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वहाँ सुसमाचार फैलाना जहाँ कभी शुरूआती मसीहियत ज़ोरों पर थी

वहाँ सुसमाचार फैलाना जहाँ कभी शुरूआती मसीहियत ज़ोरों पर थी

वहाँ सुसमाचार फैलाना जहाँ कभी शुरूआती मसीहियत ज़ोरों पर थी

इटली, भूमध्य सागर पर बसा एक ऐसा प्रायद्वीप है जिसका आकार अँग्रेज़ी बूट की तरह है। इसके धर्म और संस्कृति ने दुनिया के इतिहास पर काफी असर किया है। इटली के रंग-बिरंगे खूबसूरत नज़ारे, यहाँ की मशहूर कलाकृतियाँ और ज़ायकेदार भोजन की वजह से लाखों सैलानी इस शहर की तरफ खिंचे चले आते हैं। यह एक ऐसा देश है जहाँ बड़े पैमाने पर लोगों को बाइबल के बारे में सिखाया जा रहा है।

सच्ची मसीहियत इटली में पहली बार कैसे फैली? सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, यरूशलेम में कई लोग मसीही बने। उनमें से कुछ यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले दूसरे लोग रोम से आए थे, जो उस ज़माने की विश्‍वशक्‍ति की राजधानी थी। जब ये लोग अपने देश लौटे तो अपने साथ सच्चे मसीही धर्म को भी ले गए। शायद तभी पहली बार मसीही धर्म रोम पहुँचा। प्रेरित पौलुस सा.यु. 59 के आस-पास पहली बार इटली आया। यहाँ समुद्र के किनारे बसे पुतियुली में उसे कई विश्‍वासी “भाई मिले।”—प्रेरितों 2:5-11; 28:11-16.

सामान्य युग पहली सदी के खत्म होते-होते, ठीक जैसे यीशु और प्रेरितों ने भविष्यवाणी की थी, धर्मत्यागियों ने धीरे-धीरे खुद को सच्चे मसीही धर्म से अलग कर लिया। मगर इस दुष्ट संसार के अंत से पहले, यीशु के सच्चे चेले पूरी दुनिया में ज़ोर-शोर से सुसमाचार सुनाने का काम कर रहे हैं। यानी इटली में भी यह काम किया जा रहा है।—मत्ती 13:36-43; प्रेरितों 20:29, 30; 2 थिस्सलुनीकियों 2:3-8; 2 पतरस 2:1-3.

शुरूआत जो इतनी अच्छी नहीं थी

सन्‌ 1891 में, चार्ल्स टेज़ रसल ने पहली बार इटली के कुछ शहरों का दौरा किया। उस वक्‍त वे दुनिया-भर में बाइबल स्टूडेंट्‌स (आज यहोवा के साक्षियों के नाम से जाने जाते हैं) के प्रचार काम की देखरेख कर रहे थे। उन्हें कबूल करना पड़ा कि उनके दौरे का इतना अच्छा फल नहीं मिला: “हमें इटली में आध्यात्मिक कटाई की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी।” सन्‌ 1910 के वसंत में भाई रसल एक बार फिर इटली आए और उन्होंने रोम शहर के बीचों-बीच एक व्यायामशाला में बाइबल से एक भाषण दिया। इसका नतीजा क्या हुआ? उन्होंने रिपोर्ट दी: “मोटे तौर पर सभा कुछ खास नहीं थी।”

दरअसल शुरू-शुरू में इटली में प्रचार काम इतना फल-फूल नहीं रहा था। इसकी एक वजह यह थी कि फासीवादी की तानाशाह हुकूमत यहोवा के साक्षियों को सता रही थी। उस दौर में पूरे देश में सिर्फ 150 साक्षी थे और उनमें से ज़्यादातर लोग विदेश में रहनेवाले अपने रिश्‍तेदारों या दोस्तों से सच्चाई सीखकर साक्षी बने थे।

कमाल की तरक्की

दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद, इटली में कई मिशनरियों को भेजा गया था। मगर जैसे सरकारी रिकॉर्ड से पता चलता है, वैटिकन चर्च के बड़े-बड़े अधिकारियों ने इटली की सरकार को कई खत लिखे और मिशनरियों को देश से निकालने की माँग की। एकाध मिशनरियों को छोड़ बाकी सभी को मजबूरन इटली से जाना पड़ा।

