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काम—मुसीबत या नियामत?

काम—मुसीबत या नियामत?

काम—मुसीबत या नियामत?

“किसी मनुष्य के लिए इस से भली और कोई बात नहीं कि वह . . . अपने परिश्रम को देखकर सन्तुष्ट रहे।”—सभोपदेशक 2:24, NHT.

“शाम होते ही मैं इतना थक जाता हूँ कि पूछो मत!” हाल में जब नौकरी करनेवालों का सर्वे लिया गया और उनसे पूछा गया कि दिन खत्म होने पर वे अकसर कैसा महसूस करते हैं, तो हर तीसरे आदमी का यही जवाब था। यह कोई ताज्जुब की बात नहीं, क्योंकि आजकल काम का माहौल ऐसा बन गया है कि लोगों को राहत कम तनाव ज़्यादा होता है। वे न सिर्फ देर-देर तक काम करते हैं, बल्कि अपना काम घर भी ले आते हैं। लेकिन इतनी मेहनत करने के बाद भी उन्हें अपने मालिक से तारीफ के दो लफ्ज़ तक सुनने को नहीं मिलते।

जब से मशीनों के ज़रिए बेहिसाब उत्पादन का ज़माना चला है, तब से कई मज़दूरों को लगने लगा है कि उनका काम कोई अहमियत नहीं रखता। उनमें कुछ नया कर दिखाने का जोश और काबिलीयत तो है, मगर अकसर उन्हें बढ़ावा नहीं दिया जाता। ज़ाहिर है कि इससे काम की तरफ उनके नज़रिए पर असर पड़ता है। वे बड़ी आसानी से अपने काम में दिलचस्पी खो बैठते हैं। किसी काम में माहिर होने की उनकी इच्छा मर जाती है। नतीजा? वे अपने काम को नापसंद करने लगते हैं, यहाँ तक कि उन्हें उससे नफरत होने लगती है।

अपना रवैया जाँचना

माना कि हम हमेशा अपने हालात बदल नहीं सकते। मगर हम कम-से-कम अपना रवैया तो बदल सकते हैं, है ना? अगर आपको लगता है कि कुछ हद तक आपके अंदर काम को लेकर गलत रवैया पैदा हुआ है, तो अच्छा होगा अगर आप इस विषय पर परमेश्‍वर का नज़रिया और उसके उसूलों को जानने की कोशिश करें। (सभोपदेशक 5:18) ऐसा करने पर कइयों ने पाया है कि उन्हें कुछ हद तक अपने काम से खुशी और संतोष मिला है।

परमेश्‍वर काम करने में सबसे महान मिसाल है। यहोवा काम करनेवाला परमेश्‍वर है। शायद हमने उसके बारे में ऐसा कभी न सोचा हो, मगर बाइबल में जहाँ उसका पहला ज़िक्र आता है, वहाँ उसे काम करता हुआ बताया गया है। उत्पत्ति किताब का वृत्तांत शुरू में कहता है कि यहोवा ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। (उत्पत्ति 1:1) जब परमेश्‍वर ने सृष्टि करना शुरू किया तो सोचिए उसने क्या-क्या भूमिका अदा की—डिज़ाइनर, संगठित करनेवाला, इंजीनियर, कलाकार, सामान जुगाड़ करनेवाला विशेषज्ञ, योजना बनानेवाला, रसायन-विज्ञानी, जीव-विज्ञानी, पशु-विज्ञानी, प्रोग्रामर, अलग-अलग भाषाएँ जाननेवाला। ये तो बस कुछ ही मिसालें हैं। इनके अलावा, उसने और भी कई भूमिकाएँ अदा की हैं।—नीतिवचन 8:12, 22-31.

