इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

खुश हूँ कि दुनिया-भर में बाइबल सिखाने के काम में मेरा भी हिस्सा रहा है

खुश हूँ कि दुनिया-भर में बाइबल सिखाने के काम में मेरा भी हिस्सा रहा है

जीवन कहानी

खुश हूँ कि दुनिया-भर में बाइबल सिखाने के काम में मेरा भी हिस्सा रहा है

आना माथेआकीस की ज़ुबानी

एक सौ इकहत्तर मीटर लंबे जहाज़ में आग लगी हुई थी। अगर यह जहाज़ पानी के नीचे चला जाए तो मुझे भी अपने साथ लेकर डूबेगा। यह सोचकर मैं पानी में कूद गयी और जहाज़ से दूर जाने के लिए ज़ोर लगाकर तैरने लगी। मगर उफनती लहरों से लड़ना कोई आसान काम नहीं था। पानी के ऊपर रहने का मेरे पास सिर्फ एक ही रास्ता था और वह था, लाइफ जैकिट को कसकर पकड़े रहना जो दरअसल एक दूसरी औरत पहने हुई थी। फिर, मैं परमेश्‍वर से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करने लगी कि वह मुझे ताकत और हिम्मत दे। इसके सिवा मुझे और कुछ नहीं सूझ रहा था।

यह बात सन्‌ 1971 की है। मैं यूनान से इटली लौट रही थी जहाँ मैं मिशनरी की हैसियत से सेवा कर रही थी। दरअसल, इटली वह तीसरी जगह थी जहाँ मुझे बतौर मिशनरी भेजा गया था। उस जहाज़ के डूबने से मेरा लगभग सारा सामान भी डूब गया। फिर भी, सबसे अनमोल और अहम चीज़ें अब भी मेरे पास महफूज़ थीं—मेरी ज़िंदगी, प्यार करनेवाला मसीही भाईचारा और यहोवा की सेवा करने का अनोखा मौका। इसी सेवा की बदौलत मुझे तीन महाद्वीपों में प्रचार करने का बढ़िया मौका मिला। और इस दौरान मेरी ज़िंदगी में कई मज़ेदार तो कई खतरनाक वाकये भी हुए, जैसे कि ऊपर बतायी जहाज़ डूबनेवाली घटना।

मेरा जन्म सन्‌ 1922 में हुआ था। मेरा परिवार राम एल्ला कसबे में रहता था जो यरूशलेम से करीब 16 किलोमीटर दूर उत्तर में है। मेरे माता-पिता दोनों क्रीट द्वीप से थे, मगर पिताजी नैज़रेथ में पले-बढ़े थे। हम पाँच बच्चे थे, तीन लड़के और दो लड़कियाँ। और मैं सबसे छोटी थी। जब मेरे बड़े भाइयों में से दूसरे की मौत हो गयी, तो पूरे परिवार को गहरा सदमा पहुँचा। दरअसल, वह अपने स्कूल के साथ सैर पर गया था और उसी दौरान यरदन नदी में डूबकर मर गया। इस हादसे के बाद से तो माँ ने राम एल्ला में रहने से इनकार कर दिया। इसलिए हमारा परिवार यूनान के शहर एथेन्स में जाकर बस गया। उस वक्‍त मैं सिर्फ तीन साल की थी।

