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हम अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर चलेंगे

हम अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर चलेंगे

हम अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर चलेंगे

“हम लोग अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।”मीका 4:5.

1. नूह के दिनों में दुनिया की नैतिक हालत कैसी थी, और वह अपने ज़माने के लोगों से कैसे अलग था?

 बाइबल बताती है कि परमेश्‍वर के साथ-साथ चलनेवाले इंसानों में सबसे पहला था, हनोक। और दूसरा था, नूह। बाइबल में दर्ज़ रिकॉर्ड कहता है: “नूह धर्मी पुरुष और अपने समय के लोगों में खरा था, और नूह परमेश्‍वर ही के साथ साथ चलता रहा।” (उत्पत्ति 6:9) नूह के दिनों तक ज़्यादातर इंसान सच्ची उपासना से भटक गए थे। और दगाबाज़ स्वर्गदूतों ने हालात को बद-से-बदतर बना दिया था। वे स्वर्ग से धरती पर आए और उन्होंने स्त्रियों के साथ लैंगिक संबंध रखे जबकि ऐसे विकृत संबंध रखने के लिए वे नहीं बनाए गए थे। फिर उनके बच्चे पैदा हुए जो नफिलीम कहलाए। इस नाम का मतलब है, “शूरवीर” या “सुप्रसिद्ध मनुष्य।” (NHT) कहने की ज़रूरत नहीं कि इन इंसानों की करतूतों की वजह से सारी धरती मार-काट और खून-खराबे से भर गयी। (उत्पत्ति 6:2, 4, 11) मगर ऐसे हालात में भी नूह ने खुद को एक खरा इंसान और ‘धार्मिकता का प्रचारक’ साबित किया। (2 पतरस 2:5, NHT) जब परमेश्‍वर ने नूह को हुक्म दिया कि वह एक जहाज़ बनाए जिससे लोगों की जान बचायी जा सके, तो “जैसी परमेश्‍वर ने उसे आज्ञा दी थी, नूह ने ऐसा ही किया। उसने सबकुछ वैसा ही किया।” (उत्पत्ति 6:22, NHT) वाकई, नूह परमेश्‍वर के साथ-साथ चला था!

2, 3. नूह ने हमारे लिए क्या बढ़िया मिसाल कायम की?

2 पौलुस ने नूह को भी उन गवाहों की सूची में शामिल किया है जिनका विश्‍वास लाजवाब था। उसने लिखा: “विश्‍वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चितौनी पाकर भक्‍ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, और उसके द्वारा उस ने संसार को दोषी ठहराया; और उस धर्म का वारिस हुआ, जो विश्‍वास से होता है।” (इब्रानियों 11:7) विश्‍वास की क्या ही उम्दा मिसाल! नूह को यकीन था कि यहोवा ने जो कहा था वह ज़रूर पूरा होगा, इसलिए उसने अपना सारा समय, ताकत और अपने सभी साधन परमेश्‍वर की आज्ञा पूरी करने में लगा दिए। उसी तरह, आज परमेश्‍वर के ऐसे कई सेवक हैं जो दौलत या नाम-शोहरत कमाने के मौकों को ठुकरा देते हैं और अपना सारा समय, ताकत और साधन यहोवा की आज्ञा को पूरा करने में लगाते हैं। ऐसे लोगों का विश्‍वास वाकई काबिले-तारीफ है! उनका यह विश्‍वास न सिर्फ उनकी बल्कि दूसरों की भी जान बचाएगा।—लूका 16:9; 1 तीमुथियुस 4:16.

3 उस वक्‍त के संसार में नूह और उसके परिवार के लिए विश्‍वास दिखाना ज़रूर मुश्‍किल रहा होगा, ठीक जैसे नूह के परदादा, हनोक के लिए भी यह आसान नहीं था। हनोक के बारे में हमने पिछले लेख में चर्चा की थी। उसके दिनों में सच्चे उपासक बहुत कम थे, और यही हाल नूह के दिनों में भी था। उन दिनों तो सिर्फ आठ जन वफादार साबित हुए और जलप्रलय से बच गए। नूह ने ऐसी दुनिया में धार्मिकता का प्रचार किया था जो हिंसा और बदचलनी से बुरी तरह भर चुकी थी। यही नहीं, दुनिया-भर में आनेवाले जलप्रलय से बचने के लिए उसने अपने परिवार के साथ मिलकर लकड़ी का एक बहुत बड़ा जहाज़ बनाया, इसके बावजूद कि उस वक्‍त तक किसी ने पहले कभी ऐसा कोई जलप्रलय नहीं देखा था। और जब लोगों ने उन्हें यह जहाज़ बनाते देखा, तो उन्हें बड़ा अजीब लगा होगा कि आखिर ये लोग कर क्या रहे हैं?

