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‘बुराई का सामना करते वक्‍त खुद को काबू में रखिए’

‘बुराई का सामना करते वक्‍त खुद को काबू में रखिए’

‘बुराई का सामना करते वक्‍त खुद को काबू में रखिए’

“प्रभु के दास को झगड़ने की ज़रूरत नहीं है, मगर उसे सबके साथ कोमलता से पेश आना चाहिए, . . . बुराई का सामना करते वक्‍त खुद को काबू में रखना चाहिए।”2 तीमुथियुस 2:24, NW.

1. मसीही सेवा करते वक्‍त, कभी-कभी हमें ऐसे लोग क्यों मिलते हैं जो गुस्से से बात करते हैं?

 जब आपका सामना ऐसे लोगों से होता है जो आपको पसंद नहीं करते या आप जिसके नुमाइंदे हैं, उसे पसंद नहीं करते, तो आप क्या करते हैं? प्रेरित पौलुस ने अंतिम दिनों के बारे में यह भविष्यवाणी की थी कि लोग ‘निन्दक, दोष लगानेवाले, असंयमी और कठोर’ होंगे। (2 तीमुथियुस 3:1-5, 12) प्रचार में या फिर दूसरे कामों के सिलसिले में आपका सामना ऐसे लोगों से हो सकता है।

2. जो हमसे गुस्से से बात करते हैं, उनके साथ बुद्धिमानी से पेश आने में कौन-सी आयतें हमारी मदद कर सकती हैं?

2 तीखी बातें करनेवाले सभी भलाई के दुश्‍मन नहीं होते। हो सकता है वे बड़ी-बड़ी तकलीफें झेल रहे हों या ज़िंदगी से परेशान हों, इसलिए उन्हें जो भी मिलता है उस पर वे बरस पड़ते हैं। (सभोपदेशक 7:7) कई लोग ऐसा व्यवहार इसलिए करते हैं क्योंकि वे जिस माहौल में रहते और काम करते हैं वहाँ गाली-गलौज करना बिलकुल आम है। इन वजहों से ऐसी बातचीत हम मसीहियों को गवारा नहीं होती, मगर इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि लोग ऐसी भाषा क्यों बोलते हैं। जब कोई हमसे गुस्से में बात करता है तो हमें क्या करना चाहिए? नीतिवचन 19:11 कहता है: “जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है।” और रोमियों 12:17, 18 हमें यह सलाह देता है: “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; . . . जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।”

3. हम जो संदेश सुनाते हैं, उसका मेल-मिलाप के साथ कैसे नाता है?

3 अगर हम सचमुच मेल मिलाप रखनेवाले हैं, तो यह हमारे रवैए से साफ दिखायी देगा। हमारी बातों और हमारे कामों से, और शायद हमारे चेहरे के हाव-भाव और बोलने के लहज़े से भी पता चलेगा कि हम मेल मिलाप रखनेवाले हैं। (नीतिवचन 17:27) यीशु ने अपने प्रेरितों को प्रचार के लिए भेजते वक्‍त उन्हें यह सलाह दी: “घर में प्रवेश करते हुए उस को आशीष देना [“परिवार के लोगों का सत्कार करते हुए कहो, ‘तुम्हें शांति मिले,’ ” ईज़ी-टू-रीड वर्शन]। यदि उस घर के लोग योग्य होंगे तो तुम्हारा कल्याण उन पर पहुंचेगा परन्तु यदि वे योग्य न हों तो तुम्हारा कल्याण तुम्हारे पास लौट आएगा।” (मत्ती 10:12, 13) हम लोगों को जो संदेश सुनाते हैं, वह एक खुशखबरी है। बाइबल इसे ‘मेल का सुसमाचार,’ ‘परमेश्‍वर के अनुग्रह का सुसमाचार’ और “राज्य का यह सुसमाचार” कहती है। (इफिसियों 6:15; प्रेरितों 20:24; मत्ती 24:14) इसलिए प्रचार में हमारा मकसद, किसी व्यक्‍ति के विश्‍वासों को गलत बताना या उसके विचारों को लेकर बहस करना नहीं है, बल्कि उसे परमेश्‍वर के वचन से खुशखबरी सुनाना है।

4. ऐसे वक्‍त पर आप क्या कह सकते हैं जब घर-मालिक आपके बात शुरू करने से पहले ही कह देता है कि “मुझे ये सब नहीं सुनना”?