मेरे परिवार ने बाइबल की सच्चाई के बारे में पहली बार सुना

यूनान में पहुँचे हमें कुछ ही समय हुआ था कि मेरे सबसे बड़े भैया नीकॉस की मुलाकात बाइबल विद्यार्थियों से हुई। उन दिनों यहोवा के साक्षी इसी नाम से जाने जाते थे। उस वक्‍त नीकॉस भैया 22 साल के थे। वे उन विद्यार्थियों से बाइबल के बारे में सीखने लगे। उन्होंने जो सीखा, उससे उन्हें बड़ी खुशी मिली और उनके अंदर मसीही सेवा के लिए जोश धधक उठा। इस पर पिताजी गुस्से से तमतमा उठे और उन्होंने भैया को घर से निकाल दिया। मगर जब भी पिताजी पैलिस्टाइन जाते, उस दौरान माँ, मेरी दीदी, एरीआडनी और मैं, नीकॉस भैया के साथ मसीही सभाओं में जाती थीं। आज भी मुझे याद है कि माँ कैसे उमंग के साथ उन बातों पर चर्चा करती थी जो हम सभाओं में सुनती थीं। लेकिन कुछ समय बाद, वह कैंसर की शिकार हो गयी और 42 साल की उम्र में चल बसी। उस मुश्‍किल भरे दौर में, मेरी दीदी ने बड़े प्यार से परिवार का सारा ज़िम्मा अपने ऊपर ले लिया। हालाँकि वह खुद एक युवती थी, फिर भी उसने तब से लेकर कई सालों तक एक माँ की तरह मेरी देखभाल की।

एथेन्स में रहते वक्‍त पिताजी हमेशा मुझे अपने साथ ऑर्थोडोक्स चर्च ले जाते थे। उनकी मौत के बाद भी मैं चर्च जाती रही, मगर कभी-कभार। फिर जब मैंने देखा कि चर्च आनेवाले लोग परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक ज़िंदगी नहीं जी रहे थे, तो मैंने आखिरकार चर्च जाना ही छोड़ दिया।

पिताजी के गुज़र जाने के बाद, वित्त मंत्रालय के सरकारी दफ्तर में मेरी नौकरी पक्की हो गयी। उस वक्‍त तक मेरे बड़े भैया ने अपनी ज़िंदगी, राज्य के प्रचार काम में लगा दी थी। उन्होंने कई सालों तक यूनान में सेवा की। सन्‌ 1934 में वे साइप्रस द्वीप में जाकर बस गए। तब वहाँ यहोवा का एक भी बपतिस्मा-शुदा साक्षी नहीं था, इसलिए उन्हें वहाँ पर प्रचार काम को बढ़ाने का मौका मिला। फिर उनकी शादी गालाटीआ नाम की एक मसीही से हुई और वह भी भैया के साथ कई सालों तक पूरे समय की सेवा में लगी रही। * नीकॉस भैया अकसर हमें बाइबल समझानेवाली किताबें-पत्रिकाएँ भेजते थे, मगर हमने एक बार भी उन्हें खोलकर नहीं पढ़ा। वे मरते दम तक साइप्रस में रहे।

बाइबल सच्चाई को अपना बनाना

सन्‌ 1940 में, जॉर्ज डूरास नाम का एक जोशीला साक्षी हमसे मिलने आया। वह नीकॉस भैया का दोस्त था और एथेन्स में रहता था। उसने हमें एक छोटे समूह के साथ मिलकर बाइबल का अध्ययन करने का न्यौता दिया। यह अध्ययन उसके घर पर होता था। हमने खुशी-खुशी वह न्यौता कबूल किया। फिर, कुछ ही समय के अंदर हमने भी दूसरों को बताना शुरू किया कि हम बाइबल से क्या सीख रही थीं। बाइबल का ज्ञान लेने के बाद, मैंने और मेरी दीदी ने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित कर दी। दीदी का बपतिस्मा सन्‌ 1942 में हुआ और मेरा सन्‌ 1943 में।

जब दूसरा विश्‍वयुद्ध खत्म हुआ, तब नीकॉस भैया ने हमें साइप्रस बुलाया। इसलिए सन्‌ 1945 में हम साइप्रस के शहर निकोसिया में जाकर बस गए। साइप्रस, यूनान से कितना अलग था, यहाँ हमें प्रचार करने की आज़ादी थी। हम न सिर्फ घर-घर प्रचार करते थे बल्कि सड़क पर भी लोगों को गवाही देते थे।

साइप्रस में रहने के दो साल बाद, एरीआडनी दीदी को वापस यूनान जाना पड़ा। वहाँ उसकी मुलाकात एक साक्षी भाई से हुई और दीदी ने एथेन्स में ही रह जाने का फैसला किया। बाद में, उन दोनों ने शादी कर ली। इसके कुछ समय बाद, दीदी और जीजाजी ने मुझे यूनान वापस आने और उसकी राजधानी एथेन्स में पूरे समय की सेवा शुरू करने का बढ़ावा दिया। पायनियर सेवा करना हमेशा से मेरा लक्ष्य रहा है, इसलिए मैं एथेन्स लौट गयी। वैसे वहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत भी थी।