परमेश्‍वर के काम कैसे थे? बाइबल बताती है कि वे ‘अच्छे,’ ‘बहुत ही अच्छे’ थे। (उत्पत्ति 1:4, 31) इसलिए, सारी सृष्टि “परमेश्‍वर की महिमा का वर्णन” कर रही है और हमें भी यहोवा की स्तुति करनी चाहिए!—भजन 19:1; 148:1.

मगर ज़मीन-आसमान और इंसान के पहले जोड़े को बनाने के बाद परमेश्‍वर ने काम करना बंद नहीं किया। उसके बेटे यीशु मसीह ने कहा: “मेरा पिता अब तक काम करता है।” (यूहन्‍ना 5:17) जी हाँ, यहोवा आज तक काम कर रहा है। वह जीवित प्राणियों के लिए ज़रूरी चीज़ें मुहैया कराता है, धरती पर जीवन को कायम रखता है, और अपने वफादार सेवकों की हिफाज़त करता है। (नहेमायाह 9:6; भजन 36:6; 145:15, 16) वह कभी-कभी अपना काम पूरा करने के लिए अपने “सहकर्मी” यानी इंसानों को भी इस्तेमाल करता है।—1 कुरिन्थियों 3:9.

काम नियामत हो सकता है। कुछ लोग शायद पूछें, क्या बाइबल काम को एक मुसीबत, एक शाप नहीं कहती? उत्पत्ति 3:17-19 को पढ़ने पर ऐसा लग सकता है कि जब आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की, तो परमेश्‍वर ने सज़ा के तौर पर उन पर काम का बोझ डाला। उन आयतों में जब परमेश्‍वर ने पहले जोड़े को सज़ा सुनायी, तो उसने आदम से कहा: “[तू] अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा।” तो क्या इसका यह मतलब है कि परमेश्‍वर ने काम को शापित ठहराया था?

नहीं। जब आदम और हव्वा ने पाप किया तो परमेश्‍वर ने उन पर काम का बोझ नहीं डाला बल्कि धरती को फिरदौस बनाने का जो बढ़िया काम उन्हें दिया था, वह काम उनसे छीन लिया। यह दिखाता है कि परमेश्‍वर ने काम को नहीं बल्कि भूमि को शापित ठहराया था। यही वजह है कि इंसान को भूमि में से उपज पाने और अपना पेट भरने के लिए खून-पसीना एक करना पड़ता है।—रोमियों 8:20, 21.

बाइबल काम को मुसीबत नहीं बल्कि नियामत या आशीष मानती है। जैसे हमने देखा, खुद परमेश्‍वर बहुत मेहनती है। और क्योंकि इंसान उसके स्वरूप में बनाए गए हैं, तो उसने उन्हें यह काबिलीयत और अधिकार दिया है जिससे वे धरती पर उसकी सृष्टि की देखभाल कर सकें। (उत्पत्ति 1:26, 28; 2:15) गौर कीजिए कि परमेश्‍वर ने यह काम, उत्पत्ति 3:19 में किए गए ऐलान से पहले दिया था। इसलिए अगर काम सचमुच एक मुसीबत होता या उसे करना गलत होता, तो यहोवा कभी-भी अपने लोगों को काम करने का बढ़ावा नहीं देता। नूह और उसके परिवार की मिसाल लीजिए। उन्हें जलप्रलय से पहले और बाद में भी बहुत काम करना था। पहली सदी में, यीशु के मसीही चेलों को भी काम करने का बढ़ावा दिया गया था।—1 थिस्सलुनीकियों 4:11.

