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सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार

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सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार

“तुम . . . पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।”प्रेरितों 1:8.

1. बाइबल के शिक्षक होने के नाते हम किस बात का ध्यान रखते हैं, और क्यों?

 एक काबिल शिक्षक वह होता है जो न सिर्फ इस बात का ध्यान रखता है कि वह अपने विद्यार्थियों को क्या सिखाता है, बल्कि अपने सिखाने के तरीके पर भी ध्यान देता है। हम सभी बाइबल की सच्चाई सिखाने का काम करते हैं, इसलिए हम अपने संदेश के साथ-साथ सिखाने के तरीके पर भी ध्यान देते हैं। हमारा संदेश है, परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार। यह संदेश कभी बदलता नहीं, मगर हम हालात के मुताबिक इसे सुनाने के तरीके में फेरबदल करते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को खुशखबरी सुनाना चाहते हैं।

2. जब हम प्रचार करने के तरीके में फेरबदल करते हैं, तो हम किसकी मिसाल पर चल रहे होते हैं?

2 जब हम प्रचार करने के तरीके में बदलाव करते हैं, तो हम प्राचीन समय के सेवकों की मिसाल पर चल रहे होते हैं। जैसे, प्रेरित पौलुस के उदाहरण पर गौर कीजिए। उसने कहा था: “मैं यहूदियों के लिये यहूदी बना . . . व्यवस्थाहीनों के लिये . . . व्यवस्थाहीन सा बना, . . . निर्बलों के लिये निर्बल सा बना कि निर्बलों को खींच लाऊं, मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना हूं, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊं।” (1 कुरिन्थियों 9:19-23) पौलुस ने जब हर इंसान के हालात के मुताबिक अपने सिखाने के तरीके को ढाला तो उसे अच्छे नतीजे मिले। उसी तरह, अगर हम भी हरेक की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर अपना संदेश पेश करें, तो हमें अच्छे नतीजे मिलेंगे।

“पृथ्वी के दूर दूर” तक

3. (क) प्रचार काम में हम किस चुनौती का सामना करते हैं? (ख) आज यशायाह 45:22 कैसे पूरा हो रहा है?

3 सुसमाचार सुनानेवालों के सामने एक चुनौती यह है कि उन्हें एक बहुत बड़े इलाके में संदेश सुनाना है, दरअसल “सारे जगत में।” (मत्ती 24:14) पिछली सदी के दौरान, यहोवा के कई सेवकों ने नए-नए इलाकों में सुसमाचार फैलाने में कड़ी मेहनत की थी। इसका नतीजा क्या था? हमारा प्रचार दुनिया के कोने-कोने तक इतने ज़बरदस्त तरीके से फैला कि हमें हैरानी होती है। बीसवीं सदी की शुरूआत में प्रचार का काम कुछ गिने-चुने देशों में हो रहा था, मगर आज यहोवा के साक्षी 235 देशों में पूरे जोश के साथ काम कर रहे हैं! वाकई, राज्य का सुसमाचार “पृथ्वी के दूर दूर” के इलाकों तक सुनाया जा रहा है।—यशायाह 45:22.

4, 5. (क) सुसमाचार को फैलाने में किन लोगों ने अहम भूमिका अदा की है? (ख) अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में सेवा करनेवालों के बारे में वहाँ के शाखा दफ्तर क्या कहते हैं?

4 ऐसी तरक्की के पीछे क्या कारण हैं? इसके कई कारण हैं। एक तो वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड से तालीम पाए मिशनरियों और हाल के सालों में मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल के 20,000 से ज़्यादा ग्रेजुएट भाइयों का इस तरक्की में बड़ा हाथ रहा है। साथ ही, इसमें दूसरे कई साक्षियों का भी हाथ रहा है जो अपने खर्च पर ऐसे इलाकों में जाकर बस गए हैं जहाँ राज्य के प्रचारकों की सख्त ज़रूरत है। त्याग की भावना दिखानेवाले इन मसीहियों में स्त्री-पुरुष, बूढ़े-जवान, अविवाहित और विवाहित सभी शामिल हैं। ये सभी धरती के कोने-कोने तक राज्य का संदेश फैलाने में एक अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। (भजन 110:3; रोमियों 10:18) इन मसीहियों की सेवा की बहुत कदर की जाती है। गौर कीजिए कि कुछ शाखा दफ्तरों ने उन भाई-बहनों के बारे में क्या लिखा, जो अपने देश छोड़कर इन शाखा दफ्तरों की निगरानी में आनेवाले इलाकों में सेवा कर रहे हैं।