सेवा के नए मौके सामने आए

नवंबर 1, 1947 को मैंने अपनी पायनियर सेवा शुरू की। और मैं हर महीने प्रचार में 150 घंटे बिताने लगी। हमारी कलीसिया का प्रचार इलाका बहुत ही बड़ा था, इसलिए मुझे काफी चलना पड़ता था। फिर भी, मुझे इस सेवा में कई आशीषें मिलीं। मगर साथ ही, मैंने विरोध का भी सामना किया। एथेन्स में अकसर प्रचार करते या फिर सभाओं में हाज़िर साक्षियों को पुलिस गिरफ्तार कर लेती थी। इसलिए जल्द ही, पुलिस ने मुझे भी हिरासत में ले लिया।

मुझ पर लोगों का धर्म बदलने का इलज़ाम लगाया गया। उन दिनों यह एक संगीन जुर्म माना जाता था। मुझे दो महीने की सज़ा सुनायी गयी और एथेन्स की आवेरॉफ महिला जेल में भेजा गया। वहाँ पहुँचने पर मुझे पता चला कि एक और साक्षी बहन पहले से उस जेल में है। हालाँकि हम सलाखों के पीछे थे, फिर भी हम खुश थे। क्योंकि हम हौसला बढ़ानेवाले विषयों पर बात करते थे और इस तरह एक-दूसरे का ढाढ़स बँधाते थे। सज़ा काटने के बाद जब मैं जेल से रिहा हुई तो मैं खुशी-खुशी एक बार फिर पायनियर सेवा में जुट गयी। उस दौरान मैंने जितने लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किया, उनमें से ज़्यादातर आज भी वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। और यह देखकर मेरा दिल खुशी से भर जाता है।

सन्‌ 1949 में, मुझे अमरीका में वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की 16वीं क्लास में हाज़िर होने का बुलावा मिला। इस स्कूल में पूरे समय के सेवकों को मिशनरी काम के लिए तालीम दी जाती है। बुलावा मिलने पर मैं और मेरे घरवाले खुशी से झूम उठे। मैंने पहले सन्‌ 1950 की गर्मियों में, न्यू यॉर्क शहर में होनेवाले अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में हाज़िर होने और उसके बाद गिलियड जाने की योजना बनायी।

अमरीका पहुँचने पर, मुझे न्यू यॉर्क शहर में यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय में छः महीनों के लिए सेवा करने का बढ़िया अवसर मिला। उन महीनों के दौरान मैंने भाई-बहनों के कमरों की साफ-सफाई का काम किया। वहाँ का माहौल बहुत ही साफ-सुथरा, खुशनुमा और हौसला बढ़ानेवाला था। चारों तरफ हँसते-मुस्कुराते भाई-बहन नज़र आते थे। जो महीने मैंने वहाँ गुज़ारे, वे हमेशा मेरे लिए एक मीठी याद बनकर रहेंगे। उसके बाद मैं गिलियड स्कूल गयी जहाँ हमें पाँच महीने की ट्रेनिंग दी गयी। उस दौरान हमने बाइबल का गहरा अध्ययन किया और हमें बहुत-सी हिदायतें दी गयीं। यह समय कैसे बीत गया कुछ पता ही नहीं चला। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद, हम सभी विद्यार्थियों को एहसास हुआ कि बाइबल में सच्चाई का कितना बढ़िया और अनमोल खज़ाना छिपा है। इससे न सिर्फ हमारी खुशी बढ़ी बल्कि दूसरों के साथ यह सच्चाई बाँटने की हमारी इच्छा भी ज़बरदस्त हुई ताकि उन्हें भी ज़िंदगी मिले।