ऐसी रुकावटों के बावजूद इटली में भीड़-की-भीड़ यहोवा की उपासना के “पर्वत” पर आयी है। (यशायाह 2:2-4) और साक्षियों की गिनती में जो बढ़ोतरी हुई वह वाकई देखने लायक है। सन्‌ 2004 में सुसमाचार के प्रचारकों की गिनती में एक नया शिखर बना। वह था 2,33,527 यानी अब हर प्रचारक को 248 लोगों को सुसमाचार सुनाना है। और मसीह की मौत के स्मारक की हाज़िरी 4,33,242 थी। पूरी इटली में 3,049 कलीसियाएँ हैं जो अच्छे-खासे राज्य घरों में मिलती हैं। हाल के सालों में, इटली के खासकर कुछ समूहों में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। ये समूह क्या हैं, आइए देखें।

कई भाषाओं में प्रचार करना

अफ्रीका, एशिया और पूर्वी यूरोप से कई लोग, नौकरी या एक बेहतर ज़िंदगी की तलाश में इटली आते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो बुरे हालात से बचने के लिए यहाँ आकर बस जाते हैं। इन लाखों लोगों को आध्यात्मिक मदद कैसे दी जा सकती है?

इटली के बहुत-से साक्षियों ने अरबी, अल्बेनियाई, ऎमहैरिक, चीनी, टागालोग, पंजाबी, बंगला और सिंहाला जैसी मुश्‍किल भाषाओं को सीखने की चुनौती स्वीकार की है। जोश से भरे इन लोगों के लिए सन्‌ 2001 से कई कार्यक्रम रखे गए जिनमें उन्हें विदेशी भाषाओं में प्रचार करना सिखाया गया है। इस कार्यक्रम को शुरू हुए तीन साल हो चुके हैं और इन सालों में 17 अलग-अलग भाषाओं में 79 कार्यक्रम चलाए गए हैं, जिनमें कुल मिलाकर 3,711 साक्षी हाज़िर हुए थे। इन कार्यक्रमों की वजह से 25 अलग भाषाओं में 146 कलीसियाएँ और 274 समूह बने हैं। यही नहीं, विदेशी भाषा बोलनेवाले कई नेकदिल लोगों ने भी सुसमाचार सुना है और बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया है। इससे जो नतीजे मिले हैं, वे वाकई हैरान कर देनेवाले हैं।

यहोवा के एक साक्षी ने बाइबल के बारे में जॉर्ज नाम के एक आदमी से बात की। वह भारत का रहनेवाला और मलयालम भाषा बोलनेवाला था। हालाँकि अपनी नौकरी को लेकर जॉर्ज को बहुत समस्याएँ थीं, मगर वह बाइबल का अध्ययन करने के लिए खुशी-खुशी राज़ी हो गया। कुछ दिनों बाद, जॉर्ज ने अपने एक पंजाबी दोस्त, गिल को राज्य घर लाया और उसके साथ भी बाइबल अध्ययन शुरू किया गया। गिल ने अपने साथ डेविड नाम के एक तेलगू आदमी को लाया और साक्षियों से मिलवाया। नतीजा, डेविड ने भी बहुत जल्द बाइबल का अध्ययन शुरू कर दिया। डेविड के साथ दो और भारतीय रहते थे, सनी और शुभाष। वे भी डेविड के साथ-साथ बाइबल अध्ययन करने लगे।

कुछ हफ्तों बाद, दालीप नाम के एक मराठी आदमी ने साक्षियों को टेलिफोन किया। उसने कहा: “मैं जॉर्ज का दोस्त हूँ। क्या आप मुझे बाइबल सिखा सकते हैं?” फिर जॉर्ज का एक और तमिल दोस्त, सूमीत बाइबल का अध्ययन करना चाहता था। बाद में, जॉर्ज के एक और दोस्त ने साक्षियों को टेलिफोन करके उसके साथ बाइबल का अध्ययन करने के लिए कहा। कुछ समय बाद जॉर्ज ने एक और नौजवान, मैक्स को अपने साथ राज्य घर लाया। उसने भी बाइबल अध्ययन की गुज़ारिश की। फिलहाल, छः बाइबल अध्ययन चलाए जा रहे हैं और चार और लोगों के साथ बाइबल अध्ययन करने का इंतज़ाम किया गया है। हालाँकि ये बाइबल अध्ययन अँग्रेज़ी में चलाए जाते हैं, मगर उर्दू, तमिल, तेलगू, पंजाबी, मराठी, मलयालम और हिंदी के साहित्य भी इस्तेमाल किए जाते हैं।

