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बाइबल की सच्चाई की तलाश में मेननाइट

बाइबल की सच्चाई की तलाश में मेननाइट

बाइबल की सच्चाई की तलाश में मेननाइट

सन्‌ 2000 में नवंबर की एक सुबह की बात है। बॉलिविया में, कुछ लोग एक घर के दरवाज़े पर आ खड़े हुए। इस छोटे-से घर में यहोवा के साक्षियों के कुछ मिशनरी रहते थे। जब मिशनरियों ने खिड़की से बाहर झाँका, तो देखा कि एक समूह के कुछ स्त्री-पुरुष सादे कपड़े पहने हुए दरवाज़े पर खड़े थे और थोड़े घबराए हुए नज़र आ रहे थे। जैसे ही मिशनरियों ने दरवाज़ा खोला, वे बोले: “हम बाइबल से सच्चाई जानना चाहते हैं।” ये मेहमान मेननाइट थे। मेननाइट पुरुष ओवरऑल और स्त्रियाँ गहरे रंग के एप्रन पहनी हुई थीं। वे आपस में जर्मनी की एक बोली में बात कर रहे थे। उनकी आँखों में डर समाया हुआ था। वे बार-बार पीछे मुड़कर देख रहे थे कि कहीं कोई उनका पीछा तो नहीं कर रहा। ऐसे में भी, घर के अंदर घुसते वक्‍त उनमें से एक जवान ने कहा: “मैं ऐसे लोगों को जानना चाहता हूँ, जो परमेश्‍वर का नाम इस्तेमाल करते हैं।”

जब मिशनरियों ने मेहमानों को चाय-नाश्‍ता परोसा, तब उनको थोड़ा चैन आया। वे दूर-दराज़ की किसानों की एक बस्ती से आए थे। उन्हें पिछले छः साल से डाक के ज़रिए प्रहरीदुर्ग पत्रिका मिल रही थी। उन्होंने कहा: “हमने पढ़ा है कि यह धरती एक फिरदौस में बदल जाएगी। क्या यह सच है?” साक्षियों ने उन्हें बाइबल से जवाब दिया। (यशायाह 11:9; लूका 23:43; 2 पतरस 3:7, 13; प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) फिर एक किसान ने दूसरों से कहा: “देखा! मैंने कहा था ना यह सच है। यह धरती एक दिन ज़रूर फिरदौस में बदल जाएगी।” इस पर दूसरों ने कहा: “मुझे लगता है कि हमें सच्चाई मिल गयी है।”

आखिर ये मेननाइट कौन हैं? उनके विश्‍वास क्या हैं? इन सवालों का जवाब पाने के लिए हमें 16वीं सदी में जाना होगा।

मेननाइट लोग कौन हैं?

सन्‌ 1500 की सदी में, यूरोप की आम भाषाओं में बाइबल का अनुवाद करने और छापने का चलन तेज़ी से बढ़ने लगा। इससे लोगों में बाइबल का अध्ययन करने की दिलचस्पी जाग उठी। इसी दौरान मार्टिन लूथर और दूसरे धर्म-सुधारकों ने कैथोलिक चर्च की बहुत-सी शिक्षाओं को ठुकरा दिया और प्रोटेस्टैंट धर्म की शुरूआत की। मगर प्रोटेस्टैंट चर्च में भी लोग ऐसे कई काम करते रहे जो बाइबल के हिसाब से सही नहीं हैं। जैसे, नए जन्मे बच्चे को चर्च में बपतिस्मा दिया जाता था। लेकिन, जो लोग सच्चाई जानने के इरादे से बाइबल का अध्ययन कर रहे थे, उन्हें एहसास हुआ कि एक इंसान मसीही कलीसिया का सदस्य तभी बन सकता है जब वह पहले बाइबल का ज्ञान ले और फिर उस ज्ञान की बिना पर बपतिस्मा लेने का फैसला करे। (मत्ती 28:19, 20) जोशीले प्रचारक जो यह मानते थे, वे नगर-नगर और गाँव-गाँव जाकर, बालिग लोगों को बाइबल सिखाने और उन्हें बपतिस्मा देने लगे। इसी से उनका नाम ‘ऐनाबैपटिस्ट’ पड़ा। ऐनाबैपटिस्ट का मतलब है, “दोबारा बपतिस्मा देनेवाले।”