मिशनरी के तौर पर मेरी पहली मंज़िल

मिशनरी के तौर पर भेजे जाने से पहले, गिलियड स्कूल में हम सभी को अपना-अपना प्रचार साथी चुनने की इजाज़त थी। मेरी साथी थी, रूथ हेमिग (जो अब रूत बॉसहार्ट है)। वह एक कमाल की बहन थी। जब हम दोनों को तुर्की के इस्तांबुल शहर में जाकर सेवा करने को कहा गया, तो हम खुशी से फूले नहीं समाए। यह एक ऐसी जगह है जहाँ एशिया और यूरोप महाद्वीपों का मेल होता है! हमें मालूम था कि तुर्की में हमारे प्रचार काम को कानूनी मान्यता नहीं है, फिर भी हमें पूरा यकीन था कि यहोवा हमारी मदद करेगा।

इस्तांबुल एक बहुत ही सुंदर शहर है जहाँ अलग-अलग संस्कृति, भाषा और देश से आए लोग रहते हैं। यह शहर बाज़ारों से भरा पड़ा है। यहाँ आप दुनिया-भर के एक-से-एक लज़ीज़ खाने का मज़ा ले सकते हैं। शहर में कई दिलचस्प अजायब-घर हैं, खूबसूरत घर-मकान हैं और उनके ठीक सामने समंदर का दिलकश नज़ारा है। मगर इन सबसे बढ़कर बात यह थी कि यहाँ ऐसे कई लोग थे जो सच्चे दिल से परमेश्‍वर के बारे में सीखना चाहते थे। इस्तांबुल में साक्षियों का एक छोटा समूह था। इसमें ज़्यादातर साक्षी आर्मीनियन, यूनानी और यहूदी थे। फिर भी, इस शहर में दूसरे देशों के कई लोग भी रहते थे और इसलिए अलग-अलग भाषाओं, यहाँ तक कि तुर्की भाषा के बारे में थोड़ा-बहुत जानना, काफी मददगार साबित हुआ। प्रचार में ऐसे अलग-अलग देश के लोगों से मिलकर हमें बहुत अच्छा लगा जो सच्चाई जानने के लिए तरस रहे थे। उनमें से कई लोग अब भी वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं।

अफसोस कि रूथ को इस्तांबुल में रहने का दोबारा पर्मिट नहीं मिला और उसे मजबूरन तुर्की छोड़ना पड़ा। वह आज भी स्विट्‌ज़रलैंड में पूरे समय की सेवा कर रही है। जो समय हमने साथ-साथ बिताए और एक-दूसरे की हिम्मत बँधायी, वह मैं भूली नहीं और आज भी मुझे उसकी कमी महसूस होती है।

दुनिया के दूसरे हिस्से में जाना

सन्‌ 1963 में मुझे भी तुर्की में रहने का दोबारा पर्मिट नहीं मिला। अपने मसीही भाई-बहनों से अलविदा कहना मेरे लिए बहुत ही मुश्‍किल था। मैंने देखा था कि इन भाई-बहनों ने मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात से गुज़रने के बाद भी, कैसे आध्यात्मिक तरक्की की थी। मेरा दुःख कम करने के लिए, मेरे घरवालों ने मुझे न्यू यॉर्क शहर में एक अधिवेशन में हाज़िर होने के लिए भेजा और सारा खर्च उठाया। तब तक मुझे कोई खबर नहीं मिली थी कि मुझे कहाँ सेवा करने के लिए भेजा जाएगा।

अधिवेशन के बाद, मुझे बताया गया कि मुझे पेरू देश के लीमा शहर में सेवा करनी है। मुझे एक नयी साथी मिली जो एक जवान बहन थी। हम दोनों न्यू यॉर्क से सीधे लीमा के लिए रवाना हुए। वहाँ मैंने स्पैनिश भाषा सीखी और मैं मिशनरी घर में रही जो यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर के ऊपर ही था। लीमा में प्रचार करने और भाई-बहनों को जानने में मुझे बड़ी खुशी हुई।