बधिर लोग सुसमाचार “सुन” रहे हैं

इटली में 90,000 से भी ज़्यादा लोग बधिर हैं। सन्‌ 1975 के आस-पास साक्षियों ने अपना ध्यान इन लोगों को बाइबल की सच्चाई सिखाने पर लगाया। शुरू-शुरू में कुछ बधिर साक्षियों ने उन भाइयों को इटैलियन साइन लैंग्वेज सिखायी जो बधिर लोगों को राज्य का सुसमाचार सुनाने में मदद देना चाहते थे। फिर ज़्यादा-से-ज़्यादा बधिरों ने बाइबल में दिलचस्पी दिखाना शुरू किया। आज, 1,400 से भी ज़्यादा लोग जो इटैलियन साइन लैंग्वेज जानते हैं, मसीही सभाओं में आ रहे हैं। पंद्रह कलीसियाएँ और 52 समूह इस भाषा में सभाएँ चला रहे हैं।

शुरू-शुरू में, कुछ साक्षी बधिर लोगों को प्रचार करने में खुद पहल कर रहे थे। मगर सन्‌ 1978 से इटली में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर ने यह ज़िम्मा उठाया और बधिरों के लिए अधिवेशनों का इंतज़ाम करना शुरू किया। फिर उस साल के मई महीने में यह घोषणा की गयी कि मिलान में होनेवाले अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में बधिरों के लिए भी कार्यक्रम रखा जाएगा। इसके बाद, सन्‌ 1979 के फरवरी महीने में मिलान के सम्मेलन भवन में बधिरों के लिए पहला सर्किट सम्मेलन रखा गया।

तब से शाखा दफ्तर ने बधिरों को आध्यात्मिक खुराक देने का खास ध्यान रखा है। कैसे? शाखा दफ्तर ने ज़्यादा-से-ज़्यादा प्रचारकों को बढ़ावा दिया है कि वे साइन लैंग्वेज अच्छी तरह सीख लें। सन्‌ 1995 से खास पायनियरों (पूरे समय के प्रचारक) को कुछ साइन लैंग्वेज समूहों में भेजा गया ताकि वे मसीही सभाएँ चला सकें और बधिर साक्षियों को प्रचार में तालीम दे सकें। तीन सम्मेलन भवनों में सबसे आधुनिक और बेहतर वीडियो सिस्टम लगाए गए हैं, ताकि बधिर लोग प्रोग्राम को अच्छी तरह देख पाएँ। इसके अलावा, उन्हें आध्यात्मिक भोजन देने के लिए मसीही साहित्य के वीडियोकैसेट भी मुहैया कराए जा रहे हैं।

साक्षी, बधिर लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों का अच्छा खयाल रखते हैं, यह बात बाहरवालों ने भी गौर की है। इटैलियन डेफ सोसाइटी की एक पत्रिका, पारोल ए सेनयी में कैथोलिक चर्च के एक मुख्य पादरी की एक चिट्ठी का यूँ हवाला दिया गया है: “एक बधिर इंसान को काफी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उसे हर घड़ी किसी-न-किसी की मदद की ज़रूरत होती है। मिसाल के लिए, वह बिना किसी दिक्कत के खुद-ब-खुद चर्च तो पहुँच जाता है, मगर वहाँ क्या पढ़ा जाता है, क्या घोषणा की जाती है या क्या गाया जाता है, यह उसे साइन लैंग्वेज में समझाने के लिए किसी की मदद चाहिए।” पत्रिका आगे कहती है कि मुख्य पादरी ने “कबूल किया कि चर्च ऐसे लोगों की पूरी तरह से मदद करने के लिए तैयार नहीं और यह बड़े अफसोस की बात है। उसने यह भी कहा कि चर्च से ज़्यादा तो यहोवा के साक्षियों के राज्य घरों में इन बधिरों की मदद अच्छी तरह की जाती है।”

