सच्ची शिक्षाएँ—आप कहाँ पा सकते हैं?
सच्ची शिक्षाएँ—आप कहाँ पा सकते हैं?
तिब्बत में एक आदमी गोलाकार डिब्बा जैसा एक प्रार्थना-चक्र घुमाता है। वह मानता है कि जितनी बार वह चक्र घुमाएगा, उसके अंदर लिखी प्रार्थनाएँ उतनी ही बार दोहरायी जाएँगी। अब भारत देश में चलते हैं, वहाँ एक बड़े-से घर में पूजा-प्रार्थना के लिए अलग से एक छोटा कमरा बनाया गया है। वहाँ रखी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और उन्हें धूप, फूल, और दूसरी चीज़ें चढ़ायी जाती हैं। भारत से हज़ारों किलोमीटर दूर इटली में एक स्त्री अपने हाथ में रोज़री लिए, एक बड़े-से आलीशान गिरजाघर के अंदर मरियम यानी यीशु की माता की मूरत के सामने घुटने टेककर प्रार्थना कर रही है।
शायद आपने भी गौर किया होगा कि लोग धर्म को कितना मानते हैं। दुनिया के धर्म—ज़िंदा विश्वासों को समझना (अँग्रेज़ी) नाम की किताब कहती है: “शुरू से ही धर्म ने . . . दुनिया के हर समाज में एक अहम भूमिका अदा की थी और आज भी कर रहा है।” और लेखक जॉन बोकर अपनी किताब परमेश्वर—संक्षिप्त इतिहास (अँग्रेज़ी) में कहता है: “आज तक दुनिया में ऐसा कोई समाज नहीं रहा, जहाँ के लोगों को परमेश्वर पर आस्था न रही हो। लोग मानते आए हैं कि परमेश्वर ने ही दुनिया बनायी है और उसकी मरज़ी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। ऐसा उन देशों के लोग भी मानते हैं जहाँ नास्तिकवाद को बढ़ावा दिया जाता है या जहाँ धर्म को राजनीति से अलग रखने की पूरी कोशिश की जाती है।”
जी हाँ, धर्म ने करोड़ों लोगों की ज़िंदगी पर गहरा असर डाला है। क्या इससे यह अच्छी तरह साबित नहीं हो जाता कि इंसान में पैदाइशी एक आध्यात्मिक ज़रूरत है और उसके अंदर आध्यात्मिक बातें जानने की ललक होती है? जाने-माने मनोवैज्ञानिक कार्ल जी. जुंग ने अपनी किताब छिपा स्वभाव (अँग्रेज़ी) में कहा कि इंसान में यह एहसास बना रहता है कि उसे एक महान शक्ति की उपासना करनी चाहिए। उसने यह भी कहा कि इस बात का सबूत “पूरे इतिहास में देखा जा सकता है।”
मगर दुनिया के ज़्यादातर लोगों को परमेश्वर पर कोई आस्था नहीं है, ना ही उन्हें धर्म में कोई दिलचस्पी है। कुछ लोग परमेश्वर
के वजूद पर शक करते हैं, तो कुछ कहते हैं कि परमेश्वर है ही नहीं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वे जिन धर्मों के बारे में जानकारी रखते हैं, उन धर्मों ने उनकी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी नहीं की है। धर्म की यह परिभाषा दी जाती है: “किसी सिद्धांत के लिए गहरा लगाव; पूरी वफादारी; कर्त्तव्य का सख्ती से पालन; भक्ति से भरा स्नेह।” इस परिभाषा के हिसाब से देखा जाए तो तकरीबन सभी लोग, और यहाँ तक कि नास्तिक भी किसी-न-किसी तरह धर्म को मानते हैं, क्योंकि उनकी ज़िंदगी के भी कुछ सिद्धांत या उसूल होते हैं जिनका वे पालन करते हैं।पिछले हज़ारों सालों के दौरान, इंसान ने अपनी आध्यात्मिक भूख मिटाने की कोशिश में उपासना के अलग-अलग तरीके अपनाएँ हैं। नतीजा यह है कि आज दुनिया में बेहिसाब किस्म की धार्मिक धारणाएँ पायी जाती हैं। मिसाल के लिए, लगभग हर धर्म सिखाता है कि इंसान से बढ़कर एक शक्ति है जो दुनिया को चलाती है, मगर वह शक्ति असल में कौन है या क्या है, इस बारे में उनकी धारणाएँ एक-दूसरे से अलग हैं। कई धर्म यह भी सिखाते हैं कि इंसान को उद्धार या मोक्ष पाने की ज़रूरत है। मगर यह उद्धार असल में क्या है और कैसे पाया जाता है, इस बारे में उनकी शिक्षाएँ एक-दूसरे से बिलकुल अलग हैं। अब सवाल यह है कि दुनिया में जब ढेरों किस्म की शिक्षाएँ हैं, तो हम कैसे पता लगा सकते हैं कि इनमें से कौन-सी शिक्षाएँ सही और परमेश्वर को मंज़ूर हैं?