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वे खुशी से अपने आपको पेश कर रहे हैं

वे खुशी से अपने आपको पेश कर रहे हैं

वे खुशी से अपने आपको पेश कर रहे हैं

‘तेरे लोग खुशी से अपने आप को पेश करेंगे।’ (भजन 110:3, किताब-ए-मुकद्दस) ये शब्द उन 46 विद्यार्थियों के लिए खास मायने रखते हैं, जो वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की 118वीं क्लास में हाज़िर हुए थे। इस स्कूल में विद्यार्थियों को मिशनरी बनने की तालीम दी जाती है ताकि वे विदेश जाकर लोगों को अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करने में मदद दे सकें। इस स्कूल में हाज़िर होने के लिए उन 46 विद्यार्थियों ने खुद को कैसे तैयार किया था? माइक और स्टेसी नाम के दो विद्यार्थी कहते हैं: “हमने फैसला किया था कि हम एक सादगी भरी ज़िंदगी बिताएँगे। इससे हमारा ध्यान दुनियावी बातों की तरफ भटकने के बजाय पूरी तरह आध्यात्मिक बातों पर लगा रहा है। हमने ठान लिया था कि चाहे हम बिज़नेस में कितने ही कामयाब क्यों न हों, मगर हम कभी-भी इसे पहली जगह नहीं देंगे। इसके बजाय, हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य हमेशा पहली जगह पर होंगे।” माइक और स्टेसी की तरह, क्लास के दूसरे विद्यार्थियों ने भी खुशी-खुशी अपने आपको पेश किया है। आज वे सभी राज्य प्रचारकों के नाते, चार अलग-अलग महाद्वीपों में सेवा कर रहे हैं।

उनका ग्रेजुएशन कार्यक्रम मार्च 12, 2005 के शनिवार को हुआ था। यह कार्यक्रम सुनने के लिए 6,843 लोग इकट्ठा हुए। यह साफ नज़र आ रहा था कि उस मौके पर हाज़िर सभी बहुत खुश थे और कार्यक्रम का पूरा आनंद ले रहे थे। कार्यक्रम के सभापति, भाई थियोडोर जारज़ थे जो यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्य हैं। उन्होंने सबसे पहले, 28 देशों से आए मेहमानों का गर्मजोशी से स्वागत किया। इसके बाद, उन्होंने सभी का ध्यान इस बात की तरफ खींचा कि बाइबल की शिक्षा का क्या मोल है। उन्होंने अमरीकी शिक्षक, विलियम लायन फैल्प्स की बात का हवाला दिया: “जिस इंसान को बाइबल का अच्छा ज्ञान है, सिर्फ उसी को सही मायने में पढ़ा-लिखा कहा जा सकता है।” माना कि स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के कई फायदे हैं मगर बाइबल की शिक्षा कई गुना ज़्यादा अनमोल है। इससे लोग परमेश्‍वर के बारे में ज्ञान ले पाते हैं, और इसी से उन्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। (यूहन्‍ना 17:3) भाई जारज़ ने ग्रेजुएट विद्यार्थियों की सराहना की कि उन्होंने दुनिया-भर में चलाए जा रहे बाइबल सिखाने के काम में ज़्यादा हिस्सा लेने के लिए खुद को खुशी-खुशी दे दिया है। यह काम आज, यहोवा के साक्षियों की 98,000 से भी ज़्यादा कलीसियाओं में हो रहा है।