कैदियों को सुसमाचार सुनाना

क्या ऐसा हो सकता है कि कोई जेल में रहकर भी आज़ाद हो? बेशक हो सकता, क्योंकि परमेश्‍वर के वचन में ऐसी ताकत है कि जो उसे मानते हैं और उस पर चलते हैं वह उसे “स्वतंत्र” करता है। यीशु ने भी पाप और झूठे धर्म के “बन्धुओं” को यह संदेश सुनाया कि वे इनसे आज़ादी पा सकते हैं। (यूहन्‍ना 8:32; लूका 4:16-19) इटली के जेलों में प्रचार करने के बढ़िया नतीजे मिल रहे हैं। सरकार की तरफ से तकरीबन 400 साक्षियों को इजाज़त मिली है कि वे कैदियों से मिलकर उन्हें आध्यात्मिक मदद दें। यहोवा के साक्षी ऐसी पहली गैर-कैथोलिक संस्था थी जिसने सरकार से इस तरह की इजाज़त माँगी और उन्हें मंज़ूरी भी मिली।

बाइबल का संदेश ऐसे तरीकों से फैल सकता है जिनके बारे में हम आम तौर पर नहीं सोचते। कुछ कैदियों ने अपने साथी कैदियों को बताया है कि यहोवा के साक्षी कैसे बाइबल सिखाने का कार्यक्रम चलाते हैं। यह सुनकर इन कैदियों ने गुज़ारिश की है कि यहोवा का एक साक्षी आकर उनसे मिले। या, कैदियों के घरवालों ने बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया है और वे उन्हें बढ़ावा देते हैं कि साक्षियों को उनसे मिलने की गुज़ारिश करें। बाइबल अध्ययन करने का नतीजा यह हुआ है कि कुछ कैदी जिन्हें खून या दूसरे बड़े जुर्म के लिए उम्र कैद की सज़ा दी गयी थी, उन्होंने सच्चा पश्‍चाताप किया है और अपनी ज़िंदगी को पूरी तरह बदल दिया है। इस तरह वे यहोवा को अपना समर्पण करने और बपतिस्मा लेने के लिए तैयार हुए हैं।

कई जेलों में बाइबल विषयों पर जन-भाषण देने, यीशु की मौत का स्मारक मनाने, और यहोवा के साक्षियों के तैयार किए गए वीडियोकैसेट दिखाने के इंतज़ाम किए गए हैं। अकसर इन सभाओं के लिए कैदी बड़ी तादाद में हाज़िर होते हैं।

अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कैदियों की मदद करने के लिए साक्षियों ने उन्हें ऐसे विषयों पर पत्रिकाएँ दी हैं जो उनके बहुत काम आती हैं। ऐसी एक पत्रिका थी, मई 8, 2001 की (अँग्रेज़ी) सजग होइए! जिसका विषय था, “क्या कैदियों को बदला जा सकता है?” इसी पत्रिका का अप्रैल 8, 2003 का (अँग्रेज़ी) अंक इस विषय पर था: “अगर परिवार में ड्रग्स का नशा करनेवाला कोई हो, तो आप क्या कर सकते हैं?” हज़ारों कॉपियाँ कैदियों में बाँटी गयीं। नतीजा यह हुआ है कि सैकड़ों बाइबल अध्ययन शुरू किए गए हैं। जेल के कुछ पहरेदारों ने भी बाइबल के संदेश में दिलचस्पी दिखायी है।

सान रेमो शहर में, कॉसटानटीनो नाम के एक कैदी को अधिकारियों से खास इजाज़त मिली कि वह जेल के बाहर, राज्य घर में बपतिस्मा ले। उसके बपतिस्मे के मौके पर कलीसिया के 138 भाई-बहन मौजूद थे। कॉसटानटीनो को कैसा महसूस हुआ? उसकी आँखों में आँसू भर आए और उसने कहा: “मुझे इतना प्यार मिला कि मैं बता नहीं सकता।” इस शहर के अखबार में जेल के एक वार्डन की यह बात लिखी गयी: “यह इजाज़त देने में . . . हमें बेहद खुशी हुई। ऐसी कोई भी कोशिश, जो कैदी की निजी ज़िंदगी को सुधारने, उसे समाज में फिर से जीने और आध्यात्मिक रूप से दोबारा मज़बूत करने के लिए की जाती है, उसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए।” बाइबल के सच्चे ज्ञान ने जिस तरह कॉसटानटीनो की ज़िंदगी की कायापलट की है, उसे देखकर उसकी पत्नी और बेटी पर भी बहुत अच्छा असर पड़ा। उनका कहना है: “हमें फख्र है कि उसने अपने आपको बदला है। अब वह सबके साथ शांति बनाए रखता है और दिनों-दिन हमें एहसास हो रहा है कि उसे हमारी कितनी परवाह है। उस पर जो भरोसा या उसके लिए जो इज़्ज़त हम खो चुके थे, अब उसे दोबारा बढ़ा पा रहे हैं।” उन्होंने भी बाइबल का अध्ययन और मसीही सभाओं में आना शुरू कर दिया है।