एक दूसरी जगह, एक दूसरी भाषा

इस बीच, यूनान में मेरे घरवाले ढलती उम्र की वजह से तकलीफें झेल रहे थे, और उनकी सेहत भी बिगड़ रही थी। फिर भी, उन्होंने कभी-भी मुझसे यह नहीं कहा कि अपनी पूरे समय की सेवा छोड़ दो और आम लोगों की तरह ज़िंदगी बिताकर हमारी देखभाल करो। लेकिन काफी सोचने और प्रार्थना करने के बाद मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं अपने परिवार के पास रहकर सेवा करूँ, तो बेहतर होगा। जब मैंने यह बात शाखा दफ्तर के ज़िम्मेदार भाइयों को बतायी तो वे मान गए और मुझे इटली में सेवा करने के लिए भेज दिया। मेरे परिवारवालों ने कहा कि वे मेरे तबादले का खर्च उठाएँगे। इटली पहुँचने पर मुझे पता चला कि यहाँ भी प्रचारकों की सख्त ज़रूरत है।

एक बार फिर मुझे नयी भाषा, इतालवी सीखनी पड़ी। इटली में मुझे सबसे पहले फॉजा शहर भेजा गया। बाद में मेरा तबादला नेपल्स शहर में हुआ जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी। वहाँ मुझे प्रचार करने के लिए पोज़ीलीपो इलाका दिया गया जो शहर का सबसे खूबसूरत इलाका है। यह बहुत ही बड़ा इलाका है और यहाँ सिर्फ एक ही राज्य प्रचारक रहता था। मुझे यहाँ प्रचार करने में बहुत मज़ा आया। यहोवा की मदद से मैंने बहुत-से लोगों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किए। समय के गुज़रते, इस इलाके में एक बड़ी कलीसिया की शुरूआत हुई।

इस इलाके में जिन लोगों के साथ मैंने बाइबल अध्ययन किया, उनमें सबसे पहले थे, एक माँ और उनके चार बच्चे। वह और उसकी दो बेटियाँ आज भी यहोवा के साक्षियों के नाते सेवा कर रही हैं। मैंने एक शादीशुदा जोड़े के साथ भी अध्ययन किया जिनकी एक नन्ही बिटिया थी। उस परिवार ने सच्चाई में अच्छी तरक्की की और अपना समर्पण ज़ाहिर करने के लिए पानी में बपतिस्मा लिया। अब उस जोड़े की बेटी की शादी यहोवा के एक वफादार सेवक के साथ हुई है और वे दोनों मिलकर, पूरे जोश के साथ परमेश्‍वर की सेवा कर रहे हैं। मैंने एक परिवार के साथ भी अध्ययन किया, जिसके कई सदस्य थे। उस दौरान हुए एक वाकये से मुझे और भी पक्का यकीन हो गया कि परमेश्‍वर के वचन में वाकई बहुत ताकत है। एक बार जब हमने बाइबल से कई आयतें पढ़ीं जो दिखाती हैं कि मूर्तियों के सहारे परमेश्‍वर को दी गयी उपासना वह मंज़ूर नहीं करता है, तो अध्ययन खत्म भी नहीं हुआ कि माँ बीच में उठ खड़ी हुई और उसी वक्‍त उसने फौरन अपनी सारी मूर्तियों को घर से बाहर फेंक दिया!

समंदर के खतरों में

मैं अकसर अपने परिवार से मिलने इटली से यूनान जाती और फिर वापस आती थी। और मैं हमेशा जहाज़ से सफर करती थी। आम तौर पर सफर बहुत अच्छा होता, कोई दिक्कत नहीं होती थी। लेकिन सन्‌ 1971 की गर्मियों में किया एक सफर अलग था। मैं एलेआना नाम के जहाज़ से वापस इटली आ रही थी। अगस्त 28 की सुबह, जहाज़ की रसोई में आग भड़क उठी। देखते-ही-देखते आग तेज़ी से फैलने लगी, साथ ही यात्रियों में अफरा-तफरी मच गयी। औरतें बेहोश होने लगीं, बच्चे रोने-धोने लगे और जो पुरुष थे, वे चिल्ला-चिल्लाकार शिकायत करने लगे और जहाज़ के अधिकारियों को धमकी देने लगे। सभी जहाज़ के दाएँ-बाएँ लगी लाइफ बोटों की तरफ भागे। मगर समस्या यह थी कि लाइफ बोट को नीचे पानी में उतारने की मशीन ठीक से काम नहीं कर रही थी, ऊपर से लाइफ जैकिट सबके लिए काफी नहीं थे। मुझे भी कोई लाइफ जैकिट नहीं मिला। आग की लपटें आसमान को छूती नज़र आ रही थीं। इसलिए बचने के लिए मुझे सिर्फ एक ही रास्ता सूझा, समंदर में कूद जाना।