4 हो सकता है, एक घर-मालिक आपकी बात सुनने से पहले ही कह दे: “मुझे ये सब नहीं सुनना।” ऐसे में अगर मुमकिन हो तो आप कह सकते हैं: “मैं बस आपको बाइबल की यह छोटी-सी आयत पढ़कर सुनाना चाहता था।” घर-मालिक शायद इस पर एतराज़ न करे। दूसरे मामलों में शायद यह कहना सही हो: “मैं आपको यह बताना चाहता था कि एक ऐसा वक्‍त आनेवाला है जब दुनिया में कहीं भी नाइंसाफी नहीं होगी और सभी एक-दूसरे से प्यार करना सीखेंगे।” यह सुनने के बाद भी अगर घर-मालिक ज़्यादा जानने की दिलचस्पी नहीं दिखाता, तो आप कह सकते हैं: “शायद मैं गलत वक्‍त पर आया हूँ।” भले ही घर-मालिक हमारे साथ शांति से बात न करे, फिर भी क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि वह ‘योग्य नहीं’ है? वह हमारे साथ चाहे जैसे भी पेश आए, हमें बाइबल की यह सलाह याद रखनी है कि हमें “सबके साथ कोमलता से पेश आना चाहिए, . . . बुराई का सामना करते वक्‍त खुद को काबू में रखना चाहिए।”—2 तीमुथियुस 2:24, NW.

बेइज़्ज़ती करनेवाला मगर गुमराह

5, 6. शाऊल ने यीशु के चेलों के साथ कैसा सलूक किया, और इसकी वजह क्या थी?

5 पहली सदी में शाऊल नाम का एक आदमी, दूसरों की बेइज़्ज़ती करनेवाली बातें कहने और यहाँ तक कि मार-पीट करने के लिए जाना जाता था। बाइबल कहती है कि वह “प्रभु के चेलों को धमकाने और घात करने की धुन में था।” (प्रेरितों 9:1, 2) बाद में उसने खुद कबूल किया कि एक वक्‍त में वह दूसरों की “निन्दा करनेवाला, और सतानेवाला, और अन्धेर करनेवाला [“बेइज़्ज़त करनेवाला,” हिन्दुस्तानी बाइबल] था।” (1 तीमुथियुस 1:13) उसने बताया कि मसीह के चेलों की तरफ उसने कैसा रवैया दिखाया, इसके बावजूद कि शायद उसके कुछ रिश्‍तेदार मसीही बन चुके थे: “मैं . . . क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया, कि बाहर के नगरों में भी जाकर उन्हें सताता था।” (प्रेरितों 23:16; 26:11; रोमियों 16:7, 11) मगर फिर भी इस बात का कोई सबूत नहीं है कि शाऊल के ज़ुल्मों की वजह से चेलों ने सरेआम उसके साथ बहसबाज़ी की हो।