5 “हमारे ये प्यारे भाई-बहन दूर-दराज़ के इलाकों में प्रचार करने, नयी-नयी कलीसियाएँ बनाने और हमारे देश के भाई-बहनों को आध्यात्मिक तरक्की करने में मदद देने में आगे रहते हैं।” (इक्वेडोर) “ये सैकड़ों विदेशी भाई-बहन अगर हमारा देश छोड़कर चले जाएँ, तो यहाँ की कलीसियाओं की मज़बूती पर असर पड़ सकता है। ये विदेशी भाई-बहन हमारे लिए एक आशीष हैं।” (डॉमिनिकन रिपब्लिक) “हमारी बहुत-सी कलीसियाओं में बहनों की तादाद ज़्यादा है। कुछ कलीसियाओं में तो 70 प्रतिशत बहनें ही हैं। (भजन 68:11) इनमें से ज़्यादातर सच्चाई में नयी हैं, मगर जो अविवाहित पायनियर बहनें दूसरे देशों से यहाँ आयी हैं, वे इन नयी बहनों को ट्रेनिंग देकर बढ़िया मदद दे रही हैं। ये विदेशी बहनें हमारे लिए सचमुच एक वरदान हैं!” (एक पूर्वी यूरोपीय देश) क्या आपने भी कभी दूसरे मुल्क में जाकर सेवा करने की सोची है? *प्रेरितों 16:9, 10.

‘भांति भांति की भाषा बोलनेवालों में से दस मनुष्य’

6. जकर्याह 8:23 में यह कैसे बताया गया था कि प्रचार काम में तरह-तरह की भाषाएँ बोलनेवालों को संदेश सुनाने की चुनौती खड़ी होगी?

6 सुसमाचार सुनाने में एक और बड़ी चुनौती यह है कि धरती पर बेहिसाब भाषाएँ बोली जाती हैं। परमेश्‍वर के वचन में यह भविष्यवाणी की गयी थी: “उन दिनों में भांति भांति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से दस मनुष्य, एक यहूदी पुरुष के वस्त्र की छोर को यह कहकर पकड़ लेंगे, कि, हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्‍वर तुम्हारे साथ है।” (जकर्याह 8:23) आज यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है। इसमें बताए दस मनुष्य प्रकाशितवाक्य 7:9 में बतायी बड़ी भीड़ को दर्शाते हैं। मगर गौर कीजिए कि जकर्याह की भविष्यवाणी के मुताबिक वे “दस मनुष्य” न सिर्फ सभी जातियों से बल्कि “भांति भांति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से” आएँगे। क्या हमने भविष्यवाणी की इस खास बात को पूरा होते देखा है? जी हाँ, बिलकुल।

7. कौन-से आँकड़े दिखाते हैं कि आज ‘भांति भांति की भाषा बोलनेवालों’ तक सुसमाचार पहुँचाया जा रहा है?

7 कुछ आँकड़ों पर गौर कीजिए। पचास साल पहले, हमारा साहित्य 90 भाषाओं में प्रकाशित किया जाता था। मगर आज यह गिनती बढ़कर 400 से ज़्यादा हो गयी है। “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने ऐसी भाषाओं में भी साहित्य उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसे बोलनेवाले बहुत कम लोग हैं। (मत्ती 24:45) उदाहरण के लिए, बाइबल साहित्य आज ग्रीनलैंडिक (जिसे 47,000 लोग बोलते हैं), पलाऊअन (जिसे 15,000 लोग बोलते हैं) और यापी (जिसे 7,000 से कम लोग बोलते हैं) भाषाओं में भी उपलब्ध है।

‘एक बड़ा द्वार’ जो बहुत-से मौके देता है

8, 9. किस बदलाव ने हमारे लिए ‘एक बड़ा द्वार’ खोल दिया है, और इस वजह से हज़ारों साक्षियों ने क्या कदम उठाया है?