4. यीशु ने नूह के दिनों के लोगों के किस भारी नुक्स की तरफ ध्यान दिलाया?

4 गौरतलब बात है कि जब यीशु ने नूह के दिनों का ज़िक्र किया तो उसने उस समय की हिंसा, झूठी उपासना या बदचलनी के बारे में बात नहीं की, जो बहुत ही घिनौने काम थे। इसके बजाय, उसने कहा कि उस ज़माने के लोगों में जो भारी नुक्स था, वह था चेतावनी को अनसुना करना। यीशु ने कहा: “जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह शादी होती थी।” लेकिन खाने-पीने, शादी-ब्याह जैसी चीज़ों में आखिर बुराई क्या थी? वे तो बस “आम” ज़िंदगी बिता रहे थे! सच है, मगर एक जलप्रलय आ रहा था और नूह धार्मिकता का प्रचार कर रहा था। लोगों को चाहिए था कि वे नूह के संदेश और उसके चालचलन को एक चेतावनी मानें और खबरदार हो जाएँ। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। ‘जब तक जल-प्रलय आकर उन सब लोगों को बहा न ले गया, उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया।’ (NW)—मत्ती 24:38, 39.

5. नूह और उसके परिवार को किन गुणों की ज़रूरत थी?

5 जब हम उन दिनों के बारे में सोचते हैं, तो समझ पाते हैं कि नूह ने जो किया, वह बहुत ही बुद्धिमानी का काम था। मगर जलप्रलय से पहले के समय में, ज़माने से अलग खड़ा होने में बड़ी हिम्मत की ज़रूरत थी। जहाज़ बनाने और उसे हर किस्म के जानवर से भरने का काम करने के लिए, नूह और उसके परिवार को क्या ही मज़बूत विश्‍वास की ज़रूरत थी। क्या विश्‍वास रखनेवाले उन चंद लोगों के मन में कभी यह बात नहीं आयी कि काश, मैं भी एक “आम” ज़िंदगी जीता और इस तरह लोगों की नज़रों में न आता? चाहे ऐसे खयाल उनके मन में कभी-कभार आएँ भी हों, मगर उनमें से किसी ने ऐसे खयालात को अपने लिए रुकावट बनने नहीं दिया और ना ही वे अपनी खराई से ज़रा भी डगमगाए। नूह और उसके परिवार ने इतने अरसे तक धीरज धरा, जितना इस दुनिया में शायद ही हममें से किसी के लिए ज़रूरी हो। अपने मज़बूत विश्‍वास की वजह से ही नूह जलप्रलय से बच गया। दूसरी तरफ, यहोवा ने उन सबको नाश कर दिया जो “आम” ज़िंदगी बिताने में इतने डूबे हुए थे कि उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया कि वे एक नाज़ुक घड़ी में जी रहे हैं।

एक बार फिर दुनिया, हिंसा की चपेट में

6. जलप्रलय के बाद भी दुनिया की क्या हालत थी?

6 धरती पर जलप्रलय का पानी घट जाने के बाद, इंसान ने एक नए सिरे से ज़िंदगी शुरू की। मगर वह था तो अब भी असिद्ध, और यह हकीकत फिर ज़ाहिर हुई कि “मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्‍न होता है सो बुरा ही होता है।” (उत्पत्ति 8:21) और दुष्टात्माएँ चाहे इंसानों का रूप नहीं धारण कर सकती थीं, फिर भी दुनिया पर अब भी उनका ज़ोर था। इसलिए देखते-ही-देखते दुनिया अधर्मी लोगों से भर गयी और इससे यह साफ ज़ाहिर हो गया कि ‘सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा था।’ जैसे आज है वैसे ही उन दिनों के सच्चे उपासकों को भी “शैतान की युक्‍तियों” से लड़ना पड़ा था।—1 यूहन्‍ना 5:19; इफिसियों 6:11, 12.