6 शाऊल ने ऐसा व्यवहार क्यों किया? कई साल बाद उसने लिखा: “मैं ने अविश्‍वास की दशा में बिन समझे बूझे, ये काम किए थे।” (1 तीमुथियुस 1:13) वह एक फरीसी था, और उसे “पूर्वजों की व्यवस्था के अनुसार कड़ाई से” सिखाया गया था। (प्रेरितों 22:3, NHT) ऐसा लगता है कि शाऊल का गुरू गमलीएल, खुले विचारोंवाला इंसान था और मसीहियों के बारे में एकतरफा राय नहीं रखता था। मगर महायाजक कैफा, जिसकी सोहबत में शाऊल था, वह मसीहियों का कट्टर दुश्‍मन साबित हुआ। यह वही कैफा था जिसने यीशु मसीह को मौत की सज़ा दिलवाने की साज़िश रची थी। (मत्ती 26:3, 4, 63-66; प्रेरितों 5:34-39) बाद में, कैफा ने यीशु के प्रेरितों को कोड़े लगवाए, और उन्हें कड़ा हुक्म दिया कि वे यीशु के नाम से प्रचार करना बंद कर दें। कैफा ही उस महासभा का अध्यक्ष था जिसमें सभी गुस्से से उबल पड़े और उस सभा के दौरान स्तिफनुस को पत्थरवाह करने के लिए ले जाया गया। (प्रेरितों 5:27, 28, 40; 7:1-60) उसका पत्थरवाह किया जाना शाऊल ने भी देखा था। और कैफा ने शाऊल को यह अधिकार दिया कि वह यीशु के चेलों का काम बंद करवाने के लिए दमिश्‍क जाकर उन्हें गिरफ्तार करे। (प्रेरितों 8:1; 9:1, 2) शाऊल ने सोचा कि जब उसे यीशु के चेलों को सताने का अधिकार कैफा से मिला है तो ऐसा करके वह परमेश्‍वर के लिए अपना जोश दिखा रहा होगा। मगर असल में उसके अंदर सच्चा विश्‍वास नहीं था। (प्रेरितों 22:3-5) यही वजह है कि शाऊल यह समझने से चूक गया कि यीशु ही सच्चा मसीहा था। मगर जब पुनरुत्थान पाए यीशु ने दमिश्‍क के रास्ते पर करिश्‍माई ढंग से शाऊल से बात की, तो उसे होश आया कि वह कैसा खतरा मोल ले रहा था।—प्रेरितों 9:3-6.

7. दमिश्‍क के रास्ते पर यीशु के साथ हुई बातचीत का शाऊल पर कैसा असर पड़ा?

7 इस घटना के कुछ ही समय बाद, हनन्याह नाम के चेले को शाऊल के पास भेजा गया ताकि वह उसे गवाही दे। अगर आप हनन्याह की जगह होते तो क्या आप खुशी-खुशी शाऊल से मिलने जाते? हनन्याह थोड़ा घबराया हुआ था, फिर भी उसने बड़े प्यार से शाऊल के साथ बात की। तब तक शाऊल का रवैया बदल गया था क्योंकि दमिश्‍क के रास्ते पर एक चमत्कार से यीशु के साथ उसकी बातचीत हुई थी। (प्रेरितों 9:10-22) आगे चलकर वह प्रेरित पौलुस कहलाया और मसीही सेवा करनेवाला एक जोशीला मिशनरी बना।

नम्र पर साथ ही दिलेर

8. जिन्होंने ज़िंदगी में बुरे काम किए थे, उनकी तरफ यीशु ने अपने पिता की तरह नज़रिया कैसे दिखाया?

8 यीशु राज्य का ऐसा जोशीला प्रचारक था जो लोगों के साथ नम्रता से पेश आया, पर साथ ही ज़रूरत पड़ने पर उसने निडरता से भी काम किया। (मत्ती 11:29) उसने अपने स्वर्गीय पिता जैसा नज़रिया दिखाया जो दुष्टों से गुज़ारिश करता है कि वे अपने गलत तौर-तरीकों से फिर जाएँ। (यशायाह 55:6, 7) जिन्होंने बुरे काम किए हैं, उनके साथ पेश आते वक्‍त अगर यीशु को लगता कि उनके बदलने की गुंजाइश है, तो वह उन्हें सही राह पर आने का बढ़ावा देता था। (लूका 7:37-50; 19:2-10) लोगों की शक्ल-सूरत देखकर उनके बारे में राय कायम करने के बजाय, यीशु अपने पिता की तरह उनके साथ प्यार और धीरज से पेश आता, और उनकी कमज़ोरियों को सह लेता था क्योंकि उसे उम्मीद थी कि एक-न-एक-दिन वे अपने बुरे तौर-तरीके छोड़ देंगे। (रोमियों 2:4) यहोवा की मरज़ी है कि हर तरह के लोग मन फिराएँ और उद्धार पाएँ।—1 तीमुथियुस 2:3, 4.

9. जिस तरह यशायाह 42:1-4 यीशु पर पूरा हुआ उससे हम क्या सीख सकते हैं?

