, तो उसने इसहाक के बजाय बलि चढ़ाने के लिए एक मेढ़े का इंतज़ाम किया। फिर भी, इसहाक के साथ जो हुआ वह पुनरुत्थान का एक दृष्टांत बन गया जैसे आगे पौलुस ने कहा: “जहां से उसने [इब्राहीम ने], दृष्टान्त के रूप में, उसे [इसहाक को] पा भी लिया।” (इब्रानियों 11:19, NHT) मगर इससे भी पहले, इब्राहीम के पास पुनरुत्थान पर विश्वास करने की एक बहुत बड़ी वजह थी। क्या यहोवा ने उसके बुढ़ापे में उसके शरीर में दोबारा संतान पैदा करने की शक्ति नहीं डाली थी ताकि वह अपनी पत्नी सारा से एक बेटा पैदा कर सके जो इसहाक कहलाया?—उत्पत्ति 18:10-14; 21:1-3; रोमियों 4:19-21.
14. (क) इब्रानियों 11:9, 10 के मुताबिक इब्राहीम किसकी बाट जोह रहा था? (ख) नयी दुनिया में परमेश्वर के राज्य की आशीषें पाने के लिए इब्राहीम के साथ अभी क्या होना बाकी है? (ग) हमें राज्य की आशीषें कैसे मिल सकती हैं?
14 पौलुस ने इब्राहीम को एक परदेशी और तंबुओं में रहनेवाला बताया जो “उस स्थिर नेववाले नगर की बाट जोहता था, जिस का रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्वर है।” (इब्रानियों 11:9, 10) यह यरूशलेम जैसा कोई सचमुच का नगर नहीं था, जहाँ परमेश्वर का मंदिर था। यह एक लाक्षणिक नगर था। यह परमेश्वर का स्वर्गीय राज्य था जिसमें मसीह यीशु और उसके 1,44,000 संगी राजा थे। जब 1,44,000 जन अपनी स्वर्गीय महिमा पाते हैं, तो उन्हें ‘पवित्र नगर नया यरूशलेम’ कहा गया है, जो मसीह की “दुल्हिन” है। (प्रकाशितवाक्य 21:2) सन् 1914 में, यहोवा ने यीशु को स्वर्गीय राज्य के मसीहाई राजा की हैसियत से सिंहासन पर बिठाया और उसे अपने दुश्मनों के बीच राज करने का हुक्म दिया। (भजन 110:1, 2; प्रकाशितवाक्य 11:15) परमेश्वर के राज्य की आशीषें पाने के लिए, ‘यहोवा के दोस्त’ इब्राहीम को फिर से जी उठना होगा। उसी तरह, अगर हम भी राज्य की आशीषें पाना चाहते हैं, तो हमें परमेश्वर की नयी दुनिया में ज़िंदा होना होगा। फिर चाहे हम बड़ी भीड़ के सदस्य होने के नाते हरमगिदोन से बचकर नयी दुनिया में जाएँ या फिर मरे हुओं में से पुनरुत्थान पाकर। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 14) लेकिन, पुनरुत्थान की आशा का आधार क्या है?
परमेश्वर का प्रेम—पुनरुत्थान की आशा का आधार
15, 16. (क) बाइबल की पहली भविष्यवाणी कैसे पुनरुत्थान की हमारी आशा का आधार है? (ख) पुनरुत्थान में विश्वास कैसे हमें यहोवा के और करीब लाएगा?
15 अपने प्यारे स्वर्गीय पिता के साथ हमारा करीबी रिश्ता है, इब्राहीम की तरह हमारा विश्वास पक्का है और हम परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते हैं। इन वजहों से यहोवा हमें धर्मी ठहराता है और अपना दोस्त कबूल करता है। इस तरह हमें परमेश्वर के राज्य की हुकूमत से फायदा पाने का मौका मिलता है। दरअसल, परमेश्वर के वचन में उत्पत्ति 3:15 में दर्ज़ सबसे पहली भविष्यवाणी, पुनरुत्थान की आशा और परमेश्वर के साथ दोस्ती का आधार कायम करती है। इस भविष्यवाणी में न सिर्फ शैतान का सिर कुचलने की बात कही गयी है, बल्कि यह भी बताया है कि परमेश्वर की स्त्री के वंश को एड़ी में डसा जाएगा। जब यीशु को स्तंभ पर मार डाला गया, तो मानो उसकी एड़ी को डसा गया। उसकी मौत के तीसरे दिन उसका पुनरुत्थान हुआ और इस तरह वह घाव भर गया और यह मुमकिन हुआ कि “जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात् शैतान” के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाए।—इब्रानियों 2:14.
16 पौलुस हमें याद दिलाता है कि “परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।” (रोमियों 5:8) परमेश्वर की इस अपार कृपा के लिए एहसानमंद होने से हम सही मायनों में यीशु के और अपने प्यारे स्वर्गीय पिता के करीब आएँगे।—2 कुरिन्थियों 5:14, 15.
17. (क) अय्यूब को क्या आशा थी? (ख) अय्यूब 14:15 में यहोवा के बारे में क्या बताया गया है, और इससे आपको कैसा महसूस होता है?