एक शख्स जो सच्चाई की तलाश में ऐनाबैपटिस्ट लोगों की मदद ले रहा था, वह था मेनो साइमन्स। वह उत्तरी नेदरलैंड्‌स के एक गाँव, विटमार्सम में कैथोलिक पादरी था। सन्‌ 1536 में उसने चर्च के साथ पूरी तरह नाता तोड़ लिया। इसके बाद से चर्च के अधिकारी हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गए। यहाँ तक कि सन्‌ 1542 में पवित्र रोमी साम्राज्य के सम्राट, चार्ल्स पंचम ने खुद यह ऐलान किया कि जो मेनो को पकड़वाएगा, उसे 100 गिलडर (डच मुद्रा) इनाम में दिए जाएँगे। इन मुश्‍किलों के बावजूद मेनो, ऐनाबैपटिस्ट के कुछ लोगों को इकट्ठा करके उनकी कलीसियाएँ बनाने में कामयाब रहा। कुछ ही समय में, वह और उसके चेले मेननाइट कहलाए जाने लगे।

आज के ज़माने के मेननाइट

वक्‍त के गुज़रते, पश्‍चिम यूरोप में रहनेवाले हज़ारों मेननाइट लोगों को ज़ुल्म की वजह से मजबूरन उत्तर अमरीका जाना पड़ा। वहाँ उन्हें सच्चाई की तलाश करते रहने और अपना संदेश और भी कई लोगों तक फैलाने का मौका मिला। लेकिन सिलसिलेवार तरीके से बाइबल का अध्ययन करने और लोगों को प्रचार करने का जो जोश उनके बापदादों में था, वह काफी हद तक इस नयी पीढ़ी के लोगों में नहीं था। ज़्यादातर तो कुछ ऐसी शिक्षाओं को मानते रहे जो बाइबल में नहीं हैं, जैसे त्रिएक, अमर आत्मा और नरक की आग। (सभोपदेशक 9:5; मरकुस 12:29) आजकल मेननाइट मिशनरी, सुसमाचार का प्रचार करने से ज़्यादा, इलाज और समाज-सेवा से जुड़े कामों में लगे हुए हैं।

अंदाज़ा लगाया गया है कि आज, करीब 13,00,000 मेननाइट लोग 65 देशों में रह रहे हैं। फिर भी, सदियों पहले जिस तरह मेनो साइमन्स अपने लोगों में एकता की कमी पर अफसोस करता था उसी तरह, आज के मेननाइट भी करते हैं। उनके बीच सबसे बड़ी फूट पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान पड़ी, जब दुनिया की लड़ाइयों के बारे में उनका मत अलग-अलग था। उत्तर अमरीका में रहनेवाले बहुत-से मेननाइट लोगों ने बाइबल से जो सीखा था उसकी वजह से सेना में भर्ती होने से इनकार कर दिया था। दूसरी तरफ, मेननाइट इतिहास का परिचय (अँग्रेज़ी) किताब कहती है: “सन्‌ 1914 के आते-आते, पश्‍चिम यूरोप के मेननाइट चर्चों के लिए सेना में भर्ती न होने की बात, बीते कल की बात बन गयी थी।” आज के कुछ मेननाइट समूहों ने काफी हद तक या फिर थोड़ा-बहुत नए ज़माने के तौर-तरीके अपना लिए हैं। दूसरी तरफ, कुछ ऐसे भी लोग हैं जो आज भी अपने कपड़ों पर बटन लगाने के बजाय हुक का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही, वे मानते हैं कि मर्दों को अपनी दाढ़ी नहीं मुँड़वानी चाहिए।

कुछ मेननाइट समूहों ने ठान लिया कि वे नए ज़माने से कोई नाता नहीं रखेंगे। इसलिए उनका पूरा समुदाय ऐसे इलाकों में जा बसा जहाँ की सरकार ने उन्हें बिना किसी दखलअंदाज़ी के रहने की इजाज़त दी है। मिसाल के लिए, अनुमान लगाया गया है कि बॉलिविया में 38,000 मेननाइट दूर-दराज़ के इलाके में बहुत-सी बस्तियाँ बनाकर रहते हैं। हर बस्ती के अपने कायदे-कानून हैं। जैसे कुछ बस्तियों में मोटर-गाड़ियाँ चलाना मना है, उनमें सिर्फ घोड़े और बग्घियाँ जा सकते हैं। दूसरी बस्तियों में रेडियो, टी.वी. और संगीत सुनने की इजाज़त नहीं है। कुछ बस्तियाँ ऐसी भी हैं जहाँ देश की भाषा सीखने की सख्त मनाही है। बस्ती में रहनेवाले एक आदमी ने कहा: “प्रचारक हमें स्पैनिश भाषा इसलिए नहीं सीखने देते क्योंकि वे हमें अपनी मुट्ठी में बंद रखना चाहते हैं।” बहुत-से लोगों को लगता है कि उनके साथ कुछ ज़्यादा ही सख्ती बरती जा रही है। वे हमेशा इस खौफ में जीते हैं कि उन्हें बिरादरी से बेदखल कर दिया जाएगा। उनके लिए इससे भयानक सज़ा कुछ और नहीं हो सकती, खासकर इसलिए कि उन्होंने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखी है।