9 सुसमाचार का लेखक मत्ती एक भविष्यवाणी का हवाला देकर बताता है कि यीशु मसीह के बारे में यहोवा का क्या नज़रिया था: “देखो, यह मेरा सेवक है, जिसे मैं ने चुना है; मेरा प्रिय, जिस से मेरा मन प्रसन्‍न है: मैं अपना आत्मा उस पर डालूंगा; और वह अन्यजातियों को न्याय का समाचार देगा। वह न झगड़ा करेगा, और न धूम मचाएगा; और न बाज़ारों में कोई उसका शब्द सुनेगा। वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा; और धूआं देती हुई बत्ती को न बुझाएगा, जब तक न्याय को प्रबल न कराए। और अन्यजातियां उसके नाम पर आशा रखेंगी।” (मत्ती 12:17-21; यशायाह 42:1-4) ठीक जैसे इस भविष्यवाणी में कहा गया था, यीशु ने लोगों के साथ झगड़े करके शोर-शराबा नहीं किया। यहाँ तक कि जब उस पर दबाव डाला गया, तब भी उसने इस तरीके से सच्चाई बतायी जो नेकदिल इंसानों को भा गया।—यूहन्‍ना 7:32, 40, 45, 46.

10, 11. (क) हालाँकि फरीसी, यीशु का खुल्लम-खुल्ला विरोध करते थे, फिर भी उसने कुछ फरीसियों को क्यों गवाही दी? (ख) यीशु ने कभी-कभी अपने दुश्‍मनों को किस तरह के जवाब दिए, मगर उसने क्या नहीं किया?

10 धरती पर अपनी सेवा के दौरान, यीशु ने कई फरीसियों को गवाही दी। हालाँकि कुछ फरीसी उसकी बातों में नुक्स निकालकर उसे फँसाना चाहते थे, मगर यीशु ने यह नहीं सोचा कि सभी फरीसियों के इरादे गलत हैं। शमौन नाम का फरीसी यीशु की थोड़ी-बहुत नुक्‍ताचीनी करनेवाला था। वह शायद यीशु को करीब से जाँचना चाहता था, इसलिए उसने उसे खाने पर बुलाया। यीशु ने उसका न्यौता कबूल किया और दावत में आए मेहमानों को गवाही दी। (लूका 7:36-50) एक और मौके पर, नीकुदेमुस नाम का एक जाना-माना फरीसी, यीशु से मिलने के लिए रात के वक्‍त चोरी-छिपे आया। यीशु ने ऐसा करने के लिए उसे बुरा-भला नहीं कहा। इसके बजाय, उसने नीकुदेमुस को समझाया कि परमेश्‍वर ने अपने बेटे को धरती पर भेजकर कैसे प्यार दिखाया है ताकि उस पर विश्‍वास दिखानेवाले उद्धार पा सकें। साथ ही, यीशु ने उसे प्यार से समझाया कि परमेश्‍वर के इंतज़ाम के मुताबिक काम करना कितना ज़रूरी है। (यूहन्‍ना 3:1-21) नतीजा यह हुआ कि बाद में जब यीशु के बारे में अच्छी खबर सुनकर दूसरे फरीसियों ने उसके बारे में बुरा-भला कहा, तो नीकुदेमुस ने यीशु के पक्ष में सफाई दी।—यूहन्‍ना 7:46-51.

11 यीशु उन लोगों का कपट साफ देख सकता था जो उसे फँसाने की ताक में रहते थे। दुश्‍मनों ने जब उसे बेकार की बहस में उलझाना चाहा, तो वह उनके झाँसे में नहीं आया। मगर जब उनके सवालों का जवाब देना सही होता, तो वह कोई उसूल या दृष्टांत बताकर, या फिर एक आयत का हवाला देकर ज़बरदस्त जवाब देता था। (मत्ती 12:38-42; 15:1-9; 16:1-4) मगर जब यीशु देखता कि फलाँ सवाल का जवाब देने से कोई फायदा नहीं होगा, तो वह जवाब नहीं देता था।—मरकुस 15:2-5; लूका 22:67-70.

12. हालाँकि लोग यीशु पर झल्लाए, फिर भी उसने कैसे उनकी मदद की?