ग्रेजुएट होनेवालों का सही समय पर हौसला बढ़ाया गया

सभापति के बाद, विलियम सैमुएलसन ने इस विषय पर बात की, “आप परमेश्‍वर के भवन में जैतून के हरे-भरे वृक्ष के समान कैसे हो सकते हैं।” यह भजन 52:8 (NHT) से लिया गया था। उन्होंने कहा कि बाइबल में जैतून के पेड़ को फलने-फूलने, खूबसूरती और गरिमा की निशानी बताया गया है। (यिर्मयाह 11:16) विद्यार्थियों की तुलना जैतून पेड़ों से करते हुए वक्‍ता ने कहा: “अगर आप पूरी वफादारी के साथ अपनी मिशनरी सेवा में लगे रहें और राज्य का प्रचार करते रहें, तो परमेश्‍वर की नज़र में आपकी खूबसूरती और गरिमा बढ़ेगी।” जिस तरह सूखे से बचने के लिए जैतून के पेड़ को ज़मीन की गहराई तक अपनी जड़ों को फैलाने की ज़रूरत होती है, उसी तरह मिशनरी सेवा में आनेवाली समस्याओं का सामना करने के लिए विद्यार्थियों को अपनी आध्यात्मिक जड़ों को मज़बूत करने की ज़रूरत है। कुछ समस्याएँ ये हो सकती हैं: प्रचार में विरोध, लोगों की बेरुखी, या फिर दूसरी किस्म की आज़माइशें।—मत्ती 13:21; कुलुस्सियों 2:6, 7.

ग्रेजुएशन कार्यक्रम में हिस्सा लेनेवाले शासी निकाय के दूसरे सदस्य थे, भाई जॉन ई. बार। उनके भाषण का शीर्षक था, “तुम पृथ्वी के नमक हो।” (मत्ती 5:13) उन्होंने कहा कि जिस तरह नमक लगाकर रखने से खाने की चीज़ें खराब नहीं होतीं, उसी तरह जब मिशनरी परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करते हैं तो इससे सुननेवालों की ज़िंदगी नैतिक और आध्यात्मिक रूप से खराब या बरबाद होने से बच जाती है। फिर भाई बार ने एक पिता की तरह ग्रेजुएट विद्यार्थियों को यह नसीहत दी: दूसरों के साथ ‘मेल मिलाप से रहिए।’ (मरकुस 9:50) उन्होंने यह सलाह भी दी: “आत्मा के फल पैदा कीजिए। और हमेशा इस बात का ध्यान रखिए कि आपकी बातें सलोनी और आपका चालचलन अच्छा हो। इनसे दूसरों को ठेस पहुँचाने के बजाय उनके लिए लिहाज़ दिखाइए।”

अगला भाषण, गिलियड के एक शिक्षक भाई वालॆस लिवरंस ने दिया और उनका विषय था, “गहरे पानी में जहाज़ पर ही रहो।” अगर एक जहाज़ गहरे पानी में होगा, तभी वह सही दिशा में जा पाएगा। उसी तरह, ‘परमेश्‍वर की गूढ़ बातों’ की समझ हासिल करने पर ही एक इंसान आध्यात्मिक तरक्की कर पाएगा। (1 कुरिन्थियों 2:10) ये गूढ़ बातें क्या हैं? इस बारे में सच्चाई कि परमेश्‍वर का मकसद क्या है और वह इसे कैसे पूरा करेगा। जिस तरह छिछले पानी में रहने से जहाज़ टस-से-मस नहीं हो पाएगा, उसी तरह “परमेश्‍वर के वचनों की आदि शिक्षा” सीखकर उसी में खुश रहने से हम आगे नहीं बढ़ पाएँगे। और-तो-और, इससे हमारे ‘विश्‍वास रूपी जहाज के डूबने’ का भी खतरा रहेगा। (इब्रानियों 5:12, 13; 1 तीमुथियुस 1:19) आखिर में भाई लिवरंस ने कहा: “हमारी दुआ है कि ‘परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान जो बहुत गहरा है’ आप सभी को अपनी मिशनरी सेवा में लगे रहने में मदद दे।”—रोमियों 11:33, हिन्दुस्तानी बाइबल।

