यहोवा ने ‘आपके सिर के बाल भी गिन रखे हैं’
यहोवा ने ‘आपके सिर के बाल भी गिन रखे हैं’
‘तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना एक भी गौरैया भूमि पर नहीं गिरती। तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं।’—मत्ती 10:29, 30.
1, 2. (क) अय्यूब को ऐसा क्यों लगा कि परमेश्वर ने उसे छोड़ दिया है? (ख) क्या अय्यूब की बात का यह मतलब है कि वह परमेश्वर के खिलाफ हो गया था? समझाइए।
“मैं तुझ से फरियाद करता हूँ, और तू मुझे जवाब नहीं देता; मैं खड़ा होता हूँ, और तू मुझे घूरने लगता है। तू बदलकर मुझ पर बेरहम हो गया है: अपने बाज़ू के ज़ोर से तू मुझे सताता है।” यह बात एक ऐसे आदमी ने कही थी जो बुरी तरह मायूस हो गया था! और क्यों न हो? आखिर, उसके जीने का सहारा लुट गया था, एक भयंकर हादसे में उसके सभी बच्चे मारे गए थे और अब वह एक घिनौनी बीमारी से तड़प रहा था। इस आदमी का नाम था, अय्यूब। उसे कैसी बड़ी-बड़ी परीक्षाओं से गुज़रना पड़ा था, इसका पूरा ब्यौरा बाइबल में दिया गया है ताकि उसके बारे में पढ़कर हम फायदा पा सकें।—अय्यूब 30:20, 21, किताब-ए-मुकद्दस।
2 अय्यूब की बात से ऐसा लग सकता है कि वह परमेश्वर के खिलाफ हो गया था। मगर ऐसा नहीं था। अय्यूब बस अपने मन का गुबार निकाल रहा था। (अय्यूब 6:2, 3) वह नहीं जानता था कि उसकी सारी तकलीफों के लिए असल में शैतान ज़िम्मेदार था, इसलिए वह इस गलतफहमी में पड़ गया कि परमेश्वर ने उसे छोड़ दिया है। एक बार तो उसने यहोवा से कहा था: “तू किस कारण अपना मुंह फेर लेता है, और मुझे अपना शत्रु गिनता है?” *—अय्यूब 13:24.
3. जब हम पर मुसीबतें टूट पड़ती हैं, तो हम शायद क्या सोचें?
3 आज यहोवा के लोगों में से कइयों को एक-के-बाद-एक कई तकलीफें सहनी पड़ती हैं। युद्ध, राजनीति में होनेवाली उथल-पुथल, कुदरती आफतें, बुढ़ापा, बीमारी, घोर तंगहाली और सरकारी पाबंदियों की वजह से उनकी ज़िंदगी गमों के भँवर में फँस गयी है। शायद आप भी किसी-न-किसी तकलीफ से गुज़र रहे होंगे। ऐसे में कभी-कभी आपको लग सकता है कि यहोवा ने आपसे मुँह फेर लिया है। आपको अच्छी तरह पता है कि यूहन्ना 3:16 क्या कहता है: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया।” फिर भी, जब चारों तरफ से दुःख के काले बादल आपको आ घेरते हैं, और कोई रास्ता नहीं सूझता, तो शायद आपका मन कहे: ‘क्या परमेश्वर वाकई मुझसे प्यार करता है? क्या वह देख रहा है कि मुझ पर क्या बीत रही है? दुनिया के लाखों-करोड़ों लोगों की भीड़ में से क्या वह मुझे याद रखता है?’
4. पौलुस को ज़िंदगी-भर किस हालात से गुज़रना पड़ा, और जब हम ऐसे हालात में होते हैं तो हमें क्या लग सकता है?