8 लेकिन आजकल हमें दूसरी भाषाएँ बोलनेवालों को सुसमाचार सुनाने के लिए विदेश जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। पिछले कुछ सालों के दौरान कई अमीर देशों में, लाखों परदेशियों और शरणार्थियों के आने से अलग-अलग भाषाएँ बोलनेवालों के ढेरों समुदाय उभर आए हैं। मिसाल के लिए, फ्रांस के पैरिस में करीब 100 भाषाएँ बोली जाती हैं। कैनडा के टोरोन्टो में 125 और इंग्लैंड के लंदन में 300 से ज़्यादा विदेशी भाषाएँ बोली जाती हैं! इस तरह अब बहुत-सी कलीसियाओं के इलाके में विदेशी लोग आ बसे हैं। इससे प्रचारकों के लिए ‘एक बड़ा द्वार’ खुल गया है, जो सभी जातियों के लोगों को खुशखबरी सुनाने के नए मौके देता है।—1 कुरिन्थियों 16:9.

9 इस बदलाव को देखते हुए आज हज़ारों साक्षी दूसरी भाषा सीखने की ज़हमत उठा रहे हैं। कई साक्षियों को नयी भाषा सीखने के लिए बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है, लेकिन बदले में उन्हें अपनी मेहनत का फल भी मिलता है। उन्हें परदेशियों और शरणार्थियों को परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई सिखाने से बड़ी खुशी हासिल होती है। हाल के एक साल में, पश्‍चिम यूरोप के एक देश में ज़िला अधिवेशनों में जितने लोगों ने बपतिस्मा लिया, उनमें से करीब 40 प्रतिशत लोग दूसरे मुल्क से थे।

10. सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार बुकलेट का आपने कैसे इस्तेमाल किया है? (पेज 26 पर दिया बक्स, “सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार बुकलेट की खासियतें” देखिए।)

10 यह सच है कि हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए विदेशी भाषा सीखना मुमकिन नहीं है। फिर भी, हाल ही में रिलीज़ की गयी बुकलेट सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार का अच्छा इस्तेमाल करने से हम विदेशी लोगों को प्रचार कर सकते हैं। * इस बुकलेट में बहुत-सी भाषाओं में बाइबल का संदेश खूबसूरत ढंग से पेश किया गया है। (यूहन्‍ना 4:37) क्या आप प्रचार में इस बुकलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं?

लोग जब नहीं सुनते

11. कुछ इलाकों में और कौन-सी चुनौती खड़ी हो रही है?

11 जैसे-जैसे दुनिया पर शैतान का दबदबा बढ़ता जा रहा है, हमारे सामने एक और चुनौती बार-बार खड़ी होती है। वह यह कि कुछ इलाकों में बहुत कम लोग हमारे संदेश पर ध्यान देते हैं। हमें इससे कोई हैरानी नहीं होती, क्योंकि यीशु ने भविष्यवाणी में बताया था कि ऐसा ही होगा। हमारे दिनों के बारे में उसने कहा था: “अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।” (मत्ती 24:12) आज बहुत-से लोगों के दिल में पहले की तरह परमेश्‍वर पर विश्‍वास और बाइबल के लिए आदर नहीं रहा। (2 पतरस 3:3, 4) नतीजा यह है कि दुनिया के कुछ हिस्सों में पहले के मुकाबले बहुत कम लोग मसीह के चेले बनते हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उन इलाकों में हमारे प्यारे भाई-बहन प्रचार में जो मेहनत करते हैं, वह बेकार है। (इब्रानियों 6:10) यह हम कैसे कह सकते हैं? आगे गौर कीजिए।

12. हमारे प्रचार काम के कौन-से दो मकसद हैं?

12 मत्ती की सुसमाचार की किताब दिखाती है कि हमारे प्रचार काम के दो खास मकसद हैं। एक यह कि हम “सब जातियों के लोगों को चेला” बनाते हैं। (मत्ती 28:19) दूसरा यह कि राज्य संदेश लोगों के लिए एक “गवाही” का काम करता है। (मत्ती 24:14) ये दोनों ही ज़रूरी मकसद हैं, मगर दूसरा मकसद खास तौर पर अहमियत रखता है। वह कैसे?