सच्चाई का बीज कैसे पड़ा

इसी तरह के माहौल में जी रहे एक मेननाइट किसान ने अपने पड़ोसी के घर पर प्रहरीदुर्ग पत्रिका की एक कॉपी देखी। उस किसान का नाम था, योहान। योहान का परिवार पहले कैनडा से मेक्सिको और फिर वहाँ से बॉलिविया आकर बस गया था। योहान शुरू से चाहता था कि बाइबल से सच्चाई की तलाश करने में कोई उसकी मदद करे। इसलिए जब उसकी नज़र प्रहरीदुर्ग पत्रिका पर पड़ी, तो उसने अपने पड़ोसी से वह पत्रिका पढ़ने के लिए माँगी।

बाद में, जब योहान अपने खेत की पैदावार बेचने के लिए शहर गया, तो उसने बाज़ार में एक साक्षी को प्रहरीदुर्ग पत्रिका बाँटते देखा। उस साक्षी स्त्री ने इशारा करके उसे एक मिशनरी से बात करने को कहा जिसे जर्मन भाषा आती थी। फिर देखते-ही-देखते योहान को डाक के ज़रिए जर्मन भाषा में प्रहरीदुर्ग पत्रिका मिलने लगी। वह हर अंक का बहुत ध्यान से अध्ययन करता और फिर बस्ती में एक-के-बाद-एक सभी परिवार इसे तब तक पढ़ते जब तक कि यह फटकर पुरानी नहीं हो जाती थी। कभी-कभार कुछ परिवार एक-साथ जमा होते और आधी रात तक प्रहरीदुर्ग पत्रिका का अध्ययन करते और बाइबल के हवालों को खोलकर पढ़ते थे। योहान को पक्का यकीन हो गया था कि यहोवा के साक्षी ही वे लोग हैं जो एकता में रहकर सारी दुनिया में परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी कर रहे हैं। अपनी मौत से पहले उसने अपनी पत्नी और बच्चों से कहा: “प्रहरीदुर्ग पत्रिका पढ़ना कभी मत छोड़ना। इसकी मदद से तुम बाइबल को समझ पाओगे।”

योहान के कुछ घरवाले, बाइबल से सीखी बातें अपने पड़ोसियों को बताने लगे। वे कहते थे: “यह धरती कभी नाश नहीं होगी। इसके बजाय, परमेश्‍वर इसे एक खूबसूरत फिरदौस में बदल देगा। और परमेश्‍वर लोगों को नरक की आग में नहीं तड़पाता।” इस बात की खबर चर्च के प्रचारकों के कान तक पहुँचने में देर नहीं लगी। उन्होंने योहान के परिवार को धमकाया कि अगर वे ये बातें फैलाना बंद नहीं करेंगे, तो उन्हें बिरादरी से निकाल दिया जाएगा। इसके बाद, योहान के परिवार की एक बैठक हुई जिसमें उन्होंने मेननाइट पादरियों से आनेवाले दबाव के बारे में चर्चा की। इस बैठक में एक जवान बोल उठा: “मुझे समझ नहीं आता कि हम अपने चर्च के अगुवों के बारे में क्यों बात कर रहे हैं। हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि सच्चा धर्म कौन-सा है, फिर भी हम हाथ-पर-हाथ धरे बैठे हैं और कुछ नहीं कर रहे।” यह बात जवान के पिता के दिल को बेध गयी। कुछ ही समय बाद, परिवार के दस सदस्य चुपचाप यहोवा के साक्षियों की तलाश में निकल पड़े और जैसे लेख की शुरूआत में बताया गया है, वे मिशनरियों के घर आ पहुँचे।