12 कभी-कभी, अशुद्ध आत्माओं के कब्ज़े में रहनेवाले लोग यीशु पर झल्लाते थे। ऐसे में यीशु ने खुद को काबू में रखा और परमेश्‍वर से मिली शक्‍ति से उन्हें दुष्टात्माओं के चंगुल से छुड़ाया भी। (मरकुस 1:23-28; 5:2-8, 15) अगर प्रचार में कुछ लोग हम पर आग-बबूला हो जाते हैं और चिल्लाते हैं, तो हमें भी यीशु की तरह खुद को काबू में रखना चाहिए। और ऐसे हालात में प्यार और व्यवहार-कुशलता से पेश आने की कोशिश करनी चाहिए।—कुलुस्सियों 4:6.

परिवार में

13. जब एक व्यक्‍ति यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करने लगता है, तो कभी-कभी परिवार के दूसरे सदस्य क्यों उसका विरोध करते हैं?

13 यीशु के नक्शेकदम पर चलनेवालों के लिए कभी-कभी यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि वे परिवार के सदस्यों के साथ पेश आते वक्‍त खुद को काबू में रखें। जिस इंसान के दिल में बाइबल की सच्चाई गहराई से बैठ जाती है, उसकी यही तमन्‍ना रहती है कि उसका पूरा परिवार सच्चाई को अपना ले। मगर जैसे यीशु ने कहा था, परिवार के सदस्य शायद विरोध कर सकते हैं। (मत्ती 10:32-37; यूहन्‍ना 15:20, 21) इसके कई कारण हैं। मिसाल के लिए, बाइबल की सच्चाई हमें ईमानदार होने, अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाने और दूसरों के साथ इज़्ज़त से पेश आने में मदद दे सकती है। मगर बाइबल हमें यह भी सिखाती है कि हर हाल में सिरजनहार के नियमों को मानना हमारा पहला फर्ज़ है। (सभोपदेशक 12:1, 13; प्रेरितों 5:29) जब परिवार के किसी सदस्य को ऐसा महसूस होने लगता है कि अब हम उसकी बात मानने से ज़्यादा यहोवा को वफादारी दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, तो वह बुरा मान सकता है। परिवार में ऐसे हालात का सामना करते वक्‍त यह कितना ज़रूरी है कि हम यीशु की मिसाल पर चलते हुए खुद को काबू में रखें!—1 पतरस 2:21-23; 3:1, 2.

14-16. अपने परिवार के सदस्यों का विरोध करनेवाले कुछ लोग बाद में किस वजह से बदल गए?

14 आज यहोवा के सेवकों में से कई ऐसे हैं जिनके जीवन-साथी या परिवार के किसी और सदस्य ने उस वक्‍त उनका विरोध किया था जब उन्होंने बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया और अपने अंदर बदलाव करने लगे। हो सकता है, उन सदस्यों ने यहोवा के साक्षियों के बारे में कुछ गलत बातें सुनी हों और इसलिए उन्हें शायद डर हो कि बाइबल के अध्ययन से उनके परिवार पर बुरा असर पड़ सकता है। मगर ऐसे अविश्‍वासी सदस्य भी बाद में बदल गए। कैसे? कई मामलों में विश्‍वासी सदस्य की अच्छी मिसाल ने उन पर गहरा असर किया। विश्‍वासी सदस्य बाइबल की सलाह पर चलने में पीछे नहीं हटा, यानी वह बिना नागा मसीही सभाओं और प्रचार में जाता रहा, साथ ही परिवार की ज़िम्मेदारियाँ भी निभाता रहा और उसने ऐसे वक्‍त पर खुद को काबू में रखा जब उसके साथ गाली-गलौज किया गया। यह देखकर अविश्‍वासी सदस्यों का मन पिघल गया।—1 पतरस 2:12.