7. जलप्रलय के बाद, दुनिया में हिंसा कैसे तेज़ी से बढ़ती गयी?

7 लगभग निम्रोद के ज़माने से, एक बार फिर धरती हिंसा से भर गयी, ठीक जैसे जलप्रलय से पहले थी। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गयी और टेकनॉलजी में तरक्की होने लगी, हिंसा भी बढ़ती गयी। बरसों पहले इंसान लड़ाई में तलवार, भाला, तीर-कमान और रथ इस्तेमाल करते थे। मगर हाल के समय में, उनकी जगह बंदूकों और तोपों ने ले ली। फिर 20वीं सदी के आते-आते, राइफल और दूसरे नए-नए किस्म के आधुनिक हथियार इस्तेमाल होने लगे। पहले विश्‍वयुद्ध में तो इससे भी खतरनाक हथियार देखने को मिले जैसे लड़ाकू विमान, टैंक, पनडुब्बी और ज़हरीली गैसें। इस युद्ध में, इन हथियारों ने लाखों लोगों की जानें लीं। क्या इस तरह हिंसा का अचानक बढ़ जाना कोई नयी बात थी? जी नहीं।

8. प्रकाशितवाक्य 6:1-4 आज कैसे पूरा हो रहा है?

8 सन्‌ 1914 में जब यीशु को परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य का राजा ठहराया गया था, तब से ‘प्रभु का दिन’ शुरू हो गया। (प्रकाशितवाक्य 1:10) प्रकाशितवाक्य किताब में दर्ज़ एक दर्शन में देखा गया कि यीशु, राजा की हैसियत से सफेद घोड़े पर सवार है और जीत हासिल करता हुआ बढ़ता जा रहा है। उसके पीछे दूसरे घुड़सवार भी हैं जो इस धरती पर आनेवाली अलग-अलग विपत्तियों को दर्शाते हैं। उनमें से एक घुड़सवार, लाल रंग के घोड़े पर सवार है और उसे यह अधिकार दिया गया “कि पृथ्वी पर से मेल [या, शांति] उठा ले, ताकि लोग एक दूसरे को बध करें; और उसे एक बड़ी तलवार दी गई।” (प्रकाशितवाक्य 6:1-4) यह घोड़ा और उसका सवार, युद्ध को दर्शाते हैं। उसे दी गयी बड़ी तलवार दिखाती है कि आज के ज़माने के युद्ध और इनमें इस्तेमाल होनेवाले शक्‍तिशाली हथियार इस हद तक तबाही मचा सकते हैं जैसी पहले कभी नहीं हुई। इन हथियारों में परमाणु बम, रॉकेट, साथ ही खतरनाक रासायनिक और जैविक हथियार शामिल हैं। एक परमाणु बम लाखों लोगों को एक पल में मौत की नींद सुला सकता है; रॉकेट इन हथियारों को हज़ारों मील दूर उनके निशाने तक पहुँचा सकते हैं; और रासायनिक और जैविक हथियारों में बड़े पैमाने पर विनाश करने की ताकत है।

हम यहोवा की चेतावनी पर ध्यान देते हैं

9. आज की दुनिया, किस तरह जलप्रलय से पहले की दुनिया जैसी है?

9 नूह के दिनों में यहोवा ने दुनिया को मिटाने का फैसला इसलिए किया था, क्योंकि दुष्ट इंसान और नफिलीम की साझेदारी से हिंसा इतनी बढ़ गयी थी कि सारी हदें पार कर चुकी थी। लेकिन हमारे दिनों के बारे में क्या? क्या आज हिंसा कुछ कम है? नहीं। इसके अलावा, आज के लोग भी नूह के दिनों के लोगों की तरह अपने रोज़मर्रा के कामों में डूबे हुए हैं। वे “आम” ज़िंदगी जीने में इस कदर खोए हुए हैं कि जो चेतावनी दी जा रही है उसे सुनने से इनकार कर रहे हैं। (लूका 17:26, 27) तो क्या इसमें शक की कोई गुंजाइश है कि यहोवा एक बार फिर इंसानों को नाश करेगा? बिलकुल नहीं।

10. (क) बाइबल में दर्ज़ भविष्यवाणियों में बार-बार क्या चेतावनी दी गयी है? (ख) आज कौन-सा रास्ता इख्तियार करने में ही बुद्धिमानी है?