अगले दिन मिशनरी अपने नए दोस्तों से मिलने उनकी बस्ती गए। रास्ते पर सिर्फ उन्हीं की गाड़ी थी, आस-पास एक भी गाड़ी नज़र नहीं आ रही थी। जब उनकी गाड़ी धीरे-धीरे बग्घियों से आगे निकल रही थी, तो मिशनरी वहाँ के लोगों को देखकर ताज्जुब कर रहे थे और लोग उन्हें देखकर। कुछ ही समय बाद, मिशनरी एक मेज़ पर, दो मेननाइट परिवारों के दस सदस्यों के साथ बैठे थे।

उस दिन ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है * किताब के पहले अध्याय का अध्ययन करने में चार घंटे लगे। हर पैराग्राफ पर चर्चा करते वक्‍त किसान, बाइबल की दूसरी आयतें भी पढ़ रहे थे जो किताब में नहीं थीं। वे जानना चाहते थे कि बाइबल की आयतों को वे सही तरह से समझ रहे हैं या नहीं। अध्ययन के दौरान, मिशनरियों को हर सवाल पूछने के बाद कई मिनट तक रुकना पड़ता था। क्योंकि किसान पहले आपस में लो जर्मन बोली में बात करते और फिर उनमें से एक स्पैनिश भाषा में समूह की तरफ से जवाब देता था। यह एक यादगार दिन था। लेकिन साथ ही मुसीबत के आसार भी नज़र आ रहे थे। बहुत जल्द उनकी आज़माइश होनेवाली थी, ठीक जैसे पाँच सदियों पहले बाइबल सच्चाई की तलाश शुरू करने पर मेनो साइमन्स को सताया गया था।

सच्चाई की खातिर आज़माइशों से गुज़रना

कुछ दिन बाद, चर्च के अगुवे योहान परिवार के घर आए और बाइबल की सच्चाई में दिलचस्पी लेनेवालों को धमकाते हुए उन्होंने कहा: “हमें खबर मिली है कि यहोवा के साक्षी तुमसे मिलने आए थे। उनसे कह देना कि वे दोबारा यहाँ न आएँ और तुम्हारे पास उनकी जो भी किताबें हैं वह सब हमें जलाने के लिए दे दो, वरना हम तुम्हें बिरादरी से बेदखल कर देंगे।” योहान परिवार के सदस्यों ने सिर्फ एक ही बार साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन किया था, इसलिए उनके लिए यह फैसला करना आसान नहीं था।

परिवार के एक मुखिया ने कहा: “हम आपकी बात नहीं मान सकते। वे लोग तो हमें बाइबल सिखाने आए थे।” इस पर चर्च के अगुवों ने क्या किया? उन्होंने बाइबल का अध्ययन करने की वजह से उन्हें बिरादरी से अलग कर दिया! उन्होंने कितनी बेदर्दी से उन बेचारों पर वार किया। बस्ती के पनीर बनानेवाले कारखाने की गाड़ी उस परिवार के घर के सामने से गुज़र गयी, उनका दूध तक नहीं लिया। इससे परिवार की रोज़ी-रोटी कमाने का सहारा छिन गया। बाल-बच्चोंवाले एक आदमी को नौकरी से बरखास्त कर दिया गया। एक और आदमी जब सामान खरीदने गया, तो दुकानदारों ने उसे भगा दिया और उसकी दस साल की बेटी को स्कूल से निकाल दिया गया। यहाँ तक कि कुछ पड़ोसियों ने एक घर को घेर लिया और उसमें रहनेवाले एक जवान की बीवी को उसके घर से ले जाने की कोशिश की, क्योंकि उनका मानना था कि वह अपने पति के साथ नहीं रह सकती जिसे बिरादरी से निकाल दिया गया है। इन सारे ज़ुल्मों के बावजूद जो परिवार बाइबल का अध्ययन कर रहे थे, उन्होंने सच्चाई की तलाश जारी रखी।