17 मसीही युग से पहले जीनेवाला एक वफादार मनुष्य, अय्यूब भी पुनरुत्थान की आस लगाए हुए था। शैतान ने उस पर बहुत ज़ुल्म ढाए। उसके झूठे साथियों ने पुनरुत्थान का ज़िक्र तक नहीं किया। मगर अय्यूब ने इस आशा से तसल्ली पायी और यह सवाल पूछा: “यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा?” जवाब में खुद अय्यूब ने कहा: “जब तक मेरा छुटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता।” अपने परमेश्वर यहोवा से बात करते हुए उसने यह कबूल किया: “तू मुझे पुकारेगा, और मैं उत्तर दूंगा।” (NHT) हमारा प्यारा सिरजनहार कैसा महसूस करता है, इस बारे में अय्यूब ने कहा: “तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती।” (अय्यूब 14:14, 15) जी हाँ, यहोवा बड़ी बेसब्री से उस वक्त का इंतज़ार कर रहा है जब विश्वासयोग्य जन पुनरुत्थान पाकर फिर से ज़िंदा होंगे। हमारी असिद्धता के बावजूद यहोवा हमें कैसा प्यार और कैसी अपार कृपा दिखाता है, इस पर मनन करने से हम उसके कितने करीब खिंचे चले आते हैं!—रोमियों 5:21; याकूब 4:8.
18, 19. (क) दानिय्येल को फिर से जी उठने की क्या आशा है? (ख) अगले लेख में हम किस बात की जाँच करेंगे?
18 भविष्यवक्ता दानिय्येल को परमेश्वर के दूत ने “अति प्रिय पुरुष” कहा और उसने भी सारी ज़िंदगी यहोवा की सेवा वफादारी से की। (दानिय्येल 10:11, 19) दानिय्येल को सा.यु.पू. 617 में बंधुआ बनाकर ले जाया गया और सा.यु.पू. 536 में फारस के राजा कुस्रू के तीसरे वर्ष में दर्शन दिए जाने के कुछ समय बाद उसकी मौत हो गयी। इस दौरान यहोवा की तरफ उसकी खराई नहीं टूटी। (दानिय्येल 1:1; 10:1) कुस्रू की हुकूमत के तीसरे साल के दौरान, दानिय्येल को एक-के-बाद-एक दुनिया पर हुकूमत करनेवाली विश्वशक्तियों का दर्शन दिखाया गया, जिनका अंत आनेवाले भारी क्लेश में होगा। (दानिय्येल 11:1–12:13) दानिय्येल उस दर्शन को पूरी तरह समझ नहीं पाया था, इसलिए उसने दर्शन का ब्यौरा देनेवाले परमेश्वर के दूत से पूछा: “हे मेरे प्रभु, इन बातों का अन्तफल क्या होगा?” जवाब में उस स्वर्गदूत ने “अन्तसमय” की ओर ध्यान दिलाया जिस दौरान “जो बुद्धिमान हैं वे ही समझेंगे।” और दानिय्येल का भविष्य कैसा था? उस स्वर्गदूत ने कहा: “तू विश्राम करता रहेगा; और उन दिनों के अन्त में तू अपने निज भाग पर खड़ा होगा।” (दानिय्येल 12:8-10, 13) दानिय्येल का पुनरुत्थान, मसीह के हज़ार साल की हुकूमत में “धर्मियों के जी उठने” के वक्त होगा।—लूका 14:14.
19 आज हम अन्त के समय के आखिरी हिस्से में जी रहे हैं। जब हम विश्वासी बने थे तब के मुकाबले आज हम मसीह के एक हज़ार साल की हुकूमत के काफी नज़दीक आ चुके हैं। इसलिए हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘नयी दुनिया में इब्राहीम, अय्यूब, दानिय्येल और दूसरे विश्वासी स्त्री-पुरुषों से मिलने के लिए क्या मैं वहाँ होऊँगा?’ अगर हम यहोवा के करीब रहें और उसकी आज्ञाएँ मानें, तो हम यकीन रख सकते हैं कि वहाँ हम ज़रूर होंगे। अगले लेख में हम यह जानने के लिए पुनरुत्थान की आशा की बारीकी से जाँच करेंगे कि किसका पुनरुत्थान किया जाएगा।
क्या आपको याद है?
• पौलुस ने जब पुनरुत्थान की अपनी आशा का ऐलान किया, तो लोगों से उसे क्या जवाब मिला?
• पुनरुत्थान की आशा क्यों सच्चे मसीहियों को झूठे मसीहियों से अलग करती है?
• हम कैसे जानते हैं कि इब्राहीम, अय्यूब और दानिय्येल को पुनरुत्थान पर विश्वास था?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 9 पर तसवीर]
पौलुस ने हाकिम फेलिक्स के सामने पेश किए जाने पर पूरे यकीन के साथ पुनरुत्थान की आशा का ऐलान किया
[पेज 10 पर तसवीर]
इब्राहीम को पुनरुत्थान पर विश्वास क्यों था?
[पेज 12 पर तसवीर]
अय्यूब को पुनरुत्थान की आशा से तसल्ली मिली
[पेज 12 पर तसवीर]
दानिय्येल का धर्मियों के जी उठने के वक्त पुनरुत्थान होगा