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मन की शांति की तलाश

मन की शांति की तलाश

मन की शांति की तलाश

ऐल्बर्ट एक शादीशुदा आदमी था, जिसके दो प्यारे बच्चे थे। वह अपने परिवार के साथ सुखी जीवन बिता रहा था। फिर भी उसे लग रहा था कि उसकी ज़िंदगी में कुछ तो कमी है। एक वक्‍त था जब उसे नौकरी की तलाश में दर-दर भटकना पड़ा था। उस दौरान वह राजनीति में शरीक हो गया और उसने समाजवादी उसूल अपना लिए। यहाँ तक कि वह अपने इलाके की समाजवादी पार्टी का एक जोशीला सदस्य बन गया।

मगर कुछ ही समय के अंदर, समाजवाद से ऐल्बर्ट का भरोसा उठ गया। इसलिए उसने राजनीति से नाता तोड़ लिया और बाल-बच्चों की देखभाल करने में पूरी तरह जुट गया। अपने परिवार को खुश रखना ही अब उसकी ज़िंदगी का मकसद बन गया था। मगर अब भी उसे ज़िंदगी कुछ अधूरी-अधूरी सी लगी; मन की सच्ची शांति अब भी उससे कोसों दूर थी।

ज़िंदगी में ऐसा खालीपन महसूस करनेवालों में ऐल्बर्ट अकेला नहीं है। दुनिया में ऐसे करोड़ों लोग हैं जिन्होंने ज़िंदगी का मकसद जानने के लिए तरह-तरह के उसूलों, फलसफों और धर्मों को आज़माकर देखा है। मिसाल के लिए, पश्‍चिमी देशों में, सन्‌ 1960 के दशक में हिप्पी आंदोलन चला। यह सदियों से चले आ रहे नैतिक और सामाजिक उसूलों के खिलाफ बगावत थी। खासकर जवानों ने ज़िंदगी में खुशी और मकसद पाने के लिए इस आंदोलन के गुरुओं और आध्यात्मिक अगुवों के फलसफों को अपनाया और दिमाग पर असर करनेवाली नशीली दवाइयाँ भी लीं। मगर हिप्पी आंदोलन, लोगों को सच्ची खुशी देने में नाकाम रहा। उलटा, इसका बहुत बुरा अंजाम निकला। कई लोगों को ड्रग्स की लत लग गयी और जवान बदचलन बन गए। इस तरह समाज नैतिक गंदगी के दलदल में और भी तेज़ी से धँसता चला गया।

सदियों से लोगों ने खुशी पाने के लिए दौलत, ताकत या ऊँची शिक्षा का सहारा लिया है। मगर इन चीज़ों से खुशी नहीं बल्कि निराशा ही हाथ लगती है। यीशु ने कहा था: “किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता।” (लूका 12:15) सच तो यह है कि दौलत का नशा इंसान को मुसीबतों के भँवर में फँसा देता है। बाइबल बताती है: “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं। क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने . . . अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—1 तीमुथियुस 6:9, 10.

तो फिर इंसान को मन की शांति और जीवन में मकसद कैसे मिल सकता है? क्या यह सच है कि इंसान को राह दिखानेवाला कोई नहीं है इसलिए उसे ठोकरें खा-खाकर जीना पड़ेगा? या यूँ कहें कि सच्ची शांति की तलाश करना अँधेरे में तीर मारने जैसा है? जी नहीं। जैसा हम अगले लेख में देखेंगे, सच्ची शांति ज़रूर पायी जा सकती है। यह हमारी एक अहम ज़रूरत को पूरा करने पर हासिल होती है। यह एक ऐसी ज़रूरत है जो सिर्फ हम इंसानों में होती है।

[पेज 3 पर तसवीर]

दौलत, ताकत या ऊँची शिक्षा के पीछे भागने से क्या आपको मन की शांति मिल सकती है?