गिलियड के एक और शिक्षक, भाई मार्क नूमार ने इस विषय पर बात की, “क्या आप अपनी विरासत का सही-सही इस्तेमाल करेंगे?” साठ से भी ज़्यादा सालों से वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड ने एक अच्छा नाम कमाया है, साथ ही इसने लोगों का भरोसा जीता है। इसके पीछे किनका हाथ है? उन ग्रेजुएट भाई-बहनों का हाथ है जिन्होंने अच्छी गवाही देकर मानो ‘साक्षी का अंबार’ लगा दिया है। (उत्पत्ति 31:48, NW) यही है गिलियड की विरासत। और अब यह विरासत 118वीं क्लास के विद्यार्थियों को भी दी गयी है। भाई नूमार ने विद्यार्थियों को बढ़ावा दिया कि वे नहेमायाह के दिनों में तकोआ के रहनेवालों की तरह नम्र बनें और जिन कलीसियाओं में उन्हें भेजा जाता है, उन्हें पूरा सहयोग दें। साथ ही, दूसरे मिशनरियों के संग मिलकर काम करें। उन्हें सलाह दी गयी कि वे उन “रईसों” की तरह घमंड न करें जिनके बारे में नहेमायाह ने लिखा था। इसके बजाय, उन्हें नम्रता के साथ काम करने के लिए हरदम तैयार रहना चाहिए और कभी-भी दूसरों की वाह-वाही पाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।—नहेमायाह 3:5.

अनुभव और इंटरव्यू जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिला

कार्यक्रम के अगले भाग का शीर्षक था, “परमेश्‍वर का वचन फैलता गया।” (प्रेरितों 6:7) गिलियड शिक्षक लॉरन्स बवन के निर्देशन में, विद्यार्थियों ने उन अनुभवों का प्रदर्शन दिखाया जो उन्हें स्कूल की ट्रेनिंग के दौरान प्रचार में मिले थे। ये अनुभव दिखाते हैं कि विद्यार्थियों ने पूरे जोश के साथ परमेश्‍वर का वचन सुनाया था और यहोवा ने उनकी मेहनत पर आशीष दी है।

रिचर्ड एश ने बेथेल परिवार के कुछ सदस्यों का इंटरव्यू लिया जो स्कूल से जुड़े कामों में हाथ बँटाते हैं। उनकी बातों से हाज़िर सभी लोग अच्छी तरह समझ पाए कि बेथेल परिवार किस तरह विद्यार्थियों की मदद करता है ताकि वे स्कूल से पूरा-पूरा फायदा उठा सकें। इसके बाद, भाई जैफरी जैकसन ने उन मिशनरियों का इंटरव्यू लिया जो पिछली क्लासों के ग्रेजुएट हैं। उन्होंने बताया कि इस सेवा में मिशनरियों को यहोवा की बड़ाई और आदर करने के ढेरों मौके मिलते हैं। एक ने कहा: “लोग गौर करते हैं कि एक मिशनरी होने के नाते आपके तौर-तरीके कैसे हैं। वे आपकी बातें कान लगाकर सुनते हैं, आपके बर्ताव और कामों को ध्यान से देखते हैं और ये सब याद रखते हैं।” इसलिए विद्यार्थियों को बढ़ावा दिया गया कि वे हर समय अच्छी मिसाल रखने का पूरा-पूरा खयाल रखें। इसमें कोई शक नहीं कि यह बेहतरीन सलाह आनेवाले दिनों में उनके बहुत काम आएगी।