10 जलप्रलय से सैकड़ों साल पहले, हनोक ने भविष्यवाणी की थी कि हमारे दिनों में विनाश ज़रूर होगा। (यहूदा 14, 15) यीशु ने भी आनेवाले “भारी क्लेश” के बारे में बताया था। (मत्ती 24:21) इसके अलावा, दूसरे भविष्यवक्‍ताओं ने भी उस समय के बारे में खबरदार किया था। (यहेजकेल 38:18-23; दानिय्येल 12:1; योएल 2:31, 32) और प्रकाशितवाक्य किताब में खुलकर बताया गया है कि उस आखिरी विनाश में क्या-क्या होगा। (प्रकाशितवाक्य 19:11-21) यहोवा से मिलनेवाली इन चेतावनियों पर हम ध्यान देते हैं और अपने पड़ोसियों को भी ऐसा ही करने में मदद देते हैं। इस तरह हममें से हरेक नूह की मिसाल पर चलता है, और पूरे जोश के साथ धार्मिकता का प्रचार करता है। जी हाँ, हम भी नूह की तरह परमेश्‍वर के साथ-साथ चलते हैं। बेशक, यह ज़रूरी है कि जो कोई ज़िंदगी चाहता है वह परमेश्‍वर के साथ-साथ चलता रहे। लेकिन रोज़ के तनाव और दबावों का सामना करते हुए हम परमेश्‍वर के साथ-साथ लगातार कैसे चल सकते हैं? इसके लिए हमें मज़बूत विश्‍वास पैदा करना होगा कि परमेश्‍वर का मकसद ज़रूर पूरा होगा।—इब्रानियों 11:6.

मुश्‍किल-से-मुश्‍किल समय में भी परमेश्‍वर के साथ-साथ चलते रहिए

11. आज हम पहली सदी के मसीहियों की मिसाल पर कैसे चलते हैं?

11 पहली सदी के अभिषिक्‍त मसीहियों के बारे में कहा गया था कि वे एक “मार्ग” पर चलनेवाले लोग हैं। (प्रेरितों 9:2, NW) उनकी सारी ज़िंदगी और जीने का तरीका यहोवा और यीशु मसीह पर उनके विश्‍वास के मुताबिक था। वे उसी राह पर चलते रहे जिस पर उनका स्वामी यीशु चला था। आज, वफादार मसीही भी ऐसा ही करते हैं।

12. यीशु ने जब चमत्कार से एक भीड़ को खाना खिलाया, तो उसके बाद क्या हुआ?

12 मज़बूत विश्‍वास कितना ज़रूरी है, यह बात हम यीशु की सेवा के दौरान हुई इस घटना से जान सकते हैं। एक मौके पर यीशु ने चमत्कार करके करीब 5,000 पुरुषों की एक भीड़ को खाना खिलाया। इस चमत्कार से लोग दंग भी थे और खुश भी। लेकिन ध्यान दीजिए कि इसके बाद क्या हुआ। हम पढ़ते हैं: “तब जो आश्‍चर्य कर्म उस ने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि वह भविष्यद्वक्‍ता जो जगत में आनेवाला था निश्‍चय यही है। यीशु यह जानकर कि वे मुझे राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।” (यूहन्‍ना 6:10-15) उसी रात वह दूसरी जगह के लिए रवाना हो गया। इस तरह जब यीशु ने राजा बनने से इनकार कर दिया, तो कई लोग ज़रूर निराश हो गए होंगे। आखिर, उन्होंने देखा था कि यीशु में एक अच्छे राजा की काबिलीयतें थीं; वह बुद्धिमान था और उसके पास लोगों की शारीरिक ज़रूरतें पूरी करने की शक्‍ति भी थी। मगर यह यहोवा का ठहराया वक्‍त नहीं था कि यीशु राजा बने। और-तो-और, यीशु का राज्य धरती का नहीं बल्कि स्वर्ग का होना था।

13, 14. बहुत-से लोग कैसा गलत नज़रिया रखते थे, और इससे उनके विश्‍वास की परख कैसे हुई?