4 याद कीजिए कि प्रेरित पौलुस के साथ क्या हुआ था। उसने लिखा: “मेरे शरीर में एक कांटा चुभाया गया अर्थात् शैतान का एक दूत कि मुझे घूसे मारे।” उसने यह भी कहा: “मैं ने प्रभु से तीन बार बिनती की, कि मुझ से यह दूर हो जाए।” यहोवा ने उसकी बिनतियाँ सुनीं। मगर उसने पौलुस से कहा कि वह कोई चमत्कार करके उसकी तकलीफ दूर नहीं करेगा। इसके बजाय, परमेश्वर उसे शक्ति देता जिससे वह अपने ‘शरीर के कांटे’ को झेल सके। * (2 कुरिन्थियों 12:7-9) पौलुस की तरह, शायद आप भी काफी समय से किसी मुश्किल से गुज़र रहे हैं। शायद आप सोचते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि यहोवा मेरी तकलीफ दूर करने के लिए कुछ कर रहा है। न जाने, वह मेरी हालत के बारे में जानता भी है या नहीं, या अगर जानता है तो भी शायद उसे मेरी कोई परवाह नहीं।’ मगर यह बात सरासर गलत है! यहोवा अपने हर वफादार सेवक की सच्चे दिल से फिक्र करता है। यह बात यीशु ने अपने प्रेरितों को चुनने के कुछ ही समय बाद ज़ोर देकर बतायी थी। आइए देखें कि उसके शब्दों से आज हमें क्या हौसला मिल सकता है।
“डरो नहीं”—क्यों?
5, 6. (क) यीशु ने भविष्य में आनेवाली मुसीबतों का सामना करने के लिए प्रेरितों को कैसे मज़बूत किया? (ख) पौलुस ने इस बात पर भरोसा कैसे दिखाया कि यहोवा उसकी परवाह करता है?
5 यीशु ने अपने प्रेरितों को तरह-तरह के चमत्कार करने की शक्ति दी थी। जैसे उनको “अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया, कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें।” लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि प्रेरितों को ज़िंदगी में कोई गम नहीं झेलना पड़ता। इसके बजाय, यीशु ने उन्हें साफ-साफ बताया था कि उन्हें कैसी-कैसी मुसीबतें सहनी पड़ेंगी। फिर भी उसने यह कहकर उन्हें मज़बूत किया: “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उन से मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है।”—मत्ती 10:1, 16-22, 28.
6 प्रेरितों को क्यों डरने की ज़रूरत नहीं थी, यह समझाने के लिए यीशु ने दो दृष्टांत बताए। उसने कहा: “क्या पैसे में दो गौरैये नहीं बिकतीं? तौभी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उन में से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। इसलिये, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।” (मत्ती 10:29-31) गौर कीजिए, यीशु ने कहा कि मुसीबत के वक्त हमें नहीं डरना चाहिए क्योंकि यहोवा हममें से हरेक की फिक्र करता है। ज़ाहिर है कि प्रेरित पौलुस को भी ऐसा भरोसा था। तभी तो उसने लिखा: “यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया: वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्योंकर न देगा?” (रोमियों 8:31, 32) इसलिए आपकी ज़िंदगी में चाहे जो भी समस्या आए, आप भी पूरा भरोसा रख सकते हैं कि जब तक आप उसके वफादार रहेंगे, तब तक वह आपकी देखभाल करता रहेगा। इस बात को और अच्छी तरह समझने के लिए आइए हम ऊपर बतायी यीशु की सलाह की नज़दीकी से जाँच करें।
एक गौरैया की कीमत
7, 8. (क) यीशु के ज़माने में गौरैयों को किस नज़र से देखा जाता था? (ख) मत्ती 10:29 में “गौरैये” के लिए उस यूनानी शब्द का क्यों इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब “छोटी गौरैये” है?
7 यीशु के दृष्टांत इस बात को बहुत अच्छी तरह समझाते हैं कि यहोवा अपने हरेक सेवक का कितना खयाल रखता है। सबसे पहले गौरैयों का दृष्टांत लीजिए। यीशु के ज़माने में गौरैयों का मांस खाया जाता था। मगर आम तौर पर उन्हें फसलों को नुकसान पहुँचानेवाले पक्षियों में गिना जाता था। गौरैयों की तादाद इतनी ज़्यादा थी और वे इतनी सस्ती थीं कि दो गौरैयों की कीमत दो रुपए से भी कम थी। और चार रुपयों में चार नहीं बल्कि पाँच गौरैयाँ मिलती थीं। पाँचवीं तो मुफ्त में दी जाती थी, मानो उसकी कोई कीमत ही न हो!—लूका 12:6.