मिशनरी हर हफ्ते इतनी दूरी तय करके बाइबल का अध्ययन चलाते रहे। इन अध्ययनों से उन परिवारों का विश्‍वास मज़बूत होता गया! परिवार के कुछ सदस्य तो घोड़े और घोड़े-गाड़ी से दो घंटे का सफर तय करके अध्ययन के लिए आते थे। जब उन परिवारों ने पहली बार एक मिशनरी को प्रार्थना करने के लिए कहा, तो उस मौके पर हाज़िर सभी लोगों का दिल भर आया। इन बस्तियों में कोई भी मेननाइट ज़ोर से प्रार्थना नहीं करता था, इसलिए यह पहली बार था जब उन्होंने किसी को उनकी खातिर प्रार्थना करते सुना। पुरुषों की आँखों में आँसू थे। और जब मिशनरी अपने साथ टेप रिकॉर्डर लाए, तो आप कल्पना कर सकते हैं कि उनकी आँखें कैसे फटी-की-फटी रह गयी होंगी। उनकी बस्ती में कभी संगीत नहीं बजता था। राज्य संगीत की मधुर धुनें सुनकर उन्हें इतना अच्छा लगा कि उन्होंने हर अध्ययन के बाद राज्य गीत गाने का फैसला किया! फिर भी, सवाल उठता है कि उनकी ज़िंदगी में जो नए हालात पैदा हुए थे, उनमें वे कैसे जीते?

भाइयों की प्यार-भरी बिरादरी पाना

बिरादरी से बेदखल किए जाने के बाद, उन परिवारों ने खुद पनीर बनाना शुरू किया। फिर मिशनरियों ने खरीदार ढूँढ़ने में उनकी मदद की। उत्तर अमरीका का एक भाई लंबे अरसे से सच्चाई में है और वह दक्षिण अमरीका की मेननाइट बस्ती में पला-बड़ा था। उसने जब इन परिवारों की बुरी हालत के बारे में सुना, तो वह खासकर उनकी मदद करना चाहता था। एक हफ्ते के अंदर, वह उनसे मिलने हवाई-जहाज़ से बॉलिविया आया। उसने आध्यात्मिक तरीके से उनका खूब हौसला बढ़ाया। इसके अलावा, उसने परिवारों को अपना एक सामान ढोनेवाला ट्रक खरीदने में मदद दी ताकि वे उस पर सवार होकर राज्य घर में सभाओं के लिए जा सकें, साथ ही अपने फार्म का सामान बाज़ार ले जाकर बेच सकें।

परिवार के एक सदस्य ने कहा: “बिरादरी से अलग किए जाने के बाद, हमारा जीना मुश्‍किल हो गया था। हम उदास चेहरा लिए राज्य घर जाते, मगर जब हम वापस आते तो हमारे चेहरे पर मुस्कान खिली होती थी।” जी हाँ, इलाके के दूसरे साक्षियों ने इस मुसीबत का सामना करने में उनकी काफी मदद की और उनका साथ दिया। कुछ ने जर्मन भाषा सीखी और यूरोप के बहुत-से जर्मन भाषा बोलनेवाले साक्षी बॉलिविया आए ताकि वे जर्मन में मसीही सभाएँ चला सकें। देखते-ही-देखते, 14 मेननाइट लोग दूसरों को राज्य का सुसमाचार सुनाने लगे।

मिशनरियों से मेननाइट लोगों की पहली मुलाकात को एक साल भी नहीं हुआ था कि अक्टूबर 12, 2001 को ऐसे 11 जनों ने दोबारा बपतिस्मा लिया जो पहले ऐनाबैपटिस्ट थे। मगर इस बार उनका बपतिस्मा इस बात की निशानी थी कि उन्होंने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया है। इसके बाद और भी कई लोगों ने बपतिस्मा लिया है। उनमें से एक ने बाद में कहा: “बाइबल से सच्चाई सीखने पर ऐसा लगता है मानो हम गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद हो गए हों।” दूसरे ने कहा: “बहुत-से मेननाइट लोगों की शिकायत है कि उनके बीच प्यार-मुहब्बत नहीं है। मगर यहोवा के साक्षी ऐसे नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे का खयाल रखते हैं। उनके बीच मैं एकदम महफूज़ महसूस करता हूँ।” अगर आप भी बाइबल की सच्चाई को ज़्यादा अच्छी तरह समझना चाहते हैं, तो आपको भी शायद मुश्‍किलों का सामना करना पड़े। लेकिन अगर आप यहोवा से मदद माँगें, साथ ही इन परिवारों की तरह विश्‍वास और हिम्मत दिखाएँ, तो आप भी ज़रूर कामयाब होंगे और आपको सच्ची खुशी मिलेगी।

[फुटनोट]

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 25 पर तसवीर]

जर्मन भाषा में बाइबल साहित्य पाकर बेहद खुश

[पेज 26 पर तसवीर]

हालाँकि हमेशा से संगीत सुनने पर मनाही थी, मगर अब वे हर बाइबल अध्ययन के बाद गाना गाते हैं