15 हो सकता है, विरोध करनेवाले सदस्य को जब बाइबल से समझाने की कोशिश की गयी, तो उसने सुनने से इनकार कर दिया क्योंकि वह साक्षियों के बारे में गलत राय रखता था या उसमें घमंड था। अमरीका के एक आदमी के बारे में यह बात सच थी जो देश-भक्‍त होने का दम भरता था। एक बार, जब उसकी पत्नी एक अधिवेशन में गयी, तो वह अपने सारे कपड़े लेकर घर से चला गया। एक और बार, वह पिस्तौल हाथ में लिए घर से निकला और उसने खुद को मार डालने की धमकी दी। अपने इस पागलपन के लिए उसने अपनी पत्नी के धर्म को कसूरवार ठहराया। मगर फिर भी पत्नी ने बाइबल की सलाह पर चलते रहने की कोशिश की। पत्नी के साक्षी बनने के बीस साल बाद वह भी एक साक्षी बन गया। अल्बेनिया में एक स्त्री यह देखकर गुस्सा हो गयी कि उसकी बेटी ने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करके बपतिस्मा ले लिया। उस स्त्री ने 12 बार बेटी की बाइबल जला दी। फिर एक दिन उसने अपनी बेटी की नयी बाइबल खोलकर देखी जो उसकी बेटी मेज़ पर छोड़ गयी थी। इत्तफाक से उसने मत्ती 10:36 खोला और उसे पढ़कर वह समझ गयी कि वहाँ लिखी बात उसी पर लागू होती है। फिर भी उसे अपनी बेटी की खैरियत की परवाह थी, इसलिए जब उसकी बेटी दूसरे साक्षियों के साथ अधिवेशन के लिए इटली जा रही थी, तो उसे छोड़ने के लिए वह बोट तक गयी। जब माँ ने साक्षियों के मुस्कराते चेहरे और उन्हें एक-दूसरे को प्यार से गले लगाते देखा, तो उसका मन बदलने लगा। इसके कुछ ही समय बाद, वह बाइबल अध्ययन करने को राज़ी हो गयी। आज वह खुद ऐसे लोगों को सच्चाई सीखने में मदद दे रही है जो शुरू-शुरू में विरोध करते हैं।

16 एक बार जब एक स्त्री राज्य घर जा रही थी तो उसका पति हाथ में चाकू लिए हुए गुस्से से उसके पास आया और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर उस पर झूठे इलज़ाम लगाने लगा। तब उस स्त्री ने शांति से कहा: “आप राज्य घर में आइए, और खुद देख लीजिए कि यहाँ क्या होता है।” वह हॉल के अंदर गया और बाद में उसने अपने अंदर बदलाव किए और वह एक मसीही प्राचीन बना।

17. मसीही परिवार में अगर कभी तनाव पैदा हो, तो बाइबल की कौन-सी सलाहें हमारी मदद कर सकती हैं?

17 चाहे आपके सभी घरवाले मसीही हों, फिर भी कभी-कभी परिवार में तनाव पैदा हो सकता है और असिद्ध होने की वजह से हमारे मुँह से कुछ कड़वे लफ्ज़ भी निकल सकते हैं। यह गौरतलब है कि प्राचीन इफिसुस के मसीहियों को यह सलाह दी गयी थी: “सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।” (इफिसियों 4:31) ऐसा लगता है कि उन मसीहियों पर इफिसुस के माहौल का, उनकी अपनी असिद्धता का और कुछ लोगों के मामले में उनके पुराने तौर-तरीकों का असर हो रहा था। इन मसीहियों को बदलने में किस बात ने मदद दी? उन्हें “अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते” जाने की ज़रूरत पड़ी। (इफिसियों 4:23) जब उन्होंने परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन किया, मनन किया कि उस वचन का उनकी ज़िंदगी पर कैसा असर पड़ना चाहिए, मसीही भाई-बहनों के साथ संगति की, और मन लगाकर प्रार्थना की, तो वे आत्मा के फल और अच्छी तरह दिखाने लगे। उन्होंने सीखा कि उन्हें कैसे ‘एक दूसरे पर कृपाल, और करुणामय होना है, और जैसे परमेश्‍वर ने मसीह में उनके अपराध क्षमा किए, वैसे ही उन्हें भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करने हैं।’ (इफिसियों 4:32) चाहे दूसरे जो भी करें, मगर हमें अपने गुस्से को काबू में रखना, एक-दूसरे पर दया करना, करुणा दिखाना और एक-दूसरे को माफ करना चाहिए। हमें ‘बुराई के बदले किसी से बुराई नहीं करनी चाहिए।’ (रोमियों 12:17, 18) परमेश्‍वर की मिसाल पर चलकर सच्चा प्यार दिखाना हमेशा सही होता है।—1 यूहन्‍ना 4:8.