पानी में कूदने के बाद मैंने देखा कि मेरी बगल में एक स्त्री लाइफ जैकिट पहनी हुई है। ऐसा लग रहा था कि उसे तैरना नहीं आता, इसलिए उसे डूबते जहाज़ से दूर ले जाने के लिए, मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे खींचने लगी। समंदर में तूफान उठने लगा और पानी के ऊपर रहने के लिए संघर्ष करते-करते मैं थक गयी। मुझे लगा बस मैं अब जानेवाली हूँ। फिर भी, मैं यहोवा से हिम्मत और ताकत के लिए गिड़गिड़ाती रही। ऐसे में मैं, प्रेरित पौलुस के साथ हुए उस हादसे को याद करने लगी जब वह जिस जहाज़ पर सफर कर रहा था, वह टूटकर डूब गया था।—प्रेरितों, अध्याय 27.

समंदर में बड़ी-बड़ी लहरें उठ रही थीं। ऐसे में, पानी में चार घंटे तक तैरना और लाइफ जैकट पहनी उस स्त्री को पकड़े रहना कतई आसान नहीं था। मगर जब मुझमें ताकत होती, तो मैं हाथ-पैर मारती, फिर थोड़ी देर आराम करती। इस बीच मैं मदद के लिए यहोवा को पुकारती रही। आखिरकार मैंने एक छोटी-सी नौका को अपनी तरफ आते देखा। मैं तो बच गयी, मगर अफसोस कि लाइफ जैकिट पहनी उस स्त्री की साँस कब की रुक चुकी थी। इटली के बारी नाम के कसबे में पहुँचते ही, मुझे एक अस्पताल ले जाया गया जहाँ फौरन मेरी दवा-दारू की गयी। मुझे कुछ दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। इस दरमियान बहुत-से साक्षी भाई-बहन मुझसे मिलने आए और उन्होंने मेरी हर ज़रूरत का खयाल रखा। उनका यह प्यार देखकर अस्पताल के लोग हैरान रह गए और यह उनके दिल में एक गहरी छाप छोड़ गया। *

जब मैं पूरी तरह ठीक हो गयी, तो मुझे रोम में सेवा करने के लिए भेजा गया। शहर में बिज़नेस का एक बहुत बड़ा इलाका था। मुझे वहाँ प्रचार करने को कहा गया। मैंने यह काम यहोवा की मदद से पाँच साल तक किया। मैंने इटली में, कुल मिलाकर 20 साल तक सेवा की और इसका पूरा-पूरा आनंद लिया। साथ ही, मुझे वहाँ के लोगों से गहरा लगाव हो गया था।

जहाँ मैंने शुरूआत की, वहीं पर वापस

जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरी दीदी एरीआडनी और जीजाजी की तबियत खराब होने लगी। उन्होंने मेरी खातिर क्या कुछ नहीं किया था। इसलिए मैंने सोचा कि अगर मैं उनके नज़दीक रहकर उनकी देखभाल करूँ तो कुछ हद तक उनके एहसानों का बदला चुका पाऊँगी। मुझे मानना पड़ेगा कि जब इटली को छोड़ने की घड़ी आयी तो मेरा दिल बहुत ही भारी हो गया था। फिर भी, ज़िम्मेदार भाइयों ने मुझे जाने की इजाज़त दी। सन्‌ 1985 की गर्मियों में मैं एथेन्स लौट आयी और वहाँ अपनी पायनियर सेवा जारी रखी। यही वह जगह थी जहाँ मैंने सन्‌ 1947 में अपनी पूरे समय की सेवा शुरू की थी।