फिर भी हम जानते हैं कि आज के ज़माने में काम एक भारी बोझ बन सकता है। काम की जगह पर जो तनाव, खतरे, बोरियत, निराशा, होड़, धोखा और नाइंसाफी होती है, वे ऐसे “कांटे और ऊंटकटारे” हैं जिनका सामना हमें करना ही पड़ता है। मगर काम अपने आप में एक शाप या मुसीबत बिलकुल नहीं है। बाइबल के सभोपदेशक 3:13 में काम और उससे मिलनेवाले फल को परमेश्‍वर का वरदान कहा गया है।—बक्स, “काम की वजह से होनेवाले तनाव से जूझना” देखिए।

आप अपने काम से परमेश्‍वर की महिमा कर सकते हैं। नौकरी की जगह पर अच्छे काम की हमेशा तारीफ की जाती है। बाइबल के मुताबिक काम के बारे में परमेश्‍वर का यही नज़रिया है कि हम हमेशा बढ़िया काम करें। खुद परमेश्‍वर अपना काम बेहतरीन ढंग से करता है। उसने हमें हुनर और काबिलीयतें दी हैं और वह चाहता है कि हम इनका इस्तेमाल बढ़िया काम करने के लिए करें। मिसाल के लिए, प्राचीन इस्राएल में निवासस्थान को बनाते वक्‍त, यहोवा ने बसलेल और ओहोलीआब जैसे लोगों को बुद्धि, समझ और ज्ञान से भर दिया ताकि वे निवासस्थान की कारीगरी और उससे जुड़े दूसरे काम अच्छी तरह कर सकें। (निर्गमन 31:1-11) यह दिखाता है कि परमेश्‍वर ने उनके काम में खास दिलचस्पी ली। जैसे, वे निवासस्थान को बनाने का काम कैसे पूरा करते, अपने हुनर का किस तरह इस्तेमाल करते, कैसी योजना बनाते वगैरह-वगैरह।

यह जानकारी हमें अपनी काबिलीयतों और काम करने की आदतों को परमेश्‍वर का दिया वरदान समझने में मदद करती है और यह भी कि हमें कभी-भी इन्हें कम नहीं आँकना चाहिए। इसलिए मसीहियों को सलाह दी जाती है कि वे इस तरह काम करें मानो खुद परमेश्‍वर उनके कामों का जायज़ा ले रहा हो: “जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो।” (कुलुस्सियों 3:23) परमेश्‍वर के सेवकों को आज्ञा दी गयी है कि वे ईमानदार और मेहनती हों। उनके ये गुण देखकर साथ काम करनेवाले और दूसरे लोग बाइबल की सच्चाई में दिलचस्पी लेने लगेंगे।—बक्स, “नौकरी की जगह पर बाइबल के उसूलों के मुताबिक चलना” देखिए।

हमारे कामों से परमेश्‍वर की महिमा होती है, इस बात को मद्देनज़र रखते हुए हमें खुद से पूछना चाहिए: हम अच्छा काम करने के लिए कितनी मेहनत करते हैं? क्या परमेश्‍वर हमारे काम से खुश होगा? दिए गए कामों को हम जिस तरीके से करते हैं, क्या हम उससे पूरी तरह खुश हैं? अगर नहीं, तो हमें इसमें सुधार करने की ज़रूरत है।—नीतिवचन 10:4; 22:29.

काम के साथ-साथ अपनी आध्यात्मिकता पर भी ध्यान दीजिए। मेहनत करना वाकई काबिले-तारीफ है, मगर ज़िंदगी से और अपने काम से खुशी पाने में एक और बात पर ध्यान देना ज़रूरी है। वह है, हमारी आध्यात्मिकता यानी परमेश्‍वर के साथ हमारा रिश्‍ता। राजा सुलैमान की मिसाल लीजिए। उसने बहुत मेहनत की थी, उसके पास दौलत और ऐशो-आराम सबकुछ था। फिर भी, उसने कहा: “परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।”—सभोपदेशक 12:13.