सभी मसीहियों के लिए सलाह

18. दूसरा तीमुथियुस 2:24 की सलाह इफिसुस के एक प्राचीन के लिए क्यों सही थी, और इस सलाह से सभी मसीही कैसे फायदा पा सकते हैं?

18 ‘खुद को काबू में रखने’ की सलाह सभी मसीहियों पर लागू होती है। (2 तीमुथियुस 2:24, NW) मगर शुरू में यह सलाह तीमुथियुस को दी गयी थी क्योंकि उसे इफिसुस में प्राचीन के नाते सेवा करते वक्‍त इस सलाह पर चलने की ज़रूरत थी। उस कलीसिया के कुछ लोग अपने खयालात दूसरों पर थोपने और गलत शिक्षाएँ फैलाने की जुर्रत कर रहे थे। उन्होंने मूसा की व्यवस्था का मकसद ठीक-ठीक नहीं समझा था, इसलिए वे विश्‍वास, प्रेम और अच्छे विवेक की अहमियत नहीं जान पाए। घमंड की वजह से वे शब्दों को लेकर आपस में बहस करते थे जिससे उनमें फूट पड़ गयी थी, जबकि वे यह समझने से चूक गए कि मसीह की शिक्षाओं का असल मतलब क्या है और ईश्‍वरीय भक्‍ति होना कितना ज़रूरी है। कलीसिया के इन हालात से निपटने के लिए तीमुथियुस को बाइबल की सच्चाई की हिमायत करने में दृढ़ रहना था, साथ ही अपने भाइयों के साथ कोमलता से पेश आना था। आज के प्राचीनों की तरह, तीमुथियुस जानता था कि झुंड उसकी अपनी संपत्ति नहीं है, और उसे भाइयों के साथ ऐसे पेश आना था जिससे उनके बीच मसीही प्यार और एकता का बंधन मज़बूत हो।—इफिसियों 4:1-3; 1 तीमुथियुस 1:3-11; 5:1, 2; 6:3-5.

19. ‘नम्रता को ढूँढ़ना’ हम सबके लिए क्यों ज़रूरी है?

19 परमेश्‍वर अपने लोगों से गुज़ारिश करता है कि वे ‘नम्रता को ढूंढें।’ (सपन्याह 2:3) “नम्रता” के लिए इब्रानी शब्द का मतलब है, ऐसा स्वभाव जिस वजह से एक इंसान धीरज धरते हुए अपना नुकसान सह लेता है, वह चिढ़ता नहीं और बदला नहीं लेता। आइए हम सच्चे दिल से यहोवा से बिनती करें ताकि वह हमें खुद को काबू में रखने और मुश्‍किल हालात में भी सही तरह से उसकी नुमाइंदगी करने में मदद दे।

आपने क्या सीखा?

• जब कोई आपको गालियाँ देकर आपकी बेइज़्ज़ती करता है, तो खुद को काबू में रखने में कौन-सी आयतें आपकी मदद कर सकती हैं?

• शाऊल मसीहियों की बेइज़्ज़ती क्यों करता था?

• यीशु की मिसाल हमें हर तरह के लोगों के साथ ठीक तरह से पेश आने में कैसे मदद देती है?

• घरवालों के साथ पेश आते वक्‍त अपनी ज़बान पर लगाम लगाने से क्या फायदे हो सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 26 पर तसवीर]

हालाँकि शाऊल दूसरों पर ज़ुल्म ढाने के लिए बदनाम था, फिर भी हनन्याह उसके साथ प्यार से पेश आया

[पेज 29 पर तसवीर]

अगर एक मसीही, वफादारी से अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाता रहे तो विरोध करनेवाले परिवार के सदस्यों का मन बदल सकता है

[पेज 30 पर तसवीर]

मसीही आपस में प्यार और एकता को बढ़ावा देते हैं