13, 14. (क) मसीह की उपस्थिति के चिन्ह का एक खास पहलू क्या है? (ख) जिन इलाकों में हमारे संदेश पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है, खासकर वहाँ प्रचार करते वक्‍त हमें क्या याद रखना चाहिए?

13 बाइबल के एक लेखक मत्ती ने लिखा कि प्रेरितों ने यीशु से यह सवाल पूछा था: “तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती 24:3) जवाब में यीशु ने एक चिन्ह बताया था। और उसने कहा कि इस चिन्ह का एक खास पहलू यह है कि पूरी दुनिया में प्रचार का काम किया जाएगा। क्या यीशु चेले बनाने के बारे में बात कर रहा था? नहीं। उसने कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो।” (मत्ती 24:14) इस तरह यीशु ने दिखाया कि राज्य का प्रचार काम ही उस चिन्ह का एक खास पहलू होगा।

14 इसलिए जब हम राज्य की खुशखबरी सुनाते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि भले ही हम चेले बनाने में हमेशा कामयाब न हों, मगर हम “गवाही” देने में ज़रूर कामयाब होते हैं। लोग चाहे सुनें या न सुनें, मगर वे इतना ज़रूर जानते हैं कि हम क्या काम कर रहे हैं। इस तरह हम यीशु की भविष्यवाणी को पूरा कर रहे हैं। (यशायाह 52:7; प्रकाशितवाक्य 14:6, 7) पश्‍चिमी यूरोप के एक जवान साक्षी जॉर्डी ने कहा: “मुझे इस बात से बहुत खुशी मिलती है कि मत्ती 24:14 को पूरा करने में यहोवा मुझे भी इस्तेमाल कर रहा है।” (2 कुरिन्थियों 2:15-17) ज़रूर आप भी ऐसा ही महसूस करते होंगे।

जब हमारे संदेश का विरोध किया जाता है

15. (क) यीशु ने अपने चेलों को किस बारे में आगाह किया था? (ख) हम विरोध के बावजूद प्रचार काम कैसे कर पाते हैं?

15 प्रचार काम में आनेवाली एक और चुनौती यह है कि इसका विरोध किया जाता है। यीशु ने अपने चेलों को आगाह किया था: “मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे।” (मत्ती 24:9) शुरूआती मसीहियों की तरह, आज भी यीशु के चेलों को नफरत, विरोध और ज़ुल्म का सामना करना पड़ता है। (प्रेरितों 5:17, 18, 40; 2 तीमुथियुस 3:12; प्रकाशितवाक्य 12:12, 17) आज कुछ देशों में सरकार ने उनके काम पर पाबंदी लगा दी है। मगर ऐसे देशों में भी सच्चे मसीही प्रचार करना जारी रखते हैं, क्योंकि वे सबसे बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा मानना चाहते हैं। (आमोस 3:8; प्रेरितों 5:29; 1 पतरस 2:21) ये साक्षी और दुनिया-भर में रहनेवाले बाकी सभी साक्षी, मुश्‍किलों के बावजूद प्रचार काम कैसे कर पाते हैं? यहोवा अपनी पवित्र आत्मा देकर उन्हें मज़बूत करता है।—जकर्याह 4:6; इफिसियों 3:16; 2 तीमुथियुस 4:17.

16. यीशु ने कैसे दिखाया कि प्रचार काम और परमेश्‍वर की आत्मा के बीच गहरा ताल्लुक है?