इससे साफ पता चलता है कि कोई भी काम हाथ में लेने से पहले हमें परमेश्‍वर की मरज़ी जानने की कोशिश करनी चाहिए। क्या वह काम करने से हम परमेश्‍वर की मरज़ी पर चल रहे होंगे या उसके खिलाफ जा रहे होंगे? क्या हम परमेश्‍वर को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं या सिर्फ अपने आपको? अगर हम परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक काम नहीं करेंगे, तो आगे चलकर हमें निराशा हाथ लगेगी, हम खुद को अकेला पाएँगे और अपने अंदर एक खालीपन महसूस करेंगे।

ऊँचे ओहदे पर काम करनेवाले जो लोग काम से बिलकुल पस्त हो जाते हैं, उन्हें स्टीवन बर्गलस सुझाव देता है कि ‘वे कोई ऐसा काम हाथ में लें जिसमें उन्हें गहरी दिलचस्पी हो और उसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लें।’ इससे बेहतर काम और क्या हो सकता है कि हम परमेश्‍वर की सेवा करें, जिसने हमें अच्छे काम करने का हुनर और काबिलीयतें दी है! जो काम हमारे सिरजनहार को भाता है, उसे करने से हम कभी दुःखी नहीं होंगे। यहोवा ने यीशु को जो काम दिया था, वह उसके लिए भोजन जैसा था। उस काम से यीशु को ताकत, खुशी और ताज़गी मिली। (यूहन्‍ना 4:34; 5:36) इसके अलावा, याद कीजिए कि यहोवा, जो काम करने में सबसे महान मिसाल है, हमें उसका “सहकर्मी” बनने के लिए बुलाता है।—1 कुरिन्थियों 3:9.

परमेश्‍वर की उपासना करने और आध्यात्मिक तरक्की करने से हम ज़्यादा काम और ज़िम्मेदारी लेने को तैयार होंगे। यह क्यों कहा जा सकता है? अकसर नौकरी की जगह पर हमें दबावों और रगड़े-झगड़ों का सामना करना पड़ता है, या हमसे फौरन कोई ज़रूरी काम पूरा करने की माँग की जाती है। इन हालात का सामना करने के लिए हमें ताकत की ज़रूरत होती है और यह ताकत हमें अपने मज़बूत विश्‍वास और आध्यात्मिकता से मिलती है, जिससे हम अच्छे मालिक या कर्मचारी बनते हैं। दूसरी तरफ, ये हालात हमें खबरदार कर सकते हैं कि हमें किन क्षेत्रों में अपने विश्‍वास को बढ़ाने की ज़रूरत है।—1 कुरिन्थियों 16:13, 14.

वह समय जब काम नियामत होगा

आज जो परमेश्‍वर की सेवा में मेहनत कर रहे हैं, वे उस दिन की आस लगा सकते हैं जब परमेश्‍वर इस धरती को बहाल करके एक फिरदौस बनाएगा और सबके लिए ऐसे काम होंगे जिनसे उन्हें सच्चा सुख मिलेगा। तब, ज़िंदगी कैसी होगी, इस बारे में यहोवा के एक नबी, यशायाह ने भविष्यवाणी की थी: “वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियां लगाकर उनका फल खाएंगे। ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएं और दूसरा बसे; वा वे लगाएं, और दूसरा खाए; . . . मेरे चुने हुए अपने कामों का पूरा लाभ उठाएंगे।”—यशायाह 65:21-23.

उस वक्‍त काम क्या ही नियामत होगा! आपके लिए परमेश्‍वर की मरज़ी क्या है, इस बारे में सीखने और उस पर चलने से शायद आप उन लोगों में से एक हो सकेंगे जो यहोवा से आशीषें पाएँगे और ‘अपने परिश्रम को देखकर सन्तुष्ट रहेंगे।’—सभोपदेशक 3:13, NHT.