सरजो, एल्बा द्वीप के पोर्टो आटसुरो जेल में एक कैदी है। उसे चोरी, डकैती, ड्रग्स की तस्करी और खून के जुर्म में सन्‌ 2024 तक जेल की सज़ा सुनायी गयी है। जेल में उसने तीन साल तक बाइबल की जाँच की और अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव करके बपतिस्मा लेने का फैसला किया। वह उस जेल का पंद्रहवाँ कैदी है जो बपतिस्मा लेकर यहोवा का साक्षी बना। उसके बपतिस्मे के लिए जेल के मैदान में एक पुल तैयार किया गया था। और उस मौके पर उसके बहुत-से साथी कैदी हाज़िर थे।

लेओनारडो, जेल में 20 साल की सज़ा काट रहा है। उसे पार्मा के राज्य घर में बपतिस्मा लेने की खास इजाज़त मिली। वहाँ के अखबार को दिए अपने इंटरव्यू में उसने कहा कि वह “साफ-साफ बताना चाहता है कि वह जेल की चारदीवारी से निकलने के लिए यहोवा का साक्षी नहीं बना बल्कि एक अहम आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करने के लिए बना।” लेओनारडो ने कहा: “मैंने ज़िंदगी में बहुत गलत काम किए हैं, मगर अब मैं वह सब भुलाकर नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करना चाहता हूँ। मैं बदल गया हूँ, मगर यह बदलाव रातों-रात नहीं हुआ है। और मैं जानता हूँ कि सही रास्ते पर चलते रहने के लिए मुझे आगे भी मेहनत करते रहना होगा।”

स्पोलेटो एक ऐसा जेल है जहाँ खतरनाक अपराधियों को रखा जाता है और वहाँ पर सख्त पहरा लगा रहता है। सालवाटोर को जब खून के जुर्म में सज़ा सुनायी गयी तो उसे इसी जेल में भेजा गया। जब उसका बपतिस्मा जेल की चारदीवारी में हुआ तो इसका कई लोगों पर अच्छा असर पड़ा। वहाँ के जेल के एक वार्डन ने कहा: “अगर एक कैदी खुद को बदलने और एक अच्छा इंसान बनने का फैसला करता है तो उसका पूरा-पूरा साथ देना चाहिए। इससे न सिर्फ जेल में रहनेवाले कैदियों को बल्कि पूरे समाज को फायदा होगा।” सालवाटोर में तबदीलियाँ देखकर उसकी पत्नी और एक बेटी अब यहोवा के साक्षियों की सभाओं में हाज़िर होने लगी हैं। सालवाटोर ने एक कैदी को गवाही दी थी और वह भी यहोवा का एक समर्पित सेवक बन गया है।

इटली में जब पहली बार सच्ची मसीहियत पहुँची, तो वहाँ काफी बढ़ोतरी हुई। (प्रेरितों 2:10; रोमियों 1:7) पौलुस और बाकी मसीहियों ने जिन इलाकों में सुसमाचार फैलाने में कड़ी मेहनत की थी, आज उन्हीं इलाकों में सुसमाचार फैलाया जा रहा है और आध्यात्मिक बढ़ोतरी हो रही है।—प्रेरितों 23:11; 28:14-16.

[पेज 13 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

इटली

रोम

[पेज 15 पर तसवीरें]

बीटॉन्टो में सम्मेलन भवन और रोम में इटैलियन साइन लैंग्वेज की एक कलीसिया

[पेज 16 पर तसवीर]

बाइबल की सच्चाई से कैदी “स्वतंत्र” हो रहे हैं

[पेज 17 पर तसवीरें]

आज भी वहाँ आध्यात्मिक बढ़ोतरी हो रही है, जहाँ एक ज़माने में शुरूआती मसीहियत ज़ोरों पर थी