8 यह भी सोचिए कि यह मामूली-सी चिड़िया कितनी छोटी होती है। दूसरी चिड़ियों के सामने एक बड़ी-सी गौरैया भी बहुत छोटी लगती है। मगर मत्ती 10:29 में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “गौरैये” किया गया है, उसका मतलब खासकर छोटी गौरैया है। शायद यीशु एक ऐसी चिड़िया की तरफ प्रेरितों का ध्यान खींच रहा था जो सबसे छोटी हो।
9. गौरैयों के बारे में यीशु के दृष्टांत से कौन-सा ज़रूरी मुद्दा साबित होता है?
9 गौरैयों के बारे में यीशु के दृष्टांत से यह बेहद ज़रूरी मुद्दा साबित होता है: इंसान की नज़र में जिसकी कोई कीमत नहीं होती, उसे यहोवा परमेश्वर बहुत अनमोल समझता है। इस सच्चाई पर ज़ोर देने के लिए यीशु ने आगे कहा कि एक छोटी-सी गौरैया भी जब ‘भूमि पर गिरती है,’ तो यहोवा उस पर ध्यान देता है। * इससे मिलनेवाला सबक साफ है। अगर यहोवा परमेश्वर इतनी छोटी-सी चिड़िया पर ध्यान देता है जिसे लोग देखते तक नहीं, तो वह एक ऐसे इंसान की तकलीफों के बारे में कितना फिक्र करता होगा जिसने उसकी सेवा करने का फैसला किया है!
10. “तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं,” ये शब्द हमारे लिए क्या मायने रखते हैं?
10 गौरैयों का दृष्टांत बताने के साथ-साथ, यीशु ने यह भी कहा: “तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं।” (मत्ती 10:30) यीशु के इन चंद शब्दों में गहरा अर्थ छिपा है और ये उस मुद्दे को और भी दमदार बनाते हैं जो उसने गौरैयों के दृष्टांत से बताया था। ज़रा गौर कीजिए: हर इंसान के सिर पर औसतन 1,00,000 बाल होते हैं। ज़्यादातर बाल एक-जैसे ही होते हैं और कोई भी बाल इतना खास नहीं होता कि वह गौर करनेलायक हो। फिर भी, यहोवा परमेश्वर हमारे एक-एक बाल पर ध्यान देता और उनकी गिनती रखता है। तो क्या हमारी ज़िंदगी के बारे में ऐसी कोई भी बात होगी जिसकी खबर यहोवा परमेश्वर को न हो? यकीनन, यहोवा परमेश्वर अपने हर सेवक की एक-एक बात जानता है। और-तो-और, वह “हृदय को [भी] देखता है।”—1 शमूएल 16:7, NHT.
11. दाऊद ने कैसे यह भरोसा दिखाया कि यहोवा उसका खयाल रखता है?
11 दाऊद एक ऐसा इंसान था जिसे कदम-कदम पर मुश्किलें झेलनी पड़ी थीं। मगर फिर भी, उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा उसका खयाल रखता है। उसने लिखा: “हे यहोवा, तू ने मुझे जांचकर जान लिया है। तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है।” (भजन 139:1, 2) आप भी पक्का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपको अच्छी तरह जानता है। (यिर्मयाह 17:10) यह मत समझ बैठिए कि आप इतने छोटे हैं कि यहोवा की पारखी नज़रें आपको देख नहीं सकतीं!
“तू मेरे आंसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले!”
12. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा को अपने लोगों की तकलीफों के बारे में अच्छी तरह पता है?