13 फिर भी, लोगों ने हार नहीं मानी। वे यीशु को ढूँढ़ने निकल पड़े और जैसे यूहन्‍ना ने लिखा, उन्होंने उसे “झील के पार” पाया। उन्होंने यीशु का पीछा क्यों नहीं छोड़ा जबकि उसने राजा बनने से इनकार कर दिया था? दरअसल, उनमें बहुत-से खुदगर्ज़ और इंसानी नज़रिया रखनेवाले लोग थे, तभी तो वे ज़ोर देकर उस वाकये का हवाला देने लगे, जब मूसा के दिनों में यहोवा ने वीराने में इस्राएलियों को खाना मुहैया कराया था। एक तरह से वे यीशु से कह रहे थे कि ‘आपको भी लगातार हमारे लिए खाने का बंदोबस्त करना चाहिए।’ यीशु ने उनके गलत इरादे को भाँप लिया था, इसलिए उनकी गलत सोच को सुधारने के लिए उन्हें आध्यात्मिक सच्चाइयाँ सिखाने लगा। (यूहन्‍ना 6:17, 24, 25, 30, 31, 35-40) मगर इस पर कुछ लोग यीशु पर कुड़कुड़ाने लगे, खासकर उस वक्‍त जब यीशु ने यह दृष्टांत दिया: “मैं तुम से सच सच कहता हूं जब तक मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लोहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता, और मेरा लोहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिला उठाऊंगा।”—यूहन्‍ना 6:53, 54.

14 यीशु के दृष्टांतों से अकसर लोगों का असली रूप सामने आ जाता था। यह साफ ज़ाहिर हो जाता था कि वे दिल से परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने का इरादा रखते हैं या उनकी ख्वाहिशें कुछ और हैं। इस दृष्टांत का भी लोगों पर यही असर हुआ। यीशु की बात सुनने के बाद लोग भड़क उठे। हम पढ़ते हैं: “उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, कि यह बात नागवार है; इसे कौन सुन सकता है?” यीशु ने आगे उन्हें बताया कि उन्हें उसकी बातों में छिपे आध्यात्मिक अर्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए। उसने कहा: “आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं: जो बातें मैं ने तुम से कही हैं वे आत्मा हैं, और जीवन भी हैं।” फिर भी, बहुत-से लोग उसकी सुनने को राज़ी नहीं हुए और जैसे बाइबल कहती है: “इस पर उसके चेलों में से बहुतेरे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले।”—यूहन्‍ना 6:60, 63, 66.

15. यीशु के कुछ चेलों ने किस तरह सही नज़रिया दिखाया?

15 मगर यीशु के सभी चेलों ने उसका साथ नहीं छोड़ा। यह सच है कि वफादार चेलों को भी यीशु की बात पूरी तरह समझ नहीं आयी थी, फिर भी उन्होंने यीशु पर पूरा-पूरा भरोसा रखा। उन वफादार चेलों में से एक, पतरस ने उनकी भावनाओं को यूँ ज़ाहिर किया: “हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।” (यूहन्‍ना 6:68) इन चेलों ने क्या ही बढ़िया नज़रिया दिखाया! यह हमारे लिए कितनी बेहतरीन मिसाल है!

16. हमारे विश्‍वास की आज़माइश कैसे हो सकती है, और हमें कौन-सा सही नज़रिया पैदा करना चाहिए?

16 शुरू के उन चेलों की तरह आज हमारी भी आज़माइश हो सकती है। शायद हम यह सोचकर निराश हो जाएँ कि यहोवा ने जो वादे किए हैं, वे अभी तक क्यों पूरे नहीं हुए। हमारी किताबों-पत्रिकाओं में बाइबल की आयतों की जो समझ दी जाती है, उसे समझना शायद हमें मुश्‍किल लगे। या किसी भाई या बहन के बर्ताव से हमें ठेस पहुँची हो। ऐसे में क्या यह सही होगा कि हम परमेश्‍वर के साथ चलना छोड़ दें? बिलकुल नहीं। जिन चेलों ने यीशु का साथ छोड़ दिया था, उन्होंने इंसानी नज़रिया दिखाया था। हमें उनकी गलती नहीं दोहरानी चाहिए।

‘हम उनमें से नहीं जो पीछे हट जाएँ’

17. परमेश्‍वर के साथ-साथ चलते रहने में हमारे लिए क्या मदद हाज़िर है?