[पेज 8 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बातें]

परमेश्‍वर काम करने में सबसे महान मिसाल है: उत्पत्ति 1:1, 4, 31; यूहन्‍ना 5:17

काम नियामत हो सकता है: उत्पत्ति 1:28; 2:15; 1 थिस्सलुनीकियों 4:11

आप अपने काम से परमेश्‍वर की महिमा कर सकते हैं: निर्गमन 31:1-11; कुलुस्सियों 3:23

काम के साथ-साथ अपनी आध्यात्मिकता पर भी ध्यान दीजिए: सभोपदेशक 12:13; 1 कुरिन्थियों 3:9

[पेज 6 पर बक्स/तसवीर]

काम की वजह से होनेवाले तनाव से जूझना

डॉक्टरों का यह कहना है कि एक इंसान को काम की वजह से होनेवाले तनाव से कई खतरे हो सकते हैं। कैसे खतरे? वह अल्सर और हताशा (डिप्रेशन) जैसी बीमारियों का शिकार हो सकता है। या फिर वह खुदकुशी कर सकता है। जापानी लोगों ने इस तनाव को एक नाम दिया है—कारोशी, यानी “बहुत ज़्यादा काम करके अपने आपको मार लेना।”

आखिर, यह तनाव पैदा कैसे होता है? इसकी कई वजह हो सकती हैं। जैसे, काम करने के घंटों या माहौल में बदलाव होना, एक इंसान की अपने सुपरवाइज़र के साथ शायद न बनती हो, कोई नयी ज़िम्मेदारी या काम मिलना, रिटायर होना, या फिर काम से बरखास्त किया जाना। इन तनावों को दूर करने के लिए कुछ लोग या तो अपनी नौकरी या फिर अपने काम का माहौल बदल लेते हैं। दूसरे लोग तनाव को अपने दिल में दबाए रखने की कोशिश करते हैं, मगर इससे उनकी ज़ाती ज़िंदगी पर, खासकर उनके परिवार पर बुरा असर पड़ता है। कुछ लोगों पर तनाव का इतना ज़बरदस्त असर होता है कि वे अपनी ज़िंदगी से पूरी तरह मायूस हो जाते हैं।

काम की वजह से होनेवाले तनावों से जूझने के लिए मसीहियों के पास मदद हाज़िर है। बाइबल में ढेर सारे बुनियादी उसूल दिए गए हैं, जो हमें मुश्‍किलों के तूफान से बचा सकते हैं। जब हम इन उसूलों पर चलते हैं, तो इसका हमारी आध्यात्मिकता और भावनाओं पर अच्छा असर होता है। मिसाल के लिए, यीशु ने कहा: “कल के लिये चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुख बहुत है।” इस आयत में हमें यह बढ़ावा दिया गया है कि हम सिर्फ आज की चिंता करें, न कि कल की। इस तरह हम एक-साथ बहुत सारी चीज़ों के बारे में बेवजह चिंता नहीं करेंगे, जिससे हमारा तनाव बढ़ सकता है।—मत्ती 6:25-34.

मसीहियों के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि वे अपनी ताकत पर नहीं बल्कि परमेश्‍वर की ताकत पर भरोसा रखें। जब हमें लगता है कि किसी तनाव से जूझने के लिए हमारे तन-मन में कोई ताकत नहीं रह गयी है, तब ऐसे में परमेश्‍वर हमारी मदद कर सकता है। वह हमें मन की शांति, खुशी और बुद्धि दे सकता है जिससे हम हर मुसीबत का सामना कर सकते हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “प्रभु में और उस की शक्‍ति के प्रभाव में बलवन्त बनो।”—इफिसियों 6:10; फिलिप्पियों 4:7.

एक और बात जो गौर करने लायक है, वह यह है कि तनाव से भी अच्छे नतीजे निकलते हैं। कैसे? आज़माइश आने पर हम मदद के लिए यहोवा के पास जाएँगे, उसे ढूँढ़ेंगे और उस पर भरोसा दिखाएँगे। आज़माइशें हमें उकसाएँगी कि हम अपने मसीही व्यक्‍तित्व को निखारते रहें और दबावों के बावजूद धीरज धरना सीखें। पौलुस ने हमें सलाह दी: “हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्‍न होती है।”—रोमियों 5:3, 4.