12 यहोवा न सिर्फ अपने हर सेवक की शख्सियत के बारे में जानता है, बल्कि उसे यह भी अच्छी तरह पता है कि वह कैसी मुश्किलों से गुज़र रहा है। मिसाल के लिए, जब इस्राएली मिस्र में गुलाम थे और उन पर अत्याचार किए जा रहे थे, तब यहोवा ने मूसा से कहा: “मैं ने अपनी प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं उनके दुःख को निश्चय देखा है, और उनकी जो चिल्लाहट परिश्रम करानेवालों के कारण होती है उसको भी मैं ने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है।” (निर्गमन 3:7) यह जानकर हमें कितनी राहत मिलती है कि जब हम तकलीफ में होते हैं, तब यहोवा हमारी हालत देख रहा होता है और मदद के लिए हमारी पुकार सुन रहा होता है! बेशक, वह हमारी तकलीफों को अनदेखा नहीं करता।
13. क्या दिखाता है कि यहोवा वाकई अपने सेवकों का दर्द महसूस करता है?
13 इस्राएलियों के बारे में यहोवा ने जो महसूस किया, वह भी यह दिखाता है कि यहोवा उन लोगों का खास ध्यान रखता है जिनका उसके साथ एक रिश्ता है। हालाँकि इस्राएली कई बार अपने ढीठ स्वभाव की वजह से मुसीबत मोल लेते थे, फिर भी यशायाह लिखता है: “उनके सारे संकट में उस [यहोवा] ने भी कष्ट उठाया।” (यशायाह 63:9) यहोवा ने जब ढीठ इस्राएलियों के बारे में ऐसा महसूस किया, तो यहोवा का एक वफादार सेवक होने के नाते आप पूरा यकीन रख सकते हैं कि आपको दर्द से तड़पता देखकर यहोवा का दिल भी तड़प उठता है। क्या यह बात आपको हर मुश्किल का मुकाबला करने और उसकी सेवा में अपना भरसक करते रहने की हिम्मत नहीं देती?—1 पतरस 5:6, 7.
14. दाऊद ने भजन 56 की रचना किन हालात में की थी?
14 भजन 56 दिखाता है कि राजा दाऊद को पूरा भरोसा था कि यहोवा उसकी देखभाल करता है और उसका दर्द समझता है। यह भजन उसने तब लिखा था जब वह राजा शाऊल से जान बचाकर भाग रहा था। दाऊद, शाऊल से बचने के लिए गत नाम की जगह भाग गया, मगर वहाँ जब पलिश्तियों ने उसे पहचान लिया तो वह डर गया कि वे उसे पकड़ लेंगे। उसने लिखा: “मेरे द्रोही दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं, क्योंकि जो लोग अभिमान करके मुझ से लड़ते हैं वे बहुत हैं।” ऐसे खतरनाक हालात में दाऊद ने यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना की। उसने कहा: “वे दिन भर मेरे वचनों को, उलटा अर्थ लगा लगाकर मरोड़ते रहते हैं; उनकी सारी कल्पनाएं मेरी ही बुराई करने की होती हैं।”—भजन 56:2, 5.
15. (क) जब दाऊद ने कहा कि यहोवा उसके आँसुओं को एक कुप्पी में रखे या एक पुस्तक में दर्ज़ कर दे, तो उसका क्या मतलब था? (ख) जब हमारे विश्वास की आज़माइश होती है, तो हम क्या भरोसा रख सकते हैं?
15 ऐसा कहने के बाद दाऊद ने भजन 56:8 में दर्ज़ यह दिलचस्प बात कही: “तू मेरे मारे मारे फिरने का हिसाब रखता है; तू मेरे आंसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले! क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है?” यहोवा की कोमल परवाह का उसने क्या ही खूबसूरत शब्दों में बखान किया है! जब हमारे लिए दुःख सहना मुश्किल हो जाता है, तो शायद हम आँसू बहा-बहाकर यहोवा को पुकारें। यहाँ तक कि सिद्ध इंसान यीशु ने भी ऐसा किया था। (इब्रानियों 5:7) दाऊद को कोई शक नहीं था कि यहोवा उसकी हालत देख रहा है, और वह उसकी पीड़ा याद रखेगा, मानो उसने दाऊद के आँसुओं को एक कुप्पी में बंद कर रखा हो या उसकी दर्द भरी दास्तान किसी किताब में दर्ज़ कर दी हो। * आप भी शायद ऐसा ही महसूस करते हों कि आप इतने आँसू बहा रहे हैं कि उन्हें एक कुप्पी में भरा जा सकता है या एक किताब के कई पन्नों में दर्ज़ किया जा सकता है। अगर आप ऐसी नाज़ुक हालत में हैं, तो ढाढ़स बाँधिए। बाइबल हमें भरोसा दिलाती है: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।”—भजन 34:18.