17 प्रेरित पौलुस ने लिखा था: “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है।” (2 तीमुथियुस 3:16) पवित्रशास्त्र, बाइबल के ज़रिए यहोवा हमसे साफ-साफ कह रहा है: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशायाह 30:21) परमेश्‍वर के वचन में जो लिखा है, उसे मानने से हमें ‘ध्यान से देखने’ में मदद मिलती है कि हम ‘कैसी चाल चल रहे हैं।’ (इफिसियों 5:15) बाइबल का अध्ययन करने और सीखी बातों पर मनन करने से हम ‘सत्य पर चलते’ रह सकेंगे। (3 यूहन्‍ना 3) वाकई, यीशु की यह बात कितनी सच है कि “आत्मा तो जीवनदायक है, [लेकिन] शरीर से कुछ लाभ नहीं।” सिर्फ परमेश्‍वर का मार्गदर्शन ही हमारे कदमों को सही राह दिखा सकता है, और यह मार्गदर्शन हमें उसके वचन, उसकी आत्मा और उसके संगठन के ज़रिए मिलता है।

18. (क) कुछ लोग कैसी मूर्खता का काम करते हैं? (ख) हम किस तरह का विश्‍वास रखनेवालों में हैं?

18 आज कुछ लोग इसलिए कुड़कुड़ाने लगते हैं क्योंकि उन्होंने इंसानी नज़रिया अपना लिया है या उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं। ऐसे लोग अकसर इस दुनिया का ज़्यादा-से-ज़्यादा मज़ा लूटने में लग जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि हम एक नाज़ुक दौर में जी रहे हैं, इसलिए ‘जागते रहने’ की ज़रूरत महसूस नहीं करते, और राज्य के कामों को पहली जगह देने के बजाय अपना स्वार्थ पूरा करने में लग जाते हैं। (मत्ती 24:42) ऐसा करना सबसे बड़ी मूर्खता का काम है। प्रेरित पौलुस के इन शब्दों पर गौर कीजिए: “हम उनमें से नहीं जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं, पर उनमें से हैं, जो प्राणों की रक्षा के लिए विश्‍वास रखते हैं।” (इब्रानियों 10:39, NHT) हनोक और नूह की तरह हम भी संकटों से भरे दौर में जी रहे हैं, लेकिन उन्हीं की तरह आज हमें भी परमेश्‍वर के साथ चलते रहने का सम्मान मिला है। अगर हम परमेश्‍वर के साथ-साथ चलते रहें, तो हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि हम यहोवा के वादों को पूरा होते, सारी दुष्टता का अंत होते और एक नया धर्मी संसार कायम होते ज़रूर देखेंगे। यह क्या ही शानदार आशा है!

19. सच्चे उपासक जो रास्ता चुनते, उसके बारे में मीका ने क्या बताया?

19 परमेश्‍वर के नबी मीका ने पवित्र आत्मा की प्रेरणा से कहा था कि इस संसार की जातियाँ ‘अपने अपने देवता का नाम लेकर चलेंगी।’ इसके बाद उसने खुद के और दूसरे वफादार सेवकों के बारे में कहा: “हम लोग अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।” (मीका 4:5) क्या मीका की तरह आपका भी यही अटल इरादा है? अगर हाँ, तो हमेशा परमेश्‍वर के करीब रहिए, फिर चाहे कितना ही बुरा वक्‍त क्यों न आए। (याकूब 4:8) हममें से हरेक की यही दिली तमन्‍ना हो कि हम अभी और सदा सर्वदा तक, जी हाँ हमेशा-हमेशा तक अपने परमेश्‍वर यहोवा के साथ-साथ चलते रहें!

आप क्या जवाब देंगे?

• नूह के दिनों और हमारे दिनों में क्या बातें मिलती-जुलती हैं?

• नूह और उसके परिवार ने कौन-सा रास्ता अपनाया, और हम उनके जैसा विश्‍वास कैसे दिखा सकते हैं?

• यीशु के कुछ चेलों ने कैसा गलत नज़रिया दिखाया था?

• सच्चे मसीहियों ने क्या करने का अटल इरादा किया है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 20 पर तसवीरें]

नूह के दिनों की तरह आज भी लोग अपने रोज़मर्रा के कामों में डूबे हुए हैं

[पेज 21 पर तसवीर]

राज्य के प्रचारकों के नाते ‘हम उनमें से नहीं जो पीछे हट जाएँ’