कार्यक्रम का आखिरी भाषण भाई स्टीवन लॆट ने दिया। वे भी शासी निकाय के सदस्य हैं। उनके भाषण का शीर्षक था, “लोगों तक ‘जीवन का जल’ पहुँचाओ।” (यूहन्‍ना 7:38) उन्होंने बताया कि पिछले पाँच महीनों के दौरान विद्यार्थियों ने परमेश्‍वर के वचन, बाइबल का इतना गहरा अध्ययन किया है मानो उन्होंने सच्चाई के जल की एक-एक घूँट पी हो। और इससे उन्हें बहुत फायदे भी हुए हैं। लेकिन इतनी जानकारी लेकर ये नए मिशनरी क्या करेंगे? भाई लॆट ने ग्रेजुएट होनेवालों को उकसाया कि वे आध्यात्मिक जल अपने तक न रखें बल्कि इसे सभी के साथ बाँटे जिससे यह उनमें एक ‘ऐसे झरने का रूप ले, जो उमड़कर उन्हें अनन्त जीवन प्रदान करेगा।’ (यूहन्‍ना 4:14, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) भाई लॆट ने यह भी कहा: “यहोवा को वह आदर और महिमा देना कभी-भी मत भूलिएगा जिसका वह हकदार है। क्योंकि वही ‘बहते [जीवनदायी] जल का सोता’ है। जो लोग बड़े बाबुल से बाहर निकल आए हैं, जहाँ पर आध्यात्मिक सूखा पड़ा है, उन्हें बाइबल से सिखाते वक्‍त सब्र से काम लीजिए।” (यिर्मयाह 2:13) आखिर में भाई लॆट ने ग्रेजुएट भाई-बहनों को बढ़ावा दिया कि वे पूरे जोश और उमंग के साथ आत्मा और दुल्हन के नक्शेकदम पर चलकर यह कहते रहें: “आ; और जो प्यासा हो, वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।”—प्रकाशितवाक्य 22:17.

भाई जारज़ ने कार्यक्रम को खत्म करने से पहले, अलग-अलग देशों से विद्यार्थियों को भेजी गयी बधाइयाँ और शुभकामनाएँ पढ़ीं। इसके बाद, क्लास की तरफ से एक चिट्ठी पढ़ी गयी जिसमें विद्यार्थियों ने गिलियड में पायी तालीम के लिए गहरी कदरदानी ज़ाहिर की।

क्या आप ऐसी जगहों पर सेवा करने के लिए खुद को पेश कर सकते हैं जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है? अगर हाँ, तो आध्यात्मिक लक्ष्य रखिए और उन्हें पाने की पूरी कोशिश कीजिए, ठीक जैसे इन विद्यार्थियों ने किया है। चाहे एक मिशनरी बनकर विदेश में सेवा करना हो या अपनी ही कलीसिया में या उसके आस-पास, यहोवा की सेवा में खुद को दे देने से सच्ची खुशी और सच्चा सुख मिलता है। यह खुशी और सुख आपको भी मिल सकता है!

[पेज 13 पर बक्स]

क्लास के आँकड़े

जितने देशों से विद्यार्थी आए: 8

जितने देशों में भेजे गए: 19

विद्यार्थियों की संख्या: 46

औसत उम्र: 33.0

सच्चाई में बिताए औसत साल: 16.5

पूरे समय की सेवा में बिताए औसत साल: 12.9

[पेज 15 पर तसवीर]

वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की 118वीं क्लास

नीचे दी गयी लिस्ट में, पंक्‍तियों का क्रम आगे से पीछे की ओर है और हर पंक्‍ति में नाम बाएँ से दाएँ दिए गए हैं।

(1) ब्रॉकमायर, ए.; मलोनी, एस.; साइमंड्‌ज़, एन.; लोपेज़, वाइ.; हाउर्ड, सी. (2) जाज़्ड्रेबस्की, टी.; ब्राउन, डी.; हेर्नानडेस, एच.; मालागॉन, आइ.; जोन्स, ए.; कॉनल, एल. (3) हाउर्ड, जे.; लारू, ई.; शैम्स, बी.; हेज़, एस.; ब्राउन, ओ. (4) बरल, जे.; हैमर, एम.; मायर, ए.; किम, के.; स्टैनली, आर.; रेनी, आर. (5) जाज़्ड्रेबस्की, पी.; ज़िलअवेट्‌ज़, के.; फेरस, एस.; टॉरेस, बी.; टॉरेस, एफ. (6) कॉनल, जे.; हेर्नानडेस, आर.; मलोनी, एम.; मालागॉन, जे.; शैम्स, आर.; हेज़, जे. (7) फेरस, ए.; हैमर, जे.; स्टैनली, जी.; किम, सी.; साइमंड्‌ज़, एस.; लोपेज़, डी.; बरल, डी. (8) ब्रॉकमायर, डी.; मायर, जे.; रेनी, एस.; ज़िलअवेट्‌ज़ एस.; जोन्स, आर.; लारू, जे.