16 यीशु ने यह साफ दिखाया कि परमेश्‍वर की आत्मा और प्रचार काम के बीच गहरा ताल्लुक है। उसने कहा: “जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे; और . . . पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” (प्रेरितों 1:8; प्रकाशितवाक्य 22:17) इस आयत में घटनाओं का जो सिलसिला बताया गया है, वह बहुत अहमियत रखता है। चेलों को पहले पवित्र आत्मा मिली, फिर इसके बाद उन्होंने सारी धरती पर गवाही देने का काम शुरू किया। सिर्फ परमेश्‍वर की आत्मा से ही उन्हें ऐसी ताकत मिली जिससे वे ‘सब जातियों को गवाही’ देने का काम करते रहे। (मत्ती 24:13, 14; यशायाह 61:1, 2) इसलिए यह कितना सही है कि यीशु ने पवित्र आत्मा को “सहायक” कहा। (यूहन्‍ना 15:26) उसने बताया कि परमेश्‍वर की आत्मा उसके चेलों को सिखाएगी और सही राह दिखाएगी।—यूहन्‍ना 14:16, 26; 16:13.

17. जब हमारा कड़ाई से विरोध किया जाता है, तब पवित्र आत्मा कैसे हमारी मदद करती है?

17 आज जब प्रचार काम में हमारा कड़ाई से विरोध किया जाता है, तब परमेश्‍वर की आत्मा कैसे हमारी मदद करती है? परमेश्‍वर की आत्मा हमें मज़बूत करती है, और हमें सतानेवालों का विरोध करती है। इसे समझने के लिए राजा शाऊल की ज़िंदगी में हुई एक घटना पर गौर कीजिए।

परमेश्‍वर की आत्मा ने विरोध किया

18. (क) शाऊल कैसे एक बुरा इंसान बन गया? (ख) शाऊल ने दाऊद को सताने के लिए कौन-सी तरकीबें अपनायीं?

18 शाऊल जब इस्राएल का पहला राजा बना, तो शुरू में उसने यहोवा की आज्ञा मानी। मगर बाद में वह उसके खिलाफ जाने लगा। (1 शमूएल 10:1, 24; 11:14, 15; 15:17-23) नतीजा यह हुआ कि शाऊल को परमेश्‍वर की आत्मा से मदद मिलना बंद हो गया। शाऊल, दाऊद से जलने लगा, क्योंकि दाऊद को इस्राएल का अगला राजा होने के लिए अभिषिक्‍त किया गया था और परमेश्‍वर की आत्मा उसकी मदद कर रही थी। (1 शमूएल 16:1, 13, 14) शाऊल इतनी नफरत से भर गया कि उसने दाऊद को मार डालने की कोशिश की। उसे लगा कि दाऊद का काम तमाम करना बाएँ हाथ का खेल है, क्योंकि दाऊद के हाथ में सिर्फ एक वीणा होती थी, जबकि उसके पास एक भाला। इसलिए एक दिन जब दाऊद वीणा बजा रहा था, तो “शाऊल ने यह सोचकर, कि मैं ऐसा मारूंगा कि भाला दाऊद को बेधकर भीत में धंस जाए, भाले को चलाया, परन्तु दाऊद उसके साम्हने से दो बार हट गया।” (1 शमूएल 18:10, 11) इसके बाद, शाऊल ने अपने बेटे और दाऊद के दोस्त योनातान की बात मानकर यह कसम खायी: “यहोवा के जीवन की शपथ, दाऊद मार डाला न जाएगा।” लेकिन बाद में शाऊल ने दोबारा ‘भाले से दाऊद को मारने’ की कोशिश की। तब दाऊद “शाऊल के साम्हने से ऐसा हट गया कि भाला जाकर भीत ही में धंस गया।” इसके बाद दाऊद वहाँ से भाग गया, मगर शाऊल उसका पीछा करने लगा। उसी घड़ी से परमेश्‍वर की आत्मा शाऊल का विरोध करने लगी। कैसे?—1 शमूएल 19:6, 10.

19. परमेश्‍वर की आत्मा ने दाऊद की हिफाज़त कैसे की?