मैंने अपनी कलीसिया के इलाके में प्रचार करने के साथ-साथ शाखा दफ्तर के भाइयों से यह भी पूछा कि क्या मैं शहर के बिज़नेस इलाकों में प्रचार कर सकती हूँ? उन्होंने मुझे इसकी इजाज़त दे दी और मैंने एक पायनियर बहन के साथ तीन साल तक यह काम किया। हमने उन लोगों को अच्छी तरह गवाही दी जिन्हें घर पर मिलना बहुत मुश्‍किल था।

मेरे अंदर सेवा करने की इच्छा दिन-ब-दिन ज़बरदस्त होती गयी, मगर क्या करूँ मेरी सेहत मेरा साथ नहीं दे रही है। मेरे जीजाजी की मौत हो चुकी है। एरीआडनी दीदी, मेरे लिए माँ से कोई कम नहीं थी। अब उसकी दोनों आँखों की रोशनी चली गयी है। और रही मेरी बात, जब मैं पूरे समय की सेवा कर रही थी, तो एकदम चुस्त-दुरुस्त थी। मगर हाल ही में, मैं संगमरमर की बनी सीढ़ियों से गिर पड़ी और मेरा दायाँ हाथ टूट गया। इसके बाद, मैं फिर से गिरी और मेरी कमर टूट गयी। मुझे ऑपरेशन करवाना पड़ा और काफी समय तक मैं बिस्तर से उठ नहीं पायी। अब मैं पहले की तरह चल-फिर नहीं सकती। मैं एक लाठी के सहारे चलती हूँ और तभी बाहर जा सकती हूँ जब कोई मेरे साथ होता है। फिर भी, मैं अपना भरसक करने की कोशिश करती हूँ और उम्मीद करती हूँ कि मेरी सेहत सुधर जाएगी। हालाँकि मैं बाइबल सिखाने के काम में ज़्यादा हिस्सा नहीं ले पाती, मगर जितना थोड़ा मैं कर रही हूँ, उसी से मुझे सबसे ज़्यादा खुशी और सुख मिलता है।

जब भी मैं उन सालों को याद करती हूँ जो मैंने पूरे समय की सेवा में बिताए और उससे मुझे कितनी खुशी मिली, तो यहोवा के लिए मेरा दिल एहसान से भर जाता है। उसने और धरती पर उसके संगठन ने लगातार सही निर्देशन दिए हैं और बहुत अनमोल तरीके से मेरी मदद की है। ऐसी मदद पाकर ही मैं अपनी पूरी ज़िंदगी यहोवा की सेवा में बिता पायी हूँ और इस तरह अपनी काबिलीयतों का एकदम सही इस्तेमाल कर पायी हूँ। मेरी दिली तमन्‍ना है कि यहोवा मुझे आगे भी उसकी सेवा करते रहने की ताकत देता रहे। दुनिया-भर में, बाइबल सिखाने का जो काम चल रहा है, उसमें अगर मेरा छोटा-सा भी हिस्सा हो तो इसके लिए मैं बहुत-बहुत खुश हूँ!—मलाकी 3:10.

[फुटनोट]

^ 1995 इयरबुक ऑफ जेहोवाज़ विटनॆसॆस, पेज 73-89 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ ज़्यादा जानकारी के लिए फरवरी 8, 1972 की (अँग्रेज़ी) सजग होइए! पेज 12-16 देखिए।

[पेज 9 पर तसवीर]

गिलियड स्कूल जाने से पहले अपनी दीदी एरीआडनी और जीजा मिकालीस के साथ

[पेज 10 पर तसवीर]

रूथ हेमिग और मैं तुर्की के इस्तांबुल शहर में जहाँ हमें बतौर मिशनरी भेजा गया था

[पेज 11 पर तसवीर]

सन्‌ 1970 के दशक की शुरूआत में, इटली में

[पेज 12 पर तसवीर]

आज अपनी दीदी एरीआडनी के संग