इस तरह तनाव की वजह से हिम्मत हारने या दुःखी होने के बजाय, हम आध्यात्मिक रूप से मज़बूत बनने के लिए उभारे जा सकते हैं।

[पेज 7 पर बक्स/तसवीर]

नौकरी की जगह पर बाइबल के उसूलों के मुताबिक चलना

नौकरी की जगह पर एक मसीही का जो रवैया और बर्ताव होता है, उसे देखकर शायद उसके साथ काम करनेवाले या दूसरे लोग बाइबल के संदेश में दिलचस्पी लेने लगें। गौर कीजिए कि तीतुस को लिखी अपनी पत्री में प्रेरित पौलुस ने ऐसे मसीहियों को क्या सलाह दी। उसने कहा कि वे “अपने अपने [सुपरवाइज़र] के आधीन रहें, और सब बातों में उन्हें प्रसन्‍न रखें, और उलटकर जवाब न दें। चोरी चालाकी न करें; पर सब प्रकार से पूरे विश्‍वासी निकलें, कि वे सब बातों में हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर के उपदेश को शोभा दें।”—तीतुस 2:9, 10.

मिसाल के लिए, इस खत पर ध्यान दीजिए जो एक बिज़नेसमैन ने यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय को लिखा। उसने कहा: “मैं यहोवा के साक्षियों को काम पर रखने की आपसे इजाज़त चाहता हूँ। क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि वे ईमानदार, मेहनती और भरोसेमंद हैं। मैं जानता हूँ कि वे मुझे कभी धोखा नहीं देंगे। दरअसल यहोवा के साक्षियों के सिवा मुझे किसी और पर भरोसा नहीं है। क्या आपके यहाँ कोई साक्षी हैं जिन्हें मैं नौकरी पर रख सकता हूँ? मेहरबानी करके मेरी मदद कीजिए।”

एक और मिसाल पर गौर कीजिए। काइल एक मसीही है, जो एक प्राइवेट स्कूल के रिसेप्शन पर काम करती है। एक बार, उसके और उसके साथ काम करनेवाली एक लड़की के बीच कुछ गलतफहमी पैदा हो गयी। इस पर वह लड़की इतना गुस्सा हुई कि उसने कुछ विद्यार्थियों के सामने काइल को बहुत बुरा-भला कहा। ऐसे में काइल ने क्या किया? वह बताती है: “मैं चुप रही, क्योंकि मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहना या करना चाहती थी जिससे यहोवा के नाम पर आँच आए।” फिर, पाँच दिनों तक काइल सोचती रही कि इस मामले में वह बाइबल के किन उसूलों को अमल में ला सकती है। एक उसूल रोमियों 12:18 में दिया गया है: “जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।” उसने अपनी साथी को ई-मेल भेजा और उनके बीच जो तनाव पैदा हुआ था, उसके लिए माफी माँगी। काइल ने यह भी सुझाया कि वे काम के बाद बैठकर बात करें ताकि समस्या को निपटाया जा सके। जब उनके बीच गलतफहमी दूर हुई, तो काइल की साथी का गुस्सा ठंडा हुआ। उसने काइल की तारीफ की और कबूल किया कि इस तरह सुलह करने में ही समझदारी है। उसने काइल से कहा: “ज़रूर तुमने यह अपने धर्म से सीखा होगा।” घर जाने से पहले वे दोनों एक-दूसरे से गले मिले। इस वाकये के बारे में काइल का क्या कहना है? “अगर हम बाइबल में दिए उसूलों पर चलें, तो नतीजा हमेशा अच्छा ही होता है।”

[पेज 4, 5 पर तसवीर]

कई मज़दूरों को लगता है कि उनका काम कोई अहमियत नहीं रखता

[चित्र का श्रेय]

Japan Information Center, Consulate General of Japan in NY

[पेज 8 पर चित्र का श्रेय]

पृथ्वी: NASA photo