19 दाऊद जब भागकर शमूएल नबी के पास चला गया, तो शाऊल ने दाऊद को पकड़कर लाने के लिए अपने आदमी वहाँ भेजे। लेकिन जब ये आदमी उस जगह पर आए जहाँ दाऊद छिपा था, तो “परमेश्‍वर का आत्मा उन पर चढ़ा, और वे भी नबूवत करने लगे।” परमेश्‍वर की आत्मा ने उन पर इतना गहरा असर किया कि वे एकदम भूल गए कि वहाँ क्यों आए थे। शाऊल ने दाऊद को लाने के लिए फिर से दो बार अपने आदमी भेजे, मगर हर बार यही हुआ। आखिर में राजा शाऊल खुद दाऊद के पास गया, मगर वह भी परमेश्‍वर की आत्मा के ज़बरदस्त असर का मुकाबला नहीं कर पाया। दरअसल पवित्र आत्मा ने शाऊल पर ऐसा असर किया कि वह एक पूरा “दिन और [एक पूरी] रात” हिल नहीं सका। इससे दाऊद को भाग निकलने के लिए काफी वक्‍त मिल गया।—1 शमूएल 19:20-24.

20. शाऊल ने जिस तरह दाऊद को सताया, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

20 शाऊल और दाऊद का किस्सा हमें यह सीख देकर मज़बूत करता है: जब पवित्र आत्मा, परमेश्‍वर के सेवकों को सतानेवालों का विरोध करती है, तब वे कामयाब नहीं होते। (भजन 46:11; 125:2) यहोवा का यह मकसद था कि दाऊद इस्राएल का राजा बने। और इस मकसद को कोई बदल नहीं सका। हमारे दिनों के बारे में यहोवा ने तय किया है कि ‘राज्य का सुसमाचार प्रचार किया जाएगा।’ इस काम को भी कोई रोक नहीं सकता।—प्रेरितों 5:40, 42.

21. (क) आज हमारे कुछ विरोधी कैसी तरकीबें अपनाते हैं? (ख) हमें किस बात का पूरा भरोसा है?

21 कुछ धर्म-गुरू और नेता हमारे काम को रोकने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं, यहाँ तक कि हमारे साथ मार-पीट करते हैं। लेकिन जैसे यहोवा ने आध्यात्मिक मायने में दाऊद की हिफाज़त की थी, उसी तरह आज वह अपने लोगों की हिफाज़त करेगा। (मलाकी 3:6) इसलिए दाऊद की तरह हम पूरे भरोसे के साथ कह सकते हैं: “मैं ने परमेश्‍वर पर भरोसा रखा है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?” (भजन 56:11; 121:1-8; रोमियों 8:31) तो आइए हम यहोवा की मदद से, आनेवाली सभी चुनौतियों का सामना करते रहें और उसकी आज्ञा मानकर राज्य का सुसमाचार सब जातियों के लोगों को सुनाएँ।

[फुटनोट]

^ पेज 22 पर दिया बक्स, “दिल की गहराइयों तक खुशी” देखिए।

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

क्या आपको याद है?

• हम प्रचार करने के तरीके में क्यों फेरबदल करते हैं?

• ‘एक बड़े द्वार’ के खुलने से कौन-से नए मौके सामने आए हैं?

• जिन इलाकों में सुननेवाले बहुत कम हैं, वहाँ भी प्रचार करने से हम कौन-सा मकसद पूरा करते हैं?

• सुसमाचार के प्रचार काम को कोई भी विरोधी क्यों रोक नहीं सकता?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 22 पर बक्स]

दिल की गहराइयों तक खुशी

“एक परिवार साथ मिलकर यहोवा की सेवा करने का पूरा आनंद ले रहा है।” यह बात स्पेन के एक परिवार के बारे में कही गयी है जो बोलिविया जाकर बस गया। इस परिवार का एक लड़का पहले बोलिविया में एक समूह की मदद करने वहाँ गया था। वहाँ पर उसे सेवा में जो खुशी मिली, वह देखकर उसके माँ-बाप पर इतना गहरा असर हुआ कि कुछ समय बाद उनका पूरा परिवार वहाँ जा बसा और सेवा करने लगा। उनके परिवार में चार लड़के हैं जिनकी उम्र 14 से 25 के बीच है। तीन लड़के अब पायनियर सेवा कर रहे हैं, और जो लड़का शुरू में बोलिविया गया था, वह हाल ही में मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल में हाज़िर हुआ था।

कैनडा की एक बहन, ऐन्जेलिका 30 साल की है। वह पूर्वी यूरोप में सेवा करने के लिए वहाँ जा बसी। उसका कहना है: “वैसे मुश्‍किलें तो बहुत हैं, मगर प्रचार में लोगों की मदद करने से मुझे गहरी खुशी मिलती है। इसके अलावा, यहाँ के साक्षी जिस तरह मेरे लिए अपनी कदरदानी ज़ाहिर करते हैं, वह भी मेरे दिल को छू जाता है। ये भाई-बहन अकसर मुझे इस बात के लिए धन्यवाद देते हैं कि मैं अपना देश छोड़कर उनकी मदद करने आयी हूँ।”

अमरीका की रहनेवाली दो सगी बहनें, जिनकी उम्र 27-30 के बीच है, डॉमिनिकन रिपब्लिक में सेवा कर रही हैं। उनका कहना है: “हमें यहाँ के ढेरों रस्मो-रिवाज़ सीखने पड़े। फिर भी हम अपनी सेवा में लगी रहीं। आज हमारे सात बाइबल विद्यार्थी सभाओं में आ रहे हैं।” एक ऐसे कस्बे में जहाँ कोई कलीसिया नहीं है, वहाँ प्रचारकों का एक समूह तैयार होने में इन बहनों का काफी हाथ रहा।

लॉरा नाम की एक बहन, जिसकी उम्र 27-30 के बीच है, वह चार साल से विदेश में सेवा कर रही है। वह कहती है: “मैंने जानबूझकर अपनी ज़िंदगी को सादा रखा है। इससे प्रचारकों को यह बात समझने में मदद मिलती है कि हम चाहे तो सादगी भरा जीवन जीने का चुनाव कर सकते हैं और इसके लिए हमें दुरुस्त मन से काम लेना होगा। ज़रूरी नहीं कि गरीबी से मजबूर होकर ही कोई सादगी भरी ज़िंदगी जीए। दूसरों की, और खासकर जवानों की मदद करने से मुझे गहरी खुशी मिलती है। इसलिए मैं विदेश में सेवा करते वक्‍त आनेवाली बड़ी-बड़ी मुश्‍किलों का सामना कर पाती हूँ। मुझे यहाँ सेवा करने का जो मौका मिला है, मैं किसी भी चीज़ के साथ उसका सौदा नहीं करना चाहूँगी। और जब तक यहोवा चाहे तब तक मैं यहीं रहकर सेवा करूँगी।”

[पेज 26 पर बक्स/तसवीर]

सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार बुकलेट की खासियतें

सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार बुकलेट में एक पेज का संदेश दिया गया है। कुछ देशों में, इस बुकलेट के संस्करणों में यह संदेश 92 भाषाओं में दिया गया है। यह संदेश उत्तम पुरुष में लिखा गया है। इसलिए जब घर-मालिक संदेश पढ़ेगा, तो ऐसा लगेगा मानो आप खुद उससे बात कर रहे हों।

इस बुकलेट की प्रस्तावना बताती है कि दूसरी भाषा बोलनेवालों को अपना संदेश असरदार तरीके से सुनाने के लिए हमें क्या-क्या कदम उठाने चाहिए। इनके बारे में ध्यान से पढ़िए और हरेक बात पर अमल करने की पूरी-पूरी कोशिश कीजिए।

इस बुकलेट की विषय-सूची में न सिर्फ भाषाओं के नाम, बल्कि इनके चिन्ह भी दिए हैं। इसकी मदद से आप अलग-अलग भाषाओं के ट्रैक्ट और दूसरे साहित्य को भी पहचान सकेंगे जिनमें उन भाषाओं के चिन्ह दिए हैं।

[तसवीर]

क्या आप प्रचार में इस बुकलेट का इस्तेमाल करते हैं?

[पेज 23 पर तसवीरें]

हमारे बाइबल साहित्य अब 400 से ज़्यादा भाषाओं में उपलब्ध हैं

घाना

लैप्लैंड (स्वीडन)

फिलीपींस

[पेज 24, 25 पर तसवीरें]

क्या आप ऐसी जगह जाकर सेवा कर सकते हैं, जहाँ राज्य प्रचारकों की सख्त ज़रूरत है?

इक्वेडोर

डॉमिनिकन रिपब्लिक