परमेश्वर का एक करीबी मित्र बनना
16, 17. (क) हम कैसे जानते हैं कि यहोवा अपने लोगों के दुःख-दर्द का खयाल रखता है? (ख) यहोवा ने क्या किया है जिससे लोग उसके साथ करीबी रिश्ते का आनंद उठा सकें?
16 हमारे परमेश्वर यहोवा ने, जिसकी उपासना करने का हमें सम्मान मिला है, ‘हमारे सिर के बाल तक गिन रखे’ हैं। यह दिखाता है कि वह हमारे हालात से पूरी तरह वाकिफ है और हममें बहुत दिलचस्पी रखता है। माना कि हमें ज़िंदगी की हर तकलीफ और हर गम से पूरी तरह छुटकारा पाने के लिए नयी दुनिया का इंतज़ार करना होगा, मगर आज भी यहोवा अपने लोगों की खातिर एक बढ़िया काम कर रहा है। इस बारे में दाऊद ने लिखा: “यहोवा के साथ करीबी रिश्ता सिर्फ वे ही बना सकते हैं, जो उसका भय मानते हैं, और वह अपनी वाचा भी उन पर प्रगट करता है।”—भजन 25:14, NW.
17 “यहोवा के साथ करीबी रिश्ता।” असिद्ध इंसानों के लिए इतना बड़ा सम्मान कि यकीन करना भी मुश्किल लगता है! मगर यह ज़रूर मुमकिन है। दरअसल जो यहोवा का भय मानते हैं, उन्हें वह खुद न्यौता देता है कि वे उसके तंबू में मेहमान बनकर रहें। (भजन 15:1-5) और यहोवा अपने मेहमानों की खातिर क्या करता है? जैसे दाऊद ने कहा था, वह अपनी वाचा के बारे में उन्हें बताता है। वह कोई भी बात उनसे छिपाए नहीं रखता बल्कि अपने नबियों के ज़रिए उन पर अपना “मर्म” प्रकट करता है ताकि वे जान सकें कि उसके क्या-क्या मकसद हैं और इन मकसदों के मुताबिक जीने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए।—आमोस 3:7.
18. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा चाहता है कि हम उसके साथ करीबी रिश्ता कायम करें?
18 वाकई, यह जानकर मन को कितना चैन मिलता है कि हम असिद्ध इंसान भी विश्व के सबसे महान सम्राट, यहोवा परमेश्वर के मित्र बन सकते हैं। सच तो यह है कि वह हमसे गुज़ारिश करता है कि हम उससे मित्रता करें। बाइबल कहती है: “परमेश्वर के करीब आओ, और वह तुम्हारे करीब आएगा।” (याकूब 4:8, NW) यहोवा की इच्छा है कि हम उसके साथ नज़दीकी रिश्ता कायम करें। दरअसल, उसने पहले से ऐसे कदम उठाए हैं ताकि हम यह रिश्ता कायम कर सकें। उसने यीशु के छुड़ौती बलिदान का इंतज़ाम किया है जिसकी बदौलत हमारे लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के मित्र बनना मुमकिन हुआ है। बाइबल कहती है: “हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।”—1 यूहन्ना 4:19.
19. धीरज धरने से यहोवा के साथ हमारा रिश्ता कैसे मज़बूत हो सकता है?
19 जब हम मुसीबतों के वक्त धीरज धरते हैं, तो यहोवा और हमारे बीच का करीबी रिश्ता और भी मज़बूत होता है। शिष्य याकूब ने लिखा था: “धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।” (याकूब 1:4) हमारे दुःख झेलने से कौन-सा “काम” पूरा होता है? ज़रा पौलुस के ‘शरीर के कांटे’ को याद कीजिए। उसके धीरज धरने से क्या हासिल हुआ था? पौलुस ने अपनी आज़माइशों के बारे में यह कहा: “मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर छाया करती रहे। इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।” (2 कुरिन्थियों 12:9, 10) पौलुस ने अपने तजुरबे से जाना कि जब वह तकलीफ में होता है तो यहोवा उसे सहने की ताकत देता है, ज़रूरत पड़े तो “असीम सामर्थ” भी देता है। इसका नतीजा यह था कि उसने मसीह और यहोवा परमेश्वर के और भी करीब महसूस किया।—2 कुरिन्थियों 4:7; फिलिप्पियों 4:11-13.
20. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि मुश्किलों के दौर में यहोवा हमारी मदद करेगा और हमें सांत्वना देगा?
20 हो सकता है, यहोवा ने काफी समय से आप पर तकलीफें आने दी हैं। फिर भी हिम्मत मत हारिए। जो यहोवा का भय मानते हैं, उनसे वह वादा करता है: “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।” (इब्रानियों 13:5) आप भी यहोवा से ऐसी मदद और सांत्वना पा सकते हैं। यहोवा ने ‘आपके सिर के बाल भी सब गिन रखे हैं।’ वह देख रहा है कि मुश्किलों के वक्त आप धीरज धर रहे हैं। वह आपका दर्द महसूस करता है, और सच्चे दिल से आपकी परवाह करता है। और वह ‘उस प्रेम को कभी नहीं भूलेगा जो आपने उसके नाम के लिये दिखाया है।’—इब्रानियों 6:10.
[फुटनोट]
^ पौलुस के ‘शरीर का कांटा’ क्या था, यह बाइबल साफ-साफ नहीं बताती। यह शायद उसकी कमज़ोर नज़र या कोई और बीमारी थी। या फिर ‘शरीर के कांटे’ का मतलब वे झूठे प्रेरित और दूसरे लोग हो सकते हैं, जिन्होंने पौलुस के प्रेरित होने के अधिकार पर और उसकी सेवा पर उँगली उठायी थी।—2 कुरिन्थियों 11:6, 13-15; गलतियों 4:15; 6:11.
^ कुछ विद्वानों का कहना है कि गौरैया के ज़मीन पर गिरने का मतलब सिर्फ उसकी मौत नहीं है। वे कहते हैं कि मूल भाषा में यहाँ इस्तेमाल किए गए शब्दों का मतलब, दाने की तलाश में ज़मीन पर आना भी हो सकता है। अगर उन शब्दों का यही मतलब है, तो यह आयत दिखाती है कि परमेश्वर न सिर्फ गौरैया की मौत पर, बल्कि दिन-भर में वह जो-जो करती है, उसका पल-पल ध्यान रखता और उसका पालन-पोषण करता है।—मत्ती 6:26.
^ पुराने ज़माने में कुप्पियाँ भेड़, बकरी और गाय-बैल की खाल से बनायी जाती थीं। इन पात्रों में दूध, मक्खन, पनीर या पानी रखा जाता था। अगर खाल को अच्छी तरह रंगा जाए तो उससे बनायी जानेवाली कुप्पियों में तेल या दाखरस भी रखा जा सकता था।
क्या आपको याद है?
• किन हालात में एक इंसान को ऐसा लग सकता है कि परमेश्वर ने उसे छोड़ दिया है?
• गौरैयों के बारे में और हमारे सिर के बाल गिनने के बारे में यीशु के दृष्टांतों से हम क्या सबक सीखते हैं?
• इसका मतलब क्या है कि यहोवा एक इंसान के आँसुओं को अपनी “कुप्पी” में रखता या अपनी “पुस्तक” में दर्ज़ करता है?
• हम “यहोवा के साथ करीबी रिश्ता” कैसे कायम कर सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 22 पर तसवीर]
यहोवा ने पौलुस के ‘शरीर का कांटा’ क्यों नहीं निकाला?
[पेज 23 पर तसवीर]
गौरैयों के बारे में यीशु के दृष्टांत से हम क्या सीख सकते हैं?
[चित्र का श्रेय]
© J. Heidecker/VIREO
[पेज 25 पर तसवीर]
रोज़ाना बाइबल पढ़ने से हमें यह भरोसा होगा कि यहोवा हमारी एक-एक ज़रूरत